Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

डलहौजी ने भारत से जाने के बाद, 29 फरवरी, 1856 को विक्टोरिया को एक पत्र लिखा।


देवी सिंग तोमर

डलहौजी ने भारत से जाने के बाद, 29 फरवरी, 1856 को विक्टोरिया को एक पत्र लिखा। उसने अपनी महारानी को बताया कि भारत में शांति कब तक बनी रहेगी, इसका कोई भी सही आकलन नहीं है। उसने पत्र में आगे लिखा कि इसमें कोई छिपाव भी नहीं है कि किसी भी समय संकट उठ खड़ा हो सकता है।

भारत का अगला गवर्नर-जनरल कैनिंग बना और उसने भी डलहौजी के मत की पुष्टि की। जैसा कि अनुमान था, हकीकत में ही उपरोक्त चिट्ठी के एक साल के अन्दर ही भारत में स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था।

ब्रिटेन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया होती, इससे पहले ही देश में स्वतंत्रता की लड़ाई व्यापक हो चुकी थी। इस तथ्य की पुष्टि हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में 13 जुलाई, 1857 को पूछे गए एक प्रश्न से हो जाती है। उस दिन ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल के अध्यक्ष और गवर्नर-जनरल (1842-1844) रह चुके ऐलनबरो ने बताया कि यह ‘खतरनाक और लगातार फैल रहा हैं’। उसने संसद को यह भी बताया कि हमारा साम्राज्य खतरे में है और स्थिति बद-से-बदतर होती जा रही है।

भाषण के इन अंशों से स्पष्ट और पर्याप्त है कि संग्राम से ईस्ट इंडिया कंपनी, संसद और ब्रिटिश क्राउन सभी की नींवें हिल चुकी थी। स्वतंत्रता संग्राम का असर इतना तीव्र था कि विक्टोरिया को खुद हस्तक्षेप करके पूरी व्यवस्था में परिवर्तन करना पड़ गया था।

विक्टोरिया ने 19 जुलाई, 1857 को अपने प्रधानमंत्री पामर्स्टन को एक पत्र भेजा। उस चिट्ठी में ब्रिटेन की महारानी ने संग्राम को ‘भयभीत’ करने वाला अनुभव बताया। उसी दौरान पामर्स्टन ने भी एक पत्र लिखा। जिसके अनुसार उसे खुद भी अंदाजा नही था कि संग्राम देश भर में फैल जाएगा। इस चिट्ठी के आखिरी में ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने संग्राम का कारण हिन्दू संतों को बताया।

स्वतंत्रता संग्राम जब शुरू हुआ तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पामर्स्टन थे। जब यह समाप्ति की ओर था तो वहाँ सरकार का नेतृत्व डर्बी के हाथों में था। दोनों का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि पामर्स्टन ने ही ईस्ट इंडिया कंपनी से सत्ता का हस्तांतरण क्राउन को दिए जाने का प्रस्ताव रखा। जिसे उसने हॉउस ऑफ कॉमन से पास करवा लिया था। जबकि डर्बी के कार्यकाल में यह प्रस्ताव अधिनियम बना। इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण उपज ‘सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फ़ॉर इंडिया’ नाम से नए विभाग का सृजन था। वैसे तो यह पूर्ववर्ती कंपनी के कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर के अध्यक्ष का ही नया नाम था, लेकिन इस बार इसकी कार्यशैली में परिवर्तन किया गया था।

भारत का पहला सेक्रटरी एडवर्ड हेनरी स्टेनली को बनाया गया जोकि डर्बी का बेटा था। विक्टोरिया ने खुद 1 नवम्बर, 1858 को इस विभाग के संदर्भ में घोषणाएँ की थीं। अब भारत के गवर्नर जनरल के नाम के आगे वायसराय शब्द जोड़ दिया गया था। ब्रिटेन की महारानी से सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के माध्यम से वायसराय को आदेश और अधिनियम मिलने का प्रावधान भी शामिल किया।

वास्तव में, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की भूमिका एक कुख्यात साजिशकर्ता के रूप में थी। इसका एक उदाहरण 1883 में मिलता हैं। उस समय मुस्लिम राजनीति एक अंग्रेज लेखक डब्लूएस ब्लंट से बहुत हद तक प्रभावित थी। ब्लंट के माध्यम से ही भारतीय मुसलमान नेताओं में पैन-इस्लामिज्म की धारणा तेजी से फैलनी शुरू हुई थी। इसने कोई दोराय नही है कि इस एक विचार ने भारतीय राष्ट्रवाद को बहुत नुकसान पहुँचाया था।

वास्तव में, पैन इस्लामिक मूवमेंट की शुरुआत अफगानिस्तान के जमाल अफगानी ने की थी। वह 1881 के आसपास भारत आया था और गुप्त रूप से मुस्लिम नेताओं को खलीफा के समर्थन के लिए भड़काता था। राष्ट्रवादी नेता बिपिन चन्द्र पाल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “इन सभी (मुसलमानों) में पैन-इस्लामिक वाइरस का टीकाकरण किया गया। इसके बाद उन्होंने हिन्दुओं से राजनैतिक दूरियाँ बनाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे हमारे राष्ट्रीय प्रयासों में हिन्दुओं और प्रबुद्ध मुसलमानों के बीच गहरी खाई उत्पन्न होने लगी।”

मुसलमानों के बीच पनप रहे इस मूवमेंट की जानकारी ब्रिटिश सरकार को थी। उस वक्त के सेक्रटरी ऑफ़ स्टेट, हेमिल्टन ने वायसराय एल्गिन को 30 जुलाई, 1897 को एक पत्र लिखा, “पैन-इस्लामिक काउंसिल के माध्यम से हमें भारत में साजिश और उत्तेजनाओं को भड़काने का नया अवयव मिल गया है।” सेक्रेटरी ऑफ स्टेट का यही एक वास्तविक काम था, जिसकी जिम्मेदारी विक्टोरिया ने दी थी। इन षड्यंत्रों को पूरा करने की जिम्मेदारी वायसराय को मिली हुई थी।।

स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश क्राउन का एकतरफा नियम था कि मुसलमानों को हिन्दुओं के ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में शामिल नहीं होने देना है। इसके लिए उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण का इस्तेमाल किया। पिछले 150 सालों के इतिहास में इसके प्रारम्भिक निशान अलीगढ़ में मिलते हैं।

सैयद अहमद ने 1869 में इंग्लैंड का दौरा किया और अगले साल भारत लौटने के साथ ही मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रसार के लिए जोरदार प्रचार शुरू कर दिया। उन्होंने 1877 में अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की।

इतिहासकारों के अनुसार सैयद के प्रयास सामाजिक और धार्मिक सुधारों तक ही सीमित नहीं थे। इतिहासकार आरसी मजूमदार लिखते है कि उन्होंने मुस्लिम राजनीति को उस ओर मोड़ दिया जोकि सिर्फ हिंदू विरोधी बन गई थी। एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज हिंदुओं के खिलाफ प्रचार का मुख्य केंद्र बन गया था। उसका निर्देशन एक ब्रिटिश व्यक्ति बेक के पास था जोकि सैयद अहमद का करीबी दोस्त और मार्गदर्शक था।

कॉलेज का मुखपत्र अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट का संपादन बेक के पास था। उसका मानना था कि भारत के लिए संसदीय व्यवस्था अनुपयुक्त है और इसके स्वीकृत होने की स्थिति में, बहुसंख्यक हिन्दुओं का वहाँ उस तरह राज होगा, जो किसी मुस्लिम सम्राट का भी नहीं था। यह कोई संयोग नहीं था कि मोहम्मद अली जिन्ना ने भी इसी आधार पर पाकिस्तान की माँग की थी। यह सब पूर्व सुनियोजित था, बस किरदारों में समय-समय पर बदलाव होते रहे।

अगली योजना में, आगा खान के नेतृत्व में 1 अक्तूबर, 1906 को 36 मुसलमानों का एक दल वायसराय मिन्टों से मिला। मुसलमानों ने अपनी कुछ साम्प्रदायिक माँगे रखी और मिन्टों ने भी उनकी सभी माँगों पर सहमती जताते हुए कहा, “मैं पूरी तरफ से आपसे सहमत हूँ। मैं आपको यह कह सकता हूँ कि किसी भी प्रशासनिक परिवर्तन में मुस्लिम समुदाय अपने राजनैतिक अधिकारों और हितों के लिए निश्चिंत रहे।”

इस प्रतिनिधि दल का रचना खुद ब्रिटिश सरकार ने की थी। अंग्रेजों की योजना में मुसलमानों को उस राजनैतिक संघर्ष से दूर रखना था जिसका संचालन हिन्दुओं द्वारा किया जा रहा था। इस संदर्भ में, लेडी मिन्टो लिखती हैं, “यह मुलाकात भारत और भारतीय इतिहास को कई सालों तक प्रभावित करेगी। इसका मकसद 60 मिलियन लोगों को विद्रोही विपक्ष के साथ जुड़ने से रोकने के अलावा कुछ नहीं हैं।”

ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे रामसे मैक्डोनाल्ड ने इस मुलाकात को ‘डिवाइड एंड रूल’ पर आधारित जानबूझकर और ‘पैशाचिक’ काम बताया। अपनी पुस्तक ‘एवकिंग ऑफ़ इंडिया’ में उन्होंने लिखा है, “इस योजना का पहला परिणाम दोनों समुदायों को अलग करना और समझदार एवं संविधानप्रिय राष्ट्रवादी लोगों के लिए अड़चनें पैदा करना था।”

मैक्डोनाल्ड यह भी खुलासा करते हैं कि मुसलमान नेता कुछ एंग्लो-इंडियन अधिकारियों से प्रेरित थे। इन अधिकारियों ने शिमला और लन्दन कई तार भेजे। इसमें हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच एक सोची-समझी कलह और द्वेष के आधार पर मुसलमान नेताओं ने अपने लिए विशेष समर्थन माँगा। तुष्टिकरण के इसी आधार पर करांची में 30 दिसंबर, 1906 को आल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई।

प्लासी के युद्ध (1757) के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जड़ों को उखाड़ फेंकने का सुनहरा अवसर 1857 का स्वतंत्रता संग्राम था। चूँकि यह हिन्दुओं द्वारा शुरू किया गया था तो मुसलमानों ने इसमें दिलचस्पी लेनी बंद कर दी। जैसा कि एक मुस्लिम नवाब ने एक ब्रिटिश अधिकारी को बताया कि संग्राम में अधिकतर हिन्दू थे और वह उन्हें पसंद नहीं करता था। इसलिए उसने उन्हें कोई सहायता नहीं की। उस नवाब का कहना था कि वह अंग्रेज़ो की सर्वोपरिता को स्वीकार करने के लिए भी तैयार है।

इन बीते 50 सालों में मुसलमान नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राजनैतिक आंदोलन से खुद को अलग कर लिया था। उन्हें लगने लगा कि मुस्लिम हित अंग्रेजों के हाथों में ही सुरक्षित है। अंग्रेजों ने भी इसका इस्तेमाल भारत में अपनी सरकार बचाने के लिए किया। इस बात का फायदा उठाकर मुस्लिम नेताओं ने पाकिस्तान के नाम से भारत विभाजन को हवा देना शुरू कर दिया। अंततः 1947 में भारत को विभाजन की त्रासदी को झेलना पड़ा।
अब आप तय करें,
किसका खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.

