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प्रदक्षिणा


प्रदक्षिणा

अब तक बैठकर मन, वचन से ही मन्त्रोच्चार किया जाता रहा । हाथों का ही प्रयोग हुआ । अब यज्ञ मार्ग पर चलना शेष है । इसी पर तो भावना के परिष्कार की, यज्ञ प्रक्रिया की सफलता निर्भर है । अब यह कर्मयात्रा आरंभ होती है । यज्ञ अनुष्ठान में जिस दिशा में चलने का संकेत है, प्रदक्षिणा में उसी दिशा में चलना आरम्भ किया जाता है ।
कार्य के चार चरण हैं-
१-संकल्प,
२- प्रारम्भ,
३-पुरुषार्थ,
४-तन्मयता ।

इन चार प्रक्रियाओं से समन्वित जो भी कार्य किया जाएगा, वह अवश्य सफल होगा । यज्ञमय जीवन जीने के लिए चार कदम बढ़ाने, चार अध्याय पूरे करने का पूर्वाभ्यास-प्रदर्शन किया गया । एकता, समता, ममता, शुचिता चारों लक्ष्य पूरे करने के लिए साधना, स्वाध्याय, सेवा और संयम की गतिविधियाँ अपनाने के लिए चार परिक्रमाएँ हैं । हम इस मार्ग पर चलें, यह संकल्प प्रदक्षिणा के अवसर पर हृदयंगम किया जाना चाहिए और उस पथ पर निरन्तर चलते रहना चाहिए ।
सब लोग दायें हाथ की ओर घूमते हुए यज्ञशाला की परिक्रमा करें, स्थान कम हो, तो अपने स्थान पर खड़े रहकर चारों दिशाओं में घूमकर एक परिक्रमा करने से भी काम चल जाता है ।
परिक्रमा करते हुए दोनों हाथ जोड़कर गायत्री वन्दना एवं यज्ञ महिमा का गान करें । परिक्रमा केवल मन्त्र से करें, कोई एक स्तुति करें या दोनों करें, इसका निर्धारण समय की मर्यादा को ध्यान में रखकर कर लेना चाहिए ।

ॐ यानि कानि च पापानि, ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्ति, प्रदक्षिण पदे-पदे ।

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रामायण के प्रमुख पात्र एवं उनका परिचय

  मित्रों अवश्य जाने और अपने आसपास सभी को बतायें भी:- 

  ये जानकारी मैंने मात्र इसलिए साझा की है जिससे आप रामायण को आसानी से और अच्छे से समझ सकें। 

  दशरथ – रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल प्रदेश के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या। 

  कौशल्या – दशरथ की बङी रानी, राम की माता। 

  सुमित्रा – दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुधन की माता। 

  कैकयी – दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता। 

  सीता – जनकपुत्री, राम की पत्नी। 

  उर्मिला – जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी। 

  मांडवी – जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी। 

श्रुतकीर्ति – जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न की पत्नी। 

  राम – दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति। 

  लक्ष्मण – दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति। 

  भरत – दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति। 

  शत्रुध्न – दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासुर के संहारक। 

  शान्ता – दशरथ की पुत्री, राम बहन। 

  बाली – किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयों का बल। 

  सुग्रीव – बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमान जी ने मित्रता करवाई। 

  तारा – बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओं में स्थान। 

  रुमा – सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी। 

  अंगद – बाली तथा तारा का पुत्र। 

  रावण – ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र। 

  कुंभकर्ण – रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) का पुत्र। 

  कुंभिनसी – रावण तथा कूंभकर्ण की बहन, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा (केकसी) की पुत्री। 

  विश्रवा – ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा-राका-मालिनी के पति। 

  विभीषण – विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त। 

  पुष्पोत्कटा (केकसी) – विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता। 

  राका – विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता। 

  मालिनी – विश्रवा की तीसरी पत्नी, खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता। 

  त्रिसरा – विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति। 

  शूर्पणखा – विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-दूसन एवं त्रिसरा की बहन, विंध्य क्षेत्र में निवास। 

