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⭕️'पति-पत्नी की कहानी..✍️


राजीव आज लता को फिर उसकी औकात दिखा कर दफ्तर के लिए निकल गया और दिखाते भी क्यों ना, वह ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला नहीं थी, वह सिंपल घर में रहने वाली महिला थी

जिसका काम सिर्फ कपड़े धोना, खाना पकाना, बिस्तर लगाना,घर की सफाई करना, बच्चों को अच्छी तालीम शिक्षा देना,

घर के बूढ़े बुजुर्गों का ध्यान रखना इत्यादि था और घर में आए हुए,मेहमानों का स्वागत करना उसका मेन काम था। इन सब काम की क्या अहमियत यह काम तो एक नौकरानी भी कर सकता..
 
यह सोचकर लता ने अपने गालों से आंसुओं के बूंदों को साफ किया,और फिर से अपने कामों में जुड़ गई रोज की तरह राजीव का फोन आया कि वो ऑफिस से देर से आएगा और खाना बाहर ही खायेगा लता समझ गई पिएगा भी बाहर पहले तो लता रोज अक्सर इस बात पर लड़ाई किया करती थी कि वह पीकर घर ना आया करें वह यह कह कर फटकार देता था कि वो मेहनत करता है यार कमाता है वो जो चाहे कर सकता है,

अब वो कह कह कर थक चुकी थी, वह राजीव से मुंह नहीं लगना चाहती थी क्योंकि राजीव उस से कई बार कह चुका था कि तेरी इस घर को कोई जरूरत नहीं है तो जब चाहे घर छोड़कर जा सकती हैं, लता यह सोचकर चुप हो जाती की शायद राजीव ठीक कह रहा है और वह जाएं भी तो कहां ?

मायका बचपन से ही पराया हो जाता है यदि घर की बेटी दो-चार दिन ही रहे तो आस-पड़ोस के लोगों के कान खड़े हो जाते हैं,रिश्ते नाते के लोग चुस्की लेना शुरू कर देते हैं,आखिरकार बात मां-बाप की इज्जत की होती है यह सोचकर अपमान सहकर रहती है,

एक  दिन उसकी तबीयत खराब हो जाती है और उसे कड़ी बुखार हो जाती है,वह घर में लगी ही गोली खा लेती है, और जैसी तैसी करके वह बच्चों की टिफिन और खाना बनाती है, और कमरे में जाकर लेट गई राजीव यह कहकर चला गया कि डॉक्टर को दिखा लेना,शाम तक लता का बुखार,बहुत बढ़ चुका था उसकी तबियत में जरा सा सुधार नहीं था उसने राजीव को फोन किया तो उसने कहा वो घर आते समय दवा लेते आएगा,

राजीव ने दवा लता की पास रख दी और कहा ये ले लो,क्योंकि उसने दवा लाने का इतना महान काम किया था, पत्नियां ऐसा नहीं करती वो दवा देती है और हाथ उसके सिर पर फरेगी, उधर सासुमा ने आज का खाना बनाकर इस बात पर मुहर लगा दी कि वाकई में इस घर को लता की जरूरत नहीं है,रात को लता ने खाना नहीं खाई और बेचैन होकर तड़प रही थी उधर राजीव चैन कि निंद सो रहा था और सोए भी क्यों ना अगले दिन उसे काम पर जो जाना था,अगले दिन राजीव दवा ले लेना कहकर चला गया,उधर सास ने भी बीमारी में हाथ पैर चलाने की नसीहत..देकर महानता का उदाहरण दे दिया, साम तक लता की तबियत और बिगड़ गई,सास ने राजीव को फोन किया तो राजीव ने कहा वो आ रहा है,

एक घण्टे हो गए राजीव अब तक नहीं आए थे,और फिर से राजीव को फोन किया तो लता मौत के करीब पहुंच चुकी थी,राजीव घर आकर लता को अस्पताल ले जाता तब तक लता की मौत हो चुकी थी,अब लता को किसी की जरूरत नहीं थी पर लता की जरूरत सबको थी,आज लता की तेरहवीं हो चुकी थी सब मेहमान जा चुके थे,अब राजीव को दफ्तर जल्दी जाने की जरूरत नहीं था और जाता भी कैसे उसे घर के बहुत से काम जो करना था,जो लता के होने पर उसे पता ही नहीं चलता था,

