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महाराणा प्रताप कि असली गाथा


सिद्धार्थ गुप्ता

महाराणा प्रताप कि असली गाथा👍🚩🔱🚩
क्या आपने कभी पढ़ा है कि हल्दीघाटी के बाद अगले १० साल में मेवाड़ में क्या हुआ?? इतिहास से जो पन्ने हटा दिए गये हैं उन्हें वापस संकलित करना ही होगा क्यूँकि वही हिन्दू रेजिस्टेंस और शौर्य के प्रतीक हैं।

इतिहास में तो ये भी नहीं पढ़ाया गया है कि हल्दीघाटी युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने कुंवर मानसिंह के हाथी पर जब प्रहार किया तो शाही फ़ौज पाँच छह कोस दूर तक भाग गई थी और अकबर के आने की अफवाह से पुनः युद्ध में सम्मिलित हुई है,

ये वाकया अबुल फज़ल की पुस्तक अकबरनामा में दर्ज है, क्या हल्दी घाटी अलग से एक युद्ध था..या एक बड़े युद्ध की छोटी सी घटनाओं में से बस एक शुरूआती घटना….

महाराणा प्रताप को इतिहासकारों ने हल्दीघाटी तक ही सीमित करके मेवाड़ के इतिहास के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया है, वास्तविकता में हल्दीघाटी का युद्ध, महाराणा प्रताप और मुगलो के बीच हुए कई युद्धों की शुरुआत भर था।

मुग़ल न तो प्रताप को पकड़ सके और न ही मेवाड़ पर आधिपत्य जमा सके, हल्दीघाटी के बाद क्या हुआ वो हम बताते हैं। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा के पास सिर्फ 7000 सैनिक ही बचे थे,

और कुछ ही समय में मुगलों का कुम्भलगढ़, गोगुंदा, उदयपुर और आसपास के ठिकानों पर अधिकार हो गया था, उस स्थिति में महाराणा ने “गुरिल्ला युद्ध” की योजना बनायीं और मुगलों को कभी भी मेवाड़ में सेटल नहीं होने दिया. महाराणा के शौर्य से विचलित अकबर ने उनको दबाने के लिए 1576 में हुए हल्दीघाटी के बाद भी हर साल 1577 से 1582 के बीच एक एक लाख के सैन्यबल भेजे जो कि महाराणा को झुकाने में नाकामयाब रहे।

हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप के खजांची भामाशाह और उनके भाई ताराचंद मालवा से दंड के पच्चीस लाख रुपये और दो हज़ार अशर्फियाँ लेकर हाज़िर हुए,

इस घटना के बाद महाराणा प्रताप ने भामाशाह का बहुत सम्मान किया और दिवेर पर हमले की योजना बनाई। भामाशाह ने जितना धन महाराणा को राज्य की सेवा के लिए दिया उस से 25 हज़ार सैनिकों को 12 साल तक रसद दी जा सकती थी।

बस फिर क्या था..महाराणा ने फिर से अपनी सेना संगठित करनी शुरू की और कुछ ही समय में 40000 लड़ाकों की एक शक्तिशाली सेना तैयार हो गयी।

उसके बाद शुरू हुआ हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग जिसको इतिहास से एक षड्यंत्र के तहत या तो हटा दिया गया है या एकदम दरकिनार कर दिया गया है, इसे बैटल ऑफ़ दिवेर* कहा गया गया है।

बात सन १५८२ की है, विजयदशमी का दिन था और महराणा ने अपनी नयी संगठित सेना के साथ मेवाड़ को वापस स्वतंत्र कराने का प्रण लिया. उसके बाद सेना को दो हिस्सों में विभाजित करके युद्ध का बिगुल फूँक दिया।

एक टुकड़ी की कमान स्वंय महाराणा के हाथ थी दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह कर रहे थे, कर्नल टॉड ने भी अपनी किताब में हल्दीघाटी को Thermopylae of Mewar और दिवेर के युद्ध को राजस्थान का मैराथन बताया है।

ये वही घटनाक्रम हैं जिनके इर्द गिर्द आप फिल्म 300 देख चुके हैं, कर्नल टॉड ने भी महाराणा और उनकी सेना के शौर्य, तेज और देश के प्रति उनके अभिमान को स्पार्टन्स के तुल्य ही बताया है जो युद्ध भूमि में अपने से 4 गुना बड़ी सेना से यूँ ही टकरा जाते थे।

दिवेर का युद्ध बड़ा भीषण था, महाराणा प्रताप की सेना ने महाराजकुमार अमर सिंह के नेतृत्व में दिवेर थाने पर हमला किया, हज़ारो की संख्या में मुग़ल, राजपूती तलवारो बरछो भालो और कटारो से बींध दिए गए।

युद्ध में महाराजकुमार अमरसिंह ने सुलतान खान मुग़ल को बरछा मारा जो सुल्तान खान और उसके घोड़े को काटता हुआ निकल गया। उसी युद्ध में एक अन्य राजपूत की तलवार एक हाथी पर लगी और उसका पैर काट कर निकल गई।

महाराणा प्रताप ने बहलेखान मुगल के सर पर वार किया और तलवार से उसे घोड़े समेत काट दिया, शौर्य की ये बानगी इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती है. उसके बाद यह कहावत बनी कि मेवाड़ में सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट दिया जाता है।

ये घटनाये मुगलो को भयभीत करने के लिए बहुत थी।
बचे खुचे ३६००० मुग़ल सैनिकों ने महाराणा के सामने आत्म समर्पण किया, दिवेर के युद्ध ने मुगलो का मनोबल इस तरह तोड़ दिया कि जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों को मेवाड़ में बनायीं अपनी सारी 36 थानों, ठिकानों को छोड़ के भागना पड़ा,

यहाँ तक कि जब मुगल कुम्भलगढ़ का किला तक रातो रात खाली कर भाग गए, दिवेर के युद्ध के बाद प्रताप ने गोगुन्दा, कुम्भलगढ़, बस्सी, चावंड, जावर, मदारिया, मोही, माण्डलगढ़ जैसे महत्त्वपूर्ण ठिकानो पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद भी महाराणा और उनकी सेना ने अपना अभियान जारी रखते हुए सिर्फ चित्तौड़ को छोड़ के मेवाड़ के सारे ठिकाने/दुर्ग वापस स्वतंत्र करा लिए।

अधिकांश मेवाड़ को पुनः कब्जाने के बाद महाराणा प्रताप ने आदेश निकाला कि अगर कोई एक बिस्वा जमीन भी खेती करके मुसलमानो को हासिल (टैक्स) देगा, उसका सर काट दिया जायेगा।इसके बाद मेवाड़ और आस पास के बचे खुचे शाही ठिकानो पर रसद पूरी सुरक्षा के साथ अजमेर से मँगाई जाती थी।

दिवेर का युद्ध न केवल महाराणा प्रताप बल्कि मुगलो के इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। मुट्ठी भर राजपूतों ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर राज करने वाले मुगलो के ह्रदय में भय भर दिया। दिवेर के युद्ध ने मेवाड़ में अकबर की विजय के सिलसिले पर न सिर्फ विराम लगा दिया बल्कि मुगलो में ऐसे भय का संचार कर दिया कि अकबर के समय में मेवाड़ पर बड़े आक्रमण लगभग बंद हो गए।

इस घटना से क्रोधित अकबर ने हर साल लाखों सैनिकों के सैन्य बल अलग अलग सेनापतियों के नेतृत्व में मेवाड़ भेजने जारी रखे लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली।

अकबर खुद 6 महीने मेवाड़ पर चढ़ाई करने के मकसद से मेवाड़ के आस पास डेरा डाले रहा लेकिन ये महराणा द्वारा बहलोल खान को उसके घोड़े समेत आधा चीर देने के ही डर था कि वो सीधे तौर पे कभी मेवाड़ पे चढ़ाई करने नहीं आया।

ये इतिहास के वो पन्ने हैं जिनको दरबारी इतिहासकारों ने जानबूझ कर पाठ्यक्रम से गायब कर दिया है”.।*
जिन्हें अब वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है।
आप भी इस प्रयास में जुड़ें।

वीर शिरोमणि #महाराणा प्रताप जी की जयंती पर उनके चरणों में शत शत नमन 🚩🙏🌹

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लोकडाउन के समय की यह सच्ची घटना आपको आश्चर्यचकित कर देगी।


लोकडाउन के समय की यह सच्ची घटना आपको आश्चर्यचकित कर देगी।

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वे लोग पिछले कई दिनों से इस जगह पर खाना बाँट रहे थे।हैरानी की बात ये थी कि एक कुत्ता हर रोज आता था और किसी न किसी के हाथ से खाने का पैकेट छीनकर ले जाता था।आज उन्होने एक आदमी की ड्यूटी भी लगाई थी कि खाने को लेने के चक्कर में कुत्ता किसी आदमी को न काट ले।

लगभग ग्यारह बजे का समय हो चुका था और वे लोग अपना खाना वितरण शुरू कर चुके थे। तभी देखा कि वह कुत्ता तेजी से आया और एक आदमी के हाथ से खाने की थैली झपटकर भाग गया।वह लड़का जिसकी ड्यूटी थी कि कोई जानवर किसी पर हमला न कर दे, वह डंडा लेकर उस कुत्ते का पीछा करते हुए कुत्ते के पीछे भागा।कुत्ता भागता हुआ थोड़ी दूर एक झोंपड़ी में घुस गया।वह आदमी भी उसका पीछा करता हुआ झोंपड़ी तक आ गया।कुत्ता खाने की थैली झोंपड़ी में रख के बाहर आ चुका था।

वह आदमी बहुत हैरान था।वह झोंपड़ी में घुसा तो देखा कि एक आदमी अंदर लेटा हुआ है। चेहरे पर बड़ी सी दाढ़ी है और उसका एक पैर भी नहीं है।गंदे से कपड़े हैं उसके।

“ओ भैया! ये कुत्ता तुम्हारा है क्या?”