  मंदोदरी – रावण की पत्नी, तारा की बहन, पंचकन्याओ मे स्थान। 

  मेघनाद – रावण का पुत्र इंद्रजीत, लक्ष्मण द्वारा वध। 

  दधिमुख – सुग्रीव के मामा। 

  ताड़का – राक्षसी, मिथिला के वनों में निवास, राम द्वारा वध। 

  मारीची – ताड़का का पुत्र, राम द्वारा वध (स्वर्ण मर्ग के रूप मे )। 

  सुबाहू – मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध। 

  सुरसा – सर्पो की माता। 

  त्रिजटा – अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग। 

  प्रहस्त – रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध में मृत्यु। 

  विराध – दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध। 

  शंभासुर – राक्षस, इन्द्र द्वारा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा। 

  सिंहिका – लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकड़कर खाती थी। 

  कबंद – दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धड़ में घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकड़ा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमें गाड़ दिया। 

  जामबंत – रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति। 

  नल – सुग्रीव की सेना का वानरवीर। 

  नील – सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी। 

  नल और नील – सुग्रीव सेना में इंजीनियर व राम सेतु निर्माण मे महान योगदान। (विश्व के प्रथम इंटरनेशनल हाईवे “रामसेतु” के आर्किटेक्ट इंजीनियर) 

  शबरी – अस्पृश्य जाती की रामभक्त, मतंग ऋषि के आश्रम में राम-लक्ष्मण-सीता का आतिथ्य सत्कार। 

  संपाती – जटायु का बड़ा भाई, वानरों को सीता का पता बताया। 

  जटायु – रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार। 

  गृह – श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था। 

  हनुमान – पवन के पुत्र, राम भक्त, सुग्रीव के मित्र। 

  सुषेण वैध – सुग्रीव के ससुर। 

  केवट – नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी। 

  शुक्र-सारण – रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये। 

  अगस्त्य – पहले आर्य ऋषि जिन्होंने विन्ध्याचल पर्वत पार किया था तथा दक्षिण भारत गये। 

  गौतम – तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट। 

  अहल्या – गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित, राम ने शाप मुक्त किया, पंचकन्याओं में स्थान। 

  ऋण्यश्रंग – ऋषि जिन्होंने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कटाया था। 

  सुतीक्ष्ण – अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि। 

  मतंग – ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी। 

  वसिष्ठ – अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं के गुरु। 

  विश्वमित्र – राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी। 

  शरभंग – एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम। 

  सिद्धाश्रम – विश्वमित्र के आश्रम का नाम। 

  भरद्वाज – बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे, माँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था। 

  सतानन्द – राम के स्वागत को जनक के साथ जाने वाले ऋषि। 

  युधाजित – भरत के मामा। 

  जनक – मिथिला के राजा। 

  सुमन्त्र – दशरथ के आठ मंत्रियों में से प्रधान। 

  मंथरा – कैकयी की मुंह लगी दासी, कुबड़ी। 

  देवराज – जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ (पिनाक) रख दिया था। 

  अयोध्या  – राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी, बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौड़ी, नगर के चारों ओर ऊँची व चौड़ी दीवारें व खाई थीं। राजमहल से आठ सड़के बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी। 

  मित्रों मैंने ये सारे तथ्य कई जगह से संग्रह किये हैं त्रुटि हो सकती है। अतः यदि कहीं कोई त्रुटि या कमी हो अवश्य अवगत करायें।

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शुभकामना मन्त्र:

यह शुभकामना मन्त्र सबके कल्याण की अभिव्यक्ति के लिए है। हमारे मन में किसी के प्रति द्वेष न हो, अशुभ चिन्तन किसी के लिए भी न करें। जिनसे संबंध कटु हो गये हों, उनके लिए भी हमें मङ्गल कामना ही करनी चाहिए। द्वेष-दुर्भाव किसी के लिए भी नहीं करना चाहिए। सबके कल्याण में अपना कल्याण समाया हुआ है। परमार्थ में स्वार्थ जुड़ा हुआ है, यह मान्यता रखते हुए हमें सर्वमङ्गल की व लोककल्याण की आकांक्षा रखनी चाहिए। शुभ कामनाएँ इसी की अभिव्यक्ति के लिए हैं।

सब लोग दोनों हाथ पसारें, इन्हें याचना मुद्रा में मिला हुआ रखें। निम्नलिखित मन्त्रोच्चार के साथ-साथ इन्हीं भावनाओं से मन को भरे रहें।

ॐ स्वस्ति प्रजाभ्यः परिपालयन्तां, न्याय्येन मार्गेण महीं महीशाः ।
गोब्राह्मणेभ्यः शुभमस्तु नित्यं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु॥१॥

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखमाप्नुयात्॥२॥

श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां, विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम् ।
तेज आयुष्यमारोग्यं, देहि मे हव्यवाहन॥३॥

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श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां बुद्धिं श्रियं बलम् ।
आयुष्यं तेज आरोग्यं देहि मे हव्यवाहन ॥

Meaning:
Oh! Messenger (Agni) give me faith, wisdom, glory, understanding, ing, intellect, wealth, power, longetivity, lusture, and health.

