Posted in भारत गौरव - Mera Bharat Mahan

फार कमी जणांना माहीत असेल
पुढच्या पिढीला पण माहीत करून द्या…

🚩 छत्रपती शिवाजी महाराज🚩

शिवाजी महाराजांचे 7 घोडे –
1- मोती
2- विश्वास
3- तुरंगी
4- इंद्रायणी
5- गाजर
6- रणभीर
7- कृष्णा- शेवटच्या काळातील पांढरा घोडा. महाराज राज्याभिषेकांनंतर या वर बसले.
शिवाजी महाराज घोड्याचा वापर निर्णायक प्रसंगीच करत असत.

छत्रपती शिवरायांचा आहार साधा होता.
संपूर्ण जीवन निर्व्यसनी. मोहिमेच्यावेळी तंबूत झोपणे. दैनंदीन पोशाख साधा परंतु दरबारी पोशाख राजेशाही असे. काळी दाढी, मिशी, लांब केस, मोठे व तेजस्वी डोळे, भेदक नजर, अत्यंत सावध, बोलतांना स्मित हास्य. उंची पेक्षा हाताची लांबी नजेरेत भरणारी.

मराठी माणसाला स्वाभीमानाने जगायला शिकविले.

जगातील 111 देशात १९फ़ेब्रुवरिला जयंती साजरी केली जाते. 1300 पेक्षा जास्त शब्दांचा पहिला मराठी शब्दकोश शिवरायांनी तयार केला.

छत्रपती शिवाजी महाराज एक
भूगर्भ शाश्रज्ञ-

आज आपण शेतीत 300 फूट बोअर घेऊनही पाणी लागत नाही परंतु आज 400 वर्षांनंतरही महाराष्ट्रातील कुठल्याही किल्यावर गेलो तर 4000 फूट उंचीवर भर उन्हाळ्यात आपल्याला किल्यावरील टाक्यांमधून स्वच्छ पाणी आढळते/दिसते. तीही कुठलीही मोटार किंवा पाईपलाईन नसतांना.

छत्रपती शिवराय “स्वराज्य स्थापनेचा” विचाराशी सहमत असणाऱ्या सर्व जाती धर्माच्या लोकांना एकत्र घेवून लढले. स्वराज्यावर आक्रमण करणारे, फंदफितुरी करणारे मग ते शत्रू असतील, घरातील, स्वराज्यातील, कुठल्या जातीधर्माचे आहेत याचा विचार न करता त्यांना कठोर शासन केले.

जगाच्या इतिहासात एकमेव राजा आहे ज्याच्या दरबारी कधी स्त्री/नर्तकी नाचली नाही, स्वतःसाठी मोठमोठे महाल बांधले नाहीत, सत्तेचा वापर स्वतःच्या किंवा कुटुंबाच्या फायद्यासाठी केला नाही. शिवाजी महाराज “रयतेच स्वराज्य” असाच शब्द वापरत.

छत्रपती शिवाजी महाराज एक इंजिनिअर –

प्रत्येक किल्ल्यावर 2 प्रकारचे हौद/टाके- ओपन आणि भूगर्भात
किल्यावर पाण्याचे हौद/टाक बांधकामात खडक फोडण्यासाठी दारुगोळा/सुरुंग कधीच वापरले नाहीत. त्या ऐवजी नैसर्गीक साधनांचा वापर करून खडक फोडले. म्हणूनच टाक्यांचा आकार एकदम गुण्यात/आयताकृती आहे.
याच टाक्यांमधील पाणी संपूर्ण गडावर वापरले जायचे. ते पाणी स्वच ठेवण्यासाठी नैसर्गीक तंत्राचा वापर केला जायचा.
पाण्याचे टाके खडकाच्या कपारीला ५० ते १५० फुट पर्यंत खोल कोरलेले आहेत. त्यांना आतल्या बाजूला स्टेप दिलेल्या आहेत. एक स्टेप/टप्पा साधारण 25 फुट व जास्त लांब आहे.

