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एक विद्वान साधु थे जो दुनियादारी से दूर रहते थे। वह अपनी ईमानदारी,सेवा तथा ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार वह पानी के जहाज से लंबी यात्रा पर निकले।

उन्होंने यात्रा में खर्च के लिए पर्याप्त धन तथा एक हीरा संभाल के रख लिया । ये हीरा किसी राजा ने उन्हें उनकी ईमानदारी से प्रसन्न होकर भेंट किया था सो वे उसे अपने पास न रखकर किसी अन्य राजा को देने जाने के लिए ही ये यात्रा कर रहे थे।

यात्रा के दौरान साधु की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। वे उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए। एक फ़क़ीर यात्री ने उन्हें नीचा दिखाने की मंशा से नजदीकियां बढ़ ली।

एक दिन बातों-बातों में साधु ने उसे विश्वासपात्र अल्लाह का बन्दा समझकर हीरे की झलक भी दिखा दी। उस फ़क़ीर को और लालच आ गया।

उसने उस हीरे को हथियाने की योजना बनाई। रात को जब साधु सो गया तो उसने उसके झोले तथा उसके वस्त्रों में हीरा ढूंढा पर उसे नही मिला।

अगले दिन उसने दोपहर की भोजन के समय साधु से कहा कि इतना कीमती हीरा है,आपने संभाल के रक्खा है न। साधु ने अपने झोले से निकलकर दिखाया कि देखो ये इसमे रखा है। हीरा देखकर फ़क़ीर को बड़ी हैरानी हुई कि ये उसे कल रात को क्यों नही मिला।

आज रात फिर प्रयास करूंगा ये सोचकर उसने दिन काटा और सांझ होते ही तुंरन्त अपने कपड़े टांगकर, समान रखकर, स्वास्थ्य ठीक नही है कहकर जल्दी सोने का नाटक किया।

निश्चित समय पर सन्ध्या पूजा अर्चना के पश्चात जब साधु कमरे में आये तो उन्होंने फ़क़ीर को सोता हुआ पाया । सोचा आज स्वास्थ ठीक नही है इसलिए फ़क़ीर बिना इबादत किये जल्दी सो गया होगा। उन्होंने भी अपने कपड़े तथा झोला उतारकर टांग दिया और सो गए।

आधी रात को फ़क़ीर ने उठकर फिर साधु के कपड़े तथा झोला झाड़कर झाड़कर देखा। उसे हीरा फिर नही मिला।

अगले दिन उदास मन से फकीर ने साधु से पूछा –
“इतना कीमती हीरा संभाल कर तो रखा है ना साधुबाबा,यहां बहुत से चोर है”।

साधु ने फिर अपनी पोटली खोल कर उसे हीरा दिखा दिया।

अब हैरान परेशान फ़क़ीर के मन में जो प्रश्न था उसने साधु से खुलकर कह दिया उसने साधु से पूछा कि-
” मैं पिछली दो रातों से आपकी कपड़े तथा झोले में इस हीरे को ढूंढता हूं मगर मुझे नहीं मिलता, ऐसा क्यों , रात को यह हीरा कहां चला जाता है

साधु ने बताया- ” मुझे पता है कि तुम कपटी हो, तुम्हारी नीयत इस हीरे पर खराब थी और तुम इसे हर रात अंधेरे में चोरी करने का प्रयास करते थे इसलिए पिछले दो रातों से मैं अपना यह हीरा तुम्हारे ही कपड़ों में छुपा कर सो जाता था और प्रातः उठते ही तुम्हारे उठने से पहले इसे वापस निकाल लेता था”

मेरा ज्ञान यह कहता है कि व्यक्ति अपने भीतर नई झांकता, नहीं ढूंढता। दूसरे में ही सब अवगुण तथा दोष देखता है। तुम भी अपने कपड़े नही टटोलते थे।”

फकीर के मन में यह बात सुनकर और ज्यादा ईर्ष्या और द्वेष उत्पन्न हो गया । वह मन ही मन साधु से बदला लेने की सोचने लगा। उसने सारी रात जागकर एक योजना बनाई।

सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘हाय मैं मर गया। मेरा एक कीमती हीरा चोरी हो गया।’ वह रोने लगा।

जहाज के कर्मचारियों ने कहा, ‘तुम घबराते क्यों हो। जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।’

यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब साधु बाबा की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, ‘आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो अविश्वास करना ही अधर्म है।’

यह सुन कर साधु बोले, ‘नहीं, जिसका हीरा चोरी हुआ है उसके मन में शंका बनी रहेगी इसलिए मेरी भी तलाशी ली जाए।’
बाबा की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला।

दो दिनों के बाद जब यात्रा खत्म हुई तो उसी फ़क़ीर ने उदास मन से साधु से पूछा, ‘बाबा इस बार तो मैंने अपने कपड़े भी टटोले थे, हीरा तो आपके पास था, वो कहां गया?’

साधु ने मुस्करा कर कहा, ‘उसे मैंने बाहर पानी में फेंक दिया।

साधु ने पूछा – तुम जानना चाहते हो क्यों? क्योंकि मैंने जीवन में दो ही पुण्य कमाए थे – एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से हीरा मिलता और मैं लोगों से कहता कि ये मेरा ही हैं तो शायद सभी लोग साधु के पास हीरा होगा इस बात पर विश्वास नही करते यदि मेरे भूतकाल के सत्कर्मो के कारण विश्वास कर भी लेते तो भी मेरी ईमानदारी और सत्यता पर कुछ लोगों का संशय बना रहता।

“मैं धन तथा हीरा तो गंवा सकता हूं लेकिन ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को खोना नहीं चाहता, यही मेरे पुण्यकर्म है जो मेरे साथ जाएंगे।” उस फ़क़ीर ने साधु से माफी मांगी और उनके पैर पकड कर रोने लगा। *जय श्री हरिरामकृष्ण* *जय प्रभु विष्णु नारायण वासुदेव* *जय श्री हरि*

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ज्ञान वाणी। जहाँ सत्य है वहीं लक्ष्मी है।

एक नगर में एक राजा था वह सत्य प्रतिज्ञा वाला था। उस राजा का एक बहुत बड़ा नियम था ,उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति समान लेने आता था तो राजा का अपने मंत्रियों पर आदेश था किसी भी सामान को तोल करके देना और बिना तोल के लेना उसका यह अटूट नियम था।

उसी राज्य में एक मेहतर रहता था वह एक दिन दरबार में गया और दरबार के खजांची से कहा कि हमें 20 किलो अनाज चाहिए खजांची ने 20 किलो ज्वार तोल करके मेहतर को दे दिया कुछ समय के बाद जब देने का समय आया मेहतर के पास कुछ भी देने लायक नहीं था वह जंगल में गया और मरे हुए पशुओं की हड्डी को लाया और उस ज्वार के बराबर हड्डी को बनाया और वही हड्डी को लेकर के दरबार में गया और खजांची को कहा कि हमारी जो 20 किलो ज्वार ले कर के गए थे कृपया उसको जमा कर लीजिए राजा के दरबार का नियम ही था तोल के देना बिना तोल के लेना खजांची ने कहा कि भंडार में जाकर जमा कर दीजिए खाली कर दीजिए वह मेहतर
खजाना में गया भंडार में जाकर के थोड़ा सा एक गड्ढा बनाया और वह हड्डी की बनाई हुई ज्वार को डाल दिया ऊपर से उसे भंडार को उस गड्ढे को बराबर कर दिया और अपने घर को चला आया

शास्त्रों में लिखा है कि जहां स्वच्छता हैं सत्यता है प्रेम है वहीं पर लक्ष्मी जी का वास होता है। सत्य और लक्ष्मी का एक जोड़ा स्वरूप होता है ।

