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🙏🌹ॐ 🌹🙏

गिलास को नीचे रख दीजिये!!

एक प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ में पानी से भरा एक गिलास पकड़ते हुए कक्षा शुरू की . उन्होंने उसे ऊपर उठा कर सभी छात्रों को दिखाया और पूछा – आपके हिसाब से गिलाद का वज़न कितना होगा?

’50 ग्राम….100 ग्राम…125 ग्राम’…छात्रों ने उत्तर दिया.

” जब तक मैं इसका वज़न ना कर लूँ मुझे इसका सही वज़न नहीं बता सकता”. प्रोफ़ेसर ने कहा.पर मेरा सवाल है !!

यदि मैं इस गिलास को थोड़ी देर तक इसी तरह उठा कर पकडे रहूँ तो क्या होगा ?”

‘कुछ नहीं’ …छात्रों ने कहा.

‘अच्छा !! अगर मैं इसे मैं इसी तरह एक घंटे तक उठाये रहूँ तो क्या होगा ? प्रोफ़ेसर ने पूछा.

‘आपका हाथ दर्द होने लगेगा’, एक छात्र ने कहा.

” तुम सही हो,अच्छा अगर मैं इसे इसी तरह पूरे दिन उठाये रहूँ तो का होगा?”

” आपका हाथ सुन्न हो सकता है, आपके मांसपेशियों में भारी तनाव आ सकता है , लकवा मार सकता है और पक्का आपको अस्पताल जाना पड़ सकता है”….किसी छात्र ने कहा और बाकी सभी हंस पड़े…

“बहुत अच्छा !! पर क्या इस दौरान गिलास का वज़न बदला? प्रोफ़ेसर ने पूछा.

उत्तर आया ..”नहीं”

” तब भला हाथ में दर्द और मांशपेशियों में तनाव क्यों आया?”

छात्र अचरज में पड़ गए.

फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ” अब दर्द से निजात पाने के लिए मैं क्या करूँ?”

” गिलास को नीचे रख दीजिये! एक छात्र ने कहा.

” बिलकुल सही!” प्रोफ़ेसर ने कहा.

जिन्दगी की समस्याएं भी कुछ इसी तरह होती हैं. इन्हें कुछ देर तक अपने दिमाग में रखिये और लगेगा की सब कुछ ठीक है.उनके बारे में ज्यदा देर सोचिये और आपको पीड़ा होने लगेगी.और इन्हें और भी देर तक अपने दिमाग में रखिये और ये आपको पैरालाइज करने लगेंगी. और आप कुछ नहीं कर पायेंगे.

अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों और समस्याओं के बारे में सोचना ज़रूरी है,पर उससे भी ज्यादा ज़रूरी है दिन के अंत में सोने जाने से पहले उन्हें नीचे रखना.इस तरह से, आप तनाव में नहीं रहेंगे, आप हर रोज़ मजबूती और ताजगी के साथ उठेंगे और सामने आने वाली किसी भी चुनौती का सामना कर सकेंगे।

🌸हम बदलेंगे,युग बदलेगा।🌸

आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो।

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एक गरीब आदमी था।”

वो हर रोज नजदीक के मंदिर में जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था।
अक्सर वो अपने प्रभू से कहता कि मुझे आशीर्वाद दीजिए तो मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए।
एक दिन ठाकुर जी ने बाल रूप में प्रगट हो उस आदमी से पूछ ही लिया कि क्या तुम मन्दिर में केवल इसीलिए, काम करने आते हो।
उस आदमी ने पूरी ईमानदारी से कहा कि हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं।
पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे।