आज उसे पता लगा कि लता की इस घर की कितनी जरूरत है,आज राजीव को अपने तौलिए, ऑफिस की फाइले, यहां तक कि छोटी छोटी चीजे जिसका उसे आभास भी नहीं था,नहीं मिल रहा था,

उसे पता भी नहीं था कि उसे लता की कितनी जरूरत है,आज लता के जाने के बाद घर घर नहीं चिड़ियाघर लग रहा था,सास की दवाई,बच्चो को समय पर खाना नहीं मिलता,

राजीव को बिस्तर लगा नहीं मिलता,राजीव को घर पर इंतिजार करने वाला कोई नहीं था, उसको कुछ बताने की जरूरत नहीं था की वो कहां हैं,कब आएगा,क्योंकि कोई पूछने वाला ही नहीं है, आज राजीव को लता की कितनी जरूरत है यह बताने के लिए उसे अपनी जान देनी पड़ गई,उसे अपनी अहमियत बताने के लिए इस दुनिया से विदा लेना पड़ा । आज सबने यह मान लिया कि लता को इस घर की नहीं,इस घर को लता की जरूरत है.

☀️’ध्यान दीजिये….’पत्नी की अहमियत न केवल मेरे लिए अहम है, बल्कि परिवार को भी पत्नी ही एकसूत्र में पिरोती है। जिंदगी में चाहे उतार-चढ़ाव आएं या खुशियां, पत्नी का साथ सदैव मिलता है। पारिवारिक रिश्तों की अहम डोर पत्नी के माध्यम से ही मजबूत रहती है। पत्नी का सम्मान और उनका सहयोग जरूरी है।

इसलिए हर पति-पत्नी के जीवन मे एक-दूसरे के प्रति प्यार,विश्वास,समर्पण की भावना होना बहुत जरुरी है.

तो आज आप सभी बताएं कि इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिला ?

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#जय श्री #कृष्ण*
कहानी शीर्षक : अपनी कीमत को कम ना समझे!!

एक बार एक प्रसिद्ध वक्ता किसी शहर में आये हुए थे, और सैंकड़ो लोग उस वक्ता को सुनने आये थे, वक्ता अपने दर्शकों के सामने एक 20 डॉलर मूल्य का नोट अपने हाथ में लिए हुए थे। उसने उस 20 डॉलर के नोट को सभी को दिखाते हुए सभी से पूछा- “कौन कौन इस नोट को पाना चाहता है?”
लगभग सभी ने हाँ में जवाब दिया। उस वक्ता ने कहा मैं आप मे से एक को यह नोट दूँगा, ऐसा कह कर उसने उस नोट को मरोड़ दिया।

उसने पूछा- “अब कौन इसे अभी भी पाना चाहेगा?” अभी भी लगभग सभी हाथ खड़े थे। उसने फिर उस नोट को लेकर अपने जूतों से अच्छे से रगड़ दिया और फिर और मरोड़ भी दिया।

उसने उस नोट को उठाया और दोवारा उसको भीड़ के समक्ष दिखा कर दोबारा पूछा- “अब कौन कौन इसे अभी भी चाहता है”, क्योंकि अब की बार यह गन्दा और मरोड़ा हुआ था। अभी भी लगभग सभी ने अपने हाथ खड़े किये।

यह देख कर वक्ता ने भीड़ को सम्बोद्धित करते हुए कहा की मैंने इस नोट के साथ जाने क्या क्या किया लेकिन फिर भी आप सब इसे पाना चाहते हो, क्योंकि लाख मरोड़ने पर भी इसके मूल्य में परिवर्तन नही आया, अभी भी इसकी कीमत 20 डॉलर की है।

सीख
अधिकतर हमारी जिंदगी भी हमे ऐसे ही मरोड़ और परेशानिया देकर धूल मिट्टी में गन्दा कर देती है, और इस कारण हम अपने आपको कम आंक लेते है, इससे कोई फर्क नही पड़ता, क्या हुआ और क्या होगा, केवल जरुरत है की हम अपनी कीमत को ना भूले और आगे बढे।

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बहुत पुरानी बात है, एक सेठ था दिल का उदार। उसके पास विलासिता की सभी वस्तुएं मौजूद थीं। एक दिन वह संत को अपना बंगला दिखाने लाया।

संत अलमस्त थे और सेठ अपने बड़प्पन की डीगें हांकने में व्यस्त था। संत को उसकी हर बात में अहम् ही नजर आता था। संत ने उसकी मैं-मैं की महामारी मिटाने के उद्देश्य से दीवार पर टंगे मानचित्र को दिखाते हुए पूछा, ‘इसमें तुम्हारा शहर कौन सा है?’

