Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एयर कमांडर विशाल एक जेट पायलट था। एक लड़ाई में उसके फाइटर प्लेन पर एक मिसाइल लगी पर वह पैराशूट की सहायता से बाहर आ गया । उसने कई अवार्ड जीते और कई मेडल भी।

5 साल बाद एक दिन एक रेस्टोरेंट में विशाल अपनी पत्नी के साथ बैठा था। एक आदमी दूसरी टेबल से उसके पास आया और पूछा “आप कैप्टन विशाल हो ना ।
जो फाइटर प्लेन चलाते थे, जिसे मिसाइल लगी थी”
विशाल ने आश्चर्य से पूछा “आपको कैसे पता”
वह आदमी मुस्कुराया और उस ने जवाब दिया “मैंने ही आपका पैराशूट पैक किया था”
विशाल आश्चर्यचकित हो गया और उसने सोचा कि यदि उसका पैराशूट उस दिन काम नहीं किया
होता तो वह आज यहां नहीं होता
विशाल उस पूरी रात सो नहीं पाया, वह उस आदमी के बारे में सोचता रहा, सोचा मैंने इस आदमी को कितनी बार देखा पर कभी उसे यह नहीं कहा- गुड मॉर्निंग, आप कैसे हो या कुछ और क्योंकि मैं फाइटर पायलट था और वह आदमी सिर्फ एक सेफ्टी वर्कर।
इसलिए दोस्तों यह हमेशा ध्यान रखें कि आपका पैराशूट कौन पैक कर रहा है, हर आदमी के साथ ऐसा कोई है जो उसे वह देता है, जिससे हमारा जीवन चलता है।
हमें जीवन में बहुत सारे पैराशूट की जरूरत पड़ती है, जब हमारा प्लेन गिर जाता है।
हमें कई बार फिजिकल पैराशूट लगता है, कई बार मेंटल पैराशूट, कई बार इमोशनल पैराशूट, स्पिरिचुअल पैराशूट और फाइनेंसियल पैराशूट भी लगता है।
हम इन सब को सपोर्ट बोल सकते हैं सुरक्षित होने के पहले का सपोर्ट
और कई बार जीवन की आपाधापी में हम हेलो , प्लीज, थैंक्यू कहना और किसी को बधाई देना भूल जाते हैं,
यह भूल जाते हैं कि यह सब चीजें भी महत्व रखती हैं।
इस साल के आखरी महीने के आखरी दिन उन लोगों को याद करिए जिन्होंने आपके जीवन में पैराशूट का काम किया है.
मैं उन सब लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने 2020 में मेरा पैराशूट पैक करने में मेरी मदद की, शब्दों से, भावनाओं से या किसी और तरीके से मेरे लिए 2020 का रास्ता आगे बढ़ाया,धन्यवाद।।।।
सभी फेसबुक मित्रों को मेरे और मेरे परिवार की तरफ से आने वाले वर्ष 2021 की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाऐं ..!

जय श्री राम !
सुप्रभात🙏🙏🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

😳एक पागल भिखारी

जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने के लिए छोड़ दे ।

क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर।

मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।

जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।
👇
हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।

अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े।
कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।

फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।

उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई :
“उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,
वो बूढा तो पागल है । “

लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।

मैं उनसे बोला : “बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? “

मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : “Good afternoon doctor…… I think I may have some eye problem in my right eye …. “

इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं।
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में ।
मैंने कहा : ” मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। “

बुजुर्ग बोले : “Oh, cataract ?
I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital.”

मैंने पूछा : ” बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? “

बुजुर्ग : ” मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ सर” ।

मैं : ” ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। “

बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : “पढ़े लिखे ?? “

मैंने कहा : “आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। “

बाबा : ” Oh no doc… Why would I ?… Sorry if I hurt you ! “

मैं : ” हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। “

बुजुर्ग : ” समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? “
अच्छा “ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। “(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)

करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।

” Well Doctor, I am Mechanical Engineer….”— बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की— “
मैं, * कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।
एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? “
“फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। “

मैं चकराया, बोला : ” बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? “

बुजुर्ग : ” मैं…?
किस्मत का शिकार हूँ ….”
” बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। “
ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।

फिर बोला : ” लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। “

अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : ” लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे ? “

बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।

प्रत्यक्षतः मैं बोला : “आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। “

बुजुर्ग : ” Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। “

मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला :
“तो फिर आप यहाँ कैसे ? “

बुजुर्ग : “डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। “
” मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। “

आश्चर्य से मैंने पूछा : ” बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? “

बुजुर्ग : ” डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। “

मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं,
जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।
कैसे जीवट इंसान हैं ये ?

कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : ” बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? “

बुजुर्ग : ” No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? “

” लेकिन बाबा “— मैं बोला “लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। “
” अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। “

बुजुर्ग : ” No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती । “
” मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। “

मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।

भरे गले से मैंने फिर कहा : “बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? “

बुजुर्ग : ” दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। “

मैं मुस्कुराया और बोला : ” और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? “

बुजुर्ग : ” अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी…. हा….हा… हा….”

बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : ” बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। “

बुजुर्ग : ” No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। “
” OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। “

मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : ” बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। “

अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : ” डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर….”
” आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही….”

ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : “अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे…”

शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।

उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।

हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।
हो सकता है इन्हें देख हमें हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले….

हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे…।

🙏🏻🌹🌹🙏🏻

Posted in जीवन चरित्र

“ओम जय जगदीश हरे” के लेखक श्रद्धाराम फिल्लौरी के जन्मदिन ३०दिसंबर पर उनको शत-शत नमन।

भारत के उत्तरी भाग में किसी भी धार्मिक समारोह के अन्त में प्रायः ओम जय जगदीश हरे… आरती बोली जाती है। कई जगह इसके साथ ‘कहत शिवानन्द स्वामी’ या ‘कहत हरीहर स्वामी’ सुनकर लोग किन्हीं शिवानन्द या हरिहर स्वामी को इसका लेखक मान लेते हैं, पर सच यह है कि इसके लेखक पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी थे। आरती में आयी एक पंक्ति ‘श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ…’ में उनके नाम का उल्लेख होता है।

श्रद्धाराम जी का जन्म पंजाब में सतलुज नदी के किनारे बसे फिल्लौर नगर में 30 दिसम्बर, 1837 को पंडित जयदयालु जोशी एवं श्रीमती विष्णुदेवी के घर में हुआ था। उनके पिताजी कथावाचक थे। अतः बचपन से ही श्रद्धाराम जी को धार्मिक संस्कार मिले। उनका कण्ठ भी बहुत अच्छा था। भजन कीर्तन के समय वे जब मस्त होकर गाते थे, तो लोग झूमने लगते थे।

आगे चलकर श्रद्धाराम जी ने जब स्वयं भजन आदि लिखने लगे, तो फिल्लौर के निवासी होने के कारण वे अपने नाम के आगे ‘फिल्लौरी’ लिखने लगे। श्रद्धाराम जी हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, संस्कृत, गुरुमुखी आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इनमें उन्होंने धर्मिक पुस्तकें भी लिखीं। उन दिनों अंग्रेजी शासन का लाभ उठाकर मिशनरी संस्थाएँ पंजाब में लोगों का धर्म बदल रही थीं। ऐसे में श्रद्धाराम जी ने धर्म प्रचार के माध्यम से इनका सामना किया।

