Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

माँ की मृत्यु के बाद तीसरा दिन था । घर की परंपरा के अनुसार,
मृतक के वंशज उनकी स्मृति में अपनी प्रिय वस्तु का त्याग किया करते थे।
मैं आज के बाद बैंगनी रंग नही पहनूँगा।” बड़ा बेटा बोला ।
वैसे भी जिस ऊँचे ओहदे पर वो था, उसे बैंगनी रंग शायद ही कभी पहनना पड़ता। फिर भी सभी ने तारीफें की।..
मँझला कहाँ पीछे रहता, “मैं ज़िदगी भर गुड़ नही खाऊँगा।”
ये जानते हुए भी कि उसे गुड़ की एलर्जी है, पिता ने
सांत्वना की साँस छोड़ी।
अब सबकी निगाहें छोटे पर थी। वो स्तब्ध सा माँ के चित्र को तके जा रहा था। तीनों बेटों की व्यस्तता और अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता के चलते, माँ के अंतिम समय कोई नहीं पहुँच पाया था। सब कुछ जब पिता कर चुके, तब बेटों के चरण घर से लगे।
“मेरे तीन बेटे और एक पति, चारों के कंधों पर चढ़कर श्मशान जाऊँगी मैं।” माँ की ये लाड़ भरी गर्वोक्ति कितनी ही बार सुनी थी उसने और आज उसका खोखलापन भी देख लिया ।
“बोलिये Rajuजी,” पंडितजी की आवाज़ से
उसकी तंद्रा भंग हुई।………
आप किस वस्तु का त्याग करेंगे अपनी माता की स्मृति में ?”
बिना सोचे वो बोल ही तो पड़ा था, “पंड़ितजी, मैं अपने थोड़े से काम का त्याग करूंगा, थोड़ा समय बचाऊंगा और अपने पिताजी को अपने साथ ले
जाऊंगा।”और पिता ने लोक-लाज त्यागकर बेटे की गोद में सिर दे दिया था।

नव नंदन प्रसाद

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गुस्से को नियंत्रित करने का
◆ एक सुंदर उदाहरण ◆
•┈┈┈•✦✿✦•┈┈┈• एक वकील ने सुनाया

📍 यह हृदयस्पर्शी किस्सा 📍 मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था,

एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा.
हाथ में कागज़ों का बंडल,
धूप में काला हुआ चेहरा,
बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े ,
जिनमें मिट्टी लगी थी.उसने कहा ~ उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है. बताइए, क्या-क्या कागज़ और चाहिए ? कितना खर्चा लगेगा ? मैंने उन्हें बैठने को कहा.

रग्घू , पानी दे इधर. मैंने आवाज़ लगाई.

वो कुर्सी पर बैठे. उनके सारे कागजात
मैंने देखे. उनसे सारी जानकारी ली.
आधा-पौना घंटा गुजर गया.

मैं इन कागज़ो को देख लेता हूँ.
आपके केस पर विचार करेंगे.
आप ऐसा कीजिए, बाबा,
शनिवार को मिलिए मुझसे.

चार दिन बाद वो फिर से आए
वैसे ही कपड़े.
बहुत डेस्परेट लग रहे थे.अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत. मैंने उन्हें बैठने का कहा. वो बैठे. ऑफिस में अजीब सी खामोशी थी.

मैंने बात की शुरुआत की ~ बाबा,
मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए.
आप दोनों भाई, एक बहन.
माँ-बाप बचपन में ही गुजर गए.

तुम नौवीं पास. छोटा भाई इंजिनियर. आपने कहा, कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा. लोगों के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया. कभी अंग भर कपड़ा और

पेट भर खाना … आपको मिला नहीं.
पर भाई के पढ़ाई के लिए …
पैसा कम नहीं होने दिया.एक बार खेलते-खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए. लहूलुहान हो गया आपका भाई. फिर आप उसे कंधे पर उठा कर

5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए.
सही देखा जाए, तो आपकी
उम्र भी नहीं थी ये समझने की,
पर भाई में जान बसी थी आपकी.
माँ-बाप के बाद …
मैं ही इसका सब कुछ.
ये भावना थी आपके मन में.

फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में
अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया.
आपका दिल खुशी से भरा हुआ था.
फिर आपने जी तोड़ मेहनत की.

80,000 की सालाना फीस भरने के
लिए आपने रात-दिन एक कर दिया.
बीवी के गहने गिरवी रख के,
कभी साहूकार से पैसा ले कर
आपने उसकी हर जरूरत पूरी की. फिर अचानक उसे ....

किडनी की तकलीफ शुरू हो गई.
दवाखाने गए, देवभगवान गए,
डॉक्टर ने किडनी निकालने को कहा,
तुमने अगले मिनट
अपनी किडनी उसे दे दी.कहा ~ कल तुझे अफसर बनना है, नौकरी करनी है, कहाँ-कहाँ घूमेगा ... बीमार शरीर लेेकर. मुझे तो गाँव में ही रहना है, एक किडनी भी बहुत है मुझे, ये कह कर किडनी दे दी उसे.

फिर भाई …
मास्टर्स के लिए हॉस्टल में रहने गया.
लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई
तैयार हुई, भाई को देने जाओ,

तीज त्यौहार हो, भाई को कपड़े करो.
घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर.
तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए.
हाथ का निवाला ….
पहले भाई को खिलाया तुमने.
फिर वो मास्टर्स पास हुआ,
तुमने गाँव को खाना खिलाया. फिर उसने शादी कर ली. तुम सिर्फ समय पर वहाँ गए. उसीके कॉलेज की लड़की, जो दिखने में एकदम सुंदर थी.

भाई की नौकरी लगी. उसकी शादी हुई,
अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था.
पर किसी की …. नज़र लग गई,
आपके इस प्यार को. शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया. पूछा तो कहता है ~ मैंने बीवी को वचन दिया है. घर में पैसा देता नहीं,

पूछा तो कहता है ~ कर्ज़ा सिर पर है. पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा. पैसे कहाँ से आए ? पूछा तो कहता है ~ कर्ज लिया है.

मैंने मना किया, तो कहता है ~ भाई,
तुझे कुछ नहीं मालूम,
तू निरा गंवार ही रह गया.
अब तुम्हारा भाई चाहता है …
गाँव की आधी खेती बेच कर
उसे पैसा दे दिया जाए.
📍
इतना कह कर मैं रुका.
रग्घू की लाई चाय की प्याली
मैंने मुँह से लगाई.तुम चाहते हो ... भाई ने जो माँगा,

वो उसे ना दे कर, उसके ही फ्लैट पर
स्टे लगाया जाए.
क्या यही चाहते हो तुम ? वो तुरंत बोला ~ हाँ. मैंने कहा ~ हम स्टे लेे सकते हैं. भाई की प्रॉपर्टी में हिस्सा भी माँग सकते हैं. लेकिन ... तुमने उसके लिए जो खून-पसीना एक किया है, वो नहीं मिलेगा. तुम्हारी दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी. तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है, वो भी वापस नहीं मिलेगी.

मुझे लगता है , इन सब चीजो के सामने
उस फ्लैट की कीमत शून्य है.
भाई की नीयत फिर गई,
वो अपने रास्ते चला गया.
अब तुम भी
उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना.
वो भिखारी निकला,
तुम दिलदार थे. दिलदार ही रहो.
तुम्हारा हाथ ऊपर था, ऊपर ही रखो. कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ-लिखाओ.

पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया.
इसका मतलब … तुम्हारे बच्चे भी
ऐसा ही करेंगे , ये तो नहीं होता. वो मेरे मुँह को ताकने लगा. उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए, और आँखें पोंछते हुए कहा ~ चलता हूँ वकील साहब ..!! उसकी रूलाई फूट रही थी, और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था. इस बात को अरसा गुजर गया.