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મદદ કરવાની સાચી રીત..!!


મદદ કરવાની સાચી રીત..!!

સોસાયટી માં ઘર બેઠા નાના_નાના બાળકો ને ભણાવતી એક ટીચરની ઘરે લોટ અને શાકભાજી ખલાસ થઇ ગયા..!! હમેશા સાદગી થી રહેનારી ટીચર ને બહાર મળતા મફત રેશન ની લાઈન માં ઉભા રહેવામાં સ્વાભાવિક રીતે ખુબ સંકોચ થયો..!!
ફ્રી માં રેશન આપવા વાળા યુવાનોને જયારે આ વાત ની ખબર પડી ત્યારે એ લોકો એ જરૂરિયાત મઁદો ને ફ્રી માં લોટ અને શાકભાજી આપવાનું તત્કાળ પૂરતું બઁધ કર્યું,, આ તો બધા ભણેલા ગણેલ યુવાનો હતા, અંદરોઅંદર વિચાર વિમર્શ કરી ને નક્કી કર્યું કે આવા તો કેટલાય મધ્યમ વર્ગ ના પરિવારો ને જરૂરત હોવા છતાં, પોતાના આત્મસન્માન ને કારણે ફ્રી માં મળતા રેશન ની લાઈન માં નથી ઉભા રહી શકતા.!! આ યુવાનો એ પોતાના વિચારો વડીલોની સમક્ષ વ્યક્ત કર્યા અને તેઓ ની સલાહ બાદ બીજે જ દિવસે ફ્રી રેશન નું બોર્ડ હટાવી ને બીજું બોર્ડ લગાવ્યુ..જેમાં લખ્યું તું.
*-ખાસ ઓફર:- *કોઈ પણ શાકભાજી Rs.15 ની કિલો મળશે અને સાથે એટલો જ લોટ અને દાળ ફ્રી આપવામાં આવશે…!!*
આ બોર્ડ જોઈ ને ભિખારી ની ભીડ દૂર થઇ ગઈ અને મધ્યમ વર્ગ ના મજબૂર લોકો હાથ માં ૨૦-૩૦ રૂપિયા લઇ ને ખરીદી કરવા લાઈન માં ઉભા રેહવા લાગ્યા..!! એ ખાત્રી સાથે કે હવે તેમના આત્મસન્માન ને ઠેસ નહીં પહોંચે…!!
આજ લાઈન માં બાળકો ને ભણાવનારી ટીચર, મોઢા પર પરદો રાખી, હાથ માં મામુલી રકમ લઇ ને ઉભી રહી ગઈ. આંખો ભીની હતી પણ મન માં સંકોચ હવે નહોતો. પોતાનો વારો આવ્યો, જરૂરી સામાન લઇ, પૈસા ચૂકવી ને ઘરે આવી. સામાન ખોલી ને જોયું તો જેટલા પૈસા ચૂકવી ને રેશન લીધેલું એટલા જ પૈસા રેશન ની સાથે પડેલા હતા…!!! એણે ચુકવેલા પૈસા પેલા યુવાનો એ સામાન ની બેગ માં પાછા મૂકી દીધા હતા .!
આ યુવાનો, જેટલા લોકો પૈસા ચૂકવી ને સામાન લઇ જતા હતા તે બધા ને તેમના ચુકવેલા પૈસા તેમની બેગ માં પાછા મૂકી દેતા હતા..!! એ સત્ય છે કે આવડત અને રીત, ખોટા દેખાવો કરતા વધુ મજબૂત છે. મદદ જરૂર કરો પણ કોઈના આત્મસન્માન ને ઠેસ પહોચે એવી રીતે ના કરો..!! જરૂરિયાતમંદો નો ખ્યાલ રાખતા રાખતા ઈજ્જતદાર મજબુરો નો પણ આદર કરો…!!☑ અને વિશ્વાસ રાખો કે ઈશ્વર તમારા પર સ્નેહ ભરી નઝર રાખશે…!!

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देहाती कहावतें


कुछ देहाती कहावतें

१. मरद के बात हाथी के, दाँत जे निकलल से निकलल

२. बेल पाकल, त कौआ के बाप ले की ?

३. निचिंत सूते कुम्हरा, माईट न ल जाय चोर

४. केओ मुए केओ जिए, सुथरा (साधू) घोईर बतासा पिए

५. जोलहा जानैथ जौ काटे ?

६. जेहेन छैथ देवी, तेहेन कोदो के अक्षत

७. बुरबक कनियाँ के नौ आना खोइंछ

८. मुँह जेना मुँह नै आ रुपैया मुंह देखौनि

९. बड़ घूँघट मुदा ताकलो चाहीं

१०. छुटल घोड़ी भुसैले ठाढ़

११. बुरबक गेल माछ मारे टाप एला हेराय

१२. सोझ के मुँह कुक्कुर चाटे

१३. हाथी के आगा पाछाँ बुझैबे ने करे

१४. भात दाइल केकरो, परोइस के बइसल मंगरो

१५. कौआ कपूर खेने उज्जर होइए ?

१६. जेक्कर मउगी दंतुलि, ओक्कर बड़ भाग
दाँत स हँड़िया खखोर के खा गेल, बसिया के कोन काज

१७. पाकल रोटी से जुरियाबे जेकरा अप्पन बेले न आबय

१८. सब कुक्कुर कासी जाय त हांडी के ढूंढ़े

१९. सम्पति के सिंगार, बिपति के आहार

२०. सास पुतोहु एक्के होइहें, भाभा कूटन (झगड़ा लगाने वाले) घर चलि जइहें

२१. सास न ननंद, घर अपन आनंद

२२. काम करे नथबाली, लग जाए चिरकुटही के

२३. गुरु के गुरु, बजनियाँ के बजनियाँ (बहुत से गुण)

२४. जे रोगिया के भावे, सेह बैदा फरमावे

२५. लड़ पड़ोसिन (परंतु) दीद (लाज) रख

२६. जेने गेलौ खेरो (घास) रानी, लेने गेलौ आईग पानी

२७. झगड़ा के घर हाँसी, रोग के घर खाँसी

२८. भोर भये मनुख सब जागे, हुक्का चिलम बाजन लागे

२९. खैनी खाय न पीयैनि पिये, से नर बताबह केना जिए

३०. चोरवा के मोन बसे ककरी के खेत में

३१. चोर जइसने हीरा के, तइसने खीरा के

३२. चोर जाने मंगनी के बासन ?

३३. करे न खेती परे न फंद, घर घर नाचे मूसरचंद

३४. सावन मास बहे पुरवैया (बरसात न होने के संकेत), बेचह बैल, कीनह गइया (खेत कोड़ने की जरुरत न होगी)

३५. नाचे-कूदे तूरे तान (एक्टिव), तेकरे दुनियाँ राखे मान

३६. जेक्कर चून, तेकर पुन्न

३७. पेट भारी सौं माथ भारी

३८. केकरो भंट्टा (बैगन) बैरी, केकरो भंटा पथ्य

३९. फेर मुंड़ेलों बेल तर

४०. खा के पसरी माइर के ससरी

साभार : भारतेन्दु कुमार दास

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भोजपुरी कहावतें


तीन सौ एक भोजपुरी कहावतें हिंदी अनुवाद एवं अर्थ सहित।

प्रस्तुत हैं तीन सौ एक भोजपुरी कहावतें विशेषकर देवरियाई (देवरिया जनपद की) जनता द्वारा बोली जानेवाली।
ये कहावतें मैंने अपने गाँव और आसपास के क्षेत्रों में सुनी हैं। ये कहावतें अभोजपुरी महानुभावों की समझ में भी आएँ, इसलिए प्रत्येक कहावत के नीचे उनका शब्दशः हिन्दी अनुवाद और व्याख्या भी दे दिया गया है।
इन कहावतों में भोजपुरिया समाज और माटी की महक है तथा है उनके चिंतन की पराकाष्ठा। ये कहावतें भोजपुरिया समाज की प्रतिबिम्ब हैं। पढ़िए और देखिए कि इन एक-एक पंक्तियों में कितना सार भरा हुआ है।
जय हिन्द।। जय भारत।।

1. लाठी कपारे भेंट नाहीं अउरी बाप-बाप चिल्ला।

अनुवाद- लाठी सिर से लगी नहीं और बाप-बाप चिल्लाए।

अर्थ- नखरेबाजी।

2. धान गिरे बढ़ भाग,गोहूँ गिरे दुरभाग।

अनुवाद- धान गिरे बढ़ भाग्य, गेहूँ गिरे दुरभाग्य।

अर्थ- खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती। यानि गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे और सारहीन हो जाते हैं।

३. लाल,पीयर जब होखे अकास, तब नइखे बरसा के आस।

अनुवाद- लाल, पीला जब हो आकाशा,तब नहीं है वर्षा की आशा।

अर्थ- अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती।

४. खेती, बेटी, गाभिन गाय, जे ना देखे ओकर जाय।

अनुवाद- खेती,बेटी गाभिन गाय, जो ना देखे, उसकी जाए।

अर्थ- खेती,बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है। यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो आप को पछताना पड़ सकता है।

5. काछ कसौटी सांवर बान।
ई छाड़ि मति किनिह आन।

अर्थ- दो दाँत और भूरे रंग वाला बैल अच्छा माना जाता है।

6. चिरई में कउआ,मनई में नउआ।

अनुवाद- चिड़िया में कौआ,मनई में नउआ (हजाम)।

अर्थ- पक्षियों में कौवा और आदमियों में हजाम बहुत चतुर होते हैं।

7. बाढ़े पूत पिता की धरमा,
खेती उपजे अपनी करमा।

अर्थ- पिता के अच्छे कर्मों से पुत्र की
उन्नति होती है और अपनी मेहनत
से ही खेत में अच्छी पैदावार होती है।

8. निरबंस अच्छा लेकिन बहुबंस नाहीं अच्छा।

अनुवाद- निरवंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा।

अर्थ- संतान हो तो अच्छे गुण वाली,
नहीं तो हो ही न।

9. खड़ी खेती,गाभिन गाय,
तब जान जब मुँह में जाय।

अनुवाद- खड़ी खेती, गाभिन गाय,तब जानिए जब मुँह में जाए।

अर्थ- खड़ी फसल और गाभिन गाय का भरोसा नहीं होता यानि जबतक फसल कटकर खलिहान में न आ जाए तबतक उसके नष्ट होने की संभावना बनी रहती है और गाभिन गाय भी जबतक बच्चा न जन दे तबतक उसका भी भरोसा नहीं।

