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➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖ *☀️◆ गरीब की मांग ◆☀️*

★ एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया, पोट्रट बनवाया। चित्र बन गया, तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी। चित्रकार से उसने कहा, कि क्या उसका पुरस्कार दूं? चित्रकार गरीब आदमी था। गरीब आदमी वासना भी करे तो कितनी बड़ी करे, मांगे भी तो कितना मांगे? हमारी मांग, सब गरीब आदमी की मांग है परमात्मा से। हम जो मांग रहे हैं, वह क्षुद्र है। जिससे मांग रहे हैं, उससे यह बात मांगनी नहीं चाहिए।

_★ तो उसने सोचा मन में कि सौ डालर मांगूं, दो सौ डालर मांगूं, पांच सौ डालर मांगूं। फिर उसकी हिम्मत डिगने लगी। इतना देगी, नहीं देगी! फिर उसने सोचा कि बेहतर यह हो कि इसी पर छोड़ दूं, शायद ज्यादा दे। डर तो लगा मन में कि इस पर छोड़ दूं, पता नहीं दे या न दे, या कहीं कम दे और एक दफा छोड़ दिया तो फिर! तो उसने फिर भी हिम्मत की।

उसने कहा कि आपकी जो मर्जी। तो उसके हाथ में जो उसका बैग था, पर्स था, उसने कहा,तो अच्छा तो यह पर्स तुम रख लो। यह बडा कीमती पर्स है।_

★ पर्स तो कीमती था, लेकिन चित्रकार की छाती बैठ गयी कि पर्स को रखकर करूंगा भी क्या? माना कि कीमती है और सुंदर है, पर इससे कुछ आता-जाता नहीं।

★ इससे तो बेहतर था कुछ सौ डालर ही मांग लेते। तो उसने कहा, नहीं-नहीं, मैं पर्स का क्या करूंगा, आप कोई सौ डालर दे दें।

★ उस महिला ने कहा, तुम्हारी मर्जी। उसने पर्स खोला, उसमें एक लाख डालर थे, उसने सौ डालर निकाल कर चित्रकार को दे दिये और पर्स लेकर वह चली गयी।

★ सुना है कि चित्रकार अब तक छाती पीट रहा है और रो रहा है–मर गये, मारे गये, अपने से ही मारे गये! 😭😩😩😩

★ आदमी करीब-करीब इस हालत में है। परमात्मा ने जो दिया है, वह बंद है, छिपा है। और हम मांगे जा रहे हैं–दो-दो पैसे, दो-दो कौड़ी की बात। और वह जीवन की जो संपदा उसने हमें दी है, उस पर्स को हमने खोल कर भी नहीं देखा है।

_★ जो मिला है, वह जो आप मांग सकते हैं, उससे अनंत गुना ज्यादा है। लेकिन मांग से फुरसत हो, तो दिखायी पड़े, वह जो मिला है। भिखारी अपने घर आये, तो पता चले कि घर में क्या छिपा है। वह अपना भिक्षापात्र लिये बाजार में ही खड़ा है! वह घर धीरे-धीरे भूल ही जाता है, भिक्षा-पात्र ही हाथ में रह जाता है। इस भिक्षापात्र को लिये हुए भटकते-भटकते जन्मों-जन्मों में भी कुछ मिला नहीं। कुछ मिलेगा नहीं। 🌷★ शुभ रात्रि ★🌷

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जब मैं छोटा था तो माँ पिता जी मुझे प्रतिदिन छत पर बाजरा डालने को बोलते थे तथा मेरे दिन की शुरुआत ही जानवरों को दाणा डालने से होती थी। बाजरा खत्म होते ही दोबारा मंगा लेते थे पर यह नियम नहीं टूटता था। किसी के शरीर पर फोड़ा हो जाता था ओर उसका पस नही निकलता था तब कबुतर की सूखी बींट में पानी मिलाकर उसपर लेप लगा देते थे। तब वो फोड़ा 3-4 घन्टे के अन्दर फूटकर उसका पस निकल जाता था। यह सब गाँव मे करीबन 35 साल पहले मेरा देखा हुआ है। मेरे नाना के घर भी ऐसा ही मैंने बचपन में देखा था। रोहतक आने के बाद भी माँ के जीवित रहते यह नियम जारी रहा। पर …..