======================Word meanings:
श्रद्धां = faith; dedication; belief;
मेधां = intellect; intelligence; also Sarasvati the goddess of ing;
यशः = fame; reputation;
प्रज्ञां = conscipusness;
विद्यां = knowledge;
बुद्धिं = intellect; intelligence;
श्रियं = Goddess LakShmi; wealth; prosperity;
बलं = A lad or son;
आयुष्यं = promoting longevity;
तेज = power; strength; body’s lustre or shine; firepower; sharpness;
आरोग्यं = good health;
देहि = Give;
मे = to me or my;
ॐ = same as `OM’ i.e. the praNava or `o.nkAra’ mantra;
नम = mine; my;
इति = thusthus;

=====================

क्रियासिद्धिस्सत्वे भवति महतां नोपकरणे ।
सेवादीक्षित ! चिरप्रतिज्ञ ! मा विस्मर भोस्सृक्तिम् ॥

न धनं न बलं नापि सम्पदा न स्याज्जनानुकम्पा
सिद्धा न स्यात् कार्यभूमिका न स्यादपि प्रोत्साहः
आवृणोतु वा विघ्नवारिधिस्त्वं मा विस्मर सूक्तिम् । क्रियासिद्धि: ॥

आत्मबलं स्मर बाहुबलं धर परमुखप्रेक्षी मा भू:
क्वचिदपि मा भूदात्मविस्मृतिः न स्याल्लक्ष्याच्च्यवनम् ।
आसादय जनमानसतप्रीतिं सुचिरं संस्मर सूक्तिम्। क्रियासिद्धिः ॥

अरुणसारथिं विकलसाधनं सूर्यं संस्मर नित्यम्
शूरपूरुषान् दृढानजेयान् पदात्पदं स्मर गच्छन्
सामान्येतरदृग्भ्यस्सोदर, सिध्यति कार्यमपूर्वम्। क्रियासिद्धिः ॥

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देवी सिंग तोमर

अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे

इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए —

यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ

क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े
तो कृष्ण कथा के रूप में होती है ।

जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ “राघवयादवीयम्” ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है।

इस ग्रन्थ को
‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे
पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और
विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।

पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ “राघवयादवीयम।”

उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

अर्थातः
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूं, जो
जिनके ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्री की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापिस लौटे।

अब इस श्लोक का विलोमम्: इस प्रकार है

सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

अर्थातः
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के
चरणों में प्रणाम करता हूं, जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ
विराजमान है तथा जिनकी शोभा समस्त जवाहरातों की शोभा हर लेती है।

” राघवयादवीयम” के ये 60 संस्कृत श्लोक इस प्रकार हैं:-

राघवयादवीयम् रामस्तोत्राणि
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥

विलोमम्:
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥

साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥ २॥

विलोमम्:
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥ २॥

कामभारस्स्थलसारश्रीसौधासौघनवापिका ।
सारसारवपीनासरागाकारसुभूरुभूः ॥ ३॥

विलोमम्:
भूरिभूसुरकागारासनापीवरसारसा ।
कापिवानघसौधासौ श्रीरसालस्थभामका ॥ ३॥

रामधामसमानेनमागोरोधनमासताम् ।
नामहामक्षररसं ताराभास्तु न वेद या ॥ ४॥

विलोमम्:
यादवेनस्तुभारातासंररक्षमहामनाः ।
तां समानधरोगोमाननेमासमधामराः ॥ ४॥

यन् गाधेयो योगी रागी वैताने सौम्ये सौख्येसौ ।
तं ख्यातं शीतं स्फीतं भीमानामाश्रीहाता त्रातम् ॥ ५॥

विलोमम्:
तं त्राताहाश्रीमानामाभीतं स्फीत्तं शीतं ख्यातं ।
सौख्ये सौम्येसौ नेता वै गीरागीयो योधेगायन् ॥ ५॥

