Posted in गौ माता - Gau maata

⛳सनातन-धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है✍🏻
👉🏻लेख क्र.- सधस/२०७७/श्रा./कृ/१३ – ९८०
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⚜️गौरक्षा एवम् गौसंवर्धन⚜️

⛳🙏🏻शिवाजी महाराज के बाल्यकाल की घटना है। अपने पिता के साथ वे बादशाह के यहाँ जा रहे थे। बीजापुर की बात है। रास्ते में एक कसाई गाय🐄 को घसीटते हुए ले जा रहा था😢🤚🏻 और वहाँ के बाजार के जो हिन्दू थे, वे सिर झुका करके बैठे थे।😢 मुगलशासन था, कौन क्या कर सकता था ? उस समय शिवाजी की उम्र दस वर्ष की भी नहीं थी, नौ-दस के बीच की रही होगी । बालक शिवाजी ने तलवार🗡️ खींची और पहले तो गाय 🐄की रस्सी काटकर उसे बन्धनमुक्त कर दिया और वह कसाई कुछ कहे, इससे पहले ही उसके मस्तक को धड़ से अलग कर दिया😳😊👌🏻–यह है शौर्य ⛳।🤚🏻😊✔️
👉🏻प्राचीन समय में इतनी बड़ी संख्या में गोधन हमारे देश में था कि जब ग्वारिया गायों 🐄को लेकर आते तो गायों के खुरों से इतनी रज उड़ती थी कि दिन में ही सूर्यास्त का अनुभव होता।😳✔️ महाभारत के ‘अनुशासन-पर्व ‘ में आता है कि धर्मराज युधिष्ठिर के यहाँ दस हजार गोसदन थे–गौवर्ग थे, तो वर्ग क्या है ? एक वर्ग में ८ लाख गायें थीं।😳😳✔️ इससे लगता है कि जनसंख्या कम थी, गायें ज्यादा थीं। आगे फिर लिखा है कि एक लाख, दो लाख पचास हजार, तीन लाखके गोसदन तो अनेक थे।✔️😳

वर्तमान में जो गाय🐄 के विरोधी हैं, वे भगवान्‌, धर्म, गुरु और वेद–इन सबके विरोधी हैं।✔️ हमारा चाहे जैसा स्वार्थ हो, लेकिन हमें गाय 🐄का विरोध करने वाले के पक्ष में जाकर खड़ा नहीं होना चाहिये, चाहे जैसा पद- प्रतिष्ठा का लालच हो, ऐसे लोगों को अपना मत भी नहीं देना चाहिये।😊⛳✔️ गाय के प्रति जिनकी निष्ठा नहीं, श्रद्धा नहीं, गाय🐄की रक्षा जो नहीं चाहता। ऐसे व्यक्ति या दल को अपना मत देने का तात्पर्य है कि हम गोवध में हिस्सेदार बन रहे हैं और निश्चित ही हम गोवध के भागी भी होंगे। इस सम्बन्धमें बहुत सावधानी रखनी है।✔️⛳

जय गौमाता की⛳✔️
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जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें⛳🙏🏻

कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।

सूर्यपुत्र शनिदेव की जय⛳
⛳⚜️सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳

Posted in रामायण - Ramayan

“क्यों लगाया हनुमान जी ने सिंदूर”……..!

रामायण की एक कथा के अनुसार एक बार जगत माता जानकी सीता जी अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थीं। उसी समय हनुमान जी आ गए और सीता जी को सिंदूर लगाते देखकर बोले, ‘‘माता जी यह लाल द्रव्य जो आप मस्तक पर लगा रही हैं, यह क्या है और इसके लगाने से क्या होता है?’’ श्री हनुमान जी का प्रश्न सुनकर सीता जी क्षण भर चुप रहीं और फिर बोलीं, ‘‘यह सिंदूर है। इसके लगाने से प्रभु दीर्घायु होते हैं और मुझसे सदैव प्रसन्न रहते हैं।’’
चुटकी भर सिंदूर लगाने से प्रभु श्री रामचंद्र जी की दीर्घायु और प्रसन्नता की बात माता जानकी के मुख से सुनकर श्री हनुमान जी ने विचार किया कि जब थोड़ा-सा सिंदूर लगाने से प्रभु को लम्बी उम्र प्राप्त होती है तो क्यों न मैं अपने सम्पूर्ण शरीर में सिंदूर पोतकर प्रभु को अजर-अमर कर दूं और उन्होंने वैसा ही किया। सम्पूर्ण तन में सिंदूर पोत कर वह दरबार में पहुंचे और श्री राम जी से कहने लगे, ‘‘भगवन! प्रसन्न होइएं।’’ हनुमान जी का सिंदूर पुता शरीर देखकर श्री राम जी हंसने लगे और हंसते-हंसते बोले, ‘‘वत्स! कैसी दशा बनाकर आए हो।’’ तब हनुमान जी ने सारा वृत्तान्त बताया। सारी बात सुनकर श्री राम जी अति प्रसन्न हुए और बोले, ‘‘वत्स तुम जैसा मेरा भक्त अन्य कोई नहीं है।’’ उन्होंने हनुमान जी को अमरत्व प्रदान किया तभी से हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है…..!
जय श्रीराम!
जय वीर हनुमान !
सुप्रभात!🙏🙏🙏