कोई बच्चा शरीर से बहुत कमजोर होता था तब जहाँ पर कबूतर दाना चुगते थे वहाँ पर बच्चे को बैठा देते थे । जब कबूतर बार बार उड़ते थे , तब उनके पंखों की हवा बच्चे के लिए बहुत अच्छी मानी जाती थी।

आज के हम पढ़े लिखे लोग कबूतर की बींट को बिमारी फैलाने वाला व गाय के गोबर को गंदगी मानते हैं।

अब तो सब कुछ बदल गया। ना मोर, ना चिड़िया ना कबूतर। विनाश रूपी बिल्ली तेजी से हमारी तरफ आ रही है और हम सब कबूतर की तरह आँखें बंद किये हुए हैं।

अनपढ़ जाट रोहतकी✍️

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एक अंधेरी रात में एक काफिला एक रेगिस्तानी सराय में जाकर ठहरा। उस काफिले के पास सौ ऊंट थे। उन्होंने खूंटियां गाड़कर ऊंट बांधे, किंतु अंत में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और रस्सी कहीं खो गई थी। अब आधी रात वे कहां खूंटी-रस्सी लेने जाएं!

काफिले के सरदार ने सराय मालिक को उठाया – “बड़ी कृपा होगी यदि एक खूंटी और रस्सी हमें मिल जाती। 99 ऊंट बंध गए, एक रह गया–अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है।”

बूढ़ा बोला- मेरे पास न तो रस्सी है, और न खूंटी, किंतु 1 युक्ति है। जाओ और खूंटी गाड़ने का नाटक करो और ऊंट को कह दो–सो जाए।

सरदार बोला- अरे, कैसा पागलपन है??

बूढ़ा बोला-” बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं जो न हों, और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं जिनका कोई अस्तित्व न हो। अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ये तो एक ऊंट है?”

विश्वास तो नहीं था किंतु विवशता थी. उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी–जो नहीं थी। सिर्फ आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। रोज-रोज रात उसकी खूंटी ठुकती थी, वह बैठ गया। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी। रस्सी खूंटी से बांध दी गई–रस्सी, जो नहीं थी। ऊंट सो गया।

वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अदभुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए। सुबह उठकर उन्होंने निन्यानबें ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं–वे ऊंट खड़े हो गए।किंतु सौवां ऊंट बैठा रहा। उसको धक्के दिए, पर वह नहीं उठा।

फिर बूढ़े से पूछा गया. बूढ़ा बोला “ऊंट हिंदुओं की भांति बड़ा धार्मिक है। जाओ पहले खूंटी निकालो। रस्सी खोलो।” सरदार बोला- “लेकिन रस्सी हो तब ना खोलूँ।
बूढ़ा बोला – जैसा बांधने का नाटक किया था, वैसे ही खोलने का करो”

ऐसा ही किया गया और ऊंट खड़ा हो गया। सरदार ने उस बूढ़े को धन्यवाद दिया – “बड़े अदभुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है।”
बूढ़ा बोला,” यह सूत्र ऊंटों की जानकारी से नहीं, हिंदुओं की जानकारी से निकला है।”

वह हिंदू, जिसको अंग्रेजों ने जाने से पहले कांग्रेसी खूंटे से बांध दिया था, आज भी वहीं बंधा है. वो आज भी अंग्रेजी भाषा और संस्कृति की गुलामी कर रहा है. उसे बार बार बताने पर की “तू स्वतंत्र हो गया है”, खड़ा नहीं हो रहा. सहस्र वर्षों की गुलामी की रस्सी गले में लटका कर घूम रहा है. जो उसे धक्के देकर उठाना चाह रहा है, उसे शत्रु मान रहा है. फिर से गुलाम होना चाह रहा है. जय श्री राम