मारमं सुकुमाराभं रसाजापनृताश्रितं ।
काविरामदलापागोसमावामतरानते ॥ ६॥

विलोमम्:
तेन रातमवामास गोपालादमराविका ।
तं श्रितानृपजासारंभ रामाकुसुमं रमा ॥ ६॥

रामनामा सदा खेदभावे दया-वानतापीनतेजारिपावनते ।
कादिमोदासहातास्वभासारसा-मेसुगोरेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥

विलोमम्:
मेरुभूजेत्रगाकाणुरेगोसुमे-सारसा भास्वताहासदामोदिका ।
तेन वा पारिजातेन पीता नवायादवे भादखेदासमानामरा ॥ ७॥

सारसासमधाताक्षिभूम्नाधामसु सीतया ।
साध्वसाविहरेमेक्षेम्यरमासुरसारहा ॥ ८॥

विलोमम्:
हारसारसुमारम्यक्षेमेरेहविसाध्वसा ।
यातसीसुमधाम्नाभूक्षिताधामससारसा ॥ ८॥

सागसाभरतायेभमाभातामन्युमत्तया ।
सात्रमध्यमयातापेपोतायाधिगतारसा ॥ ९॥

विलोमम्:
सारतागधियातापोपेतायामध्यमत्रसा ।
यात्तमन्युमताभामा भयेतारभसागसा ॥ ९॥

तानवादपकोमाभारामेकाननदाससा ।
यालतावृद्धसेवाकाकैकेयीमहदाहह ॥ १०॥

विलोमम्:
हहदाहमयीकेकैकावासेद्ध्वृतालया ।
सासदाननकामेराभामाकोपदवानता ॥ १०॥

वरमानदसत्यासह्रीतपित्रादरादहो ।
भास्वरस्थिरधीरोपहारोरावनगाम्यसौ ॥ ११॥

विलोमम्:
सौम्यगानवरारोहापरोधीरस्स्थिरस्वभाः ।
होदरादत्रापितह्रीसत्यासदनमारवा ॥ ११॥

यानयानघधीतादा रसायास्तनयादवे ।
सागताहिवियाताह्रीसतापानकिलोनभा ॥ १२॥

विलोमम्:
भानलोकिनपातासह्रीतायाविहितागसा ।
वेदयानस्तयासारदाताधीघनयानया ॥ १२॥

रागिराधुतिगर्वादारदाहोमहसाहह ।
यानगातभरद्वाजमायासीदमगाहिनः ॥ १३॥

विलोमम्:
नोहिगामदसीयामाजद्वारभतगानया ।
हह साहमहोदारदार्वागतिधुरागिरा ॥ १३॥

यातुराजिदभाभारं द्यां वमारुतगन्धगम् ।
सोगमारपदं यक्षतुंगाभोनघयात्रया ॥ १४॥

विलोमम्:
यात्रयाघनभोगातुं क्षयदं परमागसः ।
गन्धगंतरुमावद्यं रंभाभादजिरा तु या ॥ १४॥

दण्डकां प्रदमोराजाल्याहतामयकारिहा ।
ससमानवतानेनोभोग्याभोनतदासन ॥ १५॥

विलोमम्:
नसदातनभोग्याभो नोनेतावनमास सः ।
हारिकायमताहल्याजारामोदप्रकाण्डदम् ॥ १५॥

सोरमारदनज्ञानोवेदेराकण्ठकुंभजम् ।
तं द्रुसारपटोनागानानादोषविराधहा ॥ १६॥

विलोमम्:
हाधराविषदोनानागानाटोपरसाद्रुतम् ।
जम्भकुण्ठकरादेवेनोज्ञानदरमारसः ॥ १६॥

सागमाकरपाताहाकंकेनावनतोहिसः ।
न समानर्दमारामालंकाराजस्वसा रतम् ॥ १७ विलोमम्:
तं रसास्वजराकालंमारामार्दनमासन ।
सहितोनवनाकेकं हातापारकमागसा ॥ १७॥