रायगड-
राज्यभिषेक दिन 6 जून.
महाराज्यांच्या काळात रायगडावरील लोकसंख्या कमीतकमी 10000 असे.
65 किल्ल्यांच्या गराड्यात रायगड किल्ला.
2000 फुटावर पहिली तटबंदी
4000 फुटावर दुसरी तटबंदी
किल्याची वाट एकदम छोटी.
किल्यावर 300 इमारती होत्या.
10000 लोकांना वर्षभर पाणी मिळावे यासाठी 9 टाके.
रायगडाला 3 बाजूला तटबंदी नव्हती फक्त पश्चिम बाजूला तटबंदी आहे.
किल्याचे एकूण क्षेत्र 1200 एकर.
रायगडावर 42 दुकाने होती. पैकी 21 दुकाने देशी माल विक्री व 21 दुकाने परदेशी माल विक्रीसाठी.

आजच काम आजच झालं पाहिजे, उद्या नाही त्यांचं नाव शिवाजी महाराज.

मराठ्यांचे घोडे एकदा निघाल्यावर एक दमात 100/125 किमी सहज जात कारण मावळे स्वराज्यासाठी लढत होते.

मुघलांचे घोडे 30/35 किमीवर थांबत कारण मुघल सैन्य पगारसाठी काम करत होते.

महाराज्यांच्या अष्टप्रधान मंडळात
८ मंत्री
३० विभाग (12 महाल व १८ कारखाने)
३० विभागात ६०० कर्मचारी
महाराजांकडे येणाऱ्या केसेसचा समोरासमोर निकाल.
रायगडावर काम घेऊन आलेला प्रत्येक व्यक्ती जेवल्याशिवाय गडावरून खाली जाऊ द्यायचा नाही हा नियम.

छत्रपती शिवाजी महाराज –
महाराष्ट्राच्या किनार पट्टीवर १६७१ मध्ये त्या काळात मीठ शेती केली जायची. परंतु इंग्रच, डच, पोर्तुगीज यांनी तिथली शेती मोडीत काढण्यासाठी त्यावेळच्या गोवा प्रांतातून मीठ आणून स्वस्तात विक्री सुरु केली. महाराज्यांच्या हे लक्षात आल्यावर त्यांनी आयात मिठावर कर लावला. त्यामुळे आयात मीठ महाग झाले व आपल्या शेतकऱ्यांच्या मिठाची मागणी वाढली.
म्हणून छत्रपतींना जानता राजा म्हणतात.

वयाच्या 17 व्या शिवरायांच्या करिअरची सुरुवात आर्किटेक्ट म्हणून झाली. त्यांनी स्वतः डिजाईन करून राजगड किल्ला बांधला. एक इंग्रज लिहितो “ शिवाजी महाराज द ग्रेट गॅरिसन- इंजिनिअरचा गुरु” होते. बांधकाम खर्च 22000 कोटी.
या गडावर महाराज 27 वर्ष राहिले.

1982 साली पोर्तुगालची राजधानी लिसबेन येथे गडकोट/किल्ल्यांचे जागतिक प्रदर्शन भरले होते.

त्या प्रदर्शनाच्या निवड समितीने जगातील किल्ले बघितल्यावर “राजगड” किल्यास प्रथम पारितोषिक दिले.
महाराज्यांच्या मृत्यूनंतर 302 वर्षांनीही महाराजांचा सन्मान होतो. 🚩

Posted in संस्कृत साहित्य

शंख कितने प्रकार के होते है और उसके फायदे

शंख के नाम
1समुद्रज,
2 कंबु,
3 सुनाद,
4 पावनध्वनि,
5कंबु
6कंबोज,
7अब्ज,
8 त्रिरेख,
9जलज,
10 अर्णोभव,
11 महानाद,
12 मुखर,
13दीर्घनाद,
14बहुनाद,
15हरिप्रिय,
16सुरचर,
17जलोद्भव,
18 विष्णुप्रिय,
19धवल,
20 स्त्रीविभूषण,
21पाञ्चजन्य,
22अर्णवभव

आदि नामों से भी जाना जाता है। स्वस्थ काया के साथ माया देते हैं शंख। शंख दैवीय के साथ-साथ मायावी भी होते हैं। शंखों का हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान है। घर या मंदिर में शंख कितने और कौन से रखें जाएं इसके बारे में शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके घर में युद्ध से संबंधित शंख रखा हो जबकि आपको जरूरत है शांति और समृद्धि की। शिवलिंग और शालिग्राम की तरह शंख भी कई प्रकार के होते हैं सभी तरह के शंखों का महत्व और कार्य अलग-अलग होता है। समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ। शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। प्रत्येक शंख का गुण अलग अलग माना गया है। कोई शंख विजय दिलाता है, तो कोई धन और समृद्धि। किसी शंख में सुख और शांति देने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है।
इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है।

शंख की प्रसिद्ध….

