“प्राइवेट स्कूलों की दुर्दशा का कारण”
पहले चाय की दुकान पे
सिर्फ ‘चाय’ बिकती थी,
वो भी एक नम्बर….!!
फिर बिस्कुट, मठरी,
टोस्ट भी बिकने लगे…!!
फिर धीरे-धीरे
सिगरेट भी बिकने लगी…!!
फिर किसी ने गुटका बेचने की भी सलाह दे डाली ,
वो भी बिकने लगी.. .!
अब एक काऊंटर कोल्ड ड्रिंक का भी लग गया…!!
एक दिन शिक्षा विभाग के एक अधिकारी,
जो परिवार सहित कहीं जा रहे थे,
उन्होंने गुटका लेने लिए कार रूकवा दी और सलाह ठोक दी कि भाई बच्चों के लिए
चिप्स, नमकीन, कुरकुरे के पैकेट भी लटका लो…!
इस सलाह पर भी अमल भी हुआ ।
इतने सारे सामग्रियों को लाने व बेचने की व्यस्तता के कारण ‘चाय’ की क्वालिटी खराब हो गई
अतः ग्राहक कम होते गए।
और अब… अब वह दुकान पूरी तरह से बैठ गई है
अब वहाँ कुछ नहीं बिकता..!!
क्योंकि मूलत: वह एक चाय की दुकान थी
जिसकी क्वालिटी खराब होने के कारण लोग दुकान पर कम आने लगे… !!विद्यालयों में भी पहले केवल अध्यापन हुआ करता था... !!!!
समझ गए ना।