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વડોદરા ડાયરી :: ફુગ્ગાવાળો

શાકમાર્કેટ પાસે આ ફુગ્ગાવાળો મેં જોયો, આવી ભીડ ભાડ વળી જગ્યા પર હું માનવીય હાવભાવ અને હલનચલન ને અવલોકન કરવાની મારી આદત છે! આ બાળક એના ફુગ્ગા લય ને ઉભો હતો , ત્યાંજ મેં બાઈક પાર્ક કરી એને નિહાળતો રહ્યો! એના ચેહરા પાર નિર્દોષતા અને ભોળપણ હતી, એવું લાગતું હતું કે ફુગ્ગા ના ધંધા મા નવો નવો જ આવ્યો છે ! એના હાવભાવ અને ફુગ્ગા લેવા વાળા પર હું અવલોકન કરી રહ્યો હતો.

મહિલા ગ્રાહક : ફુગ્ગો કેમ આપ્યો ?
બાળક : 10 નો !

મહિલા ગ્રાહક : હોતો હશે! 5 મા આપ

બાળક : ( નિર્દોષ હાસ્ય સાથે ) મુંડી ના માં ઘુમાવે છે !

મહિલા ગ્રાહક : 15 ના 2 દે

બાળક : ( નિર્દોષ હાસ્ય સાથે ) મુંડી ના માં ઘુમાવે છે !

પછી ગ્રાહક જતો રે છે,

મેં કહ્યુ: લે 10 મને ફુગ્ગો આપ
બાળક : કયો કલર આપું ?
મેં કહ્યુ: (હસતા ચહેરે ) તારે જે આપવો હોય તે
બાળક : ફુગ્ગો આપે છે

મેં ફુગ્ગો લીધો અને પાછો એને જ આપ્યો ! અને કહ્યું લે આ તારે માટે, બાળક મને પૈસા પાછા આપે છે ,

મેં કહ્યું : ફુગ્ગો મેં તને ગિફ્ટ આપ્યો !
બાળક : સ્મિત સાથે પૈસા રાખી લે છે અને મને કેટલોય સમય હસતા ચ્હેરે જોયા કરે છે !

ખરખરે pricelss સ્મિત હતું

બીજા ગ્રાહકો આવ્યા કરે છે અને લગભગ બધા 5 માં 1 આપ ની માંગણી કરે છે , બાળક માત્ર હસતા ચ્હેરે ના પડે છે , કેટલાક ગ્રાહક લય લે છે પણ મોટા ભાગ ના 5 રૂપિયા માટે રક્ઝક કરે છે !

5 રૂપિયા માટે આવી રક્ઝક કરતી પ્રજા ડગલે ને પગલે લૂંટાય છે ત્યાં એ વિરોધ નથી કરતી , પિઝા ખાવા જશે 50 નો પીઝો 250 માં ખાય ને હોસે હોસે પૈસા આપશે !

15 ના 2 વારો ગ્રાહક પાછો આવે છે થોડી વાર પછી અને એજ માંગણી કરે છે , બાળક અડીખમ હતો ! નાજ પડે છે , ગ્રાહક કહે છે “આટલા મોંઘા ફુગ્ગા હોય ” ! બોલો આવાઓ ને શું કરવું ?

આ બાજુ સમગ્ર ઘટના ક્રમ ત્યાં બેઠેલા શાકભાજી વારા જોવે છે બધા આવા ગ્રાહકો માટે હાસ્ય કરે છે ! અને મારે સામે સ્મિત કરી ને પણ જોયા કરે છે જાણે મેં માત્ર 10 રૂપિયા ની ભેટ આપી એમાં હું સેલિબ્રિટી હોવ એમ !

આપડા માંથી મોટા ભાગના લોગો આવા ગ્રાહકો જેવા છે , હું ભીખ દેવા નો વિરોધી છું પણ જો આવું કોઈ જરૂરત મંદ હોય અને ખુમારી થી પૈસા કમાવા પ્રયત્ન કરતુ હોય તો મદદ પણ કરી શકાય

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. ☀️'इंसानियत और मानवता'☀️ ________________________________

एक गिद्ध का बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता था।

एक दिन गिद्ध का बच्चा अपने पिता से बोला- “पिताजी, मुझे भूख लगी है।‘‘

“ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर। मैं अभी भोजन लेकर आता हूूं।‘‘ कहते हुए गिद्ध उड़ने को उद्धत होने लगा।

तभी उसके बच्चे ने उसे टोक दिया, “रूकिए पिताजी, आज मेरा मन इन्सान का गोश्त खाने का कर रहा है।‘‘

“ठीक है, मैं देखता हूं।‘‘ कहते हुए गिद्ध ने चोंच से अपने पुत्र का सिर सहलाया और बस्ती की ओर उड़ गया।

बस्ती के पास पहुंच कर गिद्ध काफी देर तक इधर-उधर मंडराता रहा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली।

थक-हार का वह सुअर का गोश्त लेकर अपने घोंसले में पहुंचा।

उसे देख कर गिद्ध का बच्चा बोला, “पिताजी, मैं तो आपसे इन्सान का गोश्त लाने को कहा था, और आप तो सुअर का गोश्त ले आए?‘‘