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लोगो की नहीं अपने दिल की सुने


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🔶’लोगो की नहीं अपने दिल की सुने’🔶


एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को, जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे। जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी। यह देख वह बहुत दुखी हुआ।

उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था। तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे।
उसने अगले दिन यही किया।

शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया। उस ने हर तरफ अच्छे से बार बार देखा एक भी निशान कही पर भी नहीं मिलावह संसार की रीति समझ गया । “कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है

शिक्षा – यही जिंदगी है दोस्तों कमी निकालने वालो की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है, लोग तो आप के अच्छे कार्यो में भी कमी निकाल लेते है। इसलिए दुनिया की ना सोचे की लोग क्या कहेंगे वो करे जो आप को अच्छा लगे जो आप को सत्य लगे

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ભગવાનની ભક્તિનો હિસાબ…..!

એક કારીગરને મંદિરમાં થોડું બાંધકામ કરવાનું કામ મળ્યું.
ભગવાનના મંદિરમાં કામ કરવાની તક મળી હતી આથી એ ખુબ આનંદમાં હતો.
એમણે ખુબ પુરી નિષ્ઠા સાથે પોતાનું કામ પુરું કર્યુ.

એક દિવસ પોતાના કામનું મહેનતાણું લેવા માટે એ મંદીરમાં આવ્યો.

પુજારીજીએ એ કારીગરનું પ્રેમથી સ્વાગત કર્યુ. પીવા માટે પાણી અને બેસવા માટે આસન આપ્યું.

પુજારીજી અંદરના ઓરડામાં ગયા અને હાથમાં એક બંધ કવર લઇને આવ્યા.
કવર કારીગરના હાથમાં મુકતાં કહ્યું , ”ભાઇ, આ તારા મહેનતાણાના 10800 રૂપિયા છે. આપણે અગાઉ નક્કી કર્યુ હતું તે મુજબનું જ મહેનતાણું છે”.

કારીગરે કવર લઇને ખીસ્સામાં મુક્યું અને પુજારીજીનો આભાર માન્યો. *પુજારીજીએ કારીગરને કહ્યું , ”અરે ભાઇ, જરા પૈસા ગણી લે. બરાબર છે કે કેમ એ તપાસી લે.”*

કારીગર તો ખડખડાટ હસી પડ્યો. પછી બોલ્યો,

”અરે પુજારીજી, મને આપના પર પુરો વિશ્વાસ છે. આપ આ મંદીરમાં વર્ષોથી પુજા કરો છો. જો હું પૈસા ગણવા બેસું તો તે આપનું અપમાન કહેવાય. આપના જેવા સાધુ પુરુષમાં મને પુર્ણ શ્રધ્ધા છે.” આટલું કહીને કારીગર પુજારીજીને વંદન કરીને જતો રહ્યો. *કારીગરના ગયા પછી પુજારીજી પોતાના હાથમાં રહેલી માળા સામે જોઈ રહ્યા અને પોતાની જાત પર જ હસવા લાગ્યા.*

પેલા સાવ સામાન્ય અને અભણ કારીગરને મારા જેવા માણસમાં વિશ્વાસ છે અને મારા જેવા કહેવાતા પંડીતને પરમાત્મામાં વિશ્વાસ નથી આથી જ મેં કેટલા મંત્ર જાપ કર્યા તેની ગણતરી રાખું છું.