एक बार महाराजा रणधीर सिंह मिशनरियों के जाल में फँसकर धर्म बदलने को तैयार हो गये। जैसे ही श्रद्धाराम जी को यह पता लगा, वे तुरन्त वहाँ गये और महाराज से कई दिन तक बहस कर उनके विचार बदल दिये।

श्रद्धाराम जी मुख्यतः कथावाचक थे। श्रेष्ठ वक्ता होने के कारण गीता, भागवत, रामायण, महाभारत आदि पर प्रवचन करते समय उनमें वर्णित युद्ध के प्रसंगों का वे बहुत जीवन्त वर्णन करते थे। श्रोताओं को लगता था कि वे प्रत्यक्ष युद्ध क्षेत्र में बैठे हैं, परन्तु इस दौरान वे लोगों को विदेशी और विधर्मी अंग्रेजों का विरोध करने के लिए भी प्रेरित करते रहते थे।

एक बार युद्ध का प्रसंग सुनाते हुए वे 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की मार्मिक कहानी बताने लगे। कथा में कुछ सिपाही भी बैठे थे। उनकी शिकायत पर श्रद्धाराम जी को पकड़कर महाराज के किले में बन्द कर दिया गया। पर उन्होंने कोई सीधा अपराध तो किया नहीं था। फिर उनकी लोकप्रियता को देखते हुए पुलिस वाले उन्हें जेल भेजना भी नहीं चाहते थे। इसलिए उन पर क्षमा माँगने के लिए दबाव डाला गया, पर श्रद्धाराम जी इसके लिए तैयार नहीं हुए। झक मारकर प्रशासन को उन्हें छोड़ना पड़ा।

इसके बाद श्रद्धाराम जी फिल्लौर छोड़कर पटियाला रियासत में आ गये। वहाँ कई दिन प्रतीक्षा करने के बाद उनकी भेंट महाराजा से हुई। महाराज उनकी विद्वत्ता से प्रभावित हुए। इस प्रकार उन्हें पटियाला में आश्रय मिल गया। अब उन्होंने फिर से अपना धर्म प्रचार का काम शुरू कर दिया।

पर पटियाला में वे लम्बे समय तक नहीं रह सके और तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा के दौरान उन्होंने धर्मग्रन्थों का गहन अध्ययन किया और अनेक पुस्तकें भी लिखीं। ऐसे विद्वान कथावाचक पंडित श्रद्धाराम जी का केवल 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को देहान्त हो गया। लेकिन ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती रचकर उन्होंने स्वयं को अमर कर लिया।(अपनी धरती अपने लोग से साभार)

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

A heart touching Story

ऐसी घटना घटी।

विवेकानंद राजस्थान के एक रजवाड़े में मेहमान थे। खेतरी के महाराजा के मेहमान थे। अमरीका जाने के पहले। अब महाराज तो महाराजा! अब विवेकानंद का स्वागत कैसे करें? और अमरीका जाता है संन्यासी, पहला संन्यासी, स्वागत से विदा होनी चाहिए! तो हर एक की अपनी भाषा होती है, अपने सोचने का ढंग होता है, महाराजा और क्या करता, उसने देश की सबसे बड़ी जो खयातिनाम वेश्या थी, उसको बुलवा भेजा। बड़ा जलसा मनाया। वेश्या का नाच रखा। यह भूल ही गए कि किसके लिए यह स्वागत-समारोह हो रहा है। विवेकानंद के लिए!

और जब विवेकानंद को आखिरी घड़ी पता चला–सब साज बैठ गए, वेश्या नाचने को तत्पर है, दरबार भर गया, तब विवेकानंद को बुलाया गया कि अब आप आएं, अब उन्हें पता चला कि एक वेश्या का नृत्य हो रहा है उनके स्वागत में! विवेकानंद की दशा समझ सकते हो! बड़े मन को चोट लगी कि यह कोई बात हुई! संन्यासी के स्वागत में वेश्या! इंकार कर दिया जाने से। साधारण भारतीय संन्यासी की धारणा यही है! इंकार कर दिया जाने से। अपमानित किया अपने को अनुभव। यह तो असम्मानजनक है।

वेश्या बड़ी तैयार होकर आयी थी। संन्यासी का स्वागत करना था, कभी किया नहीं था संन्यासी के स्वागत में कोई नाच-गान, बहुत तैयार होकर आयी थी, बहुत पद याद करके आयी थी–कबीर के, मीरा के, नरसी मेहता के। बहुत दुखी हुई कि संन्यासी नहीं आएंगे। मगर उसने एक गीत नरसी मेहता का गाया–बहुत भाव से गाया, खूब रोकर गाया, आंखों में झर-झर आंसू बहे और गाया। उस भजन की कड़ियां विवेकानंद के कमरे तक आने लगी। और विवेकानंद के हृदय पर ऐसी चोट पड़ने लगी जैसे सागर की लहरें किनारे से टकराएं, पछाड़ खाए। फिर मन में बड़ा पश्चात्ताप हुआ।

नरसी मेहता का भजन है कि एक लोहे का टुकड़ा तो पूजागृह में रखते हैं, एक लोहे का टुकड़ा बधिक के घर होता है, लेकिन पारस पत्थर को थोड़े ही कोई भेद होता है। चाहे बधिक के घर का लोहा ले आओ। जिससे काटता रहा हो जानवरों को, और चाहे पूजागृह का लोहा, ले आओ, जिससे पूजा होती रही हो, पारस पत्थर तो दोनों को छूकर सोना कर देता है। यह बात बहुत चोट कर गयी, घाव कर गयी। यह विवेकानंद के जीवन में बड़ी क्रांति की घटना थी।

मेरे अपने देखे, रामकृष्ण जो नहीं कर सके थे, उस वेश्या ने किया। विवेकानंद रोक न सके, आंख से आंसू गिरने लगे–यह तो चोट भारी हो गयी! अगर तुम पारस पत्थर हो, तो यह भेद कैसा? पारस पत्थर को वेश्या दिखाई पड़ेगी, सती दिखाई पड़ेगी? पारस पत्थर को क्या फर्क पड़ता है–कौन सती, कौन वेश्या! लोहा कहां से आता है, इससे क्या अंतर पड़ता है, पारस पत्थर के तो स्पर्श मात्र से सभी लोहे सोना हो जाते हैं।

रोक न सके अपने को। पहुंच गए दरबार में। सम्राट भी चौंका। लोग भी चौंके कि पहले मना किया, अब आ गए! और आए तो आंख से आंसू झर रहे थे। और उन्होंने कहा, मुझे क्षमा करना, उस वेश्या से कहा, मुझे क्षमा करना, मैं अभी कच्चा हूं, इसलिए आने से डरा। कहीं न कहीं मेरे मन में अभी भी वासना छिपी होगी, इसीलिए आने से डरा। नहीं तो डर की क्या बात थी? लेकिन तूने ठीक किया, तेरी वाणी ने मुझे चौंकाया और जगाया।

विवेकानंद उस घटना का बहुत स्मरण करते थे कि एक वेश्या ने मुझे उपदेश दिया। यह भेद! सच्चे ज्ञानी के पास अभेद है। पापी जाए तो पुण्यात्मा जाए तो, दोनों को छूता है, दोनों को स्वर्ण कर देता है। उसकी आंखों का जादू ऐसा है, उसके हृदय का जादू ऐसा है।

मगर यह संभव तभी होता है जब भीतर का अनाहत सुना गया हो। बेवाहा के मिलन सों, नैन भया खुसहाल। आंखें न केवल मस्त हो जाती है, बल्कि मस्ती देने वाली भी हो जाती हैं। और तभी जानना कि आंखें मस्त हुई, जब मस्ती देने वाली भी हो जाएं।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

🌹 शानदार !!!!!!!!