बाल रूप ठाकुर जी ने कहा कि — तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा।
युवक चला गया।
समय ने पलटा खाया, वो अधिक धन कमाने लगा। इतना व्यस्त हो गया कि मन्दिर में जाना ही छूट गया।
कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही मन्दिर पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा।
ठाकुर जी फिर प्रगट हुए और उस व्यक्ति से बड़े ही आश्चर्य से पूछा–क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो, सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। वो व्यक्ति बोला–बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका।
व्यक्ति बोला,हे प्रभू, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया ?
प्रभू जी ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था?
जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना।
फिर आज यहां क्या करने आए हो?
उसकी आंखों में आंसू भर आए, ठाकुर जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला –अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करूंगा। बस दिल को शान्ति मिल जाए। ठाकुर जी ने कहा–पहले तय कर लो कि अब कुछ मागने के लिए मन्दिर की सेवा नहीं करोगे, बस मन की शांति के लिए ही आओगे। ठाकुर जी ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर ठाकुर जी को देखता रहा और बोला–मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है।।और श्री हरि की किरपा जब बरसती है तो वो बरसती ही जाती है।
जब भी मैं बुरे हालातों से घबराता हूँ..!
तब मेरे प्रभु जी कि आवाज़ आती है “रुक ……………… मैं आता हूँ”..!!🌹🙏🏻
ᖱ៩៩ᖰ♬ƙ ɉ♬ɨនɨ⩎❡Ϧ 🙏🏽
जय श्री राधे कृष्णा ❣️❣️

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प्रेरणादायक हिन्दी कहानी

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♻️💎▪️ मार्शमेलो_थ्योरी▪️💎♻️

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यह एक सच्ची घटना है,आप गूगल पर सर्च कर सकते है।
सच झूट से ज्यादा प्रेरणादायक है।

एक बार एक टीचर ने अपने विद्यालय में एक प्रयोग किया। टीचर ने क्लास के सभी स्टूडेंट्स को एक एक टॉफ़ी दी और कहा बच्चों! आपको दस मिनट तक अपनी टॉफ़ी नहीं खानी है।

इतना कहकर वो क्लास से बाहर चले गए।

कुछ पल के लिए क्लास में सन्नाटा छा गया। प्रत्येक स्टूडेंट सामने पड़ी टॉफ़ी को देख रहा था और जाने वाले हर पल के साथ खुद को रोक नहीं पा रहा था। दस मिनट पूरे हुए और टीचर क्लास में आये और समीक्षा की।

उन्होंने पाया की पूरी क्लास में सात स्टूडेंट्स ऐसे थे जिनकी टॉफियाँ वैसे ही रखी थी जैसी वो छोड़कर गए। बाकी सभी स्टूडेंट्स टॉफ़ी खाकर उसके कलर और टेस्ट पर डिस्कस कर रहे थे।

टीचर ने साइलेन्टली इन सात स्टूडेंट्स के नाम अपनी डायरी में लिख लिए और पढाना शुरू कर दिया।

इस टीचर का नाम प्रोफेसर वाल्टर था।

कुछ वर्षों के बाद प्रोफेसर वाल्टर ने अपनी वही डायरी खोली और सात स्टूडेंट के नाम निकाल कर उनके बारे में शोध शुरू किया कि वो स्टूडेंट अब कहाँ है। एक लंबे प्रयासों के बाद, उन्हें पता चला कि उन सातों स्टूडेंट ने अपने जीवन में कई सफलताओं को हासिल किया है और अपने अपने कार्य क्षेत्र में सबसे सफल है। प्रोफेसर वाल्टर ने अपने बाकी स्टूडेंट की भी समीक्षा की और यह पता चला कि उनमें से ज्यादातर एक आम जीवन जी रहे थे और बहुत से आर्थिक परेशानियां झेल रहे है ।

इस सभी प्रयास और शोध का परिणाम प्रोफेसर वाल्टर ने एक वाक्य में निकाला और वह यह था।

“जो आदमी दस मिनट तक धैर्य नहीं रख सकता, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता”

इस शोध को दुनिया भर में शोहरत मिली और इसका नाम “मार्श मेलो थ्योरी” रखा गया था क्योंकि प्रोफेसर वाल्टर ने स्टूडेंट्स को जो टॉफ़ी दी थी उसका नाम “मार्श मेलो” था।