लक्ष्मीजी ने भंडार में गंदगी को देखकर के सत्य से कहा
कि अब मैं इस राजा के महल में नहीं रहूंगी इसने यहां गंदगी पैदा कर दी है सत्य ने कहा कि आपका कहना सही है लेकिन उसने मुझे नहीं छोड़ा है जो उसका नियम है उस नियम को उसने नहीं छोडा है इसलिए हम नहीं जा सकते जब तक वह सत्य की राह पर चलता है तब तक हम उस राजा को नहीं छोड़ सकते हैं लक्ष्मी ने कहा कि मैं गंदगी में नहीं रह सकती और मैं आपको छोड़ कर के जा रही हूं। प्रिय मित्रों लक्ष्मी जी इस प्रकार से सत्य को कह कर के राजा के महल से निकल कर के नगर की सीमा पर पहुंची और राजा के महल की तरफ फिर सत्य को देखने लगी कि सत्य आ रहा होगा लेकिन सत्य नहीं आया तब लक्ष्मी वापस राजा के महल की ओर आने लगी और सत्य से कहा कि मैं आपके बिना कैसे रह सकती हूँ इसलिए मैं वापस आपके पास में आ गई।

संदेश -इस कहानी से यही शिक्षा प्राप्त होती है कि जहां सत्य है वहां लक्ष्मी का निवास होता है।

किसी कवि ने कहा है
सत मत छोड़े सूरमा सत छोड़े पथ जाय ।
सत की बांधी है लक्ष्मी फिर मिलेगी आय ।। जय माता दी जय श्री गणेश जय माँ सरस्वती जय श्री विष्णुप्रिया जय श्री लक्ष्मीनारायण 🚩जय माँ भवानी 🚩

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एक कहानी…..!!
🌴💚

एक घर में एक बेटी ने जनम लिया,
जन्म होते ही माँ का स्वर्गवास हो गया।

बाप ने बेटी को गले से लगा लिया रिश्तेदारों ने
लड़की के जन्म से ही ताने मारने शुरू कर दिए
कि पैदा होते ही माँ को खा गयी मनहूस
पर बाप ने कुछ नही कहा अपनी बेटी को, बेटी का पालन पोषण शुरू किया, खेत में काम करता और बेटी को भी खेत ले जाता, काम भी करता और भाग कर बेटी को भी संभालता।

रिश्तेदारों ने बहुत समझाया के दूसरा विवाह कर लो पर बाप ने किसी की नही सुनी और पूरा धयान बेटी की और रखा। बेटी बड़ी हुयी स्कूल गयी फिर कॉलेज। हर क्लास में फर्स्ट आयी। बाप बहुत खुश होता लोग बधाइयाँ देते।

बेटी अपने बाप के साथ खेत में काम करवाती, फसल अच्छी होने लगी, रिश्तेदार ये सब देख कर चिढ़ गए। जो उसको मनहूस कहते थे वो सब चिढ़ने लग गए।

लड़की एक दिन अच्छा पढ़ लिख कर पुलिस में SP बन गयी।
एक दिन किसी मंत्री ने उसको सम्मानित करने का फैसला लिया और समागम का बंदोबस्त करने के आदेश दिए। समागम उनके ही गाँव में रखा गया।

मंत्री ने समागम में लोगों को समझाया के बेटा बेटी में फर्क नही करना चाहिए, बेटी भी वो सभ कर सकती है जो बेटा कर सकता है।भाषण के बाद मंत्री ने लड़की को स्टेज पर बुलाया और कुछ कहने को कहा।

लड़की ने माइक पकड़ा और कहा-
मैं आज जो भी हूं अपने बाबुल(पिता) की वजह से हूं जो लोगो के ताने सह कर भी मुझे यहाँ तक ले आये। मेरे पालन पोषण के लिए दिन रात एक कर दिया। मैंने माँ नहीं देखी और न ही कभी पिता से कहा के माँ कैसी थी, क्योकि अगर में पूछती तो बाप को लगता के शायद मेरे पालन पोषण में कोई कमी रह गयी। मेरे लिये मेरे पिता से बढ़ कर कुछ नही।

बाप सामने लोगो में बैठ कर आंसू बहा रहा था। बेटी की भी बोलते बोलते आँखे भर आयी।उसने मंत्री से पिता को स्टेज पर बुलाने की अनुमति ली।

