इस कहानी को आज के संदर्भ में परखें-
युद्ध महीनों से चल रहा था. दिन ढलने के बाद आज का युद्ध विराम हुआ. राजा अपने सेनापति को निर्देश के साथ सुबह की रणनीति तय करके, अपने कुछ मंत्रियों एवं एक सेना की टुकड़ी के साथ अपने विश्रामस्थल लौट रहे थे. अंधेरा बढ़ रहा था. राजा का छोटा काफिला एक गांव के किनारे से गुजर रहा था. तभी गांव से एक महिला रोते-चीखते खेत की तरफ बेसुध भागी जा रही थी. दूसरी ओर, उसके पीछे एक आदमी हाथ मे लाठी लिये बेतहाशा उसका पीछा कर रहा था. रोने की आवाज़ सुनकर,राजा की नजर उस पीड़ित भागती महिला पर पड़ी. राजा ने महावत से तुरन्त हाथी रोकने को कहा. राजा का हाथी रुकते ही.. पूरी सेना की टुकड़ी ठिठककर खड़ी हो गई.
राजा ने तत्क्षण अपने दो सैनिकों को आदेश दिया- “जाओ! उस महिला को बुलाकर यहाँ लाओ और हाँ! वो आदमी न भागने न पाये जो उसका पीछा कर रहा है.”
सैनिक – ” जो आज्ञा महाराज!”
पांच मिनट के अन्दर रणबांकुरे महिला को सम्मान से तथा आदमी को घसीटकर राजा के समक्ष पेश किये.
राजा ने हाथी पर से ऊंचे स्वर में उस आदमी से पूछा- ” क्यों मार रहे हो इस महिला को”
आदमी- “इ हमारी मेहरारु है महाराज”
राजा (क्रोधित होकर)- ” मेहरारू होने के कारण पीट रहे हो या उसने कोई गलती की है”
आदमी- ” गलती हो गई महाराज! बात मेहरारू की नहीं है…दरअसल इ खाना चटख नाहीं बनाती.. हम रोज कहते हैं खाना तड़क बने..तनिक चटनी बन जाये…लेकिन इ है कि मनबे नाहीं करत”
राजा- ” अच्छा! चटखदार खाने के शौकीन हो…
आदमी- “जी महाराज! शाम के बेला तनि चटख खोजते हैं.”
राजा- ” खुद बना लेते हो या सिर्फ दूसरे के भरोसे खोजते हो.”
आदमी- ” हाँ महाराज! हम बहुत अच्छा खाना बनाते हैं, चटख तो इतना कि दिन भर जुबान से स्वाद न उतरे”
राजा- ” तो क्यों नहीं अपनी मेहरारू को भी सिखा देते..बढ़िया और चटख बनाना”
आदमी- ” बहुत सिखाते हैं महाराज! लेकिन इसको तो जैसे कोई शौक ही नहीं.”
राजा (महिला की तरफ मुखातिब होकर)- ” क्या तुम्हारा आदमी ठीक कह रहा है? क्यों नहीं बनाती बढ़िया चटखदार”
औरत- “महाराज!एक नम्बर का निकम्मा मरद है इ. दिनभर मोदक खाकर घूमता है और रात को थरिया भर भकोसता है.. ऊपर से रोज चटख मांगता है.. बताइए! हम कहां से रोज चटख बनायेंगे. हम इनसे कह रहें हैं कि राज पर संकट है. हमारे राजा और सैनिक युद्ध में लगे हैं.. और एक तुम हो दिनभर मोदक खाकर घूमते रहते हो और रात में चूल्हे में घुसकर चटख खोज रहे हो.. बस एही बात पर पीट रहें हैं हमको…बहुत मारे हैं महाराज बहुत.
( राजा औरत की बात सुनकर गंभीर हो गये)
राजा ( आदमी से)- ” सुनो! जैसा कि तुम्हारे बात में मालूम होता है कि तुम एक हुनरमंद आदमी हो, भगवान ने तुम्हें खाना खाने और बनाने दोनों की भरसक तमीज़ दी है इसलिए मुझे लगता है कि तुम जैसे पाककला के दक्ष व्यक्ति और कुशल हाथों को एक उचित स्थान मिलना चाहिए.. इसलिए मेरा यह आदेश है कि कल से तुम सेना के साथ युद्ध स्थल पर रहोगे तथा सैनिकों के लिए चटखदार भोजन बनाओगे. वहां भोजनगृह में श्रेष्ठ एवं स्वादिष्ट भोजन हेतु सभी आवश्यक सामग्री उपलब्ध है. यद्यपि तुम कोई ऐसी सामग्री जानते हो जिससे भोजन और स्वादिष्ट और चटख बने तो तुम रसोई के प्रबंधक से बता देना.. सब प्रबन्ध हो जायेगा.. कल से हम सब तुम्हारे हाथ का भोजन ग्रहण करेंगे.
आदमी- ” क्षमा करें महाराज! गलती हो गई मुझसे.. कान पकड़ता हूँ प्रभु॥”
राजा- ” तुमसे कोई गलती नहीं हुई. आज राज्य को तुम्हारे जैसे ही कुशल, दक्ष एवं स्वाद के पारखी की आवश्यकता है क्योंकि हमारी सेना महीनों से रूखा-सूखा खाकर बोर हो गई है”
महिला (बीच में बात काटकर)- ” महाराज!यह एक नम्बर का निकम्मा है.. सतुआ नहीं घोर पायेगा.. खाना बनाना तो दूर की बात है.. इसके चक्कर में हमारे सैनिक भूखे रह जायेंगे”
राजा- ” तुम निश्चिंत रहो! जब यह अपने लाठी से तुमको पीटकर चटख खाना बनवा सकता है तो मेरे पास तो पीटने वालों की फौज है, तुम जाओ! तुरन्त इसका बोरिया बिस्तर बांधो कल सुबह से ही इसे ही चूल्हा फूंकना है.. इसे भी तो पता चले कि युद्ध में लड़ना और चूल्हे पर बैठकर चटखारे लगाने में कितना फर्क़ है”
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