📍
कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया.
कलमों में सफेदी झाँक रही थी.
साथ में एक नौजवान था, हाथ में थैली. मैंने कहा ~ बाबा, बैठो. उसने कहा ~ वकील साहब,

बैठने नहीं आया, मिठाई खिलाने आया हूँ.
ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है,
कल ही गाँव आया है.
अब वहाँ मकान बना लिया है.
थोड़ी-थोड़ी कर के 10–12 एकड़
खेती खरीद ली है.
मैं उसके चेहरे से टपकती हुई खुशी को
महसूस कर रहा था. वकील साहब, आपने मुझे कहा,

कोर्ट-कचहरी के चक्कर में मत लगो.
गाँव में सब लोग मुझे
भाई के खिलाफ उकसा रहे थे.
मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली.
मैंने अपने बच्चों को लाइन से लगाया,
और भाई के पीछे
अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं होने दी.
कल भाई भी आ कर पाँव छू के गया.
माफ कर दे मुझे … ऐसा कह गया.

मेरे हाथ का पेड़ा हाथ में ही रह गया.
मेरे आँसू टपक ही गए आखिर ….

गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए,
तो कभी भी …
पछताने की जरूरत नहीं पड़े.

इसे कोई समझे, और अमल करे
तभी सफल होगा. •┈┈┈•✦✿✦•┈┈┈•

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╭ 🌸 ╯ प्रेषक ~ शिव शुक्ल ~ ‘शिशु’
┗╯\╲☆ ● ════════❥ ❥ ❥

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एक मित्र ने भेजा था पसंद आया तो आप सब के बीच रख रहा हुं

थोड़ा समय लगेगा लेकिन पढ़ना जरूर, आंसू आ जाए तो जान लेना आपकी भावनाएं जीवित हैं ….
बात बहुत पुरानी है।
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आठ-दस साल पहले की है ।
मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था।

उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था
.
और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।

मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे।

हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया।
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पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी।

हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा।

मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए।

बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, “आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।”

मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता।

मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं।
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पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है।

मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है।

खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे।

मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं।

बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा।

मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो?

उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं।

मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे?

वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं।

कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।

मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था।

मैं चुपचाप उसे सुनता रहा।

फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया।

मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा।

वो चुपचाप मुझे देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है।

वो चुप रहा।

मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो?

अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब?

मैंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते।

उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते।

देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो,
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लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो।

मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा,

और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।

मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी?
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हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे?

भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो।

मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा।

पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए।

वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था।

मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है।
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क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं,

ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता।

यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है?

मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है।
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बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं तनहा खाना खाता हूं।
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रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहींं आता कि गड़बड़ी कहां है?

मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते तो तो करो।
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देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है।

मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। निस्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं।

वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा।

मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया।

बाबू ने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया।

कल दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला।

उसी में एक नंबर से फोन आया, “रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।”

मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी।

आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।

मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं?

उसने खुश होकर कहा, “साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा।
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मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता।
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सब अपने में व्यस्त हैं। मैं

साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी।

वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली,

कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी।

रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए।

साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं।

साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।

अगल महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है।

अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे।

मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे?

तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है।

सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी।

आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है।
.
बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे।

वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा।

लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं

पसंद आए तो अपनें अज़ीज़ दोस्तों को जरुर भेजें एंव इनसांनीयत की भावना को आगे बढ़ाएँ

पैसा इन्सान के लिए बनाया गया है, इन्सान पैैसै के लिए नहीं बनाया गया है!!

