Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

प्रशांत मणि त्रिपाठी

बहुत सुन्दर कथा

एक महिला रोज मंदिर जाती थी ! एक दिन उस महिला ने पुजारी से कहा अब मैं मंदिर नही आया करूँगी !

इस पर पुजारी ने पूछा — क्यों ?

तब महिला बोली — मैं देखती हूँ लोग मंदिर परिसर में अपने फोन से अपने व्यापार की बात करते हैं ! कुछ ने तो मंदिर को ही गपशप करने का स्थान चुन रखा है ! कुछ पूजा कम पाखंड,दिखावा ज्यादा करते हैं !

इस पर पुजारी कुछ देर तक चुप रहे फिर कहा — सही है ! परंतु अपना अंतिम निर्णय लेने से पहले क्या आप मेरे कहने से कुछ कर सकती हैं !

महिला बोली -आप बताइए क्या करना है ?

पुजारी ने कहा — एक गिलास पानी भर लीजिए और 2 बार मंदिर परिसर के अंदर परिक्रमा लगाइए । शर्त ये है कि गिलास का पानी गिरना नहीं चाहिये !

महिला बोली — मैं ऐसा कर सकती हूँ !

फिर थोड़ी ही देर में उस महिला ने ऐसा ही कर दिखाया ! उसके बाद मंदिर के पुजारी ने महिला से 3 सवाल पूछे –

1.क्या आपने किसी को फोन पर बात करते देखा?

2.क्या आपने किसी को मंदिर में गपशप करते देखा?

3.क्या किसी को पाखंड करते देखा?

महिला बोली — नहीं मैंने कुछ भी नहीं देखा !

फिर पुजारी बोले — जब आप परिक्रमा लगा रही थीं तो आपका पूरा ध्यान गिलास पर था कि इसमें से पानी न गिर जाए इसलिए आपको कुछ दिखाई नहीं दिया|

अब जब भी आप मंदिर आयें तो अपना ध्यान सिर्फ़ परम पिता परमात्मा में ही लगाना फिर आपको कुछ दिखाई नहीं देगा| सिर्फ भगवान ही सर्वत्र दिखाई देगें| '' जाकी रही भावना जैसी .. प्रभु मूरत देखी तिन तैसी|''

जीवन मे दुःखो के लिए कौन जिम्मेदार है ?

👉🏻ना भगवान,
👉🏻ना ग्रह-नक्षत्र,
👉🏻ना भाग्य,
👉🏻ना रिश्तेदार,
👉🏻ना पडोसी,
👉🏻ना सरकार,

जिम्मेदार आप स्वयं है|

1) आपका सरदर्द, फालतू विचार का परिणाम|

2) पेट दर्द, गलत खाने का परिणाम|

3) आपका कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे का परिणाम|

4) आपका दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली का परिणाम|

5) आपके कोर्ट केस, आप के अहंकार का परिणाम|

6) आपके फालतू विवाद, ज्यादा व् व्यर्थ बोलने का परिणाम| उपरोक्त कारणों के अलावा सैकड़ों कारण है और बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं | इसमें ईश्वर दोषी नहीं है|

अगर हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे की कहीं न कहीं हमारी मूर्खताएं ही इनके पीछे है|
गिले-शिकवे सिर्फ़ साँस लेने तक ही चलते हैं,
*बाद में तो सिर्फ़ पछतावे रह जाते हैं..!!
🌴🌴जय श्री राम🍂🍂

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

संसार के सभी प्राणी अपूर्ण हैं प्रेरक कहानी अवश्य पढ़े🙏🏻।

*एक कवि राजा भर्तृहरि थे। उनकी पत्नी अत्यंत रूपवती थीं। भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।

उन्हीं के राज्य में एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसने अपनी नि:स्वार्थ पूजा से देवता को प्रसन्न कर लिया। देवता ने उसे वरदान के रूप में अमर फल देते हुए कहा कि इससे आप लंबे समय तक युवा रहोगे।

ब्राह्मण ने सोचा कि भिक्षा मांग कर जीवन बिताता हूं, मुझे लंबे समय तक जी कर क्या करना है। हमारा राजा बहुत अच्छा है, उसे यह फल दे देता हूं। वह लंबे समय तक जीएगा तो प्रजा भी लंबे समय तक सुखी रहेगी।

वह राजा के पास गया और उनसे सारी बात बताते हुए वह फल उन्हें दे आया। राजा फल पाकर प्रसन्न हो गया। फिर मन ही मन सोचा कि यह फल मैं अपनी पत्नी को दे देता हूं। वह ज्यादा दिन युवा रहेगी तो ज्यादा दिनों तक उसके साहचर्य का लाभ मिलेगा। अगर मैंने फल खाया तो वह मुझ से पहले ही मर जाएगी और उसके वियोग में मैं भी नहीं जी सकूंगा। उसने वह फल अपनी पत्नी को दे दिया।

