Posted in रामायण - Ramayan

सनातनी_विज्ञान: जय श्री राम
फोटो 2 रामसेतु
फोटो 1 यूनियन फेसिफिक रेल लाइन ग्रेट साल्ट लेक के बीचोबीच से गुजरती हुई
अमेरिका में जब रेलवे ट्रैक का विस्तार हुआ तब कई रेल कंपनियों में रेलवे ट्रैक बिछाकर खूब सारी ट्रेन चला कर पैसे कमाने की होड़ मच गई
लेकिन पूर्वी अमेरिका को पश्चिम अमेरिका को जोड़ते समय बीच में एक बेहद विशाल समुद्र जैसी झील थी जो अमेरिका की सबसे बड़ी झील है जिसका नाम द ग्रेट साल्ट लेक है
बड़े-बड़े इंजीनियर के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी इस झील के आर पार रेलवे ट्रैक कैसे बिछाया जाए
यूनियन पेसिफिक की टीम में एक इंजीनियर था जिसने रामायण पढ़ी थी और उसे रामसेतु के बारे में जानकारी थी वह भारत आया और राम सेतु का अध्ययन किया तब उसके दिमाग की घंटी बज गई और उसने यह पता लगा लिया कि यदि हम झील में एकदम सीधी रेलवे लाइन बिछाएंगे तब यह रेलवे ट्रैक लहरों से टूट सकता है और उसने ठीक रामसेतु के डिजाइन पर अपना रेलवे ट्रैक बनाया जो पिछले 60 सालों से अमेरिका में वही का वही खड़ा है और सेवा दे रहा है
दरअसल जहां पर पानी लहरदार होती है वहां जिग जेग डिजाइन से ही स्टेबिलिटी मिलती है।

कुमार रूप

Posted in छोटी कहानिया - १०,००० से ज्यादा रोचक और प्रेरणात्मक

सुशील शास्त्री

🌼 असली पारस🌼

संत नामदेव जी की पत्नी का नाम राजाई था और उनके पडोसी परीसा भागवत की पत्नी का नाम था कमला। कमला और राजाई शादी के पहले सहेलियाँ थीं।
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दोनों की शादी हुई तो पड़ोस-पड़ोस में ही आ गयीं। राजाई नामदेव जी जैसे महापुरुष की पत्नी थी और कमला परीसा भागवत जैसे देवी के उपासक की पत्नी थी।
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कमला के पति ने देवी की उपासना करके देवी से पारस माँग लिया और वे बड़े धन-धान्य से सम्पन्न होकर रहने लगे।
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नामदेव जी दर्जी का काम करते थे। वे कीर्तन-भजन करने जाते और पाँच- पन्द्रह दिन के बाद लौटते। अपना दर्जी का काम करके आटे-दाल के पैसे इकट्ठे करते और फिर चले जाते।
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वे अत्यन्त दरिद्रता में जीते थे, लेकिन अंदर से बड़े सन्तुष्ट और खुश रहते थे।
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एक दिन नामदेव जी कहीं कीर्तन-भजन के लिए गये, तो कमला ने राजाई से कहा कि तुम्हारी गरीबी देखकर मुझे तरस आता है। मुझे कष्ट होता है।
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मेरा पति बाहर गये हुए हैं, तुम यह पारस ले लो, थोड़ा सोना बना लो और अपने घर को धन धान्य से सम्पन्न कर लो।
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राजाई ने पारस लिया और थोड़ा सा सोना बना लिया। संतुष्ट व्यक्ति की माँग भी आवश्यकता की पूर्ति भर होती है। ऐसा नहीं कि दस टन सोना बना ले, एक दो पाव बनाया बस हो गई।
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नामदेव जी ने आकर देखा तो घर में बहुत सारा सामान, धन-धान्य…. भरा-भरा घर दिखा। शक्कर, गुड़, घी आदि जो भी घर की आवश्यकता थी वह सारा सामान आ गया था।
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नामदेव जी ने कहा- “इतना सारा वैभव कहाँ से आया राजाई ?“
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राजाई ने सारी बात बता दी कि परीसा भागवत ने देवी की उपासना की और देवी ने उनको पारस दिया। वे लोग खूब सोना बनाते हैं और इसीलिए दान भी करते हैं, मजे से रहते हैं।
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हम दोनों बचपन की सहेलियाँ हैं। मेरा दुःख देखकर उसको दया आ गयी।
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नामदेव जी ने कहा- “मुझे तुझ पर दया आती है पगली कि- सारे पारसों के पारस ईश्वर है, उसको छोड़कर तू एक पत्थर लेकर पगली हो रही है। चल मेरे साथ, उठा ये सामान !”
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नामदेव जी बाहर गरीबों में सब सामान बाँटकर आ गये। घर जैसे पहले था ऐसे ही खाली-खट कर दिया।
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नामदेव जी ने पूछा- “वह पत्थर कहाँ है ? लाओ !” राजाई पारस ले आयी। नामदेव जी ने उसे ले जाकर नदी में फेंक दिया। और कहने लगे- मेरे विट्ठल, पांडुरंग ! हमें अपनी माया से बचा।
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इस धन दौलत, सुख सुविधा से बचा…नहीं तो हम तेरा सुख भूल जायेंगे,जो हमे मंजूर नहीं है। ऐसा कहते कहते वे रोने लगे और फिर ध्यान मग्न हो गये। पर हमलोग तो धन के पीछे ही सारा जिवन बिता देते हैं और ये भक्तगण धन को घृणा करते हैं…और हमलोग प्यार करते हैं। यही फर्क है उनमें और हममे।
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स्त्रियों के पेट में ऐसी बड़ी बात ज्यादा देर तो नहीं ठहरती। राजाई ने अपनी सहेली से कहा कि ऐसा-ऐसा हो गया। अब सहेली कमला तो रोने लगी। पति आयेंगे तो क्या उत्तर देगी इसी सोच उसको बिचलित कर दी।
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इतने में परीसा भागवत आया, पूछाः- “कमला ! क्या हुआ,परेशान लग रही हो ? “
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वह बोली- “तुम मुझे मार डालोगे ऐसी बात है।“ आखिर परीसा भागवत ने सारा रहस्य समझा तो वह क्रोध से लाल-पीला हो गया।
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बोला- “कहाँ है नामदेव, कहाँ है वो ? कहाँ गया मेरा पारस, कहाँ गया ? “ और इधर नामदेव तो नदी के किनारे ध्यानमग्न थे।
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परीसा भागवत वहाँ पहुँचाः- “ओ ! ओ भगत जी ! मेरा पारस तो दीजिये।“
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नामदेव- पारस तो मैंने डाल दिया उधर (नदी में)। परम पारस तो है अपना पांडुरंग। यह पारस पत्थर क्या करता है ?
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मोह, माया, भूत-पिशाच की योनि में भटकाता है। पारस-पारस क्या करते हो भाई ! बैठो और पांडुरंग का दर्शन करो।
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“मुझे कोई दर्शन-वर्शन नहीं करना।“…मेरा पारस दे दो।

