
पुराने व्यापारियों की एक प्रथा थी कि वे सुबह दुकान खोलते ही एक छोटी-सी कुर्सी दुकान के बाहर रख देते थे। ज्यों ही पहला ग्राहक आता, दुकानदार कुर्सी को उस जगह से उठाकर दुकान के अंदर रख देता था।
लेकिन जब दूसरा ग्राहक आता तो दुकानदार बाज़ार पर एक नज़र डालता और यदि किसी दुकान के बाहर कुर्सी अभी भी रखी होती तो वह ग्राहक से कहता-‘’आपकी ज़रूरत की ची ज़ उस दुकान से मिलेगी। मैं सुबह की बोहनी कर चुका हूँ।’’
किसी कुर्सी का दुकान के बाहर रखे होने का अर्थ था कि अभी तक दुकानदार ने बोहनी नहीं की है।
यही वजह थी कि जिन व्यापारियों में ऐसा प्रेम-भाव हुआ करता थी, उन पर ईश्वरीय कृपा हमेशा बनी रहती थी।
सनातन धर्म की यही विशेषता है कि वह समस्त विश्व का कल्याण चाहता है।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। (महोपनिषद्,अध्याय ४,श्लोक ७१)