लेकिन, रानी तो नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। वह अत्यंत सुदर्शन, हृष्ट-पुष्ट और बातूनी था। अमर फल उसको देते हुए रानी ने कहा कि इसे खा लेना, इससे तुम लंबी आयु प्राप्त करोगे और मुझे सदा प्रसन्न करते रहोगे।

फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है। और यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा। इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं। वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती। मैं उससे प्रेम भी करता हूं। और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी। उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया।

राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप वह अमर फल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पाप भरा जीवन लंबा जीना चाहेगा। हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है,
उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए। यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की महिमा सुना कर उसे राजा को दे दिया। और कहा कि महाराज, आप इसे खा लेना।

राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक रह गया। पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो उसे वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर जंगल में चला गया। वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं।

यही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे। परंतु विडंबना यह कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है। इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है। सिर्फ भगवान् ही एक मात्र पूर्ण हैं । एक वही हैं जो हर जीव से उतना ही प्रेम करते हैं , जितना जीव उनसे करता है बल्कि उससे कहीं अधिक। बस हम ही उन्हें सच्चा प्रेम नहीं करते ।

🌹जय श्री राम🌹

Posted in श्री कृष्णा

वासुदेवा मिश्रा

कलिधर्मः

कलियुग के लक्षण

कलि शव्द कल् धातुमें इन् प्रत्यय (सर्वधातुभ्योः इन् – उणादिसूत्र 4-117) से निष्पन्न हुआ है । कल् धातुके विभिन्न अर्थ है, जैसे कि कलँ गतौ॑ स॒ङ्ख्याने॑ च, कलँ॒ शब्दसङ्ख्या॒नयोः॑, कलँऽ क्षेपे॑, आदि । उसी के अनुसार कलियुग के विभिन्न लक्षण देखनेको मिलते हैं ।

कलते स्पर्द्धते अर्थमें इस युग के मनुष्य स्पर्द्धाशील – एक अपर के प्रति स्पर्द्धा (हम किसीसे कम् नहीँ) का भावना रखने वाले होते हैं ।

कल्यन्ते, पापेषु निक्षिप्यते अनेन, यद्वा कलयति, पापेन जडयति, कलुषितं करोति, अर्थमें इस युग के मनुष्य पाप कार्य में अधिक आग्रह रखते हैं ।

कलौ अर्थ एवाभिजनहेतुः । कलियुग में अर्थ ही कुलीनता का कारण होगा ।
बलमेवाशेषधर्महेतुः । बल ही सम्पुर्ण धर्म का कारण होगा । बलवान् का धर्म ही धर्म होगा ।
अभिरुचिरेव दाम्पत्यसम्बन्धहेतुः । आजीवन सहधर्माचरण नहीँ, पारस्परिक रुचि ही दाम्पत्य का हेतु होगा । जो जिसे जव तक पसन्द हो तव तक विवाहसम्बन्ध रखेंगे ।
स्त्रीत्वमेवोपभोगहेतुः । स्त्री-स्वरूप ही (जिस किसी का भी योनि स्वरूप हो) उपभोग का कारण होगा ।
अनृतमेवव्यवहारजयहेतुः । मिथ्या (कपट) भाषण ही व्यवहार में सफलता प्राप्तकरने का कारण होगा ।
उन्नताम्बुतैव पृथिवीहेतुः । पुण्यक्षेत्रादि का विचार न करके जल की सुगमता और सुलभता ही वासस्थान का कारण होगा ।
ब्रह्मसूत्रमेव विप्रत्वहेतुः । यज्ञोपवीत (जनेउ) धारण मात्र ही ब्राह्मणत्व का कारण होगा ।
रत्नधातुतैव श्लाघ्यताहेतुः । रत्नादि धारण करना ही प्रशंसा का कारण होगा ।
लिङ्गधारणमेवाश्रमहेतुः । वाह्यचिन्ह ही (भगवा वस्त्र, शिखा, भस्मधारण आदि) आश्रमवासी का चिह्न होगा ।
अन्याय एव वृत्तिहेतुः । अन्याय (योग्यता से भिन्न अन्यविचार, जैसे जाति आदि) ही आजीविका (वृत्ति) का कारण होगा ।
दौर्बल्यमेवावृत्तिहेतुः । दुर्बलता (संघबद्ध न होना) ही बेकारी का कारण होगा ।
अभयप्रगल्भोच्चारणमेव पाण्डित्यहेतुः । निर्भय हो कर धृष्टता के साथ बोलना ही (जैसे कुछ राजनेता, वकील आदि करते हैं) पाण्डित्य का कारण होगा ।
अनाढ्यतैव साधुत्वहेतुः । निर्धनता ही साधुत्व में कारण होगा ।
स्नानमेव प्रसाधनहेतुः । शरीरशुद्धि केसिए स्नान नहीं करेंगे । प्रसाधन (सजना संवरना) ही स्नान का कारण होगा ।
दानमेव धर्महेतुः । (यश के लिये) दान ही धर्म का कारण होगा ।
स्वीकरणमेव विवाहहेतुः । एक अपर को स्वीकार करलेना ही (live-in relationship) विवाह का कारण होगा ।
सद्वेषधार्येव पात्रम् । वन-ठन कर रहनेवाला सुपात्र कहलायेगा ।
दूरायतनोदकमेव तीर्थहेतुः । दूरदेश का जल ही तीर्थ का स्थान लेगा ।
कपटवेषधारणमेव महत्त्वहेतुः । (अपने स्वाभाविक वेष से भिन्न) कपटवेष धारण करना ही महत्व का कारण होगा ।

