🔰 Night story ✅🌝🌝
जीवन का जलता प्रश्न
🌠चाह, चाह और चाह : क्या ऐसे ही स-‘फल’ होगी जिंदगी❓
एक नई खुली दुकान में कोई भी युवक जाकर अपने लिए एक योग्य पत्नी ढूंढ़ सकता था।
एक युवक उस दुकान पर पहुंचा। दुकान के अंदर उसे दो दरवाजे मिले।
एक पर लिखा था, युवा पत्नी; और दूसरे पर लिखा था, अधिक उम्र वाली पत्नी!
युवक ने पहले द्वार पर धक्का लगाया और अंदर पहुंचा।
फिर उसे दो दरवाजे मिले। पत्नी वगैरह कुछ भी न मिली। फिर दो दरवाजे!
पहले पर लिखा था, सुंदर; दूसरे पर लिखा था, साधारण। युवक ने पुनः पहले द्वार में प्रवेश किया। न कोई सुंदर था न कोई साधारण, वहां कोई था ही नहीं।
सामरे फिर दो दरवाजे मिले, जिन पर लिखा था: अच्छा खाना बनाने वाली और खाना न बनाने वाली।
युवक ने फिर पहला दरवाजा चुना। उसके समक्ष फिर दो दरवाजे आए, जिन पर लिखा था: अच्छा गाने वाली और गाना न गाने वाली।
युवक ने पुनः पहले द्वार का सहारा लिया और अब की उसके सामने दो दरवाजों पर लिखा था: दहेज लाने वाली और न दहेज लाने वाली।
युवक ने फिर पहला दरवाजा चुना। ठीक हिसाब से चला। गणित से चला। समझदारी से चला। परंतु इस बार उसके सामने एक दर्पण लगा था, और उस पर लिखा था~
“आप बहुत अधिक गुणों के इच्छुक हैं। समय आ गया है कि आप एक बार अपना चेहरा भी देख लें।’
ऐसी ही जिंदगी आपकी नहीं है?
चाह, चाह, चाह! दरवाजों की टटोल। भूल ही गए, अपना चेहरा देखना ही भूल गए! जिसने अपना चेहरा देखा, उसकी चाह गिरी। जो चाह में चला, वह धीरे-धीरे अपने चेहरे को ही भूल गया।
जिसने चाह का सहारा पकड़ लिया, एक चाह दूसरे में ले गई, हर दरवाजे दो दरवाजों पर ले गए, कोई मिलता नहीं। जिंदगी बस खाली है। यहां कभी कोई किसी को नहीं मिला।
हां, हर दरवाजे पर आशा लगी है कि और दरवाजे हैं। हर दरवाजे पर तख्ती मिली कि जरा और चेष्टा करो। आशा बंधाई। आशा बंधी। फिर सपना देखा। लेकिन खाली ही रहे।
अब समय आ गया~
आप भी दर्पण के सामने खड़े होकर देखो। अपने को पहचानो!
जिसने अपने को पहचाना वह संसार से फिर कुछ भी नहीं मांगता। क्योंकि यहां कुछ मांगने जैसा है ही नहीं। जिसने अपने को पहचाना, उसे वह सब मिल जाता है जो मांगा था, नहीं मांगा था। और जो मांगता ही चलता है, उसे कुछ भी नहीं मिलता है।