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✍️कॉफी की शीशी.. एक दृष्टांत

एक युवा युगल के पड़ोस में एक वरिष्ठ नागरिक युगल रहते थे, जिनमे पति की आयु लगभग अस्सी वर्ष थी और पत्नी की आयु उनसे लगभग पांच वर्ष कम थी। युवा युगल उन वरिष्ठ युगल से बहुत अधिक लगाव रखते थे और उन्हें दादा दादी की तरह सम्मान देते थे। इसलिए हर रविवार को वो उनके घर उनके स्वास्थ्य आदि की जानकारी लेने और कॉफी पीने जाते थे।

युवा युगल ने देखा कि हर बार दादी जी जब कॉफ़ी बनाने रसोईघर में जाती थी तो कॉफ़ी की शीशी का ढक्कन को दादा जी से खुलवाती थी।

इस बात का संज्ञान लेकर युवा पुरुष ने एक ढक्कन खोलने के यंत्र को लाकर दादी जी को उपहार स्वरूप दिया ताकि उन्हें कॉफी की शीशी के ढक्कन को खोलने की सुविधा हो सके। उस युवा पुरुष ने ये उपहार देते वक्त इस बात की सावधानी बरती की दादा जी को इस उपहार का पता न चले। उस यंत्र के प्रयोग की विधि भी दादी जी को अच्छी तरह समझा दिया।

उसके अगले रविवार जब वो युवा युगल उन वरिष्ठ नागरिक के घर गया तो वो ये देख के आश्चर्य में रह गया कि दादी जी उस दिन भी कॉफी की शीशी के ढक्कन को खुलवाने के लिए दादा जी के पास लायी। युवा युगल ये सोचने लगे कि शायद दादी जी उस यंत्र का प्रयोग करना भूल गयी या वो यंत्र काम नही कर रहा!

जब उन्हें एकांत में अवसर मिला तो उन्होंने दादी जी से उस यंत्र के प्रयोग न करने का कारण पूछा। दादी जी के उत्तर ने उन्हें निशब्द कर दिया…..

दादी जी ने कहा, “ओह, कॉफी की शीशी के ढक्कन को मैं स्वयं भी अपने हाथ से, बिना उस यंत्र के प्रयोग के, आसानी से खोल सकती हूँ। पर मैं कॉफी की शीशी का ढक्कन उनसे इसलिए खुलवाती हूँ कि उन्हें ये अहसास रहे कि आज भी वो मुझसे ज्यादा मजबूत है और इसलिए हमारे घर के पुरुष है। इस बात से मुझे भी ये लाभ मिलता है कि मैं ये महसूस करती हूं कि मैं आज भी उन पर निर्भर हूँ और वो मेरे लिए आज भी बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति है। यही बात हम दोनों के स्नेह के बंधन को शक्ति प्रदान करती है। युगल की एकजुटता ही उनके सम्बन्ध की बुनियाद है। अब हम दोनों के पास अधिक आयु नही बची है इसलिए हमारी एकजुटता हम दोनों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।”

उस युवा युगल को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सीख मिली। वरिष्ठ नागरिक (बुजुर्ग) चाहे घर मे, आय में कोई सहयोग न दे रहे हो पर उनके अनुभव हमे पल पल महत्वपूर्ण सीख देते रहते है

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जगह #अमेरिका

मुल्ज़िम एक पंद्रह साल का लड़का था स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ाया पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा

तुमने सचमुच कुछ चुराया था

ब्रैड और #पनीर का पैकेट लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया

क्यों ?
मुझे ज़रूरत थी
खरीद लेते :– #जज
पैसे नहीं थे :– #लड़का
घर वालों से ले लेते
घर में सिर्फ #मां है बीमार है,,, बेरोज़गार भी,,,,,, उसी के लिए चुराई थी
तुम कुछ काम नहीं करते ?
करता था एक कार वाश में #मां की देखभाल के लिए एक दिन की #छुट्टी की तो निकाल दिया
तुम किसी से मदद मांग लेते
सुबह से घर से निकला था इसी #तकरीबन पचास लोगों के पास गया बिल्कुल #आख़री में ये क़दम उठाया
जिरह ख़त्म हुई जज ने #फैसला सुनाना शुरू किया

चोरी और ख़ुसूसन ब्रैड की चोरी बोहोत #होल्नाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब #ज़िम्मेदार हैं अदालत में #मौजूद हर शख़्स मुझ समेत

हम सब #मुजरिम है इसलिए यंहा मौजूद हर शख़्स पर #दसडालर का जुर्माना लगाया जाता है #दसडालर दिए बग़ैर कोई भी यंहा से बाहर नहीं निकल सकेगा
ये कह कर #जज ने #दसडालर अपनी #जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर #पेन उठाया #लिखना शुरू किया ۔ इसके अलावा में #स्टोर पर #एकहज़ार-डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक #भूखेबच्चे से ग़ैर #इंसानीसुलूक करत हुए #पुलिस के हवाले करा अगर #चौबीसघंटे में जुर्माना जमा नहीं करा तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी
सारी जुर्माना राशि इस लड़के को देकर कोर्ट इससे लड़के से माफी तलब करती है
फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बस ही रहे थे उस लड़के के भी हिचकीया बंध गई
और वो बार बार जज को देख रहा जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गया