પુજારીજીએ પોતાના હાથમાં રહેલી માળા ભગવાનના ચરણોમાં મુકીને નક્કી કર્યુ કે, હું તારા માટે જે કંઈ કરીશ તેનો હીસાબ રાખવાનું આજથી બંધ કરીશ. *મિત્રો, આપણે પણ અજાણતાં આવું જ કંઇક કરીએ છીએ.*

કેટલા ઉપવાસ કર્યા…..?
કેટલા મંત્ર જાપ કર્યા…..?
કેટલી માળાઓ કરી…..?
કેટલી પ્રદક્ષિણાઓ કરી…..?
ક્યાં ક્યાં કોને કોને કેટલું દાન આપ્યું…..?

આ બધાનો હીસાબ રાખતા હોઈએ તો એનો મતલબ એ થયો કે, મને મારા પ્રભુમાં વિશ્વાસ નથી. કરેલી ભક્તિનો હિસાબ રાખીને શું આપણે આપણા પ્રભુનું અપમાન તો નથી કરતાને.
🙏
.

આપણા જીવનમાં આવા નાના બનાવો બનતાં હોય છે, નાના નુકશાન બચાવવા જતાં મોટું નુકશાન જીરવવુ પડે છે

જરૂરી હોય છે નાની નાની બાબતોમાં ભુલી જવાની.

જેમ કે . . .

મને‌ પુછ્યું નહીં….
મને‌ નિમંત્રણ આપ્યું નહીં…
મને બોલાવ્યો નહીં…
મારી શુભેચ્છા સ્વિકારી નહીં…
મને‌ માન આપ્યું નહીં, વગેરે વગેરે….

છોડી દો આ બધું ને પછી જુઓ મિત્રો,સંબંધીઓ સાથે ના સંબંધ માં નવા પ્રાણ ફુંકાશે નવી ઊર્મિ નો અહેશાસ થશે.

સુક્ષ્મ અહંકાર સારા‌ માણસ થી
આપણને દુર કરી દે છે..જો આ છુટી જાય તો બધા આપણા જ હોય છે.
અહંકાર જલ્દી છુટશે નહીં પણ પ્રયત્ન કરવા થી શક્ય છે.
સમયને ઓળખતા, પ્રસંગને સાચવતા
માણસને સમજાવતા અને તકને
ઝડપતા આવડી ગયું તો સમજ જો કે
જીંદગી જીતી ગયા અને જીવી ગયા.

🌹🙏🏻🌹

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सन 1970 के आसपास की बात है। अमेरिका और वियतनाम का युद्ध जारी था। 8 अमेरिकी सैनिकों ने खेत में काम कर रही 5 ग्रामीण महिलाओं को बंदी बना लिया और उनके साथ जोर जबरदस्ती करने का प्रयास किया। उन पांचों महिलाओं ने अपने दांत, नाख़ून से अमेरिकी सैनिकों का इतना बुरा हाल किया कि अमेरिकी सैनिकों के पसीने छूट गये और उन्होने उन महिलाओं को मार मार कर अधमरा कर डाला। पर इसके बावजूद अपने इरादों में वो नाकाम ही रहे। अमेरिकी सैनिकों का ऐसा हाल हुआ कि जैसे जंगली भैंसों से उनका युद्ध हुआ हो। खीझ और नाकामी की झुंझलाहट में उन्होंने महिलाओं को गोली मार दी। इसके बाद से अमेरिकी सैनिकों के मध्य ऐसा मैसेज गया कि बियत्नामी लड़कियों का शीलभंग लगभग असंभव है और फिर कभी किसी वियतनामी महिला से बलात्कार का प्रयास नहीं हुआ।

ये उस देश की प्रतिरोधक क्षमता थी वरना साढ़े चार फुट की महिलाओं की 8 फुट लम्बे अमेरिकी सैनिकों के सामने क्या औकात ?

