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एक बार स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति आया


☀️ स्वयं को पहचाने ☀️

🔷 एक बार स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था। वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला “महाराज! मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूं, मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से भी काम करता हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया। भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ।”

🔶 स्वामी जी उस व्यक्ति की परेशानी को पल भर में ही समझ गए। उन दिनों स्वामी जी के पास एक छोटा-सा पालतू कुत्ता था, उन्होंने उस व्यक्ति से कहा ‘‘तुम कुछ दूर जरा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा।’’

🔷 आदमी ने बड़े आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखा और फिर कुत्ते को लेकर कुछ दूर निकल पड़ा। काफी देर तक अच्छी-खासी सैर कराकर जब वह व्यक्ति वापस स्वामी जी के पास पहूँचा तो स्वामी जी ने देखा कि उस व्यक्ति का चेहरा अभी भी चमक रहा था, जबकि कुत्ता हांफ रहा था और बहुत थका हुआ लग रहा था।

🔶 स्वामी जी ने व्यक्ति से कहा कि “यह कुत्ता इतना ज्यादा कैसे थक गया जबकि तुम तो अभी भी साफ-सुथरे और बिना थके दिख रहे हो|”

🔷 तो व्यक्ति ने कहा “मैं तो सीधा-साधा अपने रास्ते पर चल रहा था लेकिन यह कुत्ता गली के सारे कुत्तों के पीछे भाग रहा था और लड़कर फिर वापस मेरे पास आ जाता था। हम दोनों ने एक समान रास्ता तय किया है लेकिन फिर भी इस कुत्ते ने मेरे से कहीं ज्यादा दौड़ लगाई है इसलिए यह थक गया है।”

🔶 स्वामी जी ने मुस्करा कर कहा “यही तुम्हारे सभी प्रश्रों का जवाब है, तुम्हारी मंजिल तुम्हारे आसपास ही है वह ज्यादा दूर नहीं है लेकिन तुम मंजिल पर जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और अपनी मंजिल से दूर होते चले जाते हो।”

🔷 यही बात लगभग हम सब पर लागू होती है। प्रायः अधिकांश लोग हमेशा दूसरों की गलतीयों की निंदा-चर्चा करने, दूसरों की सफलता से ईर्ष्या-द्वेष करने, और अपने अल्प ज्ञान को बढ़ाने का प्रयास करने के बजाय अहंकारग्रस्त हो कर दूसरों पर रौब झाड़ने में ही रह जाते हैं।

🔶 अंततः इसी सोच की वजह से हम अपना बहुमूल्य समय और क्षमता दोनों खो बैठते हैं, और जीवन एक संघर्ष मात्र बनकर रह जाता है।

👉 दूसरों से होड़ मत कीजिये, और अपनी मंजिल खुद बनाइये।

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પ્રાર્થનાનો પ્રભાવ — gnansarita


એક સામાન્ય સિલાઈ કારીગરે પોતાના સિલાઈ ધંધાની શરૂઆત કરી.પોતાની કુશળતાને લીધે દિન-પ્રતિદિન ધંધાનો વિકાસ થવા લાગ્યો.એવું કહેવાય છે કે.‘કામ કરે ઈ જીતે’અને ‘કામ કામને શીખવે’.તેણે બીજા કારીગરો રાખીને ધંધાનો વિસ્તાર કર્યો.તેણે ધંધાર્થે ત્રણ માળનું મોટું મકાન ખરીદ્યું,ને સમગ્ર ધંધાનું સંચાલન એ છેક ઉપરના માળે બેસીને કરતો.પણ વાત એમ છે કે તે કદીય લિફ્ટનો ઉપયોગ ના […]

પ્રાર્થનાનો પ્રભાવ — gnansarita
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बहुत समय पहले की बात है।