इस थ्योरी के अनुसार दुनिया के सबसे सफल लोगों में कई गुणों के साथ एक गुण ‘धैर्य” भी पाया जाता है. क्योंकि यह ख़ूबी इंसान के बर्दाश्त की ताक़त को बढ़ाती है जिसकी बदौलत आदमी कठिन परिस्थितियों में निराश नहीं होता है और वह एक असाधारण व्यक्तित्व बन जाता है।
☺️☺️😊
जय-सियाराम

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🌞 ॐ श्री हरि नारायण प्रणाम🌞

🌸बहुत ही प्रेरणाप्रद कथा🌸

➖एक दरिद्र ब्राह्मण यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजर रहा था, बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया, किन्तु उस नगर मे किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अन्न नहीं दिया।

➖आखिर दोपहर हो गयी ,तो ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा था, सोच रहा था “कैसा मेरा दुर्भाग्य है इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक नहीं मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक नहीं मिला ?

➖इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस ब्राहम्ण पर पड़ी ,उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली, वे बड़े पहुँचे हुए संत थे ,उन्होंने कहाः “हे दरिद्र ब्राह्मण तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

➖यह सुनकर ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन् आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

➖महात्मा बोले, “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं ,अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब से ही जी रहे हैं। कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते की योनी से आया है, कोई हिरण की योनी से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है ,उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है, किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है ,और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता। “दूसरे में भी मेरा प्रभु ही है” यह ज्ञान नहीं होता। तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”

➖ब्राह्मण का चेहरा दुःख व निराशा से भरा था। सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण, मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

➖वह दरिद्र ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया और योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः

‘ओहोऽऽऽऽ….वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है तो कोई बघेरा है। आकृति तो मनुष्य की है ,लेकिन संस्कार पशुओं के हैं, मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’। घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है, ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया।

➖ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है ,औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ ,मुझे बड़ी भूख लगी है ,इसीलिए मैं तुझसे माँगता हूँ ,क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

➖उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु, आप भूखे हैं ? हे मेरे भग्वन आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

➖यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर (रेज़गारी) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हलवाई भाई, मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

➖यह कहकर मोची भागा,और घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया, एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया।

➖उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था, उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं, किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया, दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो राजा मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः

➖“अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा ,और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा।”

➖दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे, चित्त में दया-करूणा थी, ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था। मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया। राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी। राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ ,किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

➖मंत्री बोला “हुजूर यह मोची बाहर ही खड़ा है”

➖मोची को बुलाया गया। उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली। राजा ने कहाः

➖“जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं है,पाँच सौ रूपयों वाली जूती है। जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो!”

➖मोची बोलाः “राजा जी, तनिक ठहरिये, यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ”मोची जाकर विनयपूर्वक उस ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा जी, यह जूती इन्हीं की है।

”राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ, यात्रा करने निकला हूँ”

➖राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

➖मोची ने कहाः “राजन् मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मण देव की होगी। जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ। न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ?

➖इसीलिए राजन् ये रूपये मेरे नहीं हुए। मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं। हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया!”

➖राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?

➖”ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली बात बताई, और कहा कि राजन्, आप के राज्य में पशुओं के दर्शन तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का अंश इन मोची भाई में ही नज़र आया।

➖”राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें।”राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारियों में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ। राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर! उस के आश्चर्य की सीमा न रही, ‘ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ।’ राजा ने कहाः “ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है, वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

➖ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।”श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते।

➖ब्राह्मण ने आगे कहाः “राजन् अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है। व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है।

➖एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है ,लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है।”अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है ,और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हममें मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

गोस्वामी तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की, सुधरे अब और आजु।
तुलसी होई राम को, रामभजि तजि कुसमाजु।।

➖कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे। अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा। यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे। पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है। पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप बाहर निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है हरि नाम संकीर्तन व सत्संग से!तो हे आत्म जनों, मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता है।बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह जाता है..!!
🙏🏾🙏🙏🏿जय जय श्री राधे🙏🏽🙏🏻🙏🏼

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रात में एक चोर घर में घुसा..।