महाभारत के युद्ध के पश्चात् काल की एक घटना है । भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं- हे युधिष्ठिर ! अब तुम विजेता हुए हो तो अब राजतिलक का दिन निश्चित कर तुम राज्य भोगो।”तब युधिष्ठिर कहते हैं – “मुझसे अब राज्य नहीं भोगा जाएगा । मैं अब तप करना चाहता हूँ । मुझे राज्यसुख की आकांक्षा नहीं है । तप करके फिर आकर राज्य सँभालूँगा ।

तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – नहीं, तुमसे फिर राज्य नहीं होगा क्योंकि अब कलियुग का प्रभाव शुरू हो चुका है । इसलिए तुम थोड़े समय राज्य करो, फिर तप करना ।

युधिष्ठिर को यह बात समझ में नहीं आयी । वे कहने लगेः पहले तप करूँगा, बाद में राज्य करूँगा । तब श्रीकृष्ण पुनः बोलेः फिर राज्य नहीं हो सकेगा ।

युधिष्ठिर के चित्त में राज्य करने की रूचि न थी । तब श्रीकृष्ण कहते हैं – “तुम पाँचों भाई वन में जाओ और जो कुछ भी दिखे वह आकर मुझे बताओ । मैं तुम्हें उसका प्रभाव बताऊँगा ।

पाँचों भाई वन में गये । युधिष्ठिर महाराज ने देखा कि किसी हाथी की दो सूँड है । यह देखकर आश्चर्य का पार न रहा । अर्जुन दूसरी दिशा में गये । वहाँ उन्होंने देखा कि कोई पक्षी है, उसके पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं पर वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है । यह भी आश्चर्य है । भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है और बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है । सहदेव ने चौथा आश्चर्य देखा कि छः सात कुएँ हैं और आसपास के कुओं में पानी है किन्तु बीच का कुआँ खाली है । बीच का कुआँ गहरा है फिर भी पानी नहीं है । पाँचवे भाई नकुल ने भी एक अदभुत आश्चर्य देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी शिला लुढ़कती-लुढ़कती आती और कितने ही वृक्षों से टकराई पर उन वृक्षों के तने उसे रोक न सके । कितनी ही अन्य शिलाओं के साथ टकराई पर वह रुक न सकीं । अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह स्थिर हो गई । पाँचों भाईयों के आश्चर्यों का कोई पार नहीं । शाम को वे श्रीकृष्ण के पास गये और अपने अलग-अलग दृश्यों का वर्णन किया ।

युधिष्ठिर कहते हैं – मैंने दो सूँडवाला हाथी देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई पार न रहा । तब श्री कृष्ण कहते हैं – कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा जो दोनों ओर से शोषण करेंगे । बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ । ऐसे लोगों का राज्य होगा । इसलिये तुम पहले राज्य कर लो ।

अर्जुन ने आश्चर्य देखा कि पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएँ लिखी हुई हैं और पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है । इसी प्रकार कलियुग में ऐसे लोग रहेंगे जो बड़े-बड़े कहलायेंगे । बड़े पंडित और विद्वान कहलायेंगे किन्तु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाये । संस्था के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन सा मनुष्य मरे और संस्था हमारे नाम से हो जाये । पंडित विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध है? चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे किन्तु उनकी दृष्टि तो धन के ऊपर (मांस के ऊपर) ही रहेगी । परधन परमन हरन को वैश्या बड़ी चतुर । ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरल ही संत पुरूष होगा ।

