Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आज की कहानी

Wife ने Husband को msg किया :- ऑफिस से लौटते समय सब्ज़ी लेते आना । और हाँ, पड़ोसन ने तुम्हारे लिये hello कहा है ।
Husband : कौन सी पड़ोसन ?
Wife : कोई नहीं ।मैंने केवल इसलिए msg के अंत मे पड़ोसन का नाम लिखा ताकि मैं sure हो सकूँ कि तुमने मेरा पूरा msg पढ़ा😃

😃😂😋😉

अब कहानी में मोड़ है……😳
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Husband :- लेकिन मैं तो पड़ोसन के साथ ही हूँ ।तुम किस पड़ोसन के बारे में बता रहीं थीं ?

Wife :- कहाँ हो तुम ….? 😡😡😡

Husband : सब्ज़ी बाजार के पास 😎
Wife :- वहीं रुको, मैं अभी आती हूँ । …..

10 मिनट में सब्ज़ी बाजार पहुँच कर Wife ने Husband को msg किया ” कहाँ हो तुम “?

Husband :-“मैं आफिस में हूँ ।अब तुम्हें जो सब्ज़ी ख़रीदनी है , खरीद लो……

कहानी में एक और मोड़ आता है
A big twist is here now
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Wife : पर मैं तो गुस्से में टेम्पू पकड़कर आ गई और मेरा पर्स भी घर रह गया. सब्जी तो दूर टेम्पू वाले का किराया भी कहा से चुकाऊं. प्लीज़ जरा जल्दी आओ।

पति: बेवकूफ पर्स तो लेकर आना चाहिये था ना। ठीक है मैं आ रहा हूं। (सब्जी मण्डी पहुंचकर) कहॉ हो?

Wife- घर पर ही हूं, अब सब्जी लेकर सीधे घर आ जाओ। 😋😀😃

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अगर पौराणिक कथाओं की बात करें तो एक किसी रत्नाकर नाम के डाकू की किम्वदंतियां सुनाई देती हैं। ये जंगलों में कहीं अड्डा जमाये हुए था और आने जाने वाले राहगीरों को लूटकर अपना जीवन-यापन करता था। काफी कुछ अंगुलिमाल जैसा ही किस्सा है मगर इसमें डाकू की भेंट नारद मुनि से हो जाती है। नारद खुशी-ख़ुशी उसे अपनी वीणा देने को तैयार हो जाते हैं जिससे डाकू चकित हो जाता है। इसी क्रम में अपनी बातों में सबको उलझाने के लिए जाने जाने वाले नारद मुनि डाकू से बातचीत करने लगते हैं।

बेचारे डाकू को कोई अंदाजा नहीं रहा होगा कि उसके तलवार-फरसे, चाकू-छुरे इत्यादि से कहीं घातक माने जाने वाले शब्दों के हथियार चलाने में नारद कैसे प्रवीण हैं! नारद मुनि ने उससे पूछ लिया कि परिवार में कौन कौन है? डाकू का परिवार था। फिर नारद ने पूछा कि जो तुम लूटकर ले जाते हो उसमें मेहनत तो तुम करते हो मगर भोगते तो सभी हैं। क्या कभी तुमने उनसे ये पूछा कि अगर राजा के सिपाहियों ने तुम्हे ये करते पकड़ लिया तो वो दंड भोगने में तुम्हारा हिस्सा बंटाएंगे या नहीं?

डाकू ने इस विषय में सोचा ही नहीं था। मासूम रहा होगा। तो नारद मुनि को वहीँ छोड़कर वो घर गया और पहले अपने माता-पिता से पूछा। उन्होंने कहा कि डाका डालना हमने तो तुम्हें सिखाया नहीं। अगर तुम ये करके कमाते हो तो ये तुम्हारा मामला है, दंड हम क्यों भोगेंगे? पत्नी से पूछा तो वो बोली मेरा निर्वाह करना तुम्हारा धर्म है। अनाचार से पैसे लाये थे, इससे मुझे क्या लेना? कोई दंड बाँटने को तैयार नहीं दिखा तो डाकू नारद मुनि के पास लौटा और कहने लगा कि जिनके लिए पाप किये जा रहा था, उनमें से कोई दंड भोगने को तैयार नहीं!

अब नारद ने और समझाया-बुझाया, फिर रत्नाकर डकैती छोड़कर साधू बन गया। कुछ लोग इसे पता नहीं क्यों, निराधार ही, बिना संदर्भो के ही, वाल्मीकि पर चिपका देने की कोशिश करते हैं। इस कहानी का वाल्मीकि से कोई लेना देना हो, ऐसा हमने कभी पढ़ा नहीं। हाँ, आपके पापों-अपराधों का दंड आप अकेले ही भोगेंगे, ये सिखाने के लिए इस कथा का प्रयोग जरूर हो सकता है। उदाहरण के तौर पर शराब पीने में आपका साथ देने कई लोग जरूर जुट जायेंगे, लेकिन नशे में एक्सीडेंट हुआ तो दर्द आप झेलेंगे। किसी और को गाड़ी से उड़ा दिया तो मुकदमा आपपर होगा। जो प्रतिष्ठा शराबी कहलाने के कारण जाएगी वो भी आपकी ही जायेगी। उस दिन जो लोग आपके साथ बैठे थे वो भी चटखारे लेकर आपके शराबी होने का किस्सा सुनायेंगे।