10. जइसन खाइ अन, वइसन रही मन।

अनुवाद- जैसा खाएँगे अन्न, वैसा रहेगा मन।

अर्थ- हम क्या खाते हैं,उसका प्रभाव आचरण और मनोवस्था पर भी पड़ता है।

11. पहीले दिन पहुना,दूसरे दिन ठेहुना,तीसरे दिन केहुना।

अर्थ- रिस्तेदारी में ज्यादे दिन रहने
से धीरे-धीरे इज्जत कम होने
लगती है।

12. बेटी के बेटा कवने काम,
खइहें इहँवा चेटइहें गाँव।

अनुवाद- बेटी के बेटा किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव।

अर्थ- दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते।

13. घोड़ा की पिछाड़ी अउरी हाकिम की
अगाड़ी कबो नाहीं जाए के चाहीं।

अनुवाद- घोड़ा की पीछे और अधिकारी के आगे कभी
नहीं जाना चाहिए।

अर्थ- घोड़ा के पीछे जाने पर उसके लात मारने का खतरा रहता है जबकि अपने से बड़े अधिकारी के आगे-आगे करने पर उसके क्रोधित होने की संभावना होती है।

14. बड़ संग रहिअ त खइहS बीड़ा पान,
छोट संग रहिअ त कटइहS दुनु कान।

अनुवाद- बड़ संग रहेंगे तो खाएंगे बीड़ा पान,छोट संग रहेंगे तो कटाएँगे दोनों कान।

अर्थ- सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों
का संग करने से हानि होती है।

15. आपन इज्जत अपनी हाथे में हअ।

अनुवाद- अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है।

अर्थ- अपनी इज्जत हम खुद ही बना के रख सकते हैं।

16. अपनी गली में त एगो कुत्ता शेर होला।

अनुवाद- अपनी गली में एक कुत्ता भी शेर होता है।

अर्थ- अपने घर, गाँव, क्षेत्र आदि में सभी बहादुर होते हैं।

17. आपन भला त सब चाहेला।

अनुवाद- अपना भला तो सब चाहते हैं।

अर्थ- आदमी वही जो दूसरे के अच्छे की भी सोंचे केवल अपना ही नहीं।

18. कहले पर धोबिया गदहवा पर नाहीं चढ़ेला।

अनुवाद- कहने पर धोबी गदहा पर नहीं बैठता।

अर्थ- कुछ लोग कहने पर वह काम नहीं करते जबकि अपने मन से वही काम करते हैं।

19. बानर का जानी आदी के सवाद।

अनुवाद- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।

अर्थ- सब वस्तु की महत्ता सब लोग नहीं जानते।

२०. कुकुरे की पोंछी केतनो घी लगाव उ टेड़े के टेड़े रही।

अनुवाद- कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए,
वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी।

अर्थ- प्रकृति नहीं जाती यानि स्वभाव बना रहता है।

21. गेहूँ की साथे घुनवो पिसाला।

अनुवाद- गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है।

अर्थ- साथ रहनेवाला भी लपेट में आ जाता है यानि अच्छा होते हुए भी बुरे के साथ रहने पर कभी-कभी बुरी संगति के कारण परेशानी खड़ी हो जाती है।

22. दुधारू गाइ के लतवो सहल जाला।

अनुवाद- दुधारू गाय का लात भी सहा जाता है।

अर्थ- जिस व्यक्ति से अपना फायदा हो अगर वह कुछ उलटा-पुलटा भी करे या बोले तो सहा जाता है।

23. हाथे में पइसा रहेला तब बुधियो काम करेले।

अनुवाद- हाथ में पैसा रहने पर बुद्धि काम करती है।

अर्थ- पास में पैसा रहने पर दिमाग अपने-आप चलता है।

24. पेटवे सब कुछ करावेला।

अनुवाद- पेट ही सबकुछ कराता है।

अर्थ- पेट के कारण ही जीव बुरे से बुरा काम भी करता है।

25. पेट कबो नाहीं भरेला।

अनुवाद- पेट कभी नहीं भरता।

अर्थ- दुनिया में सबकुछ भर सकता है केवल पेट को छोड़कर। यानि बिना खाए काम नहीं चल सकता।

26. करनी ना धरनी,धियवा ओठ बिदोरनी।

अनुवाद- करनी ना धरनी, बेटी ओठ विदोरनी (मुँह बनानेवाली)।

अर्थ- कुछ काम भी न करना और नखरे भी दिखाना।

27. जेतने सरी ओतने तरी।

अनुवाद- जितना सड़ेगा उतना तरेगा।

अर्थ- जितना पुराना उतना ही बढ़िया।

28. का राम की घरे रहले आ का
राम की बने गइले।

अनुवाद- क्या राम के घर रहने से या क्या राम के वन जाने से।

अर्थ- अनुपयोगी व्यक्ति। अयोग्य व्यक्ति।

२९. सब रामायन बीती गइल, सीता केकर बाप।

अनुवाद- सब रामायण खत्म हो गया, सीता किसकी बाप।

अर्थ- अच्छी तरह से समझाने के बाद भी उसी प्रकरण से संबंधित मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना।

30. रो रो खाई,धो धो जाई।

अनुवाद- रो-रो खाएगा, धो-धो जाएगा।

अर्थ- भोजन सदा प्रसन्न मन से करना चाहिए। अप्रसन्न मन से किया हुआ भोजन शरीर को लाभ नहीं पहुँचाता।

31. भगवान के भाई भइल बारअ।

अनुवाद- भगवान के भाई बने हैं।

अर्थ- जब कोई काम करने में टालमटोल करता है या कहता है कि बाद में करूँगा तो कहा
जाता है। तात्पर्य यह है कि कोई भी काम कल पर नहीं टालना चाहिए।

32. भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी।

अनुवाद- भैंस पानी में हगेगी तो (गोबर) ऊपर आएगा ही।

अर्थ- छिपी हुई बात प्रकट हो जाती है। सच्चाई छिप नहीं सकती, बनावट के वसूलों से।

33. सोने के कुदारी माटी कोड़े के हअ।

अनुवाद- सोने की कुदाल माटी कोड़ने के लिए है।

अर्थ- सबको अपनी योग्यतानुसार कार्य करना ही अच्छा होता है।

34.जे गुड़ खाई उ कान छेदाई।

अनुवाद- जो गुड़ खाएगा वो कान छेदाएगा।

अर्थ- गलत काम का परिणाम भी गलत होता है।

35.कमजोर देही में बहुत रीसि होला।

अनुवाद- कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है।

अर्थ- कमजोर व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता है।

36.बिन घरनी,घर भूत के डेरा।

अनुवाद- बिन औरत, घर भूत के डेरा।

अर्थ- औरत से ही घर,घर लगता है।

37.मानS तS देव नाहीं तS पत्थर।

अनुवाद- मानिए तो देव नहीं तो पत्थर।

अर्थ- विश्वास ही सर्वोपरी है।

38.की हंसा मोती चुने,की भूखे मर जाय।

अनुवाद- कि हंस मोती चुगे,कि भूखे मर जाए।

अर्थ- शेर जब भी खाएगा मांस ही खाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ व्यक्ति परेशानी उठा लेंगे लेकिन अपने वसूल यानि मान-मर्यादा के खिलाफ नहीं जाएँगे।

39.सब धान बाइसे पसेरी।

अनुवाद- सब धान बाइस ही पसेरी। (पसेरी एक तौल है जो लगभग पाँच किलो के बराबर माना जाता है)

अर्थ- सब एक जैसे। (व्यंग्य में कहा जाता है- एक जैसे गलत लोगों के लिए। जैसे- अगर आप के तीन-चार लड़के हैं और सब कुपात्र ही हैं तो आप अपने बच्चों के लिए कह सकते हैं- सब धान बाइसे पसेरी। )

40.दादा कहने सरसउवे लदीहS।

अनुवाद- दादा कहे सरसों ही लादना (यानि सरसों का ही व्यापार करना)

अर्थ- लकीर के फकीर।

41.सइंया भये कोतवाल,अब डर काहे का।

अनुवाद- सैंया भए कोतवाल तो अब किस बात का डर।

अर्थ- अपने शासन में अपनीवाली करना। यानि जिसकी लाठी उसकी भैंस।

42.बाप ओझा अउरी माई डाइन।

अनुवाद- बाप ओझा (झाड़-फूँक करनेवाला) और माँ डाइन।

अर्थ- विरोधाभास। एक अच्छा तो दूसरा बुरा।

43.रोजो कुँआ खोदS अउरी रोजो पानी पीअS।

अनुवाद- रोज कुँआ खोदना और रोज पानी पीना।

अर्थ- भविष्य के बारे में न सोचना। यानि केवल जो आगे आए उसी पर विचार करनेवाला। अदूरदर्शी व्यक्ति के लिए।

44.आगे नाथ ना पीछे पगहा,खा मोटा के भइने गदहा।

अनुवाद- आगे नकेल ना पीछे पगहा(पशु को बाँधने की रस्सी), खा मोटाकर हुए गदहा।

अर्थ- स्वछंद व्यक्ति। जिसको रोकने-टोकनेवाला कोई न हो और इसलिए वह मनमौजी काम करता हो।

45.आसमाने में थूकबS त मुँहवे पर आई।

अनुवाद- आसमान में थूकेंगे तो अपने मुँह पर ही आएगा।

अर्थ- उलटा-पुलटा काम करके खुद फँसना।

46.इस्क अउरी मुस्क छिपवले से नाहीं छीपेला।

अनुवाद- इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता।

अर्थ- प्रेम और कस्तूरी (एक प्रकार का गंधद्रव्य) प्रगट हो ही जाते हैं।

47.आदमी के काम हअए गलती कइल।

अनुवाद- आदमी का काम है गलती करना।

अर्थ- गलती (अनजाने में हुआ गलत काम) आदमी से ही होती है अस्तु क्षमा कर देना ही उचित होता है।

48.भगवान के माया कहीं धूप कहीं छाया।

अनुवाद- भगवान की माया कहीं धूप कहीं छाया।

अर्थ- दुनिया में जो कुछ भी घटित हो रहा है यानि अच्छा या बुरा,वह भगवान की ही कृपा से।

49.काठे के हाड़ी बार-बार नाहीं चढ़ेला।

अनुवाद- काठ की हाड़ी बार-बार नहीं चढ़ती।

अर्थ- किसी (समझदार) का दुरुपयोग एक ही बार किया जा सकता है, बार-बार नहीं।

50.काने के कच्चा।

अनुवाद- कान का कच्चा।

अर्थ- सहज विश्वासी। बिना सोचे-समझे विश्वास करनेवाला।

51.दूनू लोक से गइने पाड़े,न हलुआ मिलल न माड़े।

अनुवाद- दोनों लोक से गए पाण्डेय (ब्राह्मणों की एक उपजाति),न हलुआ मिला न माड़े (माड़-भात में से निकला लसदार थोड़ा गाढ़ा पदार्थ)।

अर्थ- धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का।

52.घर फूटे गँवार लूटे।

अर्थ- अगर घर में फूट पड़ जाए तो उल्लू भी अपना उल्लू सीधा कर लेता है। यानि घर में सदा एकता होनी चाहिए।

53.ना रही बाँस ना बाजी बँसुरी।

अनुवाद- न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

अर्थ- मूल का ही सफाया।

54.नानी के धन,बेइमानी के धन
अउरी जजमानी के धन नाहीं रसेला।

अनुवाद- ननिहाल,बेइमानी और यजमानी का
धन व्यर्थ ही जाता है। यानि किसी काम का नहीं होता।

