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बाबूजी 1994 में ओरिएंट का पंखा लाए थे। हर साल सर्दी आते


माथापच्ची

बाबूजी 1994 में ओरिएंट का पंखा लाए थे। हर साल सर्दी आते ही पंखा उतार के, अच्छे से धोकर पैक करके रख देते थे। गर्मी आते ही खुद लगा भी लेते थे। हर महीने साफ भी करते थे। 25-26 साल तक पंखा वैसे ही नया दिखता था।फिर हम आए झापडीके हीरो बनकर। हमने बाबूजी से ही बोला.. “आज से पंखा हम साफ करेंगे” और वो मान गए.. पर हम पक्के आलसी थे। उस पंखे को 1 साल तक साफ नहीं किया। पंखे के ब्लेड पर चिकनाई और मिट्टी जमने लगी। बाबूजी के टोकने के बाद हमें शर्म आई और एक दिन सोच ही लिया कि पंखे को साफ करके रहेंगे। पंखा बहुत गन्दा हो चुका था। सोचा मोदी के जैसे कुछ नया एक्सपेरिमेंट किया जाए। गरम पानी में कॉस्टिक सोडा डाल के पंखे के ब्लेड डाल दिए। सारी चिकनाई 1 मिनट में गायब। पर होश उड़ गए ये देख के सारा कलर और पेंट भी उतर गया पंखे का। पंखा ब्राउन कलर का था, सिल्वर कलर के ब्लेड बन गए वो, जब तीनों ब्लेड बाहर निकले तो पंखा पूरा खराब हो चुका था, सारा पेंट गर्म पानी में मिल चुका था। 25-26 साल से जो चीज बाबूजी ने संभाल के रखी थी वो हमारी हीरोगिरी से खराब हो चुकी थी ! बाबूजी ने देखा और बोला कि “कोई बात नहीं,बहुत पुराना था, इस बहाने नया आ जाएगा”पर हम समझ चुके थे… बात सिर्फ पंखे के नहीं थी। लेकिन जो पुरानी चीजें,धरोहर, संस्कृति, पुरानी यादें, पुराना चाल चलन जिस तरह से बर्बाद कर रहे है उस पर किसी की नजर तक नहीं गई !हमारे माता-पिता, दादा-दादियों ने जो चीजें बरसो से संभाल के रखी थी, हम लोग शो ऑफ या मॉडर्न लाइफ के चक्कर मे खराब कर रहें है, इस तरह पंखे ने मुझे सिखाया की चीज़ों को संभालना कितना मुश्किल है।हमारे बच्चे बड़े होंगे तो शायद हमसे भी ज्यादा मुर्ख बनेंगे झापडीके, इसलिए पंखा समय से साफ कीजिए और अपने बच्चों को भी सिखाएं छोटी छोटी चीजों की कद्र करना। आज पंखा साफ करते हुए ये सब याद आ गया !😢धन्यवाद 🙏🙏