कई बार लोग ऐसी कथाएँ सुनने-पढ़ने या जानने के बाद भी इससे सीखते नहीं। दूसरे लोगों का छोड़िये हमने खुद भी अनुभव के बाद ही इस कहानी को मानना शुरू किया है। इसके बाद भी अगर पहले से पता हो तो मनुष्य थोड़ा सावधान तो रहेगा ही। अब सोचिये कि #टूलकिट मामले में धराई दिशा रवि ने क्या सोचा होगा? उसके बनाए #टूलकिट को इस्तेमाल करने वाले नामचीन लोग आपको बचा लेंगे? अगर कुछ हुआ भी तो बड़े-बड़े लोग उसमें हिस्सा बंटाने आ जायेगे? अब शायद समझ में आ रहा होगा ऐसा नहीं होता। भारत विरोधी #टूलकिट रचने में सहयोग करते समय उसे बड़े-बड़े लोगों से मिलने-परिचित होने में मजा आ रहा होगा। रत्नाकर डाकू जैसा “लूटकर लाओ, कूटकर खाओ” चल रहा होगा।

बाकी अगर अपनी पौराणिक कथाएँ सुनाई होती तो अपने कुकर्मों का दंड अकेले ही भुगतना होगा ये पता होता। “सिर्फ दो लाइन एडिट की थी जी” कहकर रोती-धोती लड़की की तस्वीरें जब घर में बच्चों को दिखें, तो उसके साथ ही ये रत्नाकर डाकू का किस्सा भी सुना दीजियेगा। कोई कुटिल कॉमरेड अगर कल को उसे बरगलाये, तो हो सकता है आपके बच्चे रत्नाकर डाकू का किस्सा याद करके रुक जाएँ! बच्चों को जेल में तो नहीं देखना चाहते ना?
@Anand Kumar

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आज का प्रसंग:-एक सभा में गुरु जी ने प्रवचन के दौरान एक 30 वर्षीय युवक को खड़ा कर पूछा-
कि आप मुम्बई मेँ जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं।और सामने से एक सुन्दर लड़की आ रही है , तो आप क्या करोगे ?

युवक ने कहा – उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।

गुरु जी ने पूछा – वह लड़की आगे बढ़ गयी , तो क्या पीछे मुड़कर भी देखोगे ?

लड़के ने कहा – हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है, तो। (सभा में सभी हँस पड़े।)

गुरु जी ने फिर पूछा – जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा ?

युवक ने कहा 5 – 10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।

गुरुजी ने उस युवक से कहा – अब जरा कल्पना कीजिये.. आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं,और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना…

आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए। उनका घर देखा, तो आपको पता चला कि ये तो बड़े अरबपति हैं। घर के बाहर 10 गाड़ियाँ और 5 चौकीदार खड़े हैं।

उन्हें आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई , तो वे महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठाकर गरम खाना खिलाया।

चलते समय आप से पूछा – किसमें आए हो ?
आपने कहा- लोकल ट्रेन में।

उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि उस अरबपति महानुभाव का फोन आया – भैया, आप आराम से पहुँच गए..

अब आप बताइए कि आपको वे महानुभाव कब तक याद रहेंगे ?

युवक ने कहा – गुरु जी ! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।

गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को संबोधित करते हुए कहा — “यह है जीवन की हकीकत।”

“सुन्दर चेहरा थोड़े समय ही याद रहता है, पर सुन्दर व्यवहार जीवन भर याद रहता है।”

बस यही है जीवन का गुरु मंत्र… अपने चेहरे और शरीर की सुंदरता से ज़्यादा अपने व्यवहार की सुंदरता पर ध्यान दें.. जीवन अपने लिए आनंददायक और दूसरों के लिए अविस्मरणीय प्रेरणादायक बन जाएगा..
जीवन का सबसे अच्छा योग
सहयोग हैै,

और

सबसे बुरा आसन
आश्वासन।

प्रशांत मणि त्रिपाठी

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

*👉🏿परोपकार की ईंट 🏵️ 🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅
*बहुत समय पहले की बात है एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे. उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।*

वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी ,

“आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं।”

आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।

ऋषिवर बोले , “प्रिय शिष्यों , आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है. मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें.

यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा.”

तो क्या आप सब तैयार हैं?”

” हाँ , हम तैयार हैं ”, शिष्य एक स्वर में बोले.

दौड़ शुरू हुई.

सभी तेजी से भागने लगे. वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे. वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमे जगह – जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था.

सभी असमंजस में पड़ गए , जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीँ अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे ; खैर , सभी ने ऐसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।

“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया , भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।

यह सुनकर एक शिष्य बोला , “ गुरु जी , हम सभी लगभग साथ –साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी …कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभल -संभल कर आगे बढ़ रहा था …और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा -उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े…. इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की.”

“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ”, ऋषिवर ने आदेश दिया.

आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे. पर ये क्या जिन्हे वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे. सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे.

“मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों के देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं.” ऋषिवर बोले।

“दरअसल इन्हे मैंने ही उस सुरंग में डाला था , और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।”

पुत्रों यह दौड़ जीवन की भागम -भाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है. पर अंत में वही सबसे समृद्ध होता है जो इस भागम -भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है.

अतः यहाँ से जाते -जाते इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन में सफलता की जो इमारत खड़ी करें उसमे परोपकार की ईंटे लगाना कभी ना भूलें , अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी।”

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