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जन्म के बारह उपहार

एक बार, बहुत समय पहले, जब राजकुमारों और राजकुमारियों को दूर के राज्यों में रहते थे, तो शाही बच्चों को जन्म के समय बारह विशेष उपहार दिए जाते थे। आपने कहानियां सुनी होंगी। राज्य की बारह बुद्धिमान महिलाएं, या परी गॉडमदर, जैसा कि अक्सर कहा जाता था, जब भी कोई नया राजकुमार या राजकुमारी दुनिया में आता था, तो वह तेजी से महल की यात्रा करता था। प्रत्येक परी गॉडमदर ने शाही बच्चे पर एक महान उपहार का उच्चारण किया।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, समझदार महिलाओं को यह समझ में आया कि जन्म के बारह शाही उपहार हर बच्चे के हैं, जो कभी भी कहीं भी पैदा होते हैं। वे सभी बच्चों को उपहारों की घोषणा करने के लिए तरस गए, लेकिन भूमि के रीति-रिवाजों ने इसकी अनुमति नहीं दी।

एक दिन जब बुद्धिमान महिलाएं इकट्ठी हुईं तो उन्होंने यह भविष्यवाणी की:

किसी दिन, दुनिया के सभी बच्चे अपने महान विरासत के बारे में सच्चाई सीखेंगे। जब ऐसा होता है तो एक चमत्कार पृथ्वी के राज्य पर प्रकट होगा।

किसी दिन पास है। यहां वह रहस्य है जो वे आपको जानना चाहते हैं।

आप जिस अद्भुत क्षण में पैदा हुए थे, जैसे ही आपने अपनी पहली सांस ली, आकाश में एक महान उत्सव मनाया गया और बारह शानदार उपहार आपको प्रदान किए गए।

  1. शक्ति पहला उपहार है। जब भी आपको जरूरत हो, आप इसे कॉल करना याद कर सकते हैं।
  2. सौंदर्य दूसरा उपहार है। आपके कर्म इसकी गहराई को दर्शा सकते हैं।
  3. साहस तीसरा उपहार है। आप आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं और कार्य करते हैं और साहस का उपयोग करते हुए अपने रास्ते पर चलते हैं।
  4. करुणा चौथा उपहार है। आप स्वयं और दूसरों के साथ सौम्य रहें। जब आप गलती करते हैं तो आपको और खुद को चोट पहुंचाने वालों को माफ कर सकते हैं।
  5. आशा पाँचवाँ उपहार है। प्रत्येक मार्ग और सीज़न के माध्यम से, आप जीवन की अच्छाई पर भरोसा कर सकते हैं।
  6. खुशी छठा उपहार है। यह आपके दिल को खुला रख सकता है और रोशनी से भर सकता है।
  7. प्रतिभा सातवां उपहार है। आप अपनी स्वयं की विशेष क्षमताओं की खोज कर सकते हैं और एक बेहतर दुनिया की ओर उनका योगदान कर सकते हैं।
  8. कल्पना आठवां उपहार है। यह आपके सपने और सपनों को पोषण कर सकता है।
  9. श्रद्धा नौवां उपहार है। आप इस आश्चर्य की सराहना कर सकते हैं कि आप सभी सृष्टि के चमत्कार हैं।
  10. बुद्धि दसवाँ उपहार है। अपने तरीके से मार्गदर्शन, ज्ञान आपको ज्ञान के माध्यम से समझने की ओर ले जाएगा। क्या आप इसकी नरम आवाज सुन सकते हैं।
  11. प्रेम एकादश उपहार है। यह हर बार जब आप इसे दे देंगे तो यह बढ़ेगा।
  12. आस्था बारहवाँ उपहार है। आपको विश्वास हो सकता है

अब आप अपने जन्म के बारह उपहारों के बारे में जानते हैं। लेकिन उस रहस्य के बारे में अधिक है जो बुद्धिमान महिलाओं को पता था। अपने उपहारों का अच्छी तरह से उपयोग करें और आप दूसरों को खोज लेंगे, उनमें से एक ऐसा उपहार जो आपके लिए विशिष्ट है। अन्य लोगों में इन महान उपहार देखें। सत्य को साझा करें और चमत्कार के लिए तैयार रहें क्योंकि बुद्धिमान महिलाओं की भविष्यवाणी सच हो जाती है।

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एक अंधा…भीख मांगता हुआ एक


एक अंधा…भीख मांगता हुआ एक विख्यात राजा के द्वार पर पंहुचा। राजा को दया आ गयी…राजा ने प्रधानमंत्री से कहा,- “यह भिक्षुक जन्मान्ध नहीं है,यह ठीक हो सकता है, इसे राजवैद्य के पास ले चलो।”

