Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

👉 जटायु 🏵️
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अंतिम सांस गिन रहे *जटायु ने कहा कि मुझे पता था कि मैं *रावण* से नही जीत सकता लेकिन तो भी मैं लड़ा ..यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहती

🙏जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले… तो काल आया और जैसे ही काल आया …
तो गिद्धराज जटायु ने मौत को ललकार कहा, —

खबरदार ! ऐ मृत्यु ! आगे बढ़ने की कोशिश मत करना… मैं मृत्यु को स्वीकार तो करूँगा… लेकिन तू मुझे तब तक नहीं छू सकता… जब तक मैं सीता जी की सुधि प्रभु ” श्रीराम ” को नहीं सुना देता…!

मौत उन्हें छू नहीं पा रही है… काँप रही है खड़ी हो कर…
मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही… यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला।

किन्तु महाभारत के भीष्म पितामह छह महीने तक बाणों की शय्या पर लेट करके मौत का इंतजार करते रहे… आँखों में आँसू हैं … रो रहे हैं… भगवान मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं…!
कितना अलौकिक है यह दृश्य … रामायण मे जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं…
प्रभु ” श्रीरामरो रहे हैं और जटायु हँस रहे हैं…
वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे हैं और भगवानश्रीकृष्ण ” हँस रहे हैं… भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं… ?

अंत समय में जटायु को प्रभु ” श्रीराम ” की गोद की शय्या मिली… लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली….!
जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहा है….

प्रभु ” श्रीराम ” की शरण में….. और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं….
ऐसा अंतर क्यों?…

ऐसा अंतर इसलिए है कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था… विरोध नहीं कर पाये थे …!
दुःशासन को ललकार देते… दुर्योधन को ललकार देते… लेकिन द्रौपदी रोती रही… बिलखती रही… चीखती रही… चिल्लाती रही… लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे… नारी की रक्षा नहीं कर पाये…!

उसका परिणाम यह निकला कि इच्छा मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और ….
जटायु ने नारी का सम्मान किया…
अपने प्राणों की आहुति दे दी… तो मरते समय भगवान ” श्रीराम ” की गोद की शय्या मिली…!

जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं … उनकी गति भीष्म जैसी होती है …
जो अपना परिणाम जानते हुए भी…औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।

🙏 सदैव गलत का विरोध जरूर करना चाहिए। ” सत्य परेशान जरूर होता है, पर पराजित नहीं।

🙏🙏🙏

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1 भारतीय ने जॉब छोड़कर कनाडा के 1 बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में सेल्समेन की नोकरी ज्वाइन की।

बॉस ने पूछा:- तुम्हे कुछ तज़ुर्बा है? उसने कहा कि मैं भारत में डॉक्टर था।

पहले दिन उस भारतीय डॉक्टर ने पूरा मन लगाकर काम किया।

शाम के 6 बजे बॉस ने पूछा:- आज पहले दिन तुमने कितने सेल किये?

भारतीय डॉक्टर ने कहा कि सर मैंने 1 सेल किया। बॉस चौंककर बोले:- क्या मात्र 1 ही सेल।

सामान्यत: यहाँ कार्य करने वाले हर सेल्समेन 20 से 30 सेल रोज़ाना करते हैं। अच्छा ये बताओं तुमने कितने का सेल किया।

93300 पाउंड्स। भारतीय डॉक्टर बोला।

क्या! लेकिन तुमने यह कैसे किया? आश्चर्यजनक रूप से बॉस ने पूछा।

भारतीय डॉक्टर ने कहा:- 1 व्यक्ति आया और मैंने उसे एक छोटा मछली पकड़ने का हुक बेचा।

फिर एक मझोला और फिर अंततः एक बड़ा हुक बेचा। फिर उसे मैंने 1 बड़ी फिशिंग रॉड और कुछ फिशिंग गियर बेचे।

फिर मैंने उससे पूछा कि तुम कहा मछली पकड़ोगे और उसने कहा कि वह कोस्टल एरिया में पकड़ेगा। तब मैंने कहा कि इसके लिए 1 नाव की ज़रूरत पड़ेगी। अतः मैं उसे नीचे बोट डिपार्टमेंट में ले गया और उसे 20 फीट की डबल इंजन वाली स्कूनर बोट बेच दी। जब उसने कहा कि यह बोट उसकी वोल्कस वेगन में नहीं आएगी।