रात में एक चोर घर में घुसा..।

😀
😃

कमरे का दरवाजा खोला तो बरामदे पर एक बूढ़ी औरत सो रही थी।😴खटपट से उसकी आंख खुल गई। चोर ने घबरा कर देखातो 😦वह लेटे लेटे बोली….😄 ‘‘ बेटा, तुम देखने से किसी अच्छे घर के लगते हो, लगता है किसी परेशानी से मजबूर होकर इस रास्ते पर लग गए हो। चलो ….कोई बात नहीं। 😄अलमारी के तीसरे बक्से में एक तिजोरीहै ।😊इसमें का सारा माल तुम चुपचाप ले जाना। 😄मगर😃पहले मेरे पास आकर बैठो, मैंने अभी-अभी एक ख्वाबदेखा है । वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बतादो।”😄चोर उस बूढ़ी औरत की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया। 😐बुढ़िया ने अपना सपना सुनाना शुरु किया…😴 ‘‘बेटा, मैंने देखा कि मैं एक रेगिस्तान में खो गइ हूँ। ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने 3 बार जोर जोरसे बोला पंकज! पंक़ज! पंकज!!!बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आंख खुल गई। 😇..जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुई? ‘‘चोर सोच में पड़ गया। 😓इतने में बराबर वाले कमरे सेबुढ़िया का नौजवान बेटा पंकज अपना नामज़ोर ज़ोर से सुनकर उठ गया और अंदर आकर चोर कीजमकर धुनाई कर दी।😋😋😵😜 बुढ़िया बोली ‘‘बस करो अबयह अपने किए की सजा भुगत चुका।”😨 चोर बोला, “नहीं- नहीं ! मुझे और कूटो , सालों!….😧ताकि मुझे आगे याद रहे कि…… मैं चोर हूँ , सपनों का सौदागर नहीं। ‘‘

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एक वृद्ध ट्रेन में सफर कर रहा था,


एक वृद्ध ट्रेन में सफर कर रहा था, संयोग से वह कोच खाली था। तभी 8-10 लड़के उस कोच में आये और बैठ कर मस्ती करने लगे।एक ने कहा, “चलो, जंजीर खीचते है”. दूसरे ने कहा, “यहां लिखा है 500 रु जुर्माना ओर 6 माह की कैद.”तीसरे ने कहा, “इतने लोग है चंदा कर के 500 रु जमा कर देंगे.”चन्दा इकट्ठा किया गया तो 500 की जगह 1200 रु जमा हो गए. चंदा पहले लड़के के जेब मे रख दिया गया. तीसरे ने बोला, “जंजीर खीचते है, अगर कोई पूछता है, तो कह देंगे बूढ़े ने खीचा है। पैसे भी नही देने पड़ेंगे तब।”बूढ़े ने हाथ जोड़ के कहा, “बच्चो, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, मुझे क्यो फंसा रहे हो?”लेकिन किसी को दया नही आई। जंजीर खीची गई। टी टी ई आया सिपाही के साथ, लड़कों ने एक स्वर से कहा, “बूढे ने जंजीर खीची है।”टी टी बूढ़े से बोला, “शर्म नही आती इस उम्र में ऐसी हरकत करते हुए?”बूढ़े ने हाथ जोड़ कर कहा, “साहब” मैंने जंजीर खींची है, लेकिन मेरी बहुत मजबूरी थी।” उसने पूछा, “क्या मजबूरी थी?”बूढ़े ने कहा, “मेरे पास केवल 1200 रु थे, जिसे इन लड़को ने छीन लिए और इस लड़के ने अपनी जेब मे रखे है।”अब टीटी ने सिपाही से कहा, “इसकी तलाशी लो”. लड़के के जेब से 1200रु बरामद हुए.जिनको वृद्ध को वापस कर दिया गया और लड़कों को अगले स्टेशन में पुलिस के हवाले कर दिया गया।ले जाते समय लड़के ने वृद्ध की ओर देखा, वृद्ध ने सफेद दाढ़ी में हाथ फेरते हुए कहा …*”बेटा, ये बाल यूँ ही सफेद नही हुए है!”*

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एक महिला की आदत थी कि वह हर रोज सोने से पहले