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

एक सुन्दर संदेश..

एक आदमी, जो हमेशा अपने दोस्तों के साथ घुल मिल कर रहता था और उनके साथ बैठकें करता था, अचानक बिना किसी को बताए सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया।

कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस ग्रुप के नेता ने उससे मिलने का फैसला किया।

वह नेता उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक गोरसी में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आगंतुक नेता का बड़ी खामोशी से स्वागत किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। केवल आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे।

कुछ देर के बाद आगंतुक ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से शांत बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे समय से अकेला होने के कारण मन ही मन आनंदित भी हो रहा था कि वह आज अपने ग्रुप के एक मित्र के साथ है।

लेकिन उसने देखा कि अलग की हुए लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें कोई ताप नहीं बचा। उस लकड़ी से आग की चमक जल्द ही बाहर निकल गई।

कुछ समय पूर्व जो उस लकड़ी में उज्ज्वल प्रकाश था और आग की तपन थी वह अब एक काले और मृत टुकड़े से ज्यादा कुछ शेष न था।

इस बीच.. दोनों मित्रों ने एक दूसरे का बहुत ही संक्षिप्त अभिवादन किया, कम से कम शब्द बोले।

जानें से पहले नेता ने अलग की हुई बेकार लकड़ी को उठाया और फिर से आग के बीच में रख दिया। वह लकड़ी फिर से सुलग कर लौ बनकर जलने लगी, और चारों ओर रोशनी और ताप बिखेरने लगी।

जब मित्र नेता को छोड़ने के लिए मेजबान दरवाजे तक पहुंचा तो उसने मित्र से कहा : आप मेरे घर आकर मुलाकात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

आज आपने बिना कुछ बात किए ही एक सुंदर पाठ पढ़ाया है। अब मैं अकेला नहीं हूं। जल्द ही ग्रुप में लौटूंगा।

प्रश्न..
नेता ने क्यों बुझाया उस एक लकड़ी की आग को..?

बहुत सरल है समझना..
ग्रुप का प्रत्येक सदस्य महत्वपूर्ण होता है। कुछ न कुछ विशेषताएं हर सदस्य में होती है। दूसरे सदस्य उनकी विशेषताओं से उर्जा प्राप्त करते हैं। आग और गर्मी के महत्त्व की सीख लेते हैं और देते हैं।

इस ग्रुप के सभी सदस्य भी लौ का हिस्सा हैं। कृपया.. एक दूसरे की लौ जलाए रखें ताकि एक मजबूत और प्रभावी ग्रुप बने।

  • *ग्रुप * * IS * * ALSO * * A * * FAMILY**

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कभी कभी इतने सारे मेसेजेस आ जाते हैं। मेरा सुझाव है कि आपस में चैटिंग भी होनी चाहिए। जन्मदिन, सालगिरह, पढ़ाई, कार्यक्षेत्र या अन्य किसी भी सफलता में एक दूसरे को बधाई संदेश आदि देना भी ग्रुप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे अपनाएं। हम यहां मिलने, सीखने, विचारों का आदान-प्रदान करने या यह समझने के लिए हैं कि हम अकेले नहीं हैं।

आइए लौ को और भी ज्यादा प्रज्वलित करें। इस परिवारिक ग्रुप के साथ जीवन को और भी सुंदर बनाए।
🙏

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“बच्चे बड़े हो गये बेटा”…

😢😢😢

एक युवक क़रीब 20 साल के बाद विदेश से अपने शहर लौटा था!
बाज़ार में घुमते हुए सहसा उसकी नज़र सब्जी का ठेला लगाय हुए एक बूढे पर जा टिकी,
बहुत कोशिश के बावजूद भी युवकउसको पहचान नही पा रहा था! युवक को न जाने बार बार ऐसा लग रहा था कि वो उसे बड़ी अच्छी तरह से जानता है!
उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही। उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से समझ गया था कि उसने युवक को पहचान लिया था!
काफी देर की कशमकश के बाद जब युवक ने उसे पहचाना तो उसके पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई! जब युवक विदेश गया था तो उनकी एक बड़ी आटा मिल हुआ करती थी।
घर में नौकर चाकर काम किया करते थे। धर्म, कर्म, दान पुण्य सबसे धनी इस दानवीर पुरुष को युवक ताऊजी कह कर बुलाया करता था!
वही आटा मिल का मालिक और आज सब्जी का ठेला लगाने पर मजबूर..?