“मेरा कोई कुत्ता नहीं है।कालू तो मेरा बेटा है। उसे कुत्ता मत कहो।”
अपंग बोला।

“अरे भाई !हर रोज खाना छीनकर भागता है वो। किसी को काट लिया तो ऐसे में कहाँ डॉक्टर मिलेगा…. उसे बांध के रखा करो।खाने की बात है तो कल से मैं खुद दे जाऊंगा तुम्हें।”उस लड़के ने कहा।

“बात खाने की नहीं है।मैं उसे मना नहीं कर सकूँगा।मेरी भाषा भले ही न समझता हो लेकिन मेरी भूख को समझता है।जब मैं घर छोड़ के आया था तब से यही मेरे साथ है।मैं नहीं कह सकता कि मैंने उसे पाला है या उसने मुझे पाला है। मेरे तो बेटे से भी बढ़कर है। मैं तो रेड लाइट पर पैन बेचकर अपना गुजारा करता हूँ….. पर अब सब बंद है।”

वह लड़का एकदम मौन हो गया।उसे ये संबंध समझ ही नहीं आ रहा था।उस आदमी ने खाने का पैकेट खोला और आवाज लगाई, “कालू ! ओ बेटा कालू ….. आ जा खाना खा ले।”

कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उस आदमी का मुँह चाटने लगा।खाने को उसने सूंघा भी नहीं। उस आदमी ने खाने की थैली खोली और पहले कालू का हिस्सा निकाला,फिर अपने लिए खाना रख लिया।

“खाओ बेटा !”उस आदमी ने कुत्ते से कहा।मगर कुत्ता उस आदमी को ही देखता रहा।तब उसने अपने हिस्से से खाने का निवाला लेकर खाया। उसे खाते देख कुत्ते ने भी खाना शुरू कर दिया। दोनों खाने में व्यस्त हो गए।उस लड़के के हाथ से डंडा छूटकर नीचे गिर पड़ा था।जब तक दोनों ने खा नहीं लिया वह अपलक उन्हें देखता रहा।

“भैया जी !आप भले गरीब हों ,मजबूर हों,मगर आपके जैसा बेटा किसी के पास नहीं होगा।” उसने जेब से पैसे निकाले और उस भिखारी के हाथ में रख दिये।

“रहने दो भाई,किसी और को ज्यादा जरूरत होगी इनकी।मुझे तो कालू ला ही देता है।मेरे बेटे के रहते मुझे कोई चिंता नहीं।”

वह लड़का हैरान था कि आज आदमी,आदमी से छीनने को आतुर है,और ये कुत्ता…बिना अपने मालिक के खाये…. खाना भी नहीं खाता है। उसने अपने सिर को ज़ोर से झटका और वापिस चला आया।अब उसके हाथ में कोई डंडा नहीं था।
प्यार पर कोई वार कर भी कैसे सकता है…. और ये तो प्यार की पराकाष्ठा थी।
राधे राधे,जय श्री कृष्णा 🌹🌹

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गाय का झूठा गुड़


💥🔆જય શ્રીકૃષ્ણ 💥🔆

“गाय का झूठा गुड़”

एक शादी के निमंत्रण पर जाना था , पर मैं जाना नहीं चाहता था।एक व्यस्त होने का बहाना.,

और गांव की शादी में शामिल होने से बचना.,
लेक‌िन घर परिवार का दबाव था, सो जाना पड़ा।

उस दिन शादी की सुबह में काम से बचने के लिए
सैर करने के बहाने दो- तीन किलोमीटर दूर जा कर..
मैं गांव को जाने बाली रोड़ पर बैठा हुआ था ,
हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था ,
पास के खेतों में कुछ गाय चारा खा रही थी..,
कि तभी वहाँ एक लग्जरी गाड़ी आकर रूकी.

और उसमें से एक वृद्ध उतरे ,
अमीरी उसके लिबास और व्यक्तित्व ,
दोनों बयां कर रहे थे।

वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछ दूर पर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये ,
पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी ,
उसमे गुड़ भरा हुआ था ,
अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी ओर बैठी गायो को बुलाया ,
सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई ,
जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने मांबाप को घेर लेते हैं।
कुछ गाय को गुड़ उठाकर खिला रहे थे ,
तो कुछ स्वयम् खा रही थी।
वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर गले पर हाथ फेर रहे थे।

कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खाकर चली गई।
इसके बाद जो हुआ वो वाक्या हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता।

हुआ यूँ कि गायो के गुड़ खाने के बाद ,
जो गुड़ बच गया था.,
वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे,
मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ ,
पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये ,
और अपनी गाडी की और चल पड़े।

मैं दौड़कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला~
अंकल जी क्षमा चाहता हूँ ,
पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया ,
क्या आप मेरी इस जिज्ञासा को शांत करेंगे ,
कि आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूठा गुड क्यों खाया.??

उनके चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान उभरी ,
उन्होंने कार का गेट वापस बंद करा ,
और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे, और बोले~
ये जो तुम गुड़ के झूठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे ,
मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता।

जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं…
मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।

मैं अब भी नहीं समझा अंकल जी.
आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में.??

वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं ,
उस वक़्त मैं 22 साल का था।
घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था,
परन्तू दुर्भाग्य वश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया।
इस अजनबी से छोटे शहर में मेरा कोई नहीं था ,
भीषण गर्मी में खाली जेब के ..,
दो दिन भूखे रहकर इधर से उधर भटकता रहा ,
और शाम को भूख मुझे निगलने को आतुर थी।

तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डालकर चले गए ,
यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था ,
तब चबूतरा नहीं था,
मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था ,
मैंने देखा कि गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं ,
और उठ कर वहां से चली गई।
मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा ,
और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया।
मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण से आ गये।

मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा ,
सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी ,
मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलाश में फिर सारा दिन भटकता रहा ,
पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था।
एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया।

शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था।
वही पीपल, वही भूखा मैं, और वही गाय।

कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये ,
और कुछ गुड़ की डलिया गाय को डालकर चलते बने।
गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई ,
मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था ,
सो आज फिर गुड खा लिया।
और वही सो गया, सुबह काम तलासने निकल गया,
आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी ,
सो एक ढ़ाबे पर मुझे काम मिल गया।
कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी ,
तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत
7 km पैदल पैदल चलकर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया।

इधर उधर नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई ,
मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया ,
इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका ,
क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई।
जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था।

मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर ,
मैं रोता हुआ बापस ढ़ाबे पे पहुँचा
और बहुत सोचता रहा।
फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी भी मिल गई ,
दिन पर दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया।

शादी हुई, बच्चे हुये, आज मैं खुद की पाँच फर्म का मालिक हूँ।
जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया।
मैं अक्सर यहाँ आता हूँ ,
और इन गायो को गुड़ डालकर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ।

मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा भी देता हूँ ,
परन्तू मेरी मृग तृष्णा मन की शांति यही आकर मिटती हैं बेटे।

मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे।

समझ गये अब तो तुम।
मैंने सिर हाँ में हिलाया , वे चल पड़े।
गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई।
मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया, मुँह में डाला ,
बापस शादी में शिरकत करने सच्चे मन से शामिल हुआ।

सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था।

उसमे कोई दिव्य मिठास थी ,
जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई थी।

घर आकर गाय के बारे जानने के लिए…
कुछ किताबें पढ़ने के बाद जाना कि…,

गाय गोलोक की एक अमूल्य निधि है।
जिसकी रचना भगवान ने…
मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है।
अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है।
भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर.,
मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं।
इसीलिए गोदुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है।

गौएं विकार-रहित दिव्य अमृत धारण करती हैं ,
और दुहने पर अमृत ही देती हैं।
वे अमृत का खजाना हैं।
सभी देवता गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध का पान करने के लिए..
गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं।

ऋग्वेद में गौ को‘अदिति’ कहा गया है।
‘दिति’ नाम नाश का प्रतीक है , ..और
‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम है।
अत: गौ को ‘अदिति’ कहकर..
वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है।

।। जय गौ माता।।

*सदैव प्रसन्न रहिए * घर पर रहिए, दूरी बनाये रखिये, कोरोना से बचे रहिए, अभी लड़ाई बाकी है, अपनी जीत निश्चित है

Posted in हास्यमेव जयते

गुजराती, हिंदी और इंग्लिश में हास्य रस की किताबे. Books on Jokes


निचे दी हुई किताबे हास्य रस से भरपूर है और सारी पढने जैसी है. आप के पास जुनी कुछ हास्य की किताब हो तो निचे दिए हुए पते पर भेज सकते है.