अपने पिता की मृत्यु के बाद बेटे ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया और कभी कभार उनसे मिलने चला जाता था ।

एक शाम उसे वृद्धाश्रम से फ़ोन आया कि तुम्हारी माता जी की तबियत बहुत ख़राब है, एक बार आकर मिल लो ।पुत्र वहाँ गया तो उसने देखा कि माँ कि हालत बहुत गंभीर और मरणासन्न है ।

उसने पूछा :- माँ मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ?

माँ ने जवाब दिया :- कृपा करके वृद्धाश्रम में पंखे लगवा दे यहाँ एक भी नहीं है
और हाँ एक फ्रिज भी रखना देना ताकि खाना ख़राब ना हो क्योंकि कई बार मुझे बिना खाए ही सोना पड़ा ।
पुत्र ने आश्चर्यचकित होकर पूछा :- माँ, आपको यहाँ इतना समय हो गया आपने कभी शिकायत नहीं करी, अब जब आपके जीवन का कुछ ही समय बचा है तब आप मुझे यह सब बता रही हो ।क्यों ?

माँ ने जवाब दिया :- ठीक है बेटा, मैंने तो गर्मी, भूख और दर्द सब बर्दाश्त तर लिया, लेकिन…….
जब तुम्हारी औलाद तुम्हें यहाँ भेजेगी तो मुझे डर है कि तुम ये सब सह नहीं पाओगे
🙏🏽🌹🙏🏽🌹🙏🏽
शानदार, अतुलनीय और आगे भेजने लायक. 😊

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

अशुद्ध रक्त


अशुद्ध रक्त

क्या आपने कभी सोचा है कि ढेरों घटनाओं के बावजूद कुछ हिंदू लोग मुसलमानों की पैरवी क्यों करते हैं ? और उनकी भाषा क्यों बोलते हैं?

👉🏽घटना महाराजा रणजीत सिंह जी के समय की है। एक गाय ने अपने सींग एक दीवार की बागड़ में कुछ ऐसे फंसाए कि बहुत कोशिश के बाद भी वह उसे निकाल नहीं पा रही थी… भीड़ इकट्ठी हो गई, लोग गाय को निकालने के लिए तरह तरह के सुझाव देने लगे। सबका ध्यान एक ही और था कि गाय को कोई कष्ट ना हो

तभी एक व्यक्ति आया और आते ही बोला कि गाय के सींग काट दो। यह सुनकर भीड़ में सन्नाटा छा गया।

खैर घर के मालिक ने दीवाल को गिराकर गाय को सुरक्षित निकल लिया। गौ माता के सुरक्षित निकल आने पर सभी प्रसन्न हुए, किन्तु गौ के सींग काटने की बात महाराजा तक पहुंची। महाराजा ने उस व्यक्ति को तलब किया। उससे पूछा गया क्या नाम है तेरा ?

उस व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए नाम बताया दुलीचन्द। पिता का नाम – सोमचंद जो एक लड़ाई में मारा जा चुका था। महाराजा ने उसकी अधेड़ माँ को बुलवाकर पूछा तो माँ ने भी यही सब दोहराया, किन्तु महाराजा असंतुष्ट थे!!

उन्होंने जब उस महिला से सख्ती से पूछताछ करवाई तो पता चला कि उसके संबंध उसके पड़ोसी समसुद्दीन से हो गए थे। और ये लड़का दुलीचंद उसी समसुद्दीन की नाजायजऔलाद है, सोमचन्द की नहीं।
महाराजा का संदेह सही साबित हुआ।

उन्होंने अपने दरबारियों से कहा कि कोई भी शुद्ध सनातनी हिन्दू रक्त अपनी संस्कृति, अपनी मातृ भूमि, और अपनी गौ माता के अनिष्ट, अपमान और उसके पराभाव को सहन नहीं कर सकता, जैसे ही मैंने सुना कि दुली चंद ने गाय के सींग काटने की बात की, तभी मुझे यह अहसास हो गया था कि हो ना हो इसके रक्त में अशुद्धता आ गई है। सोमचन्द की औलाद ऐसा नहीं सोच सकती तभी तो वह समसुद्दीन की औलाद निकला!

👉🏽आज भी हमारे समाज में सन ऑफ सोमचन्द की आड़ में बहुत से सन ऑफ समसुद्दीन घुस आए हैं।

इन्ही में ऐसे राजनेता, पत्रकार एक्टिविस्ट भी शामिल हैं जिनका नाम हिन्दू है लेकिन वे अपने लालच में न सिर्फ सनातन संस्कृति का अपमान करते हैं बल्कि इसे मिटाने पर भी तुले हुए हैं। जो अपनी हिन्दू सभ्यता संस्कृति पर आघात करते हैं। और उसे देख कर खुश होते हैं।।
निसंदेह है ऐसे मूर्ख हिंदुओं में सौ फीसदी किसी मुल्ले का अंश जरुर विद्यमान होगा ।
जय श्री राम🚩🚩🚩🚩

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक आदमी ने एक भूत पकड़ लिया और उसे बेचने शहर गया। संयोगवश उसकी मुलाकात एक सेठ से हुई। सेठ ने उससे पूछा- भाई! यह क्या है?
उसने जवाब दिया कि यह एक भूत है। इसमें अपार बल है। कितना भी कठिन कार्य क्यों न हो,
यह एक पल में निपटा देता है। यह कई वर्षों का काम मिनटों में कर सकता है।”

सेठ भूत की प्रशंसा सुनकर ललचा गया और उसकी कीमत पूछी। उस आदमी ने कहा- कीमत बस पाँच सौ रुपए है। कीमत सुनकर सेठ ने हैरानी से पूछा- बस पाँच सौ रुपए?
उस आदमी ने कहा- सेठ जी! जहाँ इसके असंख्य गुण हैं वहाँ एक दोष भी है। अगर इसे काम न मिले तो मालिक को खाने दौड़ता है।
सेठ ने विचार किया कि मेरे तो सैकड़ों व्यवसाय हैं, विलायत तक कारोबार है। यह भूत मर जाएगा पर काम खत्म न होगा। यह सोचकर उसने भूत खरीद लिया।
भूत तो भूत ही था। वह अपना चेहरा फैला कर बोला- काम! काम! काम! काम!
सेठ भी तैयार ही था।__ तुरंत दस काम बता दिए। पर भूत उसकी सोच से कहीं अधिक तेज था। – – – – इधर मुंह से काम निकलता, उधर पूरा होता। अब सेठ घबरा गया।

संयोग से एक संत वहाँ आए। सेठ ने
विनयपूर्वक उन्हें भूत की पूरी कहानी बताई। संत ने हँस कर कहा- अब जरा भी चिंता मत करो। एक काम करो। उस भूत से कहो कि एक लम्बा बाँस लाकर, आपके आँगन में गाड़ दे। बस, जब काम हो तो काम करवा लो, और कोई काम न हो, तो उसे कहें कि वह बाँस पर चढ़ा और उतरा करे। तब आपके काम भी हो जाएँगे और आपको कोई परेशानी भी न रहेगी।