आपके हाथों की अंगुलियों के प्रथम पोर पर भी शंखाकृति बनी होती है और अंगुलियों के नीचे भी।

शंख के नाम से कई बातें विख्यात है जैसे योग में शंख प्रक्षालन और शंख मुद्रा होती है, तो आयुर्वेद में शंख पुष्पी और शंख भस्म का प्रयोग किया जाता है।

प्राचीनकाल में शंख नाम से एक लिपि भी हुआ करती थी। विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है।

विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है।

ध्यान रहे कि आप यदि अपने घर में इनमें से किसी भी प्रकार का शंख रखना चाहते हैं ‍तो किसी जानकार से पूछकर ही रखे। कितने शंख रखना है और कौन कौन से यह वही बता सकता है।

द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत: दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्

हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं।

इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं-

वामावर्ती,
दक्षिणावर्ती
तथा गणेश शंख
या मध्यवर्ती शंख।

इन तीनों ही प्रकार के शंखों में कई तो चमत्कारिक हैं, तो कई दुर्लभ और बहुत से सुलभ हैं। सभी तरह के शंखों के अलग-अलग नाम हैं।
अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि।

भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था।

दक्षिणावर्ती शंख :

इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं और खुलता है। इस शंख को देवस्वरूप माना गया है।

दक्षिणावर्ती शंख

के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है।

  • दक्षिणावर्ती शंख के प्रकार : दक्षिणावर्ती शंख 2 प्रकार के होते हैं नर और मादा।

जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है।

वामवर्ती शंख :

वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं।

यह शंख आसानी से मिल जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में पैदा होता है। यह शंख घर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने में सक्षम है। इसके घर में रखे होने से ही आसपास का वातावरण शुद्ध होता रहता है। गणेश शंख : समुद्र मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में

सर्वप्रथम गणेश शंख की ही उत्पत्ति हुई थी।

इसे गणेश शंख इसलिए कहते हैं कि इसकी आकृति हू-ब-हू गणेशजी जैसी है। शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त है।

प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है।

श्रीगणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है।

इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। आर्थिक, व्यापारिक, कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है।

कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख :

महाभारत में लगभग सभी योद्धाओं के पास शंख होते थे। उनमें से कुछ योद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे, जैसे भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।।

-महाभारत भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था।

हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है।

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था।

इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है।

इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।

देवदत्त शंख :

यह शंख महाभारत में अर्जुन के पास था। वरुणदेव ने उन्हें यह दिया था। इसका उपयोग दुर्भाग्यनाशक माना गया है।

माना जाता है कि इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस शंख को शक्ति का प्रतीक भी माना गया है।

महालक्ष्मी शंख :

इस शंख को प्राकृतिक रूप से निर्मित श्रीयंत्र भी कहा जाता है इसीलिए इसका नाम महालक्ष्मी शंख है।

माना जाता है कि यह महालक्ष्मी का प्रतीक है। इसकी आवाज सुरीली होती है। माना जाता है कि इस शंख की जिस भी घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है। किसी भी शंख की पूजा इस मंत्र से करना चाहिए-

त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविघृतःकरे देवैश्चपूजितः सर्वथौपाच्चजन्यमनोस्तुते।

पौण्ड्र शंख :

पोंड्रिक या पौण्ड्र शंख महाभारत में ‍भीष्म के पास था।

जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उन्हें यह पौण्‍ड्र शंख रखना चाहिए। इसके घर में रखे होने से मनोबल बढ़ता है। अधिकतर इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना गया है। इसे विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।