प्रशांत मणि त्रिपाठी

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यही सत्य है…

महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था.युद्धभूमि में यत्र-तत्र योद्धाओं के फ़टे वस्त्र, मुकुट, टूटे शस्त्र, टूटे रथों के चक्के, छज्जे आदि बिखरे हुए थे, और वायुमण्डल में पसरी हुई थी घोर उदासी. गिद्ध, कुत्ते, सियारों की उदास और डरावनी आवाजों के बीच उस निर्जन हो चुकी उस भूमि में द्वापर का सबसे महान योद्धा देवब्रत भीष्म शरशय्या पर पड़ा सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहा था अकेला.तभी उनके कानों में एक परिचित ध्वनि शहद घोलती हुई पहुँची, “प्रणाम पितामह”

भीष्म के सूख चुके अधरों पर एक मरी हुई मुस्कुराहट तैर उठी। बोले, ” आओ देवकीनंदन… स्वागत है तुम्हारा. मैं बहुत देर से तुम्हारा ही स्मरण कर रहा था”
कृष्ण बोले, ” क्या कहूँ पितामह! अब तो यह भी नहीं पूछ सकता कि कैसे हैं आप”
भीष्म चुप रहे.कुछ क्षण बाद बोले, ” पुत्र युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करा चुके केशव? उनका ध्यान रखना, परिवार के बुजुर्गों से रिक्त हो चुके राजप्रासाद में उन्हें अब सबसे अधिक तुम्हारी ही आवश्यकता है”
कृष्ण चुप रहे.
भीष्म ने पुनः कहा, ” कुछ पूछूँ केशव? बड़े अच्छे समय से आये हो, सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय।”
कृष्ण बोले- कहिये न पितामह!
एक बात बताओ प्रभु! तुम तो ईश्वर हो न..
कृष्ण ने बीच में ही टोका, “नहीं पितामह! मैं ईश्वर नहीं। मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह, ईश्वर नहीं।”
भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े। बोले, ” अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया कृष्ण, सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा। पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया, अब तो ठगना छोड़ दे रे…”
कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर बोले, ” कहिये पितामह!”
भीष्म बोले, “एक बात बताओ कन्हैया! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?”

  • “किसकी ओर से पितामह? पांडवों की ओर से?”
  • “कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था? आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या? यह सब उचित था क्या?”
  • इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया। उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम, उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन, मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह!
  • “अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है, पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है। मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण!”
  • “तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नहीं हुआ, कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो हो होना चाहिए।”
  • ” यह तुम कह रहे हो केशव? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है? यह क्षल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे गया? “
  • “इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है। हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है। राम त्रेता युग के नायक थे, मेरे भाग में द्वापर आया था। हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह।”

-” नहीं समझ पाया कृष्ण! तनिक समझाओ तो…”

-” राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह! राम के युग में खलनायक भी ‘रावण’ जैसा शिवभक्त होता था। तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण और कुम्भकर्ण जैसे सन्त हुआ करते थे। तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे। उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था। इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया। किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनी, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह। पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से हो।”

  • “तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा?”

-” भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह। कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा। वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा। जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह! तब महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय। भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह।”

-“क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव? और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?”

-“सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, सब मनुष्य को ही करना पड़ता है। आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न! तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न? यही प्रकृति का संविधान है। युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से। यही परम सत्य है।”

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे। उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी। उन्होंने कहा- चलो कृष्ण! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो… अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण!”

कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था।

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता ।।

अरुण सुक्ला

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गाय की दोस्ती की मिसाल की एक सच्ची घटना है