सेठ ने ऐसा ही किया और सुख से रहने लगा।
D̷e̷e̷p̷a̷k̷ j̷a̷i̷s̷i̷n̷g̷h̷ 🙏🏽
यह मन ही वह भूत है। यह सदा कुछ न कुछ करता रहता है। एक पल भी खाली बिठाना चाहो तो खाने को दौड़ता है। श्वास ही बाँस है। श्वास पर नामजप का अभ्यास ही, बाँस पर चढ़ना उतरना है।
आप भी ऐसा ही करें। जब आवश्यकता हो, मन से काम ले लें। जब काम न रहे तो श्वास में नाम जपने लगो। तब आप भी सुख से रहने लगेंगे।

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

♦️♦️परलोक के भोजन का स्वाद♦️♦️
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
एक सेठ जी ने अन्नसत्र खोल रखा था।उनमें दान की भावना तो कम थी,पर समाज उन्हें दानवीर समझकर उनकी प्रशंसा करे यह भावना मुख्य थी।उनके प्रशंसक भी कम नहीं थे। थोक का व्यापार था उनका।वर्ष के अंत में अन्न के कोठारों में जो सड़ा गला अन्न बिकने से बच जाता था, वह अन्नसत्र के लिए भेज दिया जाता था। प्रायः सड़ी ज्वार की रोटी ही सेठ के अन्नसत्र में भूखों को प्राप्त होती थी।
सेठ जी के पुत्र का विवाह हुआ। पुत्रवधू घर आयी। वह बड़ी सुशील,धर्मज्ञ और विचारशील थी।उसे जब पता चला कि उसके ससुर द्वारा खोले गये अन्नसत्र में सड़ी ज्वार की रोटी दी जाती है तो उसे बड़ा दुःख हुआ।उसने भोजन बनाने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पहले ही दिन उसने अन्नसत्र से सड़ी ज्वार का आटा मँगवाकर एक रोटी बनायी और सेठ जब भोजन करने बैठे तो उनकी थाली में भोजन के साथ वह रोटी भी परोस दी।काली, मोटी रोटी देखकर कौतुहलवश सेठ ने पहला ग्रास उसी रोटी का मुख में डाला।ग्रास मुँह में जाते ही वे थू-थू करने लगे और थूकते हुए बोले”बेटी!घर में आटा तो बहुत है।यह तूने रोटी बनाने के लिए सड़ी ज्वार का आटा कहाँ से मँगाया ?”
पुत्रवधू बोलीः”पिता जी!यह आटा परलोक से मँगाया है।ससुर बोले”बेटी ! मैं कुछ समझा नहीं।”
“पिता जी !जो दान पुण्य हमने पिछले जन्म में किया वही कमाई अब खा रहे हैं और जो हम इस जन्म में करेंगे वही हमें परलोक में मिलेगा। हमारे अन्नसत्र में इसी आटे की रोटी गरीबों को दी जाती है।परलोक में केवल इसी आटे की रोटी पर रहना है।इसलिए मैंने सोचा कि अभी से हमें इसे खाने का अभ्यास हो जाय तो वहाँ कष्ट कम होगा।”
सेठ जी को अपनी गलती का एहसास हुआ।उन्होंने अपनी पुत्रवधू से क्षमा माँगी और अन्नसत्र का सड़ा आटा उसी दिन फिकवा दिया। तब से अन्नसत्र से गरीबों, भूखों को अच्छे आटे की रोटी मिलने लगी।
आप दान तो करो लेकिन दान ऐसा हो कि जिससे दूसरे का मंगल-ही-मंगल हो।जितना आप मंगल की भावना से दान करते हो उतना दान लेने वाले का भला होता ही है,साथ में आपका भी इहलोक और परलोक सुधर जाता है।दान करते समय यह भावना नहीं होनी चाहिए कि लोग मेरी प्रशंसा करें,वाहवाही करें। दान इतना गुप्त हो कि देते समय हमारे दूसरे हाथ को भी पता न चले !

Shitala Dube
♦️🔹♦️🟠♦️🔹♦️

Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

એક માત્ર ગ્રંથ ગીતા છે જેની જયંતી મનાવાય છે-

મહાભારત યુદ્ધની શરૂઆતમાં જ અર્જુને શસ્ત્રો હેઠા મૂકી દીધા હતાં. ત્યારે શ્રીકૃષ્ણએ ગીતાનો ઉપદેશ આપ્યો અને અર્જુનને કર્મોનું મહત્વ સમજાવ્યું હતું

શુક્રવાર , 25 ડિસેમ્બરે મોક્ષદા એકાદશી છે. દ્વાપર યુગમાં માગશર મહિનાના શુક્લ પક્ષની એકાદશીએ ભગવાન શ્રીકૃષ્ણએ અર્જુનને ગીતા ઉપદેશ આપ્યો હતો. તેને લીધે આ તિથિને ગીતા જયંતીના નામે પણ ઓળખવામાં આવે છે. મહાભારતમાં જ્યારે કૌરવો અને પાંડવોની વચ્ચે યુદ્ધની શરૂઆત થઈ રહી હતીં, ત્યારે અર્જુને શ્રીકૃષ્ણની સામે શસ્ત્ર રાખી દીધા હતા અને કહ્યું હતું કે હું પોતાના જ કુળના લોકો ઉપર પ્રહાર નથી કરી શકતો. ત્યારબાદ શ્રીકૃષ્ણએ ગીતાનો ઉપદેશ આપ્યો અને અર્જુનને કર્મોનું મહત્વ બતાવ્યું હતું.

ભાગવદગીતામાં અનેક વિદ્યાઓ બતાવવામાં આવી છે. તેમાં ચાર મુખ્ય છે- અભય વિદ્યા, સામ્ય વિદ્યા, ઈશ્વર વિદ્યા અને બ્રહ્મ વિદ્યા. અભય વિદ્યા મૃત્યુના ભયને દૂર કરે છે. સામ્ય વિદ્યા રાગ-દ્વેષથી મુક્તિ અપાવે છે. ઈશ્વર વિદ્યાથી વ્યક્તિ અહંકારથી બચાવે છે. બ્રહ્મ વિદ્યાથી અંતરાત્મામાં બ્રહ્મા ભાવ જગાવે છે.

એક માત્ર ગ્રંથ ગીતા છે જેની જયંતી મનાવાય છે-

ગીતા એક માત્ર એવો ગ્રંથ છે જેની જયંતી મનાવવામાં આવે છે. હિન્દુ ધર્મમાં પણ માત્ર ગીતા જયંતી મનાવવાની પરંપરા પ્રાચીનકાળથી જ ચાલતી આવી છે, કારણ કે બીજા ગ્રંથ કોઈ મનુષ્ય દ્વારા લખવામાં આવ્યા અને સંકલિત કરવામાં આવ્યા છે, જ્યારે ગીતાનો જન્મ ભગવાન વિષ્ણુના અવતાર શ્રીકૃષ્ણના મુખેથી થયો હતો.