“”” जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है,, कंधे पर रखा हुआ हाथ ही काफी है,,,,
.
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,, क्योंकि अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है *** । ।

अगर आपके दिल को छुआ हो तो इस मैसेज से कुछ सीखने की कोशिश करना ,,
शायद आपकी दुनिया भी बदल जाये ।।।

z*अगर मरने के बाद भी जीना चाहो तो एक काम जरूर करना, पढ़ने लायक कुछ लिख जाना या लिखने लायक कुछ कर जाना I
.
याद रखना, पैसा तो सबके पास हैं, किसी के पास कम है, तो किसी के पास ज्यादा है,ये सोचो कि रिश्ते किसके ज्यादा है।।
🙏🙏🌹🌹💐💐

प्रशांत मणि त्रिपाठी

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🚩🚩🚩🚩जय श्री राम🚩🚩🚩🚩
,प्राचीन काल में एक राजा का यह नियम था कि वह अनगिनत संन्यासियों को दान देने के बाद ही भोजन ग्रहण करता था. एक दिन नियत समय से पहले ही एक
संन्यासी अपना छोटा सा भिक्षापात्र लेकर द्वार पर आ खड़ा हुआ. उसने राजा से कहा – “राजन, यदि संभव
हो तो मेरे इस छोटे से पात्र में भी कुछ भी डाल दें.”

याचक के यह शब्द राजा को खटक गए पर वह उसे कुछ भी नहीं कह सकता था. उसने अपने सेवकों से कहा कि उस पात्र को सोने के सिक्कों से भर दिया जाय. जैसे ही उस पात्र में सोने के सिक्के डाले गए, वे उसमें
गिरकर गायब हो गए. ऐसा बार-बार हुआ. शाम तक राजा का पूरा खजाना खाली हो गया पर वह पात्र रिक्त ही रहा. अंततः राजा ही याचक स्वरूप हाथ जोड़े आया और उसने संन्यासी से पूछा – “मुझे क्षमा कर दें, मैं
समझता था कि मेरे द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं जा सकता. अब कृपया इस पात्र का रहस्य भी मुझे
बताएं. यह कभी भरता क्यों नहीं?”

*संन्यासी ने कहा – “यह पात्र मनुष्य के ह्रदय से बना है. इस संसार की कोई वस्तु मनुष्य के ह्रदय को नहीं भर सकती. मनुष्य कितना ही नाम, यश, शक्ति, धन, सौंदर्य, और सुख अर्जित कर ले पर यह हमेशा और की ही मांग करता है. केवल ईश्वरीय प्रेम ही इसे भरने में सक्षम है।
राम राम जी