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“पारस तो नदी में डाल दिया।“
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“नदी में डाल दिया ! नहीं, मुझे मेरा वह पारस दीजिये।“
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“अब क्या करना है….. सच्चा पारस तो तुम्हारे भीतर ही है…श्रीकृष्ण….“
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“मैं आपको हाथ जोड़ता हूँ मेरे बाप ! मुझे मेरा पारस दो…. पारस दो…..मैं खुसी खुसी चला जाउंगा।“
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“पारस मेरे पास नहीं है, वह तो मैंने नदी में डाल दिया।“
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“कितने वर्ष साधना की, मंत्र-अनुष्ठान किये, सिद्धि आयी, अंत में सिद्धिस्वरूपा देवी ने मुझे वह पारस दिया है। देवी का दिया हुआ वह मेरा पारस तुमने नदी में फैंक दिया ?….“
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नामदेव जी तो संत थे। उनको तो वह मार नहीं सकता था,क्योंकि वो उनका मित्र भी था। अपने-आपको ही कूटने लगा।
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नामदेव जी बोले- “अरे क्या पत्थर के टुकड़े के लिए भगवान श्रीकृष्ण का अपमान करता है !”

‘जय पांडुरंगा !’ कहकर नामदेव जी ने नदीं में डुबकी लगायी और कई पत्थर ला के रख दिये उसके सामने।
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“आपका पारस आप ही देख लो।“
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देखा तो सभी पथ्थर पारस हैं ! “इतने पारस कैसे वो स्तब्ध रह गया !”
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“अरे, कैसे-कैसे क्या करते हो, जैसे भी आये हैं ! आप ले लो अपना पारस ढुंढ के !”
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“ये कैसे पारस, इतने सारे… !”
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नामदेव जी बोले- “अरे, आप अपना पारस पहचान लो।“
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अब सब पारस एक जैसे, जैसे रूपये-रूपये के सिक्के सब एक जैसे। आपने मुझे एक सिक्का दिया, मैंने फेंक दिया और मैं वैसे सौ सिक्के ला के रख दूँ और बोलूँ कि आप अपना सिक्का खोज लो तो क्या आप खोज पाओगे ?
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उसने एक पारस उठाकर लोहे से छुआया तो वह सोना बन गया। लोहे की जिस वस्तु को लगाये वह सोना हो गया !
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ओ मेरी पांडुरंग माऊली (माँ) ! क्या आपकी लीला है ! हम समझ रहे थे कि नामदेव दरिद्र हैं। बाप रे ! हम ही दरिद्र हैं।
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नामदेव तो कितने वैभवशाली हैं। नहीं चाहिए पारस, नहीं चाहिए, फेंक दो। ओ पांडुरंग !…नामदेव जी के श्रीचरण में गीर पडे।
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परीसा भागवत ने सारे-के-सारे पारस नदी में फेंक दिये और परमात्म- पारस में ध्यान मग्न हो गये।
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हमारा समय कितना कीमती है और हम कौन से कूड़े-कपट जैसी क्रिया-कलापों में उलझ रहे हैं ।

🙏 जय श्री राधे🙏

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संजय कुमार

जय श्री राम गिलहरी का #रामसेतु बनाने में योगदान * माता सीता को वापस लाने के लिए रामसेतु बनाने का कार्य चल रहा था। भगवान राम को काफी देर तक एक ही दिशा में निहारते हुए देख लक्ष्मण जी ने पूछा भैया आप इतनी देर से क्या देख रहें हैं? भगवान राम ने इशारा करते हुए दिखाया कि वो देखो लक्ष्मण एक गिलहरी बार-बार समुद्र के किनारे जाती है और रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है। जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाता है फिर वह सेतु पर जाकर अपना सारा रेत सेतु पर झाड़ आती है। वह काफी देर से यही कार्य कर रही है। लक्ष्मण जी बोले प्रभु वह समुन्द्र में क्रीड़ा का आनंद ले रही है और कुछ नहीं। भगवान राम ने कहा, नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो। चलो आओ उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं कि वह क्या कर रही है? दोनों भाई उस गिलहरी के निकट गए। भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि तुम क्या कर रही हो? गिलहरी ने जवाब दिया कि कुछ भी नहीं प्रभु बस इस पुण्य कार्य में थोड़ा बहुत योगदान दे रही हूँ। भगवान राम को उत्तर देकर गिलहरी फिर से अपने कार्य के लिए जाने लगी, तो भगवान राम ने उसे टोकते हुए कहा- तुम्हारे रेत के कुछ कण डालने से क्या होगा ? गिलहरी बोली प्रभु आप सत्य कह रहे हैं। मै सृष्टि की इतनी लघु प्राणी होने के कारण इस महान कार्य हेतु कर भी क्या सकती हूँ? मेरे कार्य का मूल्यांकन भी क्या होगा? प्रभु में यह कार्य किसी आकांक्षा से नहीं कर रही। यह कार्य तो राष्ट्र कार्य है, धर्म की अधर्म पर जीत का कार्य है। राष्ट्र कार्य किसी एक व्यक्ति अथवा वर्ग का नहीं बल्कि योग्यता अनुसार सम्पूर्ण समाज का होता है। जितना कार्य वह कर सके नि:स्वार्थ भाव से समाज को राष्ट्र हित का कार्य करना चाहा
माता सीता का हरण होने के बाद, भगवान राम को लंका तक पहुंचने के लिए उनकी वानर सेना जंगल को लंका से जोड़ने के लिए समुद्र के ऊपर पुल बनाने के काम में लग जाती है। पुल बनाने के लिए पत्थर पर भगवान श्रीराम का नाम लिखकर पूरी सेना समुद्र में पत्थर डालती है। भगवान राम का नाम लिखे जाने की वजह से पत्थर समुद्र में डूबने के बजाय तैरने लगते हैं। यह सब देखकर सभी वानर काफी खुश होते हैं और तेजी से पुल बनाने के लिए पत्थर समुद्र में डालने लगते हैं। भगवान राम पुल बनाने के लिए अपनी सेना के उत्साह, समर्पण और जुनून को देखकर काफी खुश होते हैं। उस वक्त वहां एक गिलहरी भी थी, जो मुंह से कंकड़ उठाकर नदी में डाल रही थी। उसे ऐसा बार-बार करते हुए एक वानर देखकुछ देर बाद वानर गिलहरी को देखकर मजाक बनाता है। वानर कहता है, “हे! गिलहरी तुम इतनी छोटी-सी हो, समुद्र से दूर रहो। कहीं ऐसा न हो कि तुम इन्हीं पत्थरों के नीचे दब जाओ।” यह सुनकर दूसरे वानर भी गिलहरी का मजाक बनाने लगते हैं। गिलहरी यह सब सुनकर बहुत दुखी हो जाती है। भगवान राम भी दूर से यह सब होता देखते हैं। गिलहरी की नजर जैसे ही भगवान राम पर पड़ती है, वो रोते- रोते भगवान राम के समीप पहुंच जाती है।