શ્રીગીતાજીની ઉત્પત્તિ ધર્મક્ષેત્ર કુરુક્ષેત્રમાં માગશર મહિનામાં શુક્લપક્ષની એકાદશીએ થઈ હતી. આ તિથિ મોક્ષદા એકાદશીના નામે વિખ્યાત છે. ગીતા એક સાર્વભૌમ ગ્રંથ છે. આ કોઈ કાળ, ધર્મ, સંપ્રદાય કે જાતિ વિશેષ માટે નહીં, પરંતુ સંપૂર્ણ માનવ જાતિ માટે છે. તેને સ્વયં શ્રીભગવાને અર્જુનને નિમિત્ત બનાવીને કહ્યું છે એટલા માટે આ ગ્રંથમાં ક્યાંય પણ શ્રીકૃષ્ણ ઉવાચ શબ્દ નથી આવ્યો પરંતુ શ્રીભગવાનુવાચનો પ્રયોગ કરવામાં આવ્યો છે.

ગીતાના 18 અધ્યાયોમાં સત્ય, જ્ઞાન અને કર્મનો ઉપદેશ છે. તેનાથી કોઈપણ મનુષ્યની બધી સમસ્યાઓને દૂર કરી શકાય છે અને જીવનને સફળ બનાવી શકાય છે.

આ છે ગીતા સાથે જોડાયેલો પ્રસંગ-

મહાભારતમાં જ્યારે કૌરવો અને પાંડવોની વચ્ચે યુદ્ધની શરૂઆત થવાની હતી. ત્યારે અર્જુને કૌરવોની સાથે ભીષ્મ, દ્રોણાચાર્ય, કૃપાચાર્ય વગેરે શ્રેષ્ઠ લોકોને જોઈને યુદ્ધ કરવાની ના પાડી દીધી હતી. ત્યારે ભગવાન શ્રીકૃષ્ણએ અર્જુનને ગીતાનો ઉપદેશ આપ્યો આ ઉપદેશ પછી અર્જને યુદ્ધમાં ભાગ લીધો. શ્રીકૃષ્ણએ અર્જુનને જે જ્ઞાન આપ્યું, તેનો સારાંશ આ પ્રકારે છે-

શા માટે વ્યર્થની ચિંતા કરે છે? કોઈનાથી શા માટે વ્યર્થનો ડરે છે? તને કોણ મારી શકે છે? આત્મા ન તો જન્મ લે છે, ન મરે છે. જે થયું, સારું થયું, જે થઈ રહ્યું છે, તે સારું થઈ રહ્યું છે. જે થશે, તે પણ સારું જ થશે.

તારું શું ગયું, જે તું રડે છે? તું શું લાવ્યો હતો, જે તને ખોઈ નાખ્યું? જે લીધું છે તે અહીંથી જ લીધું. જે આપ્યું, અહીં જ આપ્યું. જે આજે તારું છે, કાલે કોઈ બીજાનું હતું, પરમ દિવસે કોઈ ત્રીજાનું હશે.

પરિવર્તન સંસારનો નિયમ છે. જેને તું મૃત્યુ સમજે છે, તે જ તો જીવન છે. આ શરીર તારું નથી અને શરીરનો તું નથી. એ તો અગ્નિ, જળ, વાયુ, પૃથ્વી, આકાશથી બન્યું છે અને તેમાં જ પાછું ભળી જશે.

મારું-તારું, નાનું-મોટું, પોતાનું-પારકું, મનથી દૂર કરી દે, પછી બધું તારું જ છે, તું બધાનો છે. તું પોતાની જાતને ભગવાનને સોપી દે. આ જ સૌથી ઉત્તમ સહારો છે. આજ ગીતાનો મુખ્ય સંદેશો છે.
ધર્મ દર્શન દિવ્યભાસ્કર ©️
🔰 આપણી સંસ્કૃતિ આપણો વારસો 🔰™️

Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

      🙏🙏ગીતાજી જયંતિ 🙏🙏
       (માગસર સુદ  અગીયારસ)
       (તા.25/12/2020 શુક્રવાર )

  શ્રીમદૄ ભગવદ્ગીતાની ખાસ વિશેષતા.
          ————————————

👉શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા આપણા આ સમગ્ર વિશ્વમાં એકમાત્ર ધર્મગ્રંથ (પુસ્તક) છે જેની છેલ્લાં 5118 વર્ષથી જન્મજયંતી ભારતભરમાં શ્રદ્ધાપૂર્વક ઉજવવામાં આવે છે. ભાગ્યે જ કોઈ ભારતીય હશે કે જેણે શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતાનું નામ ન સાંભળ્યું હોય.. ગીતા જ્ઞાાન એ ગાગરમાં સાગર છે. જ્ઞાાનનો આખેઆખો રસપ્રચુર મધપૂડો છે. માનવીના જીવનનું એકપણ ક્ષેત્ર એવું નથી કે જેમાં ગીતા જ્ઞાાન ઉપયોગી ન બનતું હોય.. ગીતાની એટલી બધી વિશિષ્ટતાઓ છે કે જેનું વર્ણન કરવા બેસીએ તો પાર ન આવે એમાંની ખાસ ખાસ કેટલીક વિશિષ્ટ વાતો આજે રજૂ કરવાનો ઉપક્રમ છે. આવો આ ખાસિયતો જાણીએ
          ————————————

૧.)  ‘શ્રીમદ્ ભગવદ્ગીતા એટલે શ્રી ભગવાને ગાયેલું ગીત.

૨.)  મહાભારતના કુલ ૧૮ (અઢાર) પર્વ છે. જેમાં છઠ્ઠો પર્વ ભીષ્મપર્વ છે.

ભીષ્મપર્વના અધ્યાય નંબર ૨૫ થી ૪૨ના કુલ ૮ અધ્યાય એટલે જ ગીતા.
૩.)  સૌપ્રથમ શ્રી વિષ્ણુ ભગવાન થયા. તેમની નાભિમાંથી બ્રહ્માજી પ્રગટ થયા. બ્રહ્માના માનસ પુત્ર શ્રી વશિષ્ઠ ઋષિ થયા, તેમના શક્તિ, શક્તિના પારાશર, પારાશર અને મત્સ્યગંધાના મિલનથી થયા વેદવ્યાસ – જેમનું સાચું નામ શ્રીકૃષ્ણ બાદરાયણ (દ્વૈપાયન) વ્યાસ – જે ૧૮ મા છેલ્લા વેદવ્યાસ હતા તેમણે ગીતાને છંદબદ્ધ શ્લોકોમાં રૃપાંતર કરી ગીતા લખી.. તે વેદવ્યાસને વંદન.

૪.) ગીતા માત્ર ૪ (ચાર) વ્યક્તિ વચ્ચેનો સંવાદ છે. ધૃતરાષ્ટ્ર, સંજય, અર્જુન અને શ્રીકૃષ્ણ  ભગવાન સંજય ધૃતરાષ્ટ્રના સારથિ હતા જે વિદ્વાન ગવલ્ગણ નામના સારથિના પુત્ર હતા. શ્રીકૃષ્ણ અર્જુનના સારથિ હતા. સંજયને વેદવ્યાસે દિવ્યદૃષ્ટિ આપી હતી તો વિરાટરૂપનાં દર્શન કરવા શ્રીકૃષ્ણ અર્જુનને દિવ્યદૃષ્ટિ આપે છે. બન્ને બાજુ સારથિ  બન્ને બાજુ દિવ્યદૃષ્ટિ. કેવો યોગાનુયોગ…

૫.) ગીતામાં કુલ ૭૦૦ (સાતસો) શ્લોક છે જે પૈકી ૫૭૫ શ્લોક શ્રીકૃષ્ણ ભગવાન બોલ્યા છે, ૮૫ શ્લોક અર્જુન બોલ્યા છે, ૩૯ શ્લોક  સંજય અને માત્ર ૧ (એક) શ્લોક ધૃતરાષ્ટ્ર બોલ્યા છે.