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एक सहेली ने दूसरी सहेली से पूछा:- बच्चा पैदा होने की खुशी में तुम्हारे पति ने तुम्हें क्या तोहफा दिया ?
सहेली ने कहा – कुछ भी नहीं!
उसने सवाल करते हुए पूछा कि क्या ये अच्छी बात है ? क्या उस की नज़र में तुम्हारी कोई कीमत नहीं ?
लफ्ज़ों का ये ज़हरीला बम गिरा कर वह सहेली दूसरी सहेली को अपनी फिक्र में छोड़कर चलती बनी।।
थोड़ी देर बाद शाम के वक्त उसका पति घर आया और पत्नी का मुंह लटका हुआ पाया।। फिर दोनों में झगड़ा हुआ।।
एक दूसरे को लानतें भेजी।। मारपीट हुई, और आखिर पति पत्नी में तलाक हो गया।।
जानते हैं प्रॉब्लम की शुरुआत कहां से हुई ? उस फिजूल जुमले से जो उसका हालचाल जानने आई सहेली ने कहा था।।
रवि ने अपने जिगरी दोस्त पवन से पूछा:- तुम कहां काम करते हो?
पवन- फला दुकान में।। रवि- कितनी तनख्वाह देता है मालिक?
पवन-18 हजार।।
रवि-18000 रुपये बस, तुम्हारी जिंदगी कैसे कटती है इतने पैसों में ?
पवन- (गहरी सांस खींचते हुए)- बस यार क्या बताऊं।।
मीटिंग खत्म हुई, कुछ दिनों के बाद पवन अब अपने काम से बेरूखा हो गया।। और तनख्वाह बढ़ाने की डिमांड कर दी।। जिसे मालिक ने रद्द कर दिया।। पवन ने जॉब छोड़ दी और बेरोजगार हो गया।। पहले उसके पास काम था अब काम नहीं रहा।।
एक साहब ने एक शख्स से कहा जो अपने बेटे से अलग रहता था।। तुम्हारा बेटा तुमसे बहुत कम मिलने आता है।। क्या उसे तुमसे मोहब्बत नहीं रही? बाप ने कहा बेटा ज्यादा व्यस्त रहता है, उसका काम का शेड्यूल बहुत सख्त है।। उसके बीवी बच्चे हैं, उसे बहुत कम वक्त मिलता है।।
पहला आदमी बोला- वाह!! यह क्या बात हुई, तुमने उसे पाला-पोसा उसकी हर ख्वाहिश पूरी की, अब उसको बुढ़ापे में व्यस्तता की वजह से मिलने का वक्त नहीं मिलता है।। तो यह ना मिलने का बहाना है।।
इस बातचीत के बाद बाप के दिल में बेटे के प्रति शंका पैदा हो गई।। बेटा जब भी मिलने आता वो ये ही सोचता रहता कि उसके पास सबके लिए वक्त है सिवाय मेरे।।
याद रखिए जुबान से निकले शब्द दूसरे पर बड़ा गहरा असर डाल देते हैं।। बेशक कुछ लोगों की जुबानों से शैतानी बोल निकलते हैं।। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत से सवाल हमें बहुत मासूम लगते हैं।। जैसे-
तुमने यह क्यों नहीं खरीदा।।
तुम्हारे पास यह क्यों नहीं है।।
तुम इस शख्स के साथ पूरी जिंदगी कैसे चल सकती हो।।
तुम उसे कैसे मान सकते हो।। वगैरा वगैरा।।
इस तरह के बेमतलबी फिजूल के सवाल नादानी में या बिना मकसद के हम पूछ बैठते हैं।।
जबकि हम यह भूल जाते हैं कि हमारे ये सवाल सुनने वाले के दिल में नफरत या मोहब्बत का कौन सा बीज बो रहे हैं।।
आज के दौर में हमारे इर्द-गिर्द, समाज या घरों में जो टेंशन टाइट होती जा रही है, उनकी जड़ तक जाया जाए तो अक्सर उसके पीछे किसी और का हाथ होता है।। वो ये नहीं जानते कि नादानी में या जानबूझकर बोले जाने वाले जुमले किसी की ज़िंदगी को तबाह कर सकते हैं।।
ऐसी हवा फैलाने वाले हम ना बनें।। लोगों के घरों में अंधे बनकर जाओ और वहां से गूंगे बनकर निकलो।।

शर्मा

Posted in संस्कृत साहित्य

अंग्रेजी में ‘THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG’ एक प्रसिद्ध वाक्य है।

कहा जाता है कि इसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए , जबकि यदि हम ध्यान से देखे तो आप पायेंगे कि , अंग्रेजी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उपलब्ध हैं, जबकि उपरोक्त वाक्य में 33 अक्षर प्रयोग किये गए हैं, जिसमे चार बार O का प्रयोग A, E, U तथा R अक्षर के क्रमशः 2 बार प्रयोग दिख रहे हैं ।अपितु अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। आप किसी भी भाषा को उठा के देखिए, आपको कभी भी संस्कृत जितनी खूबसूरत और समृद्ध भाषा देखने को नहीं मिलेगी । संस्कृत वर्णमाला के सभी अक्षर एक श्लोक में व्यवस्थित क्रम में देखने को मिल जाएगा
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोऽटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोऽरिल्वाशिषां सह।।

अनुवाद – पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सृजन कर्ता कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

संस्कृत भाषा वृहद और समृद्ध भाषा है, इसे ऐसे ही देववाणी नहीं कहा जाता है । आइये कुछ संस्कृत के श्लोकों को देखते हैं –

क्या किसी भाषा मे सिर्फ एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है ??
जवाब है ,संस्कृत को छोड़कर अन्य किसी भाषा मे ऐसा करना असंभव है ।
उदाहरण –