कामधेनु शंख :

ये शंख भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के हैं।
एक गोमुखी शंख और दूसरा कामधेनु शंख।

यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं कि कामधेनु शंख की पूजा-अर्चना करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है और सभी तरह की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला भी कहा गया है।

कलियुग में मानव की मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है। कामधेनु शंख हर तरह की मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम है।

महर्षि पुलस्त्य ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस शंख का उपयोग किया था। पौराणिक शास्त्रों में इसके प्रयोग द्वारा धन और समृद्धि स्थायी रूप से बढ़ाई जा सकती है।

कौरी शंख

कौरी शंख अत्यंत ही दुर्लभ शंख है। माना जाता है कि यह जिसके भी घर में होता है उसका भाग्य खुला जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है। प्राचीनकाल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पांसे बनाने में किया जाता रहा है। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है। पीली कौड़िया घर में रखने से धन में वृद्धि होती है।

हीरा शंख :

इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते हैं। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है। यह पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते हैं। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है।

मोती शंख :

यदि आपको घर में सुख और शांति चाहिए तो मोती शंख स्थापित करें। सुख और शांति होगी तभी समृद्धि बढ़ेगी। मोती शंख हृदय रोगनाशक भी माना गया है।

मोती शंख को सफेद कपड़े पर विराजमान करके पूजाघर में इसकी स्थापना करें और प्रतिदिन पूजन करें।

यदि मोती शंख को कारखाने में स्था‍पित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।

यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।

मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज ‘ॐ श्री महालक्ष्मै नम:’ 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।

अनंतविजय शंख :

युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था। अनंत विजय अर्थात अंतहीन जीत। इस शंख के होने से हर कार्य में विजय मिलती जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त के लिए अनंतविजय नामक शंख मिलना दुर्लभ है।

मणि पुष्पक और सुघोषमणि शंख :

नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणि पुष्पक शंख था। मणि पुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है।

वीणा शंख :

विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। यह शंख वीणा समान आकृति का होता है इसीलिए इसे वीणा शंख कहा जाता है। माना जाता है कि इसके जल को पीने से मंदबुद्धि व्‍यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। अगर वाणी में कोई दोष है या बोल नहीं पाते हैं तो इस शंख का जल पीने के साथ-साथ इसे बजाएं भी।

अन्नपूर्णा शंख :

अन्नपूर्णा का अर्थ होता है अन्न की पूर्ति करने वाला या वाली। इस शंख को रखने से हमेशा बरकत बनी रहती है। यह धन और समृद्धि बढ़ाता है। गृहस्थ जीवन-यापन करने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिए।

ऐरावत शंख :

इंद्र के हाथी का नाम ऐरावत है। यह शंख उसी के समान दिखाई देता है इसीलिए इसका नाम ऐरावत है। यह शंख मूलत: सिद्ध और साधना प्राप्ति के लिए माना गया है। माना जाता है कि रंग और रूप को निखारने के लिए भी इस शंख का उपयोग किया जाता है। इस शंख में 24 से 28 घंटे जल भर करके रखें और फिर उसको ग्रहण करेंगे तो चेहरा कांतिमय बन जाएगा। ऐसा प्रतिदिन कुछ दिनों तक करना चाहिए।

विष्णु शंख :

इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है। प्रतिदिन इस शंख के जल का सेवन करने से कई तरह के असाध्य रोग भी मिट जाते हैं।

गरूड़ शंख :

गरूड़ की मुखाकृति समान होने के कारण इसे गरूड़ शंख कहा गया है। यह शंख भी अत्यंत दुर्लभ है। यह शंख भी सुख और समृद्धि देने वाला है। माना जाता है कि इस शंख के घर में होने से किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है।

शंख के अन्य प्रकार :
9
1देव शंख,
2चक्र शंख,
3राक्षस शंख,
5शनि शंख,
6राहु शंख,
7 पंचमुखी शंख,
8वालमपुरी शंख,
9 बुद्ध शंख,
10केतु शंख,
11शेषनाग शंख,
12कच्छप शंख,
13शेर शंख,
14कुबार गदा शंख,
15सुदर्शन शंक आदि।