पुत्र की बात सुनकर गिद्ध झेंप गया।

वह बोला, “ठीक है, तू थोड़ी देर प्रतीक्षा कर।‘‘ कहते हुए गिद्ध पुन: उड़ गया।

उसने इधर-उधर बहुत खोजा, पर उसे कामयाबी नहीं मिली।

अपने घोंसले की ओर लौटते समय उसकी नजर एक मरी हुई गाय पर पड़ी।

उसने अपनी पैनी चोंच से गाय के मांस का एक टुकड़ा तोड़ा और उसे लेकर घोंसले पर जा पहुंचा।

यह देखकर गिद्ध का बच्चा एकदम से बिगड़ उठा, “पिताजी, ये तो गाय का गोश्त है।

मुझे तो इन्सान का गोश्त खाना है। क्या आप मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकते?‘‘

यह सुनकर गिद्ध बहुत शर्मिंदा हुआ।

उसने मन ही मन एक योजना बनाई और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकल पड़ा।

गिद्ध ने सुअर के गोश्त एक बड़ा सा टुकड़ा उठाया और उसे मस्जिद की बाउंड्रीवाल के अंदर डाल दिया।

उसके बाद उसने गाय का गोश्त उठाया और उसे मंदिर के पास फेंक दिया।

मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों ने अपना काम किया और देखते ही पूरे शहर में आग लग गयी।

रात होते-होते चारों ओर इंसानों की लाशें बिछ गयी। यह देखकर गिद्ध बहुत प्रसन्न हुआ। उसने एक इन्सान के शरीर से गोश्त का बड़ा का टुकड़ा काटा और उसे लेकर अपने घोंसले में जा पहुंचा।

यह देखकर गिद्ध का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ।

वह बोला, “पापा ये कैसे हुआ? इन्सानों का इतना ढेर सारा गोश्त आपको कहां से मिला?”

गिद्ध बोला, “बेटा ये इन्सान कहने को तो खुद को बुद्धि के मामले में सबसे श्रेष्ठ समझता है,

पर जरा-जरा सी बात पर ‘जानवर‘ से भी बदतर बन जाता है और बिना सोचे-समझे मरने-मारने पर उतारू हो जाता है।

इन्सानों के वेश में बैठे हुए अनेक गिद्ध ये काम सदियों से कर रहे हैं।

मैंने उसी का लाभ उठाया और इन्सान को जानवर के गोश्त से जानवर से भी बद्तर बना दियाा।‘‘

साथियों, क्या हमारे बीच बैठे हुए गिद्ध हमें कब तक अपनी उंगली पर नचाते रहेंगे?

और कब तक हम जरा-जरा सी बात पर अपनी इन्सानियत भूल कर मानवता का खून बहाते रहेंगे?

अगर आपको यह कहानी सोचने के लिए विवश कर दे, तो प्लीज़ इसे दूसरों तक भी पहुंचाए।

क्या पता आपका यह छोटा सा प्रयास इंसानों के बीच छिपे हुए किसी गिद्ध को इन्सान बनाने का कारण बन जाए।
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𒊹︎︎︎𝗝𝗼𝗶𝗻✰☞︎︎︎ ‘प्रेरणादायक सुविचार’

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🥀✍🏻 ईश्वर का वास :—-

एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये।दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे।

सन्यासी ने एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार” से पूछा , “इसमें क्या है?”

दुकानदार ने कहा, “इसमें नमक है।”

सन्यासी ने फिर पूछा इसके पास वाले में क्या है ?”

दुकानदार ने कहा, “इसमें हल्दी है।”

इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बताता रहा।

अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा, “उस अंतिम डिब्बे में क्या है?”

दुकानदार बोला, “उसमें श्री कृष्ण हैं।”

सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा,
“श्री कृष्ण !! भला यह “श्री कृष्ण” किस वस्तु का नाम है भाई?
मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !”

दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला, “महात्मन ! और डिब्बों में तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं।

पर यह डिब्बा खाली है। हम खाली को खाली नहीं कहकर श्री कृष्ण कहते हैं !”

संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! जिस बात के लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वह बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ में आ रही है।

वे सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़े, ओह, तो खाली में श्री कृष्ण रहते हैं !

सत्य है ! भरे हुए में श्री कृष्ण को स्थान कहाँ ?

काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?

🚩राधे-राधे!🚩🚩 *🌹🙏🏻🌹*

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✧​ लोहार की ईमानदारी ✧​
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एक बढ़ई किसी गाँव में
काम करने गया, लेकिन …
वह अपना हथौड़ा …
साथ ले जाना भूल गया.

उसने गाँव के लोहार के पास जाकर
कहा ~ मेरे लिए एक अच्छा सा
हथौड़ा बना दो.
मेरा हथौड़ा घर पर ही छूट गया है.
लोहार ने कहा ~ बना दूँगा,
लेकिन … तुम्हें दो दिन
इंतजार करना पड़ेगा. हथौड़े के लिए मुझे अच्छा लोहा चाहिए. वह कल मिलेगा. दो दिनों में लोहार ने, बढ़ई को हथौड़ा बना कर दे दिया. हथौड़ा सचमुच अच्छा था. बढ़ई को उससे काम करने में ... काफी सहूलियत महसूस हुई.

