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A Crow and Garuda 🙏
– “Just Drop”..

Once a Crow, holding on to a piece of meat was flying to a place to sit & eat.

However, a flock of Eagles were chasing it. The crow was anxious and was flying higher and higher, yet eagles were after the poor crow.

Just then “Garuda” saw the plight and pain in the eyes of the crow. Coming closer to the crow, he asked:

“What’s wrong? You seem to be very “disturbed” and in “stress”?”..

The crow cried “Look at these eagles!! They are after me to kill me”.

Garuda being the bird of wisdom spoke “Oh my friend!! They are not after you to kill you!! They are after that piece of meat that you are holding in your beak”. Just drop it and see what will happen.

The crow followed the instructions of Garuda and dropped the piece of meat, and there you go, all the eagles flew towards the falling meat.

Garuda smiled and said “The Pain is only till you hold on to it” Just Drop” it.

The crow just bowed and said “I dropped this piece of meat, now, I can fly even higher..”

There is a message for us from this story too:

  1. People carry the huge burden called “Ego,” which creates a false identity about us, that we create for ourselves saying “I need love, I need to be invited, I am so and so.. “etc…” Just Drop ….
  2. People get irritated fast by “others actions” it can be my friend, My parent, My children, My colleague, My life partner… and I get the fumes of “anger “…”Just Drop….
  3. People compare themselves with others.. in beauty, wealth, life style, marks, talent and appraisals and feel disturbed… We must be grateful with what we have … comparisons, negative emotions ..” Just Drop…

Just drop the burden

It is this logic
From dust to dust

That is why in Hindu temples ash vibuthi is given to constantly remind we are nothing but dust.
Have a Great Sunday ♥️❤️❤️

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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️

👉 भगवान के बंदे 🏵️

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एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा मंदिर के बाहर बैठा था।तभी वहां पर नगर में के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे।

उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे, दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे, तीसरे नौकर ने हीरे और जवाहरात के थाल पकडे़ हुए थे, चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे।

पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए।बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए।

सेठ जी ने नौकरों से कहा जाओ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो।
हम पूजा पाठ सम्पन्न करने के बाद भगवान को सारी भेंट समर्पित करेंगें।

बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था।उसने सेठ जी से कहा – मालिक दो दिनों से भूखा हूंँ,थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को।

सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया।

बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा – ओ मेम साहिबा थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं।

सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें तो भगवान को चढानें के लिये हैं। तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी।

सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं।कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे और इसने अड़चन डाल दी।

पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी, इतना गुस्सा मत होईये।
अरे क्या शांत हो जाइये पंडित जी

आपको पता है-पूरे शहर के सबसे महँंगे फल और मिठाईयां हमने खरीदे थे प्रभु को चढानें के लिए और अभी चढायें भी नहीं कि पहले ही अड़चन आ गई।सारा का सारा मूड ही खराब हो गया,अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या ?

पंडितजी बोले अरे पागल है ये आदमी,आप इसके पीछे अपना मूड मत खराब करिये सेठजी चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको समझा देता हूँ। आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये।सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये।

पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा।बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया।

अंदर जाकर सेठ ने भगवान को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे, तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया।

वो हैरान रह गए

पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये।

जब पूजा सम्पन्न हुई तो सेठ जी ने थाल मँगवाई भगवान को भेंट चढानें को, पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए।सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होनें थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेढे हो गए मानों हाथों को लकवा मार गया हो।
ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी, बोली पंडितजी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढे से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दण्ड दिया है।उसी बूढे़ की अडचन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए।सेठ जी बोले हाँ उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार नहीं की।

सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों को, अचानक से हाथों को लकवा कैसे मार गया, इनके हाथ टेढे कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं ? ज़ोर जो़र से रोने लगी-

पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले-माफ करना एक बात बोलूँ आप दोनों से-भगवान उस बुजुर्ग आदमी के कiरन से नाराज़ नहीं हुए हैं, बल्कि आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान ने आपको यें दंड दिया है।

सेठानी बोली पर हमने क्या किया है ?पंडितजी बोले क्या किया है आपने ? मैं आपको बताता हूं आप इतने महँंगे उपहार ले कर आये भगवान को चढानें के लिये पर ये आपने नहीं सोचा के हर इन्सान के अंदर भगवान बसते हैं।आप अन्दर भगवान की मूर्ती पर भेंट चढ़ाना चाहते थे, पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे।

उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते।किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है।

आपने उसका तिरस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार करते…..सब जानते हैं किे श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे लगे थे.

अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सब कुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे कीमती उपहार क्या करने हैं, वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं।
उन्हें मंहगें फल और मिठाईया चढा़ के उन के ऊपर एहसान करने की हमें कोई आवश्यकता नहीं है।

इससे अच्छा तो किसी गरीब को कुछ खिला दीजिये, ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें।और हाँं, अगर किसी माँंगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत कीजिए क्यों कि वो अपनी मर्जी़ से तो गरीब नहीं बना

और कहते हैं ना-ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दे और कब किसी राजा को भिखारी, कोई नहीं कह सकता।
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

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💿💿 रात्रि कहानी 💿💿💿

ये कथा घर में सबको सुनायें
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एक महिला को सब्जी मण्डी जाना था..

उसने जूट का बैग लिया और सड़क के किनारे सब्जी मण्डी की ओर चल पड़ी…

तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी : —’कहाँ जायेंगी माता जी…?”

महिला ने ”नहीं भैय्या” कहा तो ऑटो वाला आगे निकल गया.

अगले दिन महिला अपनी बिटिया मानवी को स्कूल बस में बैठाकर घर लौट रही थी…

तभी पीछे से एक ऑटो वाले ने आवाज़ दी :—बहनजी चन्द्रनगर जाना है क्या…?”

महिला ने मना कर दिया…

पास से गुजरते उस ऑटोवाले को देखकर महिला पहचान गयी कि ये कल वाला ही ऑटो वाला था. *आज महिला को अपनी सहेली के घर जाना था.*

वह सड़क किनारे खड़ी होकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगी.

तभी एक ऑटो आकर रुका :—”कहाँ जाएंगी मैडम…?”

महिला ने देखा ये वो ही ऑटोवाला है जो कई बार इधर से गुज़रते हुए उससे पूंछता रहता है चलने के लिए..

महिला बोली :— ”मधुबन कॉलोनी है ना सिविल लाइन्स में, वहीँ जाना है.. चलोगे…?”

ऑटोवाला मुस्कुराते हुए बोला :— ”चलेंगें क्यों नहीं मैडम..आ जाइये…!”

ऑटो वाले के ये कहते ही महिला ऑटो में बैठ गयी.*ऑटो स्टार्ट होते ही महिला ने जिज्ञासावश उस ऑटोवाले से पूंछ ही लिया :—''भैय्या एक बात बताइये..?-* *दो-तीन दिन पहले आप मुझे माताजी कहकर चलने के लिए पूंछ रहे थे,*

कल बहनजी और आज मैडम, ऐसा क्यूँ…?”

ऑटोवाला थोड़ा झिझककर शरमाते हुए बोला :—”जी सच बताऊँ… आप चाहे जो भी समझेँ पर किसी का भी पहनावा हमारी सोच पर असर डालता है.

आप दो-तीन दिन पहले साड़ी में थीं तो एकाएक मन में आदर के भाव जागे,

क्योंकि,

मेरी माँ हमेशा साड़ी ही पहनती है. *इसीलिए मुँह से स्वयं ही "माताजी'" निकल गया.* *कल आप सलवार-कुर्ती में थीँ, जो मेरी बहन भी पहनती है* *इसीलिए आपके प्रति स्नेह का भाव मन में जागा और मैंने ''बहनजी'' कहकर आपको आवाज़ दे दी.*

आज आप जीन्स-टॉप में हैं, और इस लिबास में माँ या बहन के भाव तो नहीँ जागते.

इसीलिए मैंने आपको “मैडम” कहकर पुकारा.

कथासार
हमारे परिधान का न केवल हमारे विचारों पर वरन दूसरे के भावों को भी बहुत प्रभावित करता है.

टीवी, फिल्मों या औरों को देखकर पहनावा ना बदलें, बल्कि विवेक और संस्कृति की ओर भी ध्यान दें.

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નાનો પરીવાર ધરાવતી એક અતિ ગરીબ સ્ત્રીએ

એક વાર “મહાદેવ”ની મદદ માગવા રેડીઓ સ્ટેશને ફોન કર્યો.
એક નાસ્તિક માણસ પણ આ રેડીઓ કાર્યક્રમ સાંભળી રહ્યો હતો.
તેણે પેલી ગરીબ સ્ત્રીની મજાક
ઉડાવવાનું નક્કી કર્યું.
તેણે એ સ્ત્રીનું સરનામુ નોંધી લીધુ અને પોતાની સેક્રેટરી ને સારી એવી
ખાદ્યસામગ્રી ખરીદી પેલી સ્ત્રીને ત્યાં
પહોંચાડી આવવાની આજ્ઞા કરી.
પણ તેણે પોતાની સેક્રેટરી ને એક
વિચિત્ર સૂચના આપી.
તેણે કહ્યું જ્યારે એ ગરીબ સ્ત્રી પૂછે કે આ ખાવાનું કોણે મોકલાવ્યું છે ?
ત્યારે જવાબ આપવો કે એ “શેતાને”મોકલાવ્યું છે.

