Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🙏🏻📚📖कहानी – बुजुर्गों की सेवा📖📚🙏🏻

बुजुर्ग पिताजी जिद कर रहे थे कि, उनकी चारपाई बाहर बरामदे में डाल दी जाये।
बेटा परेशान था।

बहू बड़बड़ा रही थी….. कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नही देता। हमने दूसरी मंजिल पर कमरा दिया…. AC TV FRIDGE सब सुविधाएं हैं, नौकरानी भी दे रखी है। पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं..?

पिता कमजोर और बीमार हैं….

जिद कर रहे हैं, तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ। निकित ने सोचा।… पिता की इच्छा की पू्री करना उसका स्वभाव था।

अब पिता की एक चारपाई बरामदे में भी आ गई थी।
हर समय चारपाई पर पडे रहने वाले पिता।
अब टहलते टहलते गेट तक पहुंच जाते ।

कुछ देर लान में टहलते लान में नाती – पोतों से खेलते, बातें करते,
हंसते , बोलते और मुस्कुराते ।

कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें भी लाने की फरमाईश भी करते ।

खुद खाते , बहू – बेटे और बच्चों को भी खिलाते ….
धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था।

दादा ! मेरी बाल फेंको। गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी,

तो बेटा अपने बेटे को डांटने लगा…:

अंशुल बाबा बुजुर्ग हैं, उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।

पापा ! दादा रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं….अंशुल भोलेपन से बोला।

क्या… “निकित ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा ?

पिता ! हां बेटा तुमने ऊपर वाले कमरे में सुविधाएं तो बहुत दी थीं।

लेकिन अपनों का साथ नहीं था। तुम लोगों से बातें नहीं हो पाती थी।

जब से गैलरी मे चारपाई पड़ी है, निकलते बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती है। शाम को अंशुल -पाशी का साथ मिल जाता है।

पिता कहे जा रहे थे और निकित सोच रहा था…..

बुजुर्गों को शायद भौतिक सुख सुविधाऔं
से ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है….।

बुज़ुर्गों का सम्मान करें ।
यह हमारी धरोहर है …!

यह वो पेड़ हैं, जो थोड़े कड़वे है, लेकिन इनके फल बहुत मीठे है, और इनकी छांव का कोई मुक़ाबला नहीं !

और अपने बुजुर्गों का खयाल हर हाल में अवश्य रखें…। *🙏🏻📚📖शुभरात्रि📖📚🙏🏻*

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ऐसा चमत्कार हिंदी में ही हो सकता है …

चार मिले चौंसठ खिले,
बीस रहे कर जोड़!
प्रेमी सज्जन दो मिले,
खिल गए सात करोड़!!

मुझसे एक बुजुर्गवार ने इस कहावत का अर्थ पूछा….
काफी सोच-विचार के बाद भी जब मैं बता नहीं पाया,
तो मैंने कहा –
“बाबा आप ही बताइए,
मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा !”

तब एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ बाबा समझाने लगे –
“देखो बेटे, यह बड़े रहस्य की बात है…
चार मिले – मतलब जब भी कोई मिलता है,
तो सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं,
इसलिए कहा, चार मिले..
फिर कहा, चौसठ खिले – यानि दोनों के बत्तीस-बत्तीस दांत – कुल मिलाकर चौंसठ हो गए,
इस तरह “चार मिले, चौंसठ खिले”
हुआ!”

“बीस रहे कर जोड़” – दोनों हाथों की दस उंगलियां – दोनों व्यक्तियों की 20 हुईं – बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ बरबस उठ ही जाते हैं!”

“प्रेमी सज्जन दो मिले” – जब दो आत्मीय जन मिलें – यह बड़े रहस्य की बात है – क्योंकि मिलने वालों में आत्मीयता नहीं हुई तो
“न बीस रहे कर जोड़” होगा और न “चौंसठ खिलेंगे”

उन्होंने आगे कहा,
“वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना असम्भव है,
लेकिन मोटा-मोटा साढ़े तीन करोड़ बताते हैं, बताने वाले !
तो कवि के अंतिम रहस्य – “प्रेमी सज्जन दो मिले – खिल गए सात करोड़!”
का अर्थ हुआ कि जब कोई आत्मीय हमसे मिलता है,
तो रोम-रोम खिलना स्वाभाविक ही है भाई – जैसे ही कोई ऐसा मिलता है,
तो कवि ने अंतिम पंक्ति में पूरा रस निचोड़ दिया – “खिल गए सात करोड़” यानि हमारा रोम-रोम खिल जाता है!”

भई वाह, आनंद आ गया।
हमारी कहावतों में कितना सार छुपा है।
एक-एक शब्द चासनी में डूबा हुआ,
हृदय को भावविभोर करता हुआ!
इन्हीं कहावतों के जरिए हमारे बुजुर्ग, हमारे अंदर संस्कार का बीज बोते रहते हैं।

*🙏🏻

Posted in रामायण - Ramayan

राम धनुष टूटने की सत्य घटना……

बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी… मण्डली में 22-24 कलाकार थे जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे…पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे…एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो पिछली बार धनुष तोड़ने में समय लग गया था…

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इस बात पर फौजदार कुपित हो गया क्योंकि लीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था और पिछला धनुष भी वही बनवाया था… इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गया..फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था …संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था…फौजदार मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है दे दीजिए….. गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेट कर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया…

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रात में रामलीला शुरू हुआ तो फौजदार ने चुपके धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया…रामलीला शुरू हुआ पण्डित जी हारमोनियम पर राम चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे… हजारों की संख्या में दर्शक शिव धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे… रामलीला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े…पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही कलाकार को सत्यता का आभास हो गया गया उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कतार दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है…उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी हजारों लोगों के सामने और ये कलाकार की नहीं स्वयं प्रभु राम की इज्जत दांव पर लगने वाली है.. पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का संकेत किया और स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू….

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जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि इस इशारे के बाद जैसे पंडित जी ने आंख बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था…सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए… नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी..पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी आसमान में बिन बादल बिजली कौंधने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था…दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा और क्यों हो रहा….पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कहा—

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लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥

तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥

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पण्डित जी के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के धनुष को कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया…

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लोग बताते हैं हैं कि ये सब कैसे हुआ और कब हुआ किसी ने कुछ नही देखा सब एक पल में हो गया..धनुष टूटने के बाद सब स्थिति अगले ही पल सामान्य हो गयी पण्डित जी मंच के बीच गए और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए…. लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोषणा कर रहे थे और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू निकल रहे थे..

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…राम “सबके” है एक बार “राम का” होकर तो देखिए…..

🚩राम सियाराम🚩
🚩सियाराम जय जय राम 🚩