भीम ने तीसरा आश्चर्य देखा कि गाय अपने बछड़े को इतना चाटती है कि बछड़ा लहुलुहान हो जाता है । कलियुग का आदमी शिशुपाल हो जायेगा । बालकों के लिए ममता के कारण इतना तो करेगा कि उन्हें अपने विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा । किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे किन्तु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोयेंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा? इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोहमाया और परिवार में ही बाँधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा । अंत में बिचारा अनाथ होकर मरेगा । वास्तव में लड़के तुम्हारे नहीं हैं । वे तो बहुओं की अमानत हैं । लड़कियाँ जमाइयों की अमानत हैं और तुम्हारा यह शरीर मृत्यु की अमानत है । तुम्हारी आत्मा-परमात्मा की अमानत हैं । तुम अपने शाश्वत संबंध को जान लो बस ।

सहदेव ने चौथा आश्चर्य यह देखा कि पाँच सात भरे कुएँ के बीच का कुआँ एक दम खाली । कलियुग में धनाढय लोग लड़के-लड़की के विवाह में, मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रूपये खर्च कर देंगे परन्तु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं । दूसरी और मौज-मौज में, शराब, कबाब, फैशन और व्यसन में पैसे उड़ा देंगे । किन्तु किसी के दो आँसूँ पोंछने में उनकी रूचि न होगी । जिनकी रूचि होगी उन पर कलियुग का प्रभाव नहीं होगा, उन पर भगवान का प्रभाव होगा ।

पाँचवा आश्चर्य यह था कि एक बड़ी चट्टान पहाड़ पर से लुढ़की, वृक्षों के तने और चट्टाने उसे रोक न पाये किन्तु एक छोटे से पौधे से टकराते ही वह चट्टान रूक गई । कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा । यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रूकेगा न ही सत्ता के वृक्षों से रूकेगा । किन्तु हरिनाम के एक छोटे से पौधे से, हरि कीर्तन के एक छोटे से पौधे मनुष्य जीवन का पतन होना रूक जायेगा ।

इसलिए पांडवो ! तुम पहले थोड़े समय के लिए राज्य कर लो । कलियुग का प्रभाव बढ़ेगा तो तुम्हारे जैसे सज्जनों के लिए राज्य करना मुश्किल हो जाएगा । फिर तप करते-करते सीधे स्वर्ग में जाना, स्वर्गारोहण करना ।

अभी पवित्र पुरूषों के लिए भगवन्नाम कीर्तन, सत्संग ध्यान, निर्भयता और नारायण की प्रसन्नता के कार्यों को करते-करते स्वर्गारोहण करना आवश्यक है । अन्याय अत्याचार करना तो पाप है परन्तु अन्याय अत्याचार सहना उतनी ही बडा पाप है । पाप करना तो पाप है किन्तु पापी और हिंसकों से भयभीत हो कर उन्हें छूट देना महापाप है ।

Posted in रामायण - Ramayan

धीरज भंसाल


हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी
जानिए हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे।
रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी & विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन।
सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे।
हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्रमित किया उसमें लगा होगा एवं आधे घंटे का समय #भरत जी के द्वारा उनको नीचे गिराने में तथा वापस भेजने देने में लगा होगा।अर्थात आने जाने के लिये मात्र दो घण्टे का समय मिला था।
मात्र दो घंटे में हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत हिमालय पर जाकर वापस 5000 किलोमीटर की यात्रा करके आये थे, अर्थात उनकी गति ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटा रही होगी।
आज का नवीनतम #मिराज #वायुयान की गति 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है ,तो हनुमान जी महाराज उससे भी तीव्र गति से जाकर मार्ग के तीन-तीन अवरोधों को दूर करके वापस सूर्योदय से पहले आए ।यह उनकी विलक्षण #शक्तियों के कारण संभव हुआ था।
बोलिए हनुमान जी महाराज की जय
पवनसुत हनुमान की जय
सियावर रामचंद्र जी की जय
🙏🙏
Posted in रामायण - Ramayan

धीरज भंसाल

हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी थी

जानिए हनुमानजी की उड़ने की गति कितनी रही होगी उसका अंदाजा आप लगा सकते हैं की रात्रि को 9:00 बजे से लेकर 12:00 बजे तक #लक्ष्मण जी एवं #मेघनाद का युद्ध हुआ था। मेघनाद द्वारा चलाए गए बाण से#लक्ष्मण जी को शक्ति लगी थी लगभग रात को 12:00 बजे के करीब और वो #मूर्छित हो गए थे।

