भगवद्गीता यथारुप….
1- जब हम पहली बार भगवद्गीता पढ़ते हैं। तो हम एक अन्धे व्यक्ति के रूप में पढ़ते हैं और बस इतना ही समझ में आता है कि कौन किसके पिता, कौन किसकी बहन, कौन किसका भाई। बस इससे ज्यादा कुछसमझ नहीं आता।
2- जब हम दूसरी बार भगवद्गीता पढ़ते हैं, तो हमारे मन में सवाल जागते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया या उन्होंने वैसा क्यों किया ?
3- जब हम तीसरी बार भगवद्गीता को पढ़ेगें, तो हमे धीरे-धीरे उसके मतलब समझ में आने शुरू हो जायेंगे। लेकिन हर एक को वो मतलब अपने तरीके से ही समझ में आयेंगे।
4- जब चौथी बार हम भगवद्गीता को पढ़ेंगे, तो हर एक पात्र की जो भावनायें हैं, इमोशन… उसको आप समझ पायेगें कि किसके मन में क्या चल रहा है। जैसे अर्जुन के मन में क्या चल रहा है या दुर्योधन के मन में क्या चल रहा है ? इसको हम समझ पाएंगे।
5- जब पाँचवी बार हम भगवद्गीता को पढ़ेंगे तो पूरा कुरूश्रेत्र हमारे मन में खड़ा होता है, तैयार होता है,हमारे मन में अलग-अलग प्रकार की कल्पनायें होती हैं।
6- जब हम छठी बार भगवद्गीता को पढ़ते हैं, तब हमें ऐसा नही लगता की हम पढ़ रहें हैं… हमे ऐसा ही लगता है कि कोई हमें ये बता रहा है।
7- जब सातवी बार भगवद्गीता को पढ़ेंगे, तब हम अर्जुन बन जाते हैं और ऐसा ही लगता है कि सामने वो ही भगवान कृष्ण हैं, जो मुझे ये बता रहें हैं।
8- और जब हम आठवी बार भगवद्गीता पढ़ते हैं, तब यह एहसास होता है कि श्रीकृष्ण कहीं बाहर नही हैं, वो तो हमारे अन्दर हैं और हम उनकेअन्दर हैं। जब हम आठ बार भगवद्गीता पड़ लेगें तब हमें गीता का महत्व पता चलेगा |
कि इस संसार में भगवद् गीता से अलग कुछ है ही नहीं और इस संसार में भगवद्गीता ही हमारे मोक्ष का सबसे सरल उपाय है।
भगवद्गीता में ही मनुष्य के सारे प्रश्नों के उत्तर लिखें हैं। जो प्रश्न मनुष्य ईश्वर से पूछना चाहता है। वो सब गीता में सहज ढंग से लिखें हैं।
मनुष्य की सारी परेशानियों के उत्तर भगवद्गीता में लिखें हैं,गीता अमृत है। गीता स्यमं भगवान कृष्ण है…समय निकाल कर गीता अवश्य पढ़ें…
“जय श्रीहरि”
“हरे कृष्ण”