बढ़ई की सिफारिश पर एक ठेकेदार
लोहार के पास पहुँचा.
उसने हथौड़ों का बड़ा ऑर्डर देते हुए
यह भी कहा कि ~
पहले बनाए हथौड़ों से अच्छा बनाना. लोहार बोला ~ उनसे अच्छा नहीं बन सकता. क्योंकि ... जब मैं कोई चीज बनाता हूँ, तो उसमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता. चाहे कोई भी बनवाए. धीरे-धीरे लोहार की शोहरत ... चारों तरफ फैल गई.

एक दिन शहर से बड़ा व्यापारी आया
और .. लोहार से बोला ~
मैं तुम्हें डेढ़ गुना दाम दूँगा, लेकिन …
शर्त यह होगी, कि …
भविष्य में तुम सारे हथौड़े
केवल मेरे लिए ही बनाओगे.
हथौड़ा बनाकर …
दूसरों को नहीं बेचोगे.

लोहार ने इनकार कर दिया और कहा ~
मुझे अपने इसी दाम में पूर्ण संतुष्टि है.
अपनी मेहनत का मूल्य
मैं खुद निर्धारित करता हूँ. आपने फायदे के लिए

मैं किसी दूसरे के शोषण का माध्यम
नहीं बन सकता.
📍
आप मुझे जितने अधिक पैसे देंगे,
❗ उसका दोगुना ❗
गरीब खरीदारों से वसूलेंगे.
मेरे लालच का बोझ
गरीबों पर पड़ेगा.
जबकि .. मैं चाहता हूँ , कि …
उन्हें मेरे कौशल का लाभ मिले.
मैं आपका प्रस्ताव
स्वीकार नहीं कर सकता. सेठ समझ गया, कि ~

👉🏽 सच्चाई और ईमानदारी 👈🏽
★ महान शक्तियाँ हैं. ★ जिस व्यक्ति में ... ये दोनों शक्तियाँ मौजूद हैं, उसे किसी प्रकार का प्रलोभन अपने सिद्धांतों से नहीं डिगा सकता. •┈┈┈•✦✿✦•┈┈┈•

अहंकार का भाव ना रखूँ,
नहीं किसी पर क्रोध करूँ.
देख दूसरों की बढ़ती को,
कभी ना ईर्ष्या भाव रखूँ.रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूँ. बने जहाँ तक इस जीवन में ... औरों का उपकार करूँ. 🏵️🍃 🏆 🍃🏵️

╲\╭┓
╭ 🌸 ╯ प्रेषक ~ शिव शुक्ल ~ ‘शिशु’
┗╯\╲☆ ● ════════❥ ❥ ❥

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भारत में टैक्स देनेवालों और फ्री में खाने वालों के बीच संबंधों को आसान तरीके से समझिए।

एक बार 10 मित्र ढाबे पे खाना खाने गए ।

बिल आया 100 रु । 10 रु की थाली थी ।
मालिक ने तय किया कि बिल की वसूली देश की कर प्रणाली के अनुरूप ही होगी पहले 4 (गरीब बेचारे ) उनका बिल माफ़ 5वाँ ................1रु 6ठा ................3रु 7वाँ ................7रु 8वाँ ................12रु 9वाँ ................18 रु 10वाँ .............. 59 रु देने लगा ।

साल भर बाद मालिक बोला । आप लोग मेरे इतने अच्छे ग्राहक हैं सो मैं आप लोगों को बिल में 20 रु की छूट दे रहा हूँ । अब समस्या ये कि इस छूट का लाभ कैसे दिया जाए सबको । पहले चार तो यूँ भी मुफ़्त में ही खा पी रहे थे । एक तरीका ये था की 20 रु बाकी 6 में बराबर बाँट दें । ऐसी स्थिति में 4 के साथ 5 वां और छठा भी फ्री खाने लगा ।
इतना ही नहीं 2.33रु और .33रु घर भी ले जाने लगे ।

मालिक ने ज़्यादा न्याय संगत तरीका खोजा ।

नयी व्यवस्था में अब पहले 5 मुफ़्त खाने लगे
6ठा 3 की जगह 2 रु देने लगा … 33%लाभ
7वां 7 के 5 रु देने लगा …..28% लाभ
8वां 12 की जगह 9 रु देने लगा ….25 %लाभ
9वां 18 की जगह 14 देने लगा …. 22 %लाभ
10वां 59 की जगह 49 देने लगा सिर्फ …..16%लाभ

बाहर आ के 6ठा बोला , मुझे तो सिर्फ 1 रु का लाभ मिला जबकि वो पूंजीपति 10 रु का लाभ ले गया ।

5वां जो आज मुफ़्त में खा के आया था, बोला वो मुझसे 10 गुना ज़्यादा लाभ ले गया ।

7वां बोला , मझे सिर्फ 2 रु का लाभ और ये उद्योगपति 10 रु ले गया ।

पहले 4 बोले …..अबे तुमको तो फिर भी कुछ मिला हम गरीबों को तो इस छूट का कोई
लाभ ही नहीं मिला ।

ये सरकार सिर्फ इस पूंजीपति उद्योगपति सेठ के लिए काम करती है ……मारो ….पीटो …..फूंक दो……..और सबने मिल के दसवें को पीट दिया ।

सेठिया पिट पिटा के इलाज करवाने सिंगापूर मलेशिया चला गया ।
अगले दिन वो उस ढाबे पे खाना खाने नहीं आया ।

और जो 9 थे उनके पास सिर्फ 40 रु थे जबकि बिल 80 रु का था ।

मित्रों अगर उस बेचारे को यूँ ही पीटेंगे हम लोग तो हो सकता है वो किसी और ढाबे पे
खाना खाने लगे जहां उसे tax प्रणाली हमसे बेहतर मिल जाए ।

मित्रों …..ये है कहानी हमारे taxation system की और budget की …….

