मनोरंजन या आत्मरंजन,,
एक ब्राह्मण भिक्षुक एक नियत गाँव में प्रतिदिन भिक्षा माँगने जाते थे…
उस गाँव के एक घर में एक स्त्री उनको प्रतिदिन भिक्षा देती थी और उनसे भिक्षा देते समय सदैव एक प्रश्न पूछती कि; हे ब्राह्मण देव ! आप मुझे कुछ ऐसा उपाय बताइए जिससे कि मैं अपने चित्त के सम्पूर्ण विकारों का शमन कर सकूँ और शांति पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकूँ,,,
इस प्रश्न के उत्तर में ब्राह्मण देव यही कहते थे कि अनुकूल समय आने पर आपको इसका समाधान अवश्य दूँगा…बस यही प्रक्रिया कई माह तक चलती रही धीरे धीरे इस बात को दीर्घकाल हो गया,,
एक दिन भिक्षा के लिए ब्राह्मण उस घर में गए और उस स्त्री से कहा कि हे माते ! आज मैं आपको आपकी समस्या का समाधान अवश्य देकर जाऊँगा किंतु उससे पूर्व आप हमारे इस भिक्षा पात्र को ले जाकर अन्न से भरकर ले आइए,,
जब स्त्री ने उस भिक्षा पात्र को हाथ में लिया त
माता ने उस भिक्षा पात्र को हाथ में लिया तो देखा वह पात्र तो धूल, मिट्टी व कंकड से भरा हुआ था
तो उस स्त्री ने भिक्षा पात्र को अच्छे से धोया फिर उसको खीर से परिपूर्ण कर, उसे ब्राह्मण को सौंप दिया और जैसे ही वह पात्र ब्राह्मण के हाथ में आया तो उस पात्र को देकर ब्राह्मण चल दिए,,
इतने में वह स्त्री बोली अरे! ब्राह्मण देव आपने तो कहा था कि आप आज मेरी समस्या का समाधान देकर जाऐंगे किंतु आपने तो कुछ भी समाधान नहीं दिया।
तो ब्राह्मण बोले कि हे देवी ! समाधान दे तो दिया; आपने पकडा नहीं,, जिस प्रकार कचरे से भरे पात्र में अन्न नहीं भरा जाता उसे स्वच्छ करके ही उसमें अन्न भरा जाता है उसी प्रकार गंदगी से भरे चित्त में सद्ज्ञान का प्राकट्य नहीं होता…सद्ज्ञान के लिए चित्त को पहले निर्मल करना पडता है तब उस चित्त में सात्त्विक विचारों का प्रवेश होता है ।
यह कहानी सुनने में कर्णप्रिय होने के कारण आनन्द दायक लगती है हमें लगता है कि, ब्राह्मण ने कितनी अच्छी बात की है,, यह उदाहरण बहुत कथाकार देते रहते हैं किंतु इस उदाहरण में कोई समाधान नहीं हैं
निश्चित् रूप से यह बात वहीं की वहीं हैं
इस उदाहरण को संक्षेप में हमझें तो यही है कि उस स्त्री ने पूछा कि चित्त को स्वच्छ कैसे करें इसका कृपया उपाय बताइए,, और ब्राह्मण ने समाधान देते हुए कहा था कि पहले चित्त को स्वच्छ करो तभी सद्ज्ञान (समाधान) मिलेगा अर्थात् स्त्री का कहना हैं कि समस्या का समाधान बताइए और ब्राह्मण देव कह रहे हैं कि समस्या हटाइए समाधान स्वत: मिल जाएगा ।
कुछ समझे आप…?
प्रवचनों में प्राय: ऐसे ही उदाहरण दिए जाते हैं जिसका हमारे समाधान से कोई लेना देना नहीं..लेकिन वह हमारे मनको बहुत अच्छे लगते हैं क्योंकि उससे हमारा मनोरंजन बहुत अच्छा होता है।
तिमिर का नाश सूर्य के आगमन के पश्चात् ही होता है,, सूर्य कभी तिमिर के नाश की प्रतीक्षा नहीं करता कि जब तिमिर हट जाएगा तब मैं अपनी किरणों से इस धरा पर प्रकाश बिखेरूँगा,, बस सूर्य अपनी प्रभा को विस्तार देता है और तिमिर का तत्क्षण ही पराभव हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान के आगमन पर ही अज्ञान की विदाई होती है अज्ञान स्वत: ही कभी नहीं जाने वाला
इसीलिए ज्ञान को बढाइए अज्ञान का तिमिर स्वत: ही छटता चला जाएगा….
वास्तव में धर्म का मनोरंजन से कोई संबंध ही नहीं हैं धर्म तो आत्मरंजन का नाम हैं ।
लेकिन मनोरंजन के नाम पर ही बहुत कुछ चलता रहता है जिसे हम धर्म समझ बैठे हैं ।
यदि धर्म के तत्त्व को समझना हैं तो इन उथली पुथली बातों का त्याग कर; गहराई में जाना ही पडेगा
क्योंकि जिस प्रकार मोती सागर की सतह पर नहीं तलहटी में मिलते हैं उसी प्रकार शांति का अधिगम मन की सतह पर नहीं आत्मा की गहराई में ही प्राप्त होगा
आत्मनिरीक्षण करते रहें,,,
दार्शनिक_विचार 🙏🙏