रासबिहारी बोस
13 August 2010 at 14:03 सरफ़रोशी-की-तमन्ना
रासबिहारी बोस (बांग्ला: রাসবিহারী বসু ) (25 मई,1886- 21 जनवरी, 1945) भारत के एक क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षडयंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारतमें कई क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिकानिभाई, बल्कि विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतंत्रता दिलाने के प्रयासमें आजीवन लगे रहे। दिल्ली में वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौजकी स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हालांकि देशको आजाद करने के लिए किए गए उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाए, लेकिन इससेस्वतंत्रता संग्राम में निभाई गई उनकी भूमिका का महत्व बहुत ऊंचा है।
रासबिहारी बोस का जन्म 25 मई 1986 को बंगाल में बर्धमान के सुबालदह गांव में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा चंदननगर में हुई, जहां उनके पिता विनोदबिहारी बोस नियुक्त थे।[१]रासबिहारी बोस बचपन से ही देश की स्वतंत्रता के स्वप्न देखा करते थे औरक्रांतिकारी गतिविधियों में उनकी गहरी दिलचस्पी रही थी। प्रारंभ मेंरासबिहारी बोस ने देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में कुछ समय तक हेड क्लर्क के रूप में काम किया। उसी दौरान उनका क्रांतिकारी जतिन मुखर्जी के अगुवाई वाले युगातंर के अमरेन्द्र चटर्जी से परिचय हुआ और वह बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ जुड़ गए। बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रांत, (वर्तमान उत्तर प्रदेश), और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रांतिकारियों के निकट आए।
दिल्ली में जार्ज पंचम के 12 दिसंबर १९११ को होने वाले दिल्ली दरबार के लिए निकाली गई शोभायात्रा पर वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने में रासबिहारी की प्रमुख भूमिका रही थी।[२]अमरेन्द्र चटर्जी के एक शिष्य बसंत कुमार विश्वास ने उन पर बम फेंका लेकिननिशाना चूक गया। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रासबिहारी बोस के पीछे लग गई औरवह बचने के लिए रात में रेलगाडी से देहरादूनभाग गए और आफिस में इस तरह काम करने लगे मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। अगलेदिन उन्होंने देहरादून के नागरिकों की एक सभा भी बुलाई, जिसमें उन्होंनेवायसराय पर हुए हमले की निन्दा की। इस प्रकार उन पर इस षडयंत्र और कांड काप्रमुख संदिग्ध होने का संदेह उन पर किंचितमात्र भी नहीं हुआ।[१] 1913 में बंगालमें बाढ़ राहत कार्य के दौरान रासबिहारी बोस जतिन मुखर्जी के सम्पर्क मेंआए, जिन्होंने उनमें नया जोश भरने का काम किया। रासबिहारी बोस इसके बाददोगुने उत्साह के साथ फिर से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन में लग गए।भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गदर की योजना बनाई। फरवरी १९१५ में अनेक भरोसेमंद क्रांतिकारियों की सेना में घुसपैठ कराने की कोशिश की गई।
जुगांतरके कई नेताओं ने सोचा कि यूरोप में युद्ध होने के कारण चूंकि अभी अधिकतरसैनिक देश से बाहर गए हुए हैं, इसलिए बाकी को आसानी से हराया जा सकता हैलेकिन यह प्रयास भी असफल रहा और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लियागया। ब्रिटिश खुफिया पुलिस ने रासबिहारी बोस को भी पकड़ने की कोशिश कीलेकिन वह उनके हत्थे नहीं चढ़े और भागकर विदेश से हथियारों की आपूर्ति केलिए जून १९१५ में राजा पी. एन. टैगोर के नाम से जापान के शंघाई में पहुंचे और वहां देश की आजादी के लिए काम करने लगे।[२]वहां उन्होंने कई वर्ष निर्वासन में बिताए। जापान में भी रासबिहारी बोसचुप नहीं बैठे और वहां के अपने जापानी क्रांतिकारी मित्रों के साथ मिलकरदेश की स्वतंत्रता के लिए प्रयास करते रहे। उन्होंने जापान में अंग्रेजीके अध्यापन के साथ लेखक व पत्रकार के रूप में काम शुरू किया। उन्होंनेवहां में न्यू एशिया नामक समाचार पत्र शुरू किया। जापानी भाषा सीखी और इसमें १६ पुस्तकें लिखीं।[२] ब्रिटिश सरकारअब भी उनके पीछे लगी हुई थी और वह जापान सरकार से उनके प्रत्यर्पण की मांगकर रही थी, इसलिए वह लगभग एक साल तक अपनी पहचान और आवास बदलते रहे। १९१६ में जापान में ही रासबिहारी बोस ने प्रसिद्ध पैन एशियाई समर्थक सोमा आइजो और सोमा कोत्सुको की पुत्री से विवाह कर लिया और १९२३ में वहां के नागरिक बन गए।[१] जापान में वह पत्रकार और लेखकके रूप में रहने लगे। जापानी अधिकारियों को भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्षमें खड़ा करने और देश की आजादी के आंदोलन को उनका सक्रिय समर्थन दिलानेमें भी रासबिहारी बोस की भूमिका अहम रही। उन्होंने २८ मार्च १९४२ को टोक्योमें एक सम्मेलन बुलाया जिसमें इंडियन इंडीपेंडेंस लीग की स्थापना कानिर्णय किया गया। इस सम्मेलन में उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक सेनाबनाने का प्रस्ताव भी पेश किया।
22जून 1942 को रासबिहारी बोस ने बैंकाक में लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमंत्रित करने का प्रस्ताव पारित किया गया। जापान ने मलय और बर्मा के मोर्चे पर कई भारतीय युद्धबंदियों को पकड़ा था। इन युद्धबंदियों को इंडियन इंडीपेंडेंस लीग में शामिल होने और इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) का सैनिक बनने के लिए प्रोत्साहित किया गया। आईएनए का गठन रासबिहारी बोस की इंडियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में सितंबर १९४२ को किया गया। बोस ने एक झंडे का भी चयन किया जिसे आजाद नाम दिया गया। इस झंडे को उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया।[१]रासबिहारी बोस शक्ति और यश के शिखर को छूने ही वाले थे कि जापानी सैन्यकमान ने उन्हें और जनरल मोहन सिंह को आईएनए के नेतृत्व से हटा दिया लेकिनआईएनए का संगठनात्मक ढांचा बना रहा। बाद में इसी ढांचे पर सुभाष चंद्र बोसने आजाद हिन्द फौज के नाम से आईएनएस का पुनर्गठन किया।
भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति दिलाने की जीतोड़ मेहनत करते हुए किन्तु इसकी आस लिए ही21 जनवरी 1945 को इनका निधन हो गया।[१] उनके निधन से कुछ समय पहले जापानी सरकार ने उन्हें आर्डर आफ द राइजिंग सन के सम्मान से अलंकृत किया था।rash bihari bose