रामजी को लक्ष्मण जी मूर्छा की जानकारी मिलना फिर दुखी होने के बाद चर्चा जे उपरांत हनुमान जी & विभीषणजी के कहने से #सुषेण वैद्य को #लंका से लेकर आए होंगे 1 घंटे में अर्थात 1:00 बजे के करीबन।

सुषेण वैद्य ने जांच करके बताया होगा कि #हिमालय के पास #द्रोणागिरी पर्वत पर यह चार #औषधियां मिलेगी जिन्हें उन्हें #सूर्योदय से पूर्व 5:00 बजे से पहले लेकर आना था ।इसके लिए #रात्रि को 1:30 बजे हनुमान जी हिमालय के लिए रवाना हुए होंगे।

हनुमानजी को ढाई हजार किलोमीटर दूर हिमालय के द्रोणगिरि पर्वत से उस औषधि को लेकर आने के लिए 3:30 घंटे का समय मिला था। इसमें भी उनका आधे घंटे का समय औषधि खोजने में लगा होगा ।आधे घंटे का समय #कालनेमि नामक राक्षस ने जो उनको भ्रमित किया उसमें लगा होगा एवं आधे घंटे का समय #भरत जी के द्वारा उनको नीचे गिराने में तथा वापस भेजने देने में लगा होगा।अर्थात आने जाने के लिये मात्र दो घण्टे का समय मिला था।

मात्र दो घंटे में हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत हिमालय पर जाकर वापस 5000 किलोमीटर की यात्रा करके आये थे, अर्थात उनकी गति ढाई हजार किलोमीटर प्रति घंटा रही होगी।

आज का नवीनतम #मिराज #वायुयान की गति 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है ,तो हनुमान जी महाराज उससे भी तीव्र गति से जाकर मार्ग के तीन-तीन अवरोधों को दूर करके वापस सूर्योदय से पहले आए ।यह उनकी विलक्षण #शक्तियों के कारण संभव हुआ था।
बोलिए हनुमान जी महाराज की जय

पवनसुत हनुमान की जय

सियावर रामचंद्र जी की जय

🙏🙏

Posted in राजनीति भारत की - Rajniti Bharat ki

अरुण सुक्ला

दैनिक भास्कर में एक खबर पढ़ी जो यह बताती है एक जमाने में कांग्रेस के अंदर कितना दंभ कितना अहंकार था

1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी यह चाहते थे विपक्ष का कोई भी नेता चुनाव ना जीतने पाएं….. अटल बिहारी वाजपेई जी ने ग्वालियर से नामांकन किया और राजीव गांधी ने अटल बिहारी वाजपेई के सामने ग्वालियर के महाराजा माधवराव सिंधिया को उतार दिया जबकि उस समय माधवराव सिंधिया राजनीति में थे ही नहीं

अटल बिहारी बाजपाई भौचक्के रह गए क्योंकि जाहिर सी बात है एक तो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर उठी थी ऊपर से ग्वालियर में महाराजा सिंधिया का ग्वालियर में काफी प्रभाव है और राजीव गांधी ने यह चक्रव्यूह ऐसे समय में रचा जब अटल बिहारी वाजपेई जी को दूसरे सीट से नामांकन करने का समय तक नहीं मिला

अंतिम समय तक वह भिंड से नामांकन करना चाह रहे थे लेकिन भिंड कलेक्टर ऑफिस तक जाते जाते नामांकन का समय निकल चुका था

1984 में बीजेपी की मात्र 2 सीट आई थी एक गुजरात के मेहसाणा से और दूसरा आंध्र प्रदेश के गुंटूर से और भव्य विजय के बाद राजीव गांधी ने बड़े घमंड से कहा था आज मेरी मां का दिया नारा साकार हो गया क्योंकि मेरी मां ने एक नारा दिया था “हम दो हमारे दो” और बीजेपी को मात्र 2 सीटें मिली है

और राजीव गांधी के इतना कहने पर मंच पर बैठे सभी कांग्रेसी नेता खिलखिला कर ठहाके मारकर घमंड से हंस पड़े

अटल जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मेरे जीवन का सबसे बड़ा दर्द वही था जब राजीव गांधी ने बीजेपी के 2 सीट आने पर यह कहा था कि आज मेरे मां का नारा सफल हो गया हम दो हमारे दो ।

Posted in श्रीमद्‍भगवद्‍गीता

ગીતાની શરૂઆત “ધૃતરાષ્ટ્ર ઉવાચ”થી થાય છે, અને અંત “સંજય ઉવાચ”થી થાય છે. એનો અર્થ, ગીતા વાંચ્યા પહેલાં આપણે ધૃતરાષ્ટ્ર જેવા આંધળા છીએ, પણ ગીતા વાંચ્યા અને સમજ્યા પછી આપણને સંજય દૃષ્ટી મળે છે.