सेठ ने मानचित्र पर एक बिंदु पर उंगली टिकाई। संत ने हैरान मुद्रा में पूछा, इतने बड़े मानचित्र पर तुम्हारा शहर बस इतना सा ही है। क्या तुम इस नक्शे में अपना बंगला बता सकते हो? उसने जबाव दिया, मेरा बंगला इस पर कहां दिखता है? वह तो ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।’

संत ने पूछा, ‘तो फिर अभिमान क्यों?’ शर्मिंदगी के मारे सेठ का सिर झुक गया। वह समझ गया कि नक्शे में उसका नामोनिशान नहीं हैं, फिर वह क्यों फूला फिर रहा है?

अहंकार बुद्धि को खा जाता है। यदि आप कहते हैं ये मेरा हैं ये मैं ही कर सकता हूं। तो आपकी बातों से अहंकार छलकता है। इसलिए ऐसी बातों से हमेशा बचना चाहिए।

मुनेंद्र मिश्रा

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छोटी कहानी पर संदेश बड़ा…

एक लड़का और एक लड़की साथ साथ खेल रहे थे. लड़के के पास संगमरमर के दुकड़े थे और लड़की के पास मिठाई.

लड़के ने लड़की से कहा कि वह् उसे समस्त मिठाई दे दे और बदले में लड़का उसे समस्त संगमरमर के टुकड़े दे देगा.

लड़की तैयार हो गई.

लड़के ने सबसे बड़े और खूबसूरत संगमरमर के टुकड़े अपने पास रख लिए और बाकी टुकड़े उस लड़की को दे दिये. बदले में लड़की ने लड़के को पूरी मिठाई दे दी जैसा कि निश्चित हुआ था.

रात्रि को लड़की तो शांति से सोयी किन्तु लड़के को नींद नहीं आई क्योंकि वह् सोचता रहा कि जैसे उसने कुछ टुकड़े छिपा लिए थे वैसे ही लड़की ने भी कुछ मिठाई छुपा ली होगी.

शिक्षा :

अगर आप किसी सम्बन्ध में अपना 100 प्रतिशत नहीं देते हैं तो आप हमेशा संदेह में रहेंगे कि अन्य व्यक्ति ने उसका 100 प्रतिशत दिया कि नही

मनीष कुमार सोलंकी

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दो शराबी थे , इधर उधर भटकते रहते , काम धाम कुछ करते नहीं थे। दोनों दोस्तों ने सोचा क्यों न हम शराब बनाकर बेचें।

यह भी तय किया कि हम किसी को भी उधार में नहीं पिलायेंगे और खुद भी उधार में नहीं पियेंगे ।

मटका भर शराब बनाई , जाने लगे बेचने ठेके की तरफ । एक के सर पर शराब का मटका था दूसरे की जेब में एक रुपये का सिक्का था,उसने सोचा इसकी पी लूँ , उसने दूसरे दोस्त को सिक्का दिया और एक रुपये की शराब डकार गया ।अब सिक्का दूसरे के पास आ गया, अब मटका दूसरे ने अपने सर पर रख लिया अब उसने भी सोचा मेरे पास भी एक रुपया है, मैं भी पी लूँ ।

अब उसने भी पी ली और मटका अपने सिर में रख लिया।
इस प्रकार सिक्का इधर से उधर घूमता गया , गुलच्छरे उड़ते गए , ठेके जाने से पहले दोनों टुन्न , और मटका खाली हो गया तो दोनों ने बैठकर रोकड़ मिलाई – तो निकला केवल एक ही रुपया….

कभी सोनिया – कभी राहुल
कांग्रेस पार्टी को मरते मरते ऐसे ही मारेगे ।

रामचंद्र आर्य

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આપણીસંસ્કૃતિઆપણો_વારસો

આપણીઅમરકથાઓ

ગોંડલના મહારાજા સર ભગવતસિંહજી એકવખત ઘોડા પર સવાર થઇને કોઇ ગામની મુલાકાતે જઇ રહ્યા હતા.
મહારાજા એકલા જ હતા અને પહેરવેશ પણ સામાન્ય આથી કોઇને ખબર પણ ના પડે કે આ ગોંડલ નરેશ છે.