उपरोक्त सभी तरह के शंख किसी न किसी विशेष कार्य और लाभ के लिए घर में रखे जाते हैं। इनमें से अधिकतर तो दुर्लभ है जिनके यहां मात्र नाम दिए जा रहे हैं। भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे जबकि उन्होंने त्रिपुरासुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था।

नादब्रह्म :

शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को ‘ॐ’ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।

सेहत में फायदेमंद शंख : शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।

शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंखवादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है।

गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वर्द्धक और समृद्धिदायक कहा गया है।

पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं।

नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है।

श्रेष्ठ शंख के लक्षण…..

शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ: अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:

अर्थात निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणों वाला शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए।

क्षीरसागर में शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ में शंख अत्यधिक पावन माना जाता है। इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से किया जाता है।

शंख से वास्तुदोष का निदान : शंख से वास्तुदोष भी मिटाया जा सकता है। शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख लें और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त में इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है।

शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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जो कम्पनी के 70 प्रतिशत का मालिक होने के साथ साथ पूरे जमीन व सम्पत्ति का भी मालिक है उसे अब सर न कह कर और क्या कह कर सम्बोधित करें।

मुझे लगा मेरे दम्भ, अहंकार व आभिजात्य के गुब्बारे की हवा एक क्षण मे निकल कर सेव पिचका गई। किसी तरह लंच समाप्त कर घर लौट रहा हूं। गाड़ी मे हम दोनों चुपचाप बैठे है। मेरी श्रीमती जी मुझसे कहीं ज्यादा शांत व मौन दिख रहीं थी। मै स्पष्ट रूप से समझ पा रहा था कि इस समय उनके मन मे क्या चल रहा है।

हमारे मे दम्भ, गरिमा व अहंकार की मात्रा जितना अधिक है, उतना ही उसके पास इन भावनाओं की कमी है जिससे हमे वेतन आदि मिल रहे हैं। उसका जीवनयापन कितना आडम्बर हीन, कितना विनम्र और कितना साधारण है।

किशोरावस्था मे गुरूजी के बताये ये शब्द अनायास ही बार बार याद आने लगे
“जो नदी जितनी ज्यादा गहरी होती है उसके बहने का शोर उतना ही कम होता है”।
“Indeed Deeper Rivers Flow in
Majestic Silence”!

कितनी सत्यता है गुरूजी के इन शब्दों मे।

मै, जो सुन्दर शिल्पकारी व नक्कासी किये हुये एक लोटे मे रखा जल हूं,.. . आज एक गहरी नदी देख कर लौट रहा हूं ।

🚩🚩जय श्री राम🚩🚩

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🌳🦚आज की कहानी🦚🌳

💐💐गहरी नदी का शांत भाव💐💐

करीब 30 वर्ष के अन्तराल के बाद होटल की लाबी मे मेरे एक पुराने मित्र के साथ मुलाकात हुई। हमेशा से अति साधरण, शांत, शिष्ट, भद्र व विनयी वह मित्र अभी भी देखने मे ठीक वैसा ही दिख रहा था। उसका व्यवहार व आचरण पहले जैसा ही साधारण था। आपसी औपचारिक कुशलक्षेम पूछने के उपरांत मैने प्रस्ताव दिया की मै उसे घर तक अपने गाड़ी मे छोड़ सकता हूं।

असल मे घर छोड़ने के बहाने मेरा आग्रह अपनी मर्सिडीज गाड़ी को उसे दिखाने हेतु ज्यादा था।पर उसने धन्यवाद कहकर कहा कि वह अपनी ही गाड़ी से घर जायेगा। पार्किंग लाट मे कुछ देर साथ चलने के बाद वह अपनी एक साधारण गाड़ी से लौट गया।
अगले हप्ते मैने उसे अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया। वह अपने परिवार के साथ मेरे घर आया। एक बहोत ही आडम्बरहीन मर्यादित परिवार, पर मुझे लगा एक खुशहाल परिवार है।

