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जीवन की मुस्कान*एक फटी धोती और फटी कमीज पहने एक व्यक्ति


लक्ष्मीकांत वार्ष्णेय विजयगढ़िया

जीवन की मुस्कान*एक फटी धोती और फटी कमीज पहने एक व्यक्ति अपनी 15-16 साल की बेटी के साथ एक बड़े होटल में पहुंचा। उन दोंनो को कुर्सी पर बैठा देख एक वेटर ने उनके सामने दो गिलास साफ ठंडे पानी के रख दिए और पूछा- आपके लिए क्या लाना है? उस व्यक्ति ने कहा- “मैंने मेरी बेटी को वादा किया था कि यदि तुम कक्षा दस में जिले में प्रथम आओगी तो मैं तुम्हे शहर के सबसे बड़े होटल में एक डोसा खिलाऊंगा।इसने वादा पूरा कर दिया। कृपया इसके लिए एक डोसा ले आओ।”वेटर ने पूछा- “आपके लिए क्या लाना है?” उसने कहा-“मेरे पास एक ही डोसे का पैसा है।”पूरी बात सुनकर वेटर मालिक के पास गया और पूरी कहानी बता कर कहा-“मैं इन दोनो को भर पेट नास्ता कराना चाहता हूँ।अभी मेरे पास पैसे नहीं है,इसलिए इनके बिल की रकम आप मेरी सैलेरी से काट लेना।”मालिक ने कहा- “आज हम होटल की तरफ से इस होनहार बेटी की सफलता की पार्टी देंगे।” होटलवालों ने एक टेबल को अच्छी तरह से सजाया और बहुत ही शानदार ढंग से सभी उपस्थित ग्राहको के साथ उस गरीब बच्ची की सफलता का जश्न मनाया।मालिक ने उन्हे एक बड़े थैले में तीन डोसे और पूरे मोहल्ले में बांटने के लिए मिठाई उपहार स्वरूप पैक करके दे दी। इतना सम्मान पाकर आंखों में खुशी के आंसू लिए वे अपने घर चले गए।समय बीतता गया और एक दिन वही लड़की I.A.S.की परीक्षा पास कर उसी शहर में कलेक्टर बनकर आई।उसने सबसे पहले उसी होटल मे एक सिपाही भेज कर कहलाया कि कलेक्टर साहिबा नास्ता करने आयेंगी। होटल मालिक ने तुरन्त एक टेबल को अच्छी तरह से सजा दिया।यह खबर सुनते ही पूरा होटल ग्राहकों से भर गया।कलेक्टर रूपी वही लड़की होटल में मुस्कराती हुई अपने माता-पिता के साथ पहुंची।सभी उसके सम्मान में खड़े हो गए।होटल के मालिक ने उन्हे गुलदस्ता भेंट किया और आर्डर के लिए निवेदन किया।उस लड़की ने खड़े होकर होटल मालिक और उस बेटर के आगे नतमस्तक होकर कहा- “शायद आप दोनों ने मुझे पहचाना नहीं।मैं वही लड़की हूँ जिसके पिता के पास दूसरा डोसा लेने के पैसे नहीं थे और आप दोनों ने मानवता की सच्ची मिसाल पेश करते हुए,मेरे पास होने की खुशी में एक शानदार पार्टी दी थी और मेरे पूरे मोहल्ले के लिए भी मिठाई पैक करके दी थी।आज मैं आप दोनों की बदौलत ही कलेक्टर बनी हूँ।आप दोनो का एहसान में सदैव याद रखूंगी।आज यह पार्टी मेरी तरफ से है और उपस्थित सभी ग्राहकों एवं पूरे होटल स्टाफ का बिल मैं दूंगी।कल आप दोनों को “” श्रेष्ठ नागरिक “” का सम्मान एक नागरिक मंच पर किया जायेगा।शिक्षा– किसी भी गरीब की गरीबी का मजाक बनाने के वजाय उसकी प्रतिभा का उचित सम्मान करें।संभव है आपके कारण कोई गुदड़ी का लाल अपनी मंजिल तक पहुंच जाए।

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एक गधा पेड़ से बंधा था..


