निराशा से आशा की और कदम
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जीवन की निराशा को आशा मै बदलता एक आशावादी ग्रुप
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खुशीयां ही नही कुछ तकलीफ
भी जरूरी हैं जीवन मै
हंस जैन। 98272 14427
दोस्तों,हर इंसान चाहता हैं की उसके जीवन मै सर्व सुख हो । हर समय उसके जीवन मै खुशिया आती रहे ।लेकिन प्रकृति ने उसको ख़ुशी के साथ थोड़े आंसू, थोड़े गम, थोड़ी परेशानी,आदि इसलिए दी हैं की वो जिंदगी मै अपने आप से लड़ना भी सीखे । जब आप जीवन भर खुश रहोगे तो आप एक दिन ख़ुशी की परिभाषा भी भूल जाओगे । जब किसी तकलीफ, गम,परेशानी के बाद अचानक ख़ुशी मिलती हैं तो उसका आनन्द अलग होता हैं । जैसे हम रोज
पानी को बहाते हैं, लेकिन यदि हम मरुस्थल मै भटक जाए , पानी खत्म हो जाए , तलाश पर भी पानी नही मिले, अचानक एक गड्ढे मै थोड़ा सा भी पानी मिल जाए जो ख़ुशी मिलेगी वही सत्य होगी ।हम जब भगवान को दोष देते हैं की हे भगवान आपने सबको सब दिया बस मुझे ही वंचित किया, ये गलत हैं।
आपको भगवान सबसे कठिन परीक्षा का एक हिस्सा बना रहा हैं। आपको
मजबूत कर रहा हैं । वो आपको सबसे
ज्यादा प्यार करता हैं, इसलिए ठोस बना रहा हैं । कंही सफलता आपके मस्तिष्क को अंहकार मै ना बदल दे इसलिए वो आपको हर कार्य मै पहले असफल कर देता हैं, उलझन पैदा करता हैं, कठिनाई देता हैं ।उसके बाद वो सब देता हैं जो आपकी चाह थी ।
एक छोटी सी कहानी सी प्रकृति की इस लीला को समझते हैं ।
मैंने एक बहुत पुरानी कहानी सुनी है… यह यकीनन बहुत पुरानी होगी क्योंकि उन दिनों ईश्वर पृथ्वी पर रहता था. धीरे-धीरे वह मनुष्यों से उकता गया क्योंकि वे उसे बहुत सताते थे. कोई आधी रात को द्वार खटखटाता और कहता, “तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैंने जो चाहा था वह पूरा क्यों नहीं हुआ?” सभी ईश्वर को बताते थे कि उसे क्या करना चाहिए… हर व्यक्ति प्रार्थना कर रहा था और उनकी प्रार्थनाएं विरोधाभासी थीं. कोई आकर कहता, “आज धूप निकलनी चाहिए क्योंकि मुझे कपड़े धोने हैं.” कोई और कहता, “आज बारिश होनी चाहिए क्योंकि मुझे पौधे रोपने हैं”. अब ईश्वर क्या करे? यह सब उसे बहुत उलझा रहा था. वह पृथ्वी से चला जाना चाहता था. उसके अपने अस्तित्व के लिए यह ज़रूरी हो गया था. वह अदृश्य हो जाना चाहता था.
एक दिन एक बूढ़ा किसान ईश्वर के पास आया और बोला, “देखिए, आप भगवान होंगे और आपने ही यह दुनिया भी बनाई होगी लेकिन मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि आप सब कुछ नहीं जानते: आप किसान नहीं हो और आपको खेतीबाड़ी का क-ख-ग भी नहीं पता. और मेरे पूरे जीवन के अनुभव का निचोड़ यह कहता है कि आपकी रची प्रकृति और इसके काम करने का तरीका बहुत खराब है. आपको अभी सीखने की ज़रूरत है.”
ईश्वर ने कहा, “मुझे क्या करना चाहिए?”
किसान ने कहा, “आप मुझे एक साल का समय दो और सब चीजें मेरे मुताबिक होने दो, और देखो कि मैं क्या करता हूं. मैं दुनिया से गरीबी का नामोनिशान मिटा दूंगा!”