૬.) ગીતાના ૧૮ અધ્યાય છે, ૭૦૦ શ્લોકો છે, ૯૪૧૧ શબ્દો છે, ૨૪૪૪૭ અક્ષરો છે. શ્રીકૃષ્ણ ઉવાચ ૨૮ વખત, અર્જુન ઉવાચ ૨૧ વખત, ધૃતરાષ્ટ્ર ઉવાચ ૦૧ એમ કુલ મળી ૫૯ વખત ઉવાચ આવે છે. સંજય ઉવાચ ૯ વખત આવે છે.

૭.) ઈ.સ. પૂર્વે 3103 વર્ષ પહેલાં શ્રીકૃષ્ણે ગીતા અર્જુનને કહી તે યુદ્ધ કરવા, યુદ્ધના મેદાનમાં કહી અને એ ઉપદેશ જ હિન્દુ ધર્મનો મહાન ધર્મગ્રંથ બની ગયો એ બાબત સમગ્ર વિશ્વના બધા ધર્મગ્રંથોમાં માત્ર અને માત્ર એક જ કિસ્સો છે.

૮.)  આખી ભગવદ્ ગીતામાં હિંદુ શબ્દ એક પણ વખત આવતો નથી  તે હિંદુ ધર્મનો ધર્મગ્રંથ હોવા છતાં પણ એ જ સાબિત કરે છે કે ગીતા વૈશ્વિક ધર્મગ્રંથ છે.

૯.)  શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા એ એવો એક ધર્મગ્રંથ છે જેનો અનુવાદ ભાષાંતર વિશ્વની તમામે તમામ ભાષાઓમાં થયું છે.

૧૦.)  શ્રી હેમચંદ્ર નરસિંહ લિખિત શ્રી ગીતાતત્ત્વ દર્શનમાં ગીતાના કુલ ૨૩૩ પ્રકાર છે જેમાં શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા મુખ્ય છે. અનુગીતા, અવધૂત ગીતા, અષ્ટાવક્ર ગીતા, પાંડવગીતા, સપ્તશ્લોકી ગીતા જેવા ૨૩૩ ગીતા પ્રકાર છે.

૧૧.) ભક્તિના કુલ ૯ (નવ) પ્રકાર છે. શ્રવણ, કીર્તન, સ્મરણ, પાદસેવન, અર્ચન, વંદન, દાસ્ય, સખ્ય અને આત્મનિવેદન. આ નવેનવ પ્રકારની ભક્તિનું વર્ણન, વ્યાખ્યા શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતામાં છે.

૧૨.)  ગીતાના દરેક અધ્યાયના અંતે અધ્યાય પૂરા થયાની નોંધ માટે જે પંક્તિ આવે છે તેને પુષ્પિકા કહે છે જે મુજબ ગીતા બ્રહ્મવિદ્યા છે, યોગનું શાસ્ત્ર છે, આવી અઢાર પુષ્પિકાના કુલ શબ્દો ૨૩૪ છે અને તેના કુલ અક્ષરો ૮૯૦ છે.

૧૩.) શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા શ્રદ્ધાનો, ભક્તિનો, ધર્મનો અને સત્યનો એવો આધાર સ્તંભ છે કે આપણા દેશની તમામ અદાલતોમાં પણ તેના ઉપર હાથ મૂકી સોગંદ લે પછી સત્ય જ બહાર આવશે તેટલી અધિકૃતિ મળેલી છે, આવું વિશ્વમાં બીજે ક્યાંય નથી..

૧૪.) ગીતા યોગશાસ્ત્રવિદ્યા છે. ગીતામાં કુલ ૧૮ અધ્યાયના ૧૮ યોગ તો છે જ જે તેના શીર્ષકમાં આવે છે જેમકે ભક્તિયોગ, કર્મયોગ સાંખ્ય યોગ. આ ઉપરાંત અભ્યાસયોગ, ધ્યાનયોગ બ્રહ્મયોગ જેવા કુલ ૩૦ (ત્રીસ) યોગો ગીતામાં છે.

૧૫.) ગીતાના પહેલા અધ્યાયના પહેલા શ્લોકનો પહેલો શબ્દ ધર્મક્ષેત્ર છે, જ્યારે છેલ્લા અધ્યાયના છેલ્લા શ્લોકનો છેલ્લો શબ્દ ‘મમ’ છે. અર્થાત્ મારું ધર્મક્ષેત્ર કયું..?? તો ૧ થી ૭૦૦ શ્લોક વચ્ચે જે આવે છે. વેદવ્યાસનો શબ્દસુમેળ કેવો અદ્ભુત છે..

૧૬.) સમગ્ર ગીતાનો સાર શું છે..?? ગીતા શબ્દને ઉલટાવીને વાંચો. તાગી. જે આસક્તિનો ત્યાગ કરે છે તે જ પ્રભુને પામી શકે છે. મહાત્મા ગાંધીજીએ એટલે જ ગીતા વિશે જે પુસ્તક લખ્યું છે તેનું ચોટડૂક શીર્ષક અનાસક્તિ યોગ આપ્યું છે. ઉપનિષદમાં પણ કહ્યું છે ત્યેન ત્યક્તેન ભુંજિથા – ત્યાગીને ભોગવો.

૧૭.)  ઋગ્વેદ, યજુર્વેદ, સામવેદ અને અથર્વવેદ  ચાર વેદો છે પણ ગીતાને પાંચમોવેદ કહેવાય છે

૧૮.)  મહાભારતના પર્વ ૧૮ છે, ગીતાના અધ્યાય ૧૮ છે. સરવાળો ૯ થાય છે. ૯ એ પૂર્ણાંક છે. શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતાના કુલ અક્ષરો પણ ૯ થાય છે. ગીતામાં ભગવાન શ્રીકૃષ્ણનાં કુલ ૧૦૮ નામ છે, કુલ ૧૦૮ સુવાક્યો છે, ગીતાને સંસ્કૃતમાં શ્લોકબદ્ધ કરનાર શ્રીકૃષ્ણ દ્વૈપાયન વ્યાસ નું નામ પણ ૯ અક્ષરનું છે, ગીતામાં ‘યોગ’ શબ્દ ૯૯ વખત આવે છે, ગીતામાં કુલ ૮૦૧ વિષયોનું વર્ણન છે, યોગ માટે ૫૪ શ્લોકો છે, ગીતામાં ભગવાન પોતાની વિભૂતિઓનું વર્ણન કરે છે જેમ કે વૃક્ષોમાં હું પીપળો છું, નદીઓમાં હું ગંગા છું  તો ગીતામાં આવી કુલ મળી ૨૩૪ વિભૂતિઓનું વર્ણન છે. ગીતામાં કુલ ૯૦ (નેવું) વ્યક્તિઓનાં નામોનો ઉલ્લેખ છે જેમ કે નારદ, પ્રહલાદ, ભૃગુ, રામ વગેરે. આ તમામનો સરવાળો ૯ થાય છે એટલું જ નહિ ગીતાનાં કુલ ૧૮ નામ છે જેનો સરવાળો પણ ૯ થાય છે. ૯ નું અદ્ભુત સંકલન અહીં જોવા મળે છે..