मेरे मन के किसी कोने मे यह उत्कंठा थी कि डिनर के बहाने मै उसे अपने इतनी सुन्दर और आभिजात्यपूर्ण कीमती
व बहुत आरामदेह, मँहगी और सुंदर विलास की वस्तुओं से भरा हुआ, कीमती साज सज्जा से सुसज्जित घर को दिखा सकूं।
एक दूसरे से वार्तालाप मे बीच बीच में मैं यह भी समझाने की कोशिश करता रहा कि आफिस के काम से प्राय: मुझे कितने ही विदेशों मे आना जाना पड़ता है। इशारों इशारों मे यह भी उसे समझाता रहा कि वह चाहे तो किसी बिजनेस को ज्वायन कर सकता है क्योंकि न जाने कितने धनी लोगों के बीच मेरा उठना बैठना रहता है और उनसे मेरा व्यक्तिगत सम्पर्क भी है। इस सिलसिले में किसी बड़े बिजनेस लोन की व्यवस्था करवाना मेरे लिए एक साधारण सी बात है। लेकिन इन सब बातों मे उसने कोई आग्रह या रुचि नहीं दिखाई।

विदेशों मे भ्रमण के दौरान विभिन्न दर्शनीय स्थलों, अजायबघरों आदि के एल्बम उसे दिखाते हुये मै उसे जताना चाह रहा था कि हमारा जीवन कितना आकर्षक व मनमोहक है। इतना ही नहीं, आनेवाले दिनों मे शहर मे होने वाले आर्टगैलरी प्रदर्शनी की सूचना उसे देकर जैसे मै उसे बताना चाह रहा था कि मेरे पास केवल सुन्दर व कीमती मकान और गाड़ी ही नही है, हमारे पास एक सुन्दर कलाकृतियों को
समझने वाली शिल्पकारी रुचि भी है। एल्बम की सभी फोटो को उसने ध्यान से देखा और प्रशंसा भी किया और लगा कि हमारी उपलब्धियों व सफल जीवन से वह खुश हो रहा था।

फिर उसने कहा इन सबको देखने के साथ साथ कभी कभी पुराने यार दोस्तों, अपने उम्रदराज शिक्षकों, अपने आत्मजनों को भी देखा करो और यदि न देख पाओ तो कम से कम उनकी खबर लिया करो।
मुझे लगा हमारे व्यवसायिक वार्तालाप को उसने बहोत ज्यादा महत्व नहीं दिया। तब मैने बचपन की बातें करना शुरू किया। पूछा हमारे पुराने उम्रदराज शिक्षक और मित्र कैसे हैं, वगैरह वगैरह। यह सुनकर थोड़ा हृदय आद्र भी हुआ कि कुछ शिक्षक और पुराने दोस्त अब इस दुनिया मे नही रहे।

पर मेरी श्रीमती जी को ये सब बीते जमाने की वार्ता बहोत अच्छी नहीं लगी और वह कह बैठी केवल बचपन की यादों मे खोये रहने से आगे नहीं बढ़ा जा सकता, सभी का एक बचपन रहा है, यह कोई बड़ी बात नही है। मुझे यह सुनकर थोड़ा हिचक महसूस हुई। इसके बाद आगे बैठक जमी नही, वे दोनो चले गये।

कुछ हप्तों बाद मेरे मित्र का फोन आया, उसने अपने निवास स्थान का पता बताकर लंच पर हम दोनों को उसने आमंत्रित किया। मेरे श्रीमती जी ने इस पर रूचि नहीं दिखाई पर मेरे बहुत कहने पर जाने को राजी हुईं ।

मित्र के घर आकर देखा कि उसके घर मे ज्यादा कीमती सामानो
की चमक तो नहीं थी पर बहोत सलीके व सुन्दर ढंग से और करीने से घर सजा हुआ था। एकाएक मेरी नजर कोने मे रखे टेबल पर रखे एक सुन्दर गिफ्ट बाक्स पर गयी।यह गिफ्ट बाक्स उसी कम्पनी से आया हुआ लग रहा था जहां मै काम करता हूं। मैने कौतूहल वश मित्र से पूछा, यह तो मेरे कम्पनी का ही गिफ्ट है, क्या तुम मेरे कम्पनी के किसी से परिचित हो। उसने कहा डेविड ने भेजा है। मैने कहा कौन डेविड, तुम्हारा मतलब डेविड थाम्पसन से है क्या? उसने कहा हां वही। मै ने आश्चर्यचकित होकर कहा, वह तो मेरे कम्पनी का एम डी है। उससे तुम कैसे और किस प्रकार परिचित हो। मेरे मन बहोत सारे प्रश्न एक साथ खड़े होने लगे।