Naw Nandan Prasad

एक गधा पेड़ से बंधा था….शैतान आया और उसे खोल गया। गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और पड़ोसी जाननेवाले की खड़ी फसल को खराब करने लगा।किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला।गधे की लाश देखकर मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी।किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरी कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ?शैतान ने कहा, ‘मैंने कुछ नहीं किया….”मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने आपसदार होते हुए भी रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। इसलिए अगली बार आपस मे किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना जरूर।”ध्यान रखें…….कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं।और हां हमको ये भी समझना है की गधा कौन है?हर रोज मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक गधे छोड़ जाते हैं और हम हिन्दू जातिवाद क्षेत्रवाद या अहंकारवश थोड़ी भी विचारधारा न मिलने पर आपस मे लड़ते मरते रहते हैं। अतः हिंदुओं से यही निवेदन है आपस मे मिलजुल कर मुस्कुरा कर खुशी खुशी रहिये और गधे पहचान उन्हें थूरिये।याद रखे…तोड़ना आसान है जुड़े रहने बहुत मुश्किल हैं,लड़ना आसान है मेल मिलाप से रहना मुश्किल है।

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मानव सेवा का अवसर


(((( मानव सेवा का अवसर )))).

वासु भाई और वीणा बेन, दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। .3 दिन का अवकाश था। वे पेशे से चिकित्सक थे। लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे। परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता, छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं। .आज उनका इंदौर उज्जैन जाने का विचार था। दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे।.वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ, और बढ़ते बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया। .2 साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं, इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते थे। .विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया।.वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे। इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था। .आज इंदौर जाने का कार्यक्रम बनाया था। जब मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने इंदौर के बारे में बहुत सुना था। .नई नई वस्तु खाने के शौकीन थे, इंदौर के सराफा बाजार और 5-6 दुकानों पर मिलने वाली मिठाईयां नमकीन उन्होंने उनके बारे में सुना था, .साथ ही महाकाली के दर्शन करने की इच्छा थी, इसलिए उन्होंने इस बार इंदौर उज्जैन की यात्रा करने का विचार किया था।.यात्रा पर रवाना हुए, आकाश में बादल घुमड़ रहे थे। मध्य प्रदेश की सीमा लगभग 200 किलोमीटर दूर थी। .बारिश होने लगी थी। म, प्र, सीमा से 40 किलोमीटर पहले छोटा शहर पार करने में समय लगा। .कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया। भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था परंतु चाय का समय हो गया था।.उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले। सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया। जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे।.उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है, वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए, कोई नहीं था।.आवाज लगाई, अंदर से एक महिला निकल कर के आई। .उसने पूछा क्या चाहिए, भाई। .वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए, और कहा बहिन जी दो कप चाय बना देना। थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है। .पैकेट लेकर के गाड़ी में गए। वीणा बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया। चाय अभी तक आई नहीं थी। .दोनों निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे। वासु भाई ने फिर आवाज लगाई। .थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई। बोली.. भाई बाड़े में तुलसी लेने गई थी, तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई, अब चाय बन रही है। .थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मेले से कप ले करके वह गरमा गरम चाय लाई। .मेले कप को देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए, और कुछ बोलना चाहते थे। .परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया। .चाय के कप उठाए। उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी।.दोनों ने चाय का एक सिप लिया। ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी।.उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई।.उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा.. कितने पैसे, महिला ने कहा बीस रुपये…वासु भाई ने सो का नोट दिया। महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है। ₹20 छुट्टा दे दो।.वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया। महिला ने सो का नोट वापस किया। .वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं.. .महिला बोली यह पैसे उसी के हैं। चाय के पैसे नहीं लिए। .अरे चाय के पैसे क्यों क्यों नहीं लिए.. जवाब मिला, हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह होटल नहीं है।.फिर आपने चाय क्यों बना दी।.अतिथि आए, आपने चाय मांगी… हमारे पास दूध भी नहीं था, पर यह बच्चे के लिए दूध रखा था,.परंतु आपको मना कैसे करते। इसलिए इसके दूध की चाय बना दी। .अभी बच्चे को क्या पिलाओगे।.एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा। इसके पापा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते, पर उनको कल से बुखार है।.आज अगर ठीक हो जाएगा तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे। .वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था.. अतिथि रूप में आकर के। .संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं। .उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं, आपके पति कहां हैं बताएं।.हमको महिला भीतर ले गई। .अंदर गरीबी पसरी हुई थी। एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे बहुत दुबले पतले थे। .वसु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला।माथा और हाथ गर्म हो रहे थे, और कांप रहे थे…वासु भाई वापस गाड़ी में गए.. दवाई का अपना बैग लेकर के आए। उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी, खिलाई।.फिर कहा कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा। मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं।.वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा। गाड़ी लेकर के गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकरआयै। .मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई, और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे।.एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी। दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की। .जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े। .3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर, जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने, और दूध की थैली लेकर के आए। .वापस उस दुकान के सामने रुके, महिला को आवाज लगाई, तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये। .उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया। .वसु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए। दूध के पैकेट दिए। फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपनापन स्थापित हुआ।.वसु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया। कहा, जब भी आओ जरूर मिले, और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये…शहर पहुंचकर वसु भाई ने उस महिला की बात याद रखी। फिर एक फैसला लिया। .अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि, अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे, फीस नहीं लेंगे, फीस मैं खुद लूंगा। .और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया। केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते। .धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई। दूसरे डाक्टरों ने सुना। उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम पड़ेगी, और लोग हमारी निंदा करेंगे…उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ बसु भाई से मिलने आए, उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो। .तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गए।.वासु भाई ने कहा मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा।एमबीबीएस में भी, एमडी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना,.परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है, वह मुझसे आगे निकल गयी। तो मैं अब पीछे कैसे रहूं।.इसलिए मैं अतिथि सेवा में मानव सेवा में भी गोल्ड मेडलिस्ट बनूंगा। इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की। .और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें।.गरीबों की निशुल्क सेवा करें, उपचार करें।यह् व्यवसाय धन कमाने का नहीं। परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है.. .एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकिय सेवा करुंगा।साभार :- व्हाट्सएप से Bhakti Kathayen भक्ति कथायें