उद्योगपतियों और पूंजीपतियों and Taxpayers को चाहे जितनी गाली दीजिये पर कहानी यही है ।

धन्यवाद –
उस लेखक को जिसने इस मसले को इतने सरल तरीके से समझाया.

मुफ्तखोरी बंद हो

😀🙏🏻

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जीवन में सुख का आधार क्या है?

एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या, द्वेष आदि करते हैं । जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये।

अगले दिन सभी लोग आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे ।
अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें । शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया । दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे, वे बडे कष्ट में थे । जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली । महात्मा ने कहा, अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली ।

महात्माजी ने पूछा – विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा ? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया, आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बड़ा हल्का महसूस हो रहा है। महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था। जब मात्र सात दिनों में ही आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या द्वेष करते हैं। उनका कितना बोझ आपके मन पर होता होगा। वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं। सोचिये कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी ? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह। इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो। शिष्यों ने अपने मन से ईर्ष्या, द्वेष रूपी पाप विचार को निकाल दिया। वे प्रसन्न चित होकर आनंद में रहने लगे। आज समाज में व्यक्ति मन में एकत्रित पाप विचारों से सर्वाधिक दुखी हैं। दूसरे से ईर्ष्या व द्वेष करते करते उसका आंतरिक वातावरण प्रदूषित हो गया हैं।

वेद भगवान बड़े सुन्दर शब्दों में मन से ईर्ष्या , द्वेष रूपी पाप विचारों को दूर करने का सन्देश देते हैं। अथर्ववेद 6/45/1 में लिखा है ओ मन के पाप विचार! तू परे चला जा, दूर हो जा। क्यूंकि तू बुरी बातों को पसंद करता है। तू पृथक (अलग) हो जा, चला जा। मैं तुझे नहीं चाहता। मेरा मन तुझ पाप की ओर न जाकर श्रेष्ठ कार्यों में रहे।
जीवन में सुख का आधार मन से पाप कर्म जैसे ईर्ष्या, द्वेष आदि न करने का संकल्प लेना है।

डॉ विवेक आर्य

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संत के नियम की रक्षा –

श्री नर्मदा किनारे एक उच्च कोटि के संत विराजते थे।

उनका नित्य का नियम था की वे भगवान् को तो भोग लगाते थे और साथ में एक अतिथि को भी भोजन प्रसाद खिलाते। ऐसा कारण के बाद ही वो स्वयं प्रसाद पाते थे।

नित्य प्रति बे भगवान् को भोग लगते और इंतजार करते की कोई अतिथि आये।

कोई न कोई अतिथि मिल ही जाता, कोई नहीं आया तो नर्मदा जी में मछली कछुआ को खिलाते।

एक दिन कोई अतिथि नहीं आया और ना ही कोई कछुआ मछली कुछ दिखाई पड़ रहे थे।

ब्रह्मचारी जी सोचने लगे की क्या आज का अन्न ऐसे ही चला जायेगा।

बहुत समय बीत गया पर कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था, अचानक संत के पास एक कुत्ता आया।

कुत्ते को देखकर उसे डराकर भगा दिया। जैसे ही भगाया, तुरंत उसके बाद संत जी को ख्याल आया की कही अतिथि नारायण के रूप में कुत्ता ही न आया हो।

उन्होंने सोचा की यही तो होगा वह, कितनी दूर गया होगा परंतु दूर दूर तक खाली जमीन दिखाई पड़ रही थी।

पश्चाताप करने लगे की इतनी देर बाद आखिर कोई अतिथि आया था पर हमने उसे भगा दिया।

शाम बीत चुकी है, अब तो मेरा नियम भंग हो गया। उस कुत्ते को बहुत ढूंढा पर कही दिखा नहीं।

फिर आँख बंद करके नदी किनारे रोने लग गए, अब भगवान को दया आयी और प्रभु अचानक सामने उसी रूप में प्रकट हुए।

इस बार संत जी ने पहचानने में भूल नहीं की और उस कुत्ते के चरण पकड़ कर कहने लगे की प्रभु ! मैं पहचान गया हूँ।

आप भक्तवत्सल है, मेरे अतिथि सत्कार के नियम की परीक्षा करने ही आप आये थे। कृपा कर के आप अपने रूप में आकर दर्शन प्रदान करो।

भगवान् श्री रामचंद्र जी ने अपने निज स्वरुप का दर्शन कराया और संत जो को आनंद प्रदान किया।

भगवान् श्री राम ने संत जी से कहा की जब जीवन में कोई नियम ले लेता है तो समय आने पर उसके नियम निष्ठा की परीक्षा अवश्य होती है।

यदि वह व्यक्ति नियम में दृढ़ विश्वास रखे तो भगवान् उस नियम को भंग नहीं होने देते।

