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वैज्ञानिक दार्शनिक संवाद, भाग -1

26.4.2020. एक बार दो विद्वानों का बड़ा रोचक संवाद चल रहा था। उनमें से एक, आधुनिक भौतिक विज्ञान का विद्वान (वैज्ञानिक) था। जो किसी कॉलेज में भौतिकविज्ञान विषय फीजिक्स का प्रोफेसर था। और दूसरा, वेद उपनिषद तथा वैदिक दर्शनों का विद्वान (दार्शनिक) था। वह भी एक गुरुकुल में दर्शन वेद आदि विषयों का प्राध्यापक था।

उनका रोचक संवाद निम्नलिखित है। कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें, तथा इससे लाभ उठाएँ।

दार्शनिक – क्या आप ईश्वर को मानते हैं? वैज्ञानिक – नहीं मानते.
दार्शनिक – क्यों नहीं मानते?
वैज्ञानिक – क्योंकि वह आँखों से दिखता नहीं है।
दार्शनिक – क्या अल्फा बीटा गामा किरणें एक्स किरणें भूमि की आकर्षण शक्ति तथा इलेक्ट्रॉन आदि पदार्थ आँखों से दिखते हैं?
वैज्ञानिक – नहीं दिखते.
दार्शनिक – तो आप इन्हें क्यों मानते हैं? वैज्ञानिक – क्योंकि ये पदार्थ आंखों से न दिखने पर भी अनुमान प्रमाण से सिद्ध होते हैं।
दार्शनिक – तो आपकी पहली बात झूठ सिद्ध हो गई। आप कह रहे थे कि, ईश्वर आंखों से नहीं दिखता, इसलिए हम ईश्वर को नहीं मानते। ये अल्फा बीटा गामा आदि किरणें और भूमि की आकर्षण शक्ति इत्यादि भी तो आंखों से नहीं दिखते, परंतु आप उन्हें तो मानते हैं।
वैज्ञानिक – आपकी बात सही है। मेरी बात गलत सिद्ध हो गई । मैं उसे वापस लेता हूं। और यह स्वीकार करता हूं कि भौतिक विज्ञान केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को ही नहीं मानता, इसके अतिरिक्त अनुमान प्रमाण को भी मानता है , क्योंकि ये अल्फा बीटा गामा आदि किरणें प्रत्यक्ष आँखों से नहीं दिखाई देती, बल्कि अनुमान प्रमाण से जानी जाती हैं, इसलिये हम इनको मानते हैं। परंतु ईश्वर तो कहीं अनुमान से भी सिद्ध नहीं हो रहा। फिर हम ईश्वर को अनुमान प्रमाण से कैसे मानें?

दार्शनिक – ठीक है। यदि अनुमान प्रमाण से ईश्वर की भी सिद्धि हो जाए, तब तो आप ईश्वर को मानेंगे या नहीं?
वैज्ञानिक – हां, तब तो मान सकते हैं।
दार्शनिक – ठीक है। (प्रत्यक्ष प्रमाण या आँखों से तो अल्फा बीटा गामा किरणें और भूमि की आकर्षण शक्ति इत्यादि नहीं दिखते। इसी तरह से ईश्वर भी आंखों से प्रत्यक्ष नहीं दिखता। तो दोनों ही प्रकार के पदार्थ प्रत्यक्ष प्रमाण से नहीं दिखते। इसलिए प्रत्यक्ष प्रमाण को हम छोड़ देते हैं।)

अब अनुमान प्रमाण के आधार पर अल्फा बीटा गामा और एक्स किरणें तथा भूमि की आकर्षण शक्ति आदि की सत्ता को आप मानते हैं। तो हम भी अनुमान प्रमाण के आधार पर ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करेंगे।

ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करने के विषय में, अनुमान प्रमाण इस प्रकार से है। अनुमान प्रमाण नियमों पर आधारित होता है। *संसार में एक नियम है, जो वस्तु बुद्धिमत्ता से बनाई जाती है, वह अपने आप नहीं बनती। उसका कोई न कोई बुद्धिमान बनाने वाला अवश्य होता है।*