गाय की दोस्ती की मिसाल की एक सच्ची घटना है..! वैसे आपने हीरा मोती के बारे में पढा़ ही होगा…! लेकिन यह घटना #तमिलनाडु के #मदुरई_शहर के #पलामेडु_गाँव की हैं। मदुरई के एक गाँव पलामेडू में एक किसान ने अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अपनी दुधारु गाय #लक्ष्मी को एक ग्वाला से 20,000 में बेच देते हैं। जबकी लक्ष्मी उनके साथ जो पिछले चार साल से थी। लेकिन घर की तंगी के वजह से उन्हे मजबुरन लक्ष्मी को किसी और से बचना पडा़। लेकिन जब वो खरीदार लक्ष्मी को लेने आया तो कुछ वाक्या युँ हुआ कि अब वो चर्चा का विषय बन गया है। जब लक्ष्मी को ले जाने खरीदार आया और उसे अपनी गाडी़ में करके ले जाने लगा तो लक्ष्मी का एक दोस्त #मंजमलाई जो की वही के एक स्थानीय मंदिर का बैल है। वो पिछले चार सालों से लक्ष्मी के साथ खेलता, खाता था। इन चारो सालों में दोनो में दोस्ती इतनी गहरी है गई थी देखते बन रही थी आज। जब उसने देखा की लक्ष्मी को कोई और ले जा रहा है तब वह किसी भी हाल में लक्ष्मी को जाने नही दे रहा था। वो अपने दोस्त को वापस पाना चाहता था। मांजमलाई लक्ष्मी को छुडा़ने के लिए दौड़ते हुए आया और वाहन के चारों ओर घूमने लगा, घुमते रहा, घुमते रहा। और जब उसके घुमने के बावजूद भी जब खरीदार अपनी गाडी़ शुरू किया और जाने लगा तो, मंज़ामलाई उस वाहन के पीछे एक मील तक दौड़ लगाई…सिर्फ इसलिए कि, लक्ष्मी को वो किसी तरह रोक ले और उसे कहीं और न जाने दें। लेकिन खरीदार नहीं रूका और वो लक्ष्मी को अपने साथ ले गया और मंजामलाई को वहीं दौड़ता छोड़ दिया..!किसी ने इसका #वीडियो बना लिया और अपलोड कर अपलोड होते ही यह वीडियो तेजी वारल हुआ। विडियो देखने के बाद कई लोगों ने मणिकंदन को फोन करना शुरू कर दिया और वो चाहते थे इस किसान को उनकी गाय लक्ष्मी को वापस आ जाए जिसके लिए उन्हें पैसे देना चाहते थे, अब सुनिए अब उस दुग्ध फार्म वाले ग्वाले को लालच आ गया और उसने दोगुने दाम कर दिए लक्ष्मी के 20000 हजार की लक्ष्मी वो अब वो 40000 मांगने शुरू कर दिएजब यह खबर तमिलनाडु के सीएम के बेटे ओपी जयप्रदीप को पता चला तो उन्होने उस गाय को वापस लाए और मंदिर में फिर उस किसान को दे दिए। अब लक्ष्मी और मंजमलाई फिर से इकट्ठे होकर खेलते और खाते है..! गायें भावुक प्राणी हैं। वो भी हमारे जैसे भाव, प्यार साथ स्नेह और दर्द महसूस करते हैं। उन्हें भी प्यार का अनुभव होता है…💖💖💖

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अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे


अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा,

मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे!इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!

सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली Dignity of Labour (श्रम का महत्व) और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि – कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि। अमरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।

वहीं हमारे देश भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है । यहाँ जो बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है। जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं। ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख तो सकते है, लेकिन उसे पूरा कभी नहीं कर सकते। जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे। जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा है।
-स्वामी यतींद्र आनंद

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માતાની વ્યથા


માતાની વ્યથા🙏🏻

એક દંપતી દિવાળી ની ખરીદી કરવા જઇ રહ્યું હતું પતિ એ કહ્યું જલ્દી કર મારી પાસે ટાઈમ નથી એટલું કહીને બેડરૂમ માથી બહાર નીકળી ગયો ત્યારે બહાર બેઠેલી તેની મા ઉપર તેની નજર ગઈ..!

કઈ વિચાર કરીને પાછો રૂમમાં આવ્યો અને તેની પત્ની ને કીધુ કે શાલું તે માને પૂછ્યું તેમને કઈ દિવાળી ઉપર લેવું હોય તો..!

શાલીની કહે નથી પૂછ્યું અને આ ઉંમરમાં એમને લેવાનું પણ શું હોય બે ટાઈમ ખાવાનું અને બે જોડી કપડા મળે એટલે બહુ થઈ ગયું….!

એ વાત નથી શાલું મા પહેલી વાર દિવાળી ઉપર આપણા ઘરે આવી છે નહી તો દરેક વખતે ગામમાં જ નાના ભાઈ પાસે હોય છે..!

અરે એટલો બધો પ્રેમ “મા” ઉપર ઉભરાઈ છે તો ખુદ જઇને પૂછી લો ને …?
આટલું કહી ને શાલીની ખમ્ભે બેગ લગાવીને બહાર નીકળી ગઈ…!

સૂરજ માની પાસે જઈને કહ્યું કે મા અમેં દિવાળીની ખરીદી કરવા જઈએ છીએ તારે કઈ મંગાવવું છે…?

મા કહે મારે કંઈ નથી જોઈતું બેટા….!

વિચારી લો ‘મા’ અગર કઈ લેવું હોય તો કહી દેજો..!

સૂરજેે બહુ જોર દઈને કીધું એટલે મા કહે ઉભો રહે બેટા હું લખી ને આપૂ છું તમે ખરીદીમાં ભૂલી નો જાવ એટલે , એટલું કહીને માં અંદર ગઈ થોડી વાર પછી આવી લિસ્ટ સૂરજ ને આપી દીધુ..!

સૂરજ ગાડી માં બેસતા બેસતા કહ્યું જોયું શાલું માને પણ કઈ લેવું હતું પણ કહેતી નહોતી મેં જોર દીધું પછી લિસ્ટ બનાવીને આપ્યું માણસ ને રોટી કપડાં સિવાય બીજી કોઈ ચીજ ની પણ જરૂર હોય છે…!

ઠીક છે શાલીની કહે પહેલા હું મારી દરેક વસ્તુ ખરીદી લઉં પછી તમારી મા ની લિસ્ટ જોયે રાખજો…!

બધી ખરીદી કરી લીધા પછી શાલીની કહે હું AC ચાલું કરીને ગાડી માં બેઠી છું તમે તમારી “મા” ની લિસ્ટ ની ખરીદી કરીને આવજો…!

અરે શાલીની ઘડીક રહે મારે પણ ઉતાવળ છે , ” મા” ના લિસ્ટ ની ખરીદી કરીને સાથે જ જઈએ…!

