Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

⭕️’समस्या का समाधान…✍️


यह कहानी एक गुरु जी और उनके शिष्य की जोड़ी की है। यह साधु महात्मा एक शहर से दूसरे शहर घुमा करते थे।

और गुरु जी जो थे वह बहुत सारे लोगों के कष्टों का निवारण करते थे। अब शिष्य जो था उनके साथ उनकी सेवा करता और गुरु जी के साथ हमेशा उनकी सहायता और मदद करता था।

अब यह साधु और शिष्य की जोड़ी यह दोनों एक शहर पहुंचे वहां पर यह साधु जी का 2 दिन का सत्संग कार्यक्रम था और उन्हें वह शहर पर वहां रुकना था जब वहां पर 2 दिन का सत्संग खत्म हो गया तो अगली सुबह दुसरे शहर के लिए रवाना होना था।

परंतु ना ही उस शहर में वे किसी को जानते थे ना ही किसी को पहचानते थे। तो उस शहर पर उन्हें वहां पर खाने और रुकने की एक समस्या थी। तभी शिष्य ने अपने गुरु जी से कहा, “गुरु जी आज की रात या तो मंदिर की सीढ़ियों पर बितानी होगी” या किसी बगीचे या रास्ते में पर ही आज की रात बितानी होगी।

इस बात पर साधु ने शिष्य से कहा, ऐसा बिल्कुल नहीं होगा अच्छे काम के लिए निकले हैं तो ऊपरवाला ध्यान जरूर रखेगा। उन्होंने अपने शिष्य सेे कहा की आज आराम से खाना खाने को भी मिलेगा और आराम से रहने के लिए एक अच्छी जगह भी मिलेगा।

फिर साधु जिस रास्ते पर से पैदल जा रहे थे उसी रास्ते के किनारे एक बगीचा था वहां पर जाकर वो ध्यान मुद्रा में बैठ गए और कुछ देर बाद उठे और चलने लगे। और शिष्य भी उनके पीछे हो लिया।

कुछ देर बाद साधु महात्मा एक होटल के पास जाकर रुके और देखा तो वहां पर सूट में एकदम तैयार होटल का मैनेजर खड़ा हुआ था। मानो जैसे कि होटल का मैनेजर दोनों का स्वागत करने के लिए होटल के सामने खड़े हुए हैं

तब मैनेजर ने साधु महात्मा जी से कहा, ऐसा लगता है कि आप सफर करके आए हैं और इस शहर में किसी को जानते तक नहीं आप जैसे महापुरुषों के लिए आपके सत्कार के लिए एक विशेष व्यवस्था हमारे होटल में रहती है।

कृपया करके यदि आपकी इच्छा हो तो आप हमारे होटल में रुक सकते हैं, तो वह साधु और शिष्य उस होटल में रुक गए। और वहां के मैनेजर ने साधु महात्मा जी से कहा कि आप सबसे पहले भोजन कर लें। तो यह सब कुछ देखकर और सुनकर शिष्य चौंक जाता है।

उसे विश्वास नहीं हो रहा था उसे लगा कि मेरे गुरु जी को यह सब कैसे पता। अगली सुबह जब वे जिस स्थान पर पहुंचने वाले थे वह वहां पर पहुंच गए। और वहा पर पांच दिवसीय सत्संग था जिसके लिए बहुत सारे लोग भी आए थे। और वह सत्संग शुरू हो गया।

साधु महात्मा जी को प्रवचन सुनते और लोगों के कष्टों को दूर करते हुए 2 दिन समाप्त हो गए। तीसरे दिन सुबह एक महिला यह गुरुजी के पास आ पहुंची उसने कहा कि गुरु जी आप के प्रवचन सुनने से मुझे बहुत बल मिलता है लेकिन मैं यह शिविर छोड़ रही हूं।

मैं यहां शिविर में कल से नहीं आऊंगी। साधु ने ध्यान से उसकी बातों को सुना और फिर कहा, उसका कारण क्या है कि तुम आगे का प्रवचन सुनना नहीं चाहती हो?