११-A, हेम्स्मुर्ती बिल्डिंग , गिरिविहार सोसायटी. मुलुंड – वेस्ट , मुंबई ८०

क्रमांकभाषाकिताब का नाम
  
1English51 High-Tech Practical Jokes For The Evil Genius
2English101 Pet Jokes
3English777 Great Clean Jokes – Jennifer Hahn
4English1000 Jokes
5English4000 Decent Very Funny Jokes
6EnglishAn Encyclopedia of Humor
7EnglishBlonde Jokes
8EnglishFunny In Farsi
9EnglishGod Loves Golfers Best The Best Jokes
10EnglishHammer and Tickle
11EnglishI Funny
12EnglishJokes and Targets
13EnglishJokes Have a Laugh and Improve Your English
14EnglishMake me laugh – Classy jokes that make the crade
15EnglishMake me laugh – Don’t kid yourself relatively great (family) jokes
16EnglishMake me laugh – Ivan to Make You Laugh. Jokes and Novel, Nifty, and Notorious Names
17EnglishMake me laugh – Magical Mischief Jokes That Shock And Amaze
18EnglishPlato and a Platypus Walk into a Bar
19EnglishPractical Jokes Heartless Hoaxes and Cunning Tricks
20EnglishReader s Digest International April 2015 
21EnglishReader’S Digest 2007-09 – Sep 2007 – Laugh Riot
22EnglishReader’s Digest USA – December 2013
23EnglishReally Bad Dad Jokes More Than 400 Unbearable Groan-Inducing Wise_s Sure to Make You the Funniest Father With a Quip.epub
24EnglishThe Best Jokes 500 – Funniest Dirty Jokes For Adults 2017 Funny Short Stories and One-Line Jokes. Ultimate Edition
25EnglishThe Best Jokes of All Time
26EnglishThe Bumper B3ta Book of Sick Jokes – Rob Manuel
27EnglishThe Little Book of Chav Jokes – Lee Bok
28EnglishThe New Oxford Book of Literary Anecdotes
29EnglishThe Ultimate Book of Dad Jokes 1,001+ Punny Jokes Your Pops Will Love Telling Over and Over and Over.epub
30EnglishThe Worlds Funniest Proverbs
31EnglishTruth Be Told Off the Record about Favorite Guests, Memorable Moments, Funniest Jokes
32Gujarati…ત્યારે લખી શું શું
33Hindiअजी सुनो
34Hindiअस्सी तोला सोना
35Hindiआधुनिक हिंदी हास्य-व्यंग
36Hindiआधुनिक हिन्दी हास्य – व्यंग्य 1
37Hindiउर्दू का बेहतरीन हास्य व्यंग
38Hindiचटपटे चुटकुले – ०१
39Hindiचटपटे चुटकुले – ०२
40Hindiचुल्लू भर पानी
41Hindiजादू की सरकार
42Hindiजी० पी० श्रीवास्तव की कृतियों में हास्य विनोद
43Hindiपंजाबी के चुने हुए हास्य -व्यंग्य
44Hindiपुरस्कृत बाल-हास्य एकांकी
45Hindiपुरुस्कृत बाल हास्य एकांकी
46Hindiप्रतिनिधि हास्य कहानियाँ
47Hindiफुलझड़ियाँ
48Hindiबाज़ार का ये हाल है
49Hindiभारतेन्दुकालीन व्यंग-परम्परा
50Hindiमेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ
51Hindiयत्रम-तत्रम
52Hindiविल रॉजर्स
53Hindiव्यंग्य विधा के पारिप्रेक्ष्य में हरिशंकर परसाई साहित्य का मूल्यांकन
54Hindiसदाचार का तावीज़
55Hindiहमारे साहित्य में हास्य रस
56Hindiहरिसंकर परसाईं की व्यंग रचनाए
57Hindiहास्य का इन्द्रधनुष
58Hindiहास्य की रूपरेखा
59Hindiहास्य के सिद्धान्त
60Hindiहास्य-मंजरी
61Hindiहास्य-मन्दाकिनी
62Hindiहास्य-रस की कहानियाँ
63Hindiहास्य-रस
64Hindiहास्यास्पद अंगरेजी भाषा
65Hindiहिंदी नाटको में हास्य व्यंग
66Hindiहिंदी साहित्य में हास्य रस 1
67Hindiहिंदी साहित्य में हास्य रस
68Hindiहिंदी हास्य व्यंग संकलन
69Hindiहिन्दी नाटकों में हास्य तत्त्व
70Gujaratiઆનંદ કિલ્લોલ
71Gujaratiગુજરાતી જોક્સ – ભાગ 1
72Gujaratiગુજરાતી જોક્સ – ભાગ 2
73Gujaratiજોલી જોક્સ
74Gujaratiથોડી હસી થોડી મજાક
75Gujaratiફીલિંગ્સ 
76Gujaratiબાળકોના જોક્સ
77Gujaratiરંગ તરંગ – ભાગ ૧ 
78Gujaratiરંગ તરંગ – ભાગ ૨
79Gujaratiરમુજમાળા – ભાગ ૧ લો 
80Gujaratiરમુજમાળા – ભાગ ૨ જો 
81Gujaratiરમુજી અને વિચિત્ર સંસ્મરણો
82Gujaratiહસતા હસતા સુખી થયા
83Gujaratiહસે તેનું ના ખસે
84Gujaratiહાસ્ય દર્પણ
85Gujaratiહાસ્ય ફૂલડાં
86Gujaratiહાસ્ય મસ્તી
87Gujaratiહાસ્ય માળા નાં મોતી
88Gujaratiહાસ્ય હીંડોળ
89Gujaratiહાસ્યલોક
Posted in હાસ્ય કવિતા

ખોવાયેલા ભાયબંધ તું મને પાછો જડ,


ખોવાયેલા ભાયબંધ તું મને પાછો જડ,

પહેલા પડતો થો તેમ માથે પડ,

નાસ્તાના બીલ વખતે હું ખીચામાં જોતો,

ત્યારે તું જઈ વોશ બેસિનમાં હાથ ધોતો,

ખીચામાં હાથ તે ક્યારેય નાખ્યો નોતો,

ભીસ પડે ત્યારે પાસે આવીને રોતો,

૧૦૦ ગ્રામ ગાંઠીયા સાથે ફ્રીમાં મીઠો માવો પણ ખાતા,

યાદ છે રોજ રાતે ભાયાણીમાં જાતા.

દિવસે બોરડીના બોર વીણી ખાતા,

રાતે વાડીયુમાં સીંગ ચોરવા જાતા,

કુતરાના અવાજથી કરતા’થા શોર,

રાત્રે ફરતાથા ચારેકોર,       

એક-બીજાનો નોતો મુકતા સગડ,

એક-બીજાનો હાથ જાલી ચડતા’થા વડ,

લખોટીયુ માટે તું પાછો લડ,

મડતો’થો તેમ પાછો હાથ મારો મડ,

લેતાથા એક-બીજાના ગાળ્યું થી નામ,

આવ, આવીને પાછો હાથ મારો થામ,

સમય કાઠીને તું મળવા તો આવ,

આવીને તું મીઠી ગાળ્યું થી બોલાવ,

ખોવાયેલા ભાયબંધ તું મને પાછો મળ,

આવ પાછો ને તું ગળે મળ.