સેક્રેટરી એ તો પોતાના બોસની આજ્ઞા
પ્રમાણે સારી એવી માત્રામાં ખાદ્યસામગ્રી ખરીદી અને પેલી
ગરીબ સ્ત્રીના ઘરે પહોંચાડી.
ગરીબ સ્ત્રી તો આટલી બધી ખાદ્યસામગ્રી જોઈને રાજીના રેડ થઈ ગઈ.
આભારવશતાની લાગણી અનુભવતા
અનુભવતા તેણે એ બધો સામાન
પોતાના નાનકડા ઘરમાં ગોઠવવા માંડ્યો.
સેક્રેટરી એ થોડી રાહ જોયા બાદ
જ્યારે ગરીબ સ્ત્રીના તરફથી કોઈ
સવાલ ન થયો ત્યારે અકળાઈને
સામેથી જ પૂછી નાખ્યું ,

“શું તમને એ જાણવાની ઇચ્છા નથી કે આ બધું કોણે મોકલાવ્યું?”

ગરીબ સ્ત્રીએ જવાબ આપ્યો,
“ના.”જેણે મોકલાવ્યું
હોય તેનો ખૂબ ખૂબ આભાર માનજો. મને એની પરવા નથી
એ જે કોઈ પણ હોય કારણ જ્યારે મારો “મહાદેવ”હૂકમ કરે
ત્યારે શેતાને પણ તેની આજ્ઞાનું પાલન કરવું પડતું હોય છે!

હર હર મહાદેવ

भूपेश

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💖भगवान का नाम💖

💖एक पंडित जी थे। उन्होंने एक नदी के किनारे अपना आश्रम बनाया हुआ था💖
पंडित जी बहुत विद्वान थे। उनके आश्रम में दूर-दूर से लोग ज्ञान प्राप्त करने आते थे।
नदी के दूसरे किनारे पर लक्ष्मी नाम की एक ग्वालिन अपने बूढ़े पिताश्री के साथ रहती थी।
लक्ष्मी सारा दिन अपनी गायों को देखभाल करती थी। सुबह जल्दी उठकर अपनी गायों को नहला कर दूध दोहती,
फिर अपने पिताजी के लिए खाना बनाती, तत्पश्चात् तैयार होकर दूध बेचने के लिए निकल जाया करती थी।
पंडित जी के आश्रम में भी दूध लक्ष्मी के यहाँ से ही आता था
एक बार पंडित जी को किसी काम से शहर जाना था। उन्होंने लक्ष्मी से कहा कि उन्हें शहर जाना है, इसलिए अगले दिन दूध उन्हें जल्दी चाहिए।
लक्ष्मी अगले दिन जल्दी आने का वादा करके चली गयी।
अगले दिन लक्ष्मी ने सुबह जल्दी उठकर अपना सारा काम समाप्त किया और जल्दी से दूध उठाकर आश्रम की तरफ निकल पड़ी
नदी किनारे उसने आकर देखा कि कोई मल्लाह अभी तक आयानहीं था। लक्ष्मी बगैर नाव के नदी कैसे पार करती* ?
फिर क्या था, लक्ष्मी को आश्रम तक पहुँचने में देर हो गयी
आश्रम में पंडित जी जाने को तैयार खड़े थे। उन्हें सिर्फ लक्ष्मी का इन्तजार था।
लक्ष्मी को देखते ही उन्होंने लक्ष्मी को डाँटा और देरी से आने का कारण पूछा।
लक्ष्मी ने भी बड़ी मासूमियत से पंडित जी से कह दिया कि नदी पर कोई मल्लाह नहीं था, वह नदी कैसे पार करती ? इसलिए देर हो गयी
पंडित जी गुस्से में तो थे ही, उन्हें लगा कि लक्ष्मी बहाने बना रही है। उन्होंने भी गुस्से में लक्ष्मी से कहा,
क्यों बहाने बनाती है। लोग तो जीवन सागर को भगवान का नाम लेकर पार कर जाते हैं, तुम एक छोटी सी नदी पार नहीं कर सकती ?
पंडित जी की बातों का लक्ष्मी पर बहुत गहरा असर हुआ। दूसरे दिन भी जब लक्ष्मी दूध लेकर आश्रम जाने निकली तो नदी के किनारे मल्लाह नहीं था।
लक्ष्मी ने मल्लाह का इंतजार नहीं किया। उसने भगवान को याद किया और पानी की सतह पर चलकर आसानी से नदी पार कर ली।
इतनी जल्दी लक्ष्मी को आश्रम में देख कर पंडित जी हैरान रह गये, उन्हें पता था कि कोई मल्लाह इतनी जल्दी नहीं आता है।
उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि तुमने आज नदी कैसे पार की ?
लक्ष्मी ने बड़ी सरलता से कहा—‘‘पंडित जी आपके बताये हुए तरीके से। मैंने भगवान् का नाम लिया और पानी पर चलकर नदी पार कर ली।’’
पंडित जी को लक्ष्मी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने लक्ष्मी से फिर पानी पर चलने के लिए कहा।
लक्ष्मी नदी के किनारे गयी और उसने भगवान का नाम जपते-जपते बड़ी आसानी से नदी पार कर ली।
पंडित जी हैरान रह गये। उन्होंने भी लक्ष्मी की तरह नदी पार करनी चाही।
पर नदी में उतरते वक्त उनका ध्यान अपनी धोती को गीली होने से बचाने में लगा था।
वह पानी पर नहीं चल पाये और धड़ाम से पानी में गिर गये।
पंडित जी को गिरते देख लक्ष्मी ने हँसते हुए कहा, ‘‘आपने तो भगवान का नाम लिया ही नहीं, आपका सारा ध्यान अपनी नयी धोती को बचाने में लगा हुआ था।’
पंडित जी को अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्हें अपने ज्ञान पर बड़ा अभिमान था।
पर अब उन्होंने जान लिया था कि भगवान को पाने के लिए किसी भी ज्ञान की जरूरत नहीं होती। उसे तो पाने के लिए सिर्फ सच्चे मन से याद करने की जरूरत है।
कहानी में हमें यह बताया गया है कि अगर सच्चे मन से भगवान को याद किया जाये, तो भगवान तुरन्त अपने भक्तों की मदद करते है।।

