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गुस्से पर नियंत्रण


🌹 गुस्से पर नियंत्रण 🌹

एक वकील ने सुनाया हुआ एक हृदय स्पर्शी किस्सा।

मैं अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी।

उसने कहा –उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है। बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए? क्या लगेगा खर्चा?*

मैंने उन्हें बैठने का कहा। “रग्घू, पानी दे इधर” मैंने आवाज़ लगाई। वो कुर्सी पर बैठे।

उनके सारे कागजात मैंने देखे। उनसे सारी जानकारी ली। आधा पौना घंटा गुजर गया। “मैं इन कागज़ो को देख लेता हूँ। आप के केस पर विचार करेंगे। आप ऐसा कीजिए बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे।”

चार दिन बाद वो फिर से आए। वैसे ही कपड़े। बहुत डेस्परेट लग रहे थे।

अपने छोटे भाई पर गुस्सा थे बहुत। मैंने उन्हें बैठने का कहा। ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूँज रही थी।

मैंने बात की शुरुआत की। ” बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए। आप दोनों भाई, एक बहन। माँ बाप बचपन में ही गुजर गए। तुम नौवीं पास, छोटा भाई इंजीनियर।

आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा। लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया। कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं। पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।”

“फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया। आपका दिल खुशी से भरा हुआ था। फिर आपने मरते दम तक मेहनत की। 80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया। बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की।”

फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया। वो मास्टर्स पास हुआ, फिर भाई की नौकरी लगी, तीन साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।

“पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्रेम को। शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है। घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है। पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा। पैसे कहाँ से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है। अब तुम्हारा भाई चाहता है गाँव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे। “

इतना कह कर मैं रुका। रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुँह से लगाई।

” तुम चाहते हो भाई ने जो माँगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए। क्या यही चाहते हो तुम?”

वो तुरंत बोला, “हाँ।”

मैंने कहा –हम स्टे लेे सकते हैं। भाई की प्रॉपर्टी में हिस्सा भी माँग सकते हैं।*

पर….

तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा!

तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी! !!

मुझे लगता है इन सब चीज़ों के सामने उस फ्लैट की कीमत शून्य है। भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया। अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना।

वो भिखारी निकला, तुम दिलदार थे। दिलदार ही रहो …..!

तुम्हारा हाथ ऊपर था, ऊपर ही रखो।

कोर्ट कचहरी करने की बजाय बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ।

पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया, इसका मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे, ऐसा तो नहीं होता!

वो मेरे मुँह को ताकने लगा। उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आँखें पोंछते हुए कहा, “चलता हूँ वकील साहब।” उसकी रूलाई फूट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था।

इस बात को अरसा गुजर गया। कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया। कलमों में सफेदी झाँक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था, हाथ में थैली।

मैंने कहा, “बाबा, बैठो।”

उसने कहा, “बैठने नहीं आया वकील साहब , मिठाई खिलाने आया हूँ। ये मेरा बेटा! बैंगलोर रहता है, कल आया है गाँव। अब दो मंजिला मकान बना लिया है वहाँ। थोड़ी थोड़ी कर के कुछ खेती खरीद ली है अब।” मैं उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था।

“वकील साहब, आपने मुझ से कहा था, कोर्ट कचहरी के चक्कर में मत लगो, बरबाद हो जाओगे। गाँव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे। मैंने उनकी नहीं , आपकी बात सुन ली।

मैंने अपने बच्चों को तालीम दिलायी और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी।

मेरे हाथ का पेड़ा हाथ में ही रह गया! !! मेरे आँसू टपक ही गए आखिर. .. !

गुस्से को यदि योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो वास्तव में कभी पछताने की जरूरत नहीं पड़ेगी! !!

राधे राधे🙏🙏