राम सीता का प्रेम
वनवास के दौरान एक दिन सूखी लकडि़यां तोड़ते हुए प्रभु राम की दाहिनी हथेली में खरोंच लग गई… जिससे खून निकलने लगा…
वापस लौटकर अपनी कुटिया में आये तो ..हाथों से बहते खून को देख…सीता ने घाव पर कपड़ा बांध् दिया…
उस दिन भोजन के समय राम हाथ से फल खाने लगे तो… खाने में हो रही असुविधा को देेेेखकर… सीता ने अपने हाथों से उन्हें फल खिलाया… और इस तरह राम के हाथ मे घाव लगे होने के कारण …कई दिनों तक लगातार सीता अपने हाथों से फल खिलाती रही…
लेकिन उन्हें आश्चर्य हुआ कि अब तक तो घाव को ठीक हो जाना चाहिए… लेकिन अब भी मेरे पतिदेव अपने हाथ में कपड़ा बांधे रहते हैं…
इस दौरान कई बार सीता ने राम से कहा… “मुझे दिखाइये कि घाव सूख रहा है कि नहीं…!” लेकिन राम आनाकानी करते रहे… और हथेली पर बंधा कपड़ा नहीं उतारा…
एक दिन सोेेते समय सीता ने चुपके से… राम की हथेली पर बंधा कपड़ा खोलकर देखा…और वह यह देख दंग रह गईं कि… राम का घाव तो पूरी तरह ठीक हो गया है…अगले दिन सीता ने राम के आगे फल खाने को रख दिया…और कुछ दूर जाकर चुपचाप बैठ गईं…अब राम असहाय भाव से सीता की ओर देख रहे थे कि…
रोज की भाँति आज भी सीता मुझे अपने हाथों से खिलायेंगी… किंतु सीता ने उनकी उम्मीद भरी नजरों में देखकर कहा…
‘अपने हाथों से फल खाइये… स्वामी…! अभिनय मत कीजिए… मुझे सब पता चल चुका है… आपका घाव बहुत पहले ठीक हो चुका था…
फिर आपने ये बात मुझे बताया क्यों नहीं…?’’ राम सकपका गये…सोचा अबतो सच उजागर हो गया…
तब मुस्कुराते हुए कहा… ‘‘तुम्हारे हाथों से फल खाने से मुझे विशेष सुख और आन्नद मिल रहा था…और मैं उस सुख से वंचित होना नहीं चाहता था…।’’
सीता बोली… ‘‘अच्छा तो ये बात थी… आपने हमें भुलावे में रखा इसकी सजा आपको मिलनी चाहिए…और आपकी सजा यह हैं कि… जितने दिनों तक मैंने आपको अपने हाथों से खिलाया है… उतने दिनों तक आपको भी मुझे अपने हाथों से खिलाना होगा…।’’ यह सुनकर प्रभु राम मुस्कुराते हुऐ बोले..,‘‘यह सजा मुझे सहर्ष स्वीकार है…।’’
!! जय श्री राम !!
“नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो,
चरण हो राघव के, जहां मेरा ठिकाना हो”
“नमो राघवाय” !!