55.नानी की आगे ननीअउरे के बखान।

अनुवाद- नानी की आगे ननिहाल का वर्णन।

अर्थ- जिसे सबकुछ मालूम हो,उसे बताना।

56.अंडा सिखावे बच्चा के,ए बच्चा तू
चेंव-चेंव करअ।

अनुवाद- अंडा सिखावे बच्चा को कि ऐ बच्चा तूँ चें-चें कर।

अर्थ- जिसे सबकुछ मालूम हो उसे बताना यानि अज्ञानी होकर ज्ञानी को उपदेश देना।

57.नौ के लकड़ी,नब्बे खर्च।

अनुवाद एवं अर्थ- नौ की लकड़ी,नब्बे खर्च।

58.पाव भरी के देबी अउरी नौ पाव पूजा।

अनुवाद- पावभर की देवी और नौ पाव पूजा।

अर्थ- नौ की लकड़ी,नब्बे खर्च।

59.माई के मनवा गाई जइसन
अउरी पूत के मनवा कसाई जइसन।

अनुवाद- माँ का मन गाय जैसा और पूत का मन कसाई जैसा।

अर्थ- पुत्र कुपुत्र पर माता सदा सुमाता।

60.नाहीं चिन त नाया कीन।

अनुवाद- नहीं पहचान तो नया खरीद।

अर्थ- पारखी न होने पर कोई भी वस्तु
नया ही खरीदना चाहिए।

61. बाभन,कुकुर,हाथी,नाहीं जात के साथी।

अनुवाद- ब्राह्मण,कुत्ता, हाथी, नहीं जाति के साथी।

अर्थ- ब्राह्मण,कुत्ता और हाथी अपनी ही जाति
के सदस्यों के शत्रु होते हैं यानि इनमें आपस में एकता का अभाव होता है।
विशेष- लेकिन हाथी एक झुंड में रहते हैं।

62. बनले के साथी सब केहू ह अउरी बिगड़ले के केहु नाहीं।

अनुवाद- बनने पर साथी सभी पर बगड़ने पर कोई नहीं।

अर्थ- सुख के साथी सभी हैं लेकिन दुख में ना कोय।

63. गइल राज जहवाँ चुगला पइठे, गइल पेड़ जहवाँ बकुला बइठे।

अनुवाद- गया राज्य जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे।

अर्थ- चुगलखोर राज,परिवार आदि को नष्ट कर देते हैं और वह पेड़ भी
ठूँठ हो जाता है जिसपर बराबर बकुला बैठते हैं।

64. आइल थोर दिन, गइल ढेर दिन।

अनुवाद- आया थोड़ दिन, गया ढेर दिन।

अर्थ- समय बीतते देर नहीं लगती।

65. खिंचड़ी के चारी इआर, दही, पापर, घी, अचार।

अनुवाद- खिंचड़ी के चार यार,दही, पापड़, घी,अँचार।

अर्थ- खिंचड़ी खाने में तब मजा आता है जब साथ में दही,
पापड़, घी, और अँचार भी हो।

66. माघ के टूटल मरद अउरी भादो के टूटल बरध कबो नाहीं जुटेलें।

अनुवाद- माघ महीने में टूटा मर्द और भादों में टूटा बैल कभी नहीं जुटते।

अर्थ- माघ में जिस आदमी की शरीर टूट गई मतलब कमजोर हो गई और भाद्रपद में जिस बैल की शरीर कमजोर हो गई वह फिर कभी तैयार नहीं होती यानि उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता।

67. बेटओ मीठ अउरी भतरो मीठ।

अनुवाद- बेटा भी मीठा और पति भी मीठा।

अर्थ- सबसे मिला हुआ।

68. तेली के लइका भूखे मरे अउरी लोग कहे की पी के मातल बा।

अनुवाद- तेली का लड़का भूखे मरे और लोग कहें कि पीकर मतवाला हो गया है।

अर्थ- किसी चीज का कारण कुछ और हो और कुछ और समझा जाए।

69. के पर करीं सिंगार पिया मोरे आनर।

अनुवाद- किस पर करूँ श्रृंगार, पिया मोरे अंधे।

अर्थ- उस काम को करने से क्या लाभ जिसका
महत्व समझने वाला ही कोई न हो।

70. निरबंस आछा लेकिन बहुबंस नाहीं आछा।

अनुवाद- निर्वंश अच्छा लेकिन बहुवंश नहीं अच्छा।

अर्थ- पुत्र हो तो सदाचारी न तो न ही हो।

71. गइने मरद जिन खइने खटाई अउरी
गइली मेहरारू जिन खइली मिठाई।

अनुवाद- गया मर्द जो खाया खटाई और गई औरत जो खाई मिठाई।

अर्थ- मर्द को खट्टी चीजें और औरतों को
मीठी चीजें कम खानी चाहिए।

72. गइल जवानी फिर ना लौटी, चाहें घी, मलीदा खा।

अनुवाद- गई जवानी फिर नहीं लौटेगी, चाहें घी, मलीदा खा।

अर्थ- एक बार जवानी जाने के बाद फिर कभी भी वापस नहीं आती। कुछ भी करें गया समय वापस नहीं आता।

73. बड़-बड़ घोड़ा दहाइल जा अउरी गदहा पूछे केतना पानी।

अनुवाद- बड़े-बड़े दह जाएँ और गदहा पूछे कितना पानी।

अर्थ- जो बड़ों से न हो वह छोटे करने का दुस्साहस करें (हास्य)। किसी छोटे द्वारा दुस्साहस करने पर कहा जाता है।

74. बतिया मानबी बाकिर खूँटवा ओहि जागि गारबी।

अनुवाद- बात मानूँगा पर खूँटा अपनी जगह पर ही गाड़ूँगा।

अर्थ- दूसरे की सुनना पर करना अपनी वाली ही।

75. हथिया की पेटे जाड़ ह।

अनुवाद- हाथी की पेट से जाड़ा है।

अर्थ- हस्त नक्षत्र से जाड़ा शुरु हो जाता है।

76.आधा माघे कंबर काँधे।

अनुवाद- आधा माघे कंबल कंधे।

अर्थ- आधा माघ महीना बीतते ही जाड़ा कम होने लगता है।

77. माघे जाड़ ना पूसे जाड़, जब बयारी बहे तबे जाड़।

अनुवाद- माघ में जाड़ा ना पूस में जाड़ा,जब हवा बहे तभी जाड़ा।

अर्थ- ठंडी के दिनों में जब हवा बहती है तो ठंडक बढ़ जाती है।

78. अबरे के मेहरारू गाँवभरी के भउजाई।

अनुवाद- दुर्बल की पत्नी गाँवभर की भौजाई।

अर्थ- कमजोर को सभी सताते हैं।

79.आखिर संख बाजल बाकिर बाबाजी के पदा के।

अनुवाद- आखिर शंख बजा लेकिन बाबाजी को पदा के।

अर्थ- काम होना लेकिन बहुत परीश्रम के बाद।

80. आपन अपने ह।

अनुवाद- अपना अपना है।

अर्थ- अपना अपना ही होता है।

81. एक हाथ के ककरी अउरी नौ हाथ के बिआ।

अनुवाद- एक हाथ की ककड़ी और नौ हाथ का बीज।

अर्थ- अफवाह। असत्य बात। किसी छोटी-सी बात को भी बहुत ही बढ़ा-चढ़ाकर बताना।

82. चाल रहे सादा जे निबहे बाप-दादा।

अनुवाद- चाल रहे सादा जो निबहे बाप-दादा।

अर्थ- चाल-चलन ऐसा रखना चाहिए कि जिसका निर्वाह आसानी से हो जाए।

83. पानी पीअs छानी के अउरी गुरु करs जानी के।

अनुवाद- पानी पीजिए छानकर और गुरु कीजिए जानकर।

अर्थ- पानी छानकर पीना चाहिए और सोच समझकर गुरु करना चाहिए।

84. नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला।

अनुवाद- हजाम को देखकर हजामत बढ़ जाती है।

अर्थ- असमय इच्छा करना। आवश्यकता न होने पर भी आसानी से प्राप्त होनेवाली वस्तु का उपयोग करने की इच्छा।

85. ए जबाना में पइसवे भगवान बाs।

अनुवाद एवं अर्थ- आधुनिक युग में पैसा ही भगवान है।

86. लोग न लइका मुँहे लागल करिखा।

अनुवाद- लोग न लड़का, मुँह में लगा कालिख।

अर्थ- बदनामी।

87. केहू खात-खात मुए अउरी केहू खइले बिना मुए।

अनुवाद- कोई खाता-खाता मरे और कोई खाने के बिना मरे।

अर्थ- दुरुपयोग होना। कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर कमी।

88. कबो घानी घाना कबो मुठी चना कबो उहो मना।

अनुवाद- कभी घानी घना, कभी मुट्ठी चना,कभी वह भी मना।

अर्थ- (क)किसी को कभी बहुत इज्जत देना और कभी अपमान करना। (ख)सब दिन होत न एक समाना।

89. जेतने वेकती ओतने कार, नाहीं वेकती नाहीं कार।

अनुवाद- जितने व्यक्ति उतना काम, नहीं व्यक्ति नहीं काम।

अर्थ- जितने लोग रहते हैं उतना ही काम रहता है।

90. जिनगी में उतार-चढ़ाव आवत जात रहेला।

अनुवाद- जिन्दगी में उतार-चढ़ाव आता-जाता रहता है।

अर्थ- सब दिन होत न एक समाना।

91. गाड़ी में दम नाहीं बारी में डेरा।

अनुवाद- गाड़ में दम नहीं बगीचे में डेरा।

अर्थ- डींगबाजी करनेवाले के लिए कहा जाता है। जो केवल बढ़-बढ़कर बातें करे उसके लिए कहा जाता है।

92. घर में दिया बारी के मंदिर में दिया बारल जाला।

अनुवाद- घर में दीपक जलाने के बाद मंदिर में दीपक जलाया जाता है।

अर्थ- पहले आत्मा फिर परमात्मा। पहले अपना काम फिर दूसरे का।

93. सुखे के साथी सब केहु हs।

अनुवाद- सुख के साथी सब हैं।

अर्थ- सुख के साथी सब हैं दुख का है न कोय।

94. घर के ना घाट के माई के न बाप के।

अर्थ- आवारा।

95. का कहीं कुछ कही ना जाता अउरी कहले बिना रही ना जाता।

अनुवाद- क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता है और कहे बिना रहा नहीं जाता है।

अर्थ- बरदाश्त के बाहर। असह्य।

96. पातर देहरी अन्न के खानि।

अनुवाद- पतली देहली अन्न की खान।

अर्थ- पतला आदमी ज्यादे खाता है।

97. करिया अक्षर भँइस बराबर ।

अर्थ- काला अक्षर भैंस बराबर। (अनपढ़)

98. केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला।

अनुवाद- किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक फोड़ नहीं लेना चाहिए।

