एक बार एक किसान था और उसके पास एक घोड़ा था। वह अपने घोड़े से बहुत प्यार करता था क्योंकि यह किसान परिवार का समर्थन करता है। यह उसका गौरव और आनंद था क्योंकि यह किसान को पैसा कमाने में मदद करता है।
एक दिन पहले तक घोड़ा भाग गया था। समुदाय ने इसके बारे में सुना और सभी कहते रहे,
"हे भगवान! आपका पसंदीदा घोड़ा। जिसे आप बहुत प्यार करते हैं लेकिन वह भाग गया। यह बहुत बुरा है।" इस पर किसान ने कहा, "हो सकता है"।
अगले दिन घोड़ा वापस आया लेकिन चार जंगली घोड़ों के साथ।
समुदाय ने सुना और उन्होंने कहा
"ओह माय गॉड, हमने सुना कि क्या हुआ, अब आपके पास 5 घोड़े हैं, जो थोड़ा सा सौभाग्य है, वह इतना अच्छा है"। इस पर किसान ने कहा, "हो सकता है"।
अगले दिन, किसान का बेटा जंगली घोड़ों में से एक को प्रशिक्षित करने की कोशिश करता है। प्रशिक्षण में घोड़े ने उसे लात मार दी और उसने तीन स्थानों पर अपना पैर तोड़ दिया।
जब यह खबर पड़ोस में फैली तो सभी ने किसान के पास जाकर कहा।
"हे भगवान, ये बेवकूफ घोड़े हैं, देखो कि उन्होंने तुम्हारे बेटे के साथ क्या किया। यह बहुत बुरा है।" इस पर किसान ने उत्तर दिया, "हो सकता है"।
और कुछ दिनों के बाद, सेना खेत में आती है, जो जवानों के लिए सेना का मसौदा तैयार करती है।
उन्होंने किसान के बेटे को एक रूप दिया और कहा:
"हम उसे ड्राफ्ट नहीं कर सकते, उसे एक टूटी हुई टांग मिली है।"
समुदाय में हर कोई किसान को बधाई देता है कि उसके साथ उसका जवान बेटा था।
"हे भगवान, आपके पास आपका बेटा है, हमारे बेटे हैं, उनका मसौदा तैयार किया गया है, आप बहुत भाग्यशाली हैं। यह बहुत अच्छा है।" इस पर किसान ने फिर उत्तर दिया, "शायद"।
नकारात्मक मानसिकता विकसित करना इतना आसान है जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है। लेकिन "अच्छा" या "बुरा" जो जानता है। नकारात्मक या सकारात्मक क्या है? जब आप पूरी तस्वीर नहीं देख सकते। कुछ बुरा लंबे समय में अच्छा हो सकता है, कौन जानता है ...?
Day: December 9, 2020
एक बार एक छोटा लड़का था जिसका स्वभाव बहुत खराब था। उनके पिता ने उन्हें नाखूनों का एक बैग सौंपने का फैसला किया और कहा कि हर बार जब लड़का अपना आपा खो देता है, तो उसे बाड़ में कील ठोकनी पड़ती है।
पहले दिन, लड़के ने उस बाड़ में 37 नाखून लगाए।
लड़का अगले कुछ हफ्तों में धीरे-धीरे अपने स्वभाव को नियंत्रित करने लगा, और धीरे-धीरे बाड़ में उसकी संख्या बढ़ रही थी। उन्होंने पाया कि बाड़ में उन नाखूनों को हथौड़ा देने की तुलना में अपने स्वभाव को नियंत्रित करना आसान था।
अंत में, वह दिन आ गया जब लड़का अपना आपा नहीं खोएगा। उन्होंने अपने पिता को खबर सुनाई और पिता ने सुझाव दिया कि लड़के को अब हर दिन एक कील बाहर खींचनी चाहिए जो उसने अपने नियंत्रण में रखी थी।
दिन बीतते गए और वह युवा लड़का आखिरकार अपने पिता को बताने में सक्षम हो गया कि सभी नाखून चले गए थे। पिता अपने बेटे को हाथ में लेकर उसे बाड़े तक ले गया।
Well आपने अच्छा किया है, मेरे बेटे, लेकिन बाड़ के छेद को देखो। बाड़ कभी भी एक जैसी नहीं होगी। जब आप गुस्से में बातें कहते हैं, तो वे इस तरह से एक निशान छोड़ देते हैं। आप एक आदमी में चाकू डाल सकते हैं और इसे बाहर निकाल सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी बार कहते हैं कि मुझे खेद है, घाव अभी भी है। ''
गुस्से में कुछ ऐसा न करें / करें जिससे आपको बाद में पछतावा हो।
!! परोपकार की ईंट !!~~~~
बहुत समय पहले की बात है. एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे. उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।
वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी, “आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं।”
आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।
ऋषिवर बोले, “प्रिय शिष्यों, आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है. मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें.
यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा.”
तो क्या आप सब तैयार हैं?”
” हाँ, हम तैयार हैं ”, शिष्य एक स्वर में बोले.
दौड़ शुरू हुई.
सभी तेजी से भागने लगे. वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे. वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था.
सभी असमंजस में पड़ गए, जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीं अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे; खैर, सभी ने ऐसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।
“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया, भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।
यह सुनकर एक शिष्य बोला, “ गुरु जी, हम सभी लगभग साथ-साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी… कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभल-संभल कर आगे बढ़ रहा था और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा-उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े… इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की.”
“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ”, ऋषिवर ने आदेश दिया.
आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे. पर ये क्या जिन्हें वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे. सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे.
“मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों को देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं.” ऋषिवर बोले।
“दरअसल इन्हें मैंने ही उस सुरंग में डाला था और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।”
पुत्रों यह दौड़ जीवन की भागम-भाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है. पर अंत में वही सबसे समृद्ध होता है जो इस भागम-भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है.
शिक्षा:-
अतः यहाँ से जाते-जाते इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन में सफलता की जो इमारत खड़ी करें उसमें परोपकार की ईंटें लगाना कभी ना भूलें, अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी।”
सीतला दुबे
बुजुर्ग पिताजी जिद कर रहे थे कि, उनकी चारपाई बाहर बरामदे में डाल दी जाये।
बेटा परेशान था।
बहू बड़बड़ा रही थी….. कोई बुजुर्गों को अलग कमरा नही देता। हमने दूसरी मंजिल पर कमरा दिया…. AC TV FRIDGE सब सुविधाएं हैं, नौकरानी भी दे रखी है। पता नहीं, सत्तर की उम्र में सठिया गए हैं..?
पिता कमजोर और बीमार हैं….
जिद कर रहे हैं, तो उनकी चारपाई गैलरी में डलवा ही देता हूँ। निकित ने सोचा।… पिता की इच्छा की पू्री करना उसका स्वभाव था।
अब पिता की एक चारपाई बरामदे में भी आ गई थी।
हर समय चारपाई पर पडे रहने वाले पिता।
अब टहलते टहलते गेट तक पहुंच जाते ।
कुछ देर लान में टहलते लान में नाती – पोतों से खेलते, बातें करते,
हंसते , बोलते और मुस्कुराते ।
कभी-कभी बेटे से मनपसंद खाने की चीजें भी लाने की फरमाईश भी करते ।
खुद खाते , बहू – बेटे और बच्चों को भी खिलाते ….
धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य अच्छा होने लगा था।
दादा ! मेरी बाल फेंको। गेट में प्रवेश करते हुए निकित ने अपने पाँच वर्षीय बेटे की आवाज सुनी,
तो बेटा अपने बेटे को डांटने लगा…:
अंशुल बाबा बुजुर्ग हैं, उन्हें ऐसे कामों के लिए मत बोला करो।
पापा ! दादा रोज हमारी बॉल उठाकर फेंकते हैं….अंशुल भोलेपन से बोला।
क्या… “निकित ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा ?