युवक से रहा नही गया और वो उसके पास जा पंहुचा और बहुत मुश्किल से रूंधे गले से पूछा:-
”ताऊजी, ये सब कैसे हो गया…?”

भरी ऑंख से बूढ़े ने युवक के कंधे पर हाथ रख दिया और बोला:-
“बच्चे बड़े हो गये बेटा”…😪😪😪

🙏🙏🙏

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हाजिरी

🙏जय श्री कृष्णा 🙏
मनु पढ़ी लिखी औरत नही थी लेकिन वह चाहती थी कि उसके दोनों बच्चे खूब पढ़े लिखे उसका पति भी कुछ ज्यादा नहीं पढ़ा लिखा था लेकिन मनु और उसके पति की यही इच्छा थी कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें ।मनु का पति मेहनत मजदूरी का काम करता था बच्चों को पढ़ाने के लिए खूब मेहनत करता था ।मनु और उसका पति अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे। मनु सुबह उठकर बच्चों के लिए चाय नाश्ता बनाती उनको तैयार करती और खुद स्कूल छोड़ने जाती। तब तक उसका पति नहा धोकर तैयार हो जाता, आकर वह अपने पति को चाय नाश्ता देकर काम पर भेजती फिर बच्चों के आने का इंतजार करती। ऐसी ही उसकी रोज की दिनचर्या थी।
एक दिन मनु बच्चों को स्कूल ले जा रही थी तो उनको थोड़ी सी स्कूल पहुंचने में देरी होने लगी तो बच्चे कहने लगे मां जल्दी चलो नही तो मास्टर जी हमारी हाजिरी नहीं लगाएंगे हमारी गैर हाजिरी लग जाएगी। मनु को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि बच्चों के स्कूल में क्या रोज हाजिरी लगती है अगर वह थोड़ा देर से जाएंगे तो गैर हाजिरी लग जाएगी ।बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए वह जल्दी-जल्दी अपने पैर चलाने लगी।बच्चों को स्कूल छोड़कर जब वह वापस आ रही थी तभी उसको उसकी एक पुरानी सखी मिली। मनु ने उससे पूछा कि तुम इतनी सुबह-सुबह कहां जा रही हो तो उसकी सखी ने कहा कि मैं ठाकुर जी के मंदिर में हाजिरी लगाने जा रही हूं। मनु जो कि बहुत ही भोली भाली औरत थी सोचने लगी क्या ठाकुर जी के मंदिर में भी हाजिरी लगती है लेकिन उसने अपनी सखी से पूछा कुछ नहीं। वह चुपचाप घर वापस आ गई लेकिन सारा दिन यह सोचती रही क्या स्कूल की तरह मंदिर में भी हाजिरी लगती है क्या मंदिर बड़ों का स्कूल है मेरी सखी तो काफी बड़ी है इतना सोचते सोचते सुबह होने पर बच्चों को स्कूल में छोड़ कर उसके बाद अपने आप ही वह ठाकुर जी के मंदिर की तरफ चल पड़ी। उसने मंदिर में माथा टेका ठाकुर जी के अलावा वहां कोई नजर नहीं आया क्योंकि पुजारी जी ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए ठाकुर जी की रसोई से प्रसादी लेने गए थे मनु ने सोचा इस मंदिर में तो कोई अध्यापक नहीं है तो मेरी हाजिरी कोन लगाएगा उसने फिर सोचा कि शायद आज मंदिर के अध्यापक आए नहीं होंगे मैं अगले दिन फिर आऊंगी ।मंदिर जाने के कारण उसको घर पहुंचने में थोड़ी सी देरी हो गई तो उसके पति ने उसको कहा मनु तुझे नहीं पता कि मैंने काम पर जाना है और तुम इतनी देर कहां लगा कर आई हो ।मनु अपने पति से कोई बात ना छिपाती हुई बोली कि मैं तो अपनी मंदिर में हाजिरी लगाने गई थी उसका पति बोला तुम कब से मंदिर जाने लगी तो उसने पति को बोला कि वह तो बड़ो का स्कूल है आज से मैं भी मंदिर जाया करूंगी और अपनी हाजिरी लगा कर आया करूंगी उसके पति को काम पर जाने में देरी हो रही थी इसलिए उसने मनु की बात की तरफ कोई ध्यान न देकर उसका कोई जवाब नहीं दिया ।अगले दिन बच्चों को स्कूल में छोड़ कर आते वक्त वह फिर मंदिर चली गई आज वह अपने पति के लिए चाय नाश्ता पहले ही बना कर आई थी कि कहीं आने में देरी हो गई तो उसके पति नाराज न हो।