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥

अनुवाद : हे नाना मुख वाले (नानानन)! वह निश्चित ही (ननु) मनुष्य नहीं है, जो अपने से कमजोर से भी पराजित हो जाऐ। और वह भी मनुष्य नहीं है (ना-अना) जो अपने से कमजोर को मारे (नुन्नोनो)। जिसका नेता पराजित न हुआ हो ,वह हार जाने के बाद भी अपराजित है (नुन्नोऽनुन्नो)। जो पूर्णतः पराजित को भी मार देता है (नुन्ननुन्ननुत्), वह पापरहित नहीं है (नानेना)।

उपरोक्त एक प्रचलित उदाहरण है ।चलिए अन्य को देखते हैं –

दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः
दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः

अनुवाद :
दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले,
दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले,
राक्षसों का खण्डन करने वाले ने, शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।

एक अन्य देखिए –
कः कौ के केककेकाकः काककाकाककः ककः।
काकः काकः ककः काकः कुकाकः काककः कुकः ॥
काककाक ककाकाक कुकाकाक ककाक क।
कुककाकाक काकाक कौकाकाक कुकाकक ॥

अनुवाद – परब्रह्म (कः) [श्री राम] पृथ्वी (कौ) और साकेतलोक (के) में [दोनों स्थानों पर] सुशोभित हो रहे हैं। उनसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में आनन्द निःसृत होता है। वह मयूर की केकी (केककेकाकः) एवं काक (काकभुशुण्डि) की काँव-काँव (काककाकाककः) में आनन्द और हर्ष की अनुभूति करते हैं। उनसे समस्त लोकों (ककः) के लिए सुख का प्रादुर्भाव होता है। उनके लिए [वनवास के] दुःख भी सुख (काकः) हैं। उनका काक (काकः) [काकभुशुण्डि] प्रशंसनीय है। उनसे ब्रह्मा (ककः) को भी परमानन्द की प्राप्ति होती है। वह [अपने भक्तों को] पुकारते (काकः) हैं। उनसे कूका अथवा सीता (कुकाकः) को भी आमोद प्राप्त होता है। वह अपने काक [काकभुशुण्डि] को पुकारते (काककः) हैं , और उनसे सांसारिक फलों एवं मुक्ति का आनन्द (कुकः) प्रकट होता है। हे मेरे एकमात्र प्रभु ! आप जिनसे [जयंत] काक के (काककाक) शीश पर दुःख [रूपी दण्ड प्रदान किया गया] था; आप जिनसे समस्त प्राणियों (कका) में आनन्द निर्झरित होता है; कृपया पधारें, कृपया पधारें (आक आक)। हे एकमात्र प्रभु! जिनसे सीता (कुकाक) प्रमुदित हैं; कृपया पधारें (आक)। हे मेरे एकमात्र स्वामी! जिनसे ब्रह्माण्ड (कक) के लिए सुख है; कृपया आ जाइए (आक)। हे भगवन (क)! हे एकमात्र प्रभु ! जो नश्वर संसार (कुकक) में आनन्द खोज रहे व्यक्तियों को स्वयं अपनी ओर आने का आमंत्रण देते हैं; कृपया आ जाएँ, कृपया पधारें (आक आक)। हे मेरे एकमात्र नाथ ! जिनसे ब्रह्मा एवं विष्णु (काक) दोनों को आनन्द है; कृपया आ जाइए (आक)। हे एक ! जिनसे ही भूलोक (कौक) पर सुख है; कृपया पधारें, कृपया पधारें (आक आक)। हे एकमात्र प्रभु ! जो (रक्षा हेतु) दुष्ट काक द्वारा पुकारे जाते हैं (कुकाकक) ।

