Posted in भारत का गुप्त इतिहास- Bharat Ka rahasyamay Itihaas

देवी सिंह तोमर

फुर्सत में भी हो… और समय भी बहुत हैं… तो लेख को पुरा पढे…
“अंग्रेजों और कोंग्रेसियों” के फैलाए “झूठ” से बाहर निकलने के लिये लिंक के साथ पूरा लेख पढ़िये –

जिन का प्रचार होता है वो “राष्टवादी” बन जाते है – जैसे – “गांधी”..

जिन का “दुष्प्रचार” होता है वो “देशद्रोही” बन जाते है – जैसे – “हुतात्मा नाथूराम गोडसे”।

ऐसे ही “वीर सांवरकर” के साथ भी किया गया था।


कुछ ऐसा ही — “हिटलर” के साथ भी हुआ था।

लोग दिवाने थे हिटलर के – उसके एक इशारे पर – पूरे जर्मनी के लोग – कुर्बान – होने के लिए तैयार थे।
हिटलर ने जर्मनी को – पहले विश्व युद्ध की -“आर्थिक और सामजिक” – बर्बादी से बाहर निकाल कर जर्मनी को एक बार फिर से – “विश्व शक्ति” – बनाया था…

जिसने कभी ना “सूर्यास्त” होने वाले सम्राज्य के मालिक “ब्रिटेन” के दिल में हार का “खौफ” भर दिया था।

बाद में यही “खौफ” भारत जैसे देशो को “आज़ादी” दिलवाने में एक बड़ा कारण बना।

नही तो – अंग्रेजों का – भारत को “छोड़ने” का कोई “मन” ही नही था,क्यों कि,

1940 में तो अंग्रेजों ने अपने “आका” {वाइसराय} के रहने के लिये बहुत ही “भव्य भवन” बनवा कर पूरा किया था,

उस आलीशान इमारत को – आज हम “राष्ट्रपति भवन” कहते है।

इधर ये भवन बनकर तैयार हुआ और उधर अंगेजो के “हलक” में हिटलर ने “डंडा” डाल दिया और
मार मार के “कचूमर” ही निकाल दिया और “विश्व विजयी” अंग्रेजों की सारी “हेकड़ी” निकाल कर और उस “साम्राज्यवादी शासन” की – जड़े खोद कर खोखली कर दी।

हिटलर ने – हारी हुई – भारतीय अंग्रेज फौज के “जिन्दा पकड़े” गये “युद्ध बंदीयों” को – नेता जी “सुभाषचन्द्र” को सौंप कर “आजाद हिन्द फौज” खड़ी करवा दी-

याद रहे :– “आजाद हिन्द फौज” में सीधे यहाँ भारत से “बहुत कम” लोगो शामिल हुए थे।

हिटलर को अपने “देश और धर्म” से प्यार था ,
हिटलर पागलो की तरह अपने देश से प्यार करता था उसका
यही पागलपन दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना।

कुछ लोग कहते है कि हिटलर ने दुनिया को विश्व युद्ध
की ओर धकेल दिया इस लिये वो “नरसहारक” है,

तो फिर ब्रिटेन तो पुरे ४०० सालो तक दुनिया भर में चुन चुन कर
हमले करता रहा और उन देशों को “गुलाम” बना कर उन पर “शासन” भी करता रहा …
और उन देशों के “नागरिकों” को “गुलाम” बना कर दुसरे देशों “बेचता” भी रहा..

क्या वो “बर्बरता और कत्लेआम” पुण्य का काम था –??–

भारत में भी “ब्रिटेन” ने हमारे “ज्ञात और अज्ञात”,
8 लाख के करीब भारतीय “स्वतंत्रता सैनानियों” को मारा था।

आज भी अमेरिका “विश्व शांति” के नाम पर, पुरे विश्व के हर देश में “नर संहार” कर रहा है,

क्या वो सब जायज है–??–

ऐसे देश – कैसे “हिटलर” को “हत्यारा” कह सकते है।

हाँ — ये देश – “हिटलर”- के बारे में -“झूठा प्रचार”- जरुर करते है।

अब आप सिक्के का दूसरा पहलू भी देखिये :—

राजतन्त्र में एक गाँव के कर्ताधर्ता को — “ठाकुर” — कहते थे।
बहुत से गांवो पर राज करने वाले को — “राजा”,
और “कई राजाओ” पर शासन करने वाले को – हिन्दू लोग “सम्राट” कहते थे।

और मुसलमान उसे — “बादशाह” कहते थे।

क्या आप ऐसा मानते है कि :– एक राजा के लिये – दुसरे राजा – अपना राजपाट – आने वाले राजा के लिए – ख़ुशी ख़ुशी छोड़ देते थे,

नही :– सिर्फ कुछ को छोड़ कर – सभी राजाओं ने – आत्म समर्पण नही किया – बल्कि – युद्ध किये है –इतिहास गवाह है।