आज मंदिर मे पुजारी जी मौजूद थे वह काफी देर मंदिर में बैठी रही। मंदिर में ठाकुर जी और किशोरी जी की अति मनमोहक छवि वाली प्रतिमा थी ।उस छवि को देखकर मनु उन पर बलिहार जाने लगी और युगल सरकार के साथ ही एक लड्डू गोपाल जी की बहुत सुंदर आकर्षक प्रतिमा थी ।उसको देख कर तो मनु का मन उस लड्डू गोपाल ने मोह ही लिया । दो घंटे मंदिर में बैठने के बाद मनु पुजारी जी के पास गई और कहने लगी क्या मेरी आपने हाजरी लगा दी । मैं बस इतने ही समय के लिए स्कूल आ सकती हूं इससे ज्यादा नहीं क्योंकि मेरे बच्चे भी अपने स्कूल से वापस आते होंगे।पुजारी जी पहले तो मनु की तरह ध्यान से देखने लगे उन्होंने दोबारा मनु से पूछा कि क्या कह रही हो लाली? मनु बोली कि मैं ठाकुर जी के दरबार में हाजिरी लगाने आई थी कृपया आप मेरी हाजिरी लगा दिया करो मेरी गैर हाजरी ना लगाना आज से मैं हर रोज मंदिर आया करूंगी पुजारी जी उसकी बातों को सुनकर समझ गए कि यह औरत बहुत भोली हैं और मनु की बातों का मान रखने के लिए पुजारी जी ने मनु को बड़े प्रेम से कहा हां हां लाली मैंने हाजिरी लगा दी है अब तुम रोज आ जाया करो छुट्टी मत करना मनु खुश होते हुए घर वापस आ गई क्योंकि उसके मन को तसल्ली हो गई थी कि मंदिर के पुजारी जी मंदिर के अध्यापक है और मेरी हाजिरी अब लगनी शुरू हो गई है अब रोज सुबह जल्दी उठकर अपने पति के लिए चाय नाश्ता बना कर रख आती और बच्चों को स्कूल छोड़कर सीधा मंदिर में चली जाती और दो-तीन घंटे बैठी रहती और हर रोज पुजारी जी से पूछती पुजारी जी मेरी हाजिरी लग गई है न ?तो पुजारी जी मुस्कुराते हुए कहते हां हां बेटा लग गई है ।एक दिन उसके बच्चे उसके पास बैठकर उसको स्कूल का पाठ सुना रहे थे तभी उसके बेटे ने मां से कहा मैया हम तो रोज स्कूल जाते हैं हम अपना पाठ आपको रोज सुनाते हैं आप अपने स्कूल जाती हो आपने वहां क्या सीखा आज आप भी अपना पाठ हमें सुनाओ मनु बच्चों की बात सुनकर पहले तो घबरा गई लेकिन वह हर रोज मंदिर जाने से वहां होने वाले भजन सुनती थी तो भजन के शब्द उसको याद हो गए थे तो उसने धीरे-धीरे वह अपने बच्चों को वह भजन सुनाया उसके बच्चों को मनु का भजन सुनकर बड़ा आनंद आया और कहने लगे वाह मैया आपका पाठ बहुत आनंद देने वाला है तभी पीछे से उसका पति भी मनु के भजन को सुन रहा था मनु के उस भजन को सुनकर उसको भी बहुत आनंद आया अब वह मनु को मंदिर जाने से कभी भी नहीं रोकता था ।मनु को मंदिर जाते अब काफी साल हो गए थे लेकिन वह ठाकुर जी के दर्शन करने के बाद पुजारी जी से अपनी हाजिरी के बारे में पूछना नहीं भुलती थी उसको हमेशा डर लगा रहता था की पुजारी जी कही मेरी गैर हाजरी ना लगा दे क्योंकि बच्चों के स्कूल में गैर हाजरी लगने पर उनको जुर्माना भरना पड़ता था मनु को यह डर था कि कहीं मेरी गैर हाजिरी लग गई तो मैं जुर्माना कैसे भरूंगी मेरे पति की इतनी आमदन नहीं है इसलिए वह डर के मारे अपनी हाजिरी पुजारी जी से रोज लगवा कर आती थी। एक दिन उसके बच्चे जब घर वापस आए तो काफी खुश थे क्योंकि आज उनकी परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ था और वह अपने हाथ में बहुत सुंदर सा पुरस्कार लेकर आए थे मनु को वह खुश होकर बताने लगे कि मैया यह देखो हमारी स्कूल में हाजिरी पूरी थी और हम पढ़ाई में भी अव्वल दर्जे से पास हुए हैं इसलिए हमें यह पुरस्कार मिला है मनु बच्चों को गले लगाते हुए बहुत खुश हुई लेकिन मन ही मन सोचने लगी है मेरे बच्चों की परीक्षा का तो परिणाम आ गया लेकिन मैं तो हर रोज अपने मंदिर के स्कूल में जाती हूं वहां भजन गाकर अपना पाठ सुनाती हूं मैंने भी कभी स्कूल में गैर हाजिर नहीं हुई । मेरी परीक्षा का परिणाम कब आएगा और अब तक मुझे पुरस्कार क्यों नहीं मिला ।