संजय ओमर

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जापान को याद है, लेकिन भारत भूल गया।

वह दिन था 12 नवंबर, 1948…
टोक्यो के बाहरी इलाके में एक विशाल बगीचे वाले घर में टोक्यो ट्रायल चल रहा है। द्वितीय विश्वयुद्ध में हारने के बाद, जापान के तत्कालीन प्रधान मंत्री तोजो सहित पचपन जापानी युद्ध बन्दियों का मुकदमा चालू है …

इनमें से अट्ठाइस लोगों की पहचान क्लास-ए (शांतिभंग का अपराध) युद्ध अपराधियों के रूप में की गई है। यदि सिद्ध ह़ो जाता है, तो एकमात्र सजा “मृत्युदण्ड” है।

दुनिया भर के ग्यारह अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश …. “दोषी” की घोषणा कर रहे हैं …. “दोषी” …… “दोषी” ……… अचानक एक गर्जना, “दोषी नहीं! “

दालान में सन्नाटा छा गया। यह अकेला असंतुष्ट कौन है ?

उनका नाम था #राधाबिनोदपाल भारत से एक न्यायाधीश थे !

1886 में पूर्वी बंगाल के कुंभ में उनका जन्म हुआ। उनकी माँ ने अपने घर और गाय की देखभाल करके जीवन यापन किया। बालक राधा बिनोद गांव के प्राथमिक विद्यालय के पास ही गाय को चराने ले जाता था।

जब शिक्षक स्कूल में पढ़ाते थे, तो राधा बाहर से सुनता था। एक दिन स्कूल इंस्पेक्टर शहर से स्कूल का दौरा करने आये। उन्होंने कक्षा में प्रवेश करने के बाद छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे। सब बच्चे चुप थे। राधा ने कक्षा की खिड़की के बाहर से कहा …. “मुझे आपके सभी सवालों का जवाब पता है।” और उसने एक-एक कर सभी सवालों के जवाब दिए। इंस्पेक्टर ने कहा … “अद्भुत! .. आप किस कक्षा में पढ़ते हो ?”

जवाब आया, “… मैं नहीं पढ़ता … मैं यहां एक गाय को चराता हूं।”

जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया। मुख्य अध्यापक को बुलाकर स्कूल निरीक्षक ने लड़के को स्कूल में प्रवेश लेने के साथ-साथ कुछ छात्रवृत्ति प्रदान करने का निर्देश दिया।

इस तरह राधा बिनोद पाल की शिक्षा शुरू हुई। फिर जिले में सबसे अधिक अंकों के साथ स्कूल फाइनल पास करने के बाद, उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में भर्ती कराया गया। M.Sc. गणित होने के बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने फिर से कानून का अध्ययन किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। दो विषयों के विपरीत चुनाव के संदर्भ में उन्होंने एक बार कहा था, “कानून और गणित सब कुछ के बाद भी इतने अलग नहीं हैं।”

फिर से वापस आ रहा है… अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय टोक्यो….