સૂરજે ખીચા માથી ચિઠી કાઢી જોઈનેજ શાલીની કહે બાપ રે આટલું લાંબુ લિસ્ટ…!

શાલીની કહે ખબર નહિ શુ શું મંગાવ્યું હશે જરૂર એમના ગામ માં રહે તે નાના દીકરા ના પરિવાર માટે ઘણો બધો સામાન મંગાવ્યો હશે શાલીની ગુસ્સામાં ને ગુસ્સામાં સૂરજની સામે જોયું…!

પણ આ શું સૂરજ ની આંખમાં આંસુ હતા અને આખું શરીર ધ્રુજી રહ્યું હતું લિસ્ટ ની ચિઠી વાળો હાથ પણ ધ્રુજી રહ્યો હતો…!

શાલીની બહુ જ ગભરાઈ ગઈ શું મંગાવ્યું છે તમારી માએ કહીને ચિઠી હાથમાંથી ઝૂંટવી લીધી..!

હેરાન હતી શાલીની કે આટલી મોટી ચિઠી માં થોડાજ શબ્દો લખ્યા હતા …!

ચિઠી માં લખ્યું હતું………
બેટા મને દીવાળી પર તો શું ,પણ કોઈ પણ અવસર પર કંઈ નથી જોઈતું પરંતુ તું જીદ કરે છે એટલે તારા શહેર ની કોઈ દુકાને થી અગર થોડો ટાઈમ મારા માટે મળતો હોય તો લેતો આવજે , હું તો હવે એક આથમતી સાંજ છું બેટા, ક્યારેક મને એકલા એકલા આ અંધકારમય જીવનથી ડર લાગે છે પલ પલ હું મોતની નજીક જતી જાઉં છું હું જાણું છું બેટા મોત ને બદલી શકાતું નથી કે પાછું ઠેલાતું નથી , મોત એ એક પરમ સત્ય છે પણ બેટા આ એકલાપણું મને ડરાવે છે, મને ગભરામણ થાય છે થોડો સમય મારી પાસે બેસ , બેટા થોડા સમય માટે પણ મારા બુઢાપાનું એકલાપણું દૂર થઈ જશે ..!

કેટલા વર્ષ થયાં બેટા મેં તને સ્પર્શ પણ નથી કર્યો એક વાર આવ બેટા મારી ગોદ માં માથું રાખીને સુઈ જા હું તારા માથામાં મમતા ભર્યો હાથ ફેરવું શું ખબર બેટા હું આવતી દિવાળી સુધી રહું કે નો રહું…!

ચિઠી ની છેલ્લી લીટી વાંચતા વાંચતા શાલીની પણ રડવા લાગી…!

“મા” આવી હોય છે…!

મિત્રો આપણા ઘરમાં રહેતા વિશાળ હૃદય વાળા માણસો જેને આપણે ઘરડાની શ્રેણીમાં રાખીએ છીએ જે આપણા જીવનનું કલ્પતરું છે ,આપણું માર્ગદર્શન છે એટલે યથા યોગ્ય એમની સેવા કરો, માન સન્માન આપો અને હંમેશા યાદ રાખો આપણો પણ બુઢાપો નજીક જ છે એની તૈયારી આજથી જ કરી દો આપણા કરેલા સારા ખરાબ કામ ગમે ત્યારે આપણી પાસે જ પાછા આવે છે …!!

👏🏻 જય ઞીરનારી ના પ્રણામ…!!

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गधों की नियुक्ति का चलन – अनुवाद इक इंगलिश कहावत से


गधों की नियुक्ति का चलन – अनुवाद इक इंगलिश कहावत से
इक शासक ने मछलियां पकड़ने को जाना था उस राजा ने अपने ज्योतिष विशेषज्ञ से पूछा अगले कुछ घंटे का मौसम का हाल। ज्योतिषि ने बताया कोई बारिश की संभावना नहीं आज। राजा अपनी रानी को लेकर मछली पकड़ने चल पड़ा। राह में राजा को इक आदमी मिला जो मछली पकड़ने वाले बांस को पकड़े गधे पर सवार था उसने कहा राजन आप वापस चले जाओ आज बारिश होने वाली है। राजा ने कहा मैंने अपने ज्योतिष अधिकारी से पूछ लिया है जिसको बहुत पैसा देता हूं भरोसा है उसने बताया आज बारिश नहीं होने वाली है। मुझे उसकी बात का विश्वास है और राजा आगे बढ़ गया।

मगर कुछ देर में तेज़ बरसात हुई और राजा रानी भीग गए और वापस आते ही राजा ने अपने ज्योतिष अधिकारी को मौत की सज़ा सुना दी। राजा ने मछली पकड़ने वाले को दरबार में बुलाया और उसको अपना भाग्य बांचने वाला अधिकारी नियुक्त करने की बात की। मछली पकड़ने वाले ने बताया उसको ज्योतिष या मौसम की कोई समझ नहीं है वो तो अपने गधे को देख का समझता है जब उसके कान नीचे की तरफ झुके होते हैं तब बारिश होती है जब खड़े होते हैं नहीं होती बरसात। राजा ने तब इक गधे को नियुक्त कर लिया। तभी से ये चलन चलता रहा है।

