जैसे संस्कार होते हैं, वैसा ही हमारा व्यवहार होता है?
एक महर्षि एक गांव से गुजर रहे थे, साथ में कुत्ते का एक नन्हा बच्चा था। गांव के एक बनिया के दुकान के पास महर्षि रुके। नेक स्वभाव का गिरधारी नाम का बनिया हाथ जोड़ कर उनके समक्ष खड़ा हो गया और उन्हें आदर के साथ बैठने को आसन दिया। फिर विनम्रता से पूछा, ” महाराज मै आपकी कुछ सेवा कर सकूं ऐसा आदेश दीजिए।
महर्षि बोले, ” मेरे साथ ये नन्हा कुत्ता है, मेरी कुटिया के बाहर ही इसकी मां रहती थी, वही उसने इस बच्चे को जन्म दिया, और शरीर त्याग दी। तब से ये मेरे साथ ही है। बहुत आज्ञाकारी है। मुझे एक मठ में शामिल होने जाना है, तो इसे मै नहीं ले जा सकता। मै चाहता हूं, मेरे आने तक इसे तुम अपने पास रखो। वहां से लौटकर मै इसे ले जाऊंगा। गिरधारी उस कुत्ते को रख लिया। उसे अपने घर ले गया।
नन्हा कुत्ता इंसानों से भी ज्यादा शिष्टाचारी था। सुबह उठकर स्वयं गांव के नदी में जाकर स्नान कर आता और गिरधारी के घर के पूजा कमरे के बाहर दरवाजे पर बैठ कर प्रभु का ध्यान करता। फिर जब गिरधारी की पत्नी उसे भोजन देती तो उसे बहुत आदर से खाता, फिर गिरधारी संग दुकान पर जाता और दिनभर दुकान की देख रेख करता। साथ ही दुकान पर गिरधारी के नौकर पर भी नजर रखता। क्योंकि गिरधारी की आंखो मे धूल झोक उसका नौकर अक्सर छोटी मोटी चोरी कर लेता था। लेकिन कुत्ते के आने के बाद उसके लिए चोरी करना मुश्किल हो गया था।
काम धंधे में बरक्कत हो रही थी। गिरधारी कुत्ते को बहुत प्यार करने लगा था। लेकिन नौकर को कुत्ता फूटी आंख नहीं भाता।
एक रोज नौकर ने कुत्ता को मालिक की नजर में गिराने की तरकीब सोची। अब बस अंजाम देना प्रारंभ करना था। जब भी मालिक दुकान पर नहीं होता, कोई बहुमूल्य वस्तु तोड़कर वो चालाकी से इसका दोष कुत्ते के मत्थे मढ़ देता। लगातार ऐसी शिकायतों से तंग आकर बिना सही बात जाने गिरधारी ने कुत्ते को लकड़ी के टुकड़े से पीट दिया, और उसे घर से निकाल दिया।
लेकिन कुत्ता उसके घर के बाहर एक कोने में चुपचाप बैठ गया। कुछ दिन कुत्ता भूखा ही रह गया। लेकिन गिरधारी ने उसपर ध्यान नहीं दिया। एक दिन गिरधारी को पैर में चोट लग गई, और वो घाव भरने तक बिस्तर पर ही रहने को मजबूर था। दुकान पर जाना भी मुमकिन नहीं था।
कुत्ते ने गिरधारी की गैरहाजिरी में दुकान की निगरानी रखना प्रारम्भ कर दिया। एक रोज कुछ चोर रात में उसकी दुकान में सेंध मारे, लेकिन कुत्ते ने अकेले बहादुरी से सामना किया और उन्हें वहां से भगाया।
गिरधारी को जैसे ही ये बात पता चली उसने कुत्ते को वापस घर पर बुलाया, और उसका शुक्रिया किया। वो कुत्ते के प्रति अपने बुरे व्यवहार पर शर्मिंदा था।
महर्षि का भी उसी वक्त उसके घर लौटना हुआ। गिरधारी ने महर्षि का स्वागत किया। कुत्ता महर्षि के पैर को स्नेह वश चाटने लगा, और उनके समक्ष बैठ गया।
गिरधारी ने महर्षि को कुत्ते साथ घटित सारी घटना बताई। और कुत्ते को पीटने के लिए क्षमा मांगी। और कहा, ” महाराज, मैंने बिना उसका दोष प्रमाणित हुए उसे पीटा फिर भी एक पल के लिए भी उसने मेरे से दूरी नहीं बनाई, मेरे घर के बाहर ही बैठा रहा, उसके चेहरे पर भूखा रह कर भी संतोष और स्नेह के भाव ही थे। और संकट की घड़ी में इसने मेरा साथ दिया। ये जानवर होकर भी महान है”।
महर्षि बोले, ” इसे ही तो संस्कार कहते है, जब ये अपनी मां के गर्भ में था, उस वक्त कुटिया के बाहर बैठी इसकी मां भागवत पाठ सुना करती थी। गर्भ संस्कार इसकी उच्च कोटि की है। ये जानता है कि क्रोध का जवाब प्रेम से ही दिया जाता है। किसी की धृष्टता के प्रतिउत्तर में स्वयं भी हिंसक हों जाना अनुचित है। एक बात याद रखना गिरधारी जैसा बीज होगा वैसा ही पेड़ होगा और उस पेड़ पर फल भी वैसे ही आएंगे। एक महर्षि के सान्निध्य में पला ये कुत्ता पशु होकर भी उच्चतम कोटि का संस्कारी है”।