तब मैं उसे अपने ऑटो मोबाइल सेक्शन में ले गया और उसे बोट केरी करने के लिए नई डीलक्स 4 × 4 ब्लेज़र बेचीं। और जब मैंने उसे पूछा कि तुम मछली पकड़ते वक़्त कहा रहोगे। उसने कुछ प्लान नहीं किया था। तो मैं उसे कैम्पिंग सेक्शन में ले गया और उसे six sleeper camper tent बेच दिया।

और तब उसने कहा कि उसने जब इतना सब कुछ ले ही लिया है तो 200 पाउण्ड की ग्रासरी और बियर के 2 केस भी लेगा।

अब बॉस 2 कदम पीछे हटा और बेहद ही भौचक्के अंदाज़ में पूछने लगा:- तुमने इतना सब उस आदमी को बेच दिया जो केवल 1 fish hook खरीदने आया था?

“NO, SIR,”

वह तो केवल सरदर्द दूर करने की 1 टेबलेट लेने आया था। मैंने उसे समझाया कि मछली पकड़ना सरदर्द दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है

बॉस:- तुमने इसके पहले भारत में कहा काम किया था?

भारतीय डॉक्टर:- जी मैं प्राइवेट हॉस्पिटल में डॉक्टर था घबराहट की मामूली शिकायत पर हम लोग, मरीजों से पैथोलॉजी, ईको, ईसीजी, टीएमटी,सी टी स्केन,एक्सरे, एम आर आई इत्यादि टेस्ट करवाते हैं।

बॉस:- तुम मेरी कुर्सी पर बेठो। मैं इंडिया मे ट्रेनिंग के लिये प्राइवेट हॉस्पिटल ज्वाईन करने जा रहा हूँ।

😄😄😄😄😄😄😄😄

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🔴🔴मधुर व्यवहार🔴🔴

एक राजा ने स्वप्न में देखा कि उससे एक परोपकारी साधु कह रहा है कि– “बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला साँप काटेगा और उसके काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी । वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुमसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है ।”

सुबह हुई………

राजा सोकर उठा और सपने की बात पर विचार करने लगा कि अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए ?

विचार करते–करते राजा इस निर्णय पर पहुँचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है । उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया ।

शाम होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह–जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने की कोशिश न करें ।

रात को साँप अपनी बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया । वह जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख–देखकर आनन्दित होता गया । कोमल बिछौने पर लेटता हुआ, मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता गया ।

इस तरह क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे । जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, वैसे–वैसे उसका क्रोध कम होता चला गया । राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुंचाने की चेष्टा नहीं कर रहे हैं ।

यह असाधारण सी लगने वाले दृश्य देखकर साँप के मन में स्नेह उमड़ आया । सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था । कहाँ वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया । हानि पहुंचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूँ तो किस प्रकार काटूँ ? यह प्रश्न के चलते वह दुविधा में पड़ गया ।

राजा के पलंग तक जाने तक साँप का निश्चय पूरी तरह से बदल गया था । उधर समय से कुछ देर बाद साँप राजा के शयन कक्ष में पहुँचा । साँप ने राजा से कहा– “राजन! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया ।”

“अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ । मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ । लो इसे अपने पास रखो । इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर साँप चला गया ।”

🔵यह महज कहानी नहीं जीवन की सच्चाई है ।🔵

⚪🔴⚪सदव्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल बनाने का माद्दा रखता है । यदि व्यक्ति व्यवहार कुशल है, तो वह सब कुछ प्राप्त करने में कामयाब होता है, जिसे पाने की वह हार्दिक इच्छा रखता है ।⚪🔴⚪

साभार

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बूढ़ा पिता अपने IAS बेटे के चेंबर में जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया !

और प्यार से अपने पुत्र से पूछा…

“इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है”?

पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा “मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी “!

पिता को इस जवाब की आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा पिताजी इस दुनिया के सब से शक्तिशाली इंसान आप हैैं, जिन्होंने मुझे इतना योग्य बनाया !

उनकी आँखे छलछला आई !
वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे !

उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा एक बार फिर बताओ इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ??? *पुत्र ने इस बार कहा...* *"पिताजी आप हैैं,* *इस दुनिया के सब से* *शक्तिशाली इंसान "!*

पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा “अभी तो तुम अपने आप को इस दुनिया का सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो ” ???

पुत्र ने हंसते हुए उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा ..

“पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना,,,,,

बोलिए पिताजी” !

पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लगा लिया !
“तब मैं चन्द पंक्तियां लिखता हूं”
*जो पिता के पैरों को छूता है *वो कभी गरीब नहीं होता।*

जो मां के पैरों को छूता है वो कभी बदनसीब नही होता।

जो भाई के पैराें को छूता है वो कभी गमगीन नही होता।

जो बहन के पैरों को छूता है वो कभी चरित्रहीन नहीं होता।

जो गुरू के पैरों को छूता है
उस जैसा कोई खुशनसीब नहीं होता…….

💞अच्छा दिखने के लिये मत जिओ
बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ💞

💞जो झुक सकता है वह सारी
☄दुनिया को झुका सकता है 💞

💞 अगर बुरी आदत समय पर न बदली जाये
तो बुरी आदत समय बदल देती है💞

💞चलते रहने में ही सफलता है,
रुका हुआ तो पानी भी बेकार हो जाता है 💞

💞 झूठे दिलासे से स्पष्ट इंकार बेहतर है
अच्छी सोच, अच्छी भावना,
अच्छा विचार मन को हल्का करता है💞

💞मुसीबत सब पर आती है
कोई बिखर जाता है
और कोई निखर जाता है

💞 “तेरा मेरा”करते एक दिन चले जाना है…
जो भी कमाया यहीं रह जाना है।

🙏सदैव बुजुर्गों का सम्मान करें
सुप्रभात, राम राम🙏🏻🙏🏻

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आत्मा के भीतर का मैल समाप्त करने वाला ईश्वर ही है।

एक गुरु के दो शिष्य थे। दोनों लम्बे समय से गुरु के निर्देशन में साधना करते आ रहे थे। एक बार दोनों ने अपने गुरु से दीक्षा देकर सन्यासी बनाने का आग्रह किया। गुरु ने कहा उचित ठीक है आप दोनों को कल दीक्षा देंगे। आप दोनों कल नदी पर स्नान कर नवीन वस्त्र धारण कर मेरे पास आना। मैं दोनों को दीक्षा दूंगा। अगले दिन प्रात:काल दोनों शिष्य नदी पर स्नान करने गए तो उनके गुरु भी उनके पीछे चल दिए। गुरु साथ में एक ग्रामीण व्यक्ति को ले गए। पहला शिष्य स्नान करने के पश्चात नवीन वस्त्र धारण कर वापिस आ रहा था। मार्ग में उस ग्रामीण ने उसके ऊपर कूड़ा डाल दिया। पहला शिष्य क्रोधित होता हुआ बोला। तुमने मेरे वस्त्र ख़राब कर दिए। आज मैं दीक्षा लेकर सन्यासी बनने जा रहा था। अब मुझे दोबारा स्नान कर फिर से वस्त्र बदलने पड़ेंगे। यह कहकर बुदबुदाता हुआ वह वापिस नदी पर चला गया। पीछे से दूसरा शिष्य स्नान कर नवीन वस्त्र पहनकर गुरु से दीक्षा लेने के लिए चला। मार्ग में उसी ग्रामीण ने उसके ऊपर कूड़ा डाल दिया। दूसरा शिष्य बिना क्रोधित हुए नम्रतापूर्वक बोला। यह कूड़ा, यह वस्त्रों का मैल तो उस कूड़े, उस मैल के समक्ष कुछ भी नहीं हैं, जो वर्षों से मेरी आत्मा के भीतर गंदगी के रूप में जमा हुआ है। यह बाहरी मैल तो वस्त्र धोने मात्र से धूल जाता हैं। परन्तु भीतर का मैल तो परमात्मा की कृपा से ही समाप्त होता हैं।

उन शिष्य के गुरु वृक्ष के पीछे छुपे हुए अपने शिष्य के वचनों को सुन रहे थे। उन्होंने अपने शिष्य को गले से लगा लिया और कहा आप दीक्षा लेने के पात्र बन चुके है। आपके ऊपर ईश्वर की कृपा हो चुकी हैं। जो भीतर के मैल को दूर करने की चेष्ठा करता है वही मोक्ष पथ का पथिक है। मनुष्य को प्रकृति के बाहरी प्रलोभनों से विरक्ति कर उसके स्थान पर प्रकाश करने वाला ईश्वर ही हैं। अथर्ववेद 4/11/5 में वेद इसी सन्देश को बड़े सुन्दर शब्दों में लिखते हैं। वेद कहते है,”परमात्मा की ज्योति के उपासक मुमुक्षुओं (मोक्ष की इच्छा रखने वाले) के अंदर से भोगों या भोग बंधन में बांधने वाली प्रकृति के मृत्यु रूप जड़भाव को नष्ट कर देती है और उनके अंदर स्वप्रकाश तरंग को संचालित कर देती है।”

डॉ विवेक आर्य