।।परमेश्वरांजी श्रीएकलिंगनाथ।।
“महाराणा प्रताप का आदर्श व्यक्तित्व और महत्वाकांक्षी ज़ल्लालुदीन मोहम्मद अकबर “
साम्राज्य विस्तार और भारत का एक मात्र सम्राट बनना, अकबर की सामरिक नीति का यह एक महत्वपूर्ण अंग रहा था, लेकिन उस समय मेवाड़ और मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा उसके इस सम्राट बनने की महत्वाकांक्षा में बाधक बने हुए थे। इसी विचार के चलते अकबर ने 1567 -68 ई. में विशाल सैन्य दल के साथ मेवाड़ को अपने अधिन करने हेतु चितौड़दुर्ग की तरफ आगे बढा ।साढे चार माह तक चितौड़गढ दुर्ग की घेराबंदी की । अधिनता स्वीकार करने हेतु संधि प्रस्ताव भेजा , तोड़ फोड़ की नीति का भी सहारा लिया, स्थानीय लोगो को कई तरह के प्रलोभन भी दिये ? लेकिन मेवाड़ के किसी भी व्यक्ति ने उसका सहयोग नही किया । हर तरह से असफल होने के बाद अकबर ने चितौड़गढ और उसके आसपास के मैदानी भू -भाग को आक्रमण कर बुरी तरह बर्बाद भी किया । मेवाड़ के महाराणा को अपने परिवार, सहयोगियों और जन समुदाय के साथ मैदानी भाग छोड़कर पर्वतों की शरण लेनी पड़ी । चितौड़ दुर्ग विजय के बाद अकबर ने मेवाड़ के समस्त मैदानी भाग में मुगल चौकियां स्थापित कर मेवाड़ को पूरी तरह से मुगल छावनी में तब्दील कर दिया। मेवाड़ के बाकी रहे पर्वतीय क्षेत्र को जैसे गोड़वाड़, सिरोही, पालनपुर, ईडर और मालवा क्षेत्र की तरफ से लगी हुई मेवाड़ की सीमा के अंदर की परिधि में बाकी बचे 300 स्क्वायर किलोमीटर परिधि के पुरे पर्वतीय प्रदेश के चारों ओर मुगल चौकियां स्थापित कर मेवाड़ को छावनी में तब्दील कर दिया । इस तरह मेवाड़ का महाराणा और मेवाड़ का पर्वतीय क्षेत्र लगभग एक लाख मुगल सैनिको के बिच अगले तीस वर्षो तक निरंतर सैन्य टकराव के साथ अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता रहा , हम केवल उस कठिन संकट और संघर्ष की मात्र कल्पना ही कर सकते है? लेकिन उन्होंने सहर्ष ऐसा कठिन संघर्ष किया । लेकिन इतना होते हुए भी महाराणा प्रताप ने अंत समय तक अपनी अस्मिता ,स्वाधीनता और अपने मानवीय नैतिक मूल्यों के साथ समझौता नही किया ।
इन तीस सालो तक मेवाड़ की घेराबंदी और सैन्य अभियान से अकबर को हताशा और बर्बादी के अलावा कुछ भी हांसिल नही हुआ, उल्टा भारत का एक मात्र सम्राट कहलाने का सपना भी चूर चूर हो गया ।
प्रताप की जीवट क्षमता और निरंतर संघर्ष ने ही प्रताप को महान बनाया, इसलिए प्रताप महान कहलाये । यहां तक आचरण और व्यवहार से भी प्रताप ने मेवाड़ की धरा पर आनेवाले हर शख्स के साथ विनम्रतापूर्वक शिष्टाचार का पालन करते हुए, सम्मान जनक व्यवहार किया ,चाहे वह शख्स शत्रु पक्ष का ही क्यों न हो । जैसे जितने भी लोग संधि प्रस्ताव लेकर प्रताप के पास आये उनके साथ उनके पद के अनुसार जो उचित सम्मान जनक व्यवहार होना चाहिए था , वैसा ही किया। आपसी वार्तालाप में भी हर परिस्थिति में शिष्टाचार का पालन किया । इस प्रकार दुसरा उदाहरण, जैसे कुंवर अमर सिंह खाने खाना के परिवार को बंदी बनाकर प्रताप के सामने लाये, तो प्रताप ने अमर सिंह को हुकम दिया , कि आप इन्है बा इज्जत वापस खाने खाना के सैन्य शिविर में सोंप कर आयें । अकबर ने अपनी महत्वाकांक्षा के चलते महाराणा से प्रतिशोध पाला, लेकिन प्रताप ने अकबर के साथ अपमान जनक व्यवहार कभी नही करके, युद्ध का जवाब प्रतिरोध स्वरूप युद्ध करके दिया । यही मानवीय गुण प्रताप को महान बनाता है ।इसलिए प्रताप मात्र एक व्यक्ति नही हो कर भारतीय सनातन संस्कृति के एक आदर्श चरित्र नायक है , जो मानवीय नैतिक मूल्यो की दृष्टि से व्यक्ति, जाती, वर्ग और समुदाय से उपर उठकर देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता और स्वाभिमान के प्रति आजीवन समर्पित रहे ।
आज हम ऐसे जन नायक, प्रातः स्मरणीय, आदर्श व्यक्तित्व के धनी की जयन्ती के अवसर पर हार्दिक भावाञ्जंली अर्पित करतेहै ।
जय मेवाड़, जय भारत!
सद्भावी
प्रताप सिंह झाला, तलावदा,
संयोजक -मेवाड़जन, उदयपुर,
राजस्थान