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अपनी कीमत


अपनी कीमत

एक युवक बहुत परेशान रहता था। उसके पास रोजगार का कोई साधन नहीं था। विधवा मां के अलावा छोटे भाई बहनों के भरण पोषण का दायित्व भी उसी के ऊपर था। तकलीफों से टूट कर वह अपने जीवन का अंत करने की सोच रहा था। लेकिन मां और छोटे भाई बहनों का विचार आ जाता और इस विचार को झटक देता। मगर फिर उसी उलझन में डूब जाता। एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। साधु को उसने मन की बात बताई। साधु ने उससे पूछा कि वह आत्महत्या क्यों करना चाहता है ? युवक ने कहा, ‘महाराज गरीबी से परेशान हूँ। जिंदगी में कुछ आकर्षण नहीं बचा। पास में कुछ भी नहीं है, आत्महत्याना करुं तो क्या करूँ ? साधु ने कहा, ‘तेरे पास बहुत कुछ है। समस्या है कि तुझे उस की परख नहीं है। तू घबरा मत। मेरे साथ चल। यहां का राजा मेरा भक्त है। तेरे पास जो है उसमें से कुछ बिकवा देगा। तेरी समस्या हल हो जाएगी। साधु उसे महल के दरवाजे तक ले आया। उसने युवक से कहा, ‘तू बाहर ठहर मैं अभी आया। महल से बाहर आ साधु युवक से बोला, बोल एक लाख सोने की मोहरें दिलवा दें तो कैसा रहेगा?’ युवक हैरान होकर बोला, पर आप बिकवा क्या रहे हैं? साधु ने कहा, ‘तेरे पास कुछ और तो है नहीं तो क्यों ना तेरी आँखें बिकवा दें। युवक ने कहा, अपना आँखें तो मैं किसी कीमत पर नहीं दूँगा।’ साधु ने मुस्कुरा कर कह, ‘तो हाथ ही दे दो। युवक साधु का आशय समझ गया। अब उसे अपना मूल्य समझ में आ रहा था। युवक बोला-महाराज ! आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। मैं आज से ही काम की तलाश में जुट जाऊंगा। साधु ने ने कहा, ‘दरअसल, हमारे पास जो है उसका मूल्य हमें तब तक पता नहीं चलता जब तक वह चीज हमारे पास से चली ना जाए, छीन ना ली जाए। संतोष तो उससे हैजो हमारे पास है।’ संकलन: नवनीत प्रियादास पुस्तक: ‘सोच से परे जीवन’

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जंगल के स्कूल का रिजल्ट


जंगल के स्कूल का रिजल्ट 😗

   हुआ यूँ कि जंगल के राजा शेर ने ऐलान कर दिया कि अब आज के बाद कोई अनपढ़ न रहेगा। हर पशु को अपना बच्चा स्कूल भेजना होगा। राजा साहब का स्कूल पढ़ा-लिखाकर सबको Certificate बँटेगा।

   सब बच्चे चले स्कूल। हाथी का बच्चा भी आया, शेर का भी, बंदर भी आया और मछली भी, खरगोश भी आया तो कछुआ भी, ऊँट भी और जिराफ भी।

FIRST UNIT TEST/EXAM हुआ तो हाथी का बच्चा फेल।

“किस Subject में फेल हो गया जी?”

“पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गया, हाथी का बच्चा।”

“अब का करें?”