ગીતા છંદોબધ્ધ રચના છે. પ્રથમ શ્ર્લોકની શરૂઆત છે, “ધર્મક્ષેત્રે કુરૂક્ષેત્રે”. હવે છંદનો ભંગ કર્યા વગર એ લખી શકત “કુરૂક્ષેત્રે ધર્મક્ષેત્રે”, પણ એવું નથી કર્યું. કદાચ એમાં એવો સંદેશ છે કે આપણે આ દુનિયામાં આવીએ છીએ ત્યારે શરીર અને મનથી આપણે ધર્મક્ષેત્ર જેવા છીએ,એને કુરૂક્ષેત્ર તો આપણે જીવન દરમ્યાન બ નાવીએ છીએ.

બીજા એક શ્ર્લોકમાં લખ્યું છે, “પરિત્રાણાય સાધુનામ, વિનાશાય દુષ્કૃતામ”. અહીં પણ પરિત્રાણાય સાધુનામ પહેલાં લખ્યું છે, દુષ્ટોને મારવાની વાત પછી કરી છે. ભગવાનનો મુખ્ય ઉદ્દેશ સારા માણસોનું રક્ષણ કરવાનો છે, અને એના માટે જરૂર પડે ત્યારે દુષ્ટોનો નાશ કરે છે.

ગીતા ટુ-વે ‘સંવાદ’ છે. કૃષ્ણ અને અર્જુન મિત્રો છે, બન્નેનો અલગ અલગ મત છે, એટલે ચર્ચાના રૂપમાં દલીલો થાય છે,પણ ક્યાંયે એકબીજાને ઉતારી પાડવાનો પ્રયાસ નજરે પડતો નથી. ક્યાંયે એકબીજા ઉપર ગુસ્સે થતા નથી. અર્જુન શંકાઓના રૂપમાં સવાલ કરે છે, અને કૃષ્ણ સમાધાનના રૂપમાં જવાબ આપે છે. આમ ગીતા બે સજ્જન માણસો વચ્ચે ચર્ચા કઈ રીતે થવી જોઈએ એનું એક ઉદાહણ છે.

ગીતાની શરૂઆતમાં અર્જુન નહીં લડવા માટેની તર્કબધ્ધ દલીલો કરે છે. શ્રીકૃષ્ણ બધું ચુપચાપ સાંભળી લે છે, વચ્ચે ટોકતા પણ નથી અને કંઈ બોલતા પણ નથી. જ્યારે અર્જુન થાકીને સલાહ માગે છે ત્યારે જ શ્રીકૃષ્ણ સમજાવવાની શરૂઆત કરે છે. આ ગીતાનો પહેલો પાઠ કહી શકાય, કે વણમાગી સલાહ આપવી નહીં.

અર્જુન ક્ષત્રિય છે, એટલે અન્યાય સામે લડવાનો એનો ધર્મ છે. આ વાત કૃષ્ણ અર્જુનને સમજાવીને કહે છે, એની ઠેકડી ઉડાવીને નથી કહેતા. સાચી વાત પણ સારી રીતે કહેવી જોઈએ, એ ગીતાની બીજી શીખ છે. ગીતા એ પણ શીખવે છે કે બે મિત્રો વચ્ચે મદભેદ હોય તો પણ શિષ્ટાચાર છોડીને વર્તવું ન જોઈએ.

ગીતામાં એકની એક વાત ફરી ફરી કહેવામાં આવે છે. કૃષ્ણ પોતાની દલીલ અર્જુનના મનમાં ઠસાવવા માટે એકની એક વાત અલગ અલગ રીતે કહે છે, જ્યારે એમને ખાત્રી થાય છે કે અર્જુન આ વાત હવે સમજી ગયો છે, ત્યારે એ બીજી વાતો કહે છે. શિક્ષકોએ આ વાત ગીતામાંથી સમજવાની જરૂર છે. અર્જુન વચ્ચે વચ્ચે અનેક શંકાઓ વ્યક્ત કરે છે, અનેક સવાલો પૂછે છે, છતાં કૃષ્ણ કંટાળ્યા વિના શાંતિથી દરેક સવાલનો જવાબ આપે છે. સારા ગુરૂએ શિષ્ય પ્રત્યે આવો ભાવ કેળવવો જોઈએ.

શ્રીકૃષ્ણ અર્જુનની લડાઈ લડતા નથી, એને લડવા માટે તૈયાર કરે છે. તેનો અર્થ એ થયો કે દરેક માણસે પોતે જ પોતાની લડાઈ લડવી પડે.ભગવાન આપણા બદલે લડવા માટે ન આવે. યુદ્ધમાં વિજયી થવા માટેના માર્ગો ભગવાન બતાવે પણ યુધ્ધ તો આપણે જ લડવું પડે.