રસ્તામાં એક બહેન ઘાસનો ભારો નીચે રાખીને બેઠેલા. ઘોડેસવારને આવતા જોયો એટલે એ બહેને હાથ ઉંચો કરીને ઘોડા પર સવાર થયેલા મહારાજાને ઉભા રાખ્યા. મહારાજાએ પણ સામાન્ય માણસની જેમ ઘોડો ઉભો રાખી દીધો અને પુછ્યુ, “બોલો બહેન, શું કામ છે ?” પેલા બહેને કહ્યુ,”ભાઇ આ ઘાસનો ભારો મારા માથા પર ચડાવવામાં મને મદદ કરોને ?”

મહારાજા ભગવતસિંહજી પોતાના હોદાને એક બાજુ રાખીને સામાન્ય માણસની જેમ એ બહેનને ભારો માથા પર મુકવા માટે નીચે ઉતર્યા. પેલી બહેને કહ્યુ,”આપણા ભગાબાપુ જો થાકલા કરી આપે તો કોઇ ભારો ચડાવવા વાળાની મદદની જરૂર ન પડે” મહારાજાએ પોતાનો પરિચય આપ્યા વગર જ પુછ્યુ,”બહેન આ થાકલા એટલે શું ?

“પેલી સ્ત્રીએ વિસ્તારથી સમજાવતા કહ્યુ,” માણસની ઉંચાઇ જેટલા બે મોટા પથ્થર પર એક આડો પથ્થર મુકીને જે તૈયાર કરવામાં આવે એ થાકલો. વટેમાર્ગુ થાક ઉતારવા માથા પરનો ભારો ઉપરના આડા પથ્થર પર રાખીને થોડો વિસામો ખાઇ શકે અને જ્યારે ફરી આગળ વધવુ હોય ત્યારે કોઇ ભારો ચડાવવા વાળાની જરૂર ન પડે. વટેમાર્ગુ પોતે જ ઉપર રાખેલા ભારાને સીધો પોતાના માથા પર લઇ શકે.” માથે ભારો ચડાવીને મહારાજા તો વિદાય થયા.

મહારાજા જ્યારે પોતાનું કામ પતાવીને ગોંડલ પરત આવ્યા એટલે તુરંત જ મુખ્ય ઇજનેરને મળવા માટે બોલાવ્યો. મુખ્ય ઇજનેર આવ્યો એટલે સર ભગવતસિંહજીએ એને થાકલા વાળી વાત કહીને સુચના આપતા કહ્યુ કે રાજ્યના તમામ રસ્તાઓ પર દોઢ માઇલના અંતરે આવા થાકલા ઉભા કરી દો જેથી મારા રાજ્યની કોઇ વ્યક્તિને ભારો ચડાવવા માટે કોઇની રાહ ન જોવી પડે અને કોઇના ઓસીયાળા ના રહેવું પડે. આ થાકલાનો માઇલસ્ટોન તરીકે પણ ઉપયોગ કરો જેથી ઉભા કરેલા થાકલાથી નજીકનું ગામ કેટલું દુર છે એની પણ વટેમાર્ગુને ખબર પડે.

ગોંડલ રાજ્યની પ્રજાના પ્રિય એવા ભગાબાપુએ તૈયાર કરેલા એ થાકલાઓ આજે પણ ગોંડલ રાજ્યના મુખ્ય માર્ગો પર જોવા મળે છે.(ફોટામાં રહેલા આ થાકલાઓ જોઇને બળબળતી બપોરે પણ આંખોને ન વર્ણવી શકાય એવી થંડક મળે છે.) જ્યારે જ્યારે હું મારા ગામ મોવિયા જાવ છું ત્યારે રસ્તામાં આ થાકલાઓ જોઇને એવુ થાય કે આ લોકશાહી કરતા ભગાબાપુની રાજાશાહી કેવી સારી ?

બીલખાના મહારાજાએ એની ડાયરીમાં એવી નોંધ કરેલી છે કે ‘ગોંડલ રાજ્યની હદ ક્યાંથી શરુ થાય અને ક્યાં પુરી થાય એ જોવા માટે તમારે હાથમાં નકશો લેવાની જરુર જ નહિ. આંખ બંધ કરીને ઘોડાગાડીમાં બેસો તો પણ ગોંડલ આવે એટલે તમને ખબર પડી જાય કારણકે સમથળ રસ્તાઓને કારણે રોદા આવતા બંધ થઇ જાય અને ગોંડલની હદ પુરી થતા ફરી રોદા આવવાના શરુ થઇ જાય.’

