, : 🙏श्री गणेशाय नम:🙏 : , *जय माता दी*
रात्रि कथा *क्या सत्य नही*
एक बूढ़ी हर दिन मंदिर के सामने भीख मांगती थी। एक बार मंदिर से किसी साधु ने उस बुढिया को देखकर इस प्रकार पूछा- “आप अच्छे घर से आई हुई लगती है।
आपका बेटा अच्छा लड़का है ना? फिर यहां हर दिन क्यों खड़ी होती है?”
उस बुढ़िया ने कहा- “बाबा, आप तो जानते हैं, मेरा एक ही पुत्र है। बहुत साल पहले ही मेरे पति का स्वर्गवास हो गया।
मेरा बेटा आठ महीने पहले मुझे छोड़कर नौकरी के लिए चला गया। जाते समय वह मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया। वह सब मेरी आवश्यकता के लिए खर्च हो गया। मैं भी बूढ़ी हो चली हूँ। परिश्रम करके धन नहीं कमा सकती। इसीलिए देव मंदिर के सामने भीख मांग रही हूँ।
साधु ने कहा- “क्या तुम्हारा बेटा अब पैसे नहीं भेजता?
बुढिया ने कहा- “मेरा बेटा हर महीने एक एक रंगबिरंगा कागज भेजता है। मैं उसको चूम कर अपने बेटे के स्मरण में उसे दीवार पर चिपकाती हूं।
साधु ने उसके घर जाकर देखने को निश्चय किया। अगले दिन वह उसके घर में दीवार को देख कर आश्चर्यचकित हो गया। उस दीवार पर आठ धनादेश पत्र चिपका के रखे थे। एक एक चेक् 50000 रुपये राशि का था।
वह बुढिया पढ़ी लिखी नहीं थी। इसीलिए वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी संपत्ति है। वह साधु उस विषय को जानकर उस बुढ़िया को उन धनादेशों का मूल्य समझाया।
रात्रि कथा का तात्पर्य= हम भी उसी बुढ़ीया की तरह हैं। हमारे पास जो धर्म के ग्रंथ है, उसका मूल्य नहीं जानकर उसे माथे से लगाकर अपने घर में सुरक्षित रखते हैं । उसकी उपयोगिता को समझ नही पाते ।
. “卐 ज्योतिषी और हस्तरेखाविद 卐”
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पं,संजय आमले
( शास्त्री )
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