अगले दिन जब वह मंदिर गई और यही बात उसके दिमाग में चलती रही। ठाकुर जी तो सबके मन की भांप लेते हैं तभी अचानक एक औरत मनु के पास आई उसकी गोद में एक छोटा सा बच्चा था वह बोली सखी क्या तुम कुछ देर मेरे बालक को अपनी गोद में बिठा लोगी ताकि मैं अच्छी तरह से भगवान जी के दर्शन कर लूं। यह बालक बहुत शरारती है मेरा ध्यान दर्शन करने से भटक रहा है तो मनु ने सहर्ष उसके बालक को अपनी गोद में ले लिया। बालक वास्तव में बहुत ही चंचल था लेकिन उसका मुख मंडल आकर्षित करने वाला था सांवला सलोना वह बालक मनु की गोदी में कितनी देर खेलता रहा ।दूर से पुजारी जी मनु को काफी देर से देख रहे थे उस औरत को भी अब काफी समय हो गया था गए हुए! अब जब वापस नहीं आई तो मनु उठकर उसको देखने के लिए चल पड़ी कि वह अभी तक क्यों नहीं आई लेकिन उसको उस बालक का साथ और उसके मुख मंडल को निहारने में बहुत अनन्द आ रहा था मन ही मन तो वह चाह रही थी कि जितना हो सके और उस बालक के साथ खेलती रहे लेकिन फिर उसे लगा कि नहीं मुझे घर जाने में देरी हो जाएगी तभी वह पुजारी जी के पास गई और कहने लगी कि आपने इस बालक की मैया को देखा है वह काफी देर से इस बालक को मेरे पास छोड़ कर गई हुई है । तब पुजारी जी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे और कहने लगे बांवरी हो गई हो किस बालक के बारे में बात कर रही हो!मनु अपनी गोद में पकड़े हुए बालक को दिखाती हुई बोली पुजारी जी आपको यह बालक नजर नहीं आ रहा।तभी दूसरी तरफ से उस बालक की माता आ गई और उस बालक को मनु की गोद से लेते हुए मनु का धन्यवाद करती हुई चली गई लेकिन तभी मनु के दुपट्टे का एक कोना उस बालक के हाथ में पड़े कंगन से अटक गया और थोड़ा सा फट गया और एक टुकड़ा उसके साथ ही चला गया !मनु बोली शुक्र है कि बालक की मैया वापस आ गई ।पुजारी जी ने कहा मनु कहां देख रही हो और किसके बारे में बात करी हो तो मनु पुजारी जी को बोली आपने नहीं देखा कि बालक की मैया उसको मेरे से अभी लेकर गई है तो पुजारी जी बोले लाली यहां तो दूर-दूर तक कोई नहीं है तो मनु हैरान हो गई यह कैसे हो सकता है तभी उसका ध्यान ठाकुरजी और किशोरी जी के साथ बैठे छॊटे से लड्डू गोपाल जी पर पड़ा यह देख कर मनु हैरान हो गई कि उस बालक की सूरत बिल्कुल लड्डू गोपाल से मिलती थी और उसको और हैरानी इस बात की हुई कि लड्डू गोपाल के हाथों में उसके दुपट्टे का एक टुकड़ा पकड़ा हुआ था !
मनु एकदम से सुन्न हो गई और उसका शरीर जोरो से कांपने लगा आंखों में आंसू झर झर बहने लगे और वह सोचने लगी आज मेरी परीक्षा का यह परिणाम निकला कि स्वयं ठाकुर जी मेरी गोद में खेलने आए यह मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था मनु अत्यंत प्रसन्न होते हुए खुशी से झूमने लगी। वह झूम झूम कर सबको बताना चाहती थी कि देखो मुझे इतना बड़ा पुरस्कार मिला है स्वयं लड्डू गोपाल जी आकर मेरी गोदी में विराजमान हुए हैं।
मनु की तरह हमे भी अपनी हाजिरी मंदिर रूपी स्कूल में रोज लगानी चाहिए और शायद हमारी भी हाजिरी का परिणाम ठाकुर जी हमें पुरस्कार के रूप में अपने दर्शन दे और हमारी गोदी में आकर हमको निहाल और अपने दर्शनों से मालामाल करदे!!