पिता ! हां बेटा तुमने ऊपर वाले कमरे में सुविधाएं तो बहुत दी थीं।
लेकिन अपनों का साथ नहीं था। तुम लोगों से बातें नहीं हो पाती थी।
जब से गैलरी मे चारपाई पड़ी है, निकलते बैठते तुम लोगों से बातें हो जाती है। शाम को अंशुल -पाशी का साथ मिल जाता है।
पिता कहे जा रहे थे और निकित सोच रहा था…..
बुजुर्गों को शायद भौतिक सुख सुविधाऔं
से ज्यादा अपनों के साथ की जरूरत होती है….।
बुज़ुर्गों का सम्मान करें ।
यह हमारी धरोहर है …!
यह वो पेड़ हैं, जो थोड़े कड़वे है, लेकिन इनके फल बहुत मीठे है, और इनकी छांव का कोई मुक़ाबला नहीं !
और अपने बुजुर्गों का खयाल हर हाल में अवश्य रखें…।
🙏🏼🙏🏼🙏🙏🙏🙏🙏
तीन नौजवान एक बड़े होटल में ठहरे, 75th floor पर् कमरा मिला..!!
एक रात लेट हो गए…रात के 12 बजे लिफ्ट किसी कारण से बन्द थी..
तीनो सीढिया चढने लगे…बोरियत दूर करने के लिये एक ने चुटकुला सुनाया और पच्चीसवी मंजिल तक आ गए ।
दूसरे ने गाना सुनाया और पचासवी मंजिल तक आ गए ।
और तीसरे ने सेहत पर किस्सा सुनाया और 75 floor पर आ गए
कमरे के दरवाजे पर पहुंचे तो याद आया कि कमरे की चाबी Reception पर ही भूल गए,
तीनो बेदम होकर गिर पडे..!!
इसी तरह इंसान भी अपनी जिदंगी के 25 साल खेल-कूद, हंसी मजाक में व्यर्थ करता है.!
अगले 25 साल नौकरी, शादी, बच्चे और उनकी शादी मे गुजार देता हैं..!
और आगे 25 साल जिंदा रहे तो बीमारी, डॉक्टर, अस्पताल मे गुजर जाते हैं.!
मरने के बाद पता चलता है कि परमात्मा के द्वार की चाबी तो लाए ही नही, दुनिया मे ही रह गई..!!
प्रभु का स्मरण ही परमात्मा के द्वार की चाबी है…
तो आइए अपने कर्तव्य करते हुए हर समय प्रभु का सुमिरन करे…और अच्छे कर्म करे ताकि भगवान के द्वार पर जाकर पछताना ना पड़े ।
🚩 जय श्री राम-जय श्री कृष्ण 🙏
अद्भुत संदेश है इस कहानी में 😎
D̷e̷e̷p̷a̷k̷ j̷a̷i̷s̷i̷n̷g̷h̷ 🙏🏽
एक बार एक व्यक्ति की उसके बचपन के टीचर से मुलाकात होती है । वह उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय देता है।
वे बड़े प्यार से पुछती है, ‘अरे वाह, आप मेरे विद्यार्थी रहे है, अभी क्या करते हो, क्या बन गए हो ?’
‘ मैं भी एक टीचर बन गया हूं ‘ वह व्यक्ति बोला,’ और इसकी प्रेरणा मुझे आपसे ही मिली थी जब में 7 वर्ष का था।’
उस टीचर को बड़ा आश्चर्य हुआ, और वे बोली कि,’ मुझे तो आपकी शक्ल भी याद नही आ रही है, उस उम्र में मुझसे कैसी प्रेरणा मिली थी ??’
वो व्यक्ति कहने लगा कि ….
