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ખરેખર વાંચીને મોં માંથી “આહ” અને “વાહ” નીકળી ગયુ…


હસુભાઈ ઠક્કર

ખરેખર વાંચીને મોં માંથી “આહ” અને “વાહ” નીકળી ગયુ…

એક બહેન રેલવેની ભીડને ચીરતા ખૂબ ઉતાવળેથી પોતાના ઘરે જઈ રહયા છે. એક ગરીબ ભીખારણને એક ઉપેક્ષિત નજરે જોઈ આગળ વધી જાય છે. અચાનક તેમના ડગ આગળ વધતા અટકી જાય છે. ધીમે રહી પોતાની નજર પાછળ ઘુમાવી એ પેલી ભીખારણ પાસે જાય છે. ધ્યાન થી જોતા તેમનો ચહેરો સહેજ પરિચિત લાગે છે. તેમનું નામ ખૂબ નમ્ર ભાવે પૂછતાં એ ભીખારણ પોતાનું નામ જણાવે છે. એ સાંભળતા જ બહેન ધ્રુસકે ને ધ્રુસકે રડવા લાગે છે. આ એજ એના પથ દર્શક મેથ્સના ટીચર જે તેના જેવા હજારો વિદ્યાર્થીઓના પ્રેરણાદાયક વ્યક્તિ છે એ જાણી તે બહેન ગમગીન થઈ જાય છે. તેમને પોતાની સાથે પોતાના ઘરે લઈ જઈ ,સ્નાન કરાવી ,નવા કપડાં પહેરાવી તેમને પૂછતાં દિલ દહેલાવી દે તેવી એક કથા સાંભળવા મળી. પતિના મૃત્યુ પછી 3 દીકરામાંથી એક પણ દીકરો એક પણ ટંક નું ભોજન આપવા રેડી નથી. રહેવા માટેના માતા -પિતાના ઘરને વેચી નાખી તેના 3 દીકરા તે રકમ ને સરખે ભાગે વહેંચી લઈ ને વિધવા માં ને રસ્તે રઝળતી કરી દીધી. કોઈ આધાર અને આવક ન રહેતા મેથ્સ ટીચર બાજુ ના શહેર માં રેલવે સ્ટેશન એ ભીખ માંગી રહીંયા હતા.
ફટાફટ ફોન નમ્બર ડાયલ થવા લાગ્યા. 24 કલાક માં ભૂતપૂર્વ વિદ્યાર્થીઓ પોતાના આદરણીય મેથ્સ ટીચર માટે ભેગા થવા લાગ્યા. એક વીક માં અભૂતપૂર્વ વિદ્યાર્થીઓ પોતાની ગુરુદક્ષિણા ની લાજ સચવાય એમ લાખો રૂપિયા સાથે ઉમટી પડ્યા.જોતજોતાં માં એક ફુલ ફર્નિશ ઘર ખરીદી લેવામાં આવ્યું. 6 મહિના ચાલે તેટલું રાસન અને દર મહિને એક ચોક્કસ રકમ પોતાના ગુરુજીને મળી રહે તેવી વ્યવસ્થા કરવામાં આવી.
કેરળના મલ્લાપુરમ નામના નાના એવા શહેરની વાસ્તવમાં બનેલી ઘટના છે…

વંદન છે આવા વિદ્યાર્થીઓને….🙏

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एक बूढ़ा मर रहा था।


एक बूढ़ा मर रहा था। मरा नहीं था, बस मर ही रहा था। उसके चार बेटे उसके पास ही खड़े थे। उनके नाम थे- सोम, मंगल, बुध, वीर। वह चाहता तो सात बेटे था, पर मंहगाई के चलते चार पर ही संतोष कर लिया था।

ये चार आपस में बात कर रहे हैं-

सोम- भाई! जब पिताजी मर जाएँगे तो उनकी शवयात्रा हम गुप्ता जी की मर्सिडीज़ में निकालेंगे। लोग भी तो देखें कि किसका बाप मरा है।

मंगल- भैया! गुप्ता जी कार दे तो देंगे, पर सारी उम्र सुनाएँगे कि तुम्हारा बाप मरा था, तो मैंने कार दी थी। मैं अपने दोस्त बंटी की होंडा माँग लाऊँगा। होंडा भी कोई छोटी कार नहीं।

बुध- अरे मंगल! मालूम भी है कि होंडा धुलवाना कितना मंहगा है? मैंने कल ही अपनी आल्टो ठीक करा ली है, उसी में ले चलेंगे। कार तो कार है, छोटी हो या बड़ी? और सारी जिंदगी पिताजी ने कंजूसी में बिताई है, क्या यह बात लोग नहीं जानते?

वीर- देखो भैया! बुरा न मानना। आल्टो में पिताजी की लाश ले तो जाएँगे पर फिर हमेशा उसमें बैठते वहम आया करेगा। श्मशान वालों ने इस काम के लिए एक ठेला बनाया हुआ है। अब कार हो या ठेला, मरने वाला तो मर ही गया, तब क्या फर्क पड़ता है?

और जैसा कि मैंने पहले ही बता दिया है की बूढ़ा मर रहा था, मरा नहीं था। वह तो सब सुन रहा था।

वह उठ कर बैठ गया और बोला- मेरी साइकिल कहाँ है? मेरी साइकिल लाओ!