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कौन सा पति खरीदूँ…


कौन सा पति खरीदूँ…?***
🤔❓🤥❓😳❓😂

शहर के बाज़ार में एक बड़ी दुकान खुली जिस पर लिखा था –

“यहाँ आप पतियों को ख़रीद सकती है |”

देखते ही देखते औरतों का एक हुजूम वहां जमा होने लगा | सभी दुकान में दाख़िल होने के लिए बेचैन थी, लंबी क़तारें लग गयी…

दुकान के मैन गेट पर लिखा था –
“पति ख़रीदने के लिए निम्न शर्ते लागू”
👇👇
✡️ इस दुकान में कोई भी औरत सिर्फ एक बार ही दाख़िल हो सकती है, आधार कार्ड लाना आवश्यक है …

✡️ दुकान की 6 मंज़िले है, और प्रत्येक मंजिल पर पतियों के प्रकार के बारे में लिखा है |
✡️ ख़रीदार औरत किसी भी मंजिल से अपना पति चुन सकती है l
✡️ लेकिन एक बार ऊपर जाने के बाद दोबारा नीचे नहीं आ सकती, सिवाय बाहर जाने के |

👩🏻‍🦰एक खुबसूरत लड़की को दूकान में दाख़िल होने का मौक़ा मिला…

पहली मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था – “इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है और नेक है | “
लड़की आगे बढ़ी ..

दूसरी मंजिल पर लिखा था – “इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है और बच्चों को पसंद करते है |”
लड़की फिर आगे बढ़ी …*

तीसरी मंजिल के दरवाजे पर लिखा था – “इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है और खुबसूरत भी है |”

यह पढ़कर 👩🏻‍🦰लड़की👩🏻‍🦰 कछ देर केलिए रुक गयी मगर यह सोचकर कि चलो ऊपर की मंजिल पर भी जाकर देखते है, वह आगे बढ़ी…

चौथी मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था – “इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है, नेक है, खुबसूरत भी है और घर के कामों में मदद भी करते है |”

यह पढ़कर लड़की को चक्कर आने लगे और सोचने लगी “क्या ऐसे पति अब भी इस दुनिया में होते है ?