तब महिला ने बताया कि आपके प्रवचन के बाद जो समय होता है उसमें ध्यान में बैठना होता है और मैं ध्यान में नहीं बैठ पाती, उस जगह में या तो कोई पैर पसार के बैठा होता है या फिर कोई अपने मोबाइल फोन में बतिया रहा होता है।

ऐसे में ध्यान में कैसे बैठा जाए? गुरुजी ने ध्यान से बातें सुनी और फिर उस महिला से गुरूजी ने कहा कोई बात नहीं कल से शिविर नहीं आना तुम। लेकिन तुम्हें एक क्रिया खत्म करके जाना होगा। और गुरुजी ने कहा उस महिला से कहा कि तुम्हें एक लोटे में बिल्कुल ऊपर तक भरा हुआ पानी लेना होगा और यह जो मंदिर है उसकी चारों ओर 5 चक्कर लगानी होगी।

लेकिन ध्यान इतना रहे कि लोटे में से एक बूंद भी पानी बाहर ना गिरे। जैसा गुरु जी ने कहा था बिल्कुल वैसा खत्म करके महिला गुरुजी के पास पहुंची। गुरुजी ने देखा कि लोटे में पानी हिला तक नहीं था तो गुरु जी ने महिला से पूछा, जब तुम मंदिर के चक्कर लगा रही थी।

तो क्या तुम्हें कोई शोरगुल सुनाई दिया या फिर कोई मोबाइल फोन पर बतियाता रहा, या कोई पैर पसार कर बैठा हो, वह दिखाई पड़ा। तब महिला ने सर झुकाते हुए कहा, नहीं गुरु जी मुझे कुछ भी ऐसा ना दिखाई दिया ना ही सुनाई दिया।

तब गुरुजी ने कहा कि बेटी तुम्हारा सारा का सारा ध्यान इस एक लोटे के पानी पर केंद्रित था। वैसे ही तुम उस सत्संग के खत्म होने के बाद जब ध्यान के लिए बोला जाता है तो तुम बिल्कुल ऐसे ही लोटे के पानी की तरह ध्यान को केंद्रित किया करो।

अर्थात जैसा कि कहा जाता है आज की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण जरूरी बात है जो यह है कि अगर सफल होना है तो समस्या पर नहीं समाधान पर ध्यान केंद्रित करिए।

लेकिन आज कल की दुनिया में होता यह है कि ना ही किसी को सच्चाई की सलाह सुननी है और ना ही किसी को धोखे की तारीफ, परंतु हर कोई एक दूसरे को बस यही दोनों चीजें सुनाते रहते हैं और तारीफ के झूठे धोखे में लिपट कर अपने आप पर घमंड करके चारों ओर घूमते रहते हैं।

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🙏🏻📚📖कहानी – देना ही लेना है📖📚🙏🏻

एक बार गुरूजी सत्संग कर रहे थे।
उन्होंने दृष्टान्त देते हुए कहा कि

जन्म से मृत्यू लगभग 70 वर्ष तक हम यह खेल खेल रहे हैं ।

उन्होंने एक कहानी सुनाई:-

,”एक छोटा भाई और एक बड़ी बहिन सांप सीडी का खेल, खेल रहे थे ।
सांप से नीचे और सीडी से ऊपर।
छोटा भाई हारने के बाद रोता था।
बड़ी बहिन हारने के बाद भी हंसती थी।

समझने की बात है कि जीवन में जो परिस्तिथिया मेरे नियंत्रण में नहीं होती है उन्हें ख़ुशी से स्वीकार करने की ताकत नहीं हो तो दुखी होकर स्वीकार करना होता है।

