Posted in संस्कृत साहित्य

संस्कृत भाषा का कोई सानी नहीं है।

अंग्रेजी में
A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG
एक प्रसिद्ध वाक्य है।
अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर उसमें समाहित हैं। किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं, या यों कहिए,
कुछ कलकारियाँ किसी अंग्रेजी वाक्य से हो नहीं सकतीं।

1) अंग्रेजी अक्षर 26 हैं और यहां जबरन 33 का उपयोग करना पड़ा है।
चार O हैं और A,E,U,R दो-दो हैं।

2) अक्षरों का ABCD.. यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है।

अब संस्कृत में चमत्कार देखिये!

क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात्-
पक्षियों का प्रेम,
शुद्ध बुद्धि का ,
दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत,
शत्रु-संहारकों में अग्रणी,
मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन?
राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है।

एक ही अक्षर का अद्भुत अर्थ विस्तार

माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र”, दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है-

भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।

अर्थात् धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार,
वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।

किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने कहा है।

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।

अर्थ-
जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है।घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।

संस्कृत भाषा सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा यूँ ही नहीं कही जाती !!!

आपके हमारे मन की गहराईयों में बचपन से
जो संस्कृत के लिए
तिरस्कार हास्य भर दिया गया है, यह उसी का परिणाम है कि हम संस्कृत पर गर्व ही नही कर पाते हैं

PART -2
↓↓↓

अब हम एक ऐसा उदहारण देखेंगे जिसमे महायमक अलंकार का प्रयोग किया गया है।

इस श्लोक में चार पद हैं,
बिलकुल एक जैसे, किन्तु सबके अर्थ अलग-अलग।

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ॥

अर्थात्
अर्जुन के असंख्य बाण सर्वत्र व्याप्त हो गए जिससे शंकर के बाण खण्डित कर दिए गए। इस प्रकार अर्जुन के रण कौशल को देखकर दानवों को मरने वाले शंकर के गैन आश्चर्य में पड़ गए। शंकर और तपस्वी अर्जुन के युद्ध को देखने के लिए शंकर के भक्त आकाश में आ पहुँचे।

संस्कृत की विशेषता है कि संधि की सहायता से
इसमें कितने भी लम्बे शब्द बनाये जा सकते हैं।

ऐसा ही एक शब्द इस👇🏻 चित्र में है,
जिसमे योजक की सहायता से
अलग अलग शब्दों को जोड़कर 431 अक्षरों का एक ही शब्द बनाया गया है।

यह न केवल संस्कृत अपितु किसी भी साहित्य का सबसे लम्बा शब्द है।

संस्कृत में यह श्लोक पाई (π) का मान दशमलव के 31 स्थानों तक शुद्ध कर देता है।

गोपीभाग्यमधुव्रात-श्रुग्ङिशोदधिसन्धिग।
खलजीवितखाताव गलहालारसंधर।।

π pi = 3.1415926535897932384626433832792

श्रृंखला समाप्त करने से पहले भगवन श्री कृष्णा की महिमा का गान करने वाला एक श्लोक जिसकी रचना भी एक ही अक्षर से की गयी है।

दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः॥

यहाँ पर बहुत ही कम उदाहरण लिए हैं,
किन्तु ऐसे और इनसे भी कहीं प्रभावशाली उल्लेख संस्कृत साहित्य में असंख्य बार आते हैं।

कभी इस बहस में न पड़ें कि संस्कृत अमुक भाषा जैसा कर सकती है कि नहीं,

बस यह जान लें,

जो संस्कृत कर सकती है, वह कहीं और नहीं हो सकता।

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