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पवनपुत्र_के_साक्ष्य


हम सब जानते हैं कि #इंडोनेशिया हमेशा से मुस्लिम देश नहीं था। कभी वहां सनातन का साम्राज्य हुआ करता था। वाल्मीकि प्रणीत रामायण ने ही रामकथा प्रस्थान को गतिमान किया। वाल्मीकि की रामायण से सहस्र धाराएं फूटी और विश्व मे चहुं ओर फैल गई। तुर्की, मिस्र, दक्षिण अमेरिका, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, बर्मा और जाने कितने देशों में रामकथा विभिन्न स्वरूपों में व्याप्त हो गई। इंडोनेशिया के मुस्लिम देश बन जाने का कुप्रभाव ये हुआ कि वहां की किवदंतियों को दूषित कर दिया गया।

ये इंडोनेशिया के सुमात्रा स्थित इस स्थान को ही लीजिए। #Tapaktaun नामक इस स्थान पर #पवनपुत्र_के_साक्ष्य_अब_तक_विद्यमान_हैं। छह मीटर लंबी पैर की छाप आज भी जस की तस है। इस देश का एक समुदाय इसे हनुमान के पदचिन्ह मानकर पूजता है लेकिन एक समुदाय इसे ड्रेगन और एक महामानव से जोड़कर देखता है। जब भरत जी ने रामजी की पादुकाओं पर फूल रखकर अयोध्या का राज करना प्रारम्भ किया तो वे फूल सूखते ही नहीं थे। रामजी का स्पर्श जहां-जहां हुआ, वह स्थान या व्यक्ति काल के प्रहार से जैसे मुक्त हो गया था। पवनपुत्र के पदचिन्ह सम्पूर्ण विश्व मे पाए जाते हैं। वे आज भी जीवित हैं और ये देख प्रसन्न हैं कि रामलीला देख जन-जन की अश्रुधाराएँ बह रही हैं। चित्त निर्मल कर रही हैं।

हममें तुममें खड़ग खंभ में, सबमें व्यापत राम

साभार : बडे भैय्या🙏#विपिन_रेगे जी

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