परंतु स्वीकार तो करना पड़ेगा।

सांप सीडी के इस खेल में आप केवल dice फ़ेंक सकते हो।

प्रश्न यह उठता है कि स्वीकार करने की ताकत कहाँ से आए।

मन बुद्धि और संस्कार पर विजय प्राप्त करने से यह ताकत आयेगी।

अर्थात जाप और ध्यान से।

इसलिए गुरूजी कहते हैं कि में तो
केवल मार्ग बता सकता हूँ, चलना तुम्हे स्वयं ही पड़ेगा।
सृष्टि कर्म के आधार से चल रही है। भाग्य, सुख और दुःख कर्म के आधार से ही बनते हैं।
दुआओं से भाग्य जमा होता है, सुख देने से सुख मिलता है,
क्रोध करने से दुःख मिलता है। युक्ति युक्त बोल और मौन रहने से सकून मिलता है।
अब भाग्य की कलम तुम्हारे हाथ में है जैसा लिखना चाहो वैसा लिख लो।

अब गुरुजी सत्संग के बाद एक कतार में खड़े लोगों को प्रसाद बाँट रहे थे। एक छोटा लड़का गुरुजी तक भाग के गया और गुरुजी ने वह छोटे लड़के को प्रसाद दिया … लड़का प्रसाद लेकर भाग गया …
और फिर गुरुजी के पास गया और गुरुजीने उसे प्रसाद फिर से दिया … पूर्ण उत्साह के साथ, लड़का वापस गुरुजी के पास गया, फिर से, और गुरुजी ने वापस उसे प्रसाद दिया …
यह कुछ समय के लिए जारी रहा … एक स्वयंसेवक जो यह सब देख रहा था वह उलझन में था।
उसने गुरुजी से पूछा, क्यों वह उस छोटे से लड़के को बाँरबाँर प्रसाद दे रहे है, जबकि दूसरे लोग प्रसाद पाने के लिए कतार में इंतजार कर रहे हैं???? …
गुरूजी मुस्कराए और बोले, “तुमने देखा “वो मुझसे प्रसाद लेकर जा रहा है”, पर मैने ये भी देखा कि वो मैंने जो प्रसाद दिया वह उसे पीछे जाकर बाँट रहा है …
जब तक वो देता रहेगा, तब तक मैं भी देता रहुँगा !!!

शिक्षा :-
देना ही लेना है। दूसरो के साथ ख़ुशी बाँटने से ख़ुशी बढ़ती है।
इसलिए देना सीखे फिर जो चाहिए वह अपने आप चल कर आएगा। *🙏🏻📚📖शुभरात्रि📖📚🙏🏻*

रितेश काकाणी

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एक गांव में एक झोटा (भैंसा) रहता था । वो इतना बलवान और दमखम वाला था कि अपने और आस पास के गांवो के झोटे को उस गांव में आने नही देता था और अकेले गांव की जोहड़ (छोटा सा तालाब) में‌ पडा रहता अटखेलिया करता था वो अपने आप में प्रभु बन रहा था
एक बार गांव में हाथी वाले आये और थोडी देर हाथी को‌ जल में नहाने छोडा हाथी नहाते नहाते थोडा सा शान्त होकर सूंड बाहर निकाल अंदर लेट गया ।
दूर से उस झोटे ने देखा आज कोई इस तलाब में कोई और झोटा आ गया है अभी इसकी खैर निकालता हुं वो भडक कर जल में उतरा और धीरे धीरे उस सूंड की तरफ बढने लगा तभी हाथी एक दम से खडा हो गया और जैसे ही खडा हुआ तो अपने से दुगुना आकार देख झोटा सिर पर पांव रखकर भागने लगा वो इतना भयभीत हो गया कि गांव की सीमा खत्म होने तक मुड़ कर भी नही देखा । ऐसा ही यह कबीर ज्ञान है कुछ शास्त्री और‌ वेद के वक्ता यूं समझ जाते है कबीर साहब तो शिक्षित नही थे उनका ज्ञान क्या होगा पर आज उसी कबीर साहब ने संत रामपाल जी को भेजा है । अब पढ लो वेद कतेब कुरान पुराण सब में‌ एक ही बात कहते है कुल का मालिक एक कबीर साहब है । https://youtu.be/VqnMuoJ_yJU (सत्संग लिंक)
http://www.jagatgururampalji.org

SantRampalJiMaharaj