यहीं से एक पति ख़रीद लेती हूँ… ”

लेकिन दिल ना माना तो एक और मंजिल ऊपर चली गयी…

पांचवीं मंजिल पर लिखा था – “इस मंजिल के पति अच्छे रोज़गार वाले है , नेक है और खुबसूरत है , घर के कामों में मदद करते है और अपनी बीबियों से प्यार करते है |”

अब इसकी अक़ल जवाब देने लगी वो सोचने लगी इससे बेहतर और भला क्या हो सकता है ? मगर फिर भी उसका दिल नहीं माना और आखरी मंजिल की तरफ क़दम बढाने लगी…

आखरी मंजिल के दरवाज़े पर लिखा था -“आप इस मंजिल पर आने वाली 3339 वीं औरत है , इस मंजिल पर कोई भी पति नहीं है , ये मंजिल सिर्फ इसलिए बनाई गयी है ताकि इस बात का सबूत सुप्रीम कोर्ट को दिया जा सके कि महिलाओं को पूर्णत संतुष्ट करना नामुमकिन है |

हमारे स्टोर पर आने का धन्यवाद ! बांयी ओर सीढियाँ है जो बाहर की तरफ जाती है !!

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एक युवा के पड़ोस में एक वरिष्ठ नागरिक रहते थे


एक युवा के पड़ोस में एक वरिष्ठ नागरिक रहते थे | पति की आयु लगभग अस्सी वर्ष थी | पत्नी की आयु उनसे लगभग पांच वर्ष कम थी | युवा उन वरिष्ठ pati patni से बहुत अधिक लगाव रखते थे | उन्हें दादा दादी की तरह सम्मान देते थे | हर रविवार को वो उनके घर उनके स्वास्थ्य आदि की जानकारी लेने और कॉफी पीने जाते थे |

युवा ने देखा कि हर बार दादी जी जब कॉफ़ी बनाने रसोईघर में जाती थी तो कॉफ़ी की शीशी का ढक्कन को दादा जी से खुलवाती थी |

इस बात का संज्ञान लेकर युवा पुरुष ने एक ढक्कन खोलने के यंत्र को लाकर दादी जी को उपहार स्वरूप दिया ताकि उन्हें कॉफी की शीशी के ढक्कन को खोलने की सुविधा हो सके | उस युवा पुरुष ने ये उपहार देते वक्त इस बात की सावधानी बरती की दादा जी को इस उपहार का पता न चले | उस यंत्र के प्रयोग की विधि ko भी दादी जी को अच्छी तरह समझा दिया |

उसके अगले रविवार जब वो युवा उन वरिष्ठ नागरिक के घर गया | वो ये देख के आश्चर्य में रह गया कि दादी जी उस दिन भी कॉफी की शीशी के ढक्कन को खुलवाने के लिए दादा जी के पास लायी |

युवा सोचने laga कि शायद दादी जी उस यंत्र का प्रयोग करना भूल गयी या वो यंत्र काम नही कर रहा |

जब उन्हें एकांत में अवसर मिला तो उन्होंने दादी जी से उस यंत्र के प्रयोग न करने का कारण पूछा | दादी जी के उत्तर ने उन्हें निशब्द कर दिया |

दादी जी ने कहा, “ओह ! कॉफी की शीशी के ढक्कन को मैं स्वयं भी अपने हाथ से, बिना उस यंत्र के प्रयोग के, आसानी से खोल सकती हूं | पर मैं कॉफी की शीशी का ढक्कन उनसे इसलिए खुलवाती हूं कि उन्हें ये अहसास रहे कि आज भी वो मुझसे ज्यादा मजबूत है और अभी भी अपना और मेरा अच्छे से ध्यान रख सकते है | इस बात से मुझे भी ये लाभ मिलता है कि मैं ये महसूस करती हूं कि मैं आज भी उन पर निर्भर हूं और वो मेरे लिए आज भी बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति है | यही बात हम दोनों के स्नेह के बंधन को शक्ति प्रदान करती है | अब हम दोनों के पास अधिक आयु नही बची है | इसलिए हमारी एकजुटता हम दोनों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है |”

उस युवा को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सीख मिली |

It is true. We must know that वरिष्ठ नागरिक चाहे घर में हमे कोई सहयोग ना दे रहे हो पर उनके अनुभव हमे पल पल महत्वपूर्ण सीख देते रहते है |

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स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था।



स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के ऑफिस के बाहर राजू केले बेच रहा था।

बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी न पूछा : ” केले कैसे दिए” ?