अर्थ- किसी की बराबरी करने के लिए उलटा-पुलटा काम नहीं करना चाहिए।

99. गइल भँइस पानी में।

अनुवाद- गई भैंस पानी में।

अर्थ- हानि। घाटा।

100. महँगा रोए एकबार, सस्ता रोए बार-बार।

अर्थ- महँगी वस्तुएँ अधिक दिन चलती हैं और अच्छी भी होती हैं।

101. पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।

अनुवाद- पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।

अर्थ- रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए।

102. सब चाही त काम आँटी।

अनुवाद- सब चाहेंगे तो काम अँटेगा।

अर्थ- अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए।

103. सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी।

अनुवाद- मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी।

अर्थ- किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो।

104. नेबुआ तs लेगइल सागे में मती डाले।

अनुवाद- नेंबू तो ले गया, साग में मत डाले।

अर्थ- किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका।

105. छिया-छिया गप-गप।

अनुवाद- छी-छी गप-गप।

अर्थ- किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।

106. बाबा के धियवा लुगरी अउरी भइया के धियवा चुनरी।

अनुवाद- दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी।

अर्थ- बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान।

107. सबकुछ खइनी दुगो भुजा ना चबइनी।

अनुवाद- सब कुछ खाया दो भुजा न चबाया।

अर्थ- भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए।

108. हाथी आइली हाथी आइली पदलसी भढ़ाक दे।

अनुवाद- हाथी आयी, हाथी आयी पादी भढ़ाक दे।

अर्थ- अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात।

109. जवन रोगिया के भावे उ बैदा फुरमावे।

अनुवाद- जो रोगी को अच्छा लगे वही वैद्य बतावे।

अर्थ- किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे।

११०. आन की धन पर कनवा राजा।

अर्थ- दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना।

111. बड़ के लइका पादे त बाबू के हवा खुली गइल अउरी छोट के
पादे त मार सारे पदले बा ।

अनुवाद- बड़ का लड़का पादे तो बाबू का हवा खुल गया और छोट का पादे तो मार साला पाद दिया।

अर्थ- बड़ को इज्जत और छोट का अपमान।

112. बुढ़वा भतार पर पाँची गो टिकुली।

अनुवाद- बुढ़े पति पर पाँच टिकली।

अर्थ- वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो।

113.बेटा अउरी लोटा बाहरे चमकेला।

अनुवाद- पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है।

अर्थ- जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है।

114. खेतिहर गइने घर दाएँ बाएँ हर।

अनुवाद- खेतिहर गए घर दाएँ बाएँ हल।

अर्थ- मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे।

115. खेत खा गदहा अउरी मारी खा जोलहा।

अनुवाद- खेत खाए गदहा और मार खाए जोलहा।

अर्थ- गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना।

116. खा मन भाता अउरी पहिनS जग भाता।

अनुवाद- खाइए मन भाता और पहनिए जग भाता।

अर्थ- अपने रुचिनुसार भोजन करना चाहिए पर कपड़े ऐसा पहनना चाहिए
जो दूसरों को अच्छा लगे।

117. काम न धाम हे दे बानी हे दे।

अनुवाद- काम न धाम यहाँ हूँ यहाँ।

अर्थ- काम-धाम न करना लेकिन श्रेय लेने की कोशिश करना।

118.मँगनी के चनन, घिसें रघुनंनन।

अनुवाद- मँगनी के चंदन,घिसें रघुनंदन।

अर्थ- दूसरे की वस्तु का दुरुपयोग।

119. गाई गुन बछरू, पिता गुन घोड़ा,
नाहीं ढेर त थोड़ो थोड़ा।

अनुवाद- गाय गुण बछरू, पिता गुण घोड़ा,नहीं अधिक तो थोड़ो-थोड़ा।

अर्थ- गाय का गुण बछड़े में और पिता का गुण घोड़े में
थोड़ा बहुत अवश्य होता है।

120. एगो हरे गाँवभरी खोंखी।

अनुवाद- एक हर्रे,गाँवभर खाँसी।

अर्थ- एक अनार सौ बीमार।

121. बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया।

अर्थ- पैसे का ही महत्व होना।

122. लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।

अनुवाद- जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।

भावार्थ :- पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना।

123. बूनभर तेल करिआँवभरी पानी।

अनुवाद :- बूँदभर तेल और कमर तक पानी।

भावार्थ :- कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग।

124. गइयो हाँ अउरी भइँसियो हाँ।

अनुवाद :- गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।

भावार्थ :- गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना।

125. भगीमाने के हर भूत हाँकेला।

अनुवाद :- भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।

भावार्थ :- भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है।

126. दुलारी घिया के कनकटनी नाव।

अनुवाद :- दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।

भावार्थ :- ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है।

127. साँचे कहले साथ छुटेला।

अनुवाद :- सच्चाई कहने से साथ छूटता है।

भावार्थ :- सच्चाई कहने से दुश्मनी हो जाती है।

128. साँच के आँच नाहीं लागेला।

अनुवाद :- साँच को आँच नहीं।

भावार्थ :- सच्चा का अहित नहीं होता ना ही डर।

129. हँसुआ की बिआहे में खुरपी के गीत।

अनुवाद :- हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।

भावार्थ :- जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना।

130. साँपे के काटल रसियो देखी के डेराला।

अनुवाद :- जिसको साँप काट देता है वह रस्सी को भी देखकर डरता है।

भावार्थ :- दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है।

131. जइसन देखीं गाँव के रीती ओइसन उठाईं आपन भीती।

अनुवाद :- जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।

भावार्थ :- समय को देखते हुए काम करें।

132. दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।

भावार्थ :- दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना।

133. उपास से मेहरी के जूठ भला।

अनुवाद :- उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।

भावार्थ :- बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है।

134. मारे छोहन छाती फाटे अउरी आँसू के ठेकाने नाहीं।

अनुवाद :- मारे प्रेम से छाती फाटे और आँसू का ठिकाना ही नहीं।

भावार्थ :- दिखावामात्र। घड़ियाली आँसू बहाना।

135. जवने खातिर अलगा भइनीऽ उहे परल बखरा।

अनुवाद :- जिसके लिए अलग हुआ वही मेरे हिस्से में आ गया।

भावार्थ :- अनचाहा काम आदि जो करना पड़े।

136. ना नीमन गीती गाइबी, ना दरबार धके जाइबी।

अनुवाद :- ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा।

भावार्थ :- जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना।

137. जइसन बोअबऽ, ओइसन कटबऽ।

अनुवाद :- जैसा बोएँगे, वैसा काटेंगे।

भावार्थ :- कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति।

138. कोदो देके नइखीं पढ़ले।

अनुवाद :- कोदों देकर नहीं पढ़ा हूँ।

भावार्थ :- अपने आप को मूर्ख नहीं समझना।

139. सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तS फाटे बेवाइ।

भावार्थ :- सुख में सिहुला (एक त्वचा रोग) होता है, दुख में दिनाइ (एक प्रकार का खाज रोग)
और जब कर्म ही फूट जाता है तो पैर में बिवाई फट जाती है।

140. सउती के रीसि कठवती पर।

अनुवाद :- सौत का गुस्सा कठौत पर।

भावार्थ :- गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर।

141. एक तऽ बानर दूसरे मरलसी बीछी।

अनुवाद :- एक तो वानर दूसरे मार दी बिच्छी।

भावार्थ :- एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा।

142. आँधर गुरु बहिर चेला, माँगे गुड़ ले आवे ढेला।

अनुवाद- अंधा गुरु बहरा चेला,माँगे गुड़ लाए ढेला।

भावार्थ :- उलटा काम करना।

143. कोरा में लइका अउरी गाँवभरी ढ़िढोरा।

अनुवाद :- गोदी में लड़का और गाँवभर में ढ़िढोरा।

भावार्थ :- वास्तविकता को छोड़ अफवाह पर ध्यान।

144. मन चंगा तऽ कठवती में गंगा।

भावार्थ :- मन साफ होना चाहिए।

145. चिउरा के गवाह दही।

अनुवाद-चिउड़ा का गवाह दही।

अर्थ- एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।

146. का अंधरा की जगले अउरी का ओकरी सुतले।

अनुवाद- क्या अंधे व्यक्ति के जगने से और उसके सोने से।

अर्थ- अनुपयोगी।

147. केहु कही दी की कउआ कान लेगइल, तs आपन कान टोवबs आकि कउआ की पीछे दउड़बs।

अनुवाद- कोई कह देगा कि कौआ कान ले गया तो अपना कान देखेंगे या कौआ के पीछे भागेंगे।

अर्थ- अफवाह पर ध्यान न देकर वास्तविकता जानें।

148. बेहाया की पीठी पर रूख जामल ओकरा खातिर छाहें हो गइल।

अनुवाद- बेहया की पीठ पर पेड़ जम गया तो उसके लिए छाया हो गया।

अर्थ- निर्लज्जता से बाज न आना।

149. दान की बछिया के दाँत नाहीं गिनल जाला।

अनुवाद- दान की बछिया के दाँत नहीं गिनते।

अर्थ- मुफ्त में मिल रही वस्तु के अवगुण नहीं देखते।

150. जे ऊँखियारे ऊँखी नाहीं दी ऊ कलुहारे मिठा देई।

अनुवाद- जो गन्ने के खेत में गन्ना नहीं देगा वह
कोल्हुआड़ (गुड़ पकाने की जगह) में गुड़ देगा।

अर्थ- बड़बोला।

151. मुराइलो हँसुआ अपनीए ओर खींचेला।

अनुवाद- भोथरा हँसुआ भी अपनी ओर ही खींचता है।

अर्थ- पक्षपात करना।

152.चिरई के जान जा, लइकन के खेलौना।

अनुवाद- चिड़िया का जान जाए और बच्चों का खिलौना।

अर्थ- दूसरे के कष्ट को नजरअंदाज करना।

153. ना चलनी में पानी आइ ना मूंजी के बरहा बराई।

अनुवाद- ना चलनी में पानी आएगा ना मूँज का बरहा बन पाएगा।

अर्थ- असम्भव काम।

154. सूप त सूप चलनियो हँसे जवने में छपन गो छेद।

अनुवाद- सूप तो सूप छलनी भी हँसे जिसमें छप्पन छेद होता है।

अर्थ- अवगुणी व्यक्ति द्वारा दूसरे की कमियाँ निकालना।

155. बीछी के मंतरिए ना जाने अउरी साँपे की बिअली में हाथ डाले।

अनुवाद- बिच्छी का मंतर ही न जाने और साँप के बिल में हाथ डाले।

अर्थ- नासमझ होते हुए भी समझदार बनने का दिखावा करना।

156. लाते के देवता बाती से ना मानेला।

अनुवाद- लात का देवता बात से नहीं मानता है।

अर्थ- दुष्ट को समझाने से कोई फायदा नहीं।

157. राम मिलवने जोड़ी एगो आँधर एगो कोढ़ी।

अनुवाद- राम मिलाए जोड़ी एक आँधर एक कोढ़ी।

अर्थ- जो जैसा रहता है उसकी संगति भी वैसी ही मिल जाती है।

(दानी को दानी मिले, मिले सोम को सोम
अच्छा को अच्छा मिले, मिले डोम को डोम।)