तां स गोरमदोश्रीदो विग्रामसदरोतत ।
वैरमासपलाहारा विनासा रविवंशके ॥ १८॥

विलोमम्:
केशवं विरसानाविराहालापसमारवैः ।
ततरोदसमग्राविदोश्रीदोमरगोसताम् ॥ १८॥

गोद्युगोमस्वमायोभूदश्रीगखरसेनया ।
सहसाहवधारोविकलोराजदरातिहा ॥ १९॥

विलोमम्:
हातिरादजरालोकविरोधावहसाहस ।
यानसेरखगश्रीद भूयोमास्वमगोद्युगः ॥ १९॥

हतपापचयेहेयो लंकेशोयमसारधीः ।
राजिराविरतेरापोहाहाहंग्रहमारघः ॥ २०॥

विलोमम्:
घोरमाहग्रहंहाहापोरातेरविराजिराः ।
धीरसामयशोकेलं यो हेये च पपात ह ॥ २०॥

ताटकेयलवादेनोहारीहारिगिरासमः ।

हासहायजनासीतानाप्तेनादमनाभुवि ॥ २१॥

विलोमम्:
विभुनामदनाप्तेनातासीनाजयहासहा ।
ससरागिरिहारीहानोदेवालयकेटता ॥ २१॥

भारमाकुदशाकेनाशराधीकुहकेनहा ।
चारुधीवनपालोक्या वैदेहीमहिताहृता ॥ २२॥

विलोमम्:
ताहृताहिमहीदेव्यैक्यालोपानवधीरुचा ।
हानकेहकुधीराशानाकेशादकुमारभाः ॥ २२॥

हारितोयदभोरामावियोगेनघवायुजः ।
तंरुमामहितोपेतामोदोसारज्ञरामयः ॥ २३॥

विलोमम्:
योमराज्ञरसादोमोतापेतोहिममारुतम् ।
जोयुवाघनगेयोविमाराभोदयतोरिहा ॥ २३॥

भानुभानुतभावामासदामोदपरोहतं ।
तंहतामरसाभक्षोतिराताकृतवासविम् ॥ २४॥

विलोमम्:
विंसवातकृतारातिक्षोभासारमताहतं ।
तं हरोपदमोदासमावाभातनुभानुभाः ॥ २४॥

हंसजारुद्धबलजापरोदारसुभाजिनि ।
राजिरावणरक्षोरविघातायरमारयम् ॥ २५॥

विलोमम्:
यं रमारयताघाविरक्षोरणवराजिरा ।
निजभासुरदारोपजालबद्धरुजासहम् ॥ २५॥

सागरातिगमाभातिनाकेशोसुरमासहः ।
तंसमारुतजंगोप्ताभादासाद्यगतोगजम् ॥ २६॥

विलोमम्:
जंगतोगद्यसादाभाप्तागोजंतरुमासतं ।
हस्समारसुशोकेनातिभामागतिरागसा ॥ २६॥

वीरवानरसेनस्य त्राताभादवता हि सः ।
तोयधावरिगोयादस्ययतोनवसेतुना ॥ २७॥

विलोमम्
नातुसेवनतोयस्यदयागोरिवधायतः ।
सहितावदभातात्रास्यनसेरनवारवी ॥ २७॥

हारिसाहसलंकेनासुभेदीमहितोहिसः ।
चारुभूतनुजोरामोरमाराधयदार्तिहा ॥ २८॥

विलोमम्
हार्तिदायधरामारमोराजोनुतभूरुचा ।
सहितोहिमदीभेसुनाकेलंसहसारिहा ॥ २८॥

नालिकेरसुभाकारागारासौसुरसापिका ।
रावणारिक्षमेरापूराभेजे हि ननामुना ॥ २९॥

विलोमम्:
नामुनानहिजेभेरापूरामेक्षरिणावरा ।
कापिसारसुसौरागाराकाभासुरकेलिना ॥ २९॥

साग्र्यतामरसागारामक्षामाघनभारगौः ॥
निजदेपरजित्यास श्रीरामे सुगराजभा ॥ ३०॥

विलोमम्:
भाजरागसुमेराश्रीसत्याजिरपदेजनि ।स
गौरभानघमाक्षामरागासारमताग्र्यसा ॥ ३०॥

॥ इति श्रीवेङ्कटाध्वरि कृतं श्री ।।

कृपया अपना थोड़ा सा कीमती वक्त निकाले और उपरोक्त श्लोको को गौर से अवलोकन करें कि यह दुनिया में कहीं भी ऐसा न पाया जाने वाला ग्रंथ है ।
जय श्री राम

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दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी आप के मोबाइल में