  • નીતિન ગજ્જર
Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

हिरकणी


Namrata Mankad

શેર “ગંગાના નીર તો વધે ઘટે રે લોલ, સરખો એ પ્રેમનો પ્રવાહ રે,…….જનનીની જોડ સખી નહીં જડે રે લોલ.”
કવિ દામોદર ખુસલદાસ બોટાદકર દ્વારા લિખિત આ લોક ગીતમાં માતૃપ્રેમનો જે મહિમા દર્શાવ્યો છે, તે ખરેખર આહલાદક છે. ભારતમાં વીરતાની ગાથાઓ કંઈ ઓછી નથી, ખાસ કરીને સાધારણ માનવીઓની અસાધારણ ક્ષમતાઓની! ચાલો, આજે એક વીર માતાની વાર્તા સાંભળીયે.
વાત છે ૧૭મી સદીના ભારતની. ૧૬૪૭ માં શિવાજી મહારાજે રાયગઢનો કિલ્લો જપ્ત કરી તેને પોતાની રાજધાની બનાવી. પુના પાસે,પશ્ચિમી ઘાટમાં, સહ્યાદ્રી પર્વતમાળા વચ્ચે આવેલો આ રાયગઢ કિલ્લાની શાન કંઈક જુદી જ હતી. આ કિલ્લાના રક્ષણ માટે રાજા છત્રપતિ શિવજી મહારાજે તેની ફરતે ઊંચી અને મજબૂત દીવાલો ચણી હતી, ખાલી એક બાજુને છોડીને.  કારણ- કિલ્લાની  તે બાજુએ એક ઊંચી અને સીધી ભેખડ હતી. આ સીધા ઢોળાવવાળી ભેખડ ચઢવાની કોઈ હિંમત ન કરી શકે, એટલે તેને ફરતે કોઈ દીવાલ નહોતી ચણી. તે એક કુદરતી સંરક્ષણ હતું. 
કિલ્લાની તળેટીએ એક નાનું ગામ. ગામના લોકો વિવિધ સામગ્રી કિલ્લા ઉપર ચઢી વેંચતા અને પોતાનું ગુજરાન ચલાવતા. તે ગામની એક ગરીબ દુધવાળી, હિરકણી-હીરા. રોજ તે ગઢ ચઢતી અને શિવાજીના સામ્રાજ્યમાં, દૂધ વેચીને પોતાનું નાનું યોગદાન આપતી. કિલ્લાના વિરાટ દરવાજા સૂર્યોદય પર ખુલતા અને સૂર્યાસ્ત પર બંધ થઈ જતા. કોઈ કારણસર એક દિવસ હીરાને દૂધ કિલ્લા પર લઈ જવામાં મોડું થઈ જાય છે. તેનો પતિ જે શિવાજીની સેનામાં સૈનિક હતો તે યુદ્ધ માટે બીજે ગામે ગયો હોય છે, સાસુ પણ પોતાની સારવાર માટે બીજા ગમે ગયી હોય છે. એટલે પોતાના નાના બાળને કચવાતા મને તે પડોશીના ઘરડા માસી પાસે મૂકી દૂધ વેચવા કિલ્લા પર જાય છે. દિવસ ખાસ હતો, શરદ પૂર્ણિમાનો, મહારાષ્ટ્રમાં તેને ‘કોજાગીરી’ પૂર્ણિમા કેહવાય. કેહવાય છે કે તે દિવસે, લક્ષ્મીમાં સ્વર્ગથી ઉતરી ગામમાં ફરે અને બધાને પૂછે, ‘કો જાગરતી?’ (કોણ જાગે છે?) અને પછી તે સમૃદ્ધિના આશીર્વાદ આપે છે. આ દિવસને ઉજવવા ખાસ મસાલા  દૂધ લોકો પીવે. તે દિવસે, હિરકણીની ભેંસનું દૂધ સીધું શિવાજી મહારાજના રસોઈ ઘરમાં જવાનું હતું તેવી ખબર સાંભળી હીરા કિલ્લા પર જવાનું ટાળી ના શકી. ગઢ ચઢતા મોડું થઈ ગયું અને જ્યારે દૂધ વેચીને હીરા પાછી ફરે છે ત્યાં સુધીમાં કિલ્લાના દરવાજા બંધ થઈ ચૂક્યા હોય છે. તે દરવાનને આજીજી કરે છે કે તેનું નાનું બાળક ભૂખ્યું હશે અને તેના વગર તે રડી રહ્યું હશે. તો કૃપા કરી દરવાજો ખોલી દે અને તેને જવા દે. દરવાન ચોખ્ખી ના પાડે છે અને કહે છે કે, “મહારાજનો બનાવેલો આ નિયમ છે કે સંધ્યાકાળ પછી આ દરવાજા કોઈ પણ કારણસર નહીં ખુલે. જા, આજ રાત, મહારાજે લોકો માટે કરેલી ધર્મશાળાની વ્યવસ્થામાં જઇ સુઈ જા અને કાલે સવારે દરવાજા ખુલે ત્યારે આવજે.” હીરા હાથ જોડી દરવાજો થોડો ખોલવા વિનંતી કરે છે, પણ તે ટસ નો મસ નથી થતો. કાળજાનો ટુકડો કોઈ બીજાને ભરોસે, ભખ્યું, રડતું મૂકી આખી રાત કેવી રીતે નીકાળે? આ વિરહ હીરા માટે અસહ્ય હતો. ‘માં તે માં, બાકી બધા વગડાના વા’ – આ કહેવતને હીરા સાર્થક કરે છે અને કંઈક અજુગતું કરે છે. તે પેલા સીધા ઢોળાવવાળી ભેખડ ઉતરવાનું નક્કી કરે છે. એ રસ્તો જે આજ સુધી કોઈએ પાર નથી કર્યો તે રસ્તે હીરા ચાલવા માંડી (ઉતરવા માંડી). જો સફળ થઈ (જેની શક્યતા ના બરોબર હતી) તો ઠીક છે નહીંતો નીચેના બદલે સીધો સ્વર્ગમાં જવાનો રસ્તો હતો તે. અંધારી રાત, અજાણ્યો રસ્તો, જંગલી ઝાડવાઓ, તીક્ષ્ણ પથ્થરો, અને ઉપરથી નીચે જુઓ તો સીધી ભોંય દેખાય તેવો ઢાળ. સહારો હતો માત્ર પૂનમના ચાંદનો અને વારે વારે આંખો સમક્ષ આવતા નાના બાળકના ચહેરાનો! એક માતાનું દિલ અને જોમ, હીરા પાસે તે કાર્ય કરાવી ગઈ, જે કોઈ પણ શૂરવીર કરતા પહેલા સો વાર વિચારે. થાકેલી, ઘવાયેલી, હિરકણી આખરે ઘરે પહોંચી.
બીજા દિવસે, સવારે, જ્યારે દરવાન અને સૈનિકોએ હીરાને દૂધ લઈ નીચેથી ઉપર આવતા જોઈ તો અચંબિત રહી ગયા. તેને સીધી મહારાજ પાસે લઈ ગયા અને આખી કથની સંભળાવી. મહારાજ સમેત સૌને માનવામાં ના આવ્યું કે આ જીવતી કેવી રીતે બચી ગયી. શિવાજી તેની બહાદુરીના માનમાં તે ભેખડને ફરતે એક ઊંચી દીવાલ ચણાવે છે અને તેને નામ આપે છે, ‘હિરકણી બુરુજ’.  હિરકણી પાસે કોઈ જાદુઈ શક્તિ નોહતી. હતી તો બસ, એક પ્રચંડ ઇચ્છાશક્તિ, તેના ભૂખ્યા, રડતા બાળક પાસે પહોંચવાની! ‘જે કર ઝુલાવે પારણું, તે જગ પર શાસન કરે!!’
આ વાર્તાનું, ‘હિરકણી’ નામક એક મરાઠી ચિત્રપટ પણ છે. આપણાં સૌ માતાઓમાં એક હિરકણી રહેલી છે. તો તે હિરકણી ને યાદ કરી, બિરદાવીને, ચાલો, આજે થોડું પોતાને માન આપીએ! 

