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બ્રાઝીલ પાસેના પરાના સ્ટેટમાં છે ભાવનગર બ્રીડના હજ્જારો ગૌ-વંશ


ગુજરાત સમાચાર ૨૨ મી ૨૦૨૦

બ્રાઝીલ પાસેના પરાના સ્ટેટમાં છે ભાવનગર બ્રીડના હજ્જારો ગૌ-વંશ

– આજે બોળચોથ – ગૌવંશના પુજનનું પર્વ

ભાવનગર, તા. 19 ઓગસ્ટ 2019, રવિવાર

શ્રાવણ વદ ચોથ-બોળચોથ તરીકે ઉજવાય છે. શ્રાવણી પર્વસમુહમાં આ પ્રથમ દિવસ છે. સોમવાર – આ દિવસે ગૌવંશ અને ખાસ કરીને ગાય અને વાછરડાની પૂજા કરવાની પરંપરા છે. ધાર્મિક માન્યતા અને સંસ્કૃતિ મુજબ આ ક્રિયાકાંડ થાય છે જ્યારે ગૌ-વંશની સ્થિતિ જુદી છે. પ્રત્યેક શહેર-ગામમાં રખડતી ગાયો, આખલા, ખૂંટનો ત્રાસ કાયમી બન્યો છે. આ પરિપેક્ષ અને આ બોળચોથના દિવસે ઇતિહાસ પર નજર કરતા પશુપાલન અને જીવદયા-સંસ્કાર મૂલ્યના ઉદાહરણ જોવા મળે છે.
ભાવનગરના રાજવી મહારાજા કૃષ્ણકુમારસિંહજીના પશુપાલન પ્રેમ અને જીવમાત્ર પ્રત્યે અનુકંપાના દસ્તાવેજ રૃપે ભાવનગરી ખૂંટનો દેહ આજે પણ દ. અમેરિકામાં સચવાયેલો છે. આઝાદી પછીના એ સમયમાં બ્રાઝીલ પાસેના પરાના રાજ્યના મોટા પશુપાલક મિ.ગ્રેસિયા સિડ ભારતમાંથી પણ સારા પશુઓ લઈ જતા અને પોતાના દેશમાં પશુપાલન, ડેરી ઉદ્યોગ ચલાવતા. મિ. સિડને ભાવનગરની દરબાર ગૌશાળામાં ઉત્તમ કોટીનો ખૂંટ હોવાની માહિતી મળી તે ભાવનગર આવ્યા મહારાજા કૃષ્ણકુમારસિંહજીને મળ્યા. સિડએ આ કૃષ્ણાખૂંટ ખરીદવાની ઈચ્છા વ્યક્ત કરી કોરો ચેક આપ્યો. મહારાજાએ આ પશુપાલકની પારખુ નજર અને પરદેશમાં ગુજરાતની એક બીડ-ઔલાદ ઉભી થાય તે હેતુથી ખૂંટ આપ્યો. મિ.સિડના મતે આ ખૂંટની કિંમત ૫૦,૦૦૦ હતી પરંતુ કૃષ્ણકુમારસિંહજીએ માત્ર રૃા.૧૦,૦૦૦ જ ચેકમાં લખ્યા.
આ ખૂંટ બ્રાઝીલના પરાના રાજ્યમાં લઈ જવાયો જ્યાં તેના દ્વારા ધણ ઉભું થયું જેને ભાવનગર બ્રીડ-ભાવનગર ઔલાદ તેવું નામ અપાયું. આ કૃષ્ણાખૂંટ અને તેના બીડ એટલી ઉપયોગી સાબિત થઈ અને ત્યાંના રાજયાધિકારીઓને એટલી પસંદ પડી કે ‘કૃષ્ણા’ના મૃત્યુ બાદ તેના દેહને સ્ટફ કરી પરાના મ્યુઝીયમમાં મુકાયેલ છે. કૃષ્ણકુમારસિંહજી ૧૯૬૩માં યુરોપ ગયા ત્યારે મિ.