Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

आंखों से झर झर बहते हुए आंसुओं मैं मां का दर्द झलकता हुआ


आंखों से झर झर बहते हुए आंसुओं मैं मां का दर्द झलकता हुआ दुकानदार से कहती है भूलने की दवा हो तो दे दो बेटे मां का दर्द कहानी का अध्ययन अवश्य करें*मेरी दवा की दुकान थी और उस दिन दुकान पर काफी भीड़ थी मैं ग्राहको को दवाई दे रहा था.. दुकान से थोड़ी दूर पेड़ के नीचे वो बुजुर्ग औरत खड़ी थी। मेरी निगाह दो तीन बार उस महिला पर पड़ी तो देखा उसकी निगाह मेरी दुकान की तरफ ही थी।**मैं ग्राहकों को दवाई देता रहा लेकिन मेरे मन में उस बुजुर्ग महिला के प्रति जिज्ञासा भी थी कि वो वहां खड़े खड़े क्या देख रही है। जब ग्राहक कुछ कम हुए तो मैंने दुकान का काउंटर दुकान में काम करने वाले लड़के के हवाले किया और उस महिला के पास गया।**मैंने पूछा..”क्या हुआ माता जी कुछ चाहिए आपको.. मैं काफी देर से आपको यहां खड़े देख रहा हूं गर्मी भी काफी है इसलिए सोचा चलो मैं ही पूछ लेता हूं आपको क्या चाहिए?*:*बुजुर्ग महिला इस सवालपर कुछ सकपका सी गई फिर हिम्मत जुटा कर उसने पूछा… “बेटा काफी दिन हो गए मेरे दो बेटे हैं। दोनो दूसरे शहर में रहते हैं। हर बार गर्मी की छुट्टियों में बच्चों के साथ मिलने आ जाते हैं। इस बार उन्होंने कहीं पहाड़ों पर छुट्टियां मनाने का निर्णय लिया है। बेटा इसलिए इस बार वो हमारे पास नही आएंगे यह समाचार मुझे कल शाम को ही मिला.. कल सारी रात ये बात सोच सोच कर परेशान रही.. एक मिनट भी सो नही सकी.. आज सोचा था तुम्हारी दुकान से दवाई लूंगी लेकिन दुकान पर भीड़ देखकर यही खड़ी हो गई सोचा जब कोई नही होगा तब तुमसे दवा पूछूंगी..**”हां हां बताइये ना मां जी.. कौन सी दवाई चाहिये आपको अभी ला देता हूं.. आप बताइये..**_”बेटा कोई बच्चों को भूलने की दवाई है क्या..? अगर है तो ला दे बेटा.. भगवान तुम्हारा भला करेगा..?_**इससे आगे के शब्द सुनने की मेरी हिम्मत ना थी। मेरे कान सुन्न हो चूके थे। मैं उसकी बातों का बिना कुछ जवाब दिये चुपचाप दुकान की तरफ लौट आया।**क्योंकि उस बुजुर्ग महिला की दवा उसके बेटों के पास थी। जो शायद विश्व के किसी मैडिकल स्टोर पर नही मिलेगी.. अब मैं काउंटर के पीछे खड़ा था..**मन में विचारों की आंधी चल रही थी लेकिन मैं उस पेड़ के नीचे खड़ी उस मां से नजरें भी नही मिला पा रहा था.. मेरी भरी दुकान भी उस महिला के लिए खाली थी.. मै कितना असहाय था.. या तो ये मैं जानता था या मेरा भगवान…!**अब जब भी अपने शहर में ये सुनता हूं कि “इस बार गर्मी की छुट्टियों में हम गांव न जाकर कहीं और घूमने जा रहे हैं तो वो पेड़ के नीचे उन माता जी की वेदना अंदर तक झंझोड़ देती है ।**यह कहानी जो संसार मे माँ के प्रेम की वेदना का अहसास करा रही है।अब इसे परमात्मा मे जोड़े,**वह परमात्मा हम सबकी माँ है**हम सब उसकी संतान हैं**हमे जब संसार के कार्यो से* *छुट्टी मिलती है,हम संसार घूमने जाते है या परमात्मा से मिलने…….*!! जय माता दी !!*भर दो ज्ञान हृदय हे माता,**भक्तों का तुमसे है नाता।**प्रति दिन ध्यान तुम्हारा ध्याते,**चरणों में ही हम ध्यान लगाते।।*जय माता दी मधुर प्रभात प्यारे भैयामाँ भगवती सर्वमंगल करें

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