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हिरकणी कथा – હિરકણી


छत्रपती शिवाजी महाराजांनी मराठी साम्राज्याच्या राजधानीसाठी किल्ले रायगड उभारला. १६७४ साली महाराजांचा राज्याभिषेक सोहळा रायगडावर संपन्न झाला. सह्याद्रीच्या कुशीत वसलेल्या ह्या किल्ल्याची बांधनी सुरक्षेच्या दृष्टीने अतिशय चांगली होती. २७०० फुट उंची असलेल्या ह्या गडावर दरवाज्यांखेरीज कोणताही येण्याजाण्याचा मार्ग नव्हता. असे म्हंटले जायचे की – ‘रायगडाचे दरवाजे बंद झाले की, खालून वर येईल ती फक्त हवा आणि वरून खाली जाईल ते फक्त पाणी’. पण ह्या गोष्टीला अपवाद ठरणारी एक स्त्री म्हणजेच – ‘हिरकणी’ 
किल्ले रायगडाच्या खाली काही अंतरावर वाकुसरे (वाळूसरे) नावाचे एक छोटेसे गाव होते. त्या गावात एक धनगर व्यक्तीचे कुटुंब राहत होते. घरात त्या व्यक्ती समवेत त्याची आई, बायको हिरा व त्यांचे एक तान्हे बाळ राहत असे. घरातील दुभत्या गायी-म्हैशींचे दूध विकून मिळणाऱ्या पैश्यातून ते कुटुंबाचा उदरनिर्वाह करत असत. त्याची बायको रोज सकाळी गडावरती दूध विकण्यास जात असे. एके दिवशी रोजच्याप्रमाणे हिरा गडावर दूध विकण्यास गेली, पण तिला त्या दिवशी काहीएक कारणाने दरवाजापर्यंत पोहोचण्यास उशीर झाला. ती गडाच्या दरवाजांजवळ आली, पण पाहते तर काय दरवाजे बंद झालेले होते. गडकऱ्यांना तिने फार विनंती केली, पण त्यांनी दरवाजे उघडण्यास नकार दिला. कारण सकाळी उघडलेले दरवाजे सूर्यास्तानंतर बंद झाले कि, ते पुन्हा दुसऱ्या दिवशी सकाळीच उघडत असत. छत्रपतींची ही आज्ञा सर्वांना लागू होती. कोणालाही त्यासाठी मुभा नसे. पण हिराला आपल्या तान्ह्या बाळाची चिंता लागली होती. आईवाचून ते तान्हे बाळ रात्रभर कसे राहील, ह्या विचाराने त्या आईची चिंता वाढतच चालली. ह्या विचारातच हिराने किल्ल्याच्या कड्यावरून खाली उतरण्याचा निर्णय घेतला. अंधारात कड्यावरून खाली जाणे म्हणजे जीव पणाला लावण्याच्या बरोबरीचे होते. कारण सर्वत्र खोल दऱ्या, दाट झाडे-झुडपे आणि त्यात अंधार. पण बाळाच्या प्रेमापोटी ह्या मातेने हा निर्णय घेतला. गडाच्या कड्यांचे निरीक्षण केले. एका कड्यावर येऊन पोहोचली आणि त्याच कड्यावरून खाली उतरली. खाली पोहोचूपर्यंत मात्र सभोवतालच्या झाडा-झुडपांमुळे अंगावर अनेक ठिकाणी ओरबडल्याने रक्त आलेले होते. त्याच अवस्थेत गड उतरून ती आई आपल्या घरी परतली. घरी परतताच पहिल्यांदा त्या आईने आपल्या बाळाला कुशीत घेतले. बाळाच्या दर्शनाने त्या आईला जो आनंद झाला, तो मात्र जखमांच्या वेदनेपेक्षा कितीतरी पटीने जास्त होता.
ही घडलेली गोष्ट जेव्हा महाराजांना कळली, तेव्हा ते अत्यंत अश्यर्यचकित झाले. कारण शत्रूच्या सैन्यालाही दरवाजातून येण्या-जाण्या शिवाय मार्ग उपलब्ध नसणाऱ्या रायगडावरून एक स्त्री खाली कशी पोहोचली. हा प्रश्न महाराजांसहित सर्वांनाच अन्नुतरीत होता. महाराजांनी हिराला गडावर बोलावण्यास सांगितले. हिरा गडावर आली, ती आल्यानंतर महाराजांनी तिला ह्या सर्व घटनेविषयी विचारले असता, हिरकणीने महाराजांना घडलेला सर्व घटनाक्रम सांगितला व आपल्या तान्ह्या बाळाला भेटण्यासाठी हा एकच मार्ग उपलब्ध होता असे सांगितले. हे ऐकून त्या शूर मातेचा महाराजांनी साडी-चोळी देऊन सन्मान तर केलाच पण ज्या कड्यावरून ती खाली उतरली त्या कड्यावर आईच्या प्रेमाची साक्ष म्हणून एक बुरुज बांधण्यात आला. तो बुरुज म्हणजेच रायगडावरील ‘हिरकणी बुरुज’. त्याचबरोबर ती राहत असलेल्या गावाला तिचे नाव देण्यात आले. ते गाव म्हणजेच रायगडाजवळील ‘हिरकणीवाडी’. सध्या रायगडावर जाण्या-येण्यासाठी बनवण्यात आलेला रोपवे (Ropeway) हा त्याच ‘हिरकणीवाडी’तून उपलब्ध करून देण्यात आला आहे.
हिरकणीवर उपलब्ध असलेली प्रसिद्ध जुनी कविता येथे देत आहे.
रायगडावर राजधानी ती होती शिवरायांची ।कथा सांगतो ऐका तेथील हिरकणी बुरुजाची ।
वसले होते गाव तळाशी वाकुसरे या नावाचे ।राहात होते कुटुंब तेथे गरीब धनगर गवळ्याचे ।
आई बायको तान्हा मुलगा कुटुंब होते छोटेसे ।शोभत होते हिरा नाव त्या तडफदार घरवालीचे ।
सांज सकाळी हिरा जातसे दूध घेऊनी गडावरती ।चालत होती गुजराण त्या नेकीच्या धंध्यावरती ।
एके दिवशी दूध घालिता हिरा क्षणभर विसावली ।ध्यानी आले नाही तिच्या कधी सांज टळूनी गेली ।
सूर्यदेव मावळता झाले बंद गडाचे दरवाजे ।मनात भ्याली हिरा म्हणाली घरी बाळ तान्हे माझे ।
हात जोडूनी करी विनवणी म्हणे जाऊद्या खाली मला ।गडकरी म्हणती नाही आज्ञा शिवरायांची आम्हाला ।
बाळाच्या आठवे झाली माय माउली वेडिपीसी ।कडा उतरूनी धावत जाऊनी बाळाला ती घेइ कुषी ।
अतुलनीय हे धाडस पाहुनी महाराज स्तंभित झाले ।साडी चोळी हिरास देऊनी प्रेमे सन्मानित केले ।
कड्यावरी त्या बुरूज बांधला साक्ष आईच्या प्रेमाची ।ऐकू येते कथा अजुनी अशी हिरकणी बुरूजाची ।
हिरकणीची ही शौर्यगाथा अजही रायगडावर सांगितली जाते आणि तो हिरकणी-बुरुज आईच्या प्रेमाची साक्ष देत आजही रायगडावर तटस्थपणे उभा आहे. एका शूर मातेची कथा सर्वांपर्यंत पोहोचावी एवढाच हा लेख लिहिण्यामागील स्वार्थ…
धन्यवादमिलिंद डोंबाळे

हिरकणी धनगर (पोवाडा):

(चाल पहिली)

रायगडची सांगतो थोरी । ऐका तुम्ही सारी । गोष्ट एक घडली त्या रायगडला । ऐकताना नवल वाटे मजला । सुरवात करतो पोवाडयाला जी-जी ।।०१।।

छत्रपती होते गडवरी । पुनव कोजागिरी । समारंभ घनदाट भरला । आनंदाने गड सारा फुलला । किती वर्णावे प्रसंगाला जी-जी ।।०२।।

एक खेडे होते शेजारी । गड पायतारी । गौळी लोक रहात होती गावाला । नित जाती दूध विकण्याला । नेहमीचा परीपाठ त्यान्‌ला जी-जी ।।०३।।

गौळी लोक गेले गडावरी । दूध डोईवरी । हाळी ते देती गिरायकाला । झटदिशी दूध विकण्याला । विकून ते येती परत घरला जी-जी ।।०४।।

(चाल दुसरी)

त्याच गावी होती गौळण । नाव तिचे हिरा हे जी जी ।। बेगीबेगी निघाली गडावरी । काढुनीया धारा हे जी-जी ।। दुसरी गौळण बोलती तीला । झाल का ग हिरा हे जी-जी ।। हिरा म्हणते तुम्ही जा पुढे ।येती मी उशीरा हे जी-जी ।। पाळण्यात बाळ घालूनी । लावीते निजरा हे जी-जी ।।

(चाल तिसरी) हिरा बाळाला झोपविते

हिरा बोले निजनिज बाळा । तुला लागू दे आज डोळा । गडावरी गौळ्याचा मेळा । दूध विकाय झाले गोळा । कोजागिरी पुनवेचा सोहळा । मला जावू दे लडीवाळा ।

(चाल पहिली)

हिरा गौळण निघाली गडावरी । चरवी डोईवरी । जाता जाता सांगे म्हातारीला । झोक्यामधे बाळ झोपवीला । उठला तर घेवून बसा त्याला । दिस मावळायला येते घरला जी ।।०५।।

(चाल तिसरी)

हिराबाई गेली गडावरी । दूध घेणारी पांगली लोक सारी । दूध घ्या हो म्हणती कुणी तरी । आशी हाळी देती गडावरी । दिस मावळून गेला बगा तरी । हिरा दूध विकण्याची गडबड करी । निघाया घरला जी-जी ।।०६।।

चौकीदार दरवाज्यावरी । दिस मावळाय दार बंद करी । हीरा आली दरवाजावरी । पहाती हालवून दारे सारी । चौकीदार होते शेजारी । हिरा बोले त्याना सत्वरी । मला जायाच हाय बगा घरी । बाळ माझा तान्हा हाय घरी । कुनी न्हाय घियाला जी-जी ।।०७।।

चौकीदार तिची समजूत करी । महाराजांचा हुकूम आमच्यावरी । आम्ही हूकमाचे ताबेदारी । आशी गोष्ट गेली त्यांच्या कानावरी । न्हेत्याल टकमक टोका वरी । मुकू प्रानाला जीर हे जी-जी ।।०८।।

हिराबाई विनंत्या करी । पण ऐकेना पहारेकरी । हिरा मनात कष्टी भारी । बाळ दिसे तीच्या समोरी । हिरा गडावर घिरटया मारी । फिरुनी वाटेचा शोध ती करी । आवरी मनाला जी-जी ।।०९।।

चारी बाजूला मारुन फेरी । भरली उबळ मायेची उरी । गाय वासराला चुकली पाखरी । पक्षा सारखी मारावी भरारी । पडती डोळ्यातून आसवाच्या सरी । दुध न्हाय तिजला-जी-जी ।।१०।।

ठाम विचार केला अंतरी । हिराबाई गेली बगा कडयावरी । म्हणे देवा तू धाव लौकरी । आले संकट माझ्यावरी । माझे रक्षण तूच आता करी । विनवी देवाला जीर हे जी-जी ।।११।।

कडयावरुन खाली ती उतरी । उतरताना पाय तिचा घसरी । तरी धिरान तोल सावरी । झाडाझुडुपांचा ती आसरा करी । गेली तळाला जीर हे जी-जी ।।१२।।

(चाल पहिली)

हिराबाई गेली तेव्हा घरी । बाळ मांडीवरी । शेजारीण घेवून बसली बाळाला । हिराने उचलुन घेतला त्याला । पोटाशी धरुन कुरवाळीला । आईला पाहून बाळ हासला जी-जी ।।१३।।