इस तरह श्रीराम जी ने संत जी के नियम की रक्षा की और ब्रह्मचारी जी को आशीर्वाद् देकर अंतर्धान हो गए।

जय श्री राम 🍂🌷🍃🌸🌼🌷🕉🍂🌈🌻🍃🌺🍂🌼🌷💟🍂🕉🌸🍃🌺🌼💟🍂🌷🍃🌈🌻🌸🍂🕉🌷🍃🌻🌺

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😌😌😌 कही सुनी सच है 😌😌😌
एक रिटायर्ड सीनियर अधिकारी को अपने ऑफिस जाने की जिज्ञासा हुई। वह अपने मन में बड़े-बड़े सपने लेकर जैसे कि :- मैं जब ऑफिस पहुंचूँगा तो सभी अधिकारी एवं कर्मचारी मेरा बढ़-चढ़कर स्वागत करेंगे😎, तत्काल अच्छा नाश्ता मंगाया जाएगा🕵🏻‍♂️, आदि आदि। ऐसा सोचते सोचते वह अपने वाहन से ऑफिस जा रहा था। जैसे ही गेट पर पहुंचा तो गार्ड💂🏻‍♂️ ने रोका और कहा कि “आप अंदर जाने से पहले गाड़ी बाहर ही साइड पर लगा दें”। इस पर अधिकारी भौचक्का रह गया, और कहा कि “अरे! तुम जानते नहीं हो, मैं यहां का चीफ ऑफ ऑफिसर रहा हूं। गत वर्ष ही रिटायर हुआ हूं”। इस पर गार्ड बोला- “तब थे, अब नहीं हो। गाड़ी गेट के अंदर नहीं जाएगी”। अधिकारी बहुत नाराज हुआ और वहां के अधिकारी को फोन कर गेट पर बुलाया। अधिकारी गेट पर आया और रिटायर्ड चीफ ऑफिसर को अंदर ले गया।गाड़ी भी अंदर करवाई और अपने चेंबर में जाते ही वह चेयर पर बैठ गया और चपरासी से कहा- “साहब को जो भी कार्य हो, संबंधित कर्मचारी के पास ले जाकर बता दो”। चपरासी साहब को ले गया और संबंधित कर्मचारी के काउंटर पर छोड़ आया। चीफ साहब अवाक😳 से खड़े सोचते रहे। कार्यालय आते समय जो सपने संजोए थे, वह चकनाचूर हो चुके थे🙁। पद का घमंड धड़ाम हो चुका था😔। वह घर पर चले आए। काफी सोचने के बाद उन्होंने अपनी डायरी में लिखा- एक विभाग के कर्मचारी शतरंज के मोहरों की तरह होते हैं। कोई राजा🤴🏻, कोई वजीर🧙🏻‍♂️, कोई हाथी🐘, घोड़ा🐴, ऊंट🐪 तो कोई पैदल🚶🏻‍♂️ बनता है। खेलने के बाद सभी मोहरों को एक थैले में डालकर अलग रख दिया जाता है। खेलने के बाद उसके पद का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अतः इंसान को अपने परिवार और समाज को नहीं भूलना चाहिए। कितने भी ऊंचे पद पर पहुंच जाओ लौटकर अपने ही समाज में आओगे।🙁😟😔

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🕉️ … हनुमान जी का कर्ज़ा … 🕉️

राम जी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो कुछ दिन पश्चात राम जी ने विभीषण, जामवंत, सुग्रीव और अंगद आदि को अयोध्या से विदा कर दिया।

तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन राम जी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया।

अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात है कि सब गए परन्तु अयोध्या से हनुमान जी नहीं गये।

अब दरबार में कानाफूसी शुरू हुई कि हनुमान जी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता जी की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमान जी चले जायें।

माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक-एक दिन एक-एक कल्प के समान बीत रहा था।

वो तो हनुमान जी थे, जो प्रभु मुद्रिका ले के गये, और धीरज बंधवाया कि…!

कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।

अब बारी आई लखन जी की। तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था। पूरा राम दल विलाप कर रहा था।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।

ये तो जो खड़ा है, वो हनुमान जी का लक्ष्मण है। मैं कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमान जी अयोध्या से चले जाएं।

अब बारी आयी भरत जी की। अरे! भरत जी तो इतना रोये, कि राम जी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पे। हनुमान जी का, सब मिलके और लगवा दो।

और दूसरी बात ये कि…!

बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।
अधम कवन जग मोहि समाना॥

मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमान जी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि…!

रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥

मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमान जी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े..

मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमान जी को अयोध्या से निकलने के लिए।

जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो, किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार…

माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी हो, और देखती हूं आप हनुमान जी से सकुचाते हैं। और आप खुद भी कहते हो कि…!

प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥

आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु !

राघव जी ने कहा, देवी क़र्ज़दार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..

सनमुख होइ न सकत मन मोरा

देवी ! हनुमान जी का कर्ज़ा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो “राम नाम” में है।

क्योंकि कर्ज़ा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न…! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो – हनुमान जी का कर्ज़ा कैसे उतारा जा सकता है।

पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।

मुंदरी लै रघुनाथ चले,
निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

आयि कहें, सुधि सोच हरें,
तन से, मन से होई जाएं उपकारी।

तब रघुनाथ चुकायि सकें,
ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्ज़ा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि…!

“सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं”

मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमान जी भी कुछ मांग लें।

दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमान जी क्या मांगेंगे, और राम जी क्या देंगे।

राघव जी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया।

विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ…?

हनुमान जी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो…!

तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना

तो फिर यदि मैं दो पद मांगू तो..?

सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमान जी भी ठीक ही कह रहे हैं।

राम जी ने कहा ! ठीक है, मांग लो।

सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमान जी का कर्ज़ा चुकता हो जायेगा।

हनुमान जी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमें राजमद की शंका हो।

तो फिर…! आप को कौन सा पद चाहिए ?

प्रशांत मणि त्रिपाठी

हनुमान जी ने राम जी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।

हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।
नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।

🌹 जय श्री राम 🌹

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Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

ઓફિસે પહેરી ને હું જતો એ બુટ ના તળિયા ફાટી ગયા હતા ચારે બાજુ થી બુટને સિલાઈઓ મરાવી મરાવી બુટ ને જીવતા રાખવા નો નિરર્થક પ્રયત્ન હું કરતો હતો હતો…જેમ એક મઘ્યમવર્ગ ની દશા એક સાંધે અને તેર તૂટે એવી જ દશા મારા બુટ ની હતી….

કોઈ દર્દી ની સારવાર કરી ડોક્ટર અંતે થાકી ને કહે ..કે દર્દી લાબું નહીં જીવે…ખોટો ખર્ચ દર્દી પાછળ કરવા જેવો નથી.. તેમ મારા મોચી એ કીધું સાહેબ..નવા બુટ ખરીદી લ્યો…ઘણો ક્સ કાઢ્યો…હવે ખર્ચ આ બુટ પાછળ કરવા જેવો નથી.

આજે રવિવાર હોવાથી…મેં મારા બુટ ચમ્પલ ના સ્ટેન્ડ ની સાફ સફાઈ ના બહાને ઘર સભ્યો ના ચપ્પલ બુટ ની વર્તમાન દશા શું છે એ જોવા પર્યત્ન કર્યો…

મારા નસીબ સારા હતા..ઘર ની વ્યક્તિઓ સમજુ હતી…સામેથી કોઈ પણ પ્રકાર ની માંગણી તેઓ કરતા નહીં..એટલે એ લોકોની જરૂરિયાત સમયે સમયે જોવાની મારી નૈતિક ફરજ અને જવાબદારી પણ બનતી હતી.

મારો પગાર પણ સારો, બચત પણ સારી….પણ સંઘર્ષ ના સમયે કરેલ કરકસર ની ટેવ ધીરે ધીરે આદત બનતી જાય છે…બુટ ચમ્પલ નું સ્ટેન્ડ ..ઘર ના દરેક સભ્ય ના નવા બુટ ચમ્પલ લેવાનું મને કહેતું હતું….

મેં કાવ્યા ને બુમ મારી બોલાવી..કીધું..આ તારા ચંમ્પલ જો બાળકો ના બુટ…તમને એમ નથી થતું..હવે નવા બુટ ચમ્પલ લેવા જોઈએ..?
કાવ્યા બોલી….પ્રથમ તમારે જરૂર છે..બુટ માંથી અંગુઠો બહાર આવવા ની તૈયારી કરી રહ્યો છે..

હું પિન્ટુ અને મારી દીકરી શીતલ હસી પડ્યા….
સારું આજે સાંજે બુટ અને ચંપ્પલ લેવા આપણે સાથે જઇયે છીયે….

સાંજે..ફરતા ફરતા શહેર માં ઘણા સમય થી ફેમસ બનેલ
“બુટ હાઉસ” ના શોરૂમ પાસે અમે ઉભા રહ્યા…
પિન્ટુ બોલ્યો પપ્પા આપણા શહેર માં આ શોરૂમ નું નામ છે આવા બીજા બે શોરૂમ પણ આ શહેર માં છે..નવી નવી બુટ ચમ્પલ ની ડિઝાઈન અહીં થી આપણને મળી રહેશે…

શોરૂમ જોઈ અંદર જવા ની હિંમત થતી ન હતી..છતાં પણ બાળકો અને પત્ની ની ઈચ્છા હતી એટલે…પ્રથમ પાકીટ અને ક્રેડિટ કાર્ડ ખીસા માં છે કે નહીં એ ખાતરી કરી હિંમત એકઠી કરી શોરૂમ માં અમે પ્રવેશ કર્યો…

કઈ બાજુ થી શરૂઆત કરવી એ જ ખબર પડતી ન હતી..
બુટ ની રેન્જ ચાલુ જ ત્રણ હજાર થી થતી હતી….શોરૂમ ના સેલ્સમેન પણ વારંવાર મારા બુટ તરફ નજર કરતા હતા
તેઓ નો પ્રતિસાદ નબળો હોવાનું કરણ મારા બુટ હતા એ હું સમજી ગયો હતો…

AC શોરૂમ માં મને પરસેવો થતો જોઈ મારા સમજદાર પરિવારે મને કીધું ….પપ્પા આના કરતાં શહેર માં સસ્તા મળે..આ તો એરિયા નો ભાવ લે છે..લૂંટે છે..

અમારી વાતચીત અને હાવ ભાવ જોઈ… એક યુવાન વ્યક્તિ ચેમ્બર માંથી બહાર આવી….