पीडीऍफ़(PDF) फाइल क्या है

पीडीऍफ़(PDF) फाइल एक फॉर्मेट है पीडीऍफ़ का पूरा नाम पोर्टेबल डॉक्यूमेंट फाइल(Portable Document File) ये किसी भी इमेज,टेक्स्ट,किताब,को एक readable फाइल मैं कोवर्ट कर देती जिससे यूजर आसानी से उसको रीड कर पाए। उसके बाद आप इस पीडीऍफ़(PDF) को इंटरनेट पर कही पर भी भेज सकते है और इसको पढ़ सकते है और इस पीडीऍफ़(PDF) फाइल को ओपन करने के लिए आपके पास पीडीऍफ़ रीडर सॉफ्टवेयर होना चाहिए उसी मदद से आप इस फाइल को ओपन करके पढ़ सकते है.

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किताब बनाने के लिए खूब सारे पेड़ काटने पड़ते है. पर्यावरण सुरक्षित रहता है. किताब गम जाने का डर नहीं. किताब जुनी हो जाने पर आगे के पन्ने हमेशा गायब हो जाते है. मित्र को किताब देने के बाद कभी कभी वापस नहीं आती. लाइब्रेरी में देखि किताब बाजार में खरीद कर भी नहीं मिलती तब pdf डीजीताईज कर ये सारी दिक्कते से मुक्त हो सकते है.

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आप के पास काफी किताबे है. रखने के लिए जगह नहीं. आप सारी किताबो को pdf में डीजीताईज करवा सकते हो. आप की १००० एक हजार किताबे एक मोबाइल में समा सकती है. और वो आप कहा पे भी ले जा कर पढ़ सकते हो. आप की किताबो को डीजीताईज करने और चार्जिस के लिए यहाँ संपर्क करे. Harshad30@hotmail.com

जो परप्रांत में रहते है वो कुरियर या पोस्ट से किताब भेज सकते है. रिटर्न कुरियर और स्कैनिंग (pdf) का चार्ज कस्टमर को देना रहेगा. पता निचे दिया हुआ है.

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. “परमात्मा की कृपा” सन्तों की एक सभा चल रही थी। किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगाजल भरकर वहाँ रखवा दिया ताकि सन्त जनों को जब प्यास लगे तो गंगाजल पी सकें। सन्तों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था। उसने गंगाजल से भरे घड़े को देखा तो उसे तरह-तरह के विचार आने लगे। वह सोचने लगा- अहा ! यह घड़ा कितना भाग्यशाली है। एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगाजल भरा गया और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा। सन्तों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा। ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है। घड़े ने उसके मन के भाव पढ़ लिए और घड़ा बोल पड़ा- बन्धु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा सिर्फ मिट्टी का ढेर था। किसी काम का नहीं था। कभी ऐसा नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है। फिर एक दिन एक कुम्हार आया।उसने फावड़ा मार-मारकर हमको खोदा और मुझे बोरी में भर कर गधे पर लादकर अपने घर ले गया। वहाँ ले जाकर हमको उसने रौंदा, फिर पानी डालकर गूंथा, चाकपर चढ़ाकर तेजी से घुमाया, फिर गला काटा, फिर थापी मार-मारकर बराबर किया। बात यहीं नहीं रूकी, उसके बाद आँवे के आग में झोंक दिया जलने को। इतने कष्ट सहकर बाहर निकला तो गधे पर लादकर उसने मुझे बाजार में बेचने के लिए लाया गया। वहाँ भी लोग मुझे ठोक-ठोककर देख रहे थे कि ठीक है कि नहीं ? ठोकने-पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या, बस 20 से 30 रुपये। मैं तो पल-पल यही सोचता रहा कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था। रोज एक नया कष्ट एक नई पीड़ा देते हो। मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है। लेकिन ईश्वर की योजना कुछ और ही थी, किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया और जब मुझमें गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी प्रभु ही कृपा थी। उसका मुझे वह गूंथना भी प्रभु की कृपा थी। मुझे आग में जलाना भी प्रभु की मर्जी थी और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भी प्रभु ही इच्छा थी। अब मालूम पड़ा कि मुझ पर सब परमात्मा की कृपा ही थी। बुरी परिस्थितियाँ हमें इतनी विचलित कर देती हैं कि हम परमात्मा के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठाने लगते हैं और खुद को कोसने लगते हैं, क्यों हम सबमें शक्ति नहीं होती उनकी लीला समझने की। कई बार हमारे साथ भी ऐसा ही होता है हम खुद को कोसने के साथ परमात्मा पर अंगुली उठा कर कहते हैं कि उसने मेरे साथ ही ऐसा क्यों किया, क्या मैं इतना बुरा हूँ ? भगवान ने सारे दुःख दर्द मुझे ही क्यों दिए। लेकिन सच तो ये है कि भगवान ने उन तमाम पत्थरों की भीड़ में से तराशने के लिए एक आप को चुना है। अब तराशने में तो थोड़ी तकलीफ तो झेलनी ही पड़ती है। ---------::;×:::--------- "जय जय श्री राधे"