परेशान गिलहरी श्री राम से सभी वानरों की शिकायत करती है। तब भगवान राम खड़े होते हैं और वानर सेना को दिखाते हैं कि गिलहरी ने जिन कंकड़ों व छोटे पत्थरों को फेंका था, वो कैसे बड़े पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने का काम कर रहे हैं। भगवान राम कहते हैं, “अगर गिलहरी इन कंकड़ों को नहीं डालती, तो तुम्हारे द्वारा फेंके गए सारे पत्थर इधर-उधर बिखरे रहते। ये गिलहरी के द्वारा फेंके गए पत्थर ही हैं, जो इन्हें आपस में जोड़े हुए हैं। पुल बनाने के लिए गिलहरी का योगदान भी वानर सेना के सदस्यों जैसा ही अमूल्य है।”

इतना सब कहकर भगवान राम बड़े ही प्यार से गिलहरी को अपने हाथों से उठाते हैं। फिर, गिलहरी के कार्य की सराहना करते हुए श्री राम उसकी पीठ पर बड़े ही प्यार से हाथ फेरने लगते हैं। भगवान के हाथ फेरते ही गिलहरी के छोटे-से शरीर पर उनकी उंगलियों के निशान बन जाते हैं। तब से ही माना जाता है कि गिलहरियों के शरीर पर मौजूद सफेद धारियां कुछ और नहीं, बल्कि भगवान राम की उंगलियों के निशान के रूप में मौजूद उनका आशीर्वाद है।

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लष्मीकांत विजयगढिया

सत्य उद्घाटन :
रावण द्वारा सीता हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था ?
उस मार्ग में कौनसा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है ?
उस मार्ग के बारे में हज़ारों साल पहले कैसे जानकारी थी ?
पढ़ो इन प्रश्नों के उत्तर वामपंथी इतिहारकारों के लिए मृत्यु समान हैं |
रावण ने माँ सीता का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटका), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश ) होते हुए श्रीलंका पहुंचा |

आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं की नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं | अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है |
अब आप ये सोचिये उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता | फिर कैसे उस समय ये पता किया गया की सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौनसा है ?
या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें की चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ की उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा की पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौनसा है ?
महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता |
लेकिन क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्ही स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था ?

ये ठीक वैसे ही है की आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता की पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है ? (जुग सहस्त्र जोजन पर भानु = 152 मिलियन किमी – हनुमानचालीसा),
जबकि नासा ने हाल ही कुछ वर्षों में इस दूरी का पता लगाया है |

अब आगे देखिये…
पंचवटी वो स्थान है जहां प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे |
यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी |
और आज इस स्थान को हम नासिक (महाराष्ट्र) के नाम से जानते हैं | आगे चलिए…

पुष्पक विमान में जाते हुए सीता ने नीचे देखा की एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए कुछ वानर ऊपर की ओर कौतुहल से देख रहे हैं तो सीता ने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमे अपने कंगन बांधकर नीचे फ़ेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूढ़ने में सहायता प्राप्त हो सके |
जिस स्थान पर सीताजी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके वो स्थान था ‘ऋष्यमूक पर्वत’ जो आज के हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है |

इसके बाद | वृद्ध गीधराज जटायु ने रोती हुई सीता को देखा, देखा की कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात अपने विमान में लेके जा रहा है |
जटायु ने सीता को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया | रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए |
इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीता को ढूंढते हुए पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला सम्बोधन ‘हे पक्षी’ कहते हुए किया | और उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में ‘लेपक्षी’ (आंधप्रदेश) है |

अब क्या समझ आया आपको ? पंचवटी—हम्पी—लेपक्षी—श्रीलंका | सीधा रास्ता | सबसे छोटा रास्ता |
गूगल मैप का निकला गया फोटो नीचे है |

अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारतबन्धुओं रामायण कोई मायथोलोजी नहीं है |
ये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है | जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं |
इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को मायथोलोजी कहकर लोगो को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना | विश्वाश करो एक का भी जवाब नहीं दे पायेगा |