( आधुनिक संदर्भ में राजिस्थान में गधे की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया होगा। गधे की बात सही साबित हुई खूब बारिश हो रही है थमती ही नहीं अभी तक भी। पायलट अधर में फंसा है। )

A king wanted to go fishing, and he asked the royal weather forecaster the forecast for the next few hours.
The palace meteorologivst assured him that there was no chance of rain.
So the King and the Queen went fishing.
On the way, he met a man with a fishing pole riding on a donkey, and he asked the man if the fish were biting.
The fisherman said, “Your Majesty, you should return to the palace! In just a short time I expect a huge rain storm.”
The King replied: “I hold the palace meteorologist in high regard.
He is an educated and experienced professional.
Besides, I pay him very high wages.
He gave me a very different forecast.
I trust him.”
So the King continued on his way.
However, in a short time a torrential rain fell from the sky.
The King and Queen were totally soaked.
Furious, the King returned to the palace and gave the order to fire the meteorologist.
Then he summoned the fisherman and offered him the prestigious position of royal forecaster.
The fisherman said, “Your Majesty, I do not know anything about forecasting.
I obtain my information from my donkey.
If I see my donkey’s ears drooping, it means with certainty that…it will rain.”
So the King hired the donkey.
And thus began the practice of hiring dumb asses to work in influential positions of government.
The practice is unbroken to this date… 😊

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गुस्से पर नियंत्रण


🌹 गुस्से पर नियंत्रण 🌹

एक वकील ने सुनाया हुआ एक हृदय स्पर्शी किस्सा।

मैं अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी।

उसने कहा –उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है। बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए? क्या लगेगा खर्चा?*

मैंने उन्हें बैठने का कहा। “रग्घू, पानी दे इधर” मैंने आवाज़ लगाई। वो कुर्सी पर बैठे।

उनके सारे कागजात मैंने देखे। उनसे सारी जानकारी ली। आधा पौना घंटा गुजर गया। “मैं इन कागज़ो को देख लेता हूँ। आप के केस पर विचार करेंगे। आप ऐसा कीजिए बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे।”

चार दिन बाद वो फिर से आए। वैसे ही कपड़े। बहुत डेस्परेट लग रहे थे।

अपने छोटे भाई पर गुस्सा थे बहुत। मैंने उन्हें बैठने का कहा। ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूँज रही थी।

मैंने बात की शुरुआत की। ” बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए। आप दोनों भाई, एक बहन। माँ बाप बचपन में ही गुजर गए। तुम नौवीं पास, छोटा भाई इंजीनियर।

आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा। लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया। कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं। पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।”

“फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया। आपका दिल खुशी से भरा हुआ था। फिर आपने मरते दम तक मेहनत की। 80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया। बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की।”

फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया। वो मास्टर्स पास हुआ, फिर भाई की नौकरी लगी, तीन साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।

“पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्रेम को। शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है। घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है। पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा। पैसे कहाँ से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है। अब तुम्हारा भाई चाहता है गाँव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे। “

इतना कह कर मैं रुका। रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुँह से लगाई।

” तुम चाहते हो भाई ने जो माँगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए। क्या यही चाहते हो तुम?”

वो तुरंत बोला, “हाँ।”

मैंने कहा –हम स्टे लेे सकते हैं। भाई की प्रॉपर्टी में हिस्सा भी माँग सकते हैं।*

पर….

तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा!

तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी! !!

मुझे लगता है इन सब चीज़ों के सामने उस फ्लैट की कीमत शून्य है। भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया। अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना।

वो भिखारी निकला, तुम दिलदार थे। दिलदार ही रहो …..!

तुम्हारा हाथ ऊपर था, ऊपर ही रखो।

कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ।

पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया, इसका मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे, ऐसा तो नहीं होता!

वो मेरे मुँह को ताकने लगा। उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आँखें पोंछते हुए कहा, “चलता हूँ वकील साहब।” उसकी रूलाई फूट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था।

इस बात को अरसा गुजर गया। कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया। कलमों में सफेदी झाँक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था, हाथ में थैली।

मैंने कहा, “बाबा, बैठो।”

उसने कहा, “बैठने नहीं आया वकील साहब , मिठाई खिलाने आया हूँ। ये मेरा बेटा! बैंगलोर रहता है, कल आया है गाँव। अब दो मंजिला मकान बना लिया है वहाँ। थोड़ी थोड़ी कर के कुछ खेती खरीद ली है अब।” मैं उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था।

“वकील साहब, आपने मुझ से कहा था, कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत लगो, बरबाद हो जाओगे। गाँव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे। मैंने उनकी नहीं , आपकी बात सुन ली।

मैंने अपने बच्चों को तालीम दिलायी और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी।

मेरे हाथ का पेड़ा हाथ में ही रह गया! !! मेरे आँसू टपक ही गए आखिर. .. !

गुस्से को यदि योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो वास्तव में कभी पछताने की जरूरत नहीं पड़ेगी! !!