સર ભગવતસિંહજીના પ્રજાલક્ષી શાશને શત્ શત્ વંદન

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Narrative Building:
अर्थ और महत्व
एक गाँव में एक बनिया और एक कुम्हार था.
कुम्हार ने बनिये से कहा, मैं तो बर्तन बनाता हूँ,
पर गरीब हूँ…
तुम्हारी कौन सी रुपये बनाने की
मशीन है जो तुम इतने अमीर हो?
बनिये ने कहा – तुम भी अपने चाक पर
मिट्टी से रुपये बना सकते हो.
कुम्हार बोला – मिट्टी से मिट्टी के रुपये
ही बनेंगे ना, सचमुच के तो नहीं बनेंगे.
बनिये ने कहा – तुम ऐसा करो, अपने
चाक पर 1000 मिट्टी के रुपये बनाओ,
बदले में मैं उसे सचमुच के रुपयों में
बदल कर दिखाऊँगा.
कुम्हार ज्यादा बहस के मूड में नहीं था…
बात टालने के लिए हाँ कह दी.
महीने भर बाद कुम्हार से बनिये ने फिर
पूछा – क्या हुआ ? तुम पैसे देने वाले थे…
कुम्हार ने कहा – समय नहीं मिला…
थोड़ा काम था, त्योहार बीत जाने दो…
बनाउँगा…
फिर महीने भर बाद चार लोगों के बीच
में बनिये ने कुम्हार को फिर टोका –
क्या हुआ? तुमने हज़ार रुपये नहीं ही
दिए…दो महीने हो गए…
वहां मौजूद एक-आध लोगों को कुम्हार
ने बताया की मिट्टी के रुपयों की बात है।
कुम्हार फिर टाल गया – दे दूँगा, दे दूँगा…
थोड़ी फुरसत मिलने दो.
अब कुम्हार जहाँ चार लोगों के बीच में मिले,
बनिया उसे हज़ार रुपये याद दिलाए…
कुम्हार हमेशा टाल जाए…
लेकिन मिट्टी के रुपयों की बात नहीं उठी.
6 महीने बाद बनिये ने पंचायत बुलाई
और कुम्हार पर हज़ार रुपये की देनदारी
का दावा ठोक दिया.
गाँव में दर्जनों लोग गवाह बन गए जिनके सामने बनिये ने हज़ार रुपये मांगे थे और कुम्हार ने देने को कहा था.
कुम्हार की मिट्टी के रुपयों की कहानी सबको अजीब और बचकानी लगी। एकाध लोगों ने जिन्होंने मिटटी के रुपयों की पुष्टि की वो माइनॉरिटी में हो गए। और पंचायत ने कुम्हार से हज़ार रुपये वसूली का हुक्म सुना दिया…
अब पंचायत छंटने पर बनिये ने समझाया – देखा,
मेरे पास बात बनाने की मशीन है…इस मशीन में मिट्टी के रुपये कैसे सचमुच के रुपये हो जाते हैं, समझ में आया ?
इस कहानी में आप नैतिकता, न्याय और विश्वास के प्रपंचों में ना पड़ें… सिर्फ टेक्निक को देखें…
बनिया जो कर रहा था,
उसे कहते हैं narrative building…
कथ्य निर्माण…
सत्य और तथ्य का निर्माण नहीं हो,
कथ्य का निर्माण हो ही सकता है.
अगर आप अपने आसपास कथ्य निर्माण होते देखते हैं, पर उसकी महत्ता नहीं समझते, उसे चैलेंज नहीं करते तो एकदिन सत्य इसकी कीमत चुकाता है…
हमारे आस-पास ऐसे
कितने ही नैरेटिव बन रहे हैं.
दलित उत्पीड़न के, स्त्री-दासता
और हिंसा के,
बलात्कार की संस्कृति के, बाल-श्रम के,
अल्पसंख्यक की लींचिंग के…
ये सब दुनिया की पंचायत में हम पर
जुर्माना लगाने की तैयारी है.
हम कहते हैं, बोलने से क्या होता है?
कल क्या होगा,
यह इसपर निर्भर करता है कि
आज क्या कहा जा रहा है.
इतने सालों से कांग्रेस ने कोई मेरी
जायदाद उठा कर मुसलमानों को
नहीं दे दी थी…
सिर्फ मुँह से ही सेक्युलर-सेक्युलर बोला था ना…
सिर्फ मुँह से ही RSS को साम्प्रदायिक संगठन बोलते रहे.
बोलने से क्या होता है?
बोलने से कथ्य-निर्माण होता है…
दुनिया में देशों का इतिहास बोलने से,
नैरेटिव बिल्डिंग से बनता बिगड़ता रहा है.
यही तमिल-सिंहली बोल बोल कर
ईसाइयों ने श्रीलंका में गृह-युद्ध करा दिया…
दक्षिण भारत में आर्य -द्रविड़ बोल कर
Sub-Nationalism की फीलिंग पैदा कर दी।
भारत में आदिवासी आंदोलन चला रहे है
केरल, काश्मीर, आसाम, बंगाल की
वर्तमान दुर्दशा इसी कथ्य को नज़र
अंदाज़ करने की वजह।
UN के Human Rights Reports में
भारत के ऊपर सवाल उठाये जाते हैं….
RSS को विदेशी (Even neutral) Publications
में Militant Organizations बताया जा रहा है.
हम अक्सर नैरेटिव का रोल नहीं समझते…
हम इतिहास दूसरे का लिखा पढ़ते हैं,
हमारे धर्मग्रंथों के अनुवाद विदेशी आकर करते हैं.
हमारी वर्ण-व्यवस्था अंग्रेजों के किये वर्गीकरण से
एक कठोर और अपरिवर्तनीय जातिवादी व्यवस्था
में बदल गई है…
हमने अपने नैरेटिव नहीं बनाए हैं…
दूसरों के बनाये हुए नैरेटिव को
सब्सक्राइब किया है…
अगर हम अपना कथ्य निर्माण नहीं करेंगे,
तो सत्य सिर्फ परेशान ही नहीं,
पराजित भी हो जाएगा…
सत्यमेव जयते को अभेद्य अजेय समझना
बहुत बड़ी भूल है।
आज के समय में सत्य बार बार घायल होता है और अपमानित होता है यह सब हमारी संवेदनहीनता के कारण होता है। हमें संवेदनशील और सतर्क रहना होगा।