वास्तव में किसी भी देश को महान उस देश की प्रतिरोधक क्षमता ही बनाती है। हम चाहे जितने साधन सम्पन्न हो, मजबूत हो पर यदि घर में एक चोर घुस आगे तो डर कर बगैर प्रतिरोध के खजाने की चाभी दे देते हैं। यकीन मानिये वो चोर दोबारा फिर आएगा और फिर से आपकी गाढ़ी कमाई ले जायेगा।

क्या महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, अहमदशाह अब्दाली और नादिरशाह जैसे लुटेरे दोबारा भारत में नहीं आये थे ? अगर पहली ही बार उनका प्रबल प्रतिरोध होता तो दोबारा आने की जुर्रत ही न करते। सोमनाथ मंदिर को कौन भूल सकता है जिसे महमूद गजनवी ने बगैर किसी प्रतिरोध के हास्यास्पद तरीके से लुटा और लाखों टन सोना के साथ साथ इस देश की लाखों हिन्दू औरतों को अपने साथ दासी बनाकर ले गया। वियतनाम जैसा पिद्दी सा देश अमेरिका से परास्त नहीं हुआ और हम हिन्दू लोग अथाह जनसंख्या के साथ मात्र भेड़ बकरी बनकर रह गये।

वास्तब में हम हिंदुओं में प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम थी इसलिये अपनी कायरता को छिपाने के लिए हमने नया शब्द गढ़ा अहिंसा प्रिय, शान्ति पसंद।

हमसे हमारा राममन्दिर छिन गया। कश्मीर छिन गया, तिब्बत छिन गया। सारे अधिकार छिन गये। फिर भी हमारा प्रतिरोध कभी पूर्ण रूप से मुखर नहीं हुआ लुटेरे तो आते ही रहेंगे।

मीरा गोयल

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सिकंदर सारी दुनिया जीतना चाहता था। डायोजनीज ने उससे कहा, क्या करोगे सारी दुनिया को जीतने के बाद? सिकंदर ने कहा, क्या करेंगे? फिर विश्राम करेंगे!

डायोजनीज खूब हंसने लगा। उसने कहा, अगर विश्राम ही करना है तो हम अभी विश्राम कर रहे हैं, तो तुम भी करो। सारी दुनिया जीत कर विश्राम करोगे, यह बात कुछ समझ में नहीं आई। इसमें तर्क क्या है? क्योंकि सारी दुनिया के जीतने का विश्राम से कोई भी तो संबंध नहीं है। विश्राम मैं बिना कुछ जीते कर रहा हूं। जरा मेरी तरफ देखो!

और वह कर ही रहा था विश्राम। वह नदी—तट पर नग्न लेटा था। सुबह की सूरज की किरणें उसे नहला रही थीं। मस्त बैठा था। मस्त लेटा था। कहीं कुछ करने को न था, विश्राम में था। तो वह खूब हंसने लगा। उसने कहा, सिकंदर तुम पागल हो! तुम जरा मुझे कहो तो, कि अगर विश्राम दुनिया को जीतने के बाद हो सकता है, तो डायोजनीज कैसे विश्राम कर रहा है? मैं कैसे विश्राम कर रहा हूं? मैंने तो कुछ जीता नहीं। मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। मेरे हाथ में एक भिक्षा—पात्र हुआ करता था, वह भी मैंने छोड़ दिया। वह इस कुत्ते की दोस्ती के कारण छोड़ दिया।

कुत्ता उसके पास बैठा था। डायोजनीज का नाम ही हो गया था यूनान में : ‘डायोजनीज कुत्ते वाला’। वह कुत्ता सदा उसके साथ रहता था। उसने आदमियों से दोस्ती छोड़ दी। उसने कहा, आदमी कुत्तों से गए—बीते हैं। उसने एक कुत्ते से दोस्ती कर ली। और उसने कहा, इस कुत्ते से मुझे एक शिक्षा मिली, इसलिए मैंने पात्र भी छोड़ दिया, पहले एक भिक्षा—पात्र रखता था। एक दिन मैंने इस कुत्ते को नदी में पानी पीते देखा। मैंने कहा, ‘ अरे, यह बिना पात्र के पानी पी रहा है! मुझे पात्र की जरूरत पड़ती है!’ वहीं मैंने छोड़ दिया। इस कुत्ते ने मुझे हरा दिया। मैंने कहा, यह हमसे आगे पहुंचा हुआ है? मुझे पात्र की जरूरत पड़ती है? क्या जरूरत? जब कुत्ता पी लेता है पानी और कुत्ता भोजन कर लेता.। तो मेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी मैं विश्राम कर रहा हूं।. और क्या तुम संदेह कर सकते हो मेरे विश्राम पर?