रास्ते में मंत्री कहता है, “महाराज..यह भिक्षुक शरीर से हृष्ट-पुष्ट है,यदि इसकी रोशनी लौट आयी तो इसे आपका सारा भ्र्ष्टाचार दिखेगा,आपकी शानोशौकत और फिजूलखर्ची दिखेगी।आपके राजमहल की विलासिता और निवास का अथाह खर्च दिखेगा,इसे यह भी दिखेगा कि जनता भूख और प्यास से तड़प रही है,सूखे से अनाज का उत्पादन हुआ ही नहीं, और आपके सैनिक पहले से चौगुना लगान वसूल रहे हैं।शाही खर्चे में बढ़ोत्तरी के कारण राजकोष रिक्त हो रहा है,जिसकी भरपाई हम सेना में कटौती करके कर रहे हैं, इससे हजारों सैनिक और कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं।ठीक होने पर यह भी औरों की तरह ही रोजगार की मांग करेगा और आपका ही विरोधी बन जायेगा।

मेरी मानिये तो…यह आपसे मात्र दो वक्त का भोजन ही तो मांगता है….इसे आप राजमहल में बैठाकर मुफ्त में सुबह-शाम भोजन कराइये और दिन भर इसे घूमने के लिए छोड़ दीजिये।

यह _पूरे राज्य में आपका गुणगान करता फिरेगा,_ कि…
राजा बहुत न्यायी हैं, बहुत ही दयावान और परोपकारी हैं।

इस तरह मुफ्त में खिलाने से आपका संकट कम होगा
और…आप लंबे समय तक शासन कर सकेंगे।”

राजा को यह बात समझ में आ गयी,

वह वापस अंधे के पास गया और दोनों उसे उठाकर राजमहल ले आये।

अब अँधा राजा का पूरे राज्य में गुणगान करता फिरता है,

उसे यह नहीं पता कि राजा ने उसके साथ धूर्तता की है,
छल किया है,
_वह ठीक होकर स्वयं कमा कर अपनी आँखों से संसार का आनंद ले सकता था।_

यही हाल सरकारें करती हैं, हमे मुफ्त का लालच देती हैं,
किंतु…
_आँखों की रोशनी (अच्छी शिक्षा व रोजगार) नहीं देतीं,_
जिससे कि हम उनका भ्रष्टाचार देख पाएं,
उनकी फिजूलखर्जी और गुंडागर्दी देख पाएं,
उनका *शोषण और अन्याय देख पाएं।*

और हम *अंधे की तरह उनका गुणगान करते हैं, कि राजा मुफ्त में सबको सामान देते हैं।*

हम यह नहीं सोचते कि यदि हमें *अच्छी शिक्षा और रोजगार सरकारें दें* तो…
हमें उनकी खैरात की जरूरत न होगी, हम स्वतः ही सब खरीद सकते हैं। पर…

हम *सभी अंधे जो ठहरे,* केवल मुफ्त की चीजें ही हमें दिखती हैं।

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किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे. उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था । एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी.

सुबह उन्होंने पुजारी जी को खूब डाँटा कि ~ यह सब क्या है?

पुजारी जी बोले ~ एकादशी का जागरण कीर्तन चल रहा था.

सेठजी बोले ~ जागरण कीर्तन करते हो, तो क्या हमारी नींद हराम करोगे ? अच्छी नींद के बाद ही व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है फिर कमाता है, तब खाता है.

इसके बाद पुजारी और सेठ के बीच हुआ संवाद —

पुजारी~सेठजी ! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है.

सेठजी ~ कौन खिलाता है ? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा ?

पुजारी ~ वही तो खिलाता है.

सेठजी ~ क्या भगवान खिलाता है ! हम कमाते हैं तब खाते हैं.

पुजारी ~ निमित्त होता है तुम्हारा कमाना, और पत्नी का रोटी बनाना, बाकी सब को खिलाने वाला, सब का पालनहार तो वह जगन्नाथ ही है.

सेठजी ~ क्या पालनहार – पालनहार लगा रखा है ! बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो. क्या तुम्हारा पालने वाला एक – एक को आकर खिलाता है ? हम कमाते हैं तभी तो खाते हैं.

पुजारी ~ सभी को वही खिलाता है.

सेठजी ~ हम नहीं खाते उसका दिया.

पुजारी ~ नहीं खाओ तो मारकर भी खिलाता है.

सेठ ने कहा ~ पुजारी जी ! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चौबीस घंटों में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन-कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा.

पुजारी ~मैं जानता हूँ कि तुम्हारी पहुँच बहुत ऊपर तक है, लेकिन उसके हाथ बड़े लम्बे हैं.जब तक वह नहीं चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता आजमाकर देख लेना.

निश्चित ही पुजारी जी भगवान में प्रीति रखने वाले कोई सात्त्विक भक्त रहें होंगे. पुजारी की निष्ठा परखने के लिये सेठ जी घोर जंगल में चले गये और एक विशालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर ये सोचकर बैठ गये कि अब देखें इधर कौन खिलाने आता है?
चौबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी. सदा के लिए कीर्तन की झंझट मिट जायेगी.