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

💐💐”घर” (तुम्हारा नही मेरा)💐💐

उफ़! पापा जी आपने पूरा घर ही गन्दा कर दिया| अभी अभी राधा ने पोछा मारा था और आपने चप्पलों के निशान छोड़ दिए| थोड़ी तो समझ होनी चाहिए आपको? आप बच्चे तो हैं नहीं”
बहू रिया के मुँह से ये शब्द सुनकर अनिल जी हतप्रभ से खड़े रह गए| कैसे पुलिस की नौकरी में सिर्फ उनकी एक आवाज बड़े से बड़े मुजरिमों को हिला कर रख देती थी और आज उनकी बहू उन्ही के घर में इतना सुना रही है| तभी पत्नी ने उन्हे सोफे पर बैठाते हुए कहा “कोई बात नहीं जी, बहू की बातों का क्या बुरा मानना? बस जुबान की तेज है, बाकी उसके मन में ऐसा कुछ नहीं है|”
अनिल जी ने पत्नी की आँखों में देखा जैसे पूछ रहे हों “सच में?” और फीकी सी हंसी उनके होठों पर तैर गई, लेकिन आँखों के कोर थोड़े से नम हो गये।
सोफ़े पर बैठे बैठे ही सोचने लगे कितने जतन से इस घर को खड़ा किया था| एक एक तिनका अपने हिसाब से रखवाया था इस घरौंदे का ताकि सेवा अवकाश के बाद पति पत्नी सुविधाओं के साथ आराम से रहेंगे| लेकिन आज सारी दुनिया उनके कमरे तक सिमट गई है| कमरे से बाहर निकलो तो कितना कुछ सुनना पड़ता था उन्हे, हॉल के अंदर फ़ायर पिट बनवाया था कि ठंड के दिनों में वहाँ आग के सामने भुनी मुँगफ़लियाँ खाएँगे| लेकिन मजाल क्या कि बहू कभी सर्दी में आग जलाने दे, कहती थी कि पूरे घर में राख के कण फैलते हैं फ़िर वो चिमनी वैसी ही रंगी पुती दिखती थी एक दम उजली क्योंकि बहू को वैसी ही पसंद थी|
ये सब सोच रहे थे तभी पत्नी हाथ में कॉफी का मग लिए वहाँ उनके पास आ बैठीं| पति को बहुत अच्छे से जानती थीं, जानती थीं कि वो अभी गुस्से में थे और उनके हाथ की कॉफी पीकर उनका गुस्सा शांत हो जाता था| पत्नी भी क्या करतीं, पति और बेटे सोमेश के मोह में फंसी एक भारतीय नारी जो ठहरी| दोनों तरफ़ बैलेंस बनाते बनाते ही उनका जीवन कट रहा था, कभी बेटे की सुनती कभी पति की!!
एक दिन सुबह सैर से लौटने के बाद पति पत्नी दोनों लॉन में बैठे थे| नौकर चाय रख के गया, दो की जगह तीन चाय का कप उन्हे थोड़ा अटपटा लगा क्योंकि उनके आलावा चाय सिर्फ सोमेश पीता था और वो उनके साथ कभी चाय नहीं पीता था| उसने उनके साथ बैठना तो कब का छोड़ दिया था फ़िर आज?
तभी सोमेश वहाँ आ बैठा, साथ में चाय पीने लगा| लेकिन अजीब सी चुप्पी, ये वही सोमेश है जो छोटा था तो उसकी बातें ख़त्म ही नहीं होती थीं| अनिल जी कितना भी थके हों सोमेश के साथ खेलते ही थे| उसकी बातें तब तक ख़त्म नहीं होतीं जब तक कि वो उन्हे कहते कहते थक के सो नहीं जाता| आज अजीब सी औपचारिकता ने अपनी जगह बना ली थी बेटे और पिता के बीच।
तभी पत्नी ने उस खामोशी को तोड़ा, सोमेश अगले महीने ही तो रिया के भाई के बेटी की शादी है ना?”
“हाँ माँ, उसी बारें में बात करने आया हूँ| लड़के वाले इसी शहर के हैं और वो यहीं से शादी करना चाहते हैं| सो रिया का परिवार शादी के लिए ये घर चाहता है| वो हमारे घर से शादी करना चाहते हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि जब तक भीड़ भाड़ रहेगी घर में तब तक आप दोनों दीदी के पास चले जाओ|आप दोनों को भी भीड़ भाड़ से असुविधा होगी और दीदी भी इसी शहर में हैं तो आप लोगों को कोई तकलीफ़ भी नहीं होगी| आप दोनों का कमरा भी उनके काम आ जाएगा|”
ये सुनकर अनिल जी गुस्से से लाल हो गए, फ़िर भी अपनी आवाज को संयमित करके बोले “बहू के घर वालों को दूसरा घर दिला दो किराए पर, दस पंद्रह दिनों के लिए| हम क्यों शिफ्ट हों कहीं?”