આવો સાહેબ
તમારા માટે આ ડિઝાઈન પરફેક્ટ છે….મેં બુટ ની કિંમત જોઈ 4999 રૂપિયા.. મેં કીધું ભાઈ…બીજે તપાસ મને કરવા દે…

અરે વડીલ અમારા ગ્રાહક અમારા ભગવાન છે….એ યુવાન શેઠ હોવા છતાં તે મારા પગ પકડી નીચે બેસી મને બુટ પહેરાવવા લાગ્યા…સેલ્સ સ્ટાફે તેમને ચેમ્બર માં જવા વિનંતી કરી

પણ આ યુવાન લાગતો શોરૂમ નો માલિક બોલતો હતો ભગવાન આજે સામે ચાલી ને આપણે ત્યાં આવ્યા છે….
તેના સ્ટાફ ને બોલાવી કીધું..આ બુટ પેક કરો..સાહેબ ના બુટ અને સાઇઝ મને યાદ છે…

હું ધારી ધારી ને આ વ્યક્તિ ને જોતો રહ્યો..સાચો સેલ્સમેન તો આને કહેવાય.

મારી પત્ની કાવ્યા સામે જોઈ શેઠ બોલ્યા બેન તમારા માટે આ સેન્ડલ યોગ્ય છે..તેની.કિંમત મેં જોઈ 2999 રૂપિયા.

હવે તેણે પિન્ટુ સામે જોયું..તું યુવાન છે..આ સપોર્ટ શૂઝથી તારો વટ પડશે..તેની કિંમત 5899 ..મેં કીધું અરે ભાઈ તમે મને તો પૂછો કિંમત મને પરવડે છે કે નહીં….એ વ્યક્તિ એ કંઈ સાંભળ્યું જ નહીં
શીતલ ના પણ સેન્ડલ 2999 પેક કરવા પોતાના માણસ ને આપી કેશકાઉન્ટર ઉપર મોકલ્યો..અને પાછળ પાછળ પોતે ગયો

પાકીટ માંથી આટલા રૂપિયા નીકળશે એ ચિતા માં હતો ત્યાં એ સજ્જન વ્યક્તિ મારી.પાસે આવી બોલી.. લ્યો સાહેબ આ તમારું બિલ..કેશ કાઉન્ટર ઉપર રૂપિયા જમા કરાવી…ડિલિવરી લઈ લ્યો

બે મિનિટ તો ઝગડો કરી લેવા ની ઈચ્છા થઈ…પણ જયારે મેં બિલ જોયું ત્યારે હું ઠંડો થઈ ગયો…
ટોટલ રકમ ઉપર ડિસ્કાઉન્ટ 100% ચૂકવવા પાત્ર રકમ
ઝીરો રૂપિયા…
મેં એ વ્યક્તિ સામે જોઈ કીધું. .તમે અમારી મજાક તો ઉડાવતા નથી ને…?

એ યુવાન શેઠ હાથ જોડી ઉભો રહી ગયો..અને બોલ્યો.. .
અરે સાહેબ…જીંદગી જ્યારે અમારી મજાક ઉડાવતી હતી..ત્યારે તમે અમારો હાથ પકડ્યો હતો..તમારી મજાક ઉડાવવા માટે અમારી હેસિયત જ નથી.
યાદ આવ્યું કંઈ…સાહેબ?

ના…કંઈ યાદ નથી આવતું મેં કીધું.

સાહેબ..બુટ પોલીશ …યાદ આવ્યું…

અરે તમે રામ અને શ્યામ….

હા વડીલ….હું રામ

હું દોડી ને તેને ભેટી પડ્યો….અરે બેટા આવડી મોટી વ્યક્તિ તું બની ગયો

શ્યામ ક્યાં છે….?
શ્યામ કેશ કાઉન્ટર ઉપર થી હસતા હસતા દોડી ને આવ્યો.. મને ભેટી ને પગે લાગ્યો..
અરે સાહેબ અમારી જીંદગી તમારા ઉપકાર ના 100% ડિસ્કાઉન્ટ ઉપર ચાલે છે..જો તમે યોગ્ય સમયે અમારો હાથ પકડ્યો ન હોત તો તો આજે અમે લોકો ની બુટ પોલિસ જ કરતા હોત

આ શો રૂમ તમારો છે…અમારા વડીલ ગણો માઁ બાપ કે દેવ ગણો તમે જ છો…અમે આ શોરૂમ નું ઉદ્ઘાટન તમારા હાથે કરવા તમને યાદ કર્યા હતા…તમારી.ઓફીસે ગયા…ત્યાંથી
તમારી ટ્રાન્સફર થઈ ગઈ હતી…પણ અમારી ઈચ્છા આજે પુરી થઈ…આવો ચેમ્બર માં…વડીલ
અમે ચેમ્બર માં ગયા…

રામ પિન્ટુ સામે જોઈ બોલ્યો બેટા વર્ષો પહેલા તારા પપ્પા બસ સ્ટેન્ડ પાસે ઉભા હતા અમે બન્ને તારા પપ્પા ને બુટ પોલીશ કરાવવા માટે પાછળ પડ્યા.. તેમણે બુટ પોલિશ માટે બુટ આપ્યા પછી એક બુટ મેં લીધું અને એક શ્યામે
તારા પપ્પા એ દસ રૂપિયા આપ્યા.પાંચ રૂપિયા મેં રાખ્યા પાંચ શ્યામ ને આપ્યા.. તારા પપ્પા એ આવું કરવા નું કારણ પૂછ્યું

મેં કીધું અમે બન્ને ખાસ.મિત્રો છીયે….સવાર થી બોણી નથી થઈ….અમે નક્કી કર્યું છે..આપણે મહેનત પણ સરખી..કરશું અને કમાઈ પણ સરખા ભાગે વહેચી લેશું
તારા પપ્પા એ કીધું આવો સંપ મોટા થઈ ને પણ રાખશો તો.ખૂબ આગળ નીકળી જશો..એ અમે યાદ રાખ્યું.