उदाहरण – जैसे रोटी आभूषण मकान आदि पदार्थ बुद्धिमत्ता से बनाए जाते हैं। ये पदार्थ अपने आप नहीं बनते। इन सब को बनाने वाले बुद्धिमान कारीगर लोग, आपने और हमने प्रत्यक्ष आंखों से देखे भी हैं।
इसी प्रकार से जो घड़ी, कार, विमान आदि पदार्थ हम देखते हैं, ये पदार्थ भी बुद्धिमत्ता से बनाए जाते हैं। यद्यपि इनके बनाने वाले बुद्धिमान कारीगरों को हमने प्रत्यक्ष आँखों से नहीं देखा, फिर भी अनुमान प्रमाण से यह सिद्ध होता है कि, जैसे बुद्धिमत्ता से बनाए गए , रोटी आभूषण मकान आदि पदार्थों को बनाने वाले कारीगरों की सत्ता है। ऐसे ही बुद्धिमत्ता से बनाए गए, घड़ी कार विमान आदि पदार्थों के बनाने वाले बुद्धिमान कारीगरों की भी सत्ता है।
ठीक इसी प्रकार से, जो मनुष्य पशु पक्षियों के शरीर, सूर्य पृथ्वी सौरमंडल आकाशगंगाएँ आदि ब्रह्मांड के पदार्थ हैं, ये सब भी बुद्धिमत्ता से बनाए गए हैं, तो इनका बनाने वाला भी अवश्य ही कोई बुद्धिमान कारीगर है ही। यह बात इस अनुमान प्रमाण से सिद्ध होती है।
अब आप बताएं, क्या सौरमंडल आदि पदार्थ बुद्धिमत्ता से बनाए गए हैं या नहीं?
वैज्ञानिक – जी हाँ। ब्रह्मांड के ये पदार्थ भी बुद्धिमत्ता से बनाए गए हैं।
दार्शनिक – यदि ये पदार्थ भी बुद्धिमत्ता से बनाए गए हैं, तो इन पदार्थों को बनाने वाला भी कोई बुद्धिमान निश्चित रूप से है ही। उसकी सत्ता इस अनुमान प्रमाण से आप स्वीकार करेंगे या नहीं?
वैज्ञानिक – हां, अब यह बात अनुमान प्रमाण से समझ में आ गई, कि सौरमंडल आकाशगंगाएँ आदि ब्रह्मांड के पदार्थ भी बुद्धिमत्ता से बनाए गए हैं। और इनका भी कोई न कोई बनाने वाला अवश्य है। तो आपकी दृष्टि में इनका बनाने वाला कौन है?
दार्शनिक – हमारी दृष्टि में इनका बनाने वाला ईश्वर है। आप उसे क्या नाम देना चाहते हैं?
वैज्ञानिक – ठीक है। हम भी उसे ईश्वर नाम से स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए हम अनुमान प्रमाण से ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हैं।

दार्शनिक – आपका बहुत धन्यवाद। 🙏🌺🌷🙂✋

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सुन्दर प्रसंग
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
एक युवक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत था।वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं था।वो हर समस्या से परेशान था और उसी के बारे में सोचता रहता था।एक बार शहर से कुछ दूरी पर महात्मा का काफिला रुका।जब उस युवक को पता चला तो वह भी दर्शन के लिए उनके पास पहुंचा।
महात्मा जी के पास सैकड़ों भक्त अपनी परेशानी लेकर आए हुए थे।जब उस युवक का नम्बर आया तो उसने कहा,मैं अपनी जिंदगी से बहुत दुःखी हूं।आप कोई ऐसा उपाए बताएं कि मेरी सभी परेशानियां दूर हो जाएं।
महात्मा जी मुस्कुराए और उन्होंने कहा,आज बहुत देर हो गई है मैं तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर कल दूंगा।लेकिन तुम मेरा एक छोटा सा काम करोगे।हमारे काफिले में लगभग सौ ऊंट है,ऊंट की देखभाल करने वाला बीमार है।मैं चाहता हूं तुम इन ऊंटों की देखभाल करो। जब सभी ऊंट बैठ जाएं तो तुम सो जाना।
इतना कहकर महात्मा जी अपने तंबू में चले गए।दिन हुआ तो महात्मा जी ने उस युवक से पूछा,बेटा क्या तुम्हें अच्छी नींद आई।युवक ने कहा,मैं एक पल के लिए भी नहीं सो पाया।मैनें सभी ऊंटों को बैठाने की पूरी कोशिश की लेकिन कोई न कोई ऊंट फिर खड़ा हो जाता।
महात्मा जी बोले,मैं जानता था यही होगा।आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि ये सारे ऊंट एक साथ बैठ जाएं।युवक नाराज हो गया। वह बोला,जब आपको पता था तो आपने ऐसा करने के लिए क्यों कहा ?
तब महात्मा जी ने कहा,देखो जब तक एक समस्या का समाधान करने की कोशिश करोगे तो दूसरी समस्या खड़ी हो जाएगी। जब तक यह जीवन है ये समस्याएं बनी रहेंगी।कभी कम तो कभी ज्यादा,इसलिए इन समस्याओं का सामना करते हुए जीवन का आनंद लो।
संक्षेप में👇🏻
समस्याएं हमेशा आपके साथ हैं,इनके बारे में दिन-रात विचार करने से यह कम नहीं होतीं बल्कि बढ़ती हैं।इसलिए हर पल को खुशी के साथ जियो। ऐसा करने से आपकी हर समस्या का अंत जल्दी हो जाएगा और फिर ये समस्याएं आपको परेशान नहीं करेंगी
गोविद🙏🏻🙏🏻

