कुमार सतीश
एक बहुत पुरानी कहानी है कि….
एक बार एक पंडित जी ने कहीं पूजा करवाया और उस पूजा में दान स्वरूप पंडित जी एक बहुत ही प्यारी सी बछिया (छोटी गाय) मिली…!
लेकिन, जब पंडित जी जब उस बछिया को लेकर घर आने लगे तो कुछ उचक्कों ने पंडित जी से उस बछिया को छीनने का सोचा…!
लेकिन, सीधे छीन लेने में खतरा था और छीनने के कारण उन्हें दंड पाने का भी भय था…
इसीलिए, उन उचक्कों ने एक प्लान बनाया और और वे पूरे रास्ते में बिखर गए.
जब पंडित जी उस रास्ते से गुजरे से पहले उचक्के ने कहा :
अरे पंडित जी, ये बकरी कहाँ से ले आये ?
आप इस बकरी का क्या करेंगे ??
इस पर पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि… जजमान, शायद तुम्हें दिख नहीं रहा है कि.. ये बकरी नहीं बल्कि, बछिया है.
इस पर उस उचक्के ने बछिया को ध्यान से देखने का नाटक किया .. और, फिर बोला कि….
नहीं, पंडित जी, मैंने बहुत ध्यान से देखा… ये बकरी ही है.. किसी ने आपको बेवकूफ बनाकर बछिया के बदले बकरी दे दी है.
इस पर पंडित जी… हँसते हुए आगे बढ़ गए.
लेकिन, साजिश के अनुसार…. थोड़ी दूर पर दूसरे उचक्के ने उन्हें फिर टोक दिया… और, वही सब बातें दुहराने लगा.
इस बार पंडित जी को खुद पर ही थोड़ा शक हुआ कि… कहीं उनसे ही कोई भूल तो नहीं हो रही है.
लेकिन, फिर भी पंडित जी… बछिया को लेकर आगे बढ़ गए.
आगे फिर उन्हें तीसरा उचक्का मिला और वो भी पंडित जी का ब्रेन वाश करने लगा.
इस तरह … पांचवे, छठे और सातवें उचक्के तक पहुंचते-पहुंचते पंडित जी को भी ये विश्वास हो गया कि…
जजमान ने उन्हें बछिया नहीं बल्कि बकरी ही दी है.
और, पंडित जी ने…. अपनी बछिया को बकरी समझ कर उसे छोड़ दिया और आगे बढ़ गए…!
👉 इस कहानी में समझने लायक बात यह कि… पंडित जी इसीलिए धोखा खा गए क्योंकि…
- पंडित जी को बछिया और बकरी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी.
- और, पंडित जी ने… खुद से ज्यादा उन उचक्कों पर विश्वास कर लिया… और, पंडित जी उनके षड्यंत्र को भांप नहीं पाए.
👉 👉 ऐसा ही कुछ हमारे हिनू समाज के साथ किया गया है.. जहाँ कुछ मुगल उचक्कों और उसके आगे के रास्ते पर में वामपंथी और खान्ग्रेसी उचक्कों ने….
पिस्लामी आक्रांता का बर्बरता और पाप छुपाने के लिए …. हमारे समाज में महिलाओं की बुरी स्थिति बताई….
और, उसे हिन्दू सनातन धर्म की कुरीति घोषित कर दिया.
बाल विवाह, सतीप्रथा आदि को जोरशोर से हिनू सनातन धर्म की कुरीति बताया गया…
और, इस माध्यम से हिनुओं को मानसिक रूप से डिप्रेस किया गया.
लेकिन… उन्होंने कभी ये कभी ये नहीं बताया कि…
सतीप्रथा … मुसरिम आक्रांताओं के कुत्सित दृष्टि से बचने का एक सुरक्षा माध्यम था… क्योंकि, मुगलों ने ये नियम बना दिया था कि जिस भी सुंदर स्त्री का पति नहीं होगा वो बादशाह की मानी जायेगी.
साथ ही… बालविवाह भी मुसरिम आक्रांता से बचने के लिए ही अपनाया गया गया एक सुरक्षा माध्यम था….
ताकि, कुंवारी लड़की देखकर मुसरिम उसे उठा ना ले जाएं….!
लेकिन… बालविवाह और सतीप्रथा को हिनू सनातन धर्म की कुरीति बताने वाले ये भूल गए कि…
हमारे वेद… नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय और उच्च स्थान प्रदान करते है..!
स्त्रियों की शिक्षा दीक्षा, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का वर्णन वेदों में पाया जाता है..!
और, वेदों में जो अधिकार नारी के लिए बताए गए है.. ये सब संसार के किसी भी दूसरे धर्मग्रंथों में नही मिलता. (वेद की ऋचाएं संलग्न है)
हमारे वेद तो स्त्री को… घर की साम्राज्ञी से लेकर देश की शासक और पृथ्वी की साम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते है.
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि…. वेदों में स्त्री को यज्ञ समान पूजनीय बताया गया है और वैदिक काल में नारी अध्ययन अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र तक में जाया करती थी.
माँ दुर्गा, काली से लेकर माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी स्त्री ही तो हैं.
इसके अलावा… हमारे यहाँ स्वयंवर का भी प्रचलन था…जिसमें लड़कियां खुद अपना वर चुनती थी.
स्वयंवर अपनेआप में बालविवाह के कहानी की धज्जियाँ उड़ाने के लिए काफी है…
क्योंकि, जाहिर सी बात है कि… स्वयंवर में लड़कियाँ जब अपना वर चुनती होंगी तो वे इतनी परिपक्व तो होती ही होगी कि… जो सही और गलत में भेद कर सके.
लेकिन…. इसके उलट… आपके किसी भी मुगल , वामपंथी, खान्ग्रेसी अथवा कोर्स के किताब ने कभी भी…. तीन तलाक, हलाला और पॉलीगेमी (बहुपत्नी) को कुरीति के तौर पर नहीं बताया.
किसी कोर्स के किताब ने भी नहीं बताया कि… पिस्लाम में विवाह नहीं बल्कि कॉन्ट्रैक्ट होते हैं… जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है.
बहुत से मित्र तो आजतक ये नहीं जानते हैं कि…. पिस्लामी शरीयत कानून के हिसाब से किसी भी घटना की गवाही के तौर पर पिस्लामी ख़्वातूनों की गवाही.. पुरुषों से आधी ही मानी जाती है.
लेकिन…. इन सबको कभी भी कुरीति नहीं बताया गया…
बल्कि, कुरीति बताया गया… मुसरिम आक्रांताओं से बच सकने वाले सुरक्षात्मक उपायों को.
और… हममें से अधिकांश लोगों ने वामपंथियों और खांग्रेसियों की इस बात को स्वीकार भी कर लिया… क्योंकि… जिस तरह कहानी में पंडित जी बछिया और बकरी के बारे में जानकारी नहीं थी…
उसी तरह … हमारे पास हमारे धर्मग्रंथों और संदर्भों की जानकारी नहीं है.
यही कारण है कि… कभी स्त्रियों के मामले में डिफेंसिव किया जाता है तो कभी… हमारे त्योहारों और पूजा पाठ को पाखंड बताया जाता है.
और… दूसरों को जाने ही दें…
हमारे अपने ही लोग… श्री राम कथा और भागवत कथा के नाम … फिल्मी गीत और हली-मौला गाते फिरते हैं.
जय महाकाल…!!!
नोट : आप इस पूरे लेख से आसानी से समझ सकते हैं कि उनलोगों ने हमारे दलित भाइयों को किस तरह भरमाया होगा.
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