नहीं, सिकंदर भी संदेह न कर सका। वह आदमी सच कह रहा था। वह निश्चित ही विश्राम में था। उसकी ‘आंखें, उसका सारा भाव, उसके चेहरे की विभा वह ऐसा था जैसे दुनिया में कुछ पाने को बचा नहीं, सब पा लिया है। कुछ खोने को नहीं, कोई भय नहीं, कोई प्रलोभन नहीं।

सिकंदर ने कहा, तुमसे मुझे ईर्ष्या होती है। चाहता मैं भी हूं ऐसा ही विश्राम, लेकिन अभी न कर सकूंगा। दुनिया तो जीतनी ही पड़ेगी। मैं यह तो बात मान ही नहीं सकता कि सिकंदर बिना दुनिया को जीते मर गया।
डायोजनीज ने कहा, जाते हो, एक बात कहे देता हूं, कहनी तो नहीं चाहिए, शिष्टाचार में आती भी नहीं, लेकिन मैं कहे देता हूं : तुम मरोगे बिना विश्राम किए।

और सिकंदर बिना विश्राम किए ही मरा! भारत से लौटता था, रास्ते में ही मर गया, घर तक भी नहीं पहुंच पाया। और जब बीच में मरने लगा और चिकित्सकों ने कहा कि अब बचने की कोई उम्मीद नहीं, तो उसने कहा, सिर्फ मुझे चौबीस घंटे बचा दो, क्योंकि मैं अपनी मां को मिलना चाहता हूं। मैं अपना सारा राज्य देने को तैयार हूं। मैंने यह राज्य अपने पूरे जीवन को गंवा कर कमाया है, मैं वह सब लुटा देने को तैयार हूं. चौबीस घंटे! मैंने अपनी मां को वचन दिया है कि मरने के पहले जरूर उसके चरणों में आ जाऊंगा।

चिकित्सकों ने कहा कि तुम सारा राज्य दो या कुछ भी करो, एक श्वास भी बढ़ नहीं सकती। सिकंदर ने कहा, किसी ने अगर मुझे पहले यह कहा होता, तो मैं अपना जीवन न गंवाता। जिस राज्य को पाने में मैंने सारा जीवन गंवा दिया, उस राज्य को देने से एक श्वास भी नहीं मिलती! डायोजनीज ठीक कहता था कि मैं कभी विश्राम न कर सकूंगा।

खयाल रखना, कठिन में एक आकर्षण है अहंकार को। सरल में अहंकार को कोई आकर्षण नहीं है। इसलिए सरल से हम चूक जाते हैं। सरल.. परमात्मा बिलकुल सरल है। सत्य बिलकुल सरल है, सीधा—साफ, जरा भी जटिलता नहीं।

साभार : ओशो, अष्‍टावक्र महागीता

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આજના મહારાણા પ્રતાપની પુણ્યતિથિ નિમિત્તે:

👉 રાણા પ્રતાપ અને તેમના પુત્ર એ હલ્દીઘાટી પછી બેટલ ઓફ દિવેરમાં મુગલ અકબરની સેનાને હરાવી દીધી અને સમગ્ર મેવાડ કબ્જે કર્યું, 20000 મુગલ સેનાનીઓએ મહારાણા પ્રતાપ અને તેઓના પુત્ર સામે આત્મસમર્પણ કર્યું.