‘यदि आपको याद हो, जब में चौथी क्लास में पढ़ता था, तब एक दिन सुबह सुबह मेरे सहपाठी ने उस दिन उसकी महंगी घड़ी चोरी होने की आपसे शिकायत की थी।
आपने क्लास का दरवाज़ा बन्द करवाया और सभी बच्चो को क्लास में पीछे एक साथ लाइन में खड़ा होने को कहा था। फिर आपने सभी बच्चों की जेबें टटोली थी।
मेरे जेब से आपको घड़ी मिल गई थी जो मैंने चुराई थी। पर चूंकि आपने सभी बच्चों को अपनी आंखें बंद रखने को कहा था तो किसी को पता नहीं चला कि घड़ी मैंने चुराई थी।
टीचर उस दिन आपने मुझे लज्जा व शर्म से बचा लिया था। और इस घटना के बाद कभी भी आपने अपने व्यवहार से मुझे यह नही लगने दिया कि मैंने एक गलत कार्य किया था।
आपने बगैर कुछ कहे मुझे क्षमा भी कर दिया और दूसरे बच्चे मुझे चोर कहते इससे भी बचा लिया था।’
ये सुनकर टीचर बोली, ‘ मुझे भी नही पता था बेटा कि वो घड़ी किसने चुराई थी।’
वो व्यक्ति बोला,’नहीं टीचर, ये कैसे संभव है ? आपने स्वयं अपने हाथों से चोरी की गई घड़ी मेरे जेब से निकाली थी।’
टीचर बोली…..
‘बेटा मैं जब सबके पॉकेट चेक कर रही थी, उस समय मैने कहा था कि सब अपनी आंखे बंद रखेंगे , और वही मैंने भी किया, मैंने स्वयं भी अपनी आंखें बंद रखी थी।’
मित्रो।।
किसी को उसकी ऐसी शर्मनाक परिस्थिति से बचाने का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है ❓
आइये प्रण करें की यदि हमें किसी की कमजोरी मालूम भी पड़ जाए तो उसका दोहन करना तो दूर, उस व्यक्ति को ये आभास भी ना होने देना चाहिये कि आपको इसकीं जानकारी भी है।
^^^🚩मन के अनुकरणीय नेक विचार🚩^^^
➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖
🙏🏽एक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया , संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई,
सेठ ने उससे पूछा – भाई यह क्या है,
उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है ,
सेठ भूत की प्रशंसा सुन कर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी……., उस आदमी ने कहा कीमत बस पाँच सौ रुपए है ,
कीमत सुन कर सेठ ने हैरानी से पूछा- बस पाँच सौ रुपए………….!!!!
उस आदमी ने कहा – सेठ जी जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है।अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है।
सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है यह भूत मर जायेगा पर काम खत्म न होगा ,
यह सोच कर उसने भूत खरीद लिया
मगर भूत तो भूत ही था , उसने अपना मुंह फैलाया और बोला – बोला काम काम काम काम…….!!
सेठ भी तैयार ही था, उसने बहुत को तुरन्त दस काम बता दिये ,
पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था इधर मुँह से काम निकलता उधर पूरा होता , अब सेठ घबरा गया ,
संयोग से एक सन्त वहाँ आये,
सेठ ने विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बतायी।
सन्त ने हँस कर कहा अब जरा भी चिन्ता मत करो एक काम करो उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस ला कर आपके आँगन में गाड़ दे बस जब काम हो तो काम करवा लो और कोई काम न हो तो उसे कहें कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे तब आपके काम भी हो जायेंगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा…..
यह मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है।
श्वास ही बाँस है।
श्वास पर भजन- सिमरन का अभ्यास ही बाँस पर चढ़ना उतरना है।
आप भी ऐसा ही करें। जब आवश्यकता हो मन से काम ले लें जब काम न रहे तो श्वास में नाम जपने लगो तब आप भी सुख से रहने लगेंगे
सदैव प्रसन्न रहिये
जो प्राप्त है वह प्रयाप्त है
!!~ हरि 🕉️ नमः शिवाय ~!!