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पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था।

बेटा इतना मेधावी नहीं था कि NEET क्लियर कर लेता।

इसलिए दलालों से MBBS की सीट खरीदने का जुगाड़ किया ।

ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर सब गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन अफसोस वहाँ धोखा हो गया।

अब क्या करें…?

लड़के को तो डॉक्टर बनाना है कैसे भी…!!

फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ लड़का चल नहीं पाया।

फेल होने लगा..
डिप्रेशन में रहने लगा।

रक्षाबंधन पर घर आया और घर में ही फांसी लगा ली।
सारे अरमान धराशायी…. रेत के महल की तरह ढह गए….

20 दिन बाद माँ-बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा कर आत्म-हत्या कर ली।

अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया।
माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं …

मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं
कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है।

आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Gradening ऐसे करती है, जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है।
पूरे देश के करोड़ों बच्चों को एक ही Syllabus पढ़ाया जा रहा है ..

For Example –

जंगल में सभी पशुओं को एकत्र कर सबका इम्तिहान लिया जा रहा है और पेड़ पर चढ़ने की क्षमता देख कर Rank निकाली जा रही है।

यह शिक्षा व्यवस्था, ये भूल जाती है कि इस प्रश्नपत्र में तो बेचारा हाथी का बच्चा फेल हो जाएगा और बन्दर First आ जाएगा।

अब पूरे जंगल में ये बात फैल गयी कि कामयाब वो है जो झट से पेड़ पर चढ़ जाए।

बाकी सबका जीवन व्यर्थ है।

इसलिए उन सब जानवरों के, जिनके बच्चे कूद के झटपट पेड़ पर न चढ़ पाए, उनके लिए कोचिंग Institute खुल गए, वहां पर बच्चों को पेड़ पर चढ़ना सिखाया जाता है।

चल पड़े हाथी, जिराफ, शेर और सांड़, भैंसे और समंदर की सब मछलियाँ चल पड़ीं अपने बच्चों के साथ, Coaching institute की ओर ……..

हमारा बिटवा भी पेड़ पर चढ़ेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।

हाथी के घर लड़का हुआ …….
तो उसने उसे गोद में ले के कहा- “हमरी जिन्दगी का एक ही मक़सद है कि हमार बिटवा पेड़ पर चढ़ेगा।”

और जब बिटवा पेड़ पर नहीं चढ़ पाया, तो हाथी ने सपरिवार ख़ुदकुशी कर ली।

अपने बच्चे को पहचानिए।
वो क्या है, ये जानिये।

हाथी है या शेर ,चीता, लकडबग्घा , जिराफ ऊँट है
या मछली , या फिर हंस , मोर या कोयल ?
क्या पता वो चींटी ही हो ?