“ट्यूशन दिलवाओ, कोचिंग में भेजो।”

  अब हाथी की जिन्दगी का एक ही मक़सद था कि हमारे बच्चे को पेड़ पर चढ़ने में Top कराना है।

 किसी तरह साल बीता। Final Result आया तो हाथी, ऊँट, जिराफ सब फेल हो गए। बंदर की औलाद first आयी। Principal ने Stage पर बुलाकर मैडल दिया। बंदर ने उछल-उछल के कलाबाजियाँ दिखाकरगुलाटियाँ मार कर खुशी का इजहार किया। उधर अपमानित महसूस कर रहे हाथी, ऊँट और जिराफ ने अपने-अपने बच्चे कूट दिये। नालायकों, इतने महँगे स्कूल में पढ़ाते हैं तुमको | ट्यूशन-कोचिंग सब लगवाए हैं। फिर भी आज तक तुम पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखे। सीखो, बंदर के बच्चे से सीखो कुछ, पढ़ाई पर ध्यान दो।

  फेल हालांकि मछली भी हुई थी। बेशक़ Swimming में First आयी थी पर बाकी subject में तो फेल ही थी। मास्टरनी बोली, "आपकी बेटी  के साथ attendance की problem है।" मछली ने बेटी को आँखें दिखाई। बेटी ने समझाने की कोशिश की कि, "माँ, मेरा दम घुटता है इस स्कूल में। मुझे साँस ही नहीं आती। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। हमारा स्कूल तो तालाब में होना चाहिये न?" नहीं, ये राजा का स्कूल है। तालाब वाले स्कूल में भेजकर मुझे अपनी बेइज्जती नहीं करानी। समाज में कुछ इज्जत Reputation है मेरी। तुमको इसी स्कूल में पढ़ना है। पढ़ाई पर ध्यान दो।"

   हाथी, ऊँट और जिराफ अपने-अपने Failure बच्चों को पीटते हुए ले जा रहे थे। रास्ते में बूढ़े बरगद ने पूछा, "क्यों पीट रहे हो, बच्चों को?" जिराफ बोला, "पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गए?"

बूढ़ा बरगद सबसे फ़ते की बात बोला, “पर इन्हें पेड़ पर चढ़ाना ही क्यों है ?” उसने हाथी से कहा, “अपनी सूंड उठाओ और सबसे ऊँचा फल तोड़ लो। जिराफ तुम अपनी लंबी गर्दन उठाओ और सबसे ऊँचे पत्ते तोड़-तोड़ कर खाओ।”ऊँट भी गर्दन लंबी करके फल पत्ते खाने लगा। हाथी के बच्चे को क्यों चढ़ाना चाहते हो पेड़ पर? मछली को तालाब में ही सीखने दो न?

दुर्भाग्य से आज स्कूली शिक्षा का पूरा Curriculum और Syllabus सिर्फ बंदर के बच्चे के लिये ही Designed है। इस स्कूल में 35 बच्चों की क्लास में सिर्फ बंदर ही First आएगा। बाकी सबको फेल होना ही है। हर बच्चे के लिए अलग Syllabus, अलग subject और अलग स्कूल चाहिये।

    हाथी के बच्चे को पेड़ पर चढ़ाकर अपमानित मत करो। जबर्दस्ती उसके ऊपर फेलियर का ठप्पा मत लगाओ। ठीक है, बंदर का उत्साहवर्धन करो पर शेष 34 बच्चों को नालायक, कामचोर, लापरवाह, Duffer, Failure घोषित मत करो।

   मछली बेशक़ पेड़ पर न चढ़ पाये पर एक दिन वो पूरा समंदर नाप देगी।

शिक्षा – अपने बच्चों की क्षमताओं व प्रतिभा की कद्र करें चाहे वह पढ़ाई, खेल, नाच, गाने, कला, अभिनय, BUSINESS, खेती, बागवानी, मकेनिकल, किसी भी क्षेत्र में हो और उन्हें उसी दिशा में अच्छा करने दें | जरूरी नहीं कि सभी बच्चे पढ़ने में ही अव्वल हो बस जरूरत हैं उनमें अच्छे संस्कार व नैतिक मूल्यों की जिससे बच्चे गलत रास्ते नहीं चुने l
सभी अभिभावकों को सादर समर्पित

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विचार संजीवनी


विचार संजीवनी

एक सेठ जी का इकलौता बेटा वेश्यागामी हो गया था। और भी ऐसा कौन सा ऐब था, जो उस लड़के में नहीं था? तो सेठ उसकी चिंता से ही घिरा रहता था।