एक महिला की आदत थी कि वह हर रोज सोने से पहले अपनी दिन भर की खुशियों को एक काग़ज़ पर लिख लिया करती थीं।एक रात उन्हों ने लिखा…मैं खुश हूं कि मेरा पति पूरी रात ज़ोरदार खर्राटे लेता है क्योंकि वह ज़िंदा है और मेरे पास है ना…ये भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि मेरा बेटा सुबह सवेरे इस बात पर झगड़ा करता है कि रात भर मच्छर-खटमल सोने नहीं देते यानी वह रात घर पर गुज़रता है आवारागर्दी नहीं करता…इस पर भी भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि हर महीना बिजली,गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का अच्छा खासा टैक्स देना पड़ता है ,यानी ये सब चीजें मेरे पास , मेरे इस्तेमाल में हैं ना… अगर यह ना होती तो ज़िन्दगी कितनी मुश्किल होती…?इस पर भी भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि दिन ख़त्म होने तक मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है यानी मेरे अंदर दिनभर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत सिर्फ भगवान ही के आशीर्वाद से हैमैं खुश हूं कि हर रोज अपने घर का झाड़ू पोछा करना पड़ता है और दरवाज़े -खिड़कियों को साफ करना पड़ता है शुक्र है मेरे पास घर तो है ना… जिनके पास छत नहीं उनका क्या हाल होता होगा…?इस पर भी भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि कभी कभार थोड़ी बीमार हो जाती हूँ यानी कि मैं ज़्यादा तर सेहतमंद ही रहती हूं इस पर भी भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि हर साल दिवाली पर उपहार देने में पर्स ख़ाली हो जाता है यानी मेरे पास चाहने वाले मेरे अज़ीज़ रिश्तेदार ,दोस्त ,अहबाब हैं जिन्हें उपहार दे सकूं…अगर ये ना हों तो ज़िन्दगी कितनी बे रौनक हो…?इस पर भी भगवान का शुक्र हैमैं खुश हूं कि हर रोज अलार्म की आवाज़ पर उठ जाती हूँ यानी मुझे हर रोज़ एक नई सुबह देखना नसीब होती है…ज़ाहिर है ये भी भगवान का ही करम है…जीने के इस फॉर्मूले पर अमल करते हुए अपनी भी और अपने से जुड़े सभी लोगों की ज़िंदगी संतोषपूर्ण बनानी चाहिए छोटी-छोटी परेशानियों में खुशियों की तलाश..”खुश रहने का अजीब अंदाज़…हर हाल में…खुश..😊

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એક ચાર વર્ષનો ભાઈ અને એની છ વર્ષની બહેનબંને