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नाव नंदन प्रसाद

बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है, बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी…

मण्डली में 22-24 कलाकार थे जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे, वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे…

पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे, फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे…

एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रही थी, तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वो शिव धनुष हल्का और नरम लकड़ी से बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो !!

पिछली बार धनुष तोड़ने में वक़्त लग गया था… इस बात पर फौजदार कुपित हो गया क्योंकि लीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था और पिछला धनुष भी उसी से बनवाया था…

इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में कहा सुनी हो गयी, फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और उसने पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था …

संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था…फौजदार मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है दे दीजिए…..

गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेट कर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया…

रात में रामलीला शुरू हुई तो फौजदार ने चुपके धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया, खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया…

रामलीला शुरू हुई, पण्डित जी हारमोनियम पर राम चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे… हजारों की संख्या में दर्शक शिव धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे…

रामलीला धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े…पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठा ही नहीं, कलाकार को सत्यता का आभास हो गया गया, उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कतार दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है…

उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी, हजारों लोगों के सामने और ये कलाकार की नहीं स्वयं प्रभु राम की तौहीन सरे बाजार होने वाली है.. पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का इशारा किया और खुद को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू कर दी….

जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि इस इशारे के बाद जैसे पंडित जी ने आंख बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था…

सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए… नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी..पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी आसमान में बिन बादल बिजली कौंधने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था…

दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा और क्यों हो रहा….पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कही—-

लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें।
काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।
भरे भुवन धुनि घोरकठोरा॥

तभी रंगमंच पर बिजली कड़कने की सी एक टँकार हुई और अगले ही क्षण राम के हाथों में शिव-धनुष टूट कर झूल रहा था। दर्शकों के मध्य चारों ओर करतल-ध्वनी होने लगी और तालियों की गड़गड़ाहट से लीला-स्थल गूँज उठा। मानो आज यथार्थ का शिव-धनुष ही राम ने भंग कर दिया हो। पं. कृपाराम का नाम आज सचमुच ही चरितार्थ हो गया था यानी राम ने सचमुच ही आज उन पर कृपा कर दी थी।

दूसरे दिन पं. कृपाराम दुबे और उनके मेजबान पं. जगेश्वर शुक्ला एक-दूसरे के सामने फूट-फूट कर रो रहे थे। पं. दुबे रो-रो कर अपने प्रभु राम की कृपा और महिमा का बखान कर रहे थे। तो शुक्ला जी इसलिए रो रहे थे कि वे भी अनजाने में ही सही लेकिन फौजदार के साथ पाप के भागीदार बने जिसका पश्चाताप उन्हें जीवन-पर्यन्त (सन् 1905 ) तक बना रहा और अपने इस ‘पाप’ के प्रायश्चित-स्वरूप शुक्ला ने न जाने कितने ही नवधा-रामायण व धार्मिक अनुष्ठान किए। फौजदार को उस रात के बाद किसी ने कहीं नहीं देखा।

❤️ जय श्री राम ❤️

साभार

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

✡ घर गृहस्थी परिवार
ग्रुप की सादर भेंट ✡

हंस जैन रामनगर खण्डवा
98272 14427

एक रिश्ता ऐसा भी
🔆🔆🔆🔆🔆🔆

पिताजी जोऱ से चिल्लाते हैं ।प्रिंस दौड़कर आता है, और पूछता है…

क्या बात है पिताजी?

पिताजी- तूझे पता नहीं है, आज तेरी बहन रौनक आ रही है?

वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी..

अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ,

हाँ और सुन…तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा जो तूने कल खरीदी है…
उसे अच्छा लगेगा,

प्रिंस – लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही…
और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहकर ले गया कि गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है।

पिताजी – ठीक है तो तू स्टेशन तो जा किसी की गाड़ी लेकर
या किराया की करके?
उसे बहुत खुशी मिलेगी ।

प्रिंस – अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी?
आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो कोई टैक्सी या आटो लेकर—–

पिताजी – तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए? घर मे गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी?