૧૯.)  ગીતાના ૭૦૦ શ્લોકો છે જેમાં વર્ણવાર ગણતરી કરતાં સૌથી વધુ ૧૦૩ શ્લોકો ‘ય’ – અક્ષર ઉપરથી શરૂ થાય છે જ્યારે બીજા નંબરે ‘અ’  – ઉપર ૯૭ શ્લોકો છે.

૨૦.) શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતામાં આત્મા શબ્દ ૧૩૬ વખત, જ્ઞાાન શબ્દ ૧૦૮ વખત, યોગ શબ્દ ૯૯ વખત, બુદ્ધિ અને મન ૩૭ વખત બ્રહ્મ – ૩૫ વખત, શાસ્ત્ર શબ્દ  ૪ વખત, મોક્ષ શબ્દ  ૭ વખત અને ઈશ્વર-પરમેશ્વર શબ્દ – ૬ વખત આવે છે. ધર્મ શબ્દ ૨૯ વખત આવે છે.

૨૧.) સમગ્ર ગીતાસાર અધ્યાય ૨ માં આવી જતો હોવાથી અધ્યાય ૨ ને એકાધ્યાયી ગીતા કહેવામાં આવે છે.

22)  અધ્યાય નં. ૮ શ્લોક નં. ૯, ૮/૧૩, ૯/૩૪, ૧૧/૩૬, ૧૩/૧૩, ૧૫/૧ અને ૧૫/૧૫ = આ ૭ શ્લોકને સપ્તશ્લોકી ગીતા કહે છે.

૨૪.)  શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતાના પાઠમાં મંત્ર, ઋષિ, બીજ, છંદ, દેવતા અને કીલક આ ૬ મંત્રધર્મનું ખાસ ધ્યાન રાખવામાં આવે છે. ફળ માટે ગીતામાહાત્મ્યનો પણ ખાસ મહિમા છે.

૨૫.)  ગીતાના ૧ થી ૬ અધ્યાયમાં કર્મ, ૭ થી ૧૨ અધ્યાયમાં ભક્તિ અને ૧૩ થી ૧૮ અધ્યાયમાં જ્ઞાાનનો વિશેષ મહિમા છે.

૨૬.)  કોઈપણ ધર્મના સિદ્ધાંતોને વેદ-ઉપનિષદ-ભગવદ્ગીતા આ ત્રણનો આધાર લઈ શાસ્ત્રોક્ત રીતે સાબિત કરવામાં આવે છે તેને પ્રસ્થાનત્રયી કહે છે જેમાં ગીતાનું સ્થાન મોખરે આવે છે. ધર્મની એકપણ ગૂંચવણ એવી નથી કે જેનો ઉકેલ ભગવદ્ ગીતામાં ના હોય..

૨૭.) ગીતાના ૭૦૦ શ્લોકો પૈકી ૬૪૫ શ્લોકો અનુષ્ટુપ છંદમાં છે. બાકીના ૫૫ શ્લોકો ત્રિષ્ટુપ, બૃહતી, જગતી, ઈન્દ્રવજ્રા, ઉપેન્દ્રવજ્રા વગેરે અલગ અલગ છંદોમાં આવે છે.

૨૮.) ગીતાએ આપણને એના પોતીકા સુંદર શબ્દો આપ્યા છે. લગભગ આવા શબ્દોની સંખ્યા ૧૦૦ થવા જાય છે જે પૈકી ઉદાહરણ તરીકે ૧૦ શબ્દો અત્રે પ્રસ્તુત છે. અનુમંતા, કાર્પણ્યદોષ, યોગક્ષેમ, પર્જન્ય, આતતાયી, ગુણાતીત, લોકસંગ્રહ, ઉપદૃષ્ટા, છિન્નસંશય, સ્થિતપ્રજ્ઞા

૨૯.)  સમગ્ર વિશ્વમાં શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા  એ એકમાત્ર એવો ધર્મગ્રંથ છે જેની ભક્તો વિધિસર પૂજા કરે છે.

૩૦.)  ગીતામાં કુલ ૪૫ શ્લોકો તો એવા છે કે જેની પંક્તિઓ એક સરખી હોય, શ્લોક બીજી વખત આવ્યો હોય કે શ્લોકના ચરણની પુનરૂક્તિ – પુનરાવર્તન થયું હોય. જેનાં કેટલાંક ઉદાહરણો અત્રે આપેલ છે. અધ્યાય/શ્લોક  ૩/૩૫,  ૬/૧૫  ૧૮/૪૭,  ૬/૨૮  અધ્યાય/શ્લોક   ૯/૩૪ , ૧૮/૬૫

૩૧.) એકલી ગુજરાતી ભાષામાં જ શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા વિષે અલગ અલગ સમજૂતી આપતાં, ટીકા-ટીપ્પણી કરતાં ૨૫૦ પુસ્તકો હાલ ઉપલબ્ધ છે જે દર્શાવે છે કે આ ગ્રંથ કેટલો મહાન છે, આવાં ખૂબજ લોકપ્રિય પુસ્તકોના ઉદાહરણ રૂપ ૧૦ લેખકો અત્રે પ્રસ્તુત છે

(૧) મહાત્મા ગાંધીજી – અનાસક્તિ યોગ (૨) વિનોબા ભાવે – ગીતા પ્રવચનો (૩) આઠવલેજી – ગીતામૃતમ્ (૪) એસી ભક્તિ વેદાંત – ગીતા તેના મૂળરૃપે (૫) કિશોર મશરૃવાળા – ગીતા મંથન (૬) પં. સાતવલેકરજી – ગીતાદર્શન (૭) ગુણવંત શાહ – શ્રીકૃષ્ણનું જીવન સંગીત (૮) શ્રી અરવિંદ – ગીતાનિબંધો (૯) રવિશંકર મહારાજ – ગીતાબોધવાણી (૧૦) કાકા કાલેલકર – ગીતાધર્મ

૩૨.) આજે શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા-ને કુલ 5118 વર્ષ થયા છતાં ગીતામાં દર્શાવેલા ધર્મસિદ્ધાંતોનું  મતનું કોઈએ પણ કોઈ ખંડન કર્યું નથી તે જ દર્શાવે છે કે ગીતા સર્વમાન્ય ગ્રંથ છે.

૩૩.) ગીતાનું મૂળ બીજ બીજા અધ્યાયનો અગિયારમો શ્લોક છે. આ શ્લોકથી જ ભગવદ્ ગીતાની શરૂઆત થાય છે. ગીતાની પૂર્ણાહૂતિ અઢારમા અધ્યાયના ત્રેસઠમા શ્લોકમાં ઈતિ થી થાય છે  જે સમાપ્તિસૂચક શબ્દ છે. માગશર સુદ – અગિયારસના રોજ શ્રીકૃષ્ણ દ્વારા અર્જુનને ગીતા કહેવામાં આવી.

૩૪.)  ગીતાનો સૌથી શ્રેષ્ઠ મંત્ર તજજ્ઞોની દૃષ્ટિએ અઢારમા અધ્યાયનો છાસઠમો શ્લોક છે જેમાં શ્રીકૃષ્ણ સ્વયં પોતાના મુખેથી જણાવે છે કે હું તને સર્વ પાપોથી છોડાવીશ તેમાં તું સહેજ પણ શોક ન કર. ગીતાનો સાર પણ આ જ શ્લોકમાં છે. અર્થાત્ વિશ્વાસ એ જ વિશ્વનો શ્વાસ છે.