राजू : केले किस लिए खरीद रहे हैं साहब ?

अधिकारी :- मतलब ??

राजू :- मतलब ये साहब कि,

मंदिर के प्रसाद के लिए ले रहे हैं तो 10 रुपए दर्जन।

वृद्धाश्रम में देने हों तो 15 रुपए दर्जन।

बच्चों के टिफिन में रखने हों तो 20 रुपए दर्जन।

घर में खाने के लिए ले जा रहे हों तो, 25 रुपए दर्जन

और अगर पिकनिक के लिए खरीद रहे हों तो 30 रुपए दर्जन।

अधिकारी : – ये क्या बेवकूफी है ? अरे भई, जब सारे केले एक जैसे ही हैं तो,भाव अलग अलग क्यों बता रहे हो ??

राजू : – ये तो पैसे वसूली का, आप ही का स्टाइल है साहब।

1 से 100 रीडिंग का रेट अलग,
100 से 200 का अलग,
200 से 300 का अलग।
अरे आपके बाप की बिजली है क्या ?

आप भी तो एक ही खंभे से बिजली देते हो।

तो फिर घर के लिए अलग रेट,
दूकान के लिए अलग रेट,
कारखाने के लिए अलग रेट,
फिर इंधन भार, विज आकार…..

और हाँ, एक बात और साहब,
मीटर का भाड़ा।
मीटर क्या अमेरिका से आयात किया है ? 25 सालों से उसका भाड़ा भर रहा हूँ। आखिर उसकी कीमत है कितनी ?? आप ये तो बता दो मुझे एक बार।

  *जागो ग्राहक जागो*
      🎺🎺🎺 

बिजली बिल से पीड़ित एक आम नागरिक की व्यथा !

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एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये |


एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे |

सन्यासी ने एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार” से पूछा, “इसमें क्या है?”

दुकानदार ने कहा, “इसमें नमक है।”

सन्यासी ने फिर पूछा, “इसके पास वाले में क्या है ?”

दुकानदार ने कहा, “इसमें हल्दी है।”

इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।

अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा, “उस अंतिम डिब्बे में क्या है?”

दुकानदार बोला, “उसमें राम हैं।”

सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, ” राम !! भला यह ” राम” किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !”

दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला, “महात्मन ! और डिब्बों मे तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर राम कहते हैं !”

संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई ! जिस बात के लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ आ रही है। वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़ा, ओह, तो खाली में राम रहता है !

सत्य है ! भरे हुए में राम को स्थान कहाँ ?

काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?

🙏

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सत्संग का असर क्यों नहीं होता?


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सत्संग का असर क्यों नहीं होता?

शिष्य गुरु के पास आकर बोला, गुरु जी हमेशा लोग प्रश्न करते हैं कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता?

मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है।*

गुरु समयज्ञ थे,
बोले- वत्स! जाओ, एक घड़ा मदिरा ले आओ।

शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही अवाक रह गया।

गुरू और शराब!

वह सोचता ही रह गया।

गुरू ने कहा सोंचते क्या हो? जाओ एक घड़ा मदिरा ले आओ। वह गया और एक छला छल भरा मदिरा का घड़ा ले आया।

गुरु के समक्ष रख बोला-
आज्ञा का पालन कर लिया”

गुरु बोले –
“यह सारी मदिरा पी लो” ।

शिष्य अचंभित!!

गुरुने कहा,

शिष्य! एक बात का ध्यान रखना, पीना पर शीघ्र कुल्ला थूक देना, गले के नीचे मत उतारना।

शिष्य ने वही किया, शराब मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते देखते पूरा घड़ा खाली हो गया

आकर कहा- “गुरुदेव घड़ा खाली हो गया”

“तुझे नशा आया या नहीं?”पूछा गुरु ने?

गुरुदेव! नशा तो बिल्कुल नहीं आया।

अरे मदिरा का पूरा घड़ा खाली कर गये और नशा नहीं चढा?