बाकी न्यायाधीशों के प्रति अपने ठोस तर्क में उन्होंने संकेत दिया कि मित्र राष्ट्रों (WWII के विजेता) ने भी संयम और अंतरर्राष्ट्रीय कानून की तटस्थता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। जापान के आत्मसमर्पण के संकेतों को अनदेखा करने के अलावा, उन्होंने परमाणु बमबारी का उपयोग कर लाखों निर्दोष लोगों को मार डाला।

राधा बिनोद पाल द्वारा बारह सौ बत्तीस पृष्ठों पर लिखे गए तर्क को देखकर न्यायाधीशों को क्लास-ए से बी तक के कई अभियुक्तों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इन क्लास-बी युद्ध अपराधियों को एक निश्चित मौत की सजा से बचाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय अदालत में उनके फैसले ने उन्हें और भारत को विश्व प्रसिद्ध प्रतिष्ठा दिलाई।

जापान इस महान व्यक्ति का सम्मान करता है। 1966 में सम्राट हिरोहितो ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कोक्को कुनासाओ’ से सम्मानित किया। टोक्यो और क्योटो में दो व्यस्त सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। उनके निर्णय को कानूनी पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। टोक्यो की सुप्रीम कोर्ट के सामने उनकी प्रतिमा लगाई गई है। 2007 में प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने दिल्ली में उनके परिवार के सदस्यों से मिलने की इच्छा व्यक्त की और वे उनके बेटे से मिले।

डॉ. राधा बिनोद पाल (27 जनवरी 1886 – 10 जनवरी 1967) का नाम जापान के इतिहास में याद किया जाता है। जापान के टोक्यो में उनके नाम एक संग्रहालय और यासुकुनी मंदिर में एक मूर्ति है।

उनके नाम पर जापान विश्वविद्यालय का एक शोध केंद्र है। जापानी युद्ध अपराधियों पर उनके फैसले के कारण, चीनी लोग उनसे नफरत करते हैं।

वे कानून से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक हैं। भारत में लगभग कोई भी उन्हें नहीं जानता है और शायद उनके पड़ोसी भी उन्हें नहीं जानते हैं! इरफान खान अभिनीत #टोक्यो_ट्रायल्स पर एक हिंदी फिल्म बनाई गई थी, लेकिन उस फिल्म ने कभी सुर्खियां नहीं बटोरीं।