राधे राधे🙏🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

મન ના મણકા – ૧


મન ના મણકા – ૧

ચારસો મીટર ની રેસ માં કેન્યા નો રનર અબેલ મુત્તાઈ સહુ થી આગળ હતો .. ફિનિશિંગ લાઈન થી ચાર પાંચ ફૂટ ની દુરી પર એ અટકી પડ્યો… એને લાગ્યુ કે આ દોરેલા પટ્ટા જ ફિનિશિંગ લાઈન છે અને મૂંઝવણ માં અને ગેરસમાજ માં, એ ત્યાં જ અટકી પડ્યો. તેની પાછળ બીજા નમ્બરે દોડી રહેલ સ્પેનિશ રનર ઈવાન ફર્નાન્ડિઝ એ આ જોયું અને તેને લાગ્યુ કે આ કૈક ગેર સમાજ છે… તેણે પાછળ થી બૂમ પાડી અને મુત્તાઈ ને કહ્યું કે તે દોડવાનું ચાલુ રાખે…
પરંતુ , મુત્તાઈ ને સ્પેનિશ ભાષા માં સમાજ ના પડી…. આ આખો ખેલ માત્ર ગણતરી ની સેકન્ડ નો હતો. … સ્પેનિશ રનર ઈવાન એ પાછળ થી આવી અને અટકી પડેલા મુત્તાઈ ને જોર થી ધક્કો માર્યો અને, મુત્તાઈ ફિનિશ રેખા ને પર કરી ગયો….

ખુબ નાનો , પણ અતિ મહત્વ નો પ્રસંગ. … આ રેસ હતી … અંતિમ પડાવ પૂરો કરી વિજેતા બનવાની રેસ… ઈવાન ધારત તો પોતે વિજેતા બની શકત … ફિનિશ રેખા પાસે આવી ને અટકી પડેલા મુત્તાઈ ને અવગણી ને ઈવાન વિજેતા બની શકત. .. આખરે વિજેતા મુત્તાઈ ને ગોલ્ડ મેડલ મળ્યો અને ઈવાન ને સિલ્વર. …

એક પત્રકારે ઈવાન ને પૂછ્યું , ” તમે આમ કેમ કર્યું? તમે ધારત તો તમે જીતી શકત.. તમે આજે ગોલ્ડ મેડલ ને હાથ થી જવા દીધો… “
ઈવાન એ સુંદર જવાબ આપ્યો …” મારુ સ્વ્પ્ન છે કે , ક્યારેકે આપણે એવો સમાજ બનાવીયે, જ્યા વ્યક્તિ બીજા વ્યક્તિ ને ધક્કો મારે , પરંતુ પોતે આગળ જવા માટે નહિ…. પરંતુ બીજા ને આગળ લાવવા, મદદ કરવા, એની શક્તિ ને બહાર લાવવા ધક્કો મારે… , એવો સમાજ જ્યાં એક બીજા ને મદદ કરી બંને વિજેતા બને …”

પત્રકારે ફરી થી પૂછ્યું , ” તમે એ કેન્યન મુત્તાઈ ને કેમ જીતવા દીધો? તમે જીતી શકત…”

જવાબ માં ઈવાન એ કહ્યું , ” મેં એને જીતવા નથી દીધો.. ,
એ જીતતો જ હતો…
આ રેસ એની હતી…
અને છતાં જો હું એને અવગણી ને ફિનિશ લાઈન પાર કરી જાત, તો પણ મારી જીત તો કોઈ બીજા પાસે થી પડાવેલી જીત જ હોત..
આ જીત પર હું કેવી રીતે ગર્વ કરી શકત ?
આવો જીતેલો ચંદ્રક હું મારી મા ને શી રીતે બતાવી શકું?
હું મારા અંતરાત્મા ને શું જવાબ આપું? “

સઁસ્કાર અને નીતિમત્તા એ વારસા માં મળેલી ભેટ છે…
એક પેઢી થી બીજી પેઢી ને મળતો વારસો છે….
આમ થાય અને આમ ના જ થાયે… આ જ પુણ્ય અને પાપ છે…
આ જ ધર્મ છે…

બાળકો ને આપણે શું આપીએ છે, એ જ નક્કી કરશે કે કાલ નો સમાજ કેવો હશે….
નીતિમત્તા અને સંસ્કાર ના કોઈ ઇન્જેક્શન કે ટેબ્લેટ નથી આવતી…
બાળક પોતા ના માતા પિતા ના વર્તન, વ્યહવાર અને આદર્શ ને જ અનુસરે છે… તેમાં થી જ શીખે છે અને એનું ઘડતર થાય છે…

જીતવું મહત્વ નું છે .. પણ કોઈ ભોગે જીતવું એ માનસિક પંગુતા છે … કોઈ નો યશ ચોરી લેવો ..કોઈ ની સફળતા પોતા ને નામ કરવી .. બીજા ને ધક્કો મારી પોતે આગળ આવવા નો પ્રયત્ન .. આ બધું કદાચ થોડી ક્ષણો માટે જીતી ગયા નો ભાવ અપાવે પણ ખુશી નહિ અપાવે …કારણ ,અંતરમન અને અંતરઆત્મા તો સાચું જાણે છે …
આ સુંદરતા , પવિત્રતા, આદર્શ , માનવતા અને નીતિમત્તા ને આગળ ધપાવીએ …
બીજી પેઢી માં પ્રમાણિકતા અને નીતિમત્તા ના બીજ રોપીએ …..have a Good Day

Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

शाहजहाँ ने बताया था… हिंदूक्योंगुलाम_हुआ ?