પછી તારા પપ્પાએ અમને પૂછ્યું હતું.. તમારે ભણવું છે…
અમે કીધું હા….
અમે હજુ ભૂલ્યા નથી. એ દિવસે તારા પપ્પા એ રજા પાડી અમારું સરકારી સ્કૂલ માં એડમિશન પાક્કું કર્યું.. નોટ ચોપડી સ્કૂલ ડ્રેસ તથા અન્ય ખર્ચ તેમણે ઊપાડી લીધો.

તારા પપ્પા એ તેમની ઓફીસ નું સરનામું અમને આપ્યું હતું ત્યાંથી અમે આકસ્મિક ભણવા નો કોઈ ખર્ચ આવે તો લઈ આવતા…. બાર ધોરણ પછી કોલેજ નો ખર્ચ અમે જાતે ઉપાડવા નું નક્કી કર્યું. અમે બને ગ્રેજ્યુએટ થઈ…. લઘુ ઉદ્યોગ માટે ની લોન લઈ બુટ ચમ્પલ બનાવવા ની ફેક્ટરી ખોલી…મહેનત અને ઈમાનદારી નું પરિણામ તું આજે જુએ છે…

પણ આ બધા ની પાછળ..જે વ્યક્તિનું યોગદાન છે એ તારા પપ્પા છે….એ ફક્ત તારા પપ્પા નહીં અમારા પણ છે….અમે માઁ બાપ જોયા નથી….પણ કલ્પના જયારે હું કરું ત્યારે તારા પપ્પા મારી નજર માં પ્રથમ આવે…
અમારી તો કોઈ ઓળખ જ હતી નહીં….રસ્તા વચ્ચે ઠેબા મારતા પથ્થર જેવી દશા ને દિશા અમારી હતી…અચાનક દેવદૂત બની ને તારા પપ્પા….આવ્યા અમારી દશા અને દિશા નક્કી કરનાર આ તારા પપ્પા સામાન્ય વ્યક્તિ નથી

આ બુટ ચંપ્પલ ની કિંમત કંઇ જ નથી…જે વ્યક્તિ પોતાના મોજશોખ ઉપર કાપ મૂકી બીજા ને મદદ કરે એ વ્યક્તિ સામાન્ય ન હોય..

રામ અને શ્યામ ઉભા થયા…
મને અને કાવ્યા ને પગે લાગ્યા..પોતાનું કાર્ડ આપી. કીધું
365 x 24 કલાક અમે તમારા માટે ઉભા છીયે…
પિન્ટુ ને અને શીતલ ને પણ કીધું..અમે તમારા મોટા ભાઈઓ છીયે એવું સમજી લ્યો .જીવન માં સુખ દુઃખ વખતે અમે તમારી સાથે પડછાયો બની ઉભા રહેશું એ અમારું વચન છે..

હવે આ દુનિયા ની ભીડ માં તમે ફરી પાછા ખોવાઈ જાવ એ પહેલાં તમારા મોબાઈલ નંબર અને ઘર નું સરનામું અમને આપતા જાવ….આવતા રવિવારે અમારા ઘરે ડિનર તમારા બધા નું પાક્કું..એમ બોલ્યા.

મારી આંખ ભીની થઈ ગઈ…
અજાણતા કરેલ થોડી અમથી મદદ કોઈની જીંદગી માટે યાદગાર બની જાય છે..આશ્રમ અને મોટા મંદિર માં આપેલ દાન ની.કોઈ નોંધ પણ નથી લેતું…અને આવી વ્યક્તિઓ.આપણી મદદ ને દિલ ઉપર કંડારી દેતા હોય છે

અમે એક યાદગાર મુલાકાત પછી છુટા પડ્યા…

મિત્રો
તમારા થી કોઈ ને મદદ ન થાય તો કંઈ નહીં પણ કોઈ નું મોરલ તૂટી જાય તેવા શબ્દો બોલવા નહીં સમય બળવાન છે….આજે સમય મારી સામે ઉભો હતો… મેં મારી નજર સામે સમય ને બદલાતો જોયો છે..

પરમાર્થ કરતા રહો…
આર્થિક, માનસિક ,શારીરિક તમારી પાસે જે યોગ્યતા હોય તે મદદ કરતા રહો…
તમારી નાની મદદ કોઈ નું જીવન બદલી નાખે છે..

દાન યોગ્ય જગ્યા એ કરો.. જ્યાં નદી વહે છે ત્યાં પાણી ના પરબ નું કોઈ મહત્વ નથી….તેનું મહત્વ નો રણ પ્રદેશ માં છે

હસુભાઈ ઠક્કર