अग्नि पुत्र

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दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेकों गुलाम हुआ करते थे। उन्हीं में से एक था लुक़मान। लुक़मान था तो सिर्फ एक गुलाम लेकिन वह बड़ा ही चतुर और बुद्धिमान था। उसकी ख्याति दूर दराज़ के इलाकों में फैलने लगी थी। एक दिन इस बात की खबर उसके मालिक को लगी, मालिक ने लुक़मान को बुलाया और कहा- सुनते हैं, कि तुम बहुत बुद्धिमान हो। मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की परीक्षा लेना चाहता हूँ।

अगर तुम इम्तिहान में पास हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी। अच्छा जाओ, एक मरे हुए बकरे को काटो और उसका जो हिस्सा बढ़िया हो, उसे ले आओ। लुक़मान ने आदेश का पालन किया और मरे हुए बकरे की जीभ लाकर मालिक के सामने रख दी। कारण पूछने पर कि जीभ ही क्यों लाया ! लुक़मान ने कहा- अगर शरीर में जीभ अच्छी हो तो सब कुछ अच्छा-ही-अच्छा होता है। मालिक ने आदेश देते हुए कहा- “अच्छा! इसे उठा ले जाओ और अब बकरे का जो हिस्सा बुरा हो उसे ले आओ।”

लुक़मान बाहर गया, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने उसी जीभ को लाकर मालिक के सामने फिर रख दिया। फिर से कारण पूछने पर लुक़मान ने कहा- “अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं तो सब बुरा-ही-बुरा है। “उसने आगे कहते हुए कहा- “मालिक! वाणी तो सभी के पास जन्मजात होती है, परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है…क्या बोलें? कैसे शब्द बोलें, कब बोलें। इस एक कला को बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है और दूसरी बात से झगड़ा होता है।

कड़वी बातों ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किये हैं। इस जीभ ने ही दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाये हैं। जीभ तीन इंच का वो हथियार है जिससे कोई छः फिट के आदमी को भी मार सकता है तो कोई मरते हुए इंसान में भी प्राण फूंक सकता है । संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को ही मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और दुरूपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो सकता है।

“मालिक, लुक़मान की बुद्धिमानी और चतुराई भरी बातों को सुनकर बहुत खुश हुए ; आज उनके गुलाम ने उन्हें एक बहुत बड़ी सीख दी थी और उन्होंने उसे आजाद कर दिया।