वह उठा, और साइकिल चलाकर श्मशान घाट पहुँच गया, साइकिल से उतरा, साइकिल खड़ी की, भूमि पर लेटा, और मर गया।

भीतर का आनंद कहता है कि यही जगत के संबंधों का ढंग है। प्राण छूट जाने पर इस शरीर को कोई नाम ले कर भी नहीं बुलाता, सभी “लाश-लाश” कहते हैं। अभी भी समय है, प्राण छूटने ये पहले ही अपने असली संबंधी को अपना बना लो। भगवान को अपना बना लो।

“दुर्लभ साज सुलभ करि पावा”

जी इस अनमोल और दिव्य साज की सार्थकता तो तभी है, जब इसके प्रत्येक तार से बस “श्रीहरि” की ध्वनि निकले

“मेरी नस नस बोले हरी हरी l”

अति प्रसन्नता पूर्वक आवाज आये

“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो l”

प्रेम से बोले

जय श्रीराम

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सत्र की शुरुआत के पहले दिन,


सत्र की शुरुआत के पहले दिन, पहले ही पीरियड में जब शिक्षक अपना रजिस्टर लेकर कक्षा बारहवी में दाखिल हुए तो वहाँ फ़क़त एकमात्र छात्र को देखकर उनका ह्रदय अंदर ही अंदर गदगद हो गया परंतु अपनी कर्मठता दर्शाने के लिए उन्होंने अपनी भवों को तिरछा कर लिया और दो मिनट कक्षा में चहलकदमी करने के बाद उस छात्र से बोले, “32 बच्चे लिखे हैं इस रजिस्टर में और तुम कक्षा में अकेले हो। क्या पढ़ाऊँ तुम अकेले को? तुम भी चले जाओ।”

जनाब जब बालक पहले ही दिन पढ़ने आया था तो कुछ तो विशेष होगा ही उसमें।

बालक तुरंत बोला, “सर, मेरे घर पर दूध का कारोबार होता है और 15 गायें हैं। अब आप एक पल के लिए फर्ज करो कि मैं सुबह उन पंद्रह गायों को चारा डालने जाता हूँ और पाता हूँ कि चौदह गाय वहाँ नहीं हैं तो क्या उन चौदह गायों के कहीं जाने की वजह से मैं उस पंद्रहवीं गाय का उपवास करा दूँ?”

शिक्षक को उस बालक का उदाहरण बहुत पसंद आया और उन्होंने अगले दो घण्टे तक उस बालक को अपने ज्ञान की गंगा से पूरा सराबोर कर दिया और कहा,

“तुम्हारी गायों वाली तुलना मुझे बहुत पसंद आयी थी। कैसा लगा मैं और मेरा पढ़ाना?”

बालक अदभुत था इसलिए तुरंत बोला,

“सर, आपका पढ़ाना मुझे पसंद आया लेकिन आप पसंद नहीं आये।”

शिक्षक ने तुरंत पूछा, “क्यों?”

बालक बोला, “चौदह गायों की गैरहाज़िरी में पंद्रह गायों का चारा एक गाय को नहीं डालना चाहिये था।

बड़े होकर उसी बालक ने इस Whatsapp की स्थापना की।
🤣🤣🤣🤣

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साधक की कसौटी


★ साधक की कसौटी ★

एक शिष्य अपने आचार्य से आत्मसाक्षात्कार का उपाय पूछा। पहले तो उन्होंने समझाया बेटा यह कठिन मार्ग है, कष्ट क्रियाएँ करनी पड़ती हैं। तू कठिन साधनाएँ नहीं कर सकेगा, पर जब उन्होंने देखा कि शिष्य मानता नहीं तो उन्होंने एक वर्ष तक एकांत में गायत्री मंत्र का निष्काम जाप करके अंतिम दिन आने का आदेश दिया। शिष्य ने वही किया। वर्ष पूरा होने के दिन आचार्य ने झाड़ू देने वाली स्त्री से कहा कि अमुक शिष्य आवे तब उस पर झाड़ू से धूल उड़ा देना। स्त्री ने वैसा ही किया। साधक क्रोध में उसे मारने दौड़ा, पर वह भाग गई। वह पुनः स्नान करके आचार्य-सेवा में उपस्थित हुआ। आचार्य ने कहा-अभी तो तुम साँप की तरह काटने दौड़ते हो,
अतः एक वर्ष और साधना करो।’’ साधक को क्रोध तो आया परंतु उसके मन में किसी न किसी प्रकार आत्मा के दर्शन तीव्र लगन थी, अतएव गुरु की आज्ञा समझकर चला गया।दूसरा वर्ष पूरा होने पर आचार्य ने झाड़ू लगाने वाले स्त्री से उस व्यक्ति के आने पर झाड़ू छुआ देने को कहा। जब वह आया तो उस स्त्री ने वैसा ही किया। परंतु इस बार वह कुछ गालियाँ देकर ही स्नान करने चला गया और फिर आचार्य जी के समक्ष उपस्थित हुआ। आचार्य ने कहा-अब तुम काटने तो नहीं दौड़ते दौड़ते पर फुफकारते अवश्य हो, अतः एक वर्ष और साधना करो।’’
तीसरा वर्ष समाप्त होने के दिन आचार्य जी ने उस स्त्री को कूड़े की टोकरी उड़ेल देने को कहा। स्त्री के वैसा करने पर शिष्य को क्रोध नहीं आया बल्कि उसने हाथ जोड़कर कहा-हे माता! तुम धन्य हो।’’ तीन वर्ष से मेरे दोष को निकालने के प्रयत्न में तत्पर हो। वह पुनः स्नान कर आचार्य सेवा में उपस्थित हो उनके चरणों में गिर पड़ा।

— मनुष्य जब तक अहंकार और क्रोध पर विजय नहीं प्राप्त कर लेता तब तक वह शिष्य व साधक का अधिकारी नहीं होता , अतः शिष्य और साधक को चाहिए कि वो पहले अहंकार और क्रोध रूपी दुर्गुणों का त्याग करे ।

देवी सिंग तोमर