ईश्वर ने किसान को एक साल की अवधि दे दी. अब सब कुछ किसान की इच्छा के अनुसार हो रहा था. यह स्वाभाविक है कि किसान ने उन्हीं चीजों की कामना की जो उसके लिए ही उपयुक्त होतीं. उसने तूफान, तेज हवाओं और फसल को नुकसान पहुंचानेवाले हर खतरे को रोक दिया. सब उसकी इच्छा के अनुसार बहुत आरामदायक और शांत वातावरण में घटित हो रहा था और किसान बहुत खुश था. गेहूं की बालियां पहले कभी इतनी ऊंची नहीं हुईं! कहीं किसी अप्रिय के होने का खटका नहीं था. उसने जैसा चाहा, वैसा ही हुआ. उसे जब धूप की ज़रूरत हुई तो सूरज चमका दिया; तब बारिश की ज़रूरत हुई तो बादल उतने ही बरसाए जितने फसल को भाए. पुराने जमाने में तो बारिश कभी-कभी हद से ज्यादा हो जाती थी और नदियां उफनने लगतीं थीं, फसलें बरबाद हो जातीं थीं. कभी पर्याप्त बारिश नहीं होती तो धरती सूखी रह जाती और फसल झुलस जाती… इसी तरह कभी कुछ कभी कुछ लगा रहता. ऐसा बहुत कम ही होता जब सब कुछ ठीक-ठाक बीतता. इस साल सब कुछ सौ-फीसदी सही रहा.
गेहूं की ऊंची बालियां देखकर किसान का मन हिलोरें ले रहा था. वह ईश्वर से जब कभी मिलता तो यही कहता, “आप देखना, इस साल इतनी पैदावार होगी कि लोग दस साल तक आराम से बैठकर खाएंगे.”
लेकिन जब फसल काटी गई तो पता चला कि बालियों के अंदर गेहूं के दाने तो थे ही नहीं! किसान हैरान-परेशान था… उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ. उसने ईश्वर से पूछा, “ऐसा क्यों हुआ? क्या गलत हो गया?”
ईश्वर ने कहा, “ऐसा इसलिए हुआ कि कहीं भी कोई चुनौती नहीं थी, कोई कठिनाई नहीं थी, कहीं भी कोई उलझन, दुविधा, संकट नहीं था और सब कुछ आदर्श था. तुमने हर अवांछित तत्व को हटा दिया और गेंहू के पौधे नपुंसक हो गए. कहीं कोई संघर्ष का होना ज़रूरी था. कुछ झंझावात की ज़रूरत थी, कुछ बिजलियां का गरजना ज़रूरी था. ये चीजें गेंहू की आत्मा को हिलोर देती हैं.”
यह बहुत गहरी और अनूठी कथा है. यदि तुम हमेशा खुश और अधिक खुश बने रहोगे तो खुशी अपना अर्थ धीरे-धीरे खो देगी. तुम इसकी अधिकता से ऊब जाओगे. तुम्हें खुशी इसलिए अधिक रास आती है क्योंकि जीवन में दुःख और कड़वाहट भी आती-जाती रहती है. तुम हमेशा ही मीठा-मीठा नहीं खाते रह सकते – कभी-कभी जीवन में नमकीन को भी चखना पड़ता है. यह बहुत ज़रूरी है. इसके न होने पर जीवन का पूरा स्वाद खो जाता है.
दोस्तों, कोशिश करो की असफलता हेतु हम किसी और को, भगवान को दोष नही दे , वरना कोशिश करे की ये सोचे की अभी हम कच्चे घड़े हैं । ईश्वर चाहता हैं की अभी हम और मजबूत बने । अभी हमारे प्रयासों मे कुछ कमी हैं । फिर जब सफलता मिलेगी आपको उस ख़ुशी से आपका जीवन प्रसन्न हो जायगा, क्योकि उसमे आपकी मेहनत के साथ ईश्वर का साथ और आशीर्वाद दोनों ही रहेगा।
आपके सुझाव, सलाह और विचारो का स्वागत हैं । अच्छा लगता हैं जब आप मुझे पर्सनल नम्बर पर लेख हेतु appreciate करते हो ।कल किसी और विषय पर चर्चा होगी । आपका दिन शुभ और मंगलमय हो ।
हंस जैन। 98272 14427
निराशा से आशा की और एक कदम
ग्रुप की सादर प्रस्तुति
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