सुप्रभात

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🌹🌹 संसाधन व आत्मविश्वास 🌹🌹
बहुत समय पहले की बात है। एक गांव में एक साधु मंदिर में रहा करता था। उनकी दिनचर्या रोजाना प्रभु की भक्ति कराना और आने-जाने वाले लोगों को धर्म का उपदेश देना थी। गांव वाले भी जब भी मंदिर आते, तो साधु को कुछ न कुछ दान में दे जाते थे। इसलिए, साधु को भोजन और वस्त्र की कोई कमी नहीं होती थी। रोज भोजन करने के बाद साधु बचा हुआ खाना छींके में रखकर छत से टांग देता था।

समय ऐसे ही आराम से निकल रहा था, लेकिन अब साधु के साथ एक अजीब-सी घटना होने लगी थी। वह जो खाना छींके में रखता था, गायब हो जाता था। साधु ने परेशान होकर इस बारे में पता लगाने का निर्णय किया। उसने रात को दरवाजे के पीछे से छिपकर देखा कि एक छोटा-सा चूहा उसका भोजन निकालकर ले जाता है। दूसरे दिन उन्होंने छींके को और ऊपर कर दिया, ताकि चूहा उस तक न पहुंच सके, लेकिन यह उपाय भी काम नहीं आया। उन्होंने देखा की चूहा और ऊंची छलांग लगाकर छींके पर चढ़ जाता और भोजन निकाल लेता था। अब साधु चूहे से परेशान रहने लगा था।

एक दिन उस मंदिर में एक भिक्षुक आया। उसने साधु को परेशान देखा और उसकी परेशानी का कारण पूछा, तो साधु ने भिक्षुक को पूरा किस्सा सुना दिया। भिक्षुक ने साधु से कहा कि सबसे पहले यह पता लगाना चाहिए कि चूहे में इतना ऊंचा उछलने की शक्ति कहां से आती है।

उसी रात भिक्षुक और साधु दोनों ने मिलकर पता लगाना चाहा कि आखिर चूहा भोजन कहां ले जाता है।

दोनों ने चुपके से चूहे का पीछा किया और देखा कि मंदिर के पीछे चूहे ने अपना बिल बनाया हुआ है। चूहे के जाने के बाद उन्होंने बिल को खोदा, तो देखा कि चूहे के बिल में खाने-पीने के सामान का बहुत बड़ा भण्डार है। तब भिक्षुक ने कहा कि इसी वजह से ही चूहे में इतना ऊपर उछलने की शक्ति आती है। उन्होंने उस सामग्री काे निकाल लिया और गरीबों में बांटा दिया।

जब चूहा वापस आया, तो उसने वहां पर सब कुछ खाली पाया, तो उसका पूरा आत्मविश्वास समाप्त हो गया। उसने साेचा कि वह फिर से खाने-पीने का सामान इकट्ठा कर लेगा। यह सोचकर उसने रात को छींके के पास जाकर छलांग लगाई, लेकिन आत्मविश्वास की कमी के कारण वह नहीं पहुंच पाया और साधु ने उसे वहां से भगा दिया।

कहानी से सीख :-
संसाधनों के अभाव में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। इसलिए, जो भी संसाधन आपके पास हों, उसका ध्यान रखना चाहिए ।🌹🌹🌹
Uday Raj

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एक सास अपने पति के साथ तीर्थ यात्रा पर गयी


एक दन्त कथा है एक सास अपने पति के साथ तीर्थ यात्रा पर गयी और उसका पुरे सफर में अपने घर की चिंता खाये रही हाये मेरी बहु मेरे पीछे दुगुना घी खा रही होगी लड्डू , पेडे मिठाईयो के गुलछरे उडाती होगी ।
मै यहां आई हुं तो उसे बोलने वाला कोई नही होगा यह सोचते सोचते ही पुरी यात्रा हुयी यात्रा वापसी पर जब अन्तिम तीर्थ गंगा स्नान करने गयी तो वो नहाते हुये भी यही सोच रही थी तभी उसके ऊंगली की अगूंठी निकल कर गंगा मे बह गयी और वो अपनी बहु को गालियां देने लगी कि उसके ध्यान में अगूंठी खो गयी ।
उधर उसकी बहु पुरे सफर में अपनी सास के हित के बारे में सोचती रहती उनके लिये घी इक्कठा कर रखा था उसे लगा कि सास तीर्थ मे सही से खाना नही पाते होगे आयेंगे तो मै उनके लिये लड्डू बनाऊंगी उनको आराम कराऊंगी उनकी सेवा करूंगी ।
जब सास गंगा स्नान कर रही थी तो बहु घर पर बर्तन धो रही थी तो वो अंगूठी गंगा में बही और उस बहु के बर्तन मे मिली ।
इसलिये कहावत है मन चंगा तो कसोटी में गंगा ।
*जीवन के उतार चढाव में हमे मन खराब नही करना चाहिये समय खराब भी हो तो समय आने पर सही हो जायेगा ।