हीच गोष्ट कळाली गडावरी । लोक नवल करी । छत्रपती शिवाजी महाराजांन्‌ला । हकीगत सांगी लोक त्यान्‌ला । हिराने गड सर केला जीर हे जी-जी ।।१४।।

छत्रपती हिरा सामोरी । उभी दरबारी । महाराजानी बक्षीस दिले तिजला । त्याच कडयावरी बुरुज बांधला । हिराचे नाव दिले बुरजाला । हिरकणीचा बुरुज म्हणती त्याला । हिराचा पोवाडा संपवीला जीर हे जी-जी ।।१५।।

खेतर शाहीर कविता करी । करुनी शाहिरी । श्रद्धांजली वाहतो हिराबाईला । सीमा नाही तीच्या धाडसाला । मानाचा मुजरा छत्रपतीला । नमस्कार करतो मंडळीला जी-जी ।।१६।।

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आदर्श बी०ए०• बहू


लक्ष्मीकांत वार्ष्णेय विजयगढ़िया

*प्रेरक कथा*

*आदर्श बी०ए०• बहू*

बात ना पुरानी है , ना सुनी कहानी है । कान से ज्यादा आंखों देखी हैं। कहानी के सभी पात्र वास्तविक हैं। अतैव नाम बदलकर ही कहना उचित होगा। एक रिटायर्ड जज हैं । कहा जाता है, कि उन्हें उन्होंने कभी रिश्वत नहीं ली थी। धार्मिक विचार के सद्गृहस्थ हैं। दावतों में , पार्टियों में , मित्रों के यहां खाने- पानी में वह चाहे जितने स्वतंत्र रहे हो, पर घर के अंदर रसोई घर के पालन में ना असावधानी करते थे , ना होने देते थे।

ग्रहणी भी शिक्षित है; सभा सोसायटियों में दावतों में पति के साथ खुलकर भाग लेती रहती है। पर घर के अंदर चूल्हे की मर्यादा का पति से भी अधिक ध्यान रखती है। तुलसी को प्रत्येक दिन सवेरे स्नान कराकर जल चढ़ाना और संध्या समय उसे धूप- दीप देना और उसके चबूतरे के पास बैठकर कुछ देर *श्रीरामचरितमानस* का पाठ करना यह उसका नियमित काम है। जो माता पिता से विरासत की तरह मिला है और कभी छूट नहीं सकता ।

जज साहब के कोई पुत्र नहीं एक कन्या है। जिसका नाम लक्ष्मी है। माता पिता की एक ही संतान होने के कारण उसे उनका पूर्ण स्नेह प्राप्त है । लक्ष्मी को भगवान ने सुंदर रुप दिया है ।

लक्ष्मी को खर्च- वर्च की कमी नहीं थी। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली साथिनों में वह सबसे अधिक कीमती और आकर्षक वेशभूषा में रहा करती थी। वह स्वभाव की कोमल थी, सुशील थी।, घमंडी नहीं थी। घर में आती तो माँ के साथ मेमने की तरह पीछे पीछे फिरा करती थी। माँ की इच्छा से वह तुलसी के चबूतरे के पास बैठकर तुलसी की पूजा में भी भाग लेती और माँ से अधिक देर तक बैठकर *श्रीरामचरितमानस* पाठ भी किया करती थी । भारतीय संस्कृति और यूनिवर्सिटी के रहन- सहन का यह अद्भुत मिश्रण था।

जज साहब की इच्छा थी कि लक्ष्मी *बी०-ऐ०* पास कर ले , तब उसका विवाह करें वह कई वर्षों से सुयोग्य वर की खोज में दौड़ धूप कर रहे थे । बी० ए० कन्या के लिए *एम० ए०* वर तो होना ही चाहिए। पर एम० ए० वर मिलता तो कुरूप मिलता , कहीं भयंकर खर्चीला जिंदगी वाला पूरा साहब मिलता , कहीं दहेज इतना माँगा जाता कि रिश्वत ना लेने वाले जज दे नहीं सकते थे । कन्या के पिता को जज , डिप्टी कमिश्नर डिप्टी कलेक्टर आदि शब्द कितने महंगे पड़ते हैं , यह तो यह वही जान सकते हैं ।

लक्ष्मी ने बी०ए० कर लिया और अच्छी श्रेणी में पास किया ।अब वह पिता के पास पराई अमानत की तरह हो गई । अब उसे किसी नए घर में बैठा देना अनिवार्य हो गया । जज साहब वर खोजते खोजते थक चुके थे और निराश होकर पूजा पाठ में अधिक समय लगाने लगे थे ।

मनुष्य के जीवन में कभी-कभी विचित्र घटनाएं घट जाती हैं । क्या से क्या हो जाता है , कुछ पता नहीं चलता । एक दिन शहर में एक बड़ी सड़क पर जज साहब अपनी कार में बैठे थे । इंजन में कुछ खराबी आ गई थी , इसलिए वह चलता नहीं था । ड्राइवर बार-बार नीचे उतरता , इंजन के पुर्जे खोलता – कसता, तार मिलाता , पर कामयाब ना होता । उसने कई साधारण श्रेणी के राह- चलतों को कहा कि वे कार को धकेल दें, पर किसी ने नहीं सुना । सूट बूट वालों को कहने का उसे साहस ही नहीं हुआ । एक नवयुवक , जो बगल सेे ही जा रहा था और जिसे बुलाने की ड्राइवर को हिम्मत भी ना होती , अपने आप कार की तरफ मुड़ पड़ा और उसमें ड्राईवर को ‘कहा मैं धकेलता हूँ , तुम स्टेयरिंग पकड़ो।’

ड्राइवर ने कहा- ‘गाड़ी भरी है, एक के मान कि नहीं ।’

युवक ने मुस्कुराकर कहा – ‘देखो तो सही।

ड्राइवर अपनी सीट पर बैठ गया । युवक ने अकेले ही गाड़ी को दूर तक ढकेल दिया । इंजन चलने लगा ।

जज साहब ने युवक को बुलाया , धन्यवाद दिया । युवक का चेहरा तप्त कांचन की तरह चमक रहा था । चेहरे की बनावट भी सुंदर थी जवानी अंग-अंग से छलकी पड़ती थी। फिर भी पोशाक बहुत सादी थी- धोती, कुर्ता और चप्पल । चप्पल बहुत घिसी- घिसाई थी और धोती तथा कुर्ते के कपड़े भी बहुत सस्ते क़िस्म के थे । फिर भी आँखों की ज्योति और चहरे पर गंभीर भाव की झलक देखकर जज साहब उससे कुछ बात किये बिना राह नहीँ सकें।

इंजन चल रहा था , ड्राइवर आज्ञा की प्रतीक्षा में था ।

जज साहब ने युवक से कहा -शायद आप भी इसी तरफ चल रहे हैं , आइए, बैठ लीजिये ।रास्ते में जहां चाहेंगे उतर जाइएगा।

युवक जज साहब की बगल में आकर बैठ गया । जज साहब ने पूछताछ की तो युवक ने बताया कि वह यूनिवर्सिटी का छात्र है । अमुक जिले के एक गरीब कुटुंब का लड़का है । मैट्रिक से लेकर एम० ए० तक बराबर प्रथम आते रहने से उसे छात्रवृत्ति मिलती रही , उससे और कुछ अंग्रेजी कहानियों के अनुवाद से पारिश्रमिक पाकर उसने एम० ए० . प्रथम श्रेणी में पास कर लिया और अब उसे विदेश में जाकर शिक्षा ग्रहण करने के लिए सरकारी छात्रवृत्ति मिलेगी । वह दो महीने के अंदर विदेश चला जाएगा ।

जज साहब का हाल तो –
*’पैरत थके थाह जनु पाई* जैसा हो गया । बात करते-करते वह अपनी कोठी पर आ गए । युवक को भी उतारा ; और कहा , अपने रास्ते में मेरी बड़ी सहायता कि । आप कुछ जलपान करके तथा तब जाने पाइएगा ।

युवक को बैठक में बैठाकर जज साहब अंदर गए और लक्ष्मी एवं उसकी माता को भी साथ लेकर आए और उनसे युवक का परिचय कराया । इसके बाद नौकर जलपान का सामान लेकर आया और युवक को जज साहब ने बड़े प्रेम पूर्वक जलपान कराया । इसके बाद युवक को जज साहब अक्सर बुलाया करते थे और वहाँ आता जाता रहा ।

गरीब युवक के जीवन में यह पहला अवसर था कि जब किसी रईस इतने आदर से उसे बैठाया और खिलाया- पिलाया हो ।

अंत में यह हुआ कि जज साहब ने लक्ष्मी का विवाह युवक से कर दिया ।
युवक के विदेश जाने के दिन निकट चले आ रहे थे । जब जज साहब ने सोचा कि लक्ष्मी कुछ दिन अपने पति के साथ उसके गाँव हो आए तो अच्छा ; ताकि दोनों में प्रेम का बंधन और दृढ़ हो जाए और युवक विदेश में किसी अन्य स्त्री पर आसक्त ना हो ।

जज साहब का प्रस्ताव सुनकर युवक ने कहा – मैं गाँव जा कर घर को ठीक-ठाक कर आऊं तब बहू को ले जाऊंगा ।