लोलालालीललालोल लीलालालाललालल।
लेलेलेल ललालील लाल लोलील लालल ॥

अनुवाद – हे एकमात्र प्रभु! जो अपने घुँघराले केशों की लटों की एक पंक्ति के साथ (लोलालालीलल) क्रीड़ारत हैं; जो कदापि परिवर्तित नहीं होते (अलोल); जिनका मुख [बाल] लीलाओं में श्लेष्मा से परिपूर्ण है (लीलालालाललालल); जो [शिव धनुर्भंग] क्रीड़ा में पृथ्वी की सम्पत्ति [सीता] को स्वीकार करते हैं (लेलेलेल); जो मर्त्यजनों की विविध सांसारिक कामनाओं का नाश करते हैं (ललालील), हे बालक रूप राम! जो प्राणियों के चंचल प्रकृति वाले स्वभाव को विनष्ट करते हैं (लोलील); [ऐसे आप सदैव मेरे मानस में] आनन्द करें (लालल)।

क्या किसी भाषा मे सिर्फ दो अक्षरों से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है ??
जवाब है संस्कृत को छोड़कर अन्य किसी भाषा में ऐसा करना असंभव है ।
उदाहरण –
भूरिभिर्भारिभिर्भीराभूभारैरभिरेभिरे
भेरीरे भिभिरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिभा: ।

अनुवाद – निर्भय हाथी ;जो की भूमि पर भार स्वरूप लगता है ,अपने वजन के चलते, जिसकी आवाज नगाड़े की टेरेह है और जो काले बादलों सा है ,वह दूसरे दुश्मन हाथी पर आक्रमण कर रहा है।

अन्य उदाहरण –
क्रोरारिकारी कोरेककारक कारिकाकर ।
कोरकाकारकरक: करीर कर्करोऽकर्रुक ॥

अनुवाद – क्रूर शत्रुओं को नष्ट करने वाला, भूमि का एक कर्ता, दुष्टों को यातना देने वाला, कमलमुकुलवत ,रमणीय हाथ वाला, हाथियों को फेंकने वाला , रण में कर्कश, सूर्य के समान तेजस्वी (था) ।

पुनः…..क्या किसी भाषा मे सिर्फ तीन अक्षरों से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है ?
जवाब है संस्कृत को छोड़कर अन्य किसी भाषा मे ऐसा करना असंभव है –

उदाहरण -देवानां नन्दनो देवो नोदनो वेदनिंदिनां
दिवं दुदाव नादेन दाने दानवनंदिनः ।।

वह परमात्मा ( विष्णु) जो दूसरे देवों को सुख प्रदान करता है और जो वेदों को नहीं मानते उनको कष्ट प्रदान करता है। वह स्वर्ग को उस ध्वनि नाद से भर देता है ,जिस तरह के नाद से उसने दानव (हिरण्यकशिपु ) को मारा था।
निम्न छंद में पहला चरण ही चारों चरणों में चार बार आवृत्त हुआ है ,लेकिन अर्थ अलग-अलग हैं, जो यमक अलंकार का लक्षण है। इसीलिए ये महायमक संज्ञा का एक विशिष्ट उदाहरण है –

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जतीशमार्गणा:।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा:॥

अनुवाद – पृथ्वीपति अर्जुन के बाण विस्तार को प्राप्त होने लगे ,जब कि शिव जी के बाण भंग होने लगे। राक्षसों के हंता प्रथम गण विस्मित होने लगे तथा शिव का ध्यान करने वाले देवता एवं ऋषिगण (इसे देखने के लिए) पक्षियों के मार्गवाले आकाश-मंडल में एकत्र होने लगे।

एक अन्य विशिष्ट शब्द संयोजन –
जजौजोजाजिजिज्जाजी तं ततोऽतितताततुत् ।
भाभोऽभीभाभिभूभाभू- रारारिररिरीररः ॥

अनुवाद – महान योद्धा कई युद्धों के विजेता,शुक्र और वृहस्पति के समान तेजस्वी, शत्रुओं के नाशक बलराम, रणक्षेत्र की ओर ऐसे चले ,मानो चतुरंगिणी सेना से युक्त शत्रुओं की गति को अवरुद्ध करता हुआ शेर चला आ रहा हो।

तो मेरे प्रिय बंधु तुलना करने के लिए समकक्ष होने की अनिवार्यता होती है।