तभी एक अजनबी आदमी वहाँ आया. उसने उसी वृक्ष के नीचे आराम किया, फिर अपना सामान उठाकर चल दिया, लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया.। भूल गया कहो या छोड़ गया कहो

भगवान ने किसी मनुष्य को प्रेरणा की थी अथवा मनुष्य रूप में साक्षात् भगवान ही वहाँ आये थे यह तो भगवान ही जानें !

थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ पहुँचे उनमें से एक ने अपने सरदार से कहा,उस्ताद ! यहाँ कोई थैला पड़ा है.

क्या है ? जरा देखो ! खोल कर देखा, तो उसमें गरमा – गरम भोजन से भरा टिफिन!

उस्ताद भूख लगी है. लगता है यह भोजन भगवान ने हमारे लिए ही भेजा है.

अरे ! तेरा भगवान यहाँ कैसे भोजन भेजेगा ? हम को पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा,अथवा पुलिस का कोई षडयंत्र होगा. इधर – उधर देखो जरा,कौन रखकर गया है.

उन्होंने इधर-उधर देखा,लेकिन कोई भी आदमी नहीं दिखा.तब डाकुओं के मुखिया ने जोर से आवाज लगायी,कोई हो तो बताये कि यह थैला यहाँ कौन छोड़ गया है?

सेठजी ऊपर बैठे – बैठे सोचने लगे कि अगर मैं कुछ बोलूँगा तो ये मेरे ही गले पड़ेंगे.

वे तो चुप रहे,लेकिन जो सबके हृदय की धड़कनें चलाता है, भक्तवत्सल है, वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शाँत नहीं रहता.

उसने उन डकैतों को प्रेरित किया उनके मन में प्रेरणा दी कि ..’ऊपर भी देखो.’ उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा. डकैत चिल्लाये, अरे ! नीचे उतर!

सेठजी बोले, मैं नहीं उतरता.

क्यों नहीं उतरता,यह भोजन तूने ही रखा होगा.

सेठजी बोले,मैंने नहीं रखा.कोई यात्री अभी यहाँ आया था,वही इसे यहाँ भूलकर चला गया.

नीचे उतर!तूने ही रखा होगा जहर मिलाकर,और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है.तुझे ही यह भोजन खाना पड़ेगा.

अब कौन-सा काम वह सर्वेश्वर किसके द्वारा,किस निमित्त से करवाये अथवा उसके लिए क्या रूप ले,यह उसकी मर्जी की बात है.बड़ी गजब की व्यवस्था है उस परमेश्वर की.

सेठजी बोले ~ मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा.

पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है. अरे ! नीचे उतर अब तो तुझे खाना ही होगा.

सेठजी बोले ~ मैं नहीं खाऊँगा. नीचे भी नहीं उतरूँगा.

अरे कैसे नहीं उतरेगा.

सरदार ने एक आदमी को हुक्म दिया इसको जबरदस्ती नीचे उतारो

डकैत ने सेठ को पकड़कर नीचे उतारा.

ले खाना खा!

सेठ जी बोले ~ मैं नहीं खाऊँगा.

उस्ताद ने धड़ाक से उनके मुँह पर तमाचा जड़ दिया.

सेठ को पुजारी जी की बात याद आयी कि ~नहीं खाओगे तो, मारकर भी खिलायेगा.

सेठ फिर बोला ~ मैं नहीं खाऊँगा

अरे कैसे नहीं खायेगा ! इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो.

डकैतों ने सेठ की नाक दबायी, मुँह खुलवाया और जबरदस्ती खिलाने लगे. वे नहीं खा रहे थे, तो डकैत उन्हें पीटने लगे.

तब सेठ जी ने सोचा कि ये पाँच हैं और मैं अकेला हूँ. नहीं खाऊँगा तो ये मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे. इसलिए चुपचाप खाने लगे और मन-ही-मन कहा ~ मान गये मेरे बाप ! मार कर भी खिलाता है!

डकैतों के रूप में आकर खिला, चाहे भक्तों के रूप में आकर खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है. आपने पुजारी की बात सत्य साबित कर दिखायी.

सेठजी के मन में भक्ति की धारा फूट पड़ी.

उनको मार-पीट कर …डकैत वहाँ से चले गये, तो सेठजी भागे और पुजारी जी के पास आकर बोले ~
पुजारी जी ! मान गये आपकी बात ~कि नहीं खायें तो वह मार कर भी खिलाता है.

संसार जगत में निमित्त तो कोई भी हो सकता है किन्तु सत्य यही है कि भगवान ही जगत की व्यवस्था का कुशल संचालन करते हैं ।अतः अपने जगत के आधार भगवानपर विश्वास ही नहीं बल्कि दृढ़ विश्वास होना चाहिए ।

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