युवक गांव आया । गांव दूसरे जिले में शहर से बहुत दूर था और पूरा देहात था । उसका घर भी एक टूटा फूटा खंडहर ही था । उस पर एक सड़ा गला छपड़ा रखा था । उसके नीचे उसका बूढ़े पिता दिन भर बैठे बैठे हुक्का पिया करता थे ।

युवक के चाचा धनी थे और उनका घर भी बहुत बड़ा था और बेटे- पोतों एवं बहुओं से भरी हुई गृहस्थी थी । युवक ने चाचा से प्रार्थना की कि उसे वह अपने घर का बतायें और पन्द्रह दिनों के लिए उसकी बहू को अपने घर में रहने दे । चाचा ने स्वीकार कर लिया ।

घर के बाहर ही बरामदे में एक कोठरी थी युवक ने उसी को साफ करा कर उसमें जरूरी सामान रखवा दिया । एक कुर्सी और मेज भी रखवा दिया। बहु चाचा के घर में खाना खा लिया करेंगी और उसे कोठरी में उस की कोठी में रहेगी । एक लड़के को नौकर रख लिया गया ।

युवक वापस जाकर बहू को ले आया । पाँच- सात दिन बहू के साथ गांव में रहकर युवक अपनी विदेश यात्रा की तैयारी करने के लिए शहर में वापस गया और बहू चाचा के घर में अकेली रहने लगी । दोनों वक्त घर के अंदर जाकर खाना खा आती और नौकर की सहायता से दोनों वक्त कोठरी के अंदर चाय बनाकर पी लिया करती । चाय का समान वह साथ ही ले आई थी।

दो चार दिनों में बहू का परिचय गाँव की प्रायः साब छोटी बड़ी स्त्रियों और बच्चों से हो गया । बहू का स्वभाव मिलनसार था । माता पिता की धार्मिक शिक्षा और रामचरित्रमानस के नियमित पाठ से उसके हृदय में कोमलता और सहिष्णुता आ गई थी । सबसे वह हंसकर प्रेमपूर्वक मिलती , बच्चों को प्यार करती बिस्किट देती और सब को आदर से बैठाती। रेशमी साड़ी के अंदर लुभावने गुण देखकर मैली – कुचैली और फटी धोती वाली ग्रामीण स्त्रियां की झिझक जाती रही और वे खुलकर बातें करने लगी ।

बहू को सीने पिरोने अच्छा आता था, हार्मोनियम बजाना और गाना भी आता था । कंठ सुरीला था, नम्रता और विनय का प्रदर्शन करना वह जानती थी , उसका तो दरबार लगने लगा । कोठरी में दिनभर चहल पहल रहती गाँव के नरक में मानो स्वर्ग उतर आया था ।

गाँव की स्त्रियों का मुख्य विषय प्रायः निंदा हुआ करता है । कुछ स्त्रियां तो ऐसी होती हैं कि ताना मारना , व्यंग बोलना , झगड़े लगाना उनका पेशा सा होता है वह जाता है और वे घरों में चक्कर लगाया ही करती हैं । एक दिन ऐसी ही स्त्री लक्ष्मी के पास आई और उससे बिना संकोच कहा– *तुम्हारा बाप अंधा था क्या*, जो उसने बिना घर देखें विवाह कर दिया ?

लक्ष्मी ने चकित होकर पूछा — क्या यह मेरा घर नहीं है ?

स्त्री उसका हाथ पकड़ कर बरामदे में ले गई और उंगली से इशारा कर इशारे से युवक के खंडहर की और दिखला कर कहा — ‘वह देखो, तुम्हारा घर है और वह तुम्हारे ससुर जी हैं , जो छपरा के नीचे बैठकर हुक्का पी रहे हैं । यह घर तो तुम्हारे पति के चाचा का है जो अलग रहते हैं ।

लक्ष्मी ने उस स्त्री को विदा किया और कोठरी में आकर उसने गृहस्थी के जरूरी सामान – बर्तन , आटा , दाल , चावल , मिर्च , मसालों की एक सूची बनाई और नौकर को बुलाकर अपने सामान बंधवाकर उसी खंडर में भिजवाने लगी ।

चाचा ने सुना पाए । वे दौड़े आए । आँसू भर्रकर कहने लगे । बहू यह क्या कर रही हो ? मेरी बड़ी बदनामी होगी घर की स्त्रियां भी बाहर निकल आई । वह भी समझने लगी लक्ष्मी ने सबको एक उत्तर दिया दोनों घर अपने ही हैं । मैं इसमें भी रहूंगी और उसमें भी रहूंगी । फिर उसने चाचा के हाथ में कुछ रुपए और सामान की सूची देकर कहा – यह सामान बाजार से अभी मंगवा दीजिए।

चाचा लाचार होकर बहुत उदास मन से बाजार की और गए जो 1 मील दूर था । बहू खंडार में आई आते ही उसने आंचल का छोर पकड़ कर तीन बार ससुर के पैर छुए । फिर खंडहर में गई । एक कोठरी और उसके सामने छोटा सा और औसरा, घर की सीमा इतनी ही थी । नौकर ने सामान ला कर बाहर रख दिया । बहु ने उससे गोबर मंगाया ; एक बाल्टी पानी मंगाया । कोठी और औसरे सारे को झाड़ू लगाकर साफ किया । फिर रेशमी साड़ी की कछाँड मार कर वह घर लीपने बैठ गई ।

यह खबर बात की बात में गाँव भर में और उसके आस-पास के ग गाँव में भी पहुंच गई । झुंड के झुंड स्त्री पुरुष देखने आए । भीड़ लग गई । कई स्त्रियां लीपने के लिए आगे बढ़ी ; पर बहू ने किसी को हाथ लगाने नहीं दिया । वृद्धा स्त्रियां आँसू पोछने लगी । ऐसी बहू तो उन्होंने कभी देखी ही नहीं थी । पुरुष लोग उसे देवी का अवतार मान कर श्रद्धा से देखने लगे ।

इतने में बाजार से बर्तन आ गए । बहू ने पानी मंगवाकर कोठरी में स्नान किया । फिर वह रसोई बनाने बैठ गई । शीघ्र ही भोजन तैयार करके उसने ससुर जी से कहा कि वे भी स्नान करलें ।

ससुर जी आंखों में आंसू भरे मोहमुग्ध बैठे थे । किसी से कुछ बोलते ना थे । बहू की प्रार्थना सुन कर उठे , कुँए पर जाकर नहाया और आकर भोजन किया । बर्तन सब नए थे । खंडार में एक ही झिंगला खाट थी । बहू ने उस पर दरी बिछा दी । ससुर को उस पर बैठाकर चिलम चढ़ा कर हुक्का उनके हाथ में थमा दिया । फिर उसने स्वयं भोजन किया । बहू ने चाचा से कहा – दो नई खाटें और एक चौकी आज ही चाहिये । बाण के लिए उसने चाचा को पैसे भी दिए दे दिये । चाचा तो बाण खरीदने बाजार चले गए ।
लोहार और बढ़ई वही मौजूद थे । सभी तो आनंद विभोर हो रहे थे । हर एक में के मन में यही लालसा जाग उठी थी कि वह बहू की कोई सेवा करें । लोहार ने कहा मैं पाटी के लिए अभी बाँस काटकर लाता हूँ और पाएं गाड़कर खाटे बना देता हूँ ।

बढ़ई ने कहा मैं चौकी बना दूंगा ।

बाण भी आ गया । खाट बीनने वाले अपनी सेवा प्रस्तुत करने के लिए मुँह देख रहा था । उसने दो खाटे बीन दी । ससुर की झिंगला खाट भी बहू ने आए गए के लिए बनवा कर अलग रख दी । बढ़ई ने चौकी बना दी । शाम तक यह सब कुछ हो गया ।

रात में बहू ने अपने माता पिता को एक पत्र लिखा, जिसमें दिन भर में जो कुछ हुआ , सब एक-एक करके लिखा पर , पिता को यह नहीं लिखा कि तुमने भूल कि और मुझे कहां से कहां लाकर डाल दिया। बल्कि बड़े उल्लास के साथ यह लिखा कि मुझे आपकी और माता जी की शिक्षा के उपयोग करने का मौका मिल गया है।

बहू के झोपड़े पर तो मेला लगने लगा । सब उसको देवी करके मानने लगे थे । बराबर उम्र की बहुएं दूसरे गाँव से आती तो आँचल के छोर को हाथ में लेकर उसका पैर छूने को झुकती । बहू लज्जा के मारे अपने पैर साड़ी के भीतर छुपा लेती । उनको पास बैठाती, सबसे परिचय करती और अपने काढ़े हुए बेल बूटे दिखाती।
गाँव के विवाहित और अविवाहित युवक भी बहू को देखने आते ।बहु तो पर्दा करती नहीं थी , पर युवकों की दृष्टि में कामुकता नहीं थी । बल्कि जल की रेखाएं होती थी । ऐसा कठोर तप तो उन्होंने कभी देखा ही नहीं था ।

रात में बहू के झोपड़े के सामने गाँव की वृद्धि स्त्रियाँ जमा हो जाती । देवकन्या- जैसी बहू बीच में आकर बैठ जाती ।