…. बहुत सारे अंडररेटेड और अज्ञात भारतीयों में से एक…….
साभार

नव नंदन प्रसाद

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

કોડભરી કન્યાઓને કન્યા દાન

ધન્ય છે તળાજા ના ધણી એભલ વાળાને
……………
કૈંક કોડભરી કન્યાઓ વિનાં વાંકે ઘરમાં પુરાઈ બેઠી હતી તેમ હજારો યુવાનો મીંઢોળ વગરના જાણે ધડપણનો ટોડલો ઝાલી બેઠાં હતાં મુવા પછી પીંડ મૂકનારૂ કોઈ નહીં એ જીવતર હારી બેઠાં. પણ આજ એ બધાયના કરમાતા મનોરથોનો મુક્તિ દિન હતો
તળાજા ડુંગર ઉપર સુકા ભઠ્ઠ પહાડ પર ભાતીગળ માનવવૃક્ષો ના નંદનવન ઝુમી ઉઠ્યા છે હજારો ચુદડીઆળી કન્યાઓના છેડલા હવામાં લહેરાય રહ્યા છે મોડબંધા જુવાનિયાઓની જુવાની જાણે ફૂટી નીકળી લગ્નના લ્હાવા સ્વપ્નેય જોવાં નહીં પામીએ એવાં હતાશ હૈયાંનો હરખ હેલે ચડ્યા છે ચારેકોરથી ચુદડીઆળીઓની કતારો રંગબેરંગી પાઘડીઓ લંગારો હાલી આવે છે ડુંગર ટોચે લગ્નવેદી રચી છે બેય પડખે જબરા કુંડોમા ઘી દુધના ઘડા ઠલવાય છે આહુતિઓ હોમાઈ છે જવતલના ગોટેગોટા આભે ચડ્યા છે વેદી પાસે તળાજાનો રાજા બાપ એભલ ઉભો છે વેદી ફરતાં વરઘોડીઓના જોડલા એક પછી એક પરણી ઊતરે છે મંડપમા પગ મુકવાની જગ્યા નથી એટલો મનખો રાજા એભલ કન્યાઓના કિલ્લોલ થી શેર લોહી ચડે છે જુવાની એળે ગયાને સ્થાને લહાવ લેતાં જુવાનિયાઓને ભાળી છાતી ગજ ગજ ફુલે છે બ્રાહ્મણશાહીના સતાના મહા અનર્થ સામે હામ ભીડનારી રાણી એભલને હજારો હૈયાં લાખ લાખ કુંવારા કોડો અંતરના આશિષ વરસે છે
..સાત સૈકા પેહલા બ્રાહ્મણી સતા એટલી બધી વકરેલી કે એક એક કન્યા પરણાવવાના સો સો રૂપિયા બ્રાહ્મણ પુરોહિતો વસુલ કરતાં વળા શહેરમાં એ કાળે એક હજાર વાલમ બ્રાહ્મણોના ઘર આ વાલ્યમો ત્યાં વસ્તી કાયસ્થ જ્ઞાતિનાં ગોર હતાં એથી મો માંગી દિક્ષા યજમાન પાસે પડાવતા ગમેતે વેચીને પણ ગોરનો લાગો ચૂકવતા.એથી અનેક દિકરીઓના માવતરો આ બ્રાહ્મણનો બરડાતોડ લાગો ન ચુકવી શકવાને કારણે પોતાની પુત્રીઓને ત્રીસ ત્રીસ વરસની કરી બેઠાં હતાં આ દંડ સામે કાયસ્થો કાકલુદી કરતાં કે ગોર મહારાજ લાગો ઓછો કરો બાપ એવડો મોટો કર અમથી શેં ભરાઇ દયા કરો. પણ વાલ્યમો જરાય ચસ ન દિધો પરીણામે કાયસ્થ જ્ઞાતિ લગ્નો બંધ કરી બેઠી દિકરા દિકરીઓનો લગ્ન સંસાર ભસ્મ થવાં બેઠો પણ વાલ્યમો પથ્થર કાળજા ન પીગળ્યા. ઊલટા એતો ધમકી આપતાં લગ્ન નહીં કરો તો અમે ત્રાગા કરીશું ટોડલે લોહી છાટીશુ બ્રાહ્મહત્યાનુ પાપ ચોટશે ને ધનોતપનોત નીકળી જશે વાલ્યમોના ત્રાસથી કાયસ્થો ત્રાહી ત્રાહી પોકારી ગયા. એમને ભયનાં માર્યા રાજા એભલ પાસે ધા નાંખી. રાજા એભલ ધા સાંભળી દંગ રહી ગયો એમને કીધું ચિંતા ના કરશો તમારી દિકરી એ મારી દિકરીઓ તમતમારે લગ્ન કરો. હું સૌના લાગા બ્રાહ્મણોને ચુકવીશ તોય વાલમનો મદ ન ગળ્યો એમણે રોકડું પરખાવ્યું પેલાં પૈસા પછી ફેરા. આવું વર્તન જોઈ એભલ ને પણ ભવા ચઢયા એણે કાયસ્થો ને કહ્યું સૌ પોતપોતાની કન્યા લઇને ચાલો તળાજે ત્યાં હું રાજના રાજપુરોહિતો ને બોલાવી ફેરા ફેરવીશુ ને કન્યાદાન દઇશ કાયસ્થો પોતાની પુત્રીઓને લઇ તળાજા ગયાં એભલે તાલધ્વજાગીરી પર વિશાળ લગ્નમંડપ ઊભો કરી હજારો કન્યાનાં બાપ બની કન્યાદાન દીધાં કરમાયેલા જીવતરને નંદનવન બનાવી દીધું કાયસ્થો એ દિકરીઓ હેમખેમ પરણાવી પોતાને ગામ આવ્યા ત્યારે ગોરોએ તેમને દબાવ્યા ધમકાવ્યા કે અમારા લાગા ચુકવો નહીંતર ત્રાગા કરીશું લોહી છાટીશુ .એભલે વાલ્યમોને સમાધાન માટે જેહમત કરી પણ એકના બે ન થયાં ઊલટા એભલ ની સામે થયાં શ્રાપ આપવા મંડ્યા એભલ વાલ્યમોની અવળચંડાઇ થી ઊકળી ઊઠ્યો તેણે ચોખ્ખું કહી દીધું તમે હવે મારી રૈયત તરીકેનો હક અને રક્ષણ ગુમાવો છો તમને છુટ છે જાઓ.વાલ્યમો એભલને શ્રાપ દેતાં નીકળી ગયા અને કાયસ્થોએ સાધેલા ભીલોએ વાલમો પર હુમલો કર્યો ભાલા તીરોએ સોથ વાળ્યો બચ્યાં એટલાં ભાગ્યા વળામા વાલમનુ બીજ પણ ન રહ્યું

સાત સૈકા પેહલાની આ ઘટનાની સાક્ષીરૂપી આજે પણ તળાજાના ડુંગર પર એભલ મંડપ ઉભો છે

卐 વિરમદેવસિહ પઢેરીયા 卐
卐………….ॐ…………..卐

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ऐसा चमत्कार हिंदी में ही हो सकता है …

चार मिले चौंसठ खिले,
बीस रहे कर जोड़!
प्रेमी सज्जन दो मिले,
खिल गए सात करोड़!!