158. जेकर बनरिया उहे नचावे, दूसर जा त काटे धावे।

अनुवाद- जिसकी बन्दरिया वही नचावे, दूसरा जा तो काटे धावे।

अर्थ- जिसकी जो वस्तु होती है उसका उपयोग वही अच्छी तरह कर सकता है।

159. आई आम चाहें जाई लबेदा।

अनुवाद- आएगा आम या जाएगा लबेदा।

अर्थ- हानि-लाभ की परवाह न करते हुए काम करना।

160. अपनी दही के केहु खट नाहीं कहेला।

अनुवाद- अपनी दही को कोई खट्टा नहीं कहता है।

अर्थ- अपनी वस्तु आदि की कोई बुराई नहीं करता है।

161. सब धन-धाम सरीरिएले।

अनुवाद- सब धन-धाम शरीर तक ही।

अर्थ- जबतक शरीर ठीक है तभी तक धन कमाया जा सकता है या घूमा (तीर्थयात्रा) जा सकता है।

162. रोवे गावे तूरे तान, ओकर दुनिया राखे मान।

अर्थ- नंगा (निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाला) की बात सब लोग मान लेते हैं।

163.रोवहीं के रहनी तवले अँखिए खोदा गइल।

अनुवाद- रोने को था ही तभी आँख खुद गई।

अर्थ- इच्छित काम होना। जैसा चाहना वैसा (घटना, काम आदि) हो जाना (नकारात्मक)।
जवन रोगिया के भावे उ बैदा फरमावे।

164. बढ़ जाती बतिअवले अउरी छोट जाती लतिअवले।

अर्थ- सभ्य बात से समझता है जबकि असभ्य (नीच) मारपीट से।

165. ए कुकुर तू काहें दूबर, दू घर के आवाजाई।

अनुवाद- ऐ कुक्कुर तुम क्यों दुर्बल, दो घर का आना-जाना।

अर्थ- धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

166. करिया बाभन गोर चमार।

अनुवाद- काला ब्राह्मण गोर चमार।

अर्थ- दोनों बहुत तेज (ढीठ) होते हैं।

167. गोर चमाइन गर्भे आनर।

अनुवाद- गोर चमाइन घमंड से अंधी।

अर्थ- गोर चमाइन को घमंड होता है।

168. घीव देख बाभन नरियात।

अनुवाद- घी देखते ही ब्राह्मण चिल्लाए।

अर्थ- मनचाही वस्तु मिलने पर भी नाटक करना।

169. तीन जाति अलगरजी, नाऊ, धोबी, दर्जी।

अर्थ- हजाम, धोबी और दर्जी बेपरवाह होते हैं।

170. तीन जाति गड़िआनर, ऊँट, बिदारथी, बानर।

अर्थ- ऊँट, विद्यार्थी और वानर अविवेकी होते हैं।

171. अहिर मिताई कब करे जब सब मीत मरी जाए।

अनुवाद- अहिर से दोस्ती जब करे जब सब दोस्त मर जाएँ।

अर्थ- अहिर से दोस्ती अच्छी नहीं होती।

172. छत्री के छौ बुधी, बभने के बारह, अहिरे के एके बुधी
बोलब त मारबी।

अनुवाद- क्षत्रिय की छह बुद्धि, ब्राह्मण की बारह, अहिर
की एक ही बुद्धि बोलोगे तो मारूँगा।

173. बाभन मुअतो खाला अउरी जिअतो खाला।

अनुवाद- ब्राह्मण मरकर भी खाता है और जीते भी खाता है।

अर्थ- ब्राह्मण से कभी पीछा नहीं छूटता।

174. जे पंडीजी बिआह करावेने उहे पिंडो परावेने।

अनुवाद- जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी।

अर्थ- अच्छा बुरा दोनों करना।

175. बभने में तिउआरी, कटहल के तरकारी अउरी हैजा के बेमारी।

अनुवाद- ब्राह्मण में तिवारी और कटहल की तरकारी एवं हैजा की बीमारी।

अर्थ- तीनों का भरोसा नहीं।

176. (बभने के)एक बोलावे तेरह धावे।

अनुवाद- ब्राह्मण को एक बार बुलाइए, तेरह बार आएगा।

अर्थ- ब्राह्मण खाने के लिए लालची होते हैं।

177. बिना बुलावे कुकुर धावे।

अनुवाद- बिना बुलाए कुत्ता जाए।

अर्थ- बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए।

178. धन के बढ़ल अछा हS, मन के बढ़ल नाहीं।

अनुवाद एवं अर्थ- धन का बढ़ना अच्छा है, मन का बढ़ना नहीं।

179. अकेले मियाँ रोवें की कबर खानें।

अनुवाद- अकेले मियाँ रोएँ कि कब्र खोदें।

अर्थ- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।

180. आन की धन पर तीन टिकुली।

अनुवाद- दूसरे की धन पर तीन टिकुली।

अर्थ- दूसरे की धन पर ऐश करना।

181. आन की धन पर तेल बुकुआ।

अनुवाद- दूसरे की धन पर तेल बुकुवा।

अर्थ- दूसरे की धन पर मजे करना।

बुकुवा= पानी के साथ पीसी हुई सरसों (जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं)
विशेषकर बच्चों, नई नवेली दुल्हन और जच्चा को।

182. इ कढ़ावें त उ घोंटावें।

अनुवाद- ये कुछ कहें तो वे हामी भरें।

अर्थ- गहरी यारी।

183. उखड़े बार नाहीं अउरी बरियार खाँव नाव।

अनुवाद- उखड़े बाल नहीं और बहादुर खाँ नाम।

अर्थ- मिट्टी के शेर। बनावटी वीर।

184. काम के न काज के, दुश्मन अनाज के।

अर्थ- अयोग्य पर खदक्कड़ (पेटू)।

185. कुत्ता काटे अनजान के अउरी बनिया काटे पहचान के।

अर्थ- कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचानवाले को ठगता है।

186. बिधी के लिखल बाँव ना जाई।

अनुवाद- विधि का लिखा गलत नहीम होगा।

अर्थ- विधि का लिखा अवश्य घटित होगा।

187. गइल माघ दिन ओनतीस बाकी।

अनुवाद- गया माघ दिन उनतीस बाकी।

अर्थ- समय (अच्छा हो या बुरा) व्यतीत होते देर नहीं लगती।

188. गाइ ओसर अउरी भँइस दोसर।

अनुवाद- गाय पहलौठी और भैंस दूसरे।

अर्थ- पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं।

189. जेकरी छाती बार नाहीं, ओकर एतबार नाहीं।

अनुवाद- जिसके सीने पर बाल नहीं, उसका भरोसा नहीं।

अर्थ- जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए।

190. मुरुगा ना रही त बिहाने नाहीं होई।

अनुवाद- मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी।

अर्थ- किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता।

191. देखादेखी पाप अउरी (और) देखादेखी धरम।

अर्थ- देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं।

192. जे केहु से ना हारे उ अपने से हारेला।

अनुवाद एवं अर्थ- जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है।

193. नरको में ठेलाठेली।

अनुवाद- नरक में भी ठेलाठेली।

अर्थ- कहीं भी आराम नहीं।

194. चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला।

अनुवाद- चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है।

अर्थ- गल्ती करे कोई और, पकड़ा जाए कोई और।

195. करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हS।

अनुवाद- कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है।

अर्थ- कर्जा लेना अच्छा नहीं होता।

196. ढुलमुल बेंट कुदारी अउरी हँसी के बोले नारी।

अनुवाद- हिलता बेंत कुदाल का और हँस के बोले नारी।

अर्थ- दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं।

197. कनवा के देखि के अँखियो फूटे अउरी कनवा बिना रहलो न जाए।

अनुवाद- काना व्यक्ति को देखकर आँख भी फूटे और उसके बिना काम भी न चले।

अर्थ- ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले।

198. हरिकल मानेला परिकल नाहीं मानेला।

अनुवाद- हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है।

हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो
गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है ।
(परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो
और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो)

अर्थ- खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया
जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता।

199. जेकर बहिन अंदर ओकर भाई सिकनदर।

अनुवाद- जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर।

अर्थ- भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है।

200. नाचे कूदे बंदर अउरी (और) माल खाए मदारी।

अर्थ- किसी दूसरे के मेहनताने पर ऐश करना।

201. रहे निरोगी जे कम खाया, काम न बिगरे जो गम खाया।

अर्थ- कम खाना और गम खाना अच्छा होता है।

202. केरा (केला), केकड़ा, बिछू, बाँस इ चारो की जमले नाश।

अर्थ- इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है।

203. सांवा खेती, अहिर मीत, कबो-कबो होखे हीत।

अनुवाद एवं अर्थ– साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं।

204. आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे।

अर्थ- उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है।

205. बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई।

अनुवाद- बकरी की माँ कबतक खर जिउतिया मनाएगी।

अर्थ- जो होना है वह होगा ही।

206. दस (आदमी) के लाठी एक (आदमी) के बोझ।

अर्थ- एकता में शक्ति है।

207. जवने पतल में खाना ओही में छेद करना।

अनुवाद- जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना।

अर्थ- विश्वासघात करना।

208. रोग के जड़ खाँसी।

अर्थ- खाँसी रोगों की जड़ है।

209. मन चंगा त कठवती में गंगा।

अनुवाद- मन चंगा तो कठवत में गंगा।

अर्थ- मन की पवित्रता सर्वोपरि है।

210. सौ पापे बाघ मरेला।

अनुवाद- सौ पाप करने पर बाघ मरता है।

अर्थ- अति सर्वत्र वर्जयेत। पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ही ।

211. बाभन,कुकुर, भाँट, जाति-जाति के काट।

अर्थ- ब्राह्मण ,कुत्ता और भाँट अपनी जाति के लोगों के ही दुश्मन होते हैं।

212. गाइ बाँधी के राखल जाले साड़ नाहीं।

अनुवाद- गाय बाँधकर रखी जाती है, साड़ नहीं।

अर्थ- मर्द की अपेक्षा औरत पर ज्यादे निगरानी रखना।

213. जीअत पर छूँछ भात, मरले पर दूध-भात।

अनुवाद- जीवित रहने पर केवल भात, मरने पर दूध-भात।

अर्थ- मरने के बाद आदर बढ़ जाना।

214. एगो पूते के पूत अउरी एगो आँखी के आँखि नाहीं कहल जाला।

अनुवाद- एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता।

अर्थ- संतान एक से अधिक ही अच्छी है।

215. लोहा के लोहे काटेला।

अनुवाद- लोहे को लोहा काटता है।

अर्थ- समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है।

216. मरले से भूतो भागी जाला।

अनुवाद- मारने से भूत भी भग जाता है।

अर्थ- कभी-कभी बिना कठोर हुए काम नहीं चलता। कभी-कभी अंगुली टेड़ी ही करनी पड़ती है।

217. खाली बाती से काम नाहीं चलेला।

अनुवाद- केवल बात से काम नहीं चलता।

अर्थ- काम करके दिखाना चाहिए केवल गप नहीं मारना चाहिए।

218. बुरा काम के नतीजो बुरे होला।

अनुवाद एवं अर्थ- बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है।

219. जाहाँ लूटी परे ताहाँ टूटी परे, जाहाँ मारी परे ताहाँ भागी परे।

अनुवाद- जहाँ लूट पड़े तहाँ टूट पड़े, जहाँ मार पड़े तहाँ भाग पड़े।

अर्थ- खुदगर्ज।

220. उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी, भीख निदान।

अर्थ- (दादा-परदादा के समय में) सबसे अच्छा खेती करना उसके बाद व्यापार करना और उसके बाद नौकरी और सबसे गया गुजरा काम भीख माँगना माना जाता था।