बाप स्टेज पर आया और बेटी को गले लगाकर बोला-रोती क्यों है बेटी तुं तो मेरा शेर पुत्तर है
तुं ही कमजोर पड़ गया तो मेरा क्या होगा मैंने तुझको सारी उम्र हँसते देखना है।

बाप बेटी का प्यार देखकर सब की आँखे नम हो गयी।

मंत्री ने बेटी के गले में सोने का मेडल डाला।

लड़की ने मैडल उतार कर बाप के गले में डाल दिया।

मंत्री ने बोला ये क्या किया तो लड़की बोली मैडल को उसकी सही जगह पहुँचा दिया।
इसके असली हक़दार मेरे पिता जी हैं।
समागम में तालियाँ बज उठी…!!

🌴💚

यह उन लोगों के लिए सबक है जो बेटियों को चार दीवारी में रखना पसंद करते हैं पर ये फूल बाहर खिलेंगे अगर आप पानी लगाकर इन फूलों की देखभाल करोगे।

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अब्राहम_लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये ,,, सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा..

मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता , मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे…!! इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी.. लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे..!! उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे ! सिर्फ आप के ही नहीं यहां बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे !
वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है, अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी…!! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है ? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूं…!! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है…!!
सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है…।
उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका यह असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया।
जैसे :~~
कोब्लर,
शूमेकर,
बुचर,
टेलर,
स्मिथ,
कारपेंटर,
पॉटर आदि।
अमेरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वह दुनियाँ की सबसे बड़ी महाशक्ति है।
वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वह छोटा है तथा यहां जो श्रम नहीं करता वह ऊंचा है ।
जो यहां सफाई करता है उसे हेय समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।
ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनियाँ के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख सकते है.. लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते.. जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।
ऊँच-नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है ।_
Kaushal Sikhaula

  • संकलन –
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सच्चा मित्र – – – ☝🏽

एक बेटे के अनेक मित्र थे, जिसका उसे बहुत घमंड था।

उसके पिता का एक ही मित्र था, लेकिन था सच्चा ।

एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त है, उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते है।

बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों, बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे।

बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद दोनो ने सुना कि अंदर से बेटे का दोस्त अपनी माताजी को कह रहा था कि माँ कह दे, मैं घर पर नहीं हूँ।

यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों घर लौट आए।

फिर पिता ने कहा कि बेटे, आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ।

दोनों रात के 2 बजे पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ।

जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी।
पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।

तब मित्र बोला….अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो।

अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारें साथ चलता हूँ।

तब पिता की आँखे भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि, मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।
ᖱ៩៩ᖰ♬ƙ ɉ♬ɨនɨ⩎❡Ϧ 🙏🏽
ऐसे मित्र न चुने जो खुद गर्ज हो और आपके काम पड़ने पर बहाने बनाने लगे !!

अतः मित्र, कम चुनें, लेकिन नेक चुनें..!!

🙏🏻🙏🏼राम राम जी मेरे लाडलों🙏🏾🙏🙏🏽

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MAATRU-BHIKSHA


Silent Revolution-Story of “MAATRU-BHIKSHAL”

This happened about 175 years back. Dhanya was a kind hearted 50 year old woman belonging to a low caste. She was seen talking to a five year old brahmin boy with great intimacy. It appeared as though she was seeking some obligation and the boy gave her a firm commitment.The lady left the place with her eyes moist.

Dhanya was a poor midwife who attended to the delivery of the boy’s mother when he was born.From that day she developed an inexplicable emotional bondage with the boy. She felt that he was all in all for her and he would protect her in times of need.

After a period of 5 years it was decided to celebrate the Upanayanam of the boy.The boy’s elder brother was advising the young boy about the implication of the ritual and advised him about the code of conduct.

‘Maatru Biksha’ is an important concluding ritual in Upanayanam during which the boy receives the first Biksha (a cup of rice)from his mother and gets her blessings first.Every mother feels proud of this event.