૩૫.)  ગીતાના બધા શ્લોકો મંત્ર છે, શ્રેષ્ઠ છે પરંતુ ગીતાભક્તોની દૃષ્ટિએ, આલોચકોની દૃષ્ટિએ, વિદ્વાનોની દૃષ્ટિએ સમગ્ર ૭૦૦ શ્લોકોમાંથી ટોપ ટેન ૧૦ શ્લોકો નીચે પ્રમાણે છે. પ્રથમ આંક અધ્યાય દર્શાવે છે,  બીજો આંક શ્લોક નંબર દર્શાવે છે.
(દરેક શ્લોક શ્રેષ્ઠ હોઈ મુમુક્ષુઓની પસંદગી અલગ અલગ હોઈ શકે)

૨/૨૩, ૩/૩૫, ૪/૭, ૨/૪૭, ૬/૩૦, ૯/૨૬, ૧૫/૫, ૧૭/૨૦, ૧૮/૬૬,  ૧૮/૭૮

૩૬.)  ગીતાના અઢારમા અધ્યાયનો છેલ્લો શ્લોક એટલો મર્મસભર, ગીતસભર છે કે ન પૂછો વાત!! આ શ્લોકમાં ૨ અક્ષર કુલ ૧૩ વખત આવે છે, ય અક્ષર ૪ વખત આવે છે, ત્ર અક્ષર ૩ વખત આવે છે, ધ અક્ષર ૩ વખત આવે છે છતાં છંદ જળવાય છે અને એટલું મધુર સંગીત સહજ ઉત્પન્ન થાય છે કે વારંવાર આ શ્લોક બસ ગાયા જ કરીએ. તમે પણ પ્રયત્ન કરી જુઓ  વારંવાર ગાવા લલચાશો.. આવા વારંવાર ગમી જાય, ગાવા માટે ઉત્સુકતા રહે તેવા ઉદાહરણરૃપ પાંચ શ્લોકો નીચે મુજબ છે  એકવાર તો ગાઈ જુઓ..  ૪/૭, ૬/૩૦, ૯/૨૨, ૧૫/૧૪, ૧૮/૭૮

૩૭.) ગીતામાં ગણિતનો પણ અદ્ભુત પ્રયોગ શ્રી વેદવ્યાસે કર્યો છે. તમને જાણીને આશ્ચર્ય થશે કે ગીતામાં ૧ થી ૧૦૦૦ સંખ્યાનો પ્રયોગ વારંવાર સંખ્યાવાચક શબ્દોથી થયો છે. માન્યામાં નથી આવતું ને..?? ગીતામાં કુલ ૧૬૫ વખત આવાં સંખ્યાવાચક રૂપકો આવે છે પણ સ્થળસંકોચના કારણે ઉદાહરણરૂપ વિગત અત્રે  પ્રસ્તુત છે

૧. એકાક્ષરમ (એક) ૨. દ્વિવિદ્યા નિષ્ઠા (બે નિષ્ઠા) ૩. ત્રિભિઃ ગુણમયૈઃ (ત્રણ ગુણ) ૪. ચાતુર્વર્ણ્યમ્ (ચાર વર્ણ) ૫. પાંડવા (પાંચ પાંડવ) ૬. મનઃ ષષ્ઠાનિ (છ ઇન્દ્રિય) ૭. સપ્ત મહર્ષય (સપ્તર્ષિ) ૮. પ્રકૃતિ અષ્ટધા (આઠ પ્રકૃતિ) ૯. નવ દ્વારે (નવ દ્વાર) ૧૦  ઈન્દ્રયાણિ દશૈકં (૧૦ ઈન્દ્રિય) ૧૧. રૃદ્રાણામ (૧૧ રૃદ્ર) ૧૨. આદિત્યાન્ (૧૨ આદિત્ય) ૧૩. દૈવી સંપદ્મ (૨૬ ગુણો) ૧૪. નક્ષત્રાણામ્ (૨૭ નક્ષત્રો) ૧૫. એતત્ ક્ષેત્રમ્ (શરીરના ૩૧ ગુણ) ૧૬. મરુતામ્ (૪૯ મરૃતો) ૧૭. અક્ષરાણામ્ (૫૨ અક્ષર) ૧૮. કુરૃન્ (૧૦૦ કૌરવો) ૧૯. સહસ્ત્રબાહો (૧૦૦૦ હાથવાળા)

૩૮.)  ઘણા એવી શંકા કરે છે કે યુદ્ધના મેદાનમાં આટલી લાંબી ૭૦૦ શ્લોકોવાળી ગીતા માટે કેટલો બધો સમય લાગ્યો હશે પણ આ શંકાનું પણ નિવારણ છે. ગીતાનો ૧ શ્લોક શાંતિથી, નીરાતથી ગાવામાં આવે તો માત્ર અને માત્ર ૧૦ (દસ) સેકન્ડ જ થાય છે. આ હિસાબે જો ૭૦૦ શ્લોક ગાઇએ તો ૭૦૦૦ સેકન્ડ થાય. ૧ કલાકની ૩૬૦૦ સેકન્ડ થાય એ મુજબ આખી ગીતા વાંચતા માત્ર બે કલાક જ થાય છે. આ તો પદ્યની વાત થાય છે. જ્યારે યુદ્ધના મેદાનમાં તો શ્રીકૃષ્ણ – અર્જુનનો સંવાદ ગદ્યમાં થયો હતો જેથી આવી સમય મર્યાદાની શંકા અસ્થાને છે.

૩૯.) ગીતા એ માનવજીવનનું રહસ્ય છે. રાગ અને ત્યાગ વચ્ચે ઝૂલતા માનવીની કથા છે. ભક્ત અને ભગવાન વચ્ચેનો મધુર સંવાદ છે, તો કર્મ -અકર્મનો વિવાદ પણ છે. ગાદી માટેનો વિખવાદ છે, ફરજથી પલાયનવાદ છે તો અંતે સૌના માટેનો આશીર્વાદરૂપ ધન્યવાદ પણ છે.

૪૦.) ગીતા વિશે એક અદ્ભુત પ્રયોગ પણ પ્રચલિત છે. જ્યારે તમે ખૂબજ મુશ્કેલીમાં હોવ, કોઈપણ રસ્તો સૂઝતો જ ના હોય, ચારે તરફથી નિરાશા જ મળી હોય ત્યારે ગીતા માતાના શરણે જાવ. ગીતા હાથમાં લો. શ્રદ્ધાપૂર્વક ૧૧ વખત શ્રીકૃષ્ણ ભગવાનનો મંત્ર બોલો. શ્રીકૃષ્ણઃ શરણં મમ  હવે ગીતા ખોલો. પેન્સિલ – પેનની અણી કોઈપણ શ્લોક ઉપર મૂકો. ત્યાં જે શબ્દ કે શ્લોક છે તેનો જે અર્થ થાય છે તે જ તમારા પ્રશ્નનો ઉપાય – જવાબ છે. મોટાભાગના અનુભવો સફળ જ થયા છે. સુખને એક અવસર તો આપો..  મહાત્મા ગાંધીજી ખુદ કહેતા મુશ્કેલીમાં હું ગીતામાતાના શરણે જઉં છું.

          ||  करिष्यै वचनं ।।