शाहजहाँ ने बताया था… हिंदूक्योंगुलाम_हुआ ?

मुग़ल बादशाह शाहजहाँ लाल किले में तख्त-ए-ताऊस पर बैठा हुआ था। तख्त-ए-ताऊस काफ़ी ऊँचा था । उसके एक तरफ़ थोड़ा नीचे अग़ल-बग़ल दो और छोटे-छोटे तख्त लगे हुए थे । एक तख्त पर मुगल वज़ीर दिलदार खां बैठा हुआ था और दूसरे तख्त पर मुगल सेनापति सलावत खां बैठा था । सामने सूबेदार-सेनापति -अफ़सर और दरबार का खास हिफ़ाज़ती दस्ता मौजूद था ।

उस दरबार में इंसानों से ज्यादा क़ीमत बादशाह के सिंहासन तख्त-ए-ताऊस की थी । तख्त-ए-ताऊस में 30 करोड़ रुपए के हीरे और जवाहरात लगे हुए थे । इस तख्त की भी अपनी कथा-व्यथा थी । तख्त-ए-ताऊस का असली नाम मयूर सिंहासन था । 300 साल पहले यही मयूर सिंहासन देवगिरी के यादव राजाओं के दरबार की शोभा था । यादव राजाओं का सदियों तक गोलकुंडा के हीरों की खदानों पर अधिकार रहा था । यहां से निकलने वाले बेशक़ीमती हीरे, मणि, माणिक, मोती..मयूर सिंहासन के सौंदर्य को दीप्त करते थे । लेकिन समय चक्र पलटा.. दिल्ली के क्रूर सुल्तान अलाउदद्दीन खिलजी ने यादव राज रामचंद्र पर हमला करके उनकी अरबों की संपत्ति के साथ ये मयूर सिंहासन भी लूट लिया। इसी मयूर सिंहासन को फारसी भाषा में तख्त-ए-ताऊस कहा जाने लगा।

दरबार का अपना सम्मोहन होता है और इस सम्मोहन को राजपूत वीर अमर सिंह राठौर ने अपनी पद चापों से भंग कर दिया । अमर सिंह राठौर.. शाहजहां के तख्त की तरफ आगे बढ़ रहे थे । तभी मुगलों के सेनापति सलावत खां ने उन्हें रोक दिया ।

सलावत खां- ठहर जाओ… अमर सिंह जी… आप 8 दिन की छुट्टी पर गए थे और आज 16वें दिन तशरीफ़ लाए हैं ।

अमर सिंह- मैं राजा हूँ । मेरे पास रियासत है फौज है.. किसी का गुलाम नहीं ।

सलावत खां- आप राजा थे… अब हम आपके सेनापति हैं… आप मेरे मातहत हैं । आप पर जुर्माना लगाया जाता है… शाम तक जुर्माने के सात लाख रुपए भिजवा दीजिएगा ।

अमर सिंह- अगर मैं जुर्माना ना दूँ !

सलावत खां- (तख्त की तरफ देखते हुए) हुज़ूर… ये काफिर आपके सामने हुकूम उदूली कर रहा है।

अमर सिंह के कानों ने काफिर शब्द सुना । उनका हाथ तलवार की मूंठ पर गया… तलवार बिजली की तरह निकली और सलावत खां की गर्दन पर गिरी । मुगलों के सेनापति सलावत खां का सिर जमीन पर आ गिरा… अकड़ कर बैठा सलावत खां का धड़ धम्म से नीचे गिर गया । दरबार में हड़कंप मच गया… वज़ीर फ़ौरन हरकत में आया वो बादशाह का हाथ पकड़कर भागा और उन्हें सीधे तख्त-ए-ताऊस के पीछे मौजूद कोठरीनुमा कमरे में ले गया । उसी कमरे में दुबक कर वहां मौजूद खिड़की की दरार से वज़ीर और बादशाह दरबार का मंज़र देखने लगे ।

दरबार की हिफ़ाज़त में तैनात ढाई सौ सिपाहियों का पूरा दस्ता अमर सिंह पर टूट पड़ा था । देखते ही देखते… अमर सिंह ने शेर की तरह सारे भेड़ियों का सफ़ाया कर दिया ।

बादशाह- हमारी 300 की फौज का सफ़ाया हो गया… या खुदा !

वज़ीर- जी जहाँपनाह

बादशाह- अमर सिंह बहुत बहादुर है… उसे किसी तरह समझा बुझाकर ले आओ… कहना हमने माफ किया !

वज़ीर- जी जहाँपनाह ! हुजूर… लेकिन आँखों पर यक़ीन नहीं होता… समझ में नहीं आता… अगर हिंदू इतना बहादुर है तो फिर गुलाम कैसे हो गया ?

बादशाह- अच्छा… सवाल वाजिब है… जवाब कल पता चल जाएगा ।

अगले दिन फिर बादशाह का दरबार सजा ।

शाहजहां- अमर सिंह का कुछ पता चला ।

वजीर- नहीं जहाँपनाह… अमर सिंह के पास जाने का जोखिम कोई नहीं उठाना चाहता है ।

शाहजहां- क्या कोई नहीं है जो अमर सिंह को यहां ला सके ?