प्रिंस – ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं जा नहीं सकता ।

पिताजी – तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं? शादी हो गई तो क्या बहन पराई हो गई ?

क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं?
तेरा जितना अधिकार है इस घर में,
उतना ही तेरी बहन का भी है। कोई भी बेटी या बहन मायके छोड़ने के बाद पराई नहीं होती।

प्रिंस – मगर मेरे लिए वह पराई हो चुकी है और इस घर पर सिर्फ मेरा अधिकार है।

तडाक …!
अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है प्रिंस पर,
और तभी माँ आ जाती है ।

मम्मी – आप कुछ शरम तो कीजिए ऐसे जवान बेटे पर हाँथ बिलकुल नहीं उठाते।

पिताजी – तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा, ?

अपनी बहन को पराया कहता है ये वही बहन है जो इससे एक पल भी जुदा नहीं होती थी
हर पल इसका ख्याल रखती थी। पाकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए कुछ न कुछ खरीद देती थी। बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा अपने भाई से गले लगकर रोई थी।
और ये आज उसी बहन को पराया कहता है।

प्रिंस -(मुस्कुराकर) बुआ का भी तो आज ही जन्मदिन है पापा…वह कई बार इस घर मे आई है मगर हर बार अॉटो से आई है..आपने कभी भी अपनी गाड़ी लेकर उन्हें लेने नहीं गये…

माना वह आज वह तंगी मे है मगर कल वह भी बहुत अमीर थी । आपको मुझको इस घर को उन्होंने दिल खोलकर सहायता और सहयोग किया है।
बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी फिर रश्मि दी और बुआ मे फर्क कैसा।
रश्मि मेरी बहन है तो बुआ भी तो आपकी बहन है।

पापा… आप मेरे मार्गदर्शक हो आप मेरे हीरो हो मगर बस इसी बात से मैं हरपल अकेले में रोता हूँ।

की तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आती है….
तब तक पापा भी प्रिंस की बातों से पश्चाताप की
आग मे जलकर रोने लगे और इधर प्रिंस भी

कि रौनक दौड़कर पापा मम्मी से गले मिलती है..

लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है कि क्या हुआ पापा?

पापा – तेरा भाई आज मेरा भी पापा बन गया है ।

रश्मि – ए पागल…!!
नई गाड़ी न?
बहुत ही अच्छी है मैंने ड्राइवर को पीछे बिठाकर खुद चलाके आई हूँ और कलर भी मेरी पसंद का है।

प्रिंस – happy birthday to you दी…वह गाड़ी आपकी है और हमारे तरफ से आपको birthday gift..!!

बहन सुनते ही खुशी से उछल पड़ती है कि तभी बुआ भी अंदर आती है ।

बुआ – क्या भैया आप भी न, ???

न फोन न कोई खबर,
अचानक भेज दी गाड़ी आपने, भागकर आई हूँ खुशी से ऐसा लगा कि पापा आज भी जिंदा हैं ..
इधर पिताजी अपनी पलकों मे आँसू लिये प्रिंस की ओर देखते हैं और प्रिंस पापा को चुप रहने का इशारा करता है।

इधर बुआ कहती जाती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँकि मुझे बाप जैसा भैया मिला, ईश्वर करे मुझे हर जन्म मे आप ही भैया मिले…पापा
मम्मी को पता चल गया था कि..ये सब प्रिंस की करतूत है,

मगर आज फिर एक बार रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर वह अंदर से खुशी से टूटकर रोने लगे। उन्हें अब पूरा यकीन था कि…मेरे जाने के बाद भी मेरा प्रिंस रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा

बेटी और बहन ये दो बेहद अनमोल शब्द हैं
जिनकी उम्र बहुत कम होती है । क्योंकि शादी के बाद बेटी और बहन किसी की पत्नी तो किसी की भाभी और किसी की बहू बनकर रह जाती है।

शायद लड़कियाँ इसी लिए मायके आती होंगी कि…
उन्हें फिर से बेटी और बहन शब्द सुनने को बहुत मन करता होगा।।।।।

हँस जैन रामनगर खण्डवा
98272 14427

घर गृहस्थी परिवार ग्रुप की सादर भेंट

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