👉 જે યુદ્ધમાં અકબરનો સેનાપતિ અને તેના નવરત્નોમાંના એક રહીમ ( બેરમ ખાનનો પુત્ર ) પણ હતો જેના પરિવાર અને સ્ત્રીઓને અમરસિંહ મેવાડમાં લઇ આવ્યા.

👉 મહારાણા પ્રતાપે આ બધી સ્ત્રીઓને સન્માન સાથે સેનાપતિ રહીમને પરત કરી.

👉 રાણા પ્રતાપની આ દિલદારી અને સંસ્કારે અબ્દુલ રહીમનું હ્ર્દય પરિવર્તન કરી નાખ્યું.

👉 અબ્દુલ રહીમે પછી કદી યુદ્ધમાં ભાગ લીધો નહીં અને ભારત અને હિન્દૂ પદપદશાહી ના ચાહક બન્યા.

👉 આ વાત ખબર પડતા જ તુલસીદાસે રહીમ સાથે મિત્રતા કેળવી અને તેઓને હરિભક્તિ અને હિન્દૂ ધર્મ પ્રત્યે વાળી દીધા.

👉 આ રહીમે સઁસ્કૃતમા કેટલાયે પુસ્તકો અને દોહા લખ્યા. જે આજે શાળાના પાઠપુસ્તકોમાં ભણાવવામાં આવે છે.

કેટલાક કૃષ્ણભકિત ઉપર પ્રસિદ્ધ રહીમના દોહા :

‘रहिमन’ कोऊ का करै, ज्वारी,चोर,लबार। जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार।।
‘रहिमन’ गली है सांकरी, दूजो नहिं ठहराहिं। आपु अहै, तो हरि नहीं, हरि, तो आपुन नाहिं।।

जय पाठक

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मन्दिर में प्रार्थना
रात के दो बजे थे, एक श्रीमंत को नींद नहीं आ रही थी, चाय पी, सिगरेट पी, घर में कई चक्कर लगाये, पर चैन नहीं पड़ा।

  • आखिर में थक हार कर नीचे आया, कार निकाली और शहर की सड़कों पर निकल गया। रास्ते में एक मंदिर दिखा, सोचा थोड़ी देर इस मंदिर में भगवान के पास बैठता हूं, प्रार्थना करता हूं तो शायद शांति मिल जाये।
  • वह आदमी मंदिर के अंदर गया तो देखा, एक और आदमी भी भगवान की मूर्ति के सामने बैठा था, उदास चेहरा, आंखों में करूणता। श्रीमंत ने पूछा “क्यों भाई ! इतनी रात को ?”
  • आदमी ने कहा “मेरी पत्नी अस्पताल में है, सुबह यदि उनका आपरेशन नहीं हुआ तो मर जायेगी और मेरे पास आपरेशन का पैसा नहीं है !”
  • यह सुन कर श्रीमंत ने, पाकेट में जितने रूपए थे, निकाल कर दे दिये। गरीब आदमी के चेहरे पे चमक आ गई ।
    *श्रीमंत ने कार्ड दिया और कहा “इस में मेरा फोन नं. और पता भी है, और जरूरत हो तो निसंकोच बताना ।
  • उस गरीब आदमी ने कार्ड वापिस कर दिया और कहा “उसका एड्रेस मेरे पास है, आपके इस एड्रेस की जरूरत नहीं है सेठ जी !”
  • आश्चर्य से श्रीमंत ने पूछा “किसका एड्रेस है ?” गरीब आदमी ने उत्तर दिया “जिसने रात को साढ़े तीन बजे आपको यहां भेजा उनका”
  • R K Verma
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“खरी कमाई”