रामचंद्र आर्य

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જોગીદાસ ખુમાણ…

જોગીદાસ ખુમાણ ધણહેરમાંથી નીકળ્યા….. એક અઢાર વીસ વર્ષની દિકરીને એટલું પુછ્યું…”બેટા કોઈ છે આજુબાજુમાં..?”
“ના મારા મામાને ત્યાં મોટી થાવ છું. મા-બાપ મરી ગ્યા છે…”
જોગીદાસ ખુમાણે આગળ વાત કરી કે, “બેટા હું એમ નથી કહેતો પણ..
આમ એકલી તું ધણહેરમાં ઢોર ચારે છે તો…
તારી ઈજ્જતની, તારા શીયળની તને બીક નથી લાગતી બેટા…!!”
ત્યારે, એ અઢાર વીસ વર્ષની ધણહેરમાં ઢોર ચારતી દિકરી બોલી હતી કે, “અમારા વિસ્તારમાં જોગીદાસ ખુમાણના બહારવટા છે… બાપુ..
(એ દિકરીને ખબર નથી કે આ જોગીદાસ પોતે છે) કોની તાકાત છે કે, મારી સામે પણ જોઈ શકે…”

ત્યારે આપા જોગીદાસ ખુમાણે સુરજ નારાયણ સામે દ્રષ્ટ્રિ કરી ને બેઈ હાથ ઉંચા કર્યા અને એટલું બોલ્યા કે,
“ભલે ઉગ્યા ભાણ ભાણ તિહારા ભામણા..
મરણ જીવણ લગ માણ રાખજે કશ્યપ રાવ…”
હે…કશ્યપના પુત્ર સુરજનારાયણ.. મારું બહારવટું હાલે કે ના હાલે…. પણ આવી અઢાર વીસ વર્ષની દિકરીઓ જો મારી ઉપર વિશ્વાસ રાખી ને આમ વગડામાં ઢોર ચારતી હોય તો હું જીવું ત્યા સુધી મારી ઈજ્જત આવી ને આવી રાખજે…બાપ.

એવી જ રીતે, તમારી શેરીમાં કે ગામમાં… કે પછી સોસાયટીમાં આવી નાની દિકરીઓ એક વિશ્વાસ રાખતી હોય ને તો એનો વિશ્વાસ તુટે નહીં અને આપણી ભારતીય સભ્યતાની લાજ ન જાય… એટલા માટે, કોઈ એકલી બેન દિકરીને જુઓ ત્યારે સોરઠનાં આ મહાપુરુષ જોગીદાસ ખુમાણને યાદ કરજો અને વિચારજો કે, આપણે તો આવા આદર્શો લઈ ને જીવનારી પ્રજા છીએ… 🙏🏻

નિલેશ દવે

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“सम्मान…..

उफ्फ…… ये दोनों बुढाऊ……कभी ये कभी वो ….जब देखो बहु….जरा चाय …जरा पानी जीना हराम कर दिया दोनों ने…..

मम्मी…. सचमुच दादा दादी आपको बहुत परेशान करते हैं ना……
हां……मोनू बेटा….. पर क्या कर सकते है…. अब है यहां तो झेलना ही पड़ेगा ….

पर क्युं मम्मी… क्युं झेलना पड़ेगा….

तुम नही समझोगे मोहन…. रहने दो बेटा…

मम्मी ….एक काम करते है इन दोनो को चाचा चाची के घर भेज देते है….

कया…..ये वहां दो दिन भी नही रह पायेंगे .. …
और तेरी चाची तो दादी को देखते ही तुनक जाती है और चाचा तो तुम्हारे चाची के पल्ले से ऐसे बँधे हैं कि वो उतना ही सुनते हैं जितना चाची कहती है… वहां इनका कोई गुजारा नही होनेवाला….