अब इस सबमे आपकी ज़िम्मेदारी क्या है ?
आपके हिस्से की ज़िम्मेदारी ये है की अब जब टीवी पर रामायण देखें तो ये ना सोचें की कथा चल रही है बल्कि निरंतर ये ध्यान रखें की ये हमारा इतिहास चल रहा है | इस दृष्टि से रामायण देखें और समझें |
विशेष आवश्यक ये कि यही दृष्टि हमारे बच्चों को दें, बच्चों को ये बात बोलकर कम से कम एक-दो बार कहें कि ‘बच्चो ये कथा कहानी नहीं है, ये हमारा इतिहास है, जिसको मिटाने की कोशिश की गई है |’

इधर हम आपको नित्य भारत के इतिहास-संस्कृति के वैज्ञानिक प्रमाणों वाली जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे |
ताकि भारत राष्ट्र संस्कृति बचाने की इस लड़ाई में आपके पास सबूत और प्रमाण हर समय उपलब्ध रहें | ———————————-

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🌑 अमावस्येचा चाँद 🌙 ⛈️

रात्रीचे नऊ वाजले होते, पावसाची संतत धार सुरू होती ,बस संथ गतीने धावत होती. बसमधील प्रवाशी बहुतांश शांतपणे अर्धनिद्रेत डुलत आहेत हे जाणवत होतं मी आणि आई गावाकडे गेलो होतो ,तेथे बस उशिरा मिळाल्यामुळे आम्हाला बराच उशीर घरी पोहचायला होणार होता, आता निदान दहा तरी वाजणार हे नक्की होते, बाहेरचा आणि बसमधील ही सन्नाटा ,मिट्ट काळोख पाहून आई मला कितीदा तरी आमावस्या असल्याची आठवण करून देत होती, तिची भीती, दडपण मी काही म्हटलं तरी कमी होणार नाही हे माहीत असल्यामुळे मी फक्त तिचा हात गच्च धरून बसले होते..!
अचानक एक जोरात आचका घेऊन बस जागेवर थांबली आणि आईच्या तर काळजाचा ठोकाच चुकला हे तिच्या “अरे….. देवा….. काय झाले आता…..!” या उच्चरावरून च लक्ष्यात आलं, डोलणारे सगळे जागे झाले आणि जागे असलेले उठून काय झालं याचा अंदाज घेऊ लागले ,तेवढ्यात बस मधील लाईट लागली आणि ड्रायव्हर गप्पकन उडी मारल्याचा आवाज आला ,धावतच कंडाक्टर काका ही खाली गेले दोन च मिनिटात परत येऊन म्हणाले,
बसचे टायर पंक्चर आहे अर्धा पाऊण तास वेळ लागेल ,सर्वजन खाली उतरा…!
पाऊस सुरू.. आडवळणी बस थांबलेली … सगळे प्रवासी त्या दोघा वर भरोसा करून खाली उतरू लागले. आई जाम घाबरली होती ,
‘आता पंधरा मिनिटात नीट करतील आई , चल खाली.. म्हणून आईला मी कसबस खाली उतरवलं, तिला सहज स्वरात म्हटलं,
‘अग फक्त अर्धा तास उशिरा पोहचू घरी.. एवढं काय टेन्शन घेती…?
माझ्या बोलण्याने तिला कितीसा धीर आला, माहीत नाही.. पण देवाच नाव घेणारे तिचे ओठ मात्र जास्त जोरात हलत असतील हे अंधारात ही मला दिसू लागलं आणि आईच हसू आलं, पण ते हसू जरा जरी बाहेर पडल तर माझी धडगत नव्हती म्हणून साळसूद आव आणून मी आईच्या डोक्यावर छत्री धरून उभी राहिले.
भर पावसात ड्रायव्हर आणि कंडक्टर यांनी पाऊण तास खटाटोप करून टायर बदललं आणि पुन्हा बस सुरू झाली।. रात्रीच्या सव्वा आकराच्या सुमारास आम्ही आमच्या बस स्टँड वर उतरलो खरे पण आता घरी जाणे हे ही दिव्यच होते कारण घर बस स्टँड पासून बरेच लांब होते. चिखल, पाऊस यामुळे चालत जायला किमान एक तास लागणार होता त्यात पावसामुळे लाईट ही गेली होती . मी आईच्या हातात छत्री दिली, एका हाताने आईचा हात पकडून दुसऱ्या हातात बॅग घेतली आणि ऑटो पाहू लागले तसे आईने हाताला झटका देत म्हटले ,
‘काही ऑटोने जायचे नाही, चालत जाऊ आपण , ऑटोवाल्याचा काही भरोसा नाही बारा वाजत आहेत, त्यात आमवस्येची रात्र आहे….!’
मी समजुतीच्या स्वरात म्हटलं
‘आई पाऊस आहे, चिखल आहे खुप वेळ लागेल , थांब जरा आपण ऑटोवाला पाहूनच ऑटोत बसू..!’
तू माणस ओळखायला पारंगतच न, माझं कधी ऐकणार ,मनात येईल तेच करणार…!
आई हेच पुटपुटत असणार.. हे मला माहित होतं मी तिच्याकडे दुर्लक्ष करत लांबून येणाऱ्या एका ऑटोला हात केला.
आईच म्हणणे ही खरे होते, आमच्या शहरात च अलीकडे ऑटोवाल्यानी अगदी सात च्या सुमारास वयस्क स्त्रीचे दागिने लुटले होते आणि तिला लांब नेऊन सोडले होते शिवाय पेपर रिडींग एक्स्पर्ट आमच्या मातोश्री सगळ्या जगाची खबर सकाळी सकाळीच घेत असत त्यामुळे असल्या वाईट बातम्या अगदी त्यांच्या डोक्यात खच्चुन भरलेल्या आहेत आणि याबाबत त्यांचं म्हणणं रास्त आहे मला पटत होत. पण ..आलीया भोगाशी असावे सादर… हे ही सत्यच होते..!
“कहा जाना है मॅडम…?” मी भानावर येत समोर पाहिले ,ऑटोतील प्रकाशात त्याच्या चेहऱ्यावरचा शांत भाव पाहून मी आईला बळच ऑटोत ढकलत अड्रेस सांगितला, ‘अग ,पैसे तर विचार..!’म्हणणाऱ्या आईला हाताने खूण करून गप्प रहा म्हटलं..!पुन्हा एकदा पुटपुटत तिने रागाने मानेला झटका दिला..!ऑटो सुरू झाला आई वारंवार मान बाहेर करून ओळखीचा रस्ता आहे का पाहत होती..!
पाऊस थोडा वाढलाच होता, अचानक ऑटो थांबला आता मात्र आईचा संयम तुटणार माहीत होतं ,मी ऑटो वाल्याकडे पहात विचारलं,
काय झालं ..?
ऑटोवाला खाली उतरत पुटपुटला ,
रोड पे पाणी है गड्डे नही दिख रहे…!
एक चाक खड्यात जाम अडकलं होत ,रस्ता खराब झाल्याने चिखल पाणी यात ते बरच फसल होत, त्याने ऑटो स्टार्ट करून ते बाहेर काढण्याचा खूप प्रयत्न केला, आई सारख आमवस्येची आठवण करून देत होती, मलाही आता नकळत भीती वाटत होती..!
ऑटो मध्ये बसून कितीही रेस्टार्ट केले तरी चाक बाहेर निघत नाही हे पाहून तो ऑटोवाला खाली उतरला ,फसलेल चाक हाताने बाहेर काढू लागला ,मी आवाज दिला ,
रुको भाई हम नीचे उतरते है।
तो जागेवरूनच ओरडला,
“नक्को मॅडम, मौसीजी है , बहोत बारिश है। आप नीचे मत उतरो, मै करता हू कुछ…।
मी अस्वस्थ मनानं मान वळवून पाहू लागले, पूर्ण ताकदीनं तो ऑटोच चाक पुढे ढकलत होता, वीज चमकली आणि त्या प्रकाशात नकळत मला कुंतीपुत्र कर्ण आठवला… माझा आवडता कर्ण..! रणांगणावर फसलेले चाक बाहेर काढणारा ,पूर्ण जीवन समर्पित भावाने जगणारा कर्ण…! ऑटोवाला पावसाने पूर्ण भिजून चिंब झाला होता, शेवटी त्याच्या प्रयत्नाला यश आले, निथळणारे पाणी झटकत तो ऑटोत येऊन बसला आणि पुनः ऑटो धावू लागला ,काही मिनिटात ऑटो दारासमोर येऊन उभा राहिला, मी शंभर रुपये ची नोट त्याला दिली आणि गेट कडे वळले, तसा तो ओरडला ,
‘मॅडम ..बाकी के पैसे ..?’
मी वळून पाहत म्हटलं ,
‘राहू द्या..!’
तस तो उडी मारून खाली उतरला पन्नास रु ची नोट माझ्या हाती देत म्हणाला ,
‘ आपके एक्सट्रा पैसे लेकर मै क्या करोडपती बननेवाला हूं क्या? जितना था उतना ही लेना चाहीये…।’
त्याने ऑटो सुरू करून तो वळवला मी भर पावसात त्याच्या ऑटोकडे पाहत उभी होते त्याच्या ऑटोच्या मागील 786 आणि चाँद अंधारात ही नजरेत भरला..!पण त्या ऑटो वरच्या चाँद पेक्ष्या त्या मुस्लिम तरुणांच्या मनातील पूर्णाकृती चाँद आमावस्येच्या काळ्या रात्रीलाही प्रकाशित करून गेला, मनात वाटून गेलं असे चाँद जिवंत आहेत म्हणून तर आमवस्येच्या कुट्ट अंधाऱ्या रात्री ही पौर्णिमा दिलखुलासपणे खुलून दिसतेय ,अन्यथा पौर्णिमेची आमवस्या व्हायला कितीसा वेळ लागणार….?
– मनस्वी महाके