એક ચાર વર્ષનો ભાઈ અને એની છ વર્ષની બહેનબંને ભાઇ બહેન બજાર મા ફરવા નીકળ્યા છેનાનો ભાઈ છટા થી આગળ ચાલે છેઅને બહેન પાછળ છેથોડી થોડી વારે ભાઈ પાછળ જોતો જાય છે કે બહેન આવે છે કે નહીંરમકડા ની એક દુકાન આગળ બહેન ઊભી રહી જાય છેભાઈ નજીક આવી ને પૂછે છે”કેમતારે કાંઇ લેવુ છે ?”બહેને ઢીંગલી સામે આંગળી ચીંધીને બતાવ્યુંભાઈ એ બહેન ની આંગળી પકડીઅને એક વડીલ ની અદા થીબહેન ને એ ઢીંગલી હાથ મા આપીબહેન ખુબ જ ખુશ થઇકાઉન્ટર પર બેઠેલો વેપારીઆ ભાઈ બહેન ને બહાર થી જોતા હતાઅને ભાઈ ના માસુમ વડપણ ને નીરખી ને મનમાં મુસ્કુરાતા હતાકાઉન્ટર પાસે આવીને ચાર વર્ષનો એ બાળક બોલ્યો’આ ઢીંગલી નુ શું છે ?'”જીવતર ને ઘોળીને પી ગયેલા” એ વેપારી એ કહ્યું’તમારી પાસે શું છે ?’બાળકે ચડ્ડી ના ખીસ્સામાં થી સમુદ્ર ના છીપલા કાઢ્યાઅને કાઉન્ટર પર મુક્યાપેલા વેપારીએ એ જ માર્મિક હાસ્ય સાથે બાળક ઉપર અમીભરી દ્રષ્ટિ કરીઅને જેમ રુપિયા ગણે એમ છીપલા ગણ્યાબાળકે કહ્યું ‘કેમ ઓછા છે ?’વેપારી કહે’ના આમાંથી તો વધશે’વધેલા છીપલા ફરી ખીસ્સામાં નાખી અને ઢીંગલી રમાડતાં એ બાળકો તો જતાં રહ્યાં પણએના ગયા પછી વેપારી ને એના માણસે પૂછ્યું’આવી કિંમતી ઢીંગલી તમે છીપલા ના બદલા મા આપી દીધી ?’વેપારી એ કહ્યું’ભાઈ, આપણે મન આ છીપલા છેએને મન તો એની સંપતિ છેઅનેઅત્યારે એને ભલે ના સમજાયપણ એ મોટા થશે ત્યારે તો એને સમજાશ નેેકે છીપ ના બદલે આપણે ઢીંગલી લઈ આવેલા ત્યાંરે એ મને યાદ કરશેઅનેએ વિચારશે કે દુનિયામાં સજ્જન માણસો પણ છે’ કૈંક ઈચ્છાઓ અધૂરી હોય છે,જિંદગી તોયે મધૂરી હોય છે,દ્રાક્ષ ખાટી દર વખત હોતી નથી,જીભ પણ ક્યારેક તૂરી હોય છે.લીમડાના પાન મેં પણ ચાખ્યાછેમાણસના બોલ કરતા મીઠા લાગ્યાછેજિંદગી રોજ મને શીખવે કે જીવતા શીખ,એક સાંધતા તેર તૂટશે, પણ સીવતા શીખ..”મન ભરીને જીવો,મનમાં ભરીને નહી” –

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वाणी का महत्व वागाम्भृणी देवी

RV10.125, AV4.30

1.अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेव्यैः !

अहं मित्रावरुणोभा बिभर्यमिंद्राग्नी अहमश्विनोभा!!

अथर्व 4.30.1,ऋ10.125.1

मैं वाक शक्ति पृथिवी के आठ वसुओं , ग्यारह प्राण.आदित्यों बारह मासों, विश्वेदेवाः ऋतुओं और मित्रा वरुणा दिन और रात द्यौलोक और भूलोक सब को धारण करती हूं. ( मानव सम्पूर्ण विश्व पर वाक शक्ति के सामर्थ्य से ही अपना कार्य क्षेत्र स्थापित करता है)

  1. अहं राष्ट्री सङ्गमनी वसूनां चिकितुषो प्रथमा यज्ञियानाम्‌!

तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयंतः !!

अथर्व 4.30.2 ऋ10.125.3

मैं (वाक शक्ति) जगद्रूप राष्ट्र की स्वामिनी हो कर धन प्रदान करने वाली हूँ , सब वसुओं को मिला कर सृष्टि का सामंजस्य बनाये रख कर सब को ज्ञान देने वाली हूँ. यज्ञ द्वारा सब देवों मे अग्रगण्य हूँ. अनेक स्थानों पर अनेक रूप से प्रतिष्ठित रहती हूँ.

3.अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवानामुत मानुषाणाम्‌ !

तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम्‌!!

अथर्व 4.30.3ऋ10.125.5

संसार में जो भी ज्ञान है देवत्व धारण करने पर मनुष्यों में उस दैवीय ज्ञान का प्रकाश मैं (वाक शक्ति) ही करती हूँ. मेरे द्वारा ही मनुष्यों में क्षत्रिय स्वभाव की उग्रता, ऋषियों जैसा ब्राह्मण्त्व और मेधा स्थापित होती है.

4.मया सोSन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्रणीति य ईं शृणोत्युक्तम्‌ !

अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धेयं ते वदामि !!अथर्व 4.30.4ऋ10.125.4

मेरे द्वारा ही अन्न प्राप्ति के साधन बनते हैं, जो भी कुछ कहा जाता है, सुना जाता है, देखा जाता है, मुझे श्रद्धा से ध्यान देने से ही प्राप्त होता है. जो मेरी उपेक्षा करते हैं , मुझे अनसुनी कर देते हैं, वे अपना विनाश कर लेते हैं.

5.अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विशे शरवे हन्तवा उ !

अहं जनाय सुमदं कृणोभ्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश !!

अथर्व 4.30.5ऋ10.125.6

असमाजिक दुष्कर्मा शक्तियों के विरुद्ध संग्राम की भूमिका मेरे द्वारा ही स्थापित होती है. पार्थिव जीवन मे विवादों के निराकरण से मेरे द्वारा ही शांति स्थापित होती है.

  1. अहं सोममाहनसं विभर्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्‌!

अहं दधामि द्रविणा हविष्मते सुप्राव्या3 यजमानाय सुन्वते !!

अथर्व 4.30.6 ऋ10.125,2

श्रम, उद्योग, कृषि, द्वारा जीवन में आनंद के साधन मेरे द्वारा ही सम्भव होते हैं . जो धन धान्य से भर पोर्र समृद्धि प्रदान करते हैं.

  1. अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्व1न्तः समुद्रे!

ततो वि तिष्ठे भुवनानि विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृश्यामि!!

अथर्व 4.30.7ऋ10.125.7

मैं अंतःकरण में गर्भावस्था से ही पूर्वजन्मों के संस्कारों का अपार समुद्र ले कर मनुष्य के मस्तिष्क में स्थापित होती हूँ पृथ्वी तथा द्युलोक के भुवनों तक स्थापित होती हूँ.

8.अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा !

परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिम्ना सं बभूव !!

अथर्व 4.30.8 ऋ 10.125.8

मैं ही सब भुवनों पृथ्वी के परे द्युलोक तक वायु के समान फैल कर अपने मह्त्व को विशाल होता देखती हूँ

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मनमोहन सिंह सत्ता में थे… प्रतिभा पाटिल देश की राष्ट्रपति थी तभी अचानक एक खबर ने सबको चौंका दिया कि एक बेहद कट्टरपंथी मुस्लिम गुलाम वाहनवटी भारत का अटार्नी जनरल नियुक्त हुआ

गुलाम वाहनवती अपने हिंदू विरोधी होने के लिए मशहूर था

उसने सुप्रीम कोर्ट ने में भारत सरकार की तरफ से वह केस लड़ा था जिसमें रामसेतु तोड़ने की बात थी और इसी गुलाम वाहनवती के सलाह पर भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया था की रामायण काल्पनिक है राम रावण युद्ध कभी हुआ ही नहीं था रामसेतु तो एक प्राकृतिक संरचना है

मुसलमानों को ओबीसी कोटे में शामिल करने का केस हो

इतना ही नहीं उस वक्त भारतीय सेना के प्रमुख थे जनरल वीके सिंह यह गुलाम वाहनवती उनकी फर्जी सर्टिफिकेट बना कर सुप्रीम कोर्ट में उन्हें जबरदस्ती रिटायर करने की अपील किया था हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इसे लात खानी पड़ी थी क्योंकि जांच में वह सर्टिफिकेट फर्जी निकला था

इतना कट्टर मुसलमान भारत का अटार्नी जनरल बनकर भारत की लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसीज को अपने इस्लामी एजेंडे से चला रहा था

फिर अप्रैल 2014 में एडीशनल सॉलीसीटर जनरल हरिन पी रावल ने यह सनसनीखेज आरोप लगा दिया की गुलाम वाहनवती अपना कट्टर इस्लामिक एजेंडा चला रहे हैं इस आरोप के बाद इसे अपना पद छोड़ना पड़ा था

और इस कट्टरपंथी मुस्लिम को भारत का अटॉर्नी जनरल नियुक्त करने के पीछे अहमद पटेल था जिसने अब तक की सबसे भ्रष्ट राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के द्वारा उनका नियुक्ति करवाया था