સિડએ તેમને સપરિવાર આગ્રહસહ પરાના સ્ટેટ બોલાવ્યા અને તેમના હસ્તે મહારાજ કૃષ્ણકુમારસિંહજી રોડ નામકરણ પણ થયું. એક પશુના કારણે આજે પણ ભાવનગરનું નામ વિદેશમાં ગૌરવ સાથે લેવાય છે અને આજ ભાવનગરમાં રખડતા આખલા, ખુંટ, ગાયને કારણે લોકો ત્રસ્ત છે.
સરકારને પશુનું ખરૂ મુલ્ય સમજાયું ન હતું
કૃષ્ણા ખુંટ દ. અમેરિકાના પશુપાલક લઈ ગયા તે પૂર્વે તે સમયની સૌરાષ્ટ્ર સરકારે પણ આ ખૂંટની માગણી કરી હતી. મહારાજા કૃષ્ણકુમારસિંહજીએ સંમતિ આપી સરકાર કિંમત નક્કી કરે તેમ જણાવ્યું. સરકારી અધિકારીઓ કિંમત એટલી ઓછી જણાવી કે મહારાજાને લાગ્યું આ લોકોને પશુના યોગ્ય મુલ્ય વિશે ખબર નથી તે તેનો ઉછેર અને જાળવણી પણ ન જ કરી શકે. મહારાજાએ ખૂંટ ન આપ્યો. દેશ માટે પ્રથમ રાજ્ય સમર્પિત કરી દેનાર રાજવીને પૈસાનો સવાલ ન હતો પરંતુ પશુના જતનની ચિંતા હતી તેનો આ કિસ્સો ઉદાહરણરૃપ છે.
દુઝણી નહીં વસુકી ગયેલી ગાય માગી મોંઘીબાએ…
ખરી ગૌ-સેવા શું છે તેની સત્ય ઘટના મુકુંદરાય પારાશર્યના સત્યકથાઓ પુસ્તકમાં વાંચવા મળે છે. ગોહિલવાડના એક ગામની મોંઘીબા નામની વિધવાએ પતિની ઉત્તરક્રિયામાં ઘરની દુઝણી ગાય ગૌદાનમાં આપી દીધી. ગૌ-સેવા કરતા દંપતિની આ વિધવાને બીજી ગાય લઈ લેવા માટે ગામના ગરાસિયા દરબારે જણાવ્યું. ઠીક પડે તે ગાય લઈ જવા દરબારે જણાવ્યું ત્યારે વસુકી ગયેલી ગાય પસંદ કરી મોંઘીબા ઘરે લઈ ગયા. કોઈ દુઝણાની આશા વગર માત્ર ગૌસેવા માટે આ ગાય લીધી અને જીવંત પર્યત તેની સેવા કરી. છેલ્લા દિવસોમાં શરીર અટક્યું ત્યારે વૈદ્યએ દૂધ લેવા જણાવ્યું પરંતુ સમજણા થયા બાદ દૂધ, ઘી, દહીં કે છાસ પણ ન લેનાર મોંઘીબાએ દૂધ ન જ લીધું. તેમનું મૃત્યુ પણ ફળીયા બાંધેલી ગાય પાસે જ થયુ ંહતું. આ સત્ય ઘટના એ પુસ્તકમાં હૃદયદ્રાવક શબ્દો સાથે લખાયેલી છે. એક તરફ આવા વ્યક્તિ પણ હતા – હોય છે તો બીજી તરફ પોતાના દુઝણા ઢોરને ગામમાં પ્લાસ્ટીક ખાવા રખડતા મુકી દેનારા માલધારીઓ પણ છે.