एक उस सेठ ने अपने बेटे की जन्मकुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने कहा-

आपका बेटा करोड़पति बनेगा।
सेठ ने कहा- इसमें बताने वाली कौन सी बात है? जब मैं ही करोड़पति हूँ, तो मेरा बेटा तो करोड़पति होगा ही।

ज्योतिषी बोला- नहीं नहीं, एक बार वह सारा धन खो देगा, फिर करोड़पति बनेगा।

सेठ ने सोचा कि यह तो सारा धन खो हो देगा, फिर धन इकट्ठा करके इसे देने से क्या लाभ?

सेठ ने अपना सारा कारोबार आदि बेच कर, सारा धन, हीरे, सोना आदि घर के आँगन में दबा दिया, उसके ऊपर एक खम्बा गड़वा दिया और बेटे के नाम एक चिठ्ठी छोड़ कर, खुद सन्यासी हो गया।

बेटा घर आया तो चिठ्ठी पढ़ी। उसमें लिखा था कि इतना इतना धन आदि श्री खम्बा सिंह से ले लेना।

अब उस बेटे के पास पैसे तो बचे नहीं थे, तो मित्र आदि भी अकेला छोड़ गए। हार कर वह खम्बा सिंह को ढूंढने लगा। ढूंढते ढूंढते आधा देश छान मारा। योंही बहुत समय बीत गया पर कोई खम्बा सिंह होता तब तो मिलता।
आखिर वह थक कर वापिस अपने घर आ गया। इतने में दरवाजे पर किसी संत ने आवाज लगाई।

संत बोले- आज रात मुझे यहाँ सोने दो।

लड़का बोला- भाग यहाँ से! मेरे पास कुछ नहीं है।

संत बोले- मुझे कुछ चाहिए नहीं। मेरे पास भोजन है। बल्कि तुम भी खा लेना।

लड़के ने सोचा- आज तक जो भी आया, खाने वाला ही आया। कोई खिलाने वाला तो पहली बार ही आया है।

लड़के ने संत को भीतर बुला लिया, दोनों ने भोजन किया। संत ने पूछा- तुम लगते तो धनी हो, तब तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई?

लड़के ने सारी बात बताई और वह चिठ्ठी दिखाई। संत ने कहा कि मुझे अपना घर दिखाओ। लड़के ने आँगन का दरवाजा खोल दिया। संत ने देखा कि आँगन के बीचों बीच एक खम्बा गड़ा है।
संत ने पूछा- यह खम्बा यहाँ कब से गड़ा है?

लड़का बोला- यह तो मुझे भी नहीं मालूम। मैं कभी भीतर आया ही नहीं। मैंने भी आज ही देखा है।

संत ने कहा आओ यह खम्बा उखाड़ते हैं। खम्बा उखाड़ा तो धन मिल गया। इतने समय के संघर्ष से लड़का भी सुधर चुका था।

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तुम्हारा धन भी तुम्हारे आँगन में गड़ा है, भीतर गड़ा है, मन में गड़ा है। वह खम्बा सिंह है तुम्हारे भीतर, तुम खोज रहे हो बाहर।

हो अरबपति, बने हो भिखारी। जिनको मित्र समझा, सब मतलब के साथी निकले।

तुम संत को भीतर आने तो दो। उसके लिए अपने मन का दरवाजा तो खोलो। वह तुम्हें तुम्हारा गड़ा हुआ धन दिला देगा। तुम्हें ईश्वर से मिला देगा।

देर मत करो। अभी निर्णय करो।
यह तय करने में ‘समय’ न लगाओ कि ‘आपको क्या करना है?’

वरना ‘समय’ तय कर लेगा कि ‘आपका क्या करना है.. ?’

राम राम जी मित्रों 🙏🏽🙏🏽