ગીતામાં માત્ર ધર્મની વાત નથી, એ જીવન જીવવાની રીત બતાવે છે.ગીતા માત્ર પરલોકની વાત નથી કરતી, આ લોકમાં કેમ સુખ, શાંતિ અને તંદુરસ્તી મળે, એની વાત કહે છે.ગીતા વૃધ્ધાવસ્થામાં સમજવાની કૃતિ નથી, એ બાળપણથી આત્મસાત કરવા જેવી શીખામણ આપે છે.

ગીતા જીવનની વાસ્તવિકતા સ્વીકારીને પરમાર્થ સાધવાની વાત કરે છે. જીવન મળ્યું એટલે તેને જીવવું પડશે, અને જીવવા માટે સંઘર્ષ કરવો પડશે, પણ સંઘર્ષ કઈ રીતે કરવો એ ગીતા શીખવે છે.

હિન્દુ ધર્મમાં અનેક ફાંટા અને અનેક પંથો હોવા છતાં, પ્રત્યેક પંથે અને પ્રત્યેક ફાંટાએ ભગવદ ગીતાને માન્યતા આપી છે. ગીતાનો સંદેશ લોકોને સહેલાઈથી ગળે ઉતરે છે.

ગીતામાં કહેલી વાતોમાં પર્યાયના રૂપમાં બાંધછોડની ગુંજાઈશ દેખાય છે. ગીતાએ દર્શાવેલા જીવન જીવવાના અનેક માર્ગોમાંથી કોઈપણ એક માર્ગ પસંદ કરી આગળ વધવાની છૂટ અન્ય કોઈ ધર્મગ્રંથમાં ભાગ્યે જ હશે.

જે ગ્રંથમાં ‘મામેકં શરણં વ્રજ’ જેવી ઇશ્વરને અનુસરવાની અચળ આજ્ઞા છે,એમાં જ ‘યથેચ્છસિ તથા કુરૂ’ (તને જેમ યોગ્ય લાગે તેમ કર!) વાળી મુકત મોકળાશ પણ છે!

ગીતા નિષ્ક્રિય બનીને કર્મનો ત્યાગ કરવાને બદલે કર્મનો મોહ ત્યાગવાની વાત કરે છે. ગાંધીજીએ કહ્યું છે, ‘જે કર્મ છોડે એ પડે, કર્મ કરી તેના ફળને છોડે એ ચડે!’. ગીતાનું મઘ્યબિંદુ હોય તો એ છે ‘અનાસક્તિ’. આખી ગીતાનો સારાંશ એક જ શબ્દમાં આપવો હોય તો એ શબ્દ છે ‘સ્થિતપ્રજ્ઞ’.

રમતમાં હમેશાં જીત જ થાય તે શક્ય નથી, તેમ સંઘર્ષમાં હંમેશાં સફળ જ થવાય તેમ ન માની લેવું. તેથી ગીતા ફળની અપેક્ષા રાખ્યા વિના કર્મ કરવાની વાત કરે છે. એનો અર્થ એ નથી કે કરેલાં કર્મ મિથ્યા છે, અને તેનું ફળ નહિ મળે. ફળ તો અવશ્ય મળશે, પણ તે તમારી અપેક્ષા પ્રમાણેનું ન પણ હોય. વ્યહવારમાં તો આપણે હંમેશાં બોલીએ છીએ કે આપણે તો આ કામ ઈમાનદારીથી કર્યું છે,જોઈએ હવે પ્રભુ કેવો બદલો આપે છે. આ માત્ર બોલવાની વાત નથી, જીવનના એકે એક કામ માટે આ વૃતિ કેળવવાની અને અમલમાં લાવવાની વાત છે.

ગીતાએ જીવનનો સંઘર્ષ ક્યાં સુધી થાય અને ક્યારે શસ્ત્રો હેઠાં મૂકી દઈને શરણાગતિ સ્વીકારી લેવી પડે એ વાત કરીને માનવીના પુરુષાર્થની સીમા બતાવી દીધી છે.

ગીતા મન ઉપર બુધ્ધિથી કાબુ રાખવાની વાત કરે છે.