When the elder brother was narrating about this ritual, the boy said,”I will receive the first Bhiksha from “Dhanya” only. I have given word to her.”

Having come from an orthodox family, the elder brother alarmingly said, “It is great unorthodoxy & we will lose respect among the pundits in the village.”

The boy immediately retorted, “Brother, everybody including elders requested Lord Rama not to leave for the forest.But Rama had promised his father; and to keep up his ‘word’ he left the palace. In the same way I have given a word to Dhanya that I will treat her as my mother during the function.I don’t deserve this sacred thread if I don’t keep up my promise.”

Yet the brother was not convinced. The day arrived. With the auspicious playing of shehnai,among the chanting of the mantras, the function went on well. The elder brother thought the boy would have forgotten about the earlier discussion.The ritual “Maatru Biksha” was about to start.The boy’s mother and other ladies were ready to give ‘Bhiksha’.

But the boy with a small bag in his hand proceeded towards Dhanya who was standing in a remote corner with some rice and fruits to offer to the affectionate child.

While all the brahmin pundits were looking on and the ladies were standing in amazement, the boy prostrated before Dhanya and received the first ‘Bhiksha’ from a low caste woman, when untouchability was at its peak. Dhanya,with tears in her eyes, blessed the child, and this was her only desire in life.

While every one expected a hue and cry about the incident, but the chief pundit appreciated the child for the “Sathya Vaak Paripaalanam” and blessed him whole heartedly.

The memorable silent revolution took place in a small village in West Bengal and the boy was “GADHADHAR” who became popular as “Ramakrishna Paramahamsa”, one of the greatest sons of Bharat.

It is perhaps this seed of intimate love and affection, originated from a poor lady, that laid the foundation for the great”Ramakrishna Mutt” surpassing all caste, creed and religions in the world.
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एक पक्षी था जो रेगिस्तान में रहता था


अपनों से अपनी बात
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हंस जैन रामनगर खंडवा
9827214427

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एक पक्षी था जो रेगिस्तान में रहता था, बहुत बीमार, कोई पंख नहीं, खाने-पीने के लिए कुछ नहीं, रहने के लिए कोई आश्रय नहीं था। एक दिन एक कबूतर गुजर रहा था, इसलिए बीमार दुखी पक्षी ने कबूतर को रोका और पूछा “तुम कहाँ हो जा रहा है? ” इसने उत्तर दिया “मैं स्वर्ग जा रहा हूँ”।

तो बीमार पक्षी ने कहा “कृपया मेरे लिए पता करें, कब मेरी पीड़ा समाप्त हो जाएगी?” कबूतर ने कहा, “निश्चित, मैं करूँगा।” और बीमार पक्षी को एक अच्छा अलविदा बोली। कबूतर स्वर्ग पहुंचा और प्रवेश द्वार पर परी प्रभारी के साथ बीमार पक्षी का संदेश साझा किया।

परी ने कहा, “पक्षी को जीवन के अगले सात वर्षों तक इसी तरह से ही भुगतना पड़ेगा, तब तक कोई खुशी नहीं।”

कबूतर ने कहा, “जब बीमार पक्षी यह सुनता है तो वह निराश हो जाएगा। क्या आप इसके लिए कोई उपाय बता सकते हैं।”

देवदूत ने उत्तर दिया, “उसे इस वाक्य को हमेशा बोलने के लिए कहो ” सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “ बीमार पक्षी से फिर से मिलने के लिए कबूतर ने स्वर्गदूत का संदेश दिया।

सात दिनों के बाद कबूतर फिर से गुजर रहा था और उसने देखा कि पक्षी बहुत खुश था, उसके शरीर पर पंख उग आए, एक छोटा सा पौधा रेगिस्तानी इलाके में बड़ा हुआ, पानी का एक छोटा तालाब भी था, चिड़िया खुश होकर नाच रही थी। कबूतर चकित था। देवदूत ने कहा था कि अगले सात वर्षों तक पक्षी के लिए कोई खुशी नहीं होगी। इस सवाल को ध्यान में रखते हुए कबूतर स्वर्ग के द्वार पर देवदूत से मिलने गया।