मुझसे एक बुजुर्गवार ने इस कहावत का अर्थ पूछा….
काफी सोच-विचार के बाद भी जब मैं बता नहीं पाया,
तो मैंने कहा –
“बाबा आप ही बताइए,
मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा !”

तब एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ बाबा समझाने लगे –
“देखो बेटे, यह बड़े रहस्य की बात है…
चार मिले – मतलब जब भी कोई मिलता है,
तो सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं,
इसलिए कहा, चार मिले..
फिर कहा, चौसठ खिले – यानि दोनों के बत्तीस-बत्तीस दांत – कुल मिलाकर चौंसठ हो गए,
इस तरह “चार मिले, चौंसठ खिले”
हुआ!”

“बीस रहे कर जोड़” – दोनों हाथों की दस उंगलियां – दोनों व्यक्तियों की 20 हुईं – बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ बरबस उठ ही जाते हैं!”

“प्रेमी सज्जन दो मिले” – जब दो आत्मीय जन मिलें – यह बड़े रहस्य की बात है – क्योंकि मिलने वालों में आत्मीयता नहीं हुई तो
“न बीस रहे कर जोड़” होगा और न “चौंसठ खिलेंगे”

उन्होंने आगे कहा,
“वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना असम्भव है,
लेकिन मोटा-मोटा साढ़े तीन करोड़ बताते हैं, बताने वाले !
तो कवि के अंतिम रहस्य – “प्रेमी सज्जन दो मिले – खिल गए सात करोड़!”
का अर्थ हुआ कि जब कोई आत्मीय हमसे मिलता है,
तो रोम-रोम खिलना स्वाभाविक ही है भाई – जैसे ही कोई ऐसा मिलता है,
तो कवि ने अंतिम पंक्ति में पूरा रस निचोड़ दिया – “खिल गए सात करोड़” यानि हमारा रोम-रोम खिल जाता है!”

भई वाह, आनंद आ गया।
हमारी कहावतों में कितना सार छुपा है।
एक-एक शब्द चासनी में डूबा हुआ,
हृदय को भावविभोर करता हुआ!
इन्हीं कहावतों के जरिए हमारे बुजुर्ग, हमारे अंदर संस्कार का बीज बोते रहते हैं।

*🙏🏻

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एक बार की बात है किसी गाँव में एक पंडित रहता था| वैसे तो पंडित जी को वेदों और शास्त्रों का बहुत ज्ञान था लेकिन वह बहुत ग़रीब थे| ना ही रहने के लिए अच्छा घर था और ना ही अच्छे भोजन के लिए पैसे।

एक छोटी सी झोपड़ी थी, उसी में रहते थे और भिक्षा माँगकर जो मिल जाता उसी से अपना जीवन यापन करते थे।

एक बार वह पास के किसी गाँव में भिक्षा माँगने गये, उस समय उनके कपड़े बहुत गंदे थे और काफ़ी जगह से फट भी गये थे।

जब उन्होने एक घर का दरवाजा खटखटाया तो सामने से एक व्यक्ति बाहर आया, उसने जब पंडित को फटे चिथड़े कपड़ों में देखा तो उसका मन घृणा से भर गया और उसने पंडित को धक्के मारकर घर से निकाल दिया, बोला- पता नहीं कहाँ से गंदा पागल चला आया है।

पंडित दुखी मन से वापस चला आया, जब अपने घर वापस लौट रहा था तो किसी अमीर आदमी की नज़र पंडित के फटे कपड़ों पर पड़ी तो उसने दया दिखाई और पंडित को पहनने के लिए नये कपड़े दे दिए।

अगले दिन पंडित फिर से उसी गाँव में उसी व्यक्ति के पास भिक्षा माँगने गया। व्यक्ति ने नये कपड़ों में पंडित को देखा और हाथ जोड़कर पंडित को अंदर बुलाया और बड़े आदर के साथ थाली में बहुत सारे व्यंजन खाने को दिए| पंडित जी ने एक भी टुकड़ा अपने मुँह में नहीं डाला और सारा खाना धीरे धीरे अपने कपड़ों पर डालने लगे और बोले- ले खा और खा।

व्यक्ति ये सब बड़े आश्चर्य से देख रहा था, आख़िर उसने पूछ ही लिया कि- पंडित जी आप यह क्या कर रहे हैं, सारा खाना अपने कपड़ों पर क्यों डाल रहे हैं?