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घाटों के शहर बनारस के लिये कहावत प्रसिद्ध है


घाटों के शहर बनारस के लिये कहावत प्रसिद्ध है :-

रांड़,सांड़,सीढ़ी,सन्यासी
इनसे बचे तो सेवै काशी।

जयशंकर प्रसाद की गुंडा कहानी के नन्हकू सिंह के मिजाज वाले शहर को देखने को उत्सुक थे।चकाचक बनारसी की “आयल हौ जजमान चकाचक“, “कस बे चेतुआ दाब से टेटुआ को देखत है?” सुन चुके थे। बनारस के उपकुलपति (शायद इकबाल नारायण) कहा करते थे- ‘बनारस इज अ सिटी व्हिच हैव रिफ्यूस्ड टु मार्डनाइज इटसेल्फ’। इंकार कर दिया हमें नहीं बनना आधुनिक।

इसी मूड के लोगों में बाद में तन्नी गुरू भी जुड़े बमार्फत काशीनाथ सिंह जिनसे जब किसी ने पूछा-‘किस दुनिया में हो गुरू ! अमरीका रोज-रोज आदमी को चन्द्रमा पर भेज रहा है और तुम घण्टे-भर से पान घुला रहे हो ?’’

मोरी में ‘पंचू’ से पान की पीक थूककर बोले—‘देखौ ! एक बात नोट कर लो ! चन्द्रमा हो या सूरज—भोंसड़ी के जिसको गरज होगी, खुदै यहाँ आएगा। तन्नी गुरू टस-से-मस नहीं होंगे हियाँ से ! समझे कुछ ?’

होली के अवसर पर होने वाले अस्सी मुहल्ले में होने अश्लील कवि सम्मेलन के किस्से हम लोगों में प्रचलित थे। दुनिया के तनाव से बेपरवाह मस्ती के आलम में डूबे रहने वाले शहर बनारस के बारे में कहा जाता है:-

जो मजा बनारस में
वो न पेरिस में न फारस में।

ये बनारस है

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वट सावित्री व्रत


देवी सिंग तोमर

जय श्री राधे…

वट सावित्री व्रत
व्रत विधि एवं कथा
22 मई

इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग के दीर्घायु होने और उनकी कुशलता के लिए वट के वृक्ष की पूजा-उपासना करती हैं। ऐसा मान्यता है कि वट सावित्री व्रत कथा के श्रवण मात्र से महिलाओं के पति पर आने वाली बुरी बला टल जाती है।

#व्रत_कथा

पौरणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्राचीन काल में भद्रदेश के राजा अश्वपति बड़े ही प्रतापी और धर्मात्मा थे। उनके इस व्यवहार से प्रजा में सदैव खुशहाली रहती थी, लेकिन अश्वपति स्वयं प्रसन्न नहीं रहते हैं, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थीं। राजा अश्वपति संतान प्राप्ति हेतु नित्य यज्ञ और हवन किया करते थे, जिसमें गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां दी जाती थीं।

उनके इस पुण्य प्राप्त से एक दिन माता गायत्री प्रकट होकर बोली-हे राजन! मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हुई हूं। इसलिए तुम्हें मनचाहा वरदान दे रही हूं। तुम्हारे घर जल्द ही एक कन्या जन्म लेगी। यह कहकर माता गायत्री अंतर्ध्यान हो गईं। कालांतर में राजा अश्वपति के घर बेहद रूपवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया।

जब सावित्री बड़ी हुई तो उनके लिए योग्य वर नहीं मिला। इसके बाद राजा अश्वपति ने अपनी कन्या से कहा-हे देवी! आप स्वयं मनचाहा वर ढ़ूंढकर विवाह कर सकती है।

तब सावित्री को एक दिन वन में सत्यवान मिले जो राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। जो राज पाट चले जाने के कारण वन में रह रहे थे। सावित्री ने मन ही मन सत्यवान अपना पति मान लिया। यह देख नारद जी राजा अश्वपति के पास आकर बोले-हे राजन! आपकी कन्या ने जो वर चुना है, उसकी अकारण जल्द ही मृत्यु हो जाएगी। आप इस विवाह को यथाशीघ्र रोक दें।

राजा अश्वपति के कहने के बावजूद सावित्री नहीं मानी और सत्यवान से शादी कर ली। इसके अगले साल ही नारद जी के कहे अनुसार-सत्यवान की मृत्यु हो गई। उस समय सावित्री अपने पति को गोदकर में लेकर वट वृक्ष के नीचे बैठी थी। तभी यमराज आकर सत्यवान की आत्मा को लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल पड़ी।

यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का प्रलोभन दिया। सावित्री ने अपने पहले वरदान में सास-ससुर की दिव्य ज्योति मांगी( ऐसा कहा जाता है कि सावित्री के सास ससुर अंधे थे)।

दूसरे वरदान में छिना राज-पाट मांगा और दूसरे तीसरे वरदान में सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा, जिसे यमराज ने तथास्तु कह स्वीकार कर लिया।

इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे चलती रही तो यमराज ने कहा-हे देवी ! अब आपको क्या चाहिए ?