युद्ध में तो सिर्फ “कत्लोगारत” ही होता है।

अकबर ने महाराणा प्रताप को झुकाने के लिए बहुत खून खराब किया था — और — ऐसे ही — सम्राट अशोक ने भी कलिंग को जितने के लिए भी कत्लेआम किया था।

फिर सोचने की बात है – हम लोग – कैसे उन्हें “महान” कह रहे है –??–

तो क्या आप ये मानते है कि :—

मुगल बादशाह “अकबर” को “बादशाहत” —
बिना “कत्लेआम” और बिना “खूनखराबे” के उस की -“सुसराल से दहेज”- में मिली थी -??- और —

“सम्राट अशोक महान” को भी “सम्राट” की “पदवी” भी उस की “सुसराल” से ही मिली होगी-??-

जी नही — इन दोनों ने “कत्लेआम” और “खूनखराबे” से ही ये “स्थान” हासिल किये थे।

तथाकथित सम्राट अशोक ने “बुद्ध” के कहने से – सनातन धर्म को हटा कर – “बौद्ध धम्म” को – राज धर्म” घोषित कर दिया था।

कोई भी हिन्दू – अपनी सनातनी धर्म की मान्यताओं के अनुसार पूजा अर्चना नही कर सकता था,
अपनी सनातनी परम्पराओं की पालना नही कर सकता था,

अगर कोई हिन्दू ऐसा करता तो – वो “राजद्रोही” माना जाता,
वो हिन्दू “दण्ड” का भागी होता,उस समय “राजा की आज्ञा” नही मानने की क्या सजा होती होगी आप समझ सकते है।

क्योंकि हर भारतीय हिन्दू अशोक के राज में – अशोक की – “राज्य आज्ञा” के अधीन था…

तो – फिर “अकबर और अशोक” को – “महान” और – “हिटलर हत्यारा” को क्यों कहा जाता है।

एक बात और जान लीजिये :—

हिटलर से बड़ा जर्मनी की धरती पर कोई…

“देशप्रेमी” {राष्ट भक्त} ना कोई हुआ है और ना फिर कोई होगा।

हिटलर ने अपने “देश हित” में जो किया वो बिलकुल सही किया।

भारतीय लोग भूल रहे है कि यहाँ भारत भूमि पर भी :—

“धर्म और नीति” के लिए ही – “महाभारत” – नाम का एक युद्ध हुआ था – युद्ध में लड्डू नही बांटे जाते – युद्ध कहीं भी हो – किसी का भी हो – सिर्फ “कत्लेआम” होता है।

महाभारत के युद्ध में भी – करोड़ो लोगों की जाने गयी थी।

तो क्या – महाभारत – के युद्ध के कारण – हम लोग – “भगवान श्री कृष्ण और पांडवों” को भी – खुनी और हत्यारा – कहने लगेंगे – ??- {सोचिये}

माता सीता को खोजने में “सुग्रीव” से कई गुणा अधिक मददगार साबित होता “बाली” – मगर प्रभु
श्रीराम ने “बाली” का वध करके “सुग्रीव” की मित्रता चुनी क्योंकि “बाली” अधर्म के और “सुग्रीव” धर्म के प्रतिनिधि थे।

{तो क्या बाली के वध के लिए – हम भगवान राम को खूनी और कातिल कहने लगेंगे}

हिटलर का दुष्प्रचार करने वाले अंग्रेज लोग – हम भारतीय लोगों को भी तो “कुता” मानते थे – तो क्या – उन्ही की देखा देखि हम लोग – खुद को “कुता” मानने लगेंगे…

हिटलर ने – वो सब क्यों किया – ये कोई नही “जानता” और कोई “जानना” भी नही चाहता,

जो कुछ “पढ़ा और सूना” उसी को ही “सत्य” मान कर चल रहे है।

जबकि :— “सत्य इस से बिलकुल” अलग है।

जर्मनी तो – अमेरिका से – सिर्फ एक – परमाणु हथियार – बनाने में ही पिछड़ गया- नही तो –

उस समय – अमेरिका – जर्मनी के सामने – हर तकनीकी में – बहुत पीछे था


इतिहास को तनिक ध्यान से पढ़ा जाए !
हां तो मित्रो :—
सन 1539 ई० में हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का युद्ध हुआ !
जिसमे हुमायूँ हार गया और 1540ई० में अपनी बीवी को अमरकोट के राजा वीरसाल के पास छोड़कर ईरान भाग गया !
इसके बाद वो 15 साल भटकता रहा !
अब साला सिर सोच सोचकर फटा जा रहा है!
कि = जब 1540 के बाद हुमायूँ अपनी बीवी के साथ नही था!

तो 2 साल बाद 1542 में उसे अकबर के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति कैसे हो गयी ???

शायद यही कारण है कि अकबर को “महान” बताया वामपंथियों इतिहासकारों ने !