तो बुआ को बोल दो ना ये उनके भी तो मम्मी पापा है ना…. वो ही ले जायें कुछ दिनों के लिए इन दोनो को

तु भी ना बड़ा भोला है बेटा….. वहां नही जायेंगे दादा दादी….. ढकोसला करेंगे कि हम तो बेटी के घर का पानी भी नही पी सकते तो वहां जा कर रहेंगे कैसे और अगर रहने को तैयार हो भी गये तो तुम्हारी बुआ के पचासों बहाने निकल आयेंगे….
वो कम थोड़े ना है वो भी तो अपनी मां पर ही गयी है…

क्या मम्मी…. इसका मतलब कोई इन्हे अपने साथ नही रखना चाहता ….
अच्छा एक काम करो मम्मी इन्हे वहां पहुँचा दो…..
वो मैने टीवी पर देखा था कुछ ओल्ड ऐज होम टाइप से है….. अरे वो जो उस दिन मूवी में आ रहा था

अच्छा वो ……वृद्धाआश्रम कहते हैं उसे … ..
सच मैं भी थक जाती हूँ काम कर के….. सुबह उठने से सोने तक इनके नखरे झेलना…
तौबा तौबा… कब तक आखिर .. मैं भी कुछ दिन और देख रही हूँ..नहीं तो तुम्हारे पापा से बात करूँगी कि वो इन दोनो को वहीं छोड़ आये….

हूं….. यही ठीक रहेगा.. …
दादी दिन भर टोकती रहती है.. टीवी मत देखो, मोबाइल मत खेलो….. मैं बच्चा थोड़े ना हूँ.. बड़ा हो रहा हूँ मैं… समझदार हो रहा हूँ.. ये भी कोई बात हुई भला. ….

अरे मेरा राजा बेटा……इतना गुस्सा……
अभी दस साल के ही हो ….और मेरी आँखो के तारे हो तुम….
इतनी जल्दी बड़े हो जाओगे कभी सोचा ही नही था अब देखो तुम बड़े होते जाओगे और हम बूढ़े होते जाएँगे…. फिर तुम्हारी शादी करेंगे.. प्यारी सी दुल्हनियाँ लायेंगे…

नहीं मम्मी प्लीज़…. मैं तो बड़ा हो रहा हूँ पर आप लोग प्लीज़ बूढ़े मत होना ….

हा हा हा….अच्छा क्युं .. ….बेटा बूढ़ा तो सबको ही होना है एक दिन….

पर मम्मी आप लोग बूढ़े हो जाओगे और मेरी वाइफ आयेगी तो उसे भी ऐसे ही परेशान होना पड़ेगा ना.. ..
वो भी तरह तरह के आईडिया सोचेगी कि कैसे आप लोगों को यहां से हटाया जाये.. …
नो मम्मी प्लीज़ नो…..
बूढे होकर आप भी दादी की तरह हो जाओगी और मेरी वाइफ को परेशान करोगी …. .
मैं ऐसा नही होने दूँगा… एक काम करूँगा.. मैं मेरी शादी होते ही आप दोनों के लिए ओल्ड ऐज होम बुक करवा दूँगा जहाँ आप लोग रह सकोगे और मैं और मेरी वाइफ भी चैन से रह लेंगे….

कया ….. हमारा घर है हमारे पास… ..
तुम रहना अपने घर में अपनी वाइफ को लेकर …
और यही करोगे तुम… पाल पोस कर बड़ा कर रहे हैं और तुम हमें वृद्धा आश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हो …
वाह बेटा वाह…

“मम्मी.. मैं कहां कुछ गलत कह रहा हूं दादा दादी ने भी तो पापा बुआ को पाला पोसा ही होगा ना…..
और सभी मां बाप पालते हैं अपने बच्चों को ….
उसमें क्या नया है… . पर अब जब सब बड़े हो गये हैं तो कोई बूढ़े लोगों को अपने पास नही रखना चाहता तो भला मैं क्यूँ रखूँगा…..
आप ही तो कहते हो परेशानी बढ़ाते हैं ये बूढ़े लोग ….
तो मैं भी नही रखूँगा और हां साइंटिस्ट बन कर कोई ऐसी दवा बनाऊँगा जिससे कि मैं कभी बूढ़ा ही ना हो पाऊँ और मेरे बच्चों को कोई ओल्ड ऐज होम ना ढूँढना पड़े ….

अपने बेटे मोनू की बातें सुन मां के शरीर में सिहरन सी दौड़ गयी और जिन आँखो में कुछ देर पहले परेशानी, व्यथा, गुस्सा दिख रहा था उन्ही आँखो में अब शर्म पानी का रूप ले चुका था…..
कुछ ही देर मे अपने दोनों बुजुर्गों के बीच बैठी मां ऐसे प्यार से बैठकर बोल रही थी जैसे कभी कोई मन मे कड़वाहट थी ही नही …..इसके बाद सचमुच कभी गुस्सा की मां नजर नही आई ….अब घर मे सचमुच प्यार सम्मान और शांति थी
एक दोस्त की प्ररेणादायक रचना