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त्रिकाल संध्या

जीवन को यदि तेजस्वी बनाना हो, सफल बनाना हो, उन्नत बनाना हो तो मनुष्य को त्रिकाल संध्या अवश्य करनी चाहिए।

श्रद्धां प्रातर्हवामहे श्रद्धां मध्यंदिनं परि ।
श्रद्धां सूर्यस्य निम्रुचि श्रद्धे श्रद्धापयेह न: ॥5॥
-ऋग्वेद 7/151/5
अर्थात- हम प्रात: श्रद्धा का आह्वान करते हैं, हम मध्याह्न काल में श्रद्धा का सब ओर से आह्वान करते हैं, हम सूर्यास्त समय में श्रद्धा का आह्वान करते हैं । हे श्रद्धा! तू इस मानव जीवन में हमें श्रद्धामय बना ।

प्रातःकाल सूर्योदय से दस मिनट पहले और दस मिनट बाद में, दोपहर को बारह बजे के दस मिनट पहले और दस मिनट बाद में तथा सायंकाल को सूर्यास्त के पाँच-दस मिनट पहले और बाद में, यह समय संधि का होता है।

इस समय किया हुआ प्राणायाम, जप और ध्यान बहुत लाभदायक होता है जो मनुष्य सुषुम्ना के द्वार को खोलने में भी सहयोगी होता है। सुषुम्ना का द्वार खुलते ही मनुष्य की छुपी हुई शक्तियाँ जाग्रत होने लगती हैं।

प्राचीन ऋषि-मुनि त्रिकाल संध्या किया करते थे। भगवान वशिष्ट भी त्रिकाल संध्या करते थे और भगवान राम भी त्रिकाल संध्या करते थे। भगवान राम दोपहर को संध्या करने के बाद ही भोजन करते थे।

संध्या के समय हाथ-पैर धोकर, तीन चुल्लू पानी पीकर फिर संध्या में बैठें और प्राणायाम करें, गायत्री मंत्र का जप करें तो बहुत अच्छा। दोपहर की संध्या समय यदि कोई आफिस में है, व्यापारिक प्रतिष्ठान में हैैं अथवा स्कूल-कॉलिज में हैैं, तो वहीं मानसिक रूप से गायत्री मंत्र का जप, प्राणायाम व ध्यान कर लें तो भी ठीक है। लेकिन गायत्री जप करें अवश्य।