अकबर कितना महान था – ये जानने के लिए – एक ये पोस्ट भी पढ़ लीजिये –


अकबर के समय के इतिहास लेखक “अहमद यादगार” ने लिखा :–

“बैरम खाँ ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बाँध दिये और उसे नौजवान शहजादे {अकबर} के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस “काफिर” का कत्ल कर दें और ”गाज़ी”की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।” (नवम्बर, ५ AD १५५६)
(तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६)

इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही “गाज़ी” (काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।

साम्राज्यवादी मनोलिप्सा से प्रेरित हो 1567 अक्टूबर में अकबर ने चितौड़ गढ़ पर आक्रमण किया।
जेम्स कर्नल टॉड ने एक मान्यता का उल्लेख किया :— जो इस प्रकार है -इस लड़ाई में जो लोग काम आए उनके गलों से यज्ञोपवीत उतरवा कर तुलवाये तो वे ७४-१/२ मन बैठे।

अकबर द्वारा निरीह व्यक्तियों की हत्या चितौड़ में की गई – उसकी “स्मृति को चिर स्थायी” रखने के लिए ७४-१/२ की संख्या की “अपशुकुन” माने जाने लगा।

इसीलिए जब किसी को कोई गोपनीय पत्र भिजवाया जाता तो उसके ऊपर ७४ -१/२ का आँक लगा दिया जाता कि यदि किसी अनाधिकृत व्यक्ति ने पत्र खोला तो उसे “चितौड़ खप्या का पाप” लगेगा।

इस लिये – मेवाड़ में 1567 (लगभग 70 साल पूर्व तक) जब कोई पत्र व्यवहार होता था तो उस चिठ्ठी को बंद कर उस पर ७४-१/२ का आँक लगाया जाता था।{७४-१/२ लिखा जाता था}

तथाकथित “महान” अकबर के हमले देखेंगे तो भी ऐसा ही दिखेगा। उस से हारने वाला कोई राजा जीवित नहीं छोड़ा गया। उन “राजपरिवारों और सामंतों” के घर की सभी “औरतों” को गुलाम बना कर अपने “हरम” में डाल दिया गया था।

लूडो जैसा खेल खेलने के लिए – “फतेहपुर सिकरी”- के महलों में जमीन पर – “खांचे”- बने हैं, जिसमें – “गोटियों” – के बदले कभी “महान” अकबर -“गुलाम लौंडियों” – को इस्तेमाल करते थे।

चलिए एक बार मान भी लेते हैं कि –“अकबर महान” था – लेकिन – “बाबर हुमायूँ और तुगलक”-??- के नाम पर भी – “रोड” –??-
क्या ये सभी महान थे – या – कोंगियों के “पितृ पुरुष” थे -??-

दिल्ली तो “इंद्रप्रस्थ” तो है लेकिन “युधिस्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल, सहदेव और विदुर” के नाम पर एक भी सड़क नहीं -??-
दिल्ली की “सड़कों” का नाम पढ़ने पर “आत्मग्लानि” होती है और लगता है कि यह “हिंदुस्तान” नहीं बल्कि “पाकिस्तान” की राजधानी है…

अकबर को “मुस्लिम आक्रांता” कहकर “माननीय प्रणव मुखर्जी” जी ने उस “लुटेरे” को -“महान”- कहने वाले -“वामपंथी इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों और सेक्युलर नेताओं”- का मुंह बंद कर दिया है!

आशा करता हूँ कि – ये लोग अब स्वयं “इंडिया गेट” से प्रधानमंत्री निवास को जोड़ने वाली “अकबर रोड” का नाम बदलने की मांग करेंगे।

तिरंगा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज – 15 अगस्त 1947 को ही फहराया गया था – जो कि – बिलकुल झूठ है –

मालदीव को 1944 में ही अंग्रेजो से छीन कर – या – कहे जीत – नेता जी सुभाष चन्द्र बोष ने – तिरंगा फहरा दिया था ..{जो कहीं – भी आप को – पढने या सुनने को नही मिलेगा}

आज़ाद हिंद फौज ने 21 अक्टूबर 1943 को प्रथम सरकार की स्थापना सिंगापुर में हुई और. भारत के उत्तर पूर्व के कई भागों को स्वतंत्र कर लिया गया और 11 देशों ने उसे मान्यता दी जैसे जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। और कई देशों ने अपने दूतावास भी खोले थे।

“अंग्रेजों और कोंग्रेसियों” के फैलाए “झूठ” से बाहर निकलिये – इतिहास में बहुत गडबड है आप अपने – “विवेक” – से काम लीजिये ..

मेरे लिखने का मुद्दा – हिटलर की महिमामंडित करना नही है – थोड़ा गम्भीरता से सोचिये.. .

मैंने ये सब क्यों लिखा है .. थोड़ा दिमाग पर जोर दीजिये –

।।

Author:

Buy, sell, exchange old books

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s