“पापा आप भी ना गजब करते हो, रिया के घर वाले हैं| हमारे इतने बड़े घर के रहते उनके लिए दूसरा घर देखें! अब रिया ने उनसे कह भी दिया है| अब आप लोग अपना देख लो वो यहीं आएंगे|” कह कर सोमेश एक दम से अंदर चला गया| अंदर से बहू रिया की आवाज भी आने लगी| लग रहा था कि वो सब कुछ सुन रही थी और उसे अनिल जी की बात शायद अच्छी नहीं लगी थी।

आज पत्नी आँखों से आँसू बह रहे थे और अनिल जी ने उन्हे अपना कंधा दिया, जैसे कह रहे थे कि अभी मैं हूँ, सब ठीक कर दूँगा|
दूसरे दिन शाम अनिल जी सैर से आए तो पत्नी ने बताया कि बेटा, बहू और बच्चों के साथ छुट्टी बिताने अपने ससुराल गया और बिना बताये अनिल जी मुस्कुराने लगे और बोले “देख पगली, यही बच्चे होते जिनके लिए तू मुझसे लड़ती थी, जिनके लिए जाने कितनी रातें हमने जाग के बीता दीं| आज वो हमारे घर से हमें ही जाने को कह रहे हैं| कोई बात नहीं, मै भी इनका बाप हूँ” कहकर अंदर चले गए|

एक हफ़्ते बाद सोमेश परिवार के साथ लौटा तो दरवाजे पर ताला लगा था| चौकीदार बैठा उन्हे देखते ही उनके पास पहुँचा एक चाभी सोमेश के हाथों में दी और एक चिठ्ठी भी| चिठ्ठी खोल कर पढ़ने लगा, वो ख़त अनिल जी का था सोमेश के नाम,

सोमेश,
मैं और तुम्हारी माँ रामेश्वरम जा रहे हैं| एक महीने बाद लौटेंगे, ये जो चाभी है तुम्हारे हाथ में वो घर की चाभी नहीं है| वो एक दूसरे फ्लैट की चाभी है जिसमें तुम सभी का सामान रखवा दिया है| वो फ्लैट मैंने बहुत पहले खरीदा था, तुम्हें नहीं बताया था| पॉश इलाके में है तुम लोगों के लिए अच्छा है, अगर अच्छा ना लगे तो अपने हिसाब से घर ले लेना।

ये घर मेरा और तुम्हारी माँ का है और हमारा ही रहेगा, इसमें से हमें कोई नहीं निकाल सकता|

अभी तक सब कुछ बर्दाश्त करता रहा था क्योंकि तुम्हारी माँ खुश रहे| लेकिन अब तुम्हारी बातों से उसकी आँखों में आँसू आए ये मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता|
ये हमारा सपनों का घर है जिसमें हम अपने बच्चों और नाती पोतों के साथ रहना चाहते थे, लेकिन शायद ईश्वर को ये मंजूर नहीं था और तुम लोगों को हमारा साथ पसंद नहीं था| वो घर मेरे और माँ के तरफ़ से तुम लोगों के लिए आशीर्वाद स्वरूप है| इच्छा होगी तो रखना वरना वापस कर देना, माता पिता होने के नाते हम अपना आत्मसम्मान नहीं खो सकते|