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एक बड़े सदाचारी और विद्वान ब्राह्मण थे| उनके घर में प्रायः रोटी-कपड़े की तंगी रहती थी| साधारण निर्वाहमात्र होता था| वहाँ के राजा बड़े धर्मात्मा थे| ब्राह्मणी ने अपने पति से कई बार कहा कि आप एक बार तो राजा से मिल आओ, पर ब्राह्मण कहते हैं कि वहाँ जाने के लिए मेरा मन नहीं कहता|

वहाँ जाकर आप माँगो कुछ नहीं, केवल एक बार जाकर आ जाओ|

पत्नी ने ज्यादा कहा तो स्त्री की प्रसन्नता के लिए वे राजा के पास चले गये| राजा ने उनको बड़े त्याग से रहने वाले गृहस्थ ब्राह्मण जानकर उनका बड़ा आदर-सत्कार किया और उनसे कहा कि आप एक दिन और पधारें| अभी तो आप मर्जी से आये हैं, एक दिन आप मेरे पर कृपा करके मेरी मर्जी से पधारें| ऐसा कहकर राजा ने उनकी पूजा करके आनंदपूर्वक उनको विदा कर दिया| घर आने पर ब्राह्मणी ने पूछा कि राजा ने क्या दिया? ब्राह्मण बोले- दिया क्या, उन्होंने कहा कि एक दिन आप फिर आओ| ब्राह्मणी ने सोचा कि अब माल मिलेगा| राजा ने निमन्त्रण दिया है, इसलिए अब जरुर कुछ देंगे|

एक दिन राजा रात्रि में अपना वेश बदलकर, बहुत गरीब आदमी के कपड़े पहनकर घूमने लगे| ठंडी के दिन थे| एक लुहार के यहाँ एक कड़ाह बन रहा था| उसमें घन मारने वाले आदमी की जरूरत थीं| राजा इस काम के लिए तैयार हो गये| लुहार ने कहा की एक घंटा काम करने के दो पैसे दिये जायँगे| राजा ने बड़े उत्साह से, बड़ी तत्परता से दो घंटे काम किया| राजा के हाथों में छाले पड़ गये, पसीना आ गया, बड़ी मेहनत पड़ी| लुहार ने चार पैसे दे दिये| राजा उन चार पैसों को लेकर आ गया और आकर हाथों पर पट्टी बाँधी| धीरे-धीरे हाथों में पड़े छाले ठीक हो गये|

एक दिन ब्राह्मणी के कहने पर वे ब्राह्मण देवता राजा के यहाँ फिर पधारे| राजा ने उनका बड़ा आदर किया, आसन दिया, पूजन किया और उनको वे चार पैसे भेंट दे दिये| ब्राह्मण बड़े संतोषी थे| वे उन चार पैसों को लेकर घर पहुँचे| ब्राह्मणी सोच रही थी कि आज खूब माल मिलेगा| जब उसने चार पैसों को देखा तो कहा कि राजा ने क्या दिया और क्या आपने लिया! आप-जैसे पण्डित ब्राह्मण और देने वाला राजा! ब्राह्मणी ने चार पैसे बाहर फेंक दिये| जब सुबह उठकर देखा तो वहाँ चार जगह सोने की सीकें दिखाई दींए| सच्चा धन उग जाता है| सोने की उन सीकों की वे रोजाना काटते पर दूसरे दिन वे पुनः उग आतीं| उनको खोदकर देखा तो मूल में वे ही चार पैसे मिले!

राजा ने ब्राह्मण को अन्न नहीं दिया; क्योंकि राजा का अन्न शुद्ध नहीं होता, खराब पैसों का होता है| मदिरा आदि पर लगे टैक्स के पैसे होते हैं, चोरों को दंड देने से प्राप्त हुए पैसे होते हैं-ऐसे पैसों को देकर ब्राह्मण को भ्रष्ट नहीं करना है| इसलिये राजा ने अपनी खरी कमाई के पैसे दिये| आप भी धार्मिक अनुष्ठान आदि में अपनी खरी कमाई का धन खर्च करिये|

जय सियाराम 🚩🙏🏻🌹