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क बार, दो बहुमंजिली इमारतों के बीच,


. विश्वास (believe) तथा विश्वास (trust) में अंतर

एक बार, दो बहुमंजिली इमारतों के बीच, बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े, एक नट चल रहा था । उसने अपने कन्धे पर अपना बेटा बैठा रखा था ।

सैंकड़ों, हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए, अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगाकर, उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली ।

भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी, तालियाँ, सीटियाँ बजने लगी ।।

लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्फी ले रहे थे। उससे हाथ मिला रहे थे । वो कलाकार माइक पर आया, भीड़ को बोला, “क्या आपको विश्वास है कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ ??”

भीड़ चिल्लाई, “हाँ हाँ, तुम कर सकते हो ।”

*उसने पूछा, क्या आपको विश्वास है,भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं कि तुम सफलता पूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।

कलाकार बोला, पूरा पूरा विश्वास है ना!

भीड़ बोली, हाँ हाँ!

कलाकार बोला, “ठीक है, कोई मुझे अपना बच्चा दे दे, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा ।”

खामोशी, शांति, चुप्पी फैल गयी।

कलाकार बोला, “डर गए…!” अभी तो आपको विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ। असल मे आप का यह विश्वास (believe) है, मुझमेँ विश्वास (trust) नहीं है।दोनों विश्वासों में फर्क है साहेब!

यही कहना है, “ईश्वर हैं !” ये तो विश्वास है! परन्तु ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास नहीं है ।

👉🏻 You believe in GOD, but you don’t, trust him.

👉🏻 अगर ईश्वर में पूर्ण विश्वास है तो :-
चिंता, क्रोध, तनाव क्यों ???

जय जय श्री राधे कृष्ण जी

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प्राइवेट स्कूलों की दुर्दशा का कारण”


“प्राइवेट स्कूलों की दुर्दशा का कारण”

पहले चाय की दुकान पे
सिर्फ ‘चाय’ बिकती थी,
वो भी एक नम्बर….!!

फिर बिस्कुट, मठरी,
टोस्ट भी बिकने लगे…!!

फिर धीरे-धीरे
सिगरेट भी बिकने लगी…!!

फिर किसी ने गुटका बेचने की भी सलाह दे डाली ,
वो भी बिकने लगी.. .!

अब एक काऊंटर कोल्ड ड्रिंक का भी लग गया…!!

एक दिन शिक्षा विभाग के एक अधिकारी,
जो परिवार सहित कहीं जा रहे थे,
उन्होंने गुटका लेने लिए कार रूकवा दी और सलाह ठोक दी कि भाई बच्चों के लिए
चिप्स, नमकीन, कुरकुरे के पैकेट भी लटका लो…!

इस सलाह पर भी अमल भी हुआ ।

इतने सारे सामग्रियों को लाने व बेचने की व्यस्तता के कारण ‘चाय’ की क्वालिटी खराब हो गई
अतः ग्राहक कम होते गए।

और अब… अब वह दुकान पूरी तरह से बैठ गई है
अब वहाँ कुछ नहीं बिकता..!!