हमारे बाद ये घर ट्रस्ट का होगा जो यहाँ वृद्ध आश्रम बनाएगे | इस घर पर तुम्हारा या तुम्हारी बहन का कोई अधिकार नहीं होगा, मैंने ये बात तुम्हारी बहन को भी बता दी है और वो मेरे इस फैसले से खुश है, उम्मीद है तुम भी होगे।

तुम सब खुश रहो,तुम्हारा पिता

ख़त खत्म होते ही सोमेश जड़ हो चुका था| आँखों में आँसू थे, लेकिन ये पता नहीं कि वो आँसू पश्चाताप के थे या बड़े से घर को खोने का या फिर इस एहसास के टूटने का कि पिता की जायदाद अन्त में बेटे की ही होती है।
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Posted in संस्कृत साहित्य

संस्कृत भाषा का कोई सानी नहीं है।

अंग्रेजी में
A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG
एक प्रसिद्ध वाक्य है।
अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर उसमें समाहित हैं। किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं, या यों कहिए,
कुछ कलकारियाँ किसी अंग्रेजी वाक्य से हो नहीं सकतीं।

1) अंग्रेजी अक्षर 26 हैं और यहां जबरन 33 का उपयोग करना पड़ा है।
चार O हैं और A,E,U,R दो-दो हैं।

2) अक्षरों का ABCD.. यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है।

अब संस्कृत में चमत्कार देखिये!

क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।

अर्थात्-
पक्षियों का प्रेम,
शुद्ध बुद्धि का ,
दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत,
शत्रु-संहारकों में अग्रणी,
मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन?
राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है।

एक ही अक्षर का अद्भुत अर्थ विस्तार

माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र”, दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है-

भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।

अर्थात् धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार,
वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।

किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने कहा है।

न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।

अर्थ-
जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है।घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।

संस्कृत भाषा सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा यूँ ही नहीं कही जाती !!!

आपके हमारे मन की गहराईयों में बचपन से
जो संस्कृत के लिए
तिरस्कार हास्य भर दिया गया है, यह उसी का परिणाम है कि हम संस्कृत पर गर्व ही नही कर पाते हैं

PART -2
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अब हम एक ऐसा उदहारण देखेंगे जिसमे महायमक अलंकार का प्रयोग किया गया है।

इस श्लोक में चार पद हैं,
बिलकुल एक जैसे, किन्तु सबके अर्थ अलग-अलग।

विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ।
विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणा विकाशमीयुर्जगतीशमार्गणाः ॥

अर्थात्
अर्जुन के असंख्य बाण सर्वत्र व्याप्त हो गए जिससे शंकर के बाण खण्डित कर दिए गए। इस प्रकार अर्जुन के रण कौशल को देखकर दानवों को मरने वाले शंकर के गैन आश्चर्य में पड़ गए। शंकर और तपस्वी अर्जुन के युद्ध को देखने के लिए शंकर के भक्त आकाश में आ पहुँचे।

संस्कृत की विशेषता है कि संधि की सहायता से
इसमें कितने भी लम्बे शब्द बनाये जा सकते हैं।

ऐसा ही एक शब्द इस👇🏻 चित्र में है,
जिसमे योजक की सहायता से
अलग अलग शब्दों को जोड़कर 431 अक्षरों का एक ही शब्द बनाया गया है।

यह न केवल संस्कृत अपितु किसी भी साहित्य का सबसे लम्बा शब्द है।

संस्कृत में यह श्लोक पाई (π) का मान दशमलव के 31 स्थानों तक शुद्ध कर देता है।

गोपीभाग्यमधुव्रात-श्रुग्ङिशोदधिसन्धिग।
खलजीवितखाताव गलहालारसंधर।।

π pi = 3.1415926535897932384626433832792

श्रृंखला समाप्त करने से पहले भगवन श्री कृष्णा की महिमा का गान करने वाला एक श्लोक जिसकी रचना भी एक ही अक्षर से की गयी है।

दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः।
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः॥

यहाँ पर बहुत ही कम उदाहरण लिए हैं,
किन्तु ऐसे और इनसे भी कहीं प्रभावशाली उल्लेख संस्कृत साहित्य में असंख्य बार आते हैं।

कभी इस बहस में न पड़ें कि संस्कृत अमुक भाषा जैसा कर सकती है कि नहीं,

बस यह जान लें,

जो संस्कृत कर सकती है, वह कहीं और नहीं हो सकता।