और यदि चींटी है आपका बच्चा, तो हताश निराश न हों।
चींटी धरती का सबसे परिश्रमी जीव है और अपने खुद के वज़न की तुलना में एक हज़ार गुना ज्यादा वजन उठा सकती है।

इसलिए अपने बच्चों की क्षमता को परखें और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें…. ना कि भेड़ चाल चलाते हुए उसे हतोत्साहित करें ……

SAVE HUMAN BEHAVIOR FIRST…

Parents love your kids as they are🙏🏻

“क्योंकि किसी को शहनाई बजाने पर भी भारत रत्न से नवाज़ा गया है”

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रविवारीयसामान्यपोस्ट

संस्तुति बालकनी में खड़ी थी अचानक उसकी रुम मेट प्रिया उसका फोन लेकर आई
यहाँ खडी हो और कब से ये कमरे में बज रहा है आते ही उसने ताना दिया
फोन सुशांत का था उठाते ही वो बोला संस्तुति लखनऊ से दिल्ली के लिये निकल रहा हूं एक दोस्त के साथ कुछ जरुरी काम है तुमसे मिलने गाजियाबाद आऊंगा ।।
अच्छा सुनो ड्राइव कर रहा हूँ तो अब सुबह बात होगी और इतना कहकर उसने फोन रख दिया ।
संस्तुति चुपचाप कुर्सी पर बैठ गयी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुश हो सुशांत के आने पर या थोड़ा फिक्रमंद हो ?
सुशांत को वो पिछले आठ महीने से जानती थी उससे उसका परिचय फेसबुक के जरिये हुआ था।
हालांकि सुशांत का व्यवहार और उसका संस्तुति के लिये सम्मान व प्रेम कहीं से भी किसी संशय का कारण नहीं था और वो जानती थी कि सुशांत और वो मन ही मन एक दूसरे को पसंद भी करते हैं लेकिन आखिर वो उसे जानती ही कितना है जितना उसने उसे बताया है
ऊपर से केवल फेसबुक की जान पहचान ।
अब उसकी आंखों में नींद नहीं थी उसे फेसबुक पर निब्बा निब्बी के ओयो रुम वाले मीम और सोशल मीडिया पर मिलने वाले लड़को के लड़कियों से किये गये गलत व्यवहार के अजीबो गरीब ख्याल डरा रहे थे क्या करुं वो सोच में पड़ी थी क्या बहाना करके मिलने से मना कर दूं ?
प्रिया उसका चेहरा देखकर उसकी उलझन के लिये अतरंगी सुझाव दिये जा रही थी
जैसे उसके साथ कार से मत जाना ,पब्लिक प्लेस में मिलना ,पेपर स्प्रे साथ रखना फलां फलां ।
खैर सुबह चार बजे जाकर आंखे लगी संस्तुति की और ठीक 6 बजे सुशांत का फोन आ गया अभी संस्तुति ना मिलने का बहाना करने ही वाली थी कि वो बोल पड़ा दिल्ली पहुंच गया हूँ संस्तुति और काम खत्म कर दोपहर तक तुमसे मिलने आऊंगा
अच्छा सुनो , उसने कहा तुम्हारे घर के पास कोई मंदिर हो तो उसकी लोकेशन भेज दो मैं पहली बार तुमसे मन्दिर में महादेव के सामने मिलना चाहता हूँ और बस एक डेढ़ घंटे ही रुक पाऊंगा क्योंकि वापस निकलना है ।
संस्तुति के सारे बहाने कंठ में ही रुक गये और होठों पर मुस्कुराहट तैर गयी बहुत प्रेम से बस उसने इतना कहा “जल्दी आईये इंतजार कर रही हूँ “।
वो उठ कर आईने के सामने जा खड़ी हुई और उसने देखा कि रात भर जागने और तनाव ने उसके चेहरे पर जो मायूसी ला दी थी सुशांत के फोन के बाद वो छंट गयी है और चेहरा गुलाबी आभा से दमक रहा है ।।
साभार

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इब्राहीम सम्राट था। वह अपने गुरु के पास गया और उसने कहा कि मुझे दीक्षा दें।

गुरु ने क्या कहा मालूम है? गुरु ने कहा : कपड़े छोड़ दे, इसी वक्त कपड़े छोड़ दे। सम्राट से कहा कपड़े छोड़ दे! और भी शिष्य बैठे थे, सत्संग जमा था, दरबार था फकीर का। किसी से कभी उसने ऐसा न कहा था कि कपड़े छोड़ दे। और इब्राहीम को कहा कपड़े गिरा दे, इसी वक्त गिरा दे!