क्योंकि मूलत: वह एक चाय की दुकान थी
जिसकी क्वालिटी खराब होने के कारण लोग दुकान पर कम आने लगे… !!विद्यालयों में भी पहले केवल अध्यापन हुआ करता था... !!!!

समझ गए ना।

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એક દિવસ એક ફૂલવાળો વાળ કપાવવા માટે વાળંદ પાસે ગયો.


એક દિવસ એક ફૂલવાળો વાળ કપાવવા માટે વાળંદ પાસે ગયો.
વાળ કાપ્યા પછી, તેણે તેના બિલ વિશે પૂછ્યું, અને વાળંદે જવાબ આપ્યો, ‘હું તમારી પાસેથી પૈસા સ્વીકારીશ નહીં, હું આ અઠવાડિયા માટે સમાજસેવા કરું છું.

ફ્લોરિસ્ટ ખુશ થઈ ગયો અને દુકાન છોડી ગયો.

જ્યારે બીજો દિવસે સવારે વાળંદ તેની દુકાન ખોલવા ગયો ત્યારે ત્યાં એક ‘થેંક્યુ’ કાર્ડ હતું અને તેના દરવાજે એક ડઝન ગુલાબ તેની રાહ જોતા હતા.

પાછળથી, એક શાકભાજી વાળો વાળ કાપાવવા માટે આવે છે, અને જ્યારે તેણે પોતાનું બિલ ચૂકવવાની કોશિશ કરી ત્યારે વાળંદે ફરીથી જવાબ આપ્યો, ‘હું તમારી પાસેથી પૈસા સ્વીકારીશ નહીં, હું આ અઠવાડિયે સમાજસેવા કરી રહ્યો છું.

શાકભાજી વાળો ખુશ થઈને દુકાન છોડીને ગયો.

બીજે દિવસે સવારે વાળંદ ખોલવા ગયો ત્યારે ત્યાં એક ‘થેંક્યુ’ કાર્ડ અને તાજા શાકભાજીની થેલી દરવાજે તેની રાહ જોતી હતી.

પછી એક રાજકારણી હેર કટ માટે આવ્યો, અને જ્યારે તે પોતાનું બિલ ચૂકવવા ગયો ત્યારે નાઈએ ફરીથી જવાબ આપ્યો, ‘હું તમારી પાસેથી પૈસા સ્વીકારીશ નહી. હું આ અઠવાડિયે સમાજ સેવા કરી રહ્યો છું.

રાજકારણી ખૂબ ખુશ હતો અને દુકાન છોડી ગયો.

બીજા દિવસે સવારે, જ્યારે વાળંદ દુકાન ખોલવા ગયો, ત્યાં એક ડઝન રાજકારણીઓ મફત હેરકટની રાહ જોતા હતા.

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जानवरों के डॉक्टर के पास एक Lady आई


जानवरों के डॉक्टर के पास एक Lady आई जिनके साथ एक high breed का कुत्ता था।

कहने लगी….

“मेरे कुत्ते के साथ अजीबो गरीब problem हो गई है।

मेरा कुत्ता बड़ा हट्टी (Disobidient) हो गया है…..

इसे अपने पास बुलाती हूँ तो ये दूर भाग जाता है।

Please कुछ करें..
I am very attached to him. I can not tolerate his indifference.”

डॉक्टर ने कुत्ते को ग़ौर से देखा। पन्द्रह मिनट examin करने के बाद मैं कहा…

ये कुत्ता एक रात के लिए मेरे पास छोड़ दें। मैं इसका observation कर के इलाज करूँगा।

उसने बडी बेदिली से हामी भर ली।

सब चले गए…..

डॉक्टर ने अपने assistant को आवाज़ दी…और कहा कि इसे भैंसों के साथ बांध दो और हर आधे घंटे पर इसे केवल पानी देना और इसको चमड़े के हन्टर से मारना।

डॉक्टर का assistant जट् आदमी था।

रात भर कुत्ते के साथ हन्टर ट्रीटमेंट करता रहा।

दूसरे दिन लेडी आ धमकीं।

सर
what about my pup?