*’आरी- आरी कुस-काँसि , बीच में सोने की राशि ।’*

बहु वृद्धाओं को आ चल के चरण छू कर प्रणाम करती ; मीठी मीठी हंसी ठिठोली भी करती । वृद्धाएं बहू के स्वभाव पर मुक्त होकर सोहर गाने लगती । लोग हंसते तो वह कहती बहू के बेटा होगा , भगवान औतार लेंगे , हम अभी से सोहर गाती हैं । बहु बेचारी सुनकर लज्जा के मारे जमीन में गड़सी जाती थी ।

चौथे रोज जज साहब की भेजी हुई एक लॉरी आई , जिसमें सीमेंट के बोरे , दरवाजों और खिड़कियों की चौखटे , और पल्ले , पलंग, मेज , कुर्सियों आदि और जरूरी लोहा लक्कड़ भरे थे और एक गुमाश्ता और दो राजगीर साथ थे ।

गुमास्ता जज साहब का एक लिफाफा भी लाया था ; जिसमें एक कागज था और उस पर एक ही पंक्ति लिखी हुई थी

*पुत्री पवित्र किए कुल दोउ*

नीचे पिता और माता दोनों के हस्ताक्षर थे ।लक्ष्मी उस कागज को छाती से चिपका कर देर तक रोती रही । जज साहब ने गुमास्ता को सब काम समझा दिया था । मकान का एक नक्शा भी उसे दे दिया था । गुमाश्ता ने गांव के पास ही एक खुली जगह पसंद की जमींदार उस जगह को बहू के नाम पर मुफ़्त ही देना चाहता था , पर गुमाश्ते ने कहा कि जज साहब की आज्ञा है कि कोई भी चीज मुफ्त में न ली जाए । आखिर जमींदार ने मामूली सी दाम लेकर जज साहब के वचनों की रक्षा की ।

पड़ोस के एक दूसरे गाँव के जमींदार ने पक्का मकान बनवाने के लिए ईटों का पजावा लगा रखा था । ईटों की जरूरत सुनकर वह स्वंय आया और बहू के नाम ईंटे मुफ्त ले लिए जाने का आग्रह करने लगा , पर गुमाश्ते ने स्वीकार नहीं । किया अंत में पजावे में जो लागत लगी थी उतना रुपया देकर ईंटे ले ली गई ।

मजदूर बिना मजदूरी लिए काम करना चाहते थे , पर बहू ने रोक दिया और कहा सब को मजदूरी लेनी होगी ।

दो राजगीर और भी रख लिए गए । पास पड़ोस के गाड़ी वाले अपनी गाड़ियां लेकर दौड़ पड़े । पजावे की कुल ईटे ढोकरआ गई मजदूरों की कमी थी ही नहीं । एक लंबे चौड़े आहाते के बीच में एक छोटा सा सीमेंट का प्लास्टर का मकान जिसमें दो कमरे नीचे और दो कमरे ऊपर तथा रसोईघर स्नानघर और शौचालय थे , दो तीन हफ्तों के बीच बनकर तैयार हो गया । अहाते में फूलों और फलों के पेड़ भी लगा दिए गए । एक पक्की कुइयाँ भी तैयार करवा दी गई ।

युवक को अभी तक किसी बात का पता नहीं था । लक्ष्मी ने भी कुछ लिखना उचित नहीं समझा ; क्योंकि भेद खुल जाने से पति को लज्जा आती और जज साहब ने भी लक्ष्मी को दूसरे पत्र में लिख भेजा था कि वहां का कोई समाचार अपने पति को ना लिखें ।

गुमाश्ते का पत्र पाकर जज साहब ने गृह प्रवेश की साइत पूछी और गुमाश्ते को लिखा कि साइत के दिन में लक्ष्मी की मां और उसके पति भी आ जाएंगे । एक हजार व्यक्तियों को भोजन कराने की पूरी तैयारी कर रखो ।

लक्ष्मी ने ससुर के लिए निवार का एक सुंदर सा पलंग उस पर बिछाने की दरी गद्दा चादर तकिए और मसहरी गांव में ही मंगा लिया था । चांदी का एक फर्शी हुक्का , चांदी का चिलम चांदी का पीक दान साथ लेते आने के लिए पिता को पत्र में लिखा था । सब चीजें आ गई थी ।

ठीक समय पर बड़ी धूमधाम से गृह प्रवेश हुआ । सबसे पहले युवक के पिता सुंदर वस्त्र पहने हुए मकान के अंदर गए । बढ़िया चादर बिछी हुई थी निवार की पलंग पर बैठाए गए , पास ही लक्ष्मी ने स्वयं चिलम चढ़ाकर फर्शी हुक्का रख दिया । लक्ष्मी ने स्कूल के लिए एक सुंदर सा देहाती जूता भी बनवाया था । वही पहन कर ससुर ने गृह में प्रवेश किया था , वह पलंग के नीचे बड़ी शोभा दे रहा था । पलंग के नीचे चांदी का पीकदान भी रखा था । ससुर को पलंग पर बैठा कर और हुक्के की सुनहरी निगाली उनके मुंह में देकर बहू ने आंचल का चोर पकड़ कर तीन बार उनके चरण छुए । ससुर के मुंह से बात तो नहीं निकलती थी । उनका तो गला फुले फूलफुल कर रह जाता था । हाँ , उनकी आंखे दिनभर अश्रुधारा गिरती रही ।

*प्रेम छिपाये ना छिपे, जा घट परगट होय ।*
*जो पै बोले नहीं, देते हैं वे रोये ।।*

गृह प्रवेश कराके लक्ष्मी की माता पिता एक कमरे में जा बैठे थे। ससुर को पलंग पर बैठाकर और अपने पति को उनके पास छोड़कर बहू अपने माता-पिता के कमरे में गई । पहले वह पिता की गोद में जा पड़ी । पिता उसे देर तक चिपटाये बैठे रहे और आंसू गिराते रहे । फिर वह माता के गले से लिपट गई । दोनों बाहें गले में लिपटा कर वह मूर्छित सी हो गई। मां-बेटी देर तक रोते रहे ।

माता-पिता से मिलकर बहू ने निमंत्रित लोगे के लिए भोजन की व्यवस्था में लग गई । उसने छोटी से छोटी कमी को भी खोज निकाला और उसे पूरा कराया । गृह प्रवेश के दिन बड़ी भीड़ थी । आसपास की गाँवो की स्त्रियां जिन में वृद्धा , युवती, बालिका सब उम्र की थी , बहू के दर्शन करने आईं थी। गरीब और नीच जाति की स्त्रियों का झुंड अलग खड़ा था । उनके कपड़े गंदे और फटे पुराने थे । बड़े घरों की स्त्रियों के बीच आने और बैठने का उनमें साहस नहीं होता था । बहु स्वयं उनके पास गई और एक- एक का हाथ पकड़ कर ले आई और बिछी हुई दरी पर एक तरफ उन्हें बैठा दिया और उनके गंदे कपड़ों का विचार किए बगैर उनके बीच बैठ गई । सब का परिचय पूछा और स्वागत सत्कार में जो पान इलायची अन्य स्त्रियों को दिया गया था , वह उन्हें भी दिया । चारों ओर से बहू पर आशीर्वादों की वृष्टि होने लगी ।

संध्या को निमंत्रित लोगों को भोजन कराया गया । लोग प्रत्येक कौर के साथ बहू को आशीर्वाद देते थे । जब तक लोग भोजन करते रहे बहू के ही गुणों का बखान करते रहे , ऐसी शोभा बनी कि कुछ कहते नहीं बनता ।

युवक तो यह सब दृश्य देखकर अवाक हो गया था । पत्नी के गुणों पर वह मुग्ध हो गया था कि दोनों आमने सामने होते तो उसके मुंह से बात तक नहीं निकलती थी । दिन भर उसकी आंखें भरी रहीं।

दो दिन उसी मकान में रह कर लक्ष्मी के ससुर के लिए वर्ष भर खाने का सामान घर में रखवा कर लक्ष्मी के नौकर को उन्हीं के पास छोड़ कर और युवक की एक चाची को, जो बहुत गरीब और अकेली थी , लक्ष्मी के ससुर के लिए खाना बनाने के लिए नियुक्त कर के जज साहब अपनी पुत्री उसकी माता और युवक के साथ लेकर अपने घर लौट गए । जाने के दिन आसपास के दस पाँच मीलों के हजारों पुरुष स्त्री बहू को विदा करने आए थे । वह दृश्य तो अदभुत था । आज भी लोग आंखों में हर्ष के आँसू भरकर बहू को याद याद करते हैं ।

वह पक्का मकान जो सड़क से थोड़ी दूर पर है वह बहू के कीर्ति स्तंभ की तरह खड़ा है ।

युवक विदेश से सम्मान पूर्वक सम्मान पूर्ण डिग्री लेकर वापस आया है और कहीं किसी बड़े पद पर है । बहू उसी के साथ है ।

एक बी ए. बहु कि इस प्रकार की कथा शायद यह सबसे पहली है और समस्त बी ए. बहुओं के लिए गर्व की वस्तु है । हम ऐसी कथाएं और सुनाना चाहते हैं ।

यह श्रीरामचरितमानस का चमत्कार है जिसने चुपचाप लक्ष्मी के जीवन में ऐसा प्रकाश पुंज भर दिया |