221. खाँ भीम अउरी हगें सकुनी।

अनुवाद- खाएँ भीम और दिशा मैदान करें शकुनी।

अर्थ- एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।

222. थूके सतुआ नाहीं सनाई।

अनुवाद- थूक से सतुआ नहीं सनेगा (गूँथेगा)।

अर्थ- अत्यधिक परिश्रम/सामग्री आदि की आवश्यकता होना। मेहनत की आवश्यकता।

223. जाति सुभाव ना छुटे, टाँग उठा के मुते। (कुत्ता)

अनुवाद- जाति स्वभाव ना छुटे, टाँग उठाकर मूते।

अर्थ- स्वभाव (प्रकृति) नहीं बदलता।

जैसे- चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

224. चलनी में दूध दुहे अउरी करमे के दोस दे।

अनुवाद- चलनी (छलनी) में दूध दुहना और कर्म को दोष देना।

अर्थ- गलती खुद करना और दोष दूसरे पर लगाना।

225. का हरदी के रंग अउरी का परदेशी के संग।

अनुवाद- क्या हरदी का रंग और क्या परदेशी का संग।

अर्थ- क्षणभंगुर वस्तुओं का क्या भरोसा।

226. आन के दाना हींक लगाके खाना।

अनुवाद- आन का दाना भरपेट (दबाकर) खाना।

अर्थ- सुलभ (या दूसरे की) वस्तु का दुरुपयोग।

227. जिअते माछी नाहीं घोंटाई।

अनुवाद- जिंदा मक्खी नहीं घोंटी जाती (खाई जाती)।

अर्थ- अपने सामने ही कोई ग़लती करे तो उसको नजरअंदाज करना मुश्किल होता है।

228. एतना बड़ाई अउरी फटही रजाई।

अनुवाद- इतनी बड़ाई और फटी हुई रजाई।

अर्थ- उस योग्य न होने पर भी अपने को उससे बढ़ चढ़कर बताना।

(ऊँची दुकान, फीका पकवान)

229. हुँसीयार लइका हगते चिन्हाला।

अनुवाद- होशियार लड़का पाखाना करते समय भी पहचाना जाता है ।

अर्थ- होनहार विरवान के होत चिकने पात।

230. धोबिया अपनी गदहवो के बाबू कहे।

अनुवाद- धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे।

अर्थ- मीठा बोलें और सम्मानित बोलें।
अपनी बोली (भाषा) कभी खराब न करें, सुबोली बोलें न कि कुबोली।

231. कुल अउरी कपड़ा रखले से।

अनुवाद- कुल (वंश) और कपड़ा हिफाजत करने से।

अर्थ- कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे।

232. आन्हर कुकुर बतासे भोंके।

अनुवाद- अंधा कुत्ता हवा बहने पर भी भोंके।

अर्थ- ऐसे ही या थोड़ा-सा भी संदेह होने पर हंगामा करना।

(जानना ना समझना और ऐसे ही बकबक शुरु कर देना)

233. दाँत बा तS चाना नाहीं, चाना बा तS दाँत नाहीं।

अनुवाद- दाँत है तो चना नहीं, चना है तो दाँत नहीं।

अर्थ- समयानुसार आवश्यक वस्तु की कमी।

234. ओरवानी के पानी बड़ेरी नाहीं चढ़ेला।

अनुवाद- ओरवानी (मढ़ई का निचला हिस्सा जहाँ से पानी गिरता है) का पानी
बड़ेरी (मथानी यानि मड़ई का सबसे ऊपरी भाग) नहीं चढ़ता।

अर्थ- असम्भव या विपरीत काम।

235. घर में भूजी भाँग नाहीं बीबी पादे चिउड़ा।

अनुवाद- घर में भूजिया (चावल), भाँग नहीं और बीबी पादे चिउड़ा।

अर्थ- उस योग्य न होने पर भी अपने को उससे बढ़ चढ़कर बताना।
-अत्यधिक बहसना।

236. हर द हरवाह द अउरी गाड़ी खोदे के पैना द।

अनुवाद- हल दीजिए, हलवाहा दीजिए और बैल
को हाँकने के लिए डंडा भी दीजिए।

अर्थ- पूरी तरह से दूसरे पर निर्भर होने वाले आलसी जो सब कुछ
दूसरे से ही अपेक्षा करते हैं उनके लिए कहा जाता है।

237. लाठी के मारल भुला जाला लेकिन बाती के नाहीं।

अनुवाद- लाठी की मार भुल जाती है लेकिन बात की नहीं।

अर्थ- बात रूपी तीर से घायल व्यक्ति का घाव कभी नहीं भरता।

238. ओस चटले से पिआस नाहीं बूझी।

अनुवाद- ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती।

अर्थ- आवश्यकता से बहुत ही कम की प्राप्ति से क्या लाभ।

239. देही ना दासा गाड़ी तेलवासा।

अनुवाद- देह न दासा गाड़ तेलवासा (तेल लगाना)।

अर्थ- अच्छी शरीर न होने पर भी अत्यधिक बनाव-श्रृंगार
करनेवालों के लिए कहा जाता है।

240. गारी में लसालस नाहीं पादे ठसाठस।

अनुवाद- गाड़ में लसालस नहीं पादे ठसाठस।

अर्थ- अत्यधिक बहसनेवाले को कहा जाता है।

241. खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला।

अर्थ- भोजन सदा समय पर करें और कुसंगत से बचें।

242. जात-जात के भेदिया जात-जात घर जाए
बाभन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए।

अर्थ- ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं।

243. मरदे के खाइल अउरी मेहरारू के नहाइल, केहू देखेला नाहीं।

अनुवाद- मर्द का खाना और औरत का नहाना, कोई नहीं देख पाता।

अर्थ- मर्द को खाने में और औरत को नहाने में अधिक समय नहीं लगाना चाहिए।

244. लामही से पाँव लागी लेहल ठीक ह।

अनुवाद- दूर से ही प्रणाम कर लेना अच्छा है।

अर्थ- कभी-कभी अत्यधिक मेल-जोल ठीक नहीं।

245. चमरा की मनवले डांगर नाहीं मरेला।

अनुवाद- चमार के मनाने से पशु नहीं मरता।

अर्थ- वही होगा जो भगवान चाहेगा।

246. इडिल-मिडिल के छोड़ आस, धर खुरपा गढ़ घास।

अनुवाद- इडिल-मिडिल का छोड़िए आस, खुरपा पकड़कर गढ़िए घास।

अर्थ- पढ़ने में मन न लगे तो कोई और काम करना ही अच्छा है।

247. खिचड़ी खात के नीक लागे अउरी बटुली माजत के पेट फाटे।

अनुवाद- खिचड़ी खाते समय अच्छी लगे और बरतन धोते समय परेशानी हो।

अर्थ- बिना मेहनत के आराम करना ठीक नहीं।

248. फटकी के लS अउरी अउरी फटकी के दS।

अनुवाद- फटक कर लीजिए और फटक कर दीजिए।

अर्थ- हिसाब बराबर रखना। मरौवत न रखना।

249. अहिर से इयारी, भादो में उजारी।

अनुवाद- अहिर से यारी, भादों में उजारी (उजाड़)।

अर्थ- अहिर की दोस्ती ठीक नहीं।

250. बभने के बनावल नाहीं त बभने खाई, नाहीं त बैले खाई।

अनुवाद- ब्राह्मण का बनाया नहीं तो ब्राह्मण खाएगा नहीं तो बैल खाएगा।

अर्थ- ब्राह्मण भोजन या तो बहुत ही अच्छा बनाता है नहीं तो बहुत ही खराब।

251. जनम के संघाती सब केहु ह लेकिन करम के नाहीं।

अनुवाद- जनम के दोस्त सभी होते हैं लेकिन कर्म का कोई नहीं।

अर्थ- कर्म खुद करना पड़ता है।

252. बहसू के नव गो हर, खेते में गइल एको नाहीं।

अनुवाद- बहसनेवाला के पास नौ हल, पर खेत में गया एक भी नहीं।

अर्थ- केवल बहसने से काम नहीं चलता।

253. करब केतनो लाखी उपाई, बिधी के लिखल बाँव न जाई।

अनुवाद- करेंगे कितना भी लाख उपाय, विधि का लिखा घटित होगा ही।

अर्थ- जो भाग्य में है वह होकर रहेगा।

254. चालीस में चारी कम (३६), हजाम, पंडीजी सलाम।

अनुवाद- चालीस में चार कम हजाम, पंडितजी सलाम।

अर्थ- हजाम छत्तीसा (बहुत चालाक) होते हैं और उनका टक्कर केवल पंडित ही ले सकता है।

255. उँखी बहुत मीठाला त ओमे कीड़ा पड़ी जाने कुली।

अनुवाद- गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं।

अर्थ- संबंध की एक सीमा होनी चाहिए।

256. लाठी के देवता बाती से नाहीं मानेलें।

अनुवाद- लाठी के देवता बात से नहीं मानते।

अर्थ- दुष्ट समझाने से नहीं समझता। कभी-कभी अंगुली टेड़ी करना आवश्यक होता है।

257. खोंसू के जान जा अउरी खवइया के सवादे ना मिले।

अनुवाद- खोंसू (बकरा) का जान जाए और खानेवाले को स्वाद ही न मिले।

अर्थ- बहुत ही हुज्जत करना ताकि कोई परेशान रहे।

258. चोरवा के मन बसे ककड़ी की खेत में।

अनुवाद- चोर का मन बसे ककड़ी के खेत में।

अर्थ- आदत नहीं जाती।

259.बाँसे की कोखी रेड़ जामल।

अनुवाद- बाँस की कोंख से रेड़ पैदा होना।

अर्थ- कुपुत्र होना।

260. बाभन बुधी।

अनुवाद- ब्राह्मण बुद्धि।

अर्थ- चालूपना ।प्रयोग– यहाँ ब्राह्मण बुद्धि नहीं चलेगी।

261. नीक रही करम, त का करीहें बरम।

अनुवाद- अच्छा रहेगा करम, तो क्या करेंगे बरम (एक गाँव के देवता)।

अर्थ- अपना कर्म हमेशा अच्छा रखना चाहिए।

262. पैर पुजाइल बा पीठी नाहीं।

अनुवाद- पैर की पुजा हुई है पीठ की नहीं।

अर्थ- एक सीमा तक ही सहा जा सकता है।

(यह कहावत उदंड रिस्तेदार जैसे उदंड दमाद आदि के लिए कही जाती है)

263. जेतने मुँह ओतने बातें।

अनुवाद- जितने मुँह उतनी बातें।

अर्थ- सब अपनी-अपनी राय देते हैं या अपनी-अपनी बुद्धि से एक ही बात को अलग-अलग ढंग से कहते हैं।