दरबार में अफ़ग़ानी, ईरानी, तुर्की… बड़े बड़े रुस्तम-ए-जमां मौजूद थे । लेकिन कल अमर सिंह के शौर्य को देखकर सबकी हिम्मत जवाब दे रही थी।

आखिर में एक राजपूत वीर आगे बढ़ा.. नाम था… अर्जुन सिंह।

अर्जुन सिंह- हुज़ूर आप हुक्म दें… मैं अभी अमर सिंह को ले आता हूँ ।

बादशाह ने वज़ीर को अपने पास बुलाया और कान में कहा.. यही तुम्हारे कल के सवाल का जवाब है… हिंदू बहादुर है लेकिन इसीलिए गुलाम हुआ.. देखो.. यही वजह है।

अर्जुन सिंह… अमर सिंह के रिश्तेदार थे । अर्जुन सिंह ने अमर सिंह को धोखा देकर उनकी हत्या कर दी । अमर सिंह नहीं रहे लेकिन उनका स्वाभिमान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में प्रकाशित है । इतिहास में ऐसी बहुत सी कथाएँ हैं जिनसे सबक़ लेना आज भी बाकी है ।

हिंदू

  • शाहजहाँ के दरबारी, इतिहासकार और यात्री अब्दुल हमीद लाहौरी की किताब बादशाहनामा से ली गईं ऐतिहासिक कथा।

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मैंने कभी किसी पोस्ट को शेयर करने का निवेदन नही किया, पर आदरणीय Preetam Thakur जी की यह पोस्ट अधिक से अधिक लोग कॉपी करके अपने स्वयं द्वारा पोस्ट करिये

70 साल में हिंदू नहीं समझा कि एक परिवार देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहता है
😡
5 साल में मुसलमान समझ गया कि मोदी हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता हैं।
😷😷

देश के दो टुकड़े कर दिए गये, मगर कही से कोई आवाज नहीं आई?😒

आधा कश्मीर चला गया कोई शोर नहीं?😒

तिब्बत चला गया कही कोई विद्रोह नहीं हुआ?😒

आरक्षण, एमरजेंसी, ताशकंद, शिमला, सिंधु जैसे घाव दिए गये मगर किसी ने उफ्फ नहीं की ?😒

2G स्पेक्ट्रम, कोयला, CWG, ऑगस्टा वेस्टलैंड, बोफोर्स जैसे कलंक लगे मगर किसी ने चूँ नहीं की?😒

वीटो पावर चीन को दे आये कही ट्रेन नहीं रोकी.😒

लाल बहादुर जैसा लाल खो दिया किसी ने मोमबत्ती जलाकर सीबीआई जाँच की मांग नहीं की?😒

माधवराव, राजेश पायलट जैसे नेता मार दिये, कोई फर्क नहीं?😒

परन्तू जैसे ही गौ मांस बंद किया, प्रलय आ गई..🙁

जैसे ही राष्ट्रगान अनिवार्य किया चींख पड़े..😕

वंदे मातरम्, भारत माता की जय बोलने को कहा तो जीभ सिल गई..🙁

नोटबंदी, GST पर तांडव करने लगे..🙁

आधार को निराधार करने की होड़ मच गई..😕

अपने ही देश में शरणार्थी बने कश्मीर के पंडितो पर किसी को दर्द नहीं हुआ..☹

रोहिंग्या मुसलमानो के लिये दर्द फूट रहा हैं।😠

किसी ने सच ही कहा था:
देश को डस लिया ज़हरीले नागो ने, घर को लगा दी आग घर के चिरागों ने।

विचार करना…… काग्रेस ने हिन्दूओ को नामर्द बना दिया है👆

आतंकवाद के कारण कश्मीर में बंद हुए व तोड़े गए कुल 50 हजार मंदिर खोले व बनवाये जाएंगे*

  • केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी

बहुत अच्छी खबर है,
पर 50 हजार? 😳
ये आंकड़ा सुनकर ही मन सुन्न हो गया
एक चर्च की खिड़की पर पत्थर पड़े या मस्जिद पर गुलाल पड़ जाए
तो मीडिया सारा दिन हफ्तों तक बताएगी
पर एक दो एक हजार नहीं,,,
बल्कि पूरे 50 हजार मंदिर बंद हो गए
इसकी भनक तक किसी हिन्दू को न लगी ? 😒

पहले हिन्दुओ को घाटी से जबरन भगा देना,
फिर हिंदुत्व के हर निशान को मिटा देना,
सोचिए कितनी बड़ा षड्यंत्र था..
पूरी घाटी से पूरे धर्म को जड़ से खत्म कर देने का ? 😕🙁

अगर मोदी सरकार न आती तो शायद ही ये बात किसी को पता चलती !😞

वामपंथी पत्रकारों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों और कांग्रेस और उसके चाटुकारो ने कभी इस मुद्दे को देश के समक्ष क्यो नही रखा?🙁

यह है कांग्रेस की उपलब्धि और वामपंथी पत्रकारों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की चतुराई कि आम हिन्दू अपने इतिहास से अनभिज्ञ रहा.🙁

ऐसा लगता है की पूरी कायनात जैसे साज़िशें कर रही थी और इतनी शांति से कि हमें पता न चले।।..😞

Think Hard about it & share this eye-opener message to all your contacts – an appeal to Nationalists