जैसे उद्योग करने से, पुरुषार्थ करने से दरिद्रता नहीं रहती, वैसे ही प्राणायाम करने से पाप कटते हैं। जैसे प्रयत्न करने से धन मिलता है, वैसे ही प्राणायाम करने से आंतरिक सामर्थ्य, आंतरिक बल मिलता है। छांदोग्य उपनिषद में लिखा है कि जिसने प्राणायाम करके मन को पवित्र किया है उसे ही गुरु के आखिरी उपदेश का रंग लगता है और आत्म-परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है।

मनुष्य के फेफड़ों में तीन हजार छोटे-छोटे छिद्र होते हैं। जो लोग साधारण रूप से श्वास लेते हैं उनके फेफड़ों के केवल तीन सौ से पाँच सौ तक के छिद्र ही काम करते हैं, बाकी के बंद पड़े रहते हैं, जिससे शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है। मनुष्य जल्दी बीमार और बूढ़ा हो जाता है। व्यसनों एवं बुरी आदतों के कारण भी शरीर की शक्ति जब शिथिल हो जाती है, रोग-प्रतिकारक शक्ति कमजोर हो जाती है तो छिद्र बंद पड़े होते हैं उनमें जीवाणु पनपते हैं और शरीर पर हमला कर देते हैं जिससे दमा और टी.बी. की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।

परन्तु जो लोग गहरा श्वास लेते हैं, उनके बंद छिद्र भी खुल जाते हैं। फलतः उनमें कार्य करने की क्षमता भी बढ़ जाती है तथा रक्त शुद्ध होता है, नाड़ी भी शुद्ध रहती है, जिससे मन भी प्रसन्न रहता है। इसीलिए सुबह, दोपहर और शाम को संध्या के समय प्राणायाम करने का विधान है। प्राणायाम से मन पवित्र होता है, एकाग्र होता है जिससे मनुष्य में बहुत बड़ा सामर्थ्य आता है।

यदि मनुष्य दस-दस प्राणायाम तीनों समय करे और शराब, माँस, बीड़ी व अन्य व्यसनों एवं फैशनों में न पड़े तो चालीस दिन में तो मनुष्य को अनेक अनुभव होने लगते हैं। केवल चालीस दिन प्रयोग करके देखिये, शरीर का स्वास्थ्य बदला हुआ मिलेगा, मन बदला हुआ मिलेगा, जठरा प्रदीप्त होगी, आरोग्यता एवं प्रसन्नता बढ़ेगी और स्मरण शक्ति में जादुई विकास होगा।

प्राणायाम से शरीर के कोषों की शक्ति बढ़ती है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने त्रिकाल संध्या की व्यवस्था की थी। रात्रि में अनजाने में हुए पाप सुबह की संध्या से दूर होते हैं। सुबह से दोपहर तक के दोष दोपहर की संध्या से और दोपहर के बाद अनजाने में हुए पाप शाम की संध्या करने से नष्ट हो जाते हैं तथा अंतःकरण पवित्र होने लगता है।

आजकल लोग संध्या करना भूल गये हैं, निद्रा के सुख में लगे हुए हैं। ऐसा करके वे अपनी जीवन शक्ति को नष्ट कर डालते हैं।

प्राणायाम से जीवन शक्ति का, बौद्धिक शक्ति का एवं स्मरण शक्ति का विकास होता है। स्वामी रामतीर्थ प्रातःकाल में जल्दी उठते, थोड़े प्राणायाम करते और फिर प्राकृतिक वातावरण में घूमने जाते। परमहंस योगानंद भी ऐसा करते थे।

स्वामी रामतीर्थ बड़े कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। गणित उनका प्रिय विषय था। जब वे पढ़ते थे, उनका नाम तीर्थराम था। एक बार परीक्षा में 13 प्रश्न दिये गये जिसमें से केवल 9 हल करने थे। तीर्थराम ने 13 के 13 प्रश्न हल कर दिये और नीचे एक टिप्पणी (नोट) लिख दी, ‘ 13 के 13 प्रश्न सही हैं। कोई भी 9 जाँच लो।’, इतना दृढ़ था उनका आत्मविश्वास।

प्राणायाम के अनेक लाभ हैं। संध्या के समय किया हुआ प्राणायाम, जप और ध्यान अनंत गुणा फल देता है। अमिट पुण्यपुंज देने वाला होता है। संध्या के समय हमारी सब नाड़ियों का मूल आधार जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसका द्वार खुला होता है। इससे जीवन शक्ति, कुण्डलिनी शक्ति के जागरण में सहयोग मिलता है। उस समय किया हुआ ध्यान-भजन पुण्यदायी होता है, अधिक हितकारी और उन्नति करने वाला होता है। वैसे तो ध्यान-भजन कभी भी करो, पुण्यदायी होता ही है, किन्तु संध्या के समय उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। त्रिकाल संध्या करने से विद्यार्थी भी बड़े तेजस्वी होते हैं।

अतएव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए त्रिकाल संध्या अवश्य करनी चाहिए।

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शरीर स्वास्थ्य

लोकमान्य तिलक जब विद्यार्थी अवस्था में थे तो उनका शरीर बहुत दुबला पतला और कमजोर था, सिर पर फोड़ा भी था। उन्होंने सोचा कि मुझे देश की आजादी के लिए कुछ काम करना है, माता-पिता एवं समाज के लिए कुछ करना है तो शरीर तो मजबूत होना ही चाहिए और मन भी दृढ होना चाहिए, तभी मैं कुछ कर पाऊँगा। अगर ऐसा ही कमजोर रहा तो पढ़-लिखकर प्राप्त किये हुए प्रमाण-पत्र भी क्या काम आयेंगे?