264. कुकुरे के पोंछी बारह बरिस गाड़ी के राख, टेड़े के टेड़े रही।

अनुवाद- कुत्ते की पूँछ को बारह वर्ष गाड़कर रखिए, टेड़ी की टेड़ी रहेगी।

अर्थ- स्वभाव (प्रकृति) बदलना बहुत ही कठिन होता है।

265. भगवान के बाँही बहुत लमहर ह।

अनुवाद- भगवान की बाँह बहुत लंबी होती है।

अर्थ- भगवान सबकी रक्षा करता है।

266. भूखे भजन न होई गोपाला, ले लS आपन कंठी माला।

अनुवाद- भूखे भजन न होय गोपाला, ले लीजिए अपनी कंठी माला।

अर्थ- भूखे रहकर कोई काम नहीं होता।

267. जब भगवान मुँह चिरले बाने त खाएके देबे करीहें।

अनुवाद- जब भगवान मुँह बनाए हैं तो खाना भी देंगे।

अर्थ- अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।

268. माई के जिअरा (मनवा) गाई अइसन, बाप के जिअरा कसाई अइसन।

अनुवाद- माँ का हृदय गाय के समान, बाप का हृदय कसाई के समान।

अर्थ- बाप की अपेक्षा माँ अत्यधिक स्नेही होती है।

269. बड़ रहें जेठानी त राखें आपन पानी।

अनुवाद- बड़ रहें जेठानी तो रखें अपना पानी (इज्जत)।

अर्थ- अपनी इज्जत अपने हाथ में है।

270. लाजे भवही बोले ना अउरी सवादे भसुर छोड़े ना।

अनुवाद- लज्जा के कारण भवज बोले नहीं और स्वाद के लिए भसूर (जेठ- पति का जेठा भाई) छोड़े नहीं।

अर्थ- किसी की चुप्पी या मजबूरी का नाजायज फायदा उठाना।

271. वेश्या में नाव लिखाइल त का मोट अउरी का पातर।

अनुवाद- वेश्या में नाम लिख गया तो क्या मोटा और क्या पतला।

अर्थ- जो काम करना है उसे करना है चाहे वह छोटा हो या बड़ा।

272. आपन पुतवा पुतवा ह अउरी सवतिया के पुतवा दूतवा ह।

अनुवाद- अपना पुत पुत और सौत का पुत दूत।

अर्थ- अपने लोगों को ज्यादे महत्त्व देना और दूसरे को हीन समझना।

273. रसरी जरी गइल पर एंठ नाहीं गइल।

अनुवाद- रस्सी जल गई पर ऐंठ नहीं गई। (घमंड न जाना)

274. मन मोरा चंचल, जिअरा उदास, मन मोरा बसे इयरवा के पास।

अनुवाद- मन मेरा चंचल, मन उदास, मन मेरा बसे यार के पास।

अर्थ- मन की चंचलता या किसी काम में मन न लगना।

275.अपने खाईं, बिलरिया लगाईं।

अनुवाद- खुद खाना और बिल्ली को लगाना।

अर्थ- गलत काम खुद करके दूसरे के मत्थे मढ़ना।

276. मन में आन, बगल में छुरी, जब चाहे तब काटे मूरी।

अनुवाद- मन में कुछ और, बगल में छुरी, जब चाहो तब काटो मुंडी (सिर)।

अर्थ- बगुला भगत।

277. सरी पाकी जइहें, गोतिया ना खइहें, गोतिया के खाइल, अकारथ जइहें।

अनुवाद- सड़-पक जाएगा, दूसरा न खाएगा, दूसरे का खाया, अकारथ (बेकार) जाएगा।

अर्थ- खराब हो जाने देना लेकिन दूसरे को उपयोग न करने देना।

278. आपे-आपे लोग बिआपे, केकर माई केकर बापे।

अनुवाद- अपना-अपना लोग चिल्लाएँ, किसकी माँ किसका बाप।

अर्थ- सबको अपनी ही पड़ी है या सब अपना ही लाभ देख रहे हैं यहाँ तक कि माँ-बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है।

279. आपन पेट त सुअरियो पाली लेले।

अनुवाद- अपना पेट तो सुअर भी पाल लेती है।

अर्थ- अपना पेट तो कोई भी पाल लेता है इसमें कौन-सी बड़ाई है। मानव वही जो सबका पेट भरे।

280. घीउ के लड्डू टेड़ों भला।

अनुवाद- घी का लड्डू टेड़ों भला।

281. एक घंटा माँगे त सवेसेर अउरी (और) दिनभर माँगे त सवे सेर।

अर्थ- मेहनत के बाद भी उन्नति न होना। जस का तस रहना।

282. बेटा के भुजा अउरी दमादे के जाउर।

अनुवाद- बेटा को कुरमुरा और दमाद को खीर।

अर्थ- अपनों का अनादर और दूसरों का सम्मान।

283. बुन्नी नाचे थुन्नी पर, फुहरी बड़ेरी पर।

अनुवाद- बुन्नी नाचे थूनी पर, फूहड़ी (फूहड़ महिला) बड़ेर (मड़ई का सबसे ऊपरी भाग) पर।

अर्थ- डिंग हाँकना (एक से बड़कर एक)।

284. पाईं त रस लाई, नाहीं त घर-घर आगी लगाईं।

अनुवाद- पाऊँ तो रस लाऊँ, नहीं तो घर-घर आग लगाऊँ।

अर्थ- मिलने पर खुश और न मिलने पर हंगामा।

285. खेलबी ना खेले देइबी, खेलिए बिगाड़बी।

अनुवाद- न खेलूँगा न खेलने दूँगा, खेल को बिगाड़ुँगा।

अर्थ- न खुद अच्छा काम करना न दूसरे को करने देना।

286. अपनी दुआरे, कुतवो बरिआरे।

अनुवाद- अपने दरवाजे पर कुत्ता भी बलवान।

अर्थ- अपनी गली में एक कुत्ता भी शेर होता है।

287. अभागा गइने ससुरारी अउरी उहवों माँड़े-भात।

अनुवाद- अभागा गए ससुरार और वहाँ भी माँड़े-भात।

अर्थ- समय खराब होता है तो चारों तरफ से।

288. हरीसचंद पर विपती पड़ी त पकवल मछरी जल में कूदी।

अनुवाद- हरिशचंद्र पर विपत्ति पड़ी तो (आग में) पकाई हुई मछली जल में कूदी।

अर्थ- विपत्ति बहुत बुरी होती है।

289. आपन निकाल मोर नावे दे।

अनुवाद- अपना निकालो और मेरा डालने दो।

अर्थ- केवल अपना स्वार्थ देखना।

290. इजती इजते पर मरेला।

अनुवाद- इज्जतदार इज्जत पर मरता है।

अर्थ- इज्जतदार अपनी इज्जत के लिए सबकुछ न्यौछावर कर देता है।

291. उधिआइल सतुआ, पितर के दान।

अनुवाद- उड़ा हुआ सत्तू पितृ को दान।

अर्थ- अनुपयोगी (खराब) वस्तु दूसरे को देना।

292. बइठले ले बेगारी भला।

अनुवाद- बेकार से बेगार भला।

अर्थ- खाली बैठना ठीक नहीं। हमेशा कुछ न कुछ (अच्छा ही) करते रहना ही ठीक होता है।

293. बिन मारे मुदई(शत्रु) मरे, की खड़े ऊँख बिकाए(गन्ने की खड़ी फसल बिक जाए),
बिना दहेज के बर मिले तो तीनों काम बन जाए।

294. उत्तर लउका लउके, दखिन गरजे मेह,
ऊँचे दवड़ी नधइह, कही गइने सहदेव।

अर्थ- उत्तर दिशा में बिजली चमके और दक्षिण में बादल गरजे तो वर्षा अवश्य होती है।

295. सईयाँ के मन-मुँह पाईं तS सासु के झोंटा नेवाईं।

अनुवाद- पति के मन की बात समझूँ तो सासु का बाल नोंचू।

अर्थ- संगति मिलते ही गलत काम करना।

296. जियते पिया बाती न पूछें,मुअते पिपरवा पानी।

अनुवाद-जीवित रहने पर पिया बात न पूँछे,मरते ही पीपल में पानी।

अर्थ- दिखावा करना।

297.नाया लुगा नौ दिन, लुगरी बरीस दिन।

अनुवाद- नया कपड़ा नौ दिन, फटा-पुराना सालभर।

अर्थ- अपना पुराना ही काम आता है। नया भी कुछ दिन के बाद पुराना हो जाता है।

298. सराहल धिया डोम घरे जाली।

अनुवाद- सराहना की हुई पुत्री ही डोम के घर जाती है।

अर्थ- अत्यधिक बढ़ाई कर देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं।

299. भगवान की घर में देर बा, अंधेर नाहीं।

अनुवाद- भगवान के घर में देर है, अंधेर नहीं।

300. बाहे न बिआ उ बतिए कहा।

अनुवाद- गाभिन हो न बच्चा दे वह बतिया कही जाए।

अर्थ- उम्र बढ़ती ही रहती है।

301.जइसन माई ओइसन धिया, जइसन काकड़ ओइसन बिया।

अनुवाद- जैसी माँ वैसी पुत्री, जैसा काकड़ वैसा बीज।

अर्थ- पुत्री में माँ का गुण होता है।

संकलक-
प्रभाकर पाण्डेय

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સોપારી કેરો કટકો મારો…


સોપારી કેરો કટકો મારો

સોપારી કેરો કટકો મારો,
હાથ થી છૂ ટી ગ્યો,
રાણો રૂંવે બંધ બારણીયે,
એનો માવો ખૂટી ગ્યો….
સોપારી કેરો કટકો..

ટકતો નહીં એનો ટાંટિયો ઘરમાં,
આજ ઈ થંભી ગ્યો,
જેની તેની પાસે માંગતો ભટકે,
કોક તો માવો દયો….
સોપારી કેરો

મૂછ મરડીને ખોંખારા ખાતો,
ઈ મીંદડી બની ગ્યો,
માવા વિના એનો મૂડ નો જામે,
ઈ ગોટો વળી ગ્યો….
સોપારી કેરો કટકો

ડાચું બગાડી ને ડેલીએ બેઠો,
એનો ફ્યુઝ તો ઉડી ગ્યો,
એકલો બેઠો એ બૈડો વલૂરે,
કોઈ ચપટી તમાકુ દયો…
સોપારી કેરો કટકો

કોઈએ પૂછ્યું: “કેમ છો”,
એનો મગજ છટકી ગ્યો,
બધા હાર્યે ઈ બાઝવા દોડે,
એને બેક દાણા કોક દયો…
સોપારી કેરો કટકો

માતા મનાવે પિતા હમજાવે,
એનો પીતો છટકી ગ્યો,
ભૂરો ભૂરાયો ભાગે ભટકે,
ગામ ગોકીરો થ્યો…
સોપારી કેરો કટકો

માંડ માવાનો મેળ પડ્યો ત્યાં,
પોલીસ પુગી ગ્યો,
એકસો પાંત્રી એકકોર રઈ ગ્યો,
વાંહો કાબરો થ્યો…
સોપારી કેરો કટકો

પત્ની હમજાવે પ્રેમથી એને,
વડકે આવી ગ્યો,
જોરથી ઝઇડકી મારી જોરુએ,
મિયાંની મીંદડી થ્યો….
સોપારી કેરો કટકો….😄😷
~ ફાકીદાસ તમાકુવીર ચુનાવાળા.