पंडित जी ने उत्तर दिया- क्योंकि तुमने ये खाना मुझे नहीं बल्कि इन कपड़ों को दिया है, इसीलिए मैं ये खाना इन कपड़ों को ही खिला रहा हूँ। कल जब मैं गंदे कपड़ों में तुम्हारे घर आया तो तुमने धक्के मारकर घर से निकाल दिया और आज तुमने मुझे साफ और नये कपड़ों में देखकर अच्छा खाना दिया। असल में तुमने ये खाना मुझे नहीं, इन कपड़ों को ही दिया है।

वह व्यक्ति यह सुनकर बहुत लज्जित हो गया।

रामचन्द्र आर्य

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लखनऊ के कहानी किस्सों में नव्वाब साहब का बहुत मज़ाक उड़ाया जाता है ।
यूँ कहा जाता है कि एक बार नव्वाब साब को किसी महफ़िल में जाना था । कायदे के कपड़े थे नही । सो अचकन किसी से मांगी , शेरवानी किसी से , किसी से जूता तो टोपी किसी से ।
महफ़िल में गये तो लोगों ने अचकन आ शेरवानी पहचान ली , अरे ये तो फलाने की है ……..
नव्वाब साहब चौड़े हुए तो पाजामे का मालिक भी अड़ गया । उसने भरी महफ़िल में नव्वाब साहब का पजामा उतरवा लिया ……. पाजामे के नीचे नव्वाब साब का कच्छा फटा हुआ था …….

तो हुआ यूं कि नव्वाब साब करांची से उड़े तो गए कुआलालंपूर …… वहां से नव्वाब साहब को वापस आना था इस्लामाबाद …….पर सतियानास जाए कम्बखत मारी के मलेसिया कुआलालंपूर वालों का …… इस्लामो उम्मत का बी लिहाज न किया और भरी महफ़िल में पजामा उतरवा लिया …….

खबर है कि पाकिस्तान की National Airline PIA का एक तय्यारा बोले तो हवाई झाज Air Craft मलेशिया ने कुआलालंपुर एयरपोर्ट पे जप्त कर लिया । जप्त भी तब किया जब प्लेन में यात्री बैठ चुके थे और प्लेन उड़ने को तैयार था । दरअसल PIA का जहाज भाड़े पे है और पाकिस्तान सरकार का कच्छा फट चुका है । पजामा उधार का पहने थे ।
साल भर से भाड़ा नही दिया था सो Local कोर्ट ने भरे यात्रियों समेत जहाज जप्त कर लिया ।

अब जब यात्री रोने चीखने चिल्लाने लगे तो पाकिस्तान सरकार ने अपनी Embassy से कहा कि इनको मने यात्रियों और Crew को उतार के किसी होटल में पहुंचाओ । वहां Airport पे कोई Bus या Taxi वाला उधार करने को राजी नही । सब कहें पहले पैसे दो तब Hotel तक जाएंगे ।
डेढ़ घंटा यात्री Airport पे बैठे रहे ।
फिर किसी तरह Hotel पहुंचे तो Hotel ने Crew को तो कमरे दे दिये और यात्रियों के लिये हाथ खड़े कर दिये ……. Sorry ….. Crew के लिये तो साल भर का contract है सो कमरे दे दिए । बाकी यात्रियों को ठहराना है तो बाज़ार रेट से नगद payment करो ।
उधर नंगा नहाए क्या और निचोड़े क्या ?????
PIA के पास जहर खाने को पैसे नही , Hotel का Bill नगद कौन दे ।
तय हुआ कि किसी सस्ते बजट होटल में ले चलो ….. वहां पहुंच के यात्री हंगामा काटने लगे ।
Embassy के स्टाफ ने मुल्क की इज़्ज़त और उम्मतो इस्लाम का वास्ता दिया तो यात्री उस सड़े से होटल में रुकने को तैयार हुए ।

फिलहाल खबर है कि कोर्ट ने कह दिया है , 14 मिलियन डॉलर भाड़ा बाकी है , चुकाओ और जहाज ले जाओ …….
पाकिस्तानी सरकार की ये अघोषित policy है कि सभी विभागों में महत्वपूर्ण पदों पे रिटायर्ड फौजी अफसर तैनात कर दिए जाते हैं । फिलहाल PIA के CEO पाकिस्तान Air Force के रिटायर्ड Air Chief अरशद मलिक साहब हैं …….. मुल्क को फौज चला रही है ।

कहा जाता है कि आमतौर पे मुल्कों के पास फौज होती है , पकिस्तान फौज दुनिया की एकमात्र फौज है जिसके पास एक मुल्क है ।

पाकिस्तान थूक से चिपका रखा है । कभी भी बिखर सकता है ।

योगेश ध्यानचंद नमो