तब सावित्री ने कहा-हे यमदेव आपने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया, तब सावित्री ने कहा बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? यह सुन यमराज स्तब्ध रह गए। इसके बाद उन्होंने सत्यवान को अपने प्राण पाश से मुक्त कर दिया। कालांतर से ही सावत्री की पति सेवा, सभी प्रकार के सुखों का भोग किया।

#पूजन_विधि

इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद सुहागिनें नए वस्त्र धारण करती हैं। वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं खूब सजती-संवरती हैं। सबसे पहले भगवान सूर्य को अर्घ्य दें, इसके बाद सभी पूजन सामग्रियों को किसी बांस से बनी टोकरी या पीतल के पात्र में इकट्ठा कर लें। अपने नजदीकी वट वृक्ष के पास जाकर जल अर्पित करें और माता सावित्री को वस्त्र व सोलह श्रृंगार चढाएं। फल-फूल अर्पित करने के बाद वट वृक्ष को पंखा झेलें।
इसके बाद धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5, 11, 21, 51 या फिर 108 बार बदगद के पेड़ की परिक्रमा करें। फिर व्रत कथा को ध्यानपूर्वक सुनें। इसके बाद दिन भर व्रत रखें।

अर्घ्य देने का श्लोक

अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।

वट सावित्री व्रत की

जय श्री राधे… जय श्री हरिदास…

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

✍🏼निराशा से आशा की
और बढ़ता कदम ग्रुप✍🏼

हँस जैन रामनगर खँडवा
98272 14427 एक सीख ऐसी भी

👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼👌🏼
🙏🏻

एक अमीर आदमी अपने बेटे की किसी बुरी आदत से बहुत परेशान था. वह जब भी बेटे से आदत छोड़ने को कहते तो एक ही जवाब मिलता , ” अभी मैं इतना छोटा हूँ..धीरे-धीरे ये आदत छोड़ दूंगा ! ” पर वह कभी भी आदत छोड़ने का प्रयास नहीं करता।

उन्ही दिनों एक महात्मा गाँव में पधारे हुए थे, जब आदमी को उनकी ख्याति के बारे में पता चला तो वह तुरंत उनके पास पहुँचा और अपनी समस्या बताने लगा. महात्मा जी ने उसकी बात सुनी और कहा , ” ठीक है , आप अपने बेटे को कल सुबह बागीचे में लेकर आइये, वहीँ मैं आपको उपाय बताऊंगा।“

अगले दिन सुबह पिता-पुत्र बागीचे में पहुंचे।

महात्मा जी बेटे से बोले , ” आइये हम दोनों बागीचे की सैर करते हैं.” , और वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे।

चलते-चलते ही महात्मा जी अचानक रुके और बेटे से कहा, ” क्या तुम इस छोटे से पौधे को उखाड़ सकते हो ?”
” जी हाँ, इसमें कौन सी बड़ी बात है .”, और ऐसा कहते हुए बेटे ने आसानी से पौधे को उखाड़ दिया।

फिर वे आगे बढ़ गए और थोड़ी देर बाद महात्मा जी ने थोड़े बड़े पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ” क्या तुम इसे भी उखाड़ सकते हो?”

बेटे को तो मानो इन सब में कितना मजा आ रहा हो, वह तुरंत पौधा उखाड़ने में लग गया. इस बार उसे थोड़ी मेहनत लगी पर काफी प्रयत्न के बाद उसने इसे भी उखाड़ दिया .

वे फिर आगे बढ़ गए और कुछ देर बाद पुनः महात्मा जी ने एक गुडहल के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बेटे से इसे उखाड़ने के लिए कहा।

बेटे ने पेड़ का ताना पकड़ा और उसे जोर-जोर से खींचने लगा. पर पेड़ तो हिलने का भी नाम नहीं ले रहा था. जब बहुत प्रयास करने के बाद भी पेड़ टस से मस नहीं हुआ तो बेटा बोला , ” अरे ! ये तो बहुत मजबूत है इसे उखाड़ना असंभव है। ”

महात्मा जी ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा , ” बेटा, ठीक ऐसा ही बुरी आदतों के साथ होता है , जब वे नयी होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है, पर वे जैसे जैसे पुरानी होती जाती हैं इन्हें छोड़ना मुशिकल होता जाता है। ”

बेटा उनकी बात समझ गया और उसने मन ही मन आज से ही आदत छोड़ने का निश्चय किया।

हँस जैन रामनगर खँडवा
98272 14427

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