Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

1921 में केरल में मोपला के दंगे हुए


कुमार सौरभ

1921 में केरल में मोपला के दंगे हुए।जब भारत गुलाम था तब सन 1919 में पुरे देश में एक बहुत ही बड़ा आंदोलन हुआ था, जिसको खिलाफत आन्दोलन कहा जाता है | वो आन्दोलन तुर्की के खिलाफा पद को हांसिल करने के लिए किया गया था जिसमे भारत के सभी मुसलमानों ने हिस्सा लिया था बाद में इस आन्दोलन को पुरे देश के लोगो ने सपोर्ट किया था. इसी आन्दोलन में से ही भड़क उठा था मोपला विद्रोह. चलिए जानते है इसके बारे में पूरी जानकारी |

मोपला विद्रोह जब तुर्की के खलीफा पद के लिए मुस्लिमो द्वारा खिलाफत आन्दोलन छेड़ा गया तब महात्मा गाँधी ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया और पुरे देश को जोड़ने के किशिस की. खिलाफत आन्दोलन जोर-शोर से आगे बढ़ रहा था और पुरे देश के हिन्दू-मुस्लिम एक हो कर इस आन्दोलन की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन लक्ष्य अलग-अलग था. हिन्दूओ इस आन्दोलन इस लिए लड़ रहे थे की स्वराज्य प्राप्त हो वही मुस्लिम तुर्की के खलीफा पद के लिए. यह आन्दोलन मालबार के एरनद और वल्लूवानद तालुका में जोरो से थनक रहा था. इसी वजह से ब्रिटिशो ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए. इसके लिए केरल में स्थित मोलबार के मोपलाओ(वहा के मुसलमानो) ने ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह कर दिया |उस वक्त मोपला में इस्लाम धर्म में धर्मांतरित अरबी और मलयामी मुसलमान थे. शुरुआत में तो यह विद्रोह अंग्रेजो के खिलाफ ही था. इसको महात्मा गाँधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओ का सहयोग हांसिल था. इस आंदोलन के बड़े नेता के तौर पर ली. मुसलियार थे. 15 फरवरी 1921 के दिन अंग्रेज सरकार ने वो पुरे इलाके को घेर लिया और वहा के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी वजह से यह आन्दोलन वहा के स्थानीय मोपला मुसलमानों ने अपने सिर पर ले लिया. अब क्यूंकि मोपला के मुस्लिम लोग इस आंदोलन से बोखला गए थे और ब्रिटिशो का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते थे इसी वजह से उन्होंने अपना आक्रोश वहा के हिंदुओ पर निकाला |इस वक्त मोपला में ज्यादा बस्ती मुस्लिमो की ही थी इसी वजह से उन लोगो ने हिदू परिवार पर हमला कर दिया. वहा के हिंदुओ में ज्यादातर गरीब किशान ही थे. मोपला ओ के इन मुसलमानों ने हिन्दू की भारी मात्रा में कत्ले आम शुरू कर दी. उन लोगो ने देख ते ही देखते मोपाला के 20 हजार से भी ज्यादा हिन्दूओ को काट दिया और कई सारी ओरतो का बलात्कार किया. इसके आलावा हजारो हिन्दूओ को जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन कर दिया गया. यह विद्रोह सभी मुसलमानों ने हर एक शहर में शुरू कर दिया जहा पर उनकी संख्या ज्यादा थी और सभी जगह पर हिंदुओ का कत्लेआम और धर्मपरिवर्तन करदिया गया. उसके जवाब भी हिन्दू-मुस्लिमो के बिच में दंगे फर्साद शुरू हो गए. देश भर में भड़क उठी इस चिंगारी की वजह से ब्रिटिश सरकार ने सेना की मदद से इस पर काबू पाने का प्रयत्न किया.ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के नेता वडाकेविट्टील मुहम्मद को गिरफ्तार करने की कोशिस की जिसके जवाब में मोपला के 2000 मुसलमानों अंग्रेजो को घेर लिया और अन्दर जाने नहीं दिया. दुसरे दिन ब्रिटिस सरकार ने और ज्यादा सैनिको के साथ वहा पर फिर से डाका डाला. उस वक्त जो भी मुसलमान सामने आया उनको गोली मार के हत्या कर दी और कई सारे मोपला विद्रोहीओ को गिरफ्तार कर दिया गया. वही दूसरी तरफ हिंसा भड़क उठी थी और उसी वक्त गाँधीजी ने कहा की मोपला विद्रोह में जो भी मुसलमान मारे गए है वो सब क्रन्तिकारी थे और सहीद कहेलाएंगे. गाँधीजी ने इसी वक्त अपना असहयोग आन्दोलन भी वापिस लेलिया. जब हिन्दूओ के कुछ नेताओ ने गांधीजी से कहा की यह दंगे की शुरुआत मोपला विद्रोह से हुई थी और वहा के मुसलमानो ने दंगे शुरू करके हमारी मा-बेटोओ का बलत्कार किया था इसके जवाब में गांधीजी ने कहा था की इसमें मुसलमानों की कोई भी गलती नहीं है अगर हिन्दू लोग अपनी मा-बेटी की रक्षा नहीं कर सकते तो इसमें गलती हिंदुओ की ही है ना की मुसलमानों की. गांधीजी की इन्ही हरकतों के कारन उस वक्त कई सारे लोग कांग्रेस के खिलाफ हो गए थे. उस वक्त RSS ने भी इसका विरोध किया था. भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्र शेखर आजाद, सहित कई सारे नेता उनके खिलाफ हो गए थे. 19 नवम्बर 1921 को जब 100 मोपला विद्रोही को ट्रेन में बंध करके ले जा रहे थे तब 5 घंटे में ही सारे मोपलाओ की हत्या हो गई थी |यह हत्या किसने की वो ब्रिटिशो को भी मालूम नहीं है. मोपला विद्रोह में कई हजारो हिंदुओ का कत्लेआम हुआ था और हजारो की संख्या में धर्मपरिवतर्न किया गया था. और अच्म्बे की बात तो यह थी की खुद कांग्रेस के जाने माने नेता भी “मुस्लिम तष्टिकरण की घातक निति अपना” रहे थे. इसी वजह से हिन्दू आर्य समाज के बड़े नेता और हिन्दू धर्मगुरु स्वामी श्रद्धानन्द काग्रेस से परेसान हो गए और उनसे छेड़ा फाड़ दिया. जिसकी वजह से गाधीजी सहित कई सारे कांग्रेस के नेताओ को तक्लिफ पहोची थी. कांग्रेस से अलग होकर स्वामीजी ने हिंदूकी रक्षा के लिए शुद्धिकरन आंदोलन की शुरुआत की. मदन मोहन मालवीय तथा पूरी के शंकराचार्य स्वामी ने भी अपना समर्थन दिया. उस वक्ता आर्यसमाज की और से शुद्धिकरन आंदोलन चलाया गया और कई सारे ने मुस्लिम बने हिंदुओ का फिर से शुद्धिकरण करके हिंदू बना दिया. इस आन्दोलन के दौरान अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी स्वामीजी के कक्ष में उनसे मिलने आया और गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. वो समय था |23 दिसंबर 1926. हलाकि अब्दुल रंगे हाथो पकड़ा गया और उनको फंसी की सजा सुनाई गई थी. स्वामी श्रद्धानन्द की हत्या के दो दिन बाद गोहाटी में आयोजित काग्रेस के अधिवेशन में शोक सभा रखी गई. उस शोक सभा में में भारत के महात्मा कहेजाने वाले गाँधी ने जो कहा वो सुनकर सभी का खून खोल उठेगा. गांधीजी ने कहा की “अब्दुल रशीद को मेने भाई कहा है और में इस बात को फिर से दोहराता हु. में अब्दुल को स्वामीजी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हु. वास्तव में दोषी वो लोग है जिन्हों ने आपस में दंगे शुरू किए इसी लिए में इस सभा में स्वामीजी की हत्या के लिए सोक प्रगट नहीं कर रहा हु. यह अवसर शोक प्रगट करने का नहीं है. में अब्दुल को निर्दोष मान रहा हु इसी लिए इसका केस(वकालत) में लडूंगा.” अब जब देश के इतने बड़े नेता और वकिल इसका केस लडेगा तो कोन इसको सजा दे सकता है. गांधीजी की वजह से अब्दुल को सिर्फ 2 ही साल में निर्दोष करार देकर छोड़ दिया गया. गाँधी ने यह जानते हुए भी अब्दुल को निर्दोष साबित किया की उन्होंने भारत के सबसे बड़े हिंदू धर्म गुरु की हत्या की थी. तो दस्तो एसे थे हमारे महान गांधीजी जो हिंदुस्तान के कम और पडोशी मुल्क के प्रेमी ज्यादा थे |

Author:

Buy, sell, exchange old books

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s