जो लोग सिकुड़कर बैठते हैं, झुककर बैठते हैं, उनके जीवन में बहुत बरकत नहीं आती। जो सीधे होकर, स्थिर होकर बैठते हैं उनकी जीवन-शक्ति ऊपर की ओर उठती है। वे जीवन में सफलता भी प्राप्त करते हैं।

तिलक ने निश्चय किया कि भले ही एक साल के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़े तो छोडूँगा लेकिन शरीर और मन को सुदृढ़ बनाऊँगा। तिलक यह निश्चय करके शरीर को मजबूत और मन को निर्भीक बनाने में जुट गये। रोज़ सुबह-शाम दौड़ लगाते, प्राणायाम करते, तैरने जाते, मालिश करते तथा जीवन को संयमी बनाकर ब्रह्मचर्य की शिक्षावाली ‘वैज्ञानिक यौवन रक्षक’ जैसी पुस्तकें पढ़ते। सालभर में तो अच्छा गठीला बदन हो गया। पढ़ाई-लिखाई में भी आगे और लोक-कल्याण में भी आगे। राममूर्ति को सलाह दी तो राममूर्ति ने भी उनकी सलाह स्वीकार की और पहलवान बन गये।

बाल गंगाधर तिलक के विद्यार्थी जीवन के संकल्प को आप भी समझ जाना और अपने जीवन में लाना कि ‘शरीर सुदृढ़ होना चाहिए, मन सुदृढ़ होना चाहिए।’ तभी मनुष्य मनचाही सफलता अर्जित कर सकता है।

तिलक जी से किसी ने पूछाः “आपका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली कैसे है? आपकी ओर देखते हैं तो आपके चेहरे से अध्यात्म, एकाग्रता और तरुणाई की तरलता दिखाई देती है। ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ ऐसा जब बोलते हैं तो लोग दंग रह जाते हैं कि आप विद्यार्थी हैं, युवक हैं या कोई तेजपुंज हैं! आपका ऐसा तेजोमय व्यक्तित्व कैसे बना?”

तब तिलक ने जवाब दियाः “मैंने विद्यार्थी जीवन से ही अपने शरीर को मजबूत और दृढ़ बनाने का प्रयास किया था। सोलह साल से लेकर इक्कीस साल तक की उम्र में शरीर को जितना भी मजबूत बनाना चाहे और जितना भी विकास करना चाहे, हो सकता है।”

इसीलिए विद्यार्थी जीवन में इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सोलह से इक्कीस साल तक की उम्र शरीर और मन को मजबूत बनाने के लिए है।

आप भी चाहो तो अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हो। शरीर को स्वस्थ रखने के कई तरीके हैं। जैसे धन्वन्तरी के आरोग्यशास्त्र में एक बात आती है – ‘उषःपान।’

‘उषःपान’ अर्थात सूर्योदय के पहले या सूर्योदय के समय रात का रखा हुआ पानी पीना। इससे आँतों की सफाई होती है, अजीर्ण दूर होता है तथा स्वास्थ्य की भी रक्षा होती है। उसमें आठ चुल्लू भरकर पानी पीने की बात आयी है। आठ चुल्लू पानी यानि कि एक गिलास पानी। चार-पाँच तुलसी के पत्ते निगलकर (तुलसी के पत्तो को चबाये नहीं), सूर्योदय के पहले पानी पीना चाहिए। तुलसी के पत्ते सूर्योदय के बाद तोड़ने चाहिए, वे सात दिन तक बासी नहीं माने जाते।

शरीर तन्दरुस्त होना चाहिए। रगड़-रगड़कर जो नहाता है और चबा-चबाकर खाता है, जो परमात्मा का ध्यान करता है और सत्य का संग करता है, उसका बेड़ा पार हो जाता है।

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शीतला दुबे

शिक्षाप्रद कहानी!!
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एक चूहा किसान के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी एक पैकेट से कुछ निकाल रहे हैं. चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है.
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक चूहेदानी थी. ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर मुर्गे को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है.
मुर्गे ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात सूअर को बताने गया.
सूअर ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई..ये मेरी समस्या नहीं है.
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर भैंसे को ये बात बताई… और भैंसा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा
.
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई जिस में एक ज़हरीला साँप फँस गया था.
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर किसान की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डंस लिया.
तबीयत बिगड़ने पर किसान ने वैद्य को बुलवाया. वैद्य ने उसे चिकन सूप पिलाने की सलाह दी.
मुर्गा अब पतीले में उबल रहा था.
खबर सुनकर किसान के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन सूअर को काटा गया.
कुछ दिनों बाद किसान की पत्नी मर गयी… अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में भैंसा परोसने के अलावा कोई चारा न था……
चूहा दूर जा चुका था…बहुत दूर ………..

अगली बार कोई आप को अपनी समस्या बातये और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है तो रुकिए और दुबारा सोचिये…. हम सब खतरे में हैं…
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देवी सिंह तोमर

दुनिया का सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी धारावाहिक रामानंद सागर कृत रामायण के बारे में सोशल मीडिया व अन्य स्रोतों से मुझे जो पता चला है उनमें से कुछ महत्वपूर्ण रोचक बातें आपके साथ साझा कर रहा हूं।

1- रामानंद सागर कृत रामायण” को “MYTHOLOGICAL SERIAL”के रुप में जून 2003 को लिमका बुक रिकार्ड में नाम दर्ज कर लिया गया था ।

2-रामायण में जब जूनियर कलाकारों की जरूरत पड़ती थी तो ढोल नगाड़े बजाकर गांव गांव जाकर कलाकार भर्ती किए जाते थे

3- पाँच महाद्वीपों में दिखाई जाने वाली रामायण को विश्व भर में 65 करोड़ से ज्यादा दर्शकों ने देखा था।

4-हर हफ्ते रामायण की ताजा कैसेट्स दूरदर्शन ऑफिस पर भेजे जाते थे कहीं बाहर तो यह कैसेट प्रसारण से आधे घंटे पहले ही दफ्तर पहुंचते थे।

5-जब रामायण में रावण की मृत्यु होती है तो रावण का पात्र अरविंद त्रिवेदी के गांव में शोक मनाया जाता है।

6- रामायण” भारत का पहला एकमात्र ऐसा धारावाहिक था । जो 45 मिनट Broadcast होता था । बाकी अन्य सिरियल 30 मिनट ही प्ले होते थे वो भी विज्ञापन के साथ ।

7- भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त “रामायण” का पहला ऐपीसोड भारतीय सरकारी चैनल “दुरदर्शन” पर 24 जनवरी 1987 को प्रसारित किया गया था ।

8-सुचना प्रसारण विभाग के सर्वे मे पाया गया कि रामायण धारावाहिक जब शुरू होता था । तो भारत के 99% टी.वी. पर प्रसारित होता था ।

9- “रामायण” भारत का एकलोता टी.वी. धारावाहिक था । जिस दौरान पब्लिक ट्रान्सपोर्ट जाम हो जाता था ।

10-भारत के कुछ हिस्सों में “रामायण” ऐपीसोड आने के समय से पहले लोग अपने जुते-चप्पल उतार देते थे । वे उन्हे भगवान का पुरा दर्जा देते थे ।

11- एक भारतीय ने रामानंद सागर जी को पांच हजार का चैक और एक पत्र भेजा था । उस पत्र में लिखा था कि मै अपनी बेटी को दहेज में रामायण की टेप देना चाहता हु ।

12- रामायण को स्पोन्सर्स करने के लिये सभी भारतीय प्रोड्यूर्सस ने साफ मना कर दिया था । फिर रामानंद सागर ने खुद स्पोन्सर्स किया । औऱ जबर्दस्त हिट हुआ ।

13- रामायण के सभी ऐपीसोड “उमरगाव” स्टूडियो में शुट हुये थे । जो मुम्बई से लगभग 15 मील कि दुरी पर था । जो स्पेशल रामायण के लिये ही किराये पर लिया गया था ।

14- रामानंद सागर जी ने टीम के 150 सभी कार्यकर्ताओं के लिये रामायण की शुटिग के दौरान शाकाहारी भोजन बनवाया था ।

15- भारत के कुछ हिस्सो के मन्दिरो में रामायण के मुख्य कलाकार अरुण गोविल (राम) व दिपिका चिखालिया (सीता) के फोटो लगे है ।

16- रामानंद सागर जी कि रामायण करने के बाद अरुण गोविल (राम) ने नशीले पदार्थो शराब, बीडी-सिगरेट, पान-मसाला का सेवन त्याग दिया था ।

17- अरुण गोविल (राम) को स्वर्गीय “राजीव गांधी” ने इलाहाबाद से कॉग्रैस पार्टी से चुनाव लडने के लिये कहा था । लेकिन गोविल (राम) ने ये कहकर मना कर दिया था कि ‘ये मेरी राम भगवान की इमेज को खराब कर देगा ।

18- अरुण गोविल(राम) व दिपिका चिखालिया(सीता) को जब किसी प्रोग्राम के लिये शिरकरत करने के लिये बुलाया जाता था तो लोग उनके पैर छूकर आर्शिवाद लेते थे ।
19- वर्तमान में दिपिका चिखालिया (सीता) अपने पति हेमन्त टोपीवाला कि कॉस्मेटिक कम्पनी में मार्केटिंग हेड के रुप में काम करती है । दीपिका चिखलिया जल्द ही सरोजनी नायडू की बायोपिक में नजर आ सकती है यह स्वयं उन्होंने ही बताया

20- अरुण गोविल (राम) और सुनील लहरी (लछ्मण) मिलकर मुम्बई मे राम-लछ्मण प्रोडक्शन हाउस के नाम से अपनी प्रोडक्शन कम्पनी चला रहे है।

21-संगीत की दुनिया की सरताज रविंद्र जैन जी को रामायण ने कर दिया था अमर घर घर में घुसने लगी थी उनकी आवाज

22- 78 एपिसोड पूरे होने के बाद दर्शकों ने लव कुश की मांग की इस पर रामानंद सागर ने पहले ही कह दिया था कि वह काल्पनिक होगा। और इस सीरियल पर वाद विवाद होने के कारण रामानंद सागर पर 10 साल का कोर्ट केस भी चला

23-आज भी 33 वर्षों बाद दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे रामायण के प्रसारण के साथ ही सोशल मीडिया पर रामायण ट्रेंड करने लगी जबकि कोरोनावायरस सोशल मीडिया में पिछड़ गया|


जय श्री राम
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“गुब्बारे वाला”

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एक आदमी गुब्बारे बेच कर जीवन-यापन करता था. वह गाँव के आस-पास लगने वाली हाटों में

जाता और गुब्बारे बेचता . बच्चों को लुभाने के लिए वह तरह-तरह के गुब्बारे रखता …लाल, पीले ,हरे, नीले…. और जब कभी उसे लगता की बिक्री कम हो रही है वह झट से एक गुब्बारा हवा में छोड़ देता, जिसे उड़ता देखकर बच्चे खुश हो जाते और गुब्बारे खरीदने के लिए पहुँच जाते.

इसी तरह तरह एक दिन वह हाट में गुब्बारे बेच रहा था और बिक्री बढाने के लिए बीच-बीच में गुब्बारे उड़ा रहा था. पास ही खड़ा एक छोटा बच्चा ये सब बड़ी जिज्ञासा के साथ देख रहा था . इस बार जैसे ही गुब्बारे वाले ने एक सफ़ेद गुब्बारा उड़ाया वह तुरंत उसके पास पहुंचा और मासूमियत से बोला, ” अगर आप ये काल वाला गुब्बारा छोड़ेंगे…तो क्या वो भी ऊपर जाएगा ?”

गुब्बारा वाले ने थोड़े अचरज के साथ उसे देखा और बोला, ” हाँ बिलकुल जाएगा. बेटे ! गुब्बारे का ऊपर जाना इस बात पर नहीं निर्भर करता है कि वो किस रंग का है बल्कि इसपर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है .”

मित्रों, ठीक इसी तरह हम इंसानों के लिए भी ये बात लागु होती है. कोई अपनी जीवन में क्या प्राप्त करेगा, ये उसके बाहरी रंग-रूप पर नहीं निर्भर करता है , ये इस बात पर निर्भर करता है कि उसके अन्दर क्या है🙏🏻

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