और फिर…. नीले रंग के सियार ने कहा, “ निर्बलों की रक्षा बलवान ही कर सकते हैं क्योंकि भेड़ें कोमल हैं, निर्बल हैं जिस कारण वे अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकतीं.
जबकि… हरे भेड़िये बलवान हैं.. इसलिए उनके हाथों में अपने हितों को छोड़ निश्चिन्त हो जाओ क्योंकि “वे भी” तुम्हारे भाई हैं.. और आप एक ही जाति के हो .
तुम नीला भेड़ और वह हरा भेड़िया…
कितना कम अंतर है ??
और, बेचारा हरा भेड़िया व्यर्थ ही बदनाम कर दिया गया है कि वह भेड़ों को खाता है .
जबकि, उसे खाते तो केशरिया शेर हैं… और, हड्डियां हरे भेड़ियों के द्वार पर फेंक जाते हैं… जिस कारण ये व्यर्थ बदनाम होते हैं .
तुम लोग तो पंचायत में बोल भी नहीं पाओगे .
जबकि, भेड़िये बलवान होते हैं .
यदि तुम पर कोई अन्याय होगा, तो डटकर लड़ेंगे .
इसलिए अपने हित की रक्षा के लिए भेडियों को चुनकर पंचायत में भेजो.
जोर से बोलो… “संत भेड़िया की जय !”
फिर हरे रंग के धर्मगुरु ने उपदेश दिया, “ जो यहाँ त्याग करेगा, वह उस लोक में पाएगा.
जो यहाँ दुःख भोगेगा, वह वहां सुख पाएगा .
जो यहाँ राजा बनाएगा, वह वहाँ राजा बनेगा.
जो यहाँ वोट देगा, वह वहाँ वोट पाएगा.
इसलिए , सब मिलकर भेड़िये को वोट दो .
क्योंकि, वे दानी हैं, परोपकारी हैं, और संत हैं.
मैं उनको प्रणाम करता हूँ |”
यह एक भेड़िये की कथा नहीं है बल्कि सब भेड़ियों की कथा है.
इस तरह… सब जगह इस प्रकार प्रचार हो गया और भेड़ों को विश्वास हो गया कि भेड़िये से बड़ा उनका कोई हित-चिन्तक और हित-रक्षक नहीं है.
इसके बाद, जब पंचायत का चुनाव हुआ तो भेड़ों ने अपने हित- रक्षा के लिए भेड़िये को चुना.
और, पंचायत में भेड़ों के हितों की रक्षा के लिए भेड़िये प्रतिनिधि बनकर गए.
फिर… पंचायत में भेड़ियों ने भेड़ों की भलाई के लिए पहला क़ानून यह बनाया —-
हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाए , दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के ख्याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेड़ दी जाए.
इस तरह हरे ने… नीले की रक्षा कर ली.
क्योंकि, जब भेड़ें रहेंगी ही नहीं तो फिर अत्याचार की बात स्वयं ही समाप्त हो जाएगी.
जय महाकाल…!!!