कबूतर ने परी को अपनी क्वेरी दी। देवदूत ने उत्तर दिया, “हाँ, यह सच है कि पक्षी के लिए सात साल तक कोई खुशी नहीं थी लेकिन क्योंकि पक्षी हर स्थिति में ” सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “ बोल रहा था और भगवान का शुक्र कर रहा था, इस कारण उसका जीवन बदल गया।

जब पक्षी गर्म रेत पर गिर गया तो उसने कहा “सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “

जब यह उड़ नहीं सकता था तो उसने कहा, “सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “

जब उसे प्यास लगी और आसपास पानी नहीं था, तो उसने कहा, ” सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “

जो भी स्थिति है, पक्षी दोहराता रहा, ” सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “ और इसलिए सात साल सात दिनों में समाप्त हो गए।

जब मैंने यह कहानी सुनी, तो मैंने अपने जीवन को महसूस करने, सोचने, स्वीकार करने और देखने के तरीके में एक जबरदस्त बदलाव महसूस किया

मैंने अपने जीवन में इस कविता को अपनाया। जब भी मैंने जो स्थिति का सामना किया, मैंने इस कविता को पढ़ना शुरू कर दिया ” सब कुछ के लिए भगवान तेरा शुक्र है। “ इसने मुझे मेरे विचार को मेरे जीवन में शिफ्ट करने में मदद की, जो मेरे पास नहीं है।समय के साथ साथ परिवर्तन आने लगा, मेरी प्राण शक्ति जो ख़तम हो गई थी वापस जीवित होने लगी ऐसा लगने लगा मानो अभी जिंदगी की अभी शुरुवात हुई है। जिंदगी में निराशा आपके चारों और फैली है लेकिन एक आशा की किरण आपकी सारी निराशा को दूर कर देती । कई बार समस्याएं आपका पीछा छोड़ने का नाम नहीं लेती लेकिन आप उनसे भागकर जाओगे तो वो और आपके पीछे दुगनी गति से आयगी। विश्वास कीजिए प्रभु पर सारी पीड़ा, सारी परेशानी जो महसूस हो रही हो उसे एक पल ईश्वर का आशीर्वाद समझ कर स्वीकार करो। वो सब जानता है , उसे मालूम है कि इतने दर्द में भी मेरा नाम प्यार से ले रहा उसे दर्द से मुक्त कर दूं।

उदाहरण के लिए;

अगर मेरा सिर दर्द करता है तो मुझे लगता है कि मेरा बाकी शरीर पूरी तरह से ठीक और स्वस्थ है और मुझे लगता है कि सिरदर्द मुझे बिल्कुल परेशान नहीं करता है।

उसी तरह मैंने अपने रिश्तों (चाहे परिवार, दोस्त, पड़ोसी, सहकर्मी) के वित्त, सामाजिक जीवन, व्यवसाय और हर उस चीज का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिसके साथ मैं संबंधित हो सकता हूं। मैंने इस कहानी को सभी के साथ साझा किया जिसके साथ मैं संपर्क में आया और इसने उनके व्यवहार में भी एक बड़ी बदलाव लाया।

इस सरल कविता का मेरे जीवन पर वास्तव में गहरा प्रभाव पड़ा, मुझे लगने लगा कि मैं कितना धन्य हूँ, मैं कितना खुश हूँ, जीवन कितना अच्छा है।

इस संदेश को साझा करने का उद्देश्य हम सभी को इस बारे में अवगत कराना है कि “
ATTITUDE OF GRATITUDE (शुक्राना और आभार का फल) कितना शक्तिशाली है। यह हमारे जीवन को नया रूप दे सकता है … !!!

हमारे जीवन में बदलाव का अनुभव करने के लिए इस कविता को लगातार सुनें।

इसलिए आभारी रहें, और अपने दृष्टिकोण में बदलाव देखें।

विनम्र बनो, और तुम कभी ठोकर नहीं खाओगे।

हंस जैन रामनगर खंडवा
9827214427

अपनों से अपनी बात

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