और इब्राहीम ने कपड़े गिरा भी दिये नग्न खड़ा हो गया। शिष्य तो चौंक गये। और जो बात फकीर ने कही, वह और भी अदभुत थी। अपना जूता उठा कर उसको दे दिया और कहा : यह ले जूता और चला जा बाजार में! नंगा जा और सिर पर जूता मारते जाना और अल्लाह का नाम लेना। लोग हंसें, लोग पत्थर फेंकें, लोग भीड़ लगायें, कोई फिक्र न करना, पूरा गांव का चक्कर लगा कर वापिस आ।

और इब्राहीम चल पड़ा। इब्राहीम के जाते ही और शिष्यों ने पूछा कि ऐसा आपने हम से कभी अपेक्षा नहीं की, यह आपने क्या किया? इसकी क्या जरूरत थी? सिर में जूते मारने से कैसे संन्यास हो जायेगा? गांव में नंगे घूमने से कैसे संन्यास हो जायेगा?

उस फकीर ने कहा तुमसे मैंने अपेक्षा नहीं की थी, क्योंकि मैंने सोचा नहीं था कि तुम इतनी हिम्मत कर सकोगे। यह सम्राट है, इसकी कूबत है। यह हिम्मत का आदमी है। इसकी हिम्मत की जाच लेनी जरूरी है। जूते मारने से कुछ नहीं होगा, और नंगे जाने से कुछ नहीं होगा; लेकिन बहुत कुछ होगा।

यह आदमी जा सका, इसी में हो गया। इस आदमी ने ना—नुच न की। इसने एक बार भी नहीं पूछा कि इसका मतलब? यह किस प्रकार का संन्यास है, यह कैसी दीक्षा! इस तरह आप दीक्षा देते हैं? किस को इस तरह दीक्षा दी? इसने संदेह न उठाया, सवाल न उठाया; इसी में घटना घट गयी। यह आदमी मेरा हो गया।

तुम वर्षों से यहां मेरे पास हो और इतने निकट न आये, जितना यह आदमी मेरे निकट आ गया है—चुपचाप वस्त्र गिरा कर, जो जूता लेकर चला गया है और गांव में फजीहत करवा रहा है। अपने अहंकार को मिट्टी में मिलवा रहा है! तुम वर्षों में मेरे करीब न आ सके, यह आदमी मेरे करीब आ गया।

और इब्राहीम जब लौटा, तो उसके चेहरे पर रौनक और थी, आदमी दूसरा था—दीप्तिवान था! अब जूता तो बाहर की चीज है और कपड़े भी बाहर की चीज हैं। ऐसे तो सभी बाहर है। लेकिन सदगुरु को उपाय करने पड़ते हैं। तुम बाहर हो, तुम्हें भीतर लाने के उपाय करने पड़ते हैं। इब्राहीम अदभुत फकीर हुआ। उसकी गहराइयों का कुछ कहना नहीं! मगर इस छोटी—सी बात में घटना घट गयी!

ओशो, मरो है जोगी मरो-२०

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Farmers and Rain
Or
Sharpen your Skills

(Must read for lockdown)

Once, Lord Indra got upset with Farmers, he announced there will be no rain for 12 years & you won’t be able to produce crops.

Farmers begged for clemency from Lord Indra , who then said , Rain will be possible only if Lord Shiva plays his Damru. But he secretly requested Lord Shiva not to agree to these Farmers & when Farmers reached Lord Shiva he repeated the same thing that he will play Damru after 12 years.

Disappointed Farmers decided to wait till 12 years.

But one Farmer regularly was digging, treating & putting manure in the soil & sowing the seeds even with no crop emerging.

Other Farmers were making fun of that Farmer . After 3 years all Farmers asked that Farmer why are you wasting your time n energy when you know that rains will not come before 12 years.

He replied “I know that crop won’t come out but I’m doing it as a matter of “practice”. After 12 years I will forget the process of growing crops and working in the field so I must keep it doing so that I’m fit to produce the crop the moment there is rain after 12 years.”

Hearing his argument Goddess Parvati praised his version before Lord Shiva & said “You may also forget playing the Damru after 12 years!”

The innocent Lord Shiva in his anxiety just tried to play the Damru, to check if he could….and hearing the sound of Damru immediately there was rain and the farmer who was regularly working in the field got his crop emerged immediately while others were disappointed.

It is the practice which keeps on making you perfect.

You become even diseased or old just because you don’t practice.

Practice is the essence of quality survival.

So, let lockdown lift after 2 weeks, 2 months or 2 years. Whatever trade or profession you are in, keep sharpening your skills, practice with what you have, upgrade your knowledge.