जहां तक मुझे पता था, डेविड उस कम्पनी का 30 प्रतिशत मालिक है और बाकि 70 प्रतिशत का मालिक डेविड का कोई एक दोस्त है और कम्पनी के इतने बड़े भूखंड का मालिक भी वही दोस्त ही है। कुछ सेकेंड पहले मेरी कल्पना मे भी नही था कि कुछ पलों मे मुझे इतने बड़े आश्चर्य का सामना करना होगा।

मन के जिस कोने से मैने उसे बार बार अपनी कीमती मर्सिडीज, कीमती मकान व साज सज्जा आदि दिखाकर अपने आभिजात्य के प्रदर्शन का प्रयास कर रहा था, मन के उसी कोने से कब उसे सर सर कहकर सम्बोधित करना शुरू किया, समझ नहीं पा रहा हूं। एक मन बोल रहा है मित्र को सर नही कहना चाहिए और एक मन कह रहा है जो मेरे एम डी सर का दोस्त है, और आगे की कहानी👇

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💞💞💞 रात्रि कहानी 💞💞💞
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एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है, अच्छी आत्माएं इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में, आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब आप ही की संतान हैं।

भगवान ने उन्हें समझाया, ” मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मो से बुरी आत्माएं बन गयीं।

पर भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएं भेदभाव किये जाने की शिकायत करतीं रहीं।

इसपर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले, “ बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खँडहर दिए थे वो सब नष्ट हो जायेंगे, और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण करेंगी। ”

तभी एक आत्मा बोली, “ लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेंगी ?”

“जब पृथ्वी पर कोई इंसान सच या झूठ बोलेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी। सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी, अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम सच बोलने पर बनने वाली ईंटें लोगे या झूठ बोलने पर!”, भगवान ने उत्तर दिया ।

बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर झूठ बोलने वाले अधिक लोग हैं इसलिए अगर उन्होंने झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें ले लीं तो एक विशाल शहर का निर्माण हो सकता है, और उन्होंने भगवान से झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें मांग ली।

दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का शहर विशाल रूप लेने लगा, उन्हें लगातार ईंटों के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बना लिया। वहीँ अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे -धीरे चल रहा था, काफी दिन बीत जाने पर भी उनके शहर का एक ही हिस्सा बन पाया था।

कुछ दिन और ऐसे ही बीते, फिर एक दिन अचानक एक अजीब सी घटना घटी। बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें गायब होने लगीं … दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से,… हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते -देखते उनका शहर खंडहर का रूप लेने लगा। परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पुछा, “ हे प्रभु, हमारे महल से अचानक ये ईंटें गायब क्यों होने लगीं …हमारा महल शहर तो फिर से खंडहर बन गया ?”

भगवान मुस्कुराये और बोले, “ ईंटें गायब होने लगीं!! अच्छा -अच्छा, लगता है जिन लोगों ने झूठ बोला था उनका झूठ पकड़ा गया, और इसीलिए उनके झूठ बोलने से बनी ईंटें भी गायब हो गयीं।

मित्रों,इस कहानी से हमें कई ज़रूरी बातें सीखने को मिलती है, जो हम बचपन से सुनते भी आ रहे हैं पर शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते :

झूठ की उम्र छोटी होती है, आज नहीं तो कल झूठ पकड़ा ही जाता है।

झूठ और बेईमानी के रास्ते पर चल कर सफलता पाना आसान लगता है पर अंत में वो हमें असफल ही बनाता है।

वहीँ सच्चाई से चलने वाले धीरे -धीरे आगे बढ़ते हैं पर उनकी सफलता स्थायी होती है. अतः हमें हमेशा सच्चाई की बुनियाद पर अपने सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बेईमानी की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते है ।

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