આપણી અંદર પાંડવો જેવા સદગુણ અને કૌરવો જેવા દુર્ગુણો છે.આ બધા આપણી અંદર એક સાથે રહેતા હોવાથી આપણને એ બધાને સાચવવાની આદત પડી જાય છે, અને લડાઈ કરવાથી કતરાઈએ છીએ. ગીતા કહે છે, આ ખોટું છે, મક્કમતાથી બુરાઈઓ સામે લડાઈ કરી એમાંથી મુક્તિ મેળવવી જોઇએ. આપણે અર્જુનની જેમ આનાકાની ન કરીએ એટલા માટે ગીતા આપણને કૃષ્ણ બનીને માર્ગ દેખાડે છે.

પ્રકૃતિમાંથી આપણને કેટલી બધી અમુલ્ય વસ્તુઓ મફતમાં મળે છે. સૂર્યનો પ્રકાશ, જીવવા માટે જરૂરી ઓક્સીજન, પાણી; આપણે જો આના બદલામાં પ્રકૃતિને કંઈ ન આપીએ તો આપણી ગણત્રી ચોરમાં થવી જોઈએ. પુરૂષ અને પ્રકૃતિ વચ્ચે પ્રમાણિક આપ લે કરવાથી જ પૃથ્વી ઉપરનું જીવન ટકી રહેશે. પુરૂષ અને પ્રકૃતિ એક જ પરમાત્માના અંશ છે. જો આ વાત સ્વીકારી લેવામાં આવે તો માણસ અને માણસ વચ્ચેના ઘર્મના ઝગડા બંધ થઈ જાય, અને પશુ અને પક્ષીઓ પ્રત્યેનો પણ વ્યહવાર બદલાઈ જાય.

ગીતાની શીખ પ્રમાણે વર્તવા સ્વસ્થ શરીર અને સ્વસ્થ મન હોવાં જરૂરી છે, જેના માટે સ્વસ્થ ખોરાક લેવો જરૂરી છે. ગીતા રોજીંદા જીવનમાં ખોરાકનું મહત્વ સમજાવે છે, કેવો ખોરાક ખાવો જોઈએ અને કેવો ખોરાક ત્યજવો જોઈએ, એ ગીતામાં વિગતવાર સમજાવ્યું છે.

ગીતામાં એક મોટી વાત કહી છે. કોઈપણ કર્મ સારૂં કે ખરાબ નથી, એનો આધાર એ સારા કે ખરાબ ધ્યેય માટે કરવામાં આવ્યું છે એના ઉપર છે. દરેક વ્યક્તિને અમુક કામ એક કર્તવ્ય તરીકે મળ્યું હોય છે. જેલમાં ફાંસીગર જે કામ કરે છે એમાં કોઈ પાપ નથી. એ માણસને મારતો નથી, એ માત્ર કાયદાનું પાલન કરે છે.

અંતમાં ગીતા એક સંદેશ આપે છે કે સારી અને સાચી સલાહ આપવી એ તમારૂં કર્તવ્ય છે, પણ સામા માણસે તમારી સલાહ પ્રમાણે વર્તવું કે પોતાની ઈચ્છા પ્રમાણે વર્તવું એ સામા માણસ ઉપર છોડી દેવું જોઈએ. કૃષ્ણે પણ અર્જુનને અંતમાં એ જ કહ્યું છે કે “યથેચ્છસિ તથા કુરુ” , હવે તને જે યોગ્ય લાગે તે કર. ગીતા મોસ્ટ ડેમોક્રેટિક ગ્રંથ છે. આજની જનરેશનના કોઈ પણ છોકરા-છોકરીને મળો તો એને સૌથી વધારે ગમતી બાબત હોય તો આ લિબર્ટી છે, આ ફ્રીડમ છે, આ સ્વતંત્રતા છે.

અંતમાં અર્જૂન વિષાદમાંથી બહાર આવે છે, અને કહે છે, “નષ્ટો મોહઃ સ્મૃતિરલબ્ધા ત્વપ્રસાદાન મયા અચ્યુત” અને “ સ્થિતોઅસ્મી ગતસન્દેહઃ કરિષ્યે વચનં તવ”. ગીતાનો સંદેશ જેને સમજાઈ જાય, એનો મોહ નાશ પામે છે અને એ ઇશ્વરે બતાવેલા માર્ગ પર ચાલવા તૈયાર થઈ જાય છે.

માણસે જીવનમાં શું કરવું એ રામાયણ શીખવે છે, અને શું ન કરવું તે મહાભારત શીખવે છે, પણ જીવન કેવી રીતે જીવવું એ ગીતા શીખવે છે.

સંજય ધૃતરાષ્ટ્રનો સારથી છે. દિવ્ય દૃષ્ટી પ્રાપ્ત કરી માત્ર હકીકતનું જ બ્યાન કરે છે. સાચું રીપોર્ટીંગ કેમ કરાય એનું ઉત્તમ ઉદાહરણ છે.

ગીતા કહે છે કે Every problem comes with a solution.