Doctor said__
Hope your pup has missed you too ……

डॉक्टर का assistant कुत्ते को ले आया़.

ज्यों ही कुत्ता कमरे मे आया..छलांग लगा के मैडम की गोद मे आ बैठा,
लगा दुम हिलाने,
मुंह चाटने!!

मैडम कहने लगीँ:
सर, आपने इसके साथ क्या किया कि अचानक इसका यह हाल है?

डॉक्टर ने कहा: बड़े से एयर कंडीशनर कमरे, रोज़ अति स्वादिष्ट भोजन खा खाके ये अपने को मालिक समझ बैठा था और अपने मालिक की पहचान भूल बैठा था
बस इसका यही वहम उतारने के लिए थोड़ा
Psychological plus physical treatment की ज़रूरत थी_
वह दे दी,—–
now he is Okay…

सारांश ~~

“बस यही ट्रीटमेंट अगर देश के अन्दर :

भारत माता को गाली देने वाले,
भारत के टुकड़े करने वाले,
आज़ादी का दुरुपयोग करते हुए आजादी मांगने वाले,
सीमा के रक्षक जवानों को अपशब्द कहने वाले
और दुश्मन देश को जिन्दाबाद कहने वालों के साथ हो ,

तो कश्मीर ही नहीं पूरे देश से आतंकवाद और नक्सलवाद समाप्त हो जायेगा…”

🇮🇳 जय हिंद 🙏🏻

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इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?


इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?
लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से पुछा – “पिता जी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है ?” पिता जी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये. फिर वे बोले “बेटे एक मनुष्य की कीमत आंकना बहुत मुश्किल है, वो तो अनमोल है|”

बालक : क्या सभी उतनाही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं?
पिताजी : हाँ बेटे|

बालक कुछ समझा नही उसने फिर सवाल किया – तो फिर इस दुनिया मे कोई गरीब तो कोई अमीर क्यो है? किसी की कम रिस्पेक्ट तो की सी की ज्यादा क्यो होती है?
सवाल सुनकर पिता जी कुछ देर तकशांत रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा|
रॉड लाते ही पिता जी ने पुछा – इसकी क्या कीमतहोगी?

बालक : 200 रूपये|
पिताजी : अगर मै इसकेबहुत से छोटे-छटे कील बना दू तो इसकी क्या कीमत हो जायेगी ?
बालक कुछ देर सोच कर बोला : तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रूपये का.
पिताजी : अगर मै इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?

बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला “तब तो इसकी कीमत बहुत ज्यादा हो जायेगी.”
फिर पिता जी उसे समझाते हुए बोले – “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इसमे नही है की अभी वो क्या है, बल्की इसमे है कि वो अपने आप को क्या बना सकता है.”
बालक अपने पिता की बात समझ चुका था.

दोस्तों, अक्सर हम अपनी सही कीमत आंकने मे गलती कर देते है. हम अपनी वर्तमान स्थिति को देख कर अपने आप को अर्थहीन (valueless)समझने लगते है.लेकिन हममें हमेशा अथाह शक्ति होती है. हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओ से भरा होता है. हमारी जीवन मे कई बार स्थितियाँ अच्छी नही होती है पर इससे हमारी कीमत कम नही होती है. मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया मे हुआ है इसका मतलब है हम बहुत खाश और महत्वपूर्ण हैं. हमें हमेशा अपने आप को सिखाते (improve)करते रहना चाहिये औरअपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये|

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What’s​ the size of God? Excellent reading


What’s​ the size of God? Excellent reading

A boy asked the father: What’s the size of God? Then the father looked up to the sky and seeing an airplane asked the son: What’s the size of that airplane? The boy answered: It’s very small. I can barely see it. So the father took him to the airport and as they approached an airplane he asked: And now, what is the size of this one? The boy answered: Wow daddy, this is huge! Then the father told him: God, is like this, His size depends on the distance between you and Him. The closer you are to Him, the greater He will be in your life.