गुरुदेव नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती, गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फ़िर नशा कैसे चढ़ता।

बस फिर सत्संग को भी उपर उपर से जान लेते हो, सुन लेते हो गले के नीचे तो उतरता ही नहीं, व्यवहार में आता नहीं तो प्रभाव कैसे पड़े।

सत्संग के वचन को केवल कानों से नही, मन की गहराई से सुनना, एक-एक वचन को ह्रदय में उतारना और उस पर आचरण करना ही गुरु के वचनों का सम्मान है

पांच पहर धंधा किया,तीन पहर गए सोए
एक घड़ी ना सत्संग किया,तो मुक्ति कहाँ से होए।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚

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लोभ, तृष्णा का कुआं


भक्त्ति कथाएँ

(((( लोभ, तृष्णा का कुआं ))))
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एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?
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इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया।
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आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ…
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वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है.. वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।
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छः दिन बीत चुके थे। राज पंडित को जबाव नहीं मिला था। निराश होकर वह जंगल की तरफ गया।
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वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा, आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?
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यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा।
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इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा, पंडित जी हम भी सत्संगी हैं, हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो,अतः नि:संकोच कहिए।
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राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कलतक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।
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गड़रिया बोला, मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।
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बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।
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राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं?
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लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।
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गड़रिया बोला, पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो।
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राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी। मैं दूध नहीं पीऊंगा।
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तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा – गड़रिया बोला।
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राज पंडित बोला, ठीक है, दूध पीने को तैयार हूं, आगे क्या करना है?
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गड़रिया बोला. अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।
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राजपंडित ने कहा, तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?
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तो जाओ,गड़रिया बोला…
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राज पंडित बोला, मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को
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गड़रिया बोला, वह बात गयी। अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा..
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उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा। तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।
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राजपंडित ने खूब विचार कर कहा, है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।
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गड़रिया बोला, मिल गया जवाब। यही तो कुआं है! लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता।
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जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए
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साभार :- स्पीकिंग ट्री
Bhakti Kathayen भक्ति कथायें

  ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

क्या महत्वपूर्ण है ?


प्रेरणादाई कहानिया

क्या महत्वपूर्ण है ?
भीतर की ख़ुशी ? या बाहर की ख़ुशी ?

एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था। सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था। सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा। उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो?

फकीर बोला कि आप आए थे – जीवन में पहली दफा, यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया! लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं। तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया। ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं, सिसकियां निकल गईं, क्योंकि घर में कुछ है नहीं। तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता दो-चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग-मूंग कर इकट्ठा कर लेता। अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।

चोर घबरा गए, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला नहीं था। चोरी तो जिंदगी भर की थी, मगर ऐसे आदमी से पहली बार मिलना हुआ था।

भीड़-भाड़ बहुत है, आदमी कहां?
शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां?

पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए। मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! क्योंकि इस के पास कुछ और है भी नहीं, कंबल लिया तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना। लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। फिर तुम आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं। तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना। चोर तो ऐसे घबरा गए और एकदम निकल कर झोपड़ी से बाहर हो गए।

जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो। आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा। कुछ ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे। फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा।

कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, वही तो ईश्वर है।

कुछ समय बाद वो चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला, वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था। वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था। जज तत्‍क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है। तो तुमने उस फकीर के यहां से भी चोरी की है?

फकीर को बुलाया गया। और जज ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है, तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है। फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा।

चोर तो घबरा रहे थे, काँप रहे थे ।जब फकीर अदालत में आया।और फकीर ने आकर जज से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं। मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था। और जब धन्यवाद दे दिया, बात खत्म हो गई। मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं, ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।

जज ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा। इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।चोर फकीर के पैरों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो। वे संन्यस्त हुए और फकीर बाद में खूब हंसा। और उसने कहा कि संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।

इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थी।

🕊झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया🕊

उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे। इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था, गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे। यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले ही आएगा तुमको ।उस दिन चोर की तरह आए थे ।आज शिष्य की तरह आए। मुझे भरोसा था।क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।

तुम ढूँढते रहे बाहर बाहर ख़ुशी। चोरी के पैसों में ख़ुशी। पर असली ख़ुशी तो अंदर मिलती है।