
अट्ठारह सौ अट्ठासी में दक्षिण के एक छोटे—से परिवार में एक व्यक्ति पैदा हुआ। पीछे तो वह विश्वविख्यात हुआ। उसका नाम था रामानुजम, जो बहुत गरीब ब्राह्मण घर का था और बहुत थोड़ी उसे शिक्षा मिली थी।
लेकिन उस छोटे से गांव में भी बिना किसी विशेष शिक्षा के रामानुजम की प्रतिभा गणित के साथ अनूठी थी। जो लोग गणित जानते है, उनका कहना है कि मनुष्य जाति के इतिहास में रामानुजम से बड़ा और विशिष्ट गणितज्ञ नहीं हुआ।
बहुत बड़े—बड़े गणितज्ञ हुए हैं, पर वे सब सुशिक्षित थे, उन्हें गणित का प्रशिक्षण मिला था। बड़े गणितज्ञो का साथ—सत्संग उन्हें मिला था, वर्षों की उनकी तैयारी रही थी। लेकिन रामानुजम की न कोई तैयारी थी, न कोई साथ मिला, न कोई शिक्षा मिली, मैट्रिक भी रामानुजम पास नहीं हुआ। और एक छोटे से दफ्तर में मुश्किल से क्लर्की का काम मिला।
लेकिन अचानक लोगों में खबर फैलने लगी कि इसकी गणित के संबंध में कुशलता अदभुत है। किसी ने उसको सुझाव दिया कि कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी के उस समय विश्व के बड़े से बड़े गणितज्ञों में एक प्रोफेसर हार्डी थे, उनको लिखो। उसने पत्र तो नहीं लिखा, ज्यामिति की डेढ़ सौ थ्योरम बनाकर भेज दीं। हार्डी तो चकित रह गया। इतनी कम उम्र के व्यक्ति से, इस तरह के ज्यामिति के सिद्धांतों का कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था। उसने तत्काल रामानुजम को यूरोप बुलाया।
जब रामानुजम कैम्ब्रिज पहुंचा तो हार्डी जो कि बड़े से बड़ा गणितज्ञ था उस समय के विश्व का, अपने को बिलकुल बच्चा समझने लगा रामानुजम के सामने। रामानुजम की क्षमता ऐसी थी, जिसका मस्तिष्क से संबंध नहीं मालूम पड़ता। अगर आपको कोई गणित करने को कहा जाए तो समय लगेगा।
बुद्धि ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकती जिसमें समय न लगे। बुद्धि सोचेगी, हल करेगी, समय व्यतीत होगा, लेकिन रामानुजम को समय ही नहीं लगता था। यहां आप तख्ते पर सवाल लिखेंगे वहां रामानुजम उत्तर देना शुरू कर देगा। आप बोल भी न पाएंगे पूरा, और उत्तर आ जाएगा। बीच में समय का कोई व्यवधान नहीं होगा।
बड़ी कठिनाई खड़ी हो गयी, क्योंकि जिस सवाल को हल करने में बड़े से बड़े गणितज्ञ को छह घण्टे लगेगें ही, फिर भी जरूरी नहीं है कि सही हो, उत्तर सही है या नहीं इसे जांचने में फिर छह घण्टे उसे गुजारने पड़ेंगे। रामानुजम को सवाल दिया गया और वह उत्तर दे देंगे, जैसे सवाल में और उत्तर में कोई समय का क्षण भी व्यतीत नहीं होता।
इससे एक बात तो सिद्ध हो गयी कि रामानुजम बुद्धि के माध्यम से उत्तर नहीं दे रहा है। बुद्धि बहुत बड़ी नहीं है उसके पास, मैट्रिक में वह फेल हुआ था, कोई बुद्धिमत्ता का और लक्षण भी न था। सामान्य जीवन में किसी चीज में भी कोई ऐसी बुद्धिमत्ता नहीं मालूम पड़ती थी। लेकिन बस गणित के संबंध में वह एकदम अतिमानवीय था, मनुष्य से बहुत पार की घटना उसके जीवन में होती थी।
वैसे जल्दी मर गया रामानुजम। उसे क्षय रोग हो गया, वह छत्तीस साल की उम्र में मर गया। जब वह बीमार होकर अस्पताल में पड़ा था तो हार्डी अपने दो तीन गणितज्ञ मित्रों के साथ उसे देखने गया था। उसके दरवाजे पर ही हार्डी ने कार रोकी और भीतर गया। कार का नम्बर रामानुजम को दिखायी पड़ा।
उसने हार्डी से कहा, आश्रर्यजनक है, आपकी कार का जो नम्बर है, ऐसा कोई आंकड़ा ही नहीं है, मनुष्य की गणित की व्यवस्था में। यह आंकडा बड़ा खूबी का है। उसने चार विशेषताएं उस आंकड़े की बतायीं। रामानुजम तो मर गया। हार्डी को छह महीने लगे वह पूरी विशेषता सिद्ध करने में। रामानुजम की तो आकस्मिक नजर पड़ गयी
हार्डी को छह महीने लगे, तब भी वह तीन ही सिद्ध कर पाया, चौथी विशेषता तो असिद्ध ही रह गयी।
हार्डी वसीयत छोड्कर मरा कि मेरे मरने के बाद उस चौथी की खोज जारी रखी जाए, क्योकि रामानुजम ने कहा है तो वह ठीक तो होगी ही। हार्डी के मर जाने के बाईस साल बाद वह चौथी घटना सही सिद्ध हो पायी कि उसने ठीक कहा था। उस आक्के में यह खूबी है!
रामानुजम को जब भी यह गणित की स्थिति घटती थी, तब उसकी दोनों आंखों के बीच में कुछ होना शुरू हो जाता था। उसकी दोनों आंखों की पुतलियां ऊपर चढ़ जाती थीं, योग जिस जगह रामानुजम की आंखें चढ़ जाती थीं, उसको तृतीय नेत्र कहता है।
उसको तीसरी आंख कहता है। अगर वह तीसरी आंख आरम्भ हो जाए, तीसरी आंख सिर्फ उपमा की दृष्टि से कहता हूं सिर्फ इस खयाल से कि वहां से भी कुछ दिखायी पड़ना शुरू होता है, कोई दूसरा ही जगत शुरू हो जाता है।
जैसे कि किसी आदमी के मकान में एक छोटा—सा छेद हो, वह खुल जाए, और आकाश दिखायी पड़ने लगे। जब तक वह छेद न खुला था तो आकाश दिखायी न पड़ रहा था। करीब—करीब हमारी दोनों आंखों के बीच जो भ्रू—मध्य जगह है, वहा वह छेद है जहां से हम इस लोक के बाहर देखना शुरू कर देते हैं।
एक बात तय थी कि जब भी रामानुजम को कुछ ऐसा होता था, उसकी दोनों पुतलियां चढ़ जाती थीं। हार्डी नहीं समझ पाया, पश्चिम के गणितज्ञ नहीं समझ पाए, और अभी गणितज्ञ आगे भी